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________________ ५० धर्मामृत ( अनगार ) २७८ २८१ २८५ ३०० चौदह गुणस्थान २३७ कामके दस वेग चौदह मार्गणा २३८ कामीको कुछ भी अकृत्य नहीं २७९ हिंसाका विस्तृत स्वरूप २३८ कामाग्निका इलाज नहीं २८० प्रमादी ही हिंसक २४० मैथुन संज्ञाके निग्रहका उपाय प्रमादके भेद २४० स्त्रीदोषोंका वर्णन २८२ समिति गुप्तिके पालकके बन्ध नहीं २४१ स्त्री संसर्गके दोष रागादिकी उत्पत्ति ही हिंसा २४२ कामान्धकी भावनाका तिरस्कार २९३ एक सौ आठ कारणोंको दूर करनेपर ही वृद्ध पुरुषोंकी संगतिका उपदेश २९५ ____ अहिंसक २४२ वृद्धजनों और युवाजनोंकी संगतिमें अन्तर २९५ भावहिंसामें निमित्त परद्रव्यका त्याग आवश्यक २४३ तरुणोंकी संगति अविश्वसनीय २९६ अजीवाधिकरणके भेद २४३ तरुण अवस्थामें भी अविकारीकी प्रशंसा २९७ हिंसाको दूर रहनेका उपदेश चारुदत्त और मारिदत्तका उदाहरण २९७ धनश्री और मृगसेनका उदाहरण २४८ ब्रह्मचर्य व्रतकी भावना २९८ अहिंसा व्रतकी भावना २४९ वीर्यवर्द्धक रसोंके सेवनका प्रभाव २९८ सत्यव्रतका स्वरूप २५१ ब्रह्मचर्यमें प्रमाद करनेवाले हँसीके पात्र २९९ चार प्रकारका असत्य २५२ आकिंचन्य व्रत चार प्रकारके असत्यके दोष २५४ परिग्रहके दोष । सत्यवचन सेवनीय २५५ चौदह अभ्यन्तर तथा दस बाह्य परिग्रह। ३०२ असत्यका लक्षण २५६ परिग्रहत्यागकी विधि ३०३ मौनका उपदेश २५७ परिग्रहीकी निन्दा ३०५ सत्य व्रतको भावना २५८ पुत्रके मोहमें अन्धजनोंकी निन्दा ३११ सत्यवादी धनदेव और असत्यवादी वसुराजाका पुत्रीके मोहमें अन्धजनोंकी निन्दा ३१३ उदाहरण २५८ पिता-माताके प्रति तथा दास-दासीके प्रति दस प्रकारका सत्य २५९ अत्यधिक अनुरागको निन्दा नौ प्रकारका अनुभय वचन २६१ चतुष्पद परिग्रहका निषेध ३१६ अचौर्य व्रत २६३ अचेतनसे चेतन परिग्रह अधिक कष्टकर ३१७ चोरसे माता-पिता भी दूर रहते है २६४ क्षेत्रादि परिग्रहके दोष ३१९ चोरके दुःसह पापबन्ध २६५ धनकी निन्दा ३२१ श्रीभूति और वारिषेणका उदाहरण २६५ परिग्रहसे संचित पापकर्मको निर्जरा कठिन ३२४ चोरीके अन्य दोष २६६ मोहको जीतना कठिन विधिपूर्वक दी हुई वस्तु ग्राह्य २६७ लक्ष्मीका त्याग करनेवालोंकी प्रशंसा ३२६ अचौर्यव्रतको भावना २६८ बाह्य परिग्रहमें शरीर सबसे अधिक हेय । ३२७ प्रकारान्तरसे , २६९ परिग्रह त्याग करके भी शरीरमें मोहसे क्षति ३२८ ब्रह्मचर्यका स्वरूप २७२ भेदज्ञानी साधुकी प्रशंसा ३३० दस प्रकारके अब्रह्मका निषेध २७३ अन्तरात्मामें ही उपयोग लगानेका उपदेश ३३२ विषय विकारकारी २७४ आकिंचन्य व्रतकी भावना मैथुन संज्ञा २७५ पाँच महाव्रतोंके महत्त्वका समर्थन ३३५ विषयासक्त प्राणियोंके लिए शोक २७६ रात्रिभोजनविरति छठा अणुव्रत ३३५ ३२५ ३३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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