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द्वितीय अध्याय
सम्यग्दर्शनको भी मुक्ति के लिये चारित्रकी अपेक्षा करनी पड़ती है
मिध्यात्वका लक्षण
मिथ्यात्वके भेद और उसके प्रणेता एकान्त और विनयमिध्यात्वकी निन्दा
विपरीत और संशय मिथ्यात्वकी निन्दा
अज्ञान मिथ्यादृष्टियोंके दुष्कृत्य प्रकारान्तरसे मिध्यात्वके भेद ३६३ मतोंका विवरण
सर्वथा नित्यता और सर्वथा क्षणिकतामें दोष
अमूर्त आत्माके भी कर्मबन्ध
आत्मा के मूर्त होने में युक्ति
कर्मके मूर्त होने में प्रमाण जीव शरीर प्रमाण प्रत्येक शरीर में भिन्न जीव
मिथ्यात्वका विनाश करनेवालेकी प्रशंसा
मिथ्यात्व और सम्पनत्वका लक्षण सम्यक्त्वकी सामग्री
परम आसका लक्षण
आप्तको सेवाकी प्रेरणा
आसका निर्णय कैसे करें ?
आप्त और अनाप्तके द्वारा कहे वाक्योंका लक्षण
आसके वचन में युक्तिसे बाधा आनेका परिहार रागी आप्त नहीं
आप्ताभासों की उपेक्षा करो
मिथ्यात्वपर विजय कैसे ?
जोवादि पदार्थोंका युक्ति से समर्थन
जीवपदार्थका विशेष कथन
चार्वाकका खण्डन
चेतनाका स्वरूप
किन जीवोंके कौन चेतना
आस्रव तत्त्व
भावासवके भेद
बन्धका स्वरूप
बन्धके भेदोंका स्वरूप पुण्यपाप पदार्थका निर्णय
धर्मामृत (अनगार )
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संवरका स्वरूप और भेद
निर्जराका स्वरूप निर्जराके भेद मोक्षतत्त्वका लक्षण
मुक्तात्माका स्वरूप
सम्यक्त्वको सामग्री
पाँच लब्धियाँ
निसर्ग अधिगम का स्वरूप सम्यक्त्वके भेद
प्रशम आदिका लक्षण
सम्यक्त्वके सद्भाव के निर्णयका उपाय
औपशमिक सम्यक्त्व और क्षायिक सम्यवत्वका
अन्तरंग कारण
वेदक सम्यक्त्वका अन्तरंग कारण
वेदकको अगाड़ता, मालिन्य तथा चलत्वका
कथन
आज्ञा सम्यक्त्व आदिका स्वरूप
आजा सम्यवत्व के उपाय
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१६६
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१७१
१७१
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१७२
अपने शरीरमें विचिकित्सा न करनेका माहात्म्य १७२ विचिकित्सा के त्यागका प्रयत्न करो
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परदृष्टि प्रशंसा नामक सम्यवश्वका मल
१७४
(૩૪
१७५
१७५
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१७७
सम्यग्दर्शनकी महिमा
सम्यक्त्वके अनुग्रहसे ही पुण्य भी कार्यकारी सम्यग्दर्शन साक्षात् मोक्षका कारण
सम्यक्त्वकी आराधनाका उपाय
सम्यक्त्वके अतीचार
शंकाका लक्षण
शंकासे हानि
कांक्षा अतिचार
कांक्षा करनेवालोंके सम्यक्त्वके फलमें हानि
कांक्षा करना निष्कल
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१२६
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१३१ अनायतन सेवाका निषेध १३३ मिध्यात्व सेवनका निषेध १३५ मदरूपी मिथ्यात्वका निषेध
१३७ जातिमद कुलमदका निषेध सौन्दर्यके मदके दोष
१३९
आकांक्षाको रोकने का प्रयत्न करो
विचिकित्सा अतिचार
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