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विषय सूची
५१
गर्भादि कल्याणक सम्यक्त्व सहचारी पुण्यप्रथम अध्याय
विशेषसे होते हैं सिद्धोंको नमस्कार
१ धर्म दुःखको दूर करता है प्रसंग वश सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक
सगर, मेघवाहन और रामभद्रका दृष्टान्त चारित्रकी चर्चा
धर्म नरकमें भी घोर उपसर्गको दूर करता है अर्हन्तको नमस्कार
पाप कर्मके उदयमें भी धर्म ही उपकारी है दिव्यध्वनिकी चर्चा
दृष्टान्त द्वारा पुण्यके उपकार और पापके गणधर देवादिका स्मरण
अपकारका समर्थन जिनागमके व्याख्याता आरातीय आचार्योंका
प्रद्युम्नका दृष्टान्त
पुण्य-पापमें बलाबल विचार स्मरण
२२ श्लोकों द्वारा मनुष्य भवकी निस्सारताका धर्मोपदेशका अभिनन्दन धर्मामृतके रचनेकी प्रतिज्ञा
कथन
५२-५७ प्रसंगवश मंगल आदिकी चर्चा
मनुष्य पर्याय बुरी होनेपर भी धर्मका अङ्ग है ६० सच्चे धर्मोपदेशकों की दुर्लभता
धर्म विमुखका तिरस्कार
धर्म शब्दका अर्थ धर्मोपदेशक आचार्यके सद्गुण
निश्चय रत्नत्रयका लक्षण निकट भव्य श्रोताओंकी दुर्लभता
सम्पूर्ण रत्नत्रय मोक्षका ही मार्ग अभव्य उपदेशका पात्र नहीं
मोक्षका उपाय बन्धनका उपाय नहीं हो सकता ऐसा गुण विशिष्ट भव्य ही उपदेशका पात्र
व्यवहार रत्नत्रयका लक्षण सदुपदेशके बिना भव्यकी भी मति धर्म में नहीं
सम्यग्दर्शन आदिके मल लगती
निश्चय निरपेक्ष व्यवहारनयका उपयोग स्वार्थका चार प्रकारके श्रोता
नाशक विनयका फल
व्यवहारके बिना निश्चय भी व्यर्थ व्युत्पन्न उपदेशका पात्र नहीं
व्यवहार और निश्चयका लक्षण विपर्ययग्रस्त भी उपदेशका पात्र नहीं
शुद्ध और अशुद्ध निश्चयका स्वरूप धर्मका फल
सद्भूत और असद्भूत व्यवहारका लक्षण धर्ममें अनुरागहेतुक पुण्य बन्ध भी उपचारसे
अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नयका कथन धर्म है
२८
उपचरित असद्भूत व्यवहार नयका कथन धर्मका मुख्यफल
नयोंको सम्यक्पना और मिथ्यापना पुण्यकी प्रशंसा
३१ एक देशमें विशुद्धि और एक देश में संक्लेशका इन्द्रपद, चक्रिपद, कामदेवत्व, आहारक शरीर
आदि पुण्योदयसे प्राप्त होते हैं ३२-४१ अभेद समाधिकी महिमा
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