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प्रस्तावना
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४. कुन्दकुन्दाचार्य - अन. टी. पृ. १३२ पर 'यत्तात्त्विकाः' लिखकर एक गाथा उद्धृत की है जो आचार्य कुन्दकुन्दकृत द्वादश अनुप्रेक्षा की है । इस तरह आचार्य कुन्दकुन्दका उल्लेख तात्त्विक शब्दसे किया है ।
५. अपराजिताचार्य - विजयाचार्य - भगवती आराधनापर अपराजित सूरिकी विजयोदया नामक एक विस्तृत संस्कृत टीका है जो शोलापुरसे १९३५ में प्रकाशित हुई थी । अन. टी. पृ. १६६ पर भगवती आराधनाकी गाथा उद्धृत करके लिखा है कि इसका व्याख्यान विस्तारसे अपराजिताचार्य विरचित मूलाराधना टीका तथा हमारे ( आशाधर के ) रचे मूलाराधनादर्पण नामक निबन्धमें देखो । तथा पू. ६७३ पर आचेलक्यका व्याख्यान करते हुए लिखा है कि इसका समर्थन श्रीविजयाचार्य विरचित संस्कृत मूलाराधना टीका में विस्तार से किया है । अपराजित सूरिका ही नाम विजयाचार्य था या विजयोदया टीकाके नामपर से इन्हें विजयाचार्य कहा जाता था । अनगार धर्मके कथनमें आशाधरने इसका बहुत उपयोग किया है ।
६. अमृतचन्द्राचार्य – आचार्य अमृतचन्द्रका निर्देश प्रायः ठक्कुर (ठाकुर) शब्दके साथ किया है यथा पृ. ५८८ पर लिखा है- 'एतच्च विस्तरेण ठक्कुरामृतचन्द्रविरचित समयसार टीकायां द्रष्टव्यम्' । अमृतचन्द्रके पुरुषार्थसिद्धयुपायका भी उपयोग धर्मामृतकी रचना में बहुतायतसे मिलता है । पृ. १६० पर रत्नकरण्डसे श्लोक उद्धृत करके लिखा है- 'एतदनुसारेणैव ठक्कुरोऽपीदमपाठीत्' और पु. सि. से 'लोके शास्त्राभासे' आदि श्लोक उद्धृत किया है ।
७. गुद्राचार्य - आत्मानुशासन और उत्तर पुराणके रचयिता गुणभद्रका निर्देश 'श्रीमद्गुणभद्रदेवपादाः' लिखकर आत्मानुशासन से ( पू. ६३२) एक श्लोक उद्धृत किया है । ये गुणभद्र आचार्य जिनसेनके शिष्य थे ।
८. रामसेन—पृ. ६३३ पर 'श्रीमद्रामसेनपूज्यैरप्यवाचि' लिखकर उनके तत्त्वानुशासन से एक पद्य उद्धृत किया है ।
९. आचार्य सोमदेव - यशस्तिलक चम्पू और नीतिवाक्यामृत के रचयिता आचार्य सोमदेवका उल्लेख प्रायः 'सोमदेव पण्डित' के नामसे ही किया गया मिलता है । अन. टी. पृ. ६८४ पर 'उक्तं च सोमदेवपण्डितैः' लिखकर उनके उपासकाध्ययनसे तीन श्लोक उद्धृत किये । सागार धर्मामृत टीकामें तो कई स्थलोंपर इसी नाम से उनका निर्देश मिलता है । उनके उपासकाध्ययनका उपयोग धर्मामृतकी रचना में बहुतायत से किया गया है ।
१०. आचार्य अमितगति - अमितगति नामसे इनका निर्देश मिलता है । इनके श्रावकाचार और पंचसंग्रह से सर्वाधिक पद्य उद्धृत किये गये हैं ।
११. आचार्य वसुनन्दि - वसुनन्दि श्रावकाचार तथा मूलाचार टीकाके कर्ता आचार्य वसुनन्दिका उल्लेख अन. टी. ( पू. ६०५ ) पर इस प्रकार मिलता है - 'एतच्च भगवद् वसुनन्दिसैद्धान्तदेवपादैराचारटीकायां व्याख्यातं द्रष्टव्यम्
मूलाचारको टीकाका अनगार धर्मामृतकी टीकामें (पृ. ३३९, ३४४, ३५८, ३५९, ५६८, ६८२, ६०५, ६८१) बहुधा उल्लेख पाया जाता है ।
धर्मामृत की रचना में मूलाचार और उसकी टीकाका बहुत उपयोग हुआ है। तथा सागार धर्मामृतकी रचना में उनके श्रावकाचारका उपयोग बहुतायतसे हुआ है ।
१२. प्रभाचन्द्र — रत्नकरण्ड श्रावकाचारको टीकाके साथ उसके कर्ताका निर्देश अन. टी. (पृ. ६०८) पर इस प्रकार किया है
'यथाहुः भगवन्तः श्रीमत्प्रभेन्दुदेवपादाः रत्नकरण्डकटीकायां । इस निर्देशसे ऐसा प्रतीत होता है कि आशाधरजी प्रसिद्ध तार्किक प्रभाचन्द्रको ही टीकाकार मानते थे ।
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