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धर्मामृत (अनगार) वृषौजोज्वरः-वृषो धर्मः स एव ओजः शुक्रान्तधातुपरमतेजः ।
'ओजस्तेजोधातूनां शुक्रान्तानां परं स्मृतम्' इत्यभिधानात् । तत्र ज्वरसंहर्तृत्वात् । तदुक्तम्
'ज्वरो रोगपतिः पाप्मा मृत्युरोजोशनान्तकः। :
क्रोधो दक्षाध्वरध्वंसी रुद्रोवनयनोद्भवः ॥' [ अष्टाङ्गहृदय २।१] ॥७५।। अथ स्त्रीणां रागद्वेषयोः परां कोटिमाटुंमुपपत्ति दर्शयति
व्यक्तं धात्रा भीरुसर्गावशेषौ रागद्वेषौ विश्वसर्गे विभक्तो।
यद्रक्ता स्वानप्यसून् व्येति पुंसे पुंसोऽपि स्त्री हन्त्यसून् वाग्विरक्ता.॥७६॥ व्यक्तं-अहमेवं मन्ये । भीरुसर्गः-स्त्रीसृष्टि । व्येति-विलभते दवातीत्यर्थः ॥७६॥ अथ सुचरितानां सदाचारविशुद्धयर्थ दृष्टान्तमुखेन स्त्रीचरितभावनामुपदिशति
रक्ता देवरति सरित्यवनिपं रक्ताऽक्षिपत् पङ्गके,
कान्तं गोपवती द्रवन्तमवधीच्छित्वा सपत्नीशिरः। शूलस्थेन मलिम्लुचेन दलितं स्वोष्ठं किलाख्यत्पति
च्छिन्नं वीरवतीति चिन्त्यमबलावृत्तं सुवृत्तः सदा ॥७॥ रक्ता-राज्ञीसंज्ञेयम् । रक्ता-आसक्ता । द्रवन्तं-पलायमानं । मलिम्लुचेन-अंगारकनाम्ना चौरेण ॥७७॥
धर्मरूपी ओजके विनाशके लिए ज्वर है, कामज्वरके लिए शिवका तीसरा नेत्र है, पापकर्मरूपी तरंगमालाके लिए नदी है ऐसी स्त्री यदि नरकके मार्गकी अगुआ है तो हे दुर्दैव, तू क्यों वृथा कष्ट उठाता है ? उक्त प्रकारको नारीसे ही पुरुषोंका नरकमें प्रवेश निश्चित है ।।७५॥
स्त्रियों में राग और द्वेषकी चरम सीमा बतलानेके लिए उसकी उपपत्ति दिखाते हैं
मैं ऐसा मानता हूँ कि सृष्टिको बनानेवालेने रागद्वेषमयी स्त्रीकी रचना करके शेष बचे रागद्वेषको विश्वकी रचनामें विभक्त कर दिया अर्थात् शेषसे विश्वकी रचना की। क्योंकि स्त्री यदि पुरुषसे अनुराग करती है तो उसके लिए धनादिकी तो बात ही क्या, अपने प्राण तक दे डालती है। और यदि द्वेष करती है तो तत्काल ही पुरुषके प्राण भी ले डालती है । इस तरह स्त्रीमें राग और द्वेषकी चरम सीमा है ।।७६।।
___सम्यक् चारित्रका पालन करनेवालोंके सदाचारकी विशुद्धिके लिए दृष्टान्त रूपसे स्त्रीचरितकी भावनाका उपदेश देते हैं
____एक पैरहीन पुरुषपर अनुरक्त होकर रक्ता नामकी रानीने अपने पति राजा देवरतिको नदी में फेंक दिया। गोपवतीने सौतका सिर काटकर भागते हुए पतिको मार डाला। सूलीपर चढ़े हुए अंगारक नामक चोरके द्वारा काटे गये ओष्ठको वीरवतीने अपने पतिके द्वारा काटा हुआ कहा। इस प्रकारके स्त्रीचरितका चरित्रवानोंको सदा विचार करना चाहिए ॥७॥
१. -मादेष्टु-भ. कु. च. ।
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