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द्वितीय अध्याय
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तथा वसिष्ठोऽक्षमालाख्यां चण्डालकन्यां परिणीयोपभुजानो महर्षिरूढिमूढवान् । एवमन्येऽपि बहवस्तच्छास्त्रदृष्ट्या प्रतीयन्ते। यन्मनुः
'अक्षमाला वशिष्ठेन प्रकृष्टाधमयोनिजा। शांर्गी च मन्दपालेन जगामाभ्यर्हणीयताम् ॥ [
] 'एताश्चान्याश्च लोकेऽस्मिन्नवकृष्ट प्रसूतयः ।
उत्कर्ष योषितः प्राप्ताः स्वैः स्वैर्भतृगुणैः शुभैः ॥' [ मनु. ९।२३-२४ ] तत्कृते च धर्मोपदेशकः प्रेक्षावतां समाश्वासः । तथा च पठन्ति
ज्ञानवान्मृग्यते कश्चित्तदुक्तप्रतिपत्तये ।
अज्ञोपदेशकरणे विप्रलम्भनशङ्किभिः॥ [ प्रमाणवा. १।३२ ] अवधि:- शास्त्रम् ॥२२॥ अथ युक्त्यनुगृहीतपरमागमाधिगतपदार्थव्यवहारपरस्य मिथ्यात्वविजयमाविष्करोति
यो युक्त्यानुगृहीतयाप्तवचनज्ञप्त्यात्मनि स्फारितेध्वर्थेषु प्रतिपक्षलक्षितसदाद्यानन्त्यधर्मात्मसु । नीत्याऽऽक्षिप्तविपक्षया तदविनाभूतान्यधर्मोत्थया धर्म कस्यचिदपितं व्यवहरत्याहन्ति सोऽन्तस्तमः ॥२३॥
की थी। उनके पौत्र पाण्डव थे। पाण्डव स्वयं जारज थे। उनकी उत्पत्ति राजा पाण्डुसे न होकर देवोंसे हुई थी। फिर भी देवोंके वरदानसे वे पाँचों समान जन्मवाले कहे गये। दिनोंदिन उनका कल्याण हुआ । ठीक ही है, धर्मकी गति सूक्ष्म है। उसका समझमें आना कठिन है।' वशिष्ठने अक्षमाला नामक चण्डालकी कन्यासे विवाह करके उसका उपभोग किया और महर्षि कहलाये। इसी तरह उनके शास्त्रके अनुसार और भी बहुत-से हुए। मनु महाराजने कहा है
'अत्यन्त नीच योनिमें उत्पन्न हुई अक्षमाला वशिष्ठसे तथा शाी मदपालसे विवाह करके पूज्य हुई। इस लोकमें ये तथा अन्य नीच कुलमें उत्पन्न हुई स्त्रियाँ अपने-अपने पतिके शुभ गुणोंके कारण उत्कर्षको प्राप्त हुई।'
किन्तु सच्चे आप्तके लिए बुद्धिमानोंको धर्मोपदेशका ही सहारा है। कहा है
'यदि अज्ञ मनुष्य उपदेश दे तो उससे ठगाये जानेकी आशंका है। इससे मनुष्य आप्तके द्वारा कही गयी बातोंको जानने के लिए किसी ज्ञानीकी खोज करते हैं।'
युक्तिसे अनुगृहीत आगमके द्वारा पदार्थों को जानकर जो उनका व्यवहार करनेमें तत्पर रहते हैं वे मिथ्यात्वपर विजय प्राप्त करते हैं, यह कहते हैं
जो युक्ति द्वारा व्यवस्थित आप्तवचनोंके ज्ञानसे आत्मामें प्रकाशित पदार्थों में, जो कि प्रतिपक्षी धर्मोंसे युक्त सत् आदि अनन्त धर्मोको लिये हुए हैं, प्रतिपक्षी नयका निराकरण न करनेवाले तथा विवक्षित धर्मके अविनाभावी अन्य धर्मोसे उत्पन्न हुए नयके द्वारा विवक्षित किसी एक धर्मका व्यवहार करता है वह अपने और दूसरोंके मिथ्यात्व या अज्ञानका विनाश करता है ॥२३॥
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