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પાક્ષિકાદિ-અતિચાર૦૫૧૧ आर्तध्यान, रौद्रध्यान ध्यायां, कर्मक्षय निमित्ते लोगस्स दश-वीशनो काउस्सग्ग न कीधो ।
अभ्यंतर तप-विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्षदिवसमांहि० ॥१५॥
वीर्याचारना त्रण अतिचार-अणिगूहिअ-बल-वीरिओ०॥१६॥
पढवे, गुणवे, विनय, वेयावच्च, देवपूजा, सामायिक, पोसह, दान, शील, तप, भावनादिक धर्म-कृत्यने विषे, मन, वचन, कायातणुं छतुं बल, छतुं वीर्य गोपव्युं ।
रूडां पंचांग खमासमणा न दीधां, वंदणा-तणा आवर्त्तविधि साचव्या नहीं, अन्यचित्त निरादर पणे बेठा, उतावलु देव-वंदन पडिक्कणुं कीर्छ ।
वीर्याचार-विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्षदिवसमांहि० ॥१६॥
नाणाइ-अट्ठ पइवय, सम्मसंलेहण पण पन्नर-कम्मेसु ।
बारस-तप-वीरिअ-तिंग, चउवीस-सयं अइआरा ॥ पडिसिद्धाणं. करणे० ॥१७॥
प्रतिषेध अभक्ष्य, अनंतकाय, बहुबीज-भक्षण, महारंभपरिग्रहादिक कीधां, जीवाजीवादिक सूक्ष्म-विचार सद्दह्या नहीं, आपणी कुमति लगे उत्सूत्र प्रपणा कीधी ।
___ तथा प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, रति, अरति, पर-परिवाद, माया-मृषावाद, मिथ्यात्वशल्य ए अढार पापस्थान कीधां, कराव्यां, अनुमोद्यां होय ।।
दिनकृत्य, प्रतिक्रमण, विनय, वेयावच्च न कीधां, अनेरुं जे कांइ वीतरागनी आज्ञा-विरुद्ध कीg कराव्यु, अनुमोद्यं होय ।
दिन
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