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પાક્ષિકાદિ-અતિચાર૦ ૫૦૫
धण-धन्न-खित्त-वत्थू० ॥६॥
धन, धान्य, क्षेत्र, वास्तु, रुप्य, सुवर्ण, कुप्य, द्विपद, चतुष्पदए नवविध परिग्रह-तणा नियम उपरांत वृद्धि देखी मूर्छा-लगे संक्षेप न कीधो, माता, पिता, पुत्र, स्त्री तणे लेखे कीधो, परिग्रहपरिमाण लीधुं नहीं, लइने पढीयुं नही, पढवू विसार्यु, अलीबूं मेल्युं, नियम विसार्यां ।
पांचमे परिग्रह परिमाण व्रत-विषईओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष दिवसमांहि० ॥५॥
छठे दिक्-परिमाण व्रते पांच अतिचारगमणस्स य परिमाणे० ॥६॥
ऊर्ध्वदिशि, अधोदिशि, तिर्यंग्-दिशिए जवा आववातणा नियम लई भांग्या, अनाभोगे विस्मृति लगे अधिक भूमि गया, पाठवणी आघी-पाछी मोकली, वहाण-व्यवसाय कीधो, वर्षाकाले गामंतकं कीधुं, भूमिका एकगमा संक्षेपी, बीजी गमा वधारी ।
छठे दिक-परिमाण-व्रत-विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष दिवसमांहि० ॥६॥
सातमे भोगोपभोग-विरमण व्रते भोजन आश्री पांच अतिचार अने कर्म-हुंती पंदर अतिचार, एव वीश अतिचारसचित्ते पडिबद्धे० ॥७॥
सचित्त-नियम लीधे अधिक सचित्त लीg; अपक्वाहार, दुष्पक्वाहार, तुच्छौषधि-तणुं भक्षण कीधुं, ओळा, उबी, पोंक पापडी खाधां ।
सचित्त-दव्व-विगई-वाणह-तंबोल-वत्थ-कुसुमेसु । वाहण'-सयण-विलेवण-बंभ-दिसि१२-न्हाण१३-भत्तेसु१४ ॥
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