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૫૦૪૦ શ્રી શ્રાદ્ધ-પ્રતિક્રમણ-સૂત્રપ્રબોધટીકા-૩ तेहनी वस्तु लीधी, विरुद्ध राज्यातिक्रम कीधो, नवा, पुराणा, सरस, विरस, सजीव, निर्जीव वस्तुना मेल-संभेल कीधा, कूडे काटले, तोले, माने, मापे, वहोर्या, दाण चोरी कीधी, कुणहने लेखे वरांस्यो, साटे लांच लीधी, कूडो करहो काढ्य, विश्वासघात कीधो, पर-वंचना कीधी, पासंग कूडां कीधां, दांडी चडावी, लहके-त्रहके कूडां काटलां, मान, मापा कीधां ।
माता, पिता, पुत्र, मित्र, कलत्र वंची कुणहिने दीधुं जुदी गांठ कीधी, थापण ओळवी, कुणहिने लेखेपलेखे भूलव्युं, पडी वस्तु ओळवी लीधी ।
त्रीजे स्थूल्ल-अदत्तादान-विरमण व्रत-विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष दिवसमांहि० ॥३॥
चोथे स्वदारासंतोष परस्त्रीगमन-विरमण व्रते पांच अतिचारअपरिग्गहिया-इत्तर० ॥४॥
अपरिगृहीता-गमन, इत्वर परिगृहीता-गमन कीधुं, विधवा, वेश्या, परस्त्री, कुलांगना, स्वदारा शोक( क्य )तणे विशे दृष्टिविपर्यास कीधो, सराग वचन बोल्यां, आठम चोदश अनेरी पर्वतिथिना नियम लई भाग्यां, घरघरणां कीधां कराव्यां, वर-वह वखाण्यां, कुविकल्प चिंतव्यो, अनग-क्रीडा कीधी, स्त्रीनां अंगोपांग नीरख्यां, पराया विवाह जोड्या, ढींगला-ढींगली परणाव्या, काम-भोग तणे विषे तीव्र अभिलाष कीधो ।
अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार, सुहणे-स्वप्नातरे हुआ, कुस्वप्न लाध्यां, नट, विट, स्त्रीशुं हासुं कीधुं ।
चोथे स्वदारा-संतोष व्रत विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष दिवसमांहि० ॥४॥
पांचमे परिग्रह-परिमाण व्रते पांच अतिचार
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