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પાક્ષિકદિ-અતિચાર૦૫૦૧ ए अष्ट प्रवचन-माता साधु-तणे धर्मे सदैव अने श्रावकतणे धर्मे सामायिक पोसह लीधे रुडी पेरे पाल्यां नहीं, खंडणा-विराधना हुई ।
चारित्राचार-विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार पक्षदिवसमांहि० ॥३॥
विशेषतः श्रावक तणे धर्मे श्रीसम्यक्त्व-मूल बार व्रत (तेमां) सम्यक्त्व तणा पांच अतिचार ‘संका-कखविगिच्छा०'
शंका-श्रीअरिहंत तणां बल, अतिशय, ज्ञानलक्ष्मी, गांभीर्यादिक गुण शाश्वती प्रतिमा, चारित्रीयानां चारित्र, श्रीजिनवचनतणो संदेह कीधो ।
आकांक्षा-ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, क्षेत्रपाल, गोगो, आसपाल, पादर देवता, गोत्र-देवता, ग्रह-पूजा, विनायक, हनुमत, सुग्रीव, वालीनाह इत्येवमादिक देश, नगर, ग्राम, गोत्र, नगरी, जूजूआ देव देहराना प्रभाव देखी, रोग आतंक कष्ट आव्ये इहलोक परलोकार्थे पूज्या-मान्या प्रसिद्ध-विनायक जीराउलाने मान्युं, इन्यु, बौद्ध, सांख्यादिक, संन्यासी, भरडा, भगत, लिंगिया, जोगिया, जोगी, दरवेश, अनेरा दर्शनीया-तणो कष्ट, मंत्र, चमत्कार देखी परमार्थ जाण्या दिना भूलाया मोह्या, कुशास्त्र, शीख्या, सांभल्या ।
श्राद्ध, संवत्सरी, होली, बलेव, माही-पूनम, अजापडवो, प्रेत-बीज, गौरी-त्रीज, विनायक-चोथ, नाग पंचमी, झीलणा-छट्ठी, शील (शीतला) सातमी, ध्रुव-आठमी, नौली नवमी, अहिवादशमी, व्रत-अग्यारशी, वच्छबारशी, धनतेरशी, अनंत-चउदशी, अमावास्या आदित्यवार, उत्तरायण नैवेद्य कीधां ।
नवोदक, याग, भोग, उतारणां कीधां, कराव्यां, अनुमोद्यां, दान दीधां, ग्रहण, शनैश्चर, माहमासे नवरात्रि न्हाया, अजाणतां,
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