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२३२. श्री श्राद्ध-प्रतिमा-सूत्रप्रोटी-3 असुर-गरुल-परिवंदियं, किन्नरोरग-नमंसियं । देव-कोडि-सय-संथुयं, समण-संघ-परिवंदियं ॥२०॥
-सुमुहं ॥
अभयं अणह, अरयं अरुयं । अजियं अजियं, पयओ पणमे ॥२१॥
-विज्जुविलसियं ॥ "द्वितीयविशेषकेन श्रीशान्तिनाथ-स्तुतिमाह-" आगया वर-विमाण-दिव्व-कणग-रह-तुरयपहकर-सएहिं हुलियं । ससंभमोयरण-खुभिय-लुलिय-चल-कुंडलंगयतिरीड-सोहँत-मउलिमाला ॥२२॥
-वेड्डओ (वेढो) |
जं सुर-संघा सासुर-संघा वेर-विउत्ता भत्ति-सुजुत्ता, आयर-भूसिय-संभव-पिंडिय-सुट्ठ-सुविम्हिय-सव्व-बलोघा ।
उत्तम-कंचण-रयण-परूविय-भासुर-भूसण-भासुरियंगा, गाय-समोणय-भत्ति-वसागय-पंजलि-पेसिय-सीस
पणामा ॥२३॥
-रयणमाला ॥ वंदिऊण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेव य पुणो पयाहिणं, पणमिऊण य जिणं सुरासुरा, पमुइया सभवणाइँ तो
गया ॥२४॥ -[खित्तयं] ।
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