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करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा
इन प्राणियों की जीवन पद्धति | परिस्थिति भी अप्राकृतिक बन जाती है । मनोरंजन के उत्तम नमूने स्वरूप प्राणियों को अनेक प्राणीसंग्रहालयों में एवं सर्कसों में प्रवेश कराने से पूर्ण अन्य अयोग्य असंख्य प्राणियों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। उनकी एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थलांतर के दौरान मृत्यु हो जाती है। उन प्राणियों के बच्चों को भूखा ही तिरस्कृत कर छोड दिया जाता है जिससे वे भूखे ही मर जाते हैं। सवारी के लिए कुशलता हेतु प्राणियों पर इलेक्ट्रिक आर का भी प्रयोग किया जाता है। घोड़ो को उत्साही बनाने के लिए उसके पेट के इर्द-गिर्द उसके गुह्यभाग जननेन्द्रिय के पास चमडे का गोल पट्टा कसकर बाँधा जाता है। ऐसे प्राणियों के सींग काट डाले जाते हैं। इन प्राणियों का उपयोग करते समय उसे पाँव द्वारा चुमनेवाली वस्तु (आर जैसी) से पीड़ित किया जाता है एवं रस्सी से बाँधते समय उसे अत्यंत कसकर पकडकर दबाया जाता है। जिससे उसे अत्याधिक तकलीफ (घुटन) होती है। सर्कस के प्राणी को विचित्र रूप से कार्य करने का दबाव किया जाता है। उन्हें सिखाने की पद्धति अत्यंत दयाजनक होती है । जनीन विज्ञान की सहायता से वैज्ञानिक लोग रेस / स्पर्धा में अत्यंत तीव्र गति से दौड सकें ऐसे विशिष्ट घोड़ों की सन्तति पैदा करते हैं। परंतु वे कमजोरी, टूटी हड्डियाँ, दवाओं के दुरूपयोग, सूजे हुए एवं मोच खाये घुटनों की भयंकर पीड़ा से पीडित रहते हैं और अन्त में उन्हें मार डाला जाता है। आरोग्य पर प्रभावः
माँस-पनीर एवं अंडे में संतृप्त चरबी, अधिक प्रमाण में होती है जो लोगों के शरीर में कोलेस्टेरोल में वृद्धि करती है। यह कोलेस्टेरोल धमनियों पर जम जाता है जिससे हृदय रोग का आक्रमण (हार्ट एटेक) आने की संभावना बढ़ जाती है।
जिन प्राणियों गाय-भैंस, सुअर, मुर्गी का माँस खाया जाता है उनकी अप्राकृतिक जीवन पद्धति एवं प्रजोत्पत्ति की परिस्थिति के कारण उनकी गर्दन आदि अंग टेढे हो जाते है एवं उनमें अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं। इन रोगों को काबू में लेने के लिए उन्हें विपुल प्रमाण में एन्टिबायोटिक्स दवायें एवं रसायण दिए जाते हैं। ये एन्टिबायोटिक्स दवायें व रसायण की जहरीली असर उनके माँस-दूध एवं अंडों मे भी अवतरित होती हैं।
शाकाहारियों की तुलना में मांसाहारियों की किडनी को तीन गुने दबाव से कार्य करना पड़ता है। उसका कारण है कि माँस आदि में टोक्सिक
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