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________________ Jain Education International करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा नवजात बछड़े-बछड़ी, पाड़े-पाड़ी को उनकी माता से एक दो दिन में ही अलग कर गिया जाता है जिससे उनके लिए उत्पन्न दूध हम पी सकें । उन बछडे-बछड़ियों, पाड़ा-पाड़ी को कत्ल करके सफेद माँस की प्राप्ति हेतु लकड़ी के अंधेरे पिंजरे में रखा जाता है जहाँ उन्हें एनीमिया हो जाये ऐसा प्रवाही भोजन के रूप में दिया जाता है । अधिकांशतः चीज़ बनाने के लिए दूध को जमाने के लिए जिस रेनेट (Rennet) प्रवाही का उपयोग किया जाता है वह बुवा और सद्य कत्ल किए गये बछड़े-बछड़ी की होजरी में से प्राप्त किया जाता है। मुर्गीः फेक्टरी फार्म (पॉल्ट्री फार्म) में अंडे उत्पादन करने वाली मुर्गियों को एक से दो चोरस फुट के तंग स्थान में तार के पिंजरों में बांध कर रखा जाता है । ९०% अंडे ऐसे ही फार्म से उपलब्ध होते हैं। ब्राइलर की मुर्गी के बच्चे (चूजे की उम्र मुश्किल से ८-१० सप्ताह की होती है और एक चूजे को मुश्किल से आधा चोरस फूट जगह ही उपलब्ध होती है । यहि अति घनता मुर्गियों में ऐसा तनाव एवं चिडचिडा स्वभाव उत्पन्न कर देती है कि वे परस्पर के पंख खींचते-नोचती है, चोंच के प्रहार करती हैं एवं पडोसी बच्चों (चूजों) को मारकर भी खा जाती हैं। इसके उपाय के रूप में सभी मुर्गियों और उनके चूजों की चोंचका उपर का एवं नीचे का आधा भाग एवं पाँव के नाखून गरम छुरी से काट कर मोंथरे (धारहीन) कर दिये जाते हैं । उन्हें निरंतर कम प्रकाश में रखा जाता है । उनके भोजन में तनाव प्रतिरोधक रसायण डालकर खिलाया जाता है। अंत में जब "फ्रीरेन्ज " मुर्गियाँ अंडा देना बंद कर देती हैं तब उन्हें तुरंत कत्लखाने भेज दिया जाता है। भेड़: भेड़ों में सामान्य रूप से अधिक ऊन नहीं होता। परंतु फेक्टरी फार्म द्वारा वैज्ञानिक प्रजोत्पादन द्वारा अत्यधिक ऊन उत्पन्न किया जाता है। भेड़ों पर से सभी ऋतुओं में ऊन काट लिया जाता है । इससे प्रतिवर्ष हजारों भेड़ें ऊन उतार लेगेने के कारण ठंडी के कारण मर जाते हैं। भेड़ों के शरीर से सूक्ष्मतम रीति से ऊन उतारने के कारण उसे नंगे मनुष्य से भी अधिक ठंडी लगती है। जिस तरह शिक्षाप्रद सिनेमाओ में हमें कुशल तंत्रज्ञों द्वारा भेद्र की ऊन उतारते बताते हैं उस पद्धति से सामान्य भेड़ों की ऊन नहीं काटी या 69 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
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