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________________ Jain Education International करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा उनमें ६८% लोग उन तीन व्याप्त रोगों के कारण, जिनमें आहार की मुख्यता है, कारण भूत होते हैं- वे हैं हृदय रोग, केन्सर एवं आघात / मस्तिष्क का हेमरेज। इन रोगों से विशिष्ट संबद्ध आहार में अंडे, मॉस, पॉल्ट्रीफार्म का भोजन, समुद्री प्राणियोंका आहार, प्राणिज चरबी एवं अन्य मांसाहारी पदार्थ होते हैं । हम ऐसा आहार ग्रहण करें जिसमें अल्पतम हिंसा होती हो, पर्यावरण का कम नुकशान होता हो एवं प्रकृति का असमतोलन सबसे कम होता हो- तो ऐसा आहार हमारे अंदर आंतरिक एवं बाह्य संवादिता उत्पन्न करने में मदद करेगा | सांख्यकी के अनुसार ४५० ग्राम गेहूँ उत्पन्न करने के लिए २७२ लीटर पानी, ४५० ग्राम धान उत्पन्न करने के लिए ११३६.५ लीटर पानी की आवश्यकता होती हैं जबकि ४५० ग्राम माँस उत्पन्न करने हेतु ९०९२ से २७२७६ लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है। मुर्गी पालन केन्द्र प्रतिदिन ४५४० लाख लीटर पानी का उपयोग करते हैं जो २५००० मनुष्यों की आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है। विश्व में उपयोग में लिए जाने वाले पानी के कुल प्रमाण में से ८०% का उपयोग मात्र पशुपालन के ही उपयोग में खर्च होता है। एक लीटर पानी अर्थात् साढे चार कप पानी । पशुओं द्वारा उत्सर्जित पदार्थों में से उत्पन्न मिथेन वायु समग्र विश्व के वातावरण की उर्जा में वृद्धि करता है एवं ओझोन वायु के स्तर को मोटा बनाता है | PETA के शोधर्थियों ने स्पष्ट किया है कि मात्र अमरीका में ही प्रति वर्ष २६० कोरड प्राणियों को (९० करोड़ धरती के एवं १७० करोड़ समुद्र के) सिर्फ मनुष्य 'के भोजन हेतु मार डाला जाता है । उस प्रकार जब मनुष्य अधिकांशरूप से हिंसायुक्त जीवन जीता हो तब उससे पूरी पृथ्वी भयभीत बनती है। यदि एक व्यक्ति भी शाकाहारी बनती है तो वह अपने जीवन में २४०० पशुओं को अभयदान प्रदान करता हैं एवं इस प्रकार स्वयं आशीर्वाद प्राप्त करता है एवं समग्र पृथ्वी के लिए आशीर्वाद स्वरूप बनता है । आज विश्व-मानव प्राणियों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार, उन पर हो रहे अत्याचार के प्रति धीरे-धीरे जागृत हो रहा है और शाकाहारी बन रहा है । कुछ धार्मिक दृष्टि से, कुछ नैतिक दृष्टि से तो कुछ प्रकृति के कारण, कुछ आरोग्य एवं पर्यावरण की दृष्टि से जागृत बहन रहे हैं। दिन-प्रतिदिन इस जागरूकता में वृद्धि हो रही है । यदि कोई भी व्यक्ति यदि कुछ महिनों के लिए भी इस 45 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
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