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________________ Jain Education International करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा प्राप्त हो जाता है । अतः विश्व में दूध ही श्रेष्ठ आहार है ऐसी बात लोगों के दिमाग में ठसा देना अच्छी बात नहीं । विशेष रूप से ऐशियन और आफ्रिकन लोगों के लिए दूध का पचाना कठिन है। हम प्लास्टिक क्यों नहीं खाते हैं ? क्योंकि हमारे शरीर में प्लास्टिक पचाने हेतु पाचक रस (Enzymes ) नहीं हैं । हमारे शरीर में लेक्टोझ नहीं होता इसीलिए हम लेक्टोझ को नहीं पचा सकते । यदि दूध पचाना ही कठिन हो तो उसके घटक तत्वों की प्राप्ति कैसे हो ? इससे विपरीत दूध में IGF-1 नामक तत्व है । केन्सर के समस्त अनुसंधानों से पता चला है कि यदि IGF की हमारे शरीर में वृद्धि हो जाये तो केन्सर हो सकता है। दूध में निहित IGF तत्त्व शरीर में केन्सर का निमित्त बन सकता है । यह अस्थमा का भी प्रबल कारण है । वास्तव में अस्थमा के रोगियों को डॉक्टर भी दूध और उससे बने पदार्थों के त्याग की सलाह देते हैं । भारत में जहाँ तक डॉक्टरों के संदर्भ में परिस्थिति है वह यह है कि चिकित्सा महाविद्यालयों में पोषण के संदर्भ में कुछ भी नहीं सिखाया जाता । परिणाम स्वरूप भोजन और उसकी पोषण क्षमता का ज्ञान अत्यंत मर्यादित होता है । हम सबका पोषण संबंधी ज्ञान समान स्रोत से ही प्राप्त होता है और वह हैं हमारे दादा-दादी और अध्यापक । इस ज्ञान में उलझन या दुविधा सर्वाधिक उत्पन्न करते हैं हमारे स्थानिक धार्मिक नेतागण जो सविशेष शाकाहार के पक्षपाती है। प्रश्नः दूध में सविशेष गलत क्या है ? और नुकशान देव क्या है ? उत्तरः दूध में जो केल्शियम है वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है क्योंकि उसका बिना पचा हुआ केल्शियम मूत्र में इकट्ठा होता है और वहाँ जम कर किडनी में पथरी बनाता है । दूसरे दूध ओष्टोपोरोसीस अर्थात् हड्डीयों के कड़कपन को कम करने के स्थान पर उसमें वृद्धि करता है विकृत करता है। इस संदर्भ में किए गये अनुसंधान से पता चला है कि इस ओप्टोपोरोसीस का मूल कारण केल्शियम की कमी से अधिक बेकार या अतिरिक्त प्रोटीन है, जो दूध से प्राप्त होता है । अतः यदि आप अधिक दूध का उपयोग करेंगे तो आपको ओष्टोपोरोसीस होने की संभावनायें बढ़ जायेंगी। स्वीडन जैसे देश में जहाँ दूध का सर्वाधिक प्रयोग होता है वहाँ ओष्टोपोरोसीस के रोग के केस भी सर्वाधिक हैं। एक यह भी मान्यता है कि अलसर में दूध सहायक होता है । अल्सर अर्थात् होजरी के आंतरिक हिस्सो में सडन उनका जलना, छाले पड़ना है । 35 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
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