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________________ करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा ३. कत्लखानों के कचरे का पुनः उपयोग (माँस को रूपान्तरित करने वाले कारखाने) - प्रवीण के. शाह इस लेख को पढ कर आपको पता चलेगा कि डेयरी फार्म की गाय भैंसे अब वनस्पत्याहारी या शाकाहारी नहीं रही हैं । डेयरी फार्म की गायभैंसों को उनके नियमित आहार के साथ कत्लखाने के कचरे में से तैयार किये हुए रिसाइकल्ड माँस को मिलाकर दिया जाता है। यह रिसाइकल्ड माँस मृतप्राणियों (सहज रूप से मृत्यु को प्राप्त कुत्ते बिल्ली आदि) कत्लखाने में बिन उपयोगी प्राणियों के अंग एवं सुपर मार्केट में दूषित माँस कचरे में से बनाया जाता है। माँस को रूपान्तरित करने वाले कारखानेः रूपान्तरकारी माँस के कारखानें इस पृथ्वी पर अनेक महत्वपूर्ण कार्यों में से एक कार्य करते हैं। वे मृत प्राणी, कत्लखाने के विविध उत्पादित बहिष्कृत पदार्थ हड्डियों में से बनाये गये पशु आहार, एवं पशुओं की चर्बी आदि को रूपान्तरित करने का कार्य करते हैं इन सब पदार्थों का प्रोटीन एवं अन्य पौष्टिक आहार के रूप में डेयरी के प्राणी (गाय) पॉलट्री फार्म की मुर्गियां, सुअर, गाय-भैंस, भेड़ एवं अन्य पालतु पशुओं के भोजन में मिलाये जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष ४०० करोड रतल कारखाने का कचरा जैसे कि रक्त, हड्डी, आंतें आदि एवं प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में मरने वाले कुत्ते, बिल्लियों का पशु आहार में उपयोग किया जाता है यही कारण है कि डेयरी फार्म के गाय, भैंस, सुअर अन्य पशु जो प्राकृतिक रूप से शाकाहारी होते हैं उन्हें अनावश्यक रूप से मांसाहारी बना दिया जाता है। यदि इस कचरे को रुपान्तरिक करने वाले कारखाने न होते तो हमारे शहर रोग एवं सडे हुए मृत शरीरों से नरकागार बन जाते और रोगो में विनाशक वाइरस और बैक्टीरिया बेहद संख्या में फैल जाते । डॉ. विलियम ह्युस्टन (अमरिका की कॉलेज पार्क, एम.डी., वरजिनिया-मेरी लैण्ड की पशु औषधिय विज्ञान कॉलेज के डीन) कहते हैं यदि तुम सभी मृत अंगों को जला दो तो हवा में भयंकर प्रदूषण फैल जायें। और यदि सभी मृत अंगों को जमीन में दफना दो तो आम आरोग्य के लिए भयानक प्रश्न उत्पन्न हो जायें जिसमें बदबू और दुर्गन्ध का उल्लेख भी न हो । बेक्टीरिया की उत्पत्ति के लिए मृत 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
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