SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education International करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा जहाँ तक श्वेतांबर परंपरा का प्रश्न है, मैं निश्चित रूप से कह सकता है कि किसी भी धर्मग्रंथ (आगम) में मंदिर या पूजा में दूध के उपयोग का विधान नहीं है। दिगंबर परंपरा के संदर्भ में श्री अतुल खारा (जैन केन्द्र, डलास, टेक्सास के भू.पू. प्रमुख) ने बताया कि अधिकांश दिगंबर पूजाविधि में दूध का उपयोग नहीं करते हैं । किसी भी धर्मग्रंथ में दूध या तजन्य बनावटों का पूजा में उपयोग या निर्देश प्राप्त नहीं है। (दिगंबर सम्प्रदाय में २० पंथ में पर्व के दिनों में पंचामृताभिषेक होता है उसमें दूध, दहीं, घी का उपयोग होता है। दूध का उपयोग प्रतिदिन होता है) हिन्दू मंदिरों की पूजा विधि का सीधा प्रभाव होने से दक्षिण भारत में दिगंबर मंदिरों में दूध का उपयोग होता है । यदि हम निजी व्यवहार में डेयरी उत्पादनों का उपयोग करते हैं तो इस कार्य हेतु और उसके परिणाम स्वरूप पापकर्म के लिए हम स्वयं व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हैं परंतु यदि हम अपने मंदिरों में दूध आदि का उपयोग करें तो यही माना जायेगा के संपूर्ण जैन समाज सबसे बडा पाप कर रहा है। जैन पूजाविधि में दूध एवं उसकी बनावट विशेष निश्चित धार्मिक प्रतीकों का प्रतिनिधित्व करता है। पूजाविधि में हम जिन उत्पादनों (दूध की बनावट) का उपयोग करते हैं उसका स्रोत हिंसामुक्त/निर्दयता रहित होना चाहिए। हमारी धार्मिक पूजाविधि का मुख्य ध्येय आध्यात्मिक उन्नति करना है । इन विधि विधानों के परिणाम स्वरूप हमारा अहंकार, लोभ, क्रोध, विषय वासना एवं परिग्रह में कमी आनी चाहिए। हमें अपनी पूजाविधि में दूध के स्थान पर शुद्ध जल या सोयाबीन का दूध, घी के स्थान पर वनस्पति जन्य तेल, मिठाई के स्थान पर विविध प्रकार के सूखे मेवे का उपयोग करना चाहिए। पूजाविधि में इस प्रकार के परिवर्तन की युवा पीढी अवश्य आदर करेगी । विशेषः यह लेख सर्वप्रथम अगस्त १९९७ में इन्टरनेट पर प्रकाशित हुआ था। तबसे समग्र विश्व के वाचकों ने हमारे विचारों को अत्यंत पुष्टि प्रदान की है । इसमें से कुछ महानुभावों के प्रतिभाव अभिप्राय पुस्तक के अंत में दिए हैं। इन्हें अवश्य पढ़ें ऐसी भावना है। 21 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy