Book Title: Upaang Prakirnak Sootra Vishayaanukram 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ नमो नमो निम्मलदसणस्स य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः [आगम-संबंधी-साहित्य] [आद्य संपादक: - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.] (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता - मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.. श्रुतमहर्षि) 28/07/2017, शुक्रवार, २०७३ श्रावण शुक्ल jain_e_library's Net Publications मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-. “--" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ATTA AT VAATAMA TARTUTA ATW श्रीभगमोद्धारसंग्रहे भागः २ raiser णं समणस्स भगवओ महावीरस्स उपांगप्रकीर्णक सूत्रविषयक्रमः श्री औपपातिक-राजमनीय-जीवाजीवाभिगम - प्रज्ञापना - चंद्रसूर्यप्रज्ञप्तियुग्म- जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - उपांगपंचकमयनिरयाबलिका-चतुःशरणादिप्रकीर्णकदशकानां सूत्रसूत्रगाथानामकारादिक्रमः लघुवृश्च विषयानुक्रमः प्रकाशका - सूर्यपुरीया श्रीजैनपुस्तकप्रचारकसंस्था इदं पुस्तकं सूर्यपुरे श्रीजैनविजयानन्दमुद्रणालये फकीरचन्द मगनलाल बदामीद्वारा मुद्रयित्वा प्रकाशितम् विक्रमसंवत् २००५, वीरसंवत् २४७५, [ वेतनम् रु. ४-८-० प्रतयः २५० इ० स० १९४८ ••• मूल संपादकेन प्रकाशित उपांग- प्रकीर्णकसूत्र-विषयक्रमस्य 'ओरिजिनल टाइटल' ~2~ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-. "--"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्राक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए प्रस्तावः श्रीऔपपातिकादीनां द्वादशानामुपांगानां चतुःशरणादिकानां दशानां प्रकीर्णकानां च गाथायनुक्रमः भो। परमपुरुषपरमेश्वरप्रणीताब्यावाधाविरुद्ध हितोपदेशमात्रप्रवचनप्रवणागमामृतपानपुष्टान्तःकरणाः कृतिनः ! सफलधन्येतस्य शास्त्रस्य साचरणश्रद्धानवृद्धिक्रियाद्वारा ग्रहणेन मे परिथमलेशं, प्राक्तावत् १ नन्दी २ अनुयोगद्वार ३ आवश्यक४ ओघनियुक्ति ५ दशवकालिक ६ पिण्डनियुक्ति ७ उत्तराध्ययनसूत्राणां गाथाकारादिक्रमविषयानुक्रमयुगलान्युन्मुद्राप्य निर्णयसागरमुद्रणालये श्रीमत्याऽऽगमोदयसमित्या प्रतीनां सार्धद्वादशशती प्रचारिता, पण्यं च रूप्यकद्वयं स्थापितं पश्चात्तु श्रीमालवदेशान्तर्गतश्रीऋषभदेवजीकेशरीमलेत्यभिधया श्वेतांबरसंस्थया ८ आचारांग ९ सूत्रकृतांग १० स्थानांग ११ समवायांग १२ श्रीभगवत्यपराभिधव्याख्याप्रज्ञप्ति १३ ज्ञातधर्मकथा १४ उपासक १५ अन्तकृद्दशा १६ अनुत्तरोपपातिकदशा १७ बिपाकश्रुत १८ प्रश्नव्याकरणांगसूत्राणां गाथाकारादिविषयानकमयगलानि श्रीइंद्रपुरीयधीजैनबंधमुद्रणालयधीभावनगरीयमहोदयमद्रणालयद्वारा मुद्रापयित्वा पंचशती पुस्तकानां प्रचारिता, पण्यं च चतुष्टयं रुप्यकाणां धृतं, ततः शेषाणां गाथाकारादिविषयानुक्रमयुगलानामुन्मुद्रणायायमुपक्रमः श्रीसुरत,गीयजनपुस्तकप्रचाराख्यसंस्थया क्रियते । प्रत्यश्चात्र सार्धद्विशतीमात्राः पण्यं च साध रुप्यकचतुष्टयं ध्रियते । एतच्च वर्तमानयुगस्थितिक्षिणां सुशानामवभासिष्यतेऽल्पतममेव । अत्र च १९ श्रीओपपातिक२० श्रीराजप्रश्नीय २१ जीवाजीवाभिगम २२ प्रशापना २३-२४ सूर्यचंद्रप्राप्तियुग्म २५ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति २६ उपांगपंचकमयनिरयावलिका २७ चतुणादिप्रकीर्णकदशकानां गाथाकारानुक्रमो लघुर्वृहन् विषयानुक्रमश्च समुन्मुद्रिताः, तत एतत्प्रयोगं यथार्ह कृत्वा सफलयन्तु सजना मे झानाभ्याससहायमनोरथमित्याशासे। २००५ कार्तिकशुक्ला पूर्णिमा, सुरत. श्रीश्रमणसंघसेवक आनन्दसागर: 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~3~ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक: आगम का नाम ०१ * आचार ०२ 每 सूत्रकृत् ०३ • स्थान ०४ ०५ ०६ 侮 समवाय * भगवती * ज्ञाताधर्मकथा १२ * औपपातिक १३ * राजप्रश्नीय १४ * जीवाजीवाभिगम १५ 事 प्रज्ञापना १६+१७ * सूर्य+चन्द्र-प्रज्ञप्ति ----- आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम पृष्ठांक: ०१० ०११ ०१२ ०१३ ०१४ क्रमांक: पृष्ठांक: अंग-सूत्र लघु- बृहत् विषयानुक्रमः ०१९ ०२३ ०२७ ०४८ ०७९ आगम का नाम ०७ 每 उपासकदशा ०८ * अंतकृद्दशा ०९ ----- उपांग-सूत्र लघु- बृहत् विषयानुक्रमः ~4~ * अनुत्तरोपपातिकदशा १० 每 प्रश्नव्याकरण ११ * विपाकश्रुत १८ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति १९ * निरयावलिका २० * कल्पवतंसिका २१ २२ २३ पुष्पिता * पुष्पचूलिका * वृष्णिदशा लघुअनुक्रम बृहदनुक्रम पृष्ठांक: पृष्ठाक: ०१५ ०१६ ०१६ ०१६ ०१६ ०१६ ०८९ १०५ १०५ १०५ १०५ १०५ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक: लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम पृष्ठांक: | पृष्ठांक: आगम-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: लघुअनुक्रम | बृहदनुक्रम आगम का नाम - क्रमांक | आगम का नाम पृष्ठांक: | पृष्ठांक: प्रकीर्णक-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: . चतु:शरण ०१७ । १०८ . संस्तारक • आतुरप्रत्याख्यान ३० . गच्छाचार . महाप्रत्याख्यान ११० ३१ . गणिविज्जा . भक्तपरिज्ञा ०१७ । १११ ३२ . देवेन्द्रस्तव - तंदुलवैचारिक ०१७ । ११३ ३३ . मरणसमाधि ... [३४-३९] छेदसूत्र-वृत्ति का विषयानुक्रम पूज्य आगमोद्धारकत्रीने नही बनाया ... मूल-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रमः ०१७ ०१७ १०९ ०१७ ०१७ ११५ ११६ ११८ ११९ १२१ ०१७ २८ ४० . आवश्यक ४१/१ . पिंडनियुक्ति ४१/२ |. ओघनियुक्ति ४२ ४३ . दशवैकालिक . उत्तराध्ययन चूलिका-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम: ___४४ - नन्दी । ४५ /- अनुयोगद्वार ~5~ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत-अनुसार कुल-सूत्र | कुल१०७ । दीप अनुक्र २१४ २१८ ३६५ १०७ Polo । १७८ | १३१ १६० | ३८३ ०२० ०२१ ००२ ००१ ००५ आगम-सूत्राणाम प्रत-क्रमांक: एवं दीप-क्रमांक: आगम आगम का नाम प्रत-अनुसार | दीप | आगम आगम का नाम | कुल-सूत्र | कुल-गाथा | अनुक्रम | क्रम | ०१ . आचार | ४०२ । १४७ । ५५२ | १६ . सर्यप्रज्ञप्ति ०२ . सूत्रकृत् ०८२ ७२३ १७ . चन्द्रप्रज्ञप्ति ०३ % स्थान | ७८३ । १६९ । १०१० | १८ . जंबदवीपप्रज्ञप्ति ०४ . समवाय ०९३ १९ . निरयावलिका ०५ - भगवती ८६९ ११४ । १०८७ २० - कल्पवतंसिका ०६ . ज्ञाताधर्मकथा । १६५ । ०५७ । २४१ । २१ . पष्पिता ०७. उपासकदशा ०५८ ०७३ २२. पुष्पचूलिका ०८ . अंतकृद्दशा ०२७ ०१२ ०६२ २३ . वृष्णिदशा ०९. अनुत्तरोपपातिकदशा ००६ ०१३ २४ . चतु:शरण १०. प्रश्नव्याकरण ०३० ०१४ ०४७ २५ . आतुरप्रत्याख्यान ११ | विपाकश्रुत ०३४ ०४७ २६ । . महाप्रत्याख्यान १२ . औपपातिक । ०४३ | ०३० । ०७७ | २७ . भक्तपरिज्ञा । १३ | राजप्रश्नीय ०८५ ०८५ | २८ . तंदुलवैचारिक १४ . जीवाजीवाभिगम २७३ ०९३ ३९८ २९ . संस्तारक १५ | प्रज्ञापना ३५२ २३१ । ६२२ ३० - गच्छाचार ००६ ०१३ ००१ ००३ ००२ ००१ ook ००२ ०६३ ०६३ ०७१ १४२ १७२ १३९ १४२ १७२ १६१ १३३ १३३ १३७ । १३७ आगम-सूत्र ३४ से ३९ [छेदसूत्र- १ से ६] की वृत्ति को पूज्य आगमोद्धारकरीने संपादित नही किया, इसिलिए उन का समाविष्ट यहां नहि Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम आगम-सूत्राणाम् प्रत-क्रमांक: एवं दीप-क्रमांक: आगम का नाम प्रत-अनुसार । दीप | आगम का नाम | कुल-सूत्र | कुल-गाथा | अनुक्रम | क्रम | दाप आगम प्रत-अनुसार दीप कुल-सूत्र | कल-गाथा अनुक्रम क्रम | ४१/२ ०२१ ३१ . गणिविज्जा ३२ . देवेन्द्रस्तव ३३ . मरणसमाधि ४०. आवश्यक ४१/१ | पिंडनियुक्ति ०८२ ०८२ ३०७ ३०७ ४२ ६६३ ६६४ ४३ ०२१ ०९२ ४४ ६७१ । ७१२ । ४५ . ओघनियुक्ति |. दशवैकालिक . उत्तराध्ययन . नन्दीसूत्र . अनुयोगदवार ०८८ ८१२ । ११६५ ५१५ ५४० १६४० १७३१ ०९० १६३ १४१ ovo ०५९ | १५२ । ३५० आगम-सूत्र ३४ से ३९ [छेदसूत्र-१ से ६] की वृत्ति को पूज्य आगमोद्धारकरीने संपादित नहीं किया, इसिलिए उन का समाविष्ट यहां नहि ~7 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ उपांगसूत्र + प्रकीर्णक-सूत्रलघुबृहदविषयानुक्रमौ] इस प्रकाशन की विकास-गाथा ] * यह प्रत "उपांगसूत्र + प्रकीर्णक-सूत्र लघुबृहविषयानुक्रमौ' नामसे सन १९४८ (विक्रम संवत २००५) में 'सूर्यपूरीया श्री जैन पुस्तक प्रचारक संस्था' द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराजसाहेब | + पूज्यपाद् आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेबने 'औपपातिक' वगैरेह उपांगसूत्रो तथा “चतुःशरण' वगैरेह प्रकीर्णको के मूलसूत्र एवं उस पर पूर्वाचार्य रचित वृत्ति आदि का संपादन किया था | उन प्रतोमे जो मूलसूत्र, गाथा, वृत्ति आदि थे उन सभी सूत्रादि के विषयो का अनुक्रम संक्षेप और विस्तार से लिखकर इस प्रतमे प्रकाशित करवाया है | अर्थात् १२ उपांग और १० प्रकीर्णकसूत्रो के लघु और बृहत् विषयानुक्रम के रचयिता, संपादक और प्रकाशक श्री आगमोद्धारक आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब ही है। * पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेवश्रीने इसी तरह अंगसूत्रो और नन्दी आदि अन्य आगमसूत्रो के सूत्र-आदि के विषयो का अनुक्रम भी संक्षेप और विस्तार से लिखकर संपादन और प्रकाशन करवाया है। + हमारा ये प्रयास क्यों?* आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, अब तक मेरे प्रकाशित किये हुए पुस्तको के १,००,००० से ज्यादा पृष्ठ हो चुके है, किन्तु लोगो की पूज्यश्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसके बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे प्रत संबंधी उपयोगी माहिती लिख दी है, ताकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसे वर्ण का क्रम चल रहा है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके | * पूज्यपाद आगमोद्धारकत्री ने आगम संबंधी ५२ विषयो को वर्गीकृत किया था, आज भी उनमे से ऐसी कई प्रते मिलती है, जिसमे ये विभाजन-क्रमांक देखने को मिलते है, उनमे से थोडे विषयो का काम हुआ भी है, जो मुद्रित स्थितिमे भी प्राप्त है । * अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसिको मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। .... मुनि दीपरत्नसागर. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [आदय संपादक - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म. सा.] उपांग + प्रकीर्णकसूत्र लघु-विषयानुक्रम: + पुन: संकलनकर्ता , आगम दिवाकर त्न सागर (M.Com.,M.Ed.,Ph.D.,श्रुतमहर्षि) Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपांगा दीनां ॥ १ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- १ “औपपातिक" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः ( आगम-संबंधी-साहित्य) उपांगादिनां विषयानुक्रम: [लघु विषयानुक्रम:] [आगम-१२] उपांगसूत्र- १ " औपपातिक" श्री औपपातिकोपांगे लघुविषयानु- २१ श्रीवीरागमनश्रीवीर वर्णनसाधुतगुण वर्णनम् क्रमः मोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स श्री आगमोद्वारसंग्रहे भागः २. सूत्राणि ४३ सूत्रांकः । ९. चम्पापूर्ण भद्रवनखण्डाशोकवृक्षपृथ्वीशिलापट्टककोणिकराजधारिण्यादि वर्णनम् सूत्रगाथाः ३०* पत्रांकः । ३३ असुरादिदेवनृपराज्ञपर्षन्निर्गमवर्णनम् ४३, ३० देशना गौतमस्वामिप्रश्नैकविं शति अम्मसमुद्घातसिद्धवर्णनम् ११९ इति श्री औपपातिको पाङ्गस्य संक्षिप्त क्रमः १४. ४८ ~10~ ७७ विषयानु क्रमादिः ॥ १ ॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-२ “राजप्रश्नीय"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) साहित्य प्रत [आगम-१३] उपांगसूत्र-२ “राजप्रश्नीय" सूत्राक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीराजप्रश्नीयोपांगे लघुविषयानु क्रमः सूत्राणि ८५ ५ आमलकरूपादिश्वेतनृपधारिणीसूर्याभ- | ४५ सौधर्मविमानपीठिकोपपातादिसभा- । तदृद्धिवर्णनम् १७ पूजनफलस्नानपूजादयः ११३ ११ वन्दनविचारमण्डलायादेशमण्डलक- |८५ प्रदेशिचरिततदास्तिकतादेवत्वपाप्ति रणयानविमानादिवर्णनम् ४५ विदेहमोक्षवर्णनम् १५० २६ धर्मकथानाट्यकूटागारदृष्टान्ताः ५९] इति राजप्रश्नीयोपाङ्गम्. 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~11~ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीपां. विषयानुक्रमे यहा देखीए CERITATE दीप क्रमांक के लिए देखीए ९६, २४* तृतीयो नारकोद्देशः (१३५) २४३ अष्टमी प्रतिपत्तिः ४३३ । श्रीराय० २४४ [आगम-१४] उपांगसूत्र-३ नवमी प्रतिपत्तिः श्रीजीवा० ४३५/ इति नारकाः॥ श्रीप्रज्ञा इति संसारसमापन्नाः "जीवाजीवाभिगम" लघुविषयानु१०० प्रथमस्तियगुद्देशः (१३१) २७३, ९३ सिद्धादीनां स्थित्यन्तरारूप क्रमः १०५ द्वितीयस्तियगुद्देशः (१४) बहुत्वानि ४६७ १५४, २९* जम्बूद्वीपाधिकारः (३००) जीवाजीगभिगमसूत्रस्य लघु इति जीवाजीवाभिगमसूत्रस्य १९१, ८३* द्वीपसमुद्राः (३७३) विषयानुक्रमः॥ लघुविषयानुक्रमः ॥ २०७, ८५* ज्योतिष्कोद्देशः (३८५) सूत्राणि २७३ सूत्रगाथा: ९३७ । २.९, प्रथमो वैमानिकोद्देशः (३९०) | ४४ प्रथमा प्रतिपत्तिः ५१ २२४, ८८* द्वितीयो वैमानिकोद्देशः ४०७ ६५, ५* द्वितीया प्रतिपत्तिः ८८२२६ चतुर्थी प्रतिपत्तिः ४११ २२४, ८८* तृतीया प्रतिपत्तिः ४०७ २४०, ९२ पञ्चमी प्रतिपत्तिः ४२७ | ८१, ७* प्रथमो नारकोद्देशः (१०२) २४१ षष्ठी प्रतिपत्तिः ५२८ | ९५, १३* द्वितीयो नारकोद्देशः (१२९)/ २४२ सप्तमी प्रतिपत्तिः ४३१ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~12~ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) सूत्राणि ३५२ प्रज्ञापनासूत्रस्य लघु-विषयानुक्रम: सूत्रगाथा: २३१ प्रत सूत्राक [आगम-१५] उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" देखीए दीप क्रमाक के लिए देखीए ३८, १३३* प्रज्ञापनापदम् १ ५४, १७९* स्थानपदम् २ ९३, १८१* बहुबक्तव्यतापदम् ३ १६८ २०१,२०८ द्वितीय इन्द्रियोदेशः (३१७) २९९, २१७* कर्मप्रकृतिपदम् २३ १११ १०२ स्थितिपदम् । १७८ २.५ प्रयोगपदम् १ ३३. २९३,२१७*प्रथमःकर्मप्रकृत्युद्देशः(१६५) १२१. विशेषपदम् । २०४२३२, २१०१७ लेश्यापदम् ३७३/ २९९ द्वितीयः कर्मप्रकृत्युदेशः (४९२) १४०,१८४* ब्युत्क्रान्तिपदम् ६ २१८ २१३,२०१* प्रथमो लेश्योद्देशः (३४३)/३०० कर्मबन्धपदम् २४ ४९४ १४६ उच्छवासपदम् . २२१. द्वितीयो लेश्योद्देशः (३५२०/३०१ कर्मवेदपदम् २५ ४९४ १४८ सझापदम् ८ २२४ २२४ तृतीयो लेश्योद्देशः (३५८०/३०२ कर्मवेदवन्धपदम् २६ ४१७ १५. योनिपदम् १ २२८ २३०,२१०* चतुर्थों लेश्योद्देशः (३७०) ३०३ कर्मवेदवेदपदम् २७ ४९८ १६०,१९१*चरमाचरमपदम् १०२४६ २३१ पञ्चमो लेश्योद्देशः (३७२। ३१२, २२०* आहारषदम् २८ ५२४ १७५, १९८* भाषापदम् ११ २६८ २३२ षष्ठो लेश्योद्देशः (३७३) ३०९,२१०.* प्रथम आहारोद्देशः (५११) १८. शरीरपदम् १२ २८४ २०४,२१२. कायस्थितिपदम् १८३१५] ३१२२२०. द्वितीय आहारोद्देशः(५२४) १८५,२००* परिणामपदम् १३ २८१ २५५ सम्यक्त्वपदम ११ ३९५३१३ उपयोगपदम् २९ ५२८ १९०, २०५ पायपदम् १४ २९२/ २६७,२१३* अन्तक्रियापदम् २०१०७/३१५ पश्यत्चापदम् ३० २०१,२०८ इन्द्रियपदम् १५ ३१७/२७९, २१६* शरीरपदम् २१५३५/३१६ २२१* सज्ञिपदम् २१ ५३४ १९८,२०६प्रथम इन्द्रियोद्देशः (३०८)/ २८८ क्रियापदम् २२ ४ ५२/ ३१७, २२२* संयतपदम् ३२ ५३८ ३२१, २२३* अवधिपदम् ३३ ५४३ ३२९, २२५ प्रवीचारपदम् ३४ ५५३ | ३३२, २२७* वेदनापदम् ३५ ५५८ ३५२, २३५* समुद्घातपदम् ३६ ६११ इति प्रज्ञापनाया लघुविषयानुक्रमः। २२१ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~13~ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए श्रीउपां. विषयानुक्रमे " श्रीप्रज्ञा श्रीसूर्य लघुविषयानु क्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए [आगम-१६+१७] १८ षष्ठं प्रा० १९ सप्तम मा० उपांग-५ + ६ २० अष्टमं प्रा० सूर्य+चन्द्रप्रज्ञप्ति २३ द्वितीयं प्राभृतं २१ प्रथमं प्राभृतप्राभृतम् २२ द्वितीय प्रा० श्रीसूर्यप्रज्ञप्तेर्ल धुर्विषयानुक्रमः॥ २३ तृतीयं प्रा० सूत्राणि १०७ सूत्रगाथाः १०२ | २४ तृतीथं प्राभृते २०, १५" प्रथम प्राभृतम् .. ४४ २५ चतुर्थ प्रा० ११,१५, प्रथमं प्राभृतप्राभृतम् (१६) २६ पञ्चमं प्रा० १३ द्वितीय प्रा. , (२१) २७ षष्ठं प्रा० १४ तृतीयं प्रा० , (४)| २८ सप्तमं प्रा. १५ चतुर्थ प्रा० (२८)/ २९ अष्टमं प्रा. १७ पञ्चम प्रा. (३१) ३१ नवमं प्रा. . SENSEXUAL-JEKLY (३७) ___३२ प्रथम प्राभृतप्राभृतम् ३४ द्वितीयं प्रा०, ३५ तृतीयं प्रा. (४८) ३६ चतुर्थ प्रा. (५०), ३७ पंचमं प्रा. " (१११) ३९ षष्ठ प्रा. (५२८) ४. सप्तमं प्रा० ४१ अष्टमं प्रा० , ४२ नवमं प्रा० ४३ दशमं प्रा०, ४५ एकादशं प्रा., ४६ द्वादशं प्रा., ९९ ४७, १८* त्रयोदशं प्रा., (१४७) 'सवृत्तिक आगम CG. सुत्ताणि ~14~ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्राक यहां देखीए उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) [आगम-१७] उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति" श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेर्ल घुविषयानु क्रमः ॥ सूत्राणि १८१ सूत्रगाथाः १३१* ११०,६९ चतुर्थो वक्षस्कारः ३८२ १७, ३* प्रथमो वक्षस्कारः ८८| १२४, ८०* पञ्चमो वक्षस्कारः ४२४ ४१, ८* द्वितीयो वक्षस्कारः १७८ १२६, ८२* षष्ठो वक्षस्कारः ४३२ ७२, ४५ तृतीयो वक्षस्कारः २८१/ १८१,१३१* सप्तमा वक्षस्कारः ६४२ • ७१, ४१* भरतचरित्रम् (२८०) श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेलघुविषयानुक्रमः॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~15 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्राक यहां देखीए उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ८ से १२ "निरयावलिका-पंचक" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) | [आगम १८-२३] उपांगसूत्र ८-१२ निरयावलिका-आदि पंचक निरयावलिकानां लघुर्विषयानुक्रमः २४ द्वितीयमध्ययनम् सूत्राणि ३१ सूत्रगाथा: ५ २५ तृतीयमध्ययनम् २० प्रथमो वर्ग: २६ चतुर्थमध्ययनम् १९ प्रथमाध्ययनम् २७ पञ्चममध्ययनम् २९ ४* चतुर्थों वर्गः २० अध्ययनचतुस्कम् २२, १* द्वितीयो वर्ग: ३१.५* पञ्चमो वर्गः २८, २* तृतीयो वर्गः इति निरयावलिकाना लघुविषयानुक्रमः॥ २३, २* प्रथमाध्ययनम् दीप ४२ क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~16~ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमों [ प्रकीर्णकसूत्र- १ से १० “चतु:शरण-आदि"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए श्रीउपां० विषयानुक्रमे | प्रकीर्णक० निरयावलि. लघुविषयानुक्रमः [आगम २४-३३] प्रकीर्णक १-१० विषयानुक्रम: दीप प्रकीर्णकदशके लघुर्विषयानुक्रमः | ७०९* संथारपइण्णयं ६.१२३, ६१ सूत्राणि २० सूत्रगाथाः १८९९* | ८४६ गच्छायारपइण्णयं ७. १३७, ७० ९२८* गणिविजापइण्णय ८. ८२,७६ ६३* चउसरणं १. ५ १२३५ देविंदत्थयपइण्णय ९. ३०७,* १,१३३* आउरपञ्चक्खाणं २. ७०, १० २७५* महापञ्चक्खाणं ३.१४२, १९ १८ ९* मरणविहिपइण्णय १०,६६४, | ४४७* भत्तपरिणं ४.१७२, ३१ १४२ २०,५८६* तंदुलवेयालियं ५. १९,५३ इति इति प्रकीर्णकानां लघुर्विषयानुक्रमः ॥ क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम इति उपांग + प्रकीर्णकसूत्र लघु विषयानुक्रम: सुत्ताणि ~17~ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [आदय संपादक - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी म. सा.] उपांग + प्रकीर्णकसूत्र बृहविषयानुक्रम: - पुन: संकलनकर्ता → आगम दिवाकर मुनि दीपरत्नसागर(M.Com.,M.Ed.,Ph.D.,श्रुतमहर्षि) ~18~ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ ___ [ उपांगसूत्र-१ “औपपातिक] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) साहित्य प्रत सूत्राक श्रीउपा. विषयानुक्रमे ॥ श्रीउपांगादीनां बृहद्विषयानुक्रमः यहा श्रीऔपपा० बृहद्विषयानुक्रमः देखीए १३ दीप क्रमांक के लिए देखीए [आगम-१२] उपांग-१ औपपातिक श्रीऔपपातिकोपांगस्य वृहद् | ७ धारिणीराज्ञीवर्णनम् । दि, कनकावल्यादितपो, मासिक्याविषयानुक्रमः ८ प्रवृत्तिव्यावृतिवर्णनम् । दिप्रतिमाकारकसाधुवर्णन, जात्यादिसूत्राणि १३: सूत्रगाथाः३०. | ९ कोणिकराजोपस्थानशालोपवेशनम् । १४ साधुगुणवर्णनम् । मङ्गलोपोद्घातादि । ११. श्रीमहावीरवर्णनं, उपग्रामे श्रीबीरा- | १७ ईयर्यासमित्यादिगुणानामप्रतिबद्ध१ चम्पावर्णनम् । १ गमनं च। २२ तायाश्च वर्णनम् । २ पूर्णभद्रचैत्यवर्णनम् । ६/११ प्रवृत्तिव्यापृतकृता बर्दापनिका। २४८ वाद्याभ्यन्तरे तपसी। ३ वनखण्डवर्णनम् । ८१२ कोणिककृतमभ्युत्थाननमस्कारप्रीति- १९ अनशनादीनां बाबभेदानां वर्णनम् | ११| ४ अशोकवृक्षवर्णनम् । १० दानादि। २६ २० प्रायश्चित्तादीनामभ्यन्तरभेदानां ५ पृथ्वीशिलापट्टकवर्णनम् । ११ १३ श्रीवीरस्य पूर्णभद्रे समवसरणम् । २६ वर्णनम् । १५ ६ कोणिकराजवर्णनम् । १२/१६ उमप्रवजितादिसाधुवर्णनं मतिज्ञान्या- | २१ मुनीनां वाचनापृच्छाधर्मकथादि 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥ ७ ~19~ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपां ० विषयानुक्रमे || 2 || ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- १ “औपपातिक" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) वर्णनं संसारस्य समुद्रेग रूपर्क, संयमस्य च पोतेन । २२ असुरकुमारागमनवर्णनम् । २३ शेषभवनवास्यागमनवर्णनम् । २४ व्यन्तरागमनवर्णनम् । । • २९ अभिषेक हस्ति (लानयनादेशः । ६१ ३० हस्तिनो वर्णनं, तदानयनं, यानवर्णनं, यानशालिकेन यानानयनम् । ६४ ३१ कोणिकस्यानशाला प्रवेशमर्दनमज्जनविलेपनालङ्कारनिर्गमाष्टमङ्गपूर्ण - कलशादिच्छत्रयष्टिग्रहादिहयगजरथवर्णनं, महद्धर्द्धा निर्गमय । ७३ ३२ अर्थार्थ्याभिनन्दनादि, पञ्चाभिगमाः पर्युपासना च । ३३ कुब्जादिवासी परिवृतसुभद्वार श्यागमनादिवर्णनम्। ७६ ५० ५१ ५२ ५२ २५ ज्योतिष्कागमनवर्णनम् । २६ वैमानिकागमनवर्णनम् (देव्यागमनवर्णनम् । २७ चम्पायां जनसमवायः, बीरागमनसमा ५६ चारः, उग्रपुत्रादीनां वन्दनपू अनाद्यर्थमागमेच्छा, स्नानादि, हयरोहादि, प्रदक्षिणादि । ६१ २८ प्रवृत्तित्र्यातकृता वर्धीपनिका, प्रीति दानादि च । ६५ । ७७ ३४, १-५* श्रीवीरस्य पर्षत्स्वरयो वर्णनं, ले कालो कास्तित्वादिपाणातिपातविरमणादिदेशना, नरकादिगतिहेत्वादि, ~20~ ८२ पञ्च महाव्रतद्वादव्रतस्वरूपम् । ३५-३७ श्रोतॄणां दीक्षाद्वा शतप्रतिपत्तिसम्यक्त्वानि ३५ कोणिककृताप्रशंसा, ३६ सुभद्रादिराशीकृताप्रशंसा ३७ । ३८ ६ - ७* गौतमस्य वर्णनं, जातश्रद्ध त्वादि, प्रश्नब्ध (१२) ८३ (१) असंयतस्य पापाश्रवः, (२) मोहाश्रवः (३) मोहनीयवेदने मोहबन्धभजना (४) उत्सन्नासघातिनां नरके उपपातः, (५) अकामतृक्षुधादिमतां दशसहस्र स्थितिषु देवेषूपपातः (६) अन्दुबद्धादीनां द्वादशवर्षसहस्रस्थितिकेषु (७) - श्री औपपा० बृहद्विषयानुक्रमः || 2 || Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपां० विषयानुक्रमे ॥ ९ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- १ “औपपातिक" ] संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः कृतिभद्र कमातापितृशुश्रूषकादीनां चदुर्दशवर्षसहस्र खितिकेषु (८) पतिगतिकानां चतुःषष्टो (९) दकद्वितीयादीनां चतुरशीतौ (१०) होत्रिकादिवानप्रस्थानां (११) का दर्पिकादिनामपि (१) सांख्यज्योतिगदिपरिव्राजकानां दानशौचतीर्थाभिषेकवादिनां च दशसागरोप मेषूपपात ७ ३२ (२३) अम्बडशिष्यसप्तशत्या अदत्ता दानरक्षा वालुका संस्तारकः अद्वीडनमस्कार अम्बडसमीपत्याख्यातहिंसादेवीरसाक्षिकं प्रत्याख्यानं चतुर्विधाहारत्यागः शरीर ९४ व्युत्सर्गः, अनशनं च, दशसागरोपमेधूपपातः, नवरमाराधकाः । ९६ ४० (१४) अम्बस्य वैक्रियलfaura विज्ञानं शतगृहे वसति: अभिगतजीवत्यादि आधाकर्मादिवर्जनं अ नर्थदण्ड (४) त्यागः नटमानादि अन्यतीर्थिक वन्दनत्यागश्च अनश नेन ब्रह्मलोके उत्पत्तिः, महाविदेहेअवतारः दृढप्रतिज्ञेत्यभिधानं द्वाससतिः कहा: कलाचार्य सत्कारः भोगेऽव्यासङ्गः प्रव्रज्या सिद्धिश्ध १०३ ४१. (१५) आचार्यमत्यनीकादीनां त्रयो. दशसागरोपमेषूत्पत्तिरनाराधकाश्चः (१६) जातिस्मारकापुत्रतादिमतां, ति ~21~ रथां चाष्टादश सागरेषूत्पत्तिराराधकाश्ध, (१७) द्विगृहान्तरिकाद्या जीविकानां द्वाविंशती (१८) आत्मोत्कर्षिता दीनां द्वाविंशती, (१९) बहुरतादीनामेकविंशती, अनाराधकाश्च, (२०) अल्पारम्भदेश विरतिजीवाजीवावबोधादिपौषधालोचनसमाधियुतानां द्वाविंशतौ (२१) अनारम्भसर्वपापनिवृत्तिमतां साधूनां तु त्रयस्त्रिंशति, (२२) क्षीणक्रोधादीनां मोक्षः । १०७ ४२, ८" केवलि समुद्घाते (प्रदेशैर्निर्जरापु दुगलैश्च लोकव्याप्तिः, व्याप्तम्राणपुद्रलवच्छास्रज्ञानादि, वेदनीयादिक्षयार्थं समुद्घातः असंख्यातसाम श्रीऔपपा० बृहदू विषयानुक्रमः ॥ ९ ॥ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-१ "औपपातिक] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा. विषयानुक्रमे ॥१०॥ श्रीऔप० श्रीराजप्रश्नो बृहद्: विषयानुक्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए यिकमावर्जीकरणं, अष्टसामयिकः समुद्घातः, औदारिकतन्मिश्रकार्मणयोगास्तत्र, निवृत्तानां त्रियोगिता, पीठादिप्रत्यर्पणम् । ४३ सयोगानामसिद्धिः, योगनिरोधः, गुणश्रेणिकर्मक्षपर्ण, सिद्धिः, सिद्वानां स्वरूपं, संहननसंस्थानायूषि, ईषत्पाग्भाराया वर्णनं, नामानि, उपरितने गव्यूते स्थानम् । ११५ ९*-३०* सिद्धानां प्रतिघात-प्रतिष्ठा-तनु त्यागसंस्थानावगाहनापरस्परस्पर्श लक्षणसुखस्वरूपादि। ११९ । ॥ इत्यौपपातिकसूत्रबृद्विषयानुक्रमः ।। 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~22~ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-२ “राजप्रश्नीय"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा. विषयानुक्रमे श्रीऔप. श्रीराजमश्नो बृहद् विषयानुक्रमः देखीए ॥१०॥ दीप [आगम-१३] उपांग-२ क्रमांक के लिए देखीए श्रीराजप्रश्नीयोपाङ्गस्य बृहद्- । ८ आभियोगिकानामुत्तरवैक्रियकरण. विषयानुक्रमः। सूत्राणि ८५. मागमनं वीरवन्दनादि च। २० वीरनमस्कारः ॥ ९ पुराणजीतादिकथनम्। २० गुरुनियोगाद्विवरणकरणप्रतिज्ञा ।। १० वैक्रियसमुद्घातः, संवर्तकवातविकु राजप्रश्नीयोपाङ्गशब्दयोरन्वौँ । बणा, अभ्रवादलं, वृष्टिः, पुष्पवादलं, १ आमलकल्पानगयतिदेशः। जलस्थलजपुष्पवर्षणं, प्रत्यागत्य नि२ आम्रशालवनाधतिदेशः। वेदनम् । . अशोकवर्णनापतिदेशः। ९११ सुस्वरघण्टावादनाऽऽदेशः। २५ ४ श्वतनृपधारिणीदेवीवीरसमवसरणा- १२ वन्दनार्थ गमनाज्ञा । २६ द्यतिदेशः। १४१४ जिनभक्तिधर्मादिभिर्बन्दनपूजनाद्यर्थ ५ सूर्याभदेवतऋद्धिबीरवन्दनानि । १७ देवागमनं १३, यानविमानविकु६ वन्दनाय गमनविचारः। १७ बणादेशः१४। २७ ७ भाभियोगिकाय योजनमण्डलकरणा- |१५ यानविकुर्वण, विसोपानतोरणबहुद्यादेशः। मध्यभूभागकृष्णादिमणितद्गन्धस्पर्श राजप्रश्नीय 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~23~ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-२ “राजप्रश्नीय"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सुत्राक श्रीउपां. विषयानुक्रमे र्णनम् । श्रीराजप्रश्नी. बृहद् विषयानुक्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए प्रेक्षागृहमण्डपमणिपीठिकासिंहास- दाज्ञाग्रहणनिषदनकुमारकुमारीविः । ण्ठपुष्पादिचङ्गेरीच्छत्रचामरसमुद्भव- नविजयदूष्यसामानिकादिभद्रासनः । कुर्वणाऽऽतोद्यग्रहणवादनस्वस्तिका । ७१ वर्णनम्। दिन ट्यदर्शनम् २३ । ५२ ३० चक्रध्वजादिभौमाष्टमङ्गलद्वारसङ्१६ विमानारोहणं, मालाष्टकं, छत्रचाः | २५ आवर्तादिद्वात्रिंशाद्विधनाट्यदर्शनं । ख्यातदायामादिवर्णनम् । ७९] मरादिवर्णनम् । १२ २४, सूर्याभप्रतिगमनम् २५। ५६ ३२ भूमिभागपञ्चवर्णतृणमणिशब्दवर्णन १७-१९ औतराहनिर्याणेन निर्गमनं, २६ ऋद्धिसंकोचप्रश्ने कूटागारशालाह- | १३, वापीपुष्करिणीदीपिकादित्रिसो. आग्नेयरति करे सक्षेपः, आमलक- । टान्तः (गौतमवर्णनम् )। ५९ पानाद्युत्पादादिपर्वतहंसाद्यासनाऽऽपायामागमः, ऐशान्यां यानस्थापन, | २७ सौधर्मावतंसकस्य पूर्वस्या सूर्याभविः | त्यादिगृह्जात्यादिमण्डपहंसासनसं वीरप्रदक्षिणा १७, पुराणायुक्त्याऽनु | मान, तत्प्राकारद्वारादिवर्णनम् । ६३ स्थानादिशिलापट्टकदेवक्रीडावर्णनम् मोदनं १८, वन्दनादि १९, ४४२८ चन्दनकलशनागदन्तदामसिकगधूप । ८१ PI २०-२३ धर्मकथा २०,सूर्याभस्य भव- । घटीशालभञ्जिकावर्णनम् । ६६] ३३ प्रासादावतंसकतन्मानाधिष्ठायवर्ण सिद्धिकादीनि प्रश्नोत्तराणि २१, नाट्- | २९ घण्टावनमालाप्रकण्ठकतोरणहयादि । नम् । यदर्शनप्रार्थना २२, प्रेक्षागृहमण्डप- सङ्घाटकदिक्स्वस्तिकादिमनोगु- ३४ पद्मवरवेदिकाहेमादिजालहयादिसमणिपीठिकासिंहासनविकुर्वणभगव- लिकावातकरकरत्नकरण्डकहयादिक । वाटकवेदिकातद्वीथ्याधुःपलादिवे ARJATRSELECTRESENA 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~24~ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-२ “राजप्रश्नीय"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीराजप्रश्नी० श्रीउपां० विषयानुक्रमे यहा देखीए विषयानुक्रमः ॥१२॥ ३५ दीप क्रमांक के लिए देखीए दिकाशाश्वताशाश्वतत्ववनखण्डायामा- | र्णनम् । गमनजलोत्पलादिग्रहणानि ४३, उदिवर्णनम् । ८५/४० उपपातसभाहूदाभिषेकसभाभाण्डा- त्पलह स्तशेषदेवदेवीयुक्तता, जिनप्र मध्यप्रासादतत्परिवारमासादवर्णनम् ।८६/ लङ्कारिकसभाव्यवसायसभापुस्तक- तिमाप्रणामपूजाऽष्टमङ्गलस्तुतिपुष्प३६ सुधर्मासभातवारादिमुखमण्डपप्रेक्षा | रत्नतदुपकरणादिवर्णनम् । ९७ प्रकरदक्षिणमुखमण्डपतत्स्तम्भपङ्क्ति. गृहमण्डषाक्षपाटकमणिपीठिकासिंहास- | ४१ सूर्याभस्योत्पत्तिः, पूर्व श्रेयआदिवि- । स्तूपप्रतिमापूजनसुधर्मसभागमनादिनस्तूपजिनप्रतिमाचैत्यवृक्षमहेन्द्रध्व- चारजिनप्रतिमासक्थिपूजनफलम् । १.८४ व्यवसायसभागमनपुस्तकपूजादिजनन्दापुष्करिणीमनोगुलिकादिचैत्य- | ४४ जलावगाहाभिषकसभागमनाष्टसह- वर्णनं त्रिकादिषूद्घोषणा च ४४। स्तम्भफलकनागदन्तसमुद्कजिनस ससौवर्णकलशादिवैक्रियक्षीरोदपुष्कक्थितत्पूज्यतावर्णनम्। रोदमागधादितीर्थजलहूदनदी जलमृ ४५ सामानि काममहिषापर्षदात्मरक्षक३७ देवसैन्यवर्णनम् । त्तिकाक्षुल्कहिमवदादितूबराद्यानयने३८ क्षुल्ककमहेन्द्रध्वजवर्णनम् । ५४| न्द्रत्वाभिषगन्धोदकवृएयादिवाजि- | ५५ सूर्याभस्थितिः ४६, तऋद्धिपा३९ सिद्धायतनमणिपीठिकादेवच्छन्दजि- गीतनृत्यादिदेवाशीर्वादस्नानालङ्कार- प्तिपश्नः ४७ प्रदेशिराजवर्णनं ४८, नप्रतिमाहस्तपादादिस्वरूपच्छत्रधरा- परिधानवर्णनम् ४२, व्यवसायसभाग सूर्यकान्तादेवीसूर्यकान्तकुमारवर्णनं दिप्रतिमाष्टशतध्वजकडुच्छुकान्तव- मन-पुस्त करत्नवाचनानन्दापुष्करिणी ४९, ५०, चित्रसारथिवर्णनं ५१, | वर्णनम् । 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~25~ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-२ “राजप्रश्नीय"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. विषयानुक्रमे श्रीराजप्रश्नी बृहद्विषयानुक्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए समाभूतस्य चित्रस्य, श्रावस्तीगमनम् | ६४ अश्वव्याजेनानयनं, जडमूढादिवि. स्तिकायाद्यदर्शनं ७२, हस्तिकुन्थुजी५२, केशिकुमारवर्णनम् ५३, चित्र- चार: आहारादिप्रश्नः, केशिस्वरूप- वसमत्वम् ७३ । परम्परागतमिथ्यास्य श्रावकधर्माङ्गीकारः ५४, चित्र कथनं जिगमिषा च ६२, आधोऽ. त्वात्यागेऽयोग्राहिदृष्टान्तः ७४-१४. स्य श्रावकधर्मपालनम् ५५ १२४ वधिकान्नजीविकप्रश्नः, विचारकथ- ८. गृहिधर्मप्रतिप्रत्तिः ७५, कलाशि६१ चित्रस्य विसर्जन, श्वेताम्बिकाऽऽगम नं च ६३, मतिश्रुतादिज्ञानस्वरू स्पधर्माचार्यविनयः ७६, सान्त: पम्। नाय केशिनो विज्ञप्तिः, प्रदेशिनृपस्व पुरेण द्वितीयदिने क्षामणं ७७, पश्चा| ६६ उपवेशाज्ञा, तज्जीवतच्छरीरे पित्र- | रूपकथनं ५६, स्वोद्यानपालकाय के दरमणीयतानिषेधः सदृष्टान्तः राज्यनागमः साधनं ६५, मात्रनागमेन शिकुमारागमने वन्दनाथुपदेशः ५७, चतुर्भागकरणोक्तिः ७८, राज्यचतुजीवाभावसाधनम् ६६। १३८ प्रदेशिसमाचारकथनं ५८, केशि भीगकरणं ६१, विषदानं ८०, १४५ ७४ अयाकुम्भीचौरदृष्टान्तः ६७, वृद्धकुमारागमन, उद्यानपालकवन्द ८५ आराधना ८१, महाविदेहे दृढपति स्य पञ्चकण्डकानुत्पाटनं ६८, अनादि बर्दापनमागमनं च ५९, योभाराद्यवहनं ६९, भाराविशेषः, ज्ञजन्मादि ८२, कलाग्रहणादि ८३, प्रदेशिप्रतिबोधविज्ञप्तिः ६०, धर्म- देहच्छेदेऽदर्शन ७०, पपत्तदपराध निर्लेपता दीक्षा सिद्धिश्च ८४, प्राप्त्यप्राप्तिकारणानि, अश्वव्याजेना- दण्डनिरूपण, व्यवहार्यव्यवहारिनि उपसंहारः ८५। १५० नयनकथनम् ६१। १२८. रूपणं च ७१, वायोरदर्शनं, धर्मा- इति श्रीराजप्रश्नीयोपाङ्गबृहद्विषयानुक्रमः 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~26~ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहा श्रीजीवा० | विषयसूचिः देखीए उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) [आगम-१४] उपांग-३ "जीवाजीवाभिगम श्रीउपां०1श्रीजीवाजीवाभिगमस्य विषयसूचिः | १६ अप्कायभेदाः २४ २९ त्रींद्रियमेदाः विषयानुक्रमे १ शास्त्रभूमिका प्रामाण्यं च २१७ बादराप्कायभेदाः २५| ३. चतुरिंद्रियभेदाः ॥१४॥ २ अभिगमभेदी | १७-१८ वनस्पतिभेदाः, सूक्ष्मवनस्पति- | ३. पंचेंद्रियभेदाः ३ अजीवाभिगमभेदाः भेदाः २५| ३२ नैरयिक भेदाः ४ असप्यजीवाभिगममेदाः १९ बादरवनस्पतिभेदाः २६ ३३ तिर्यकपंचेंद्रियभेदाः ५ रूप्यजीवाभि० २. प्रत्येकवनस्पतिभेदाः २६ ३४ समूछिमभेदाः ६ जीवाभिगमभेदाः ७/२१ साधारणबादरवनस्पतिभेदाः २७/ ३५ जलचरभेदाः ७ असंसारसमापन्नभेदाः ८/२२ त्रसभेदाः २७/ ३६ समूच्छिमपंचद्रियतिर्यगभेदाः ८ संसारसमापन्नभेदाः | २३ तेजस्कायमेदाः २८ ३७ गर्भजतिर्यग्भेदाः ९ प्रतिपत्तिभेदाः ९/२४ सूक्ष्मतेजस्कायभेदाः २८/ ३८ गर्भजजलचरतियगभेदाः १. स्थावरमेदाः ९/२५ बादरतेजस्कायभेदाः २८ ३१ गर्भजस्थलचरभेदाः ११ पृथ्वीकायिकमेदाः १०/२६ वायुकायभेदाः २९ ४. गर्भजखेचरभेदाः १२-१३ सूक्ष्मपृथ्वीकायिकभेदाः १०२७ औदारिकत्रसभेदाः ३० ४१ मनुष्यभेदाः १४-१५ श्लक्ष्णबादरपृथ्वीकायौ २२/ २८ द्वीन्द्रियभेदाः ३० ४२ देवभेदाः दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥१४॥ ~27~ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. विषयानुक्रमे देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए ४३ त्रसस्थावरस्थितिभेदाः ५० ५६ पुरुषाल्पबहुल्यभेदाः ७१ ६९ पृथ्वीकाण्डादिभेदाः ८८श्रीजीवा० इति प्रथमा प्रतिपत्तिः | ५७ पुरुषवेदस्य स्थितिभेदाः ७४ ७० नारकावाससंख्याभेदाः विषयसूचिः ४४ जीवास्त्रिभेदाः ५२ ५८ नपुंसकभेदाः ७१ घनोदध्यादिभेदाः ४५ स्त्रीभेदाः ५२ ५९ नपुंसकस्थित्यन्तरभेदाः ७२ काण्डाद्यन्तरभेदाः ४६ स्त्रीवेदस्थित्यादिभेदाः ५३ ६० नपुंसकानामरूपबहुत्वमेदाः ७३ रत्नप्रभाकाण्डादिद्रव्यस्वरूपभेदाः ९१ ४७ तिर्यकत्रीस्थित्यादिभेदाः ५४ ६१ नपुंसके बन्धस्थितिभेदाः ८२ ७४ रत्नप्रभादिसंस्थानभेदाः ४८ सामान्यविशेषतया स्त्रीत्वस्थितिमेदाः५७ ६२ वेदानामरूपबहुत्वभेदाः ७५ रत्नप्रभादीनामलोकावाधादिभेदाः ९४ ४९ स्त्रीणामन्तरभेदाः ६. ६३ वेदानां स्थितिभेदाः ७६ घनोदधिचाहल्यमानभेदाः ५० स्त्रीणामल्पबहुत्वभेदाः ६२/ ६४ वेदानामरूपबहुत्वभेदाः ७७ रत्नप्रभासजीवपुद्गलोत्पादः ९७ ५१ स्त्रीवेदबन्धस्थितिभेदाः ६५ इति द्वितीया प्रतिपत्तिः |७८ रत्नप्रभायाः शाश्वतेतरत्रे भेदौ ९८ ५२ पुरुषभेदाः ६५ ६५ जीवाश्चतुर्भेदाः ७९ काण्डाद्यन्तरवर्णनम् ५३ पुरुषस्थितिभेदाः ६५/६६ नारकाणां पृथ्वीनां भेदाः ८० रत्नप्रमादीनामरूपबहुत्वमेदाः ५४ पुरुषवेदस्य स्थितिमेदाः ६७/६७ नारकाणां पृथ्वीनां नामगोत्रमेदाः ८८ ८१ नरकावासस्थानभेदाः ५५ पुरुषवेदस्यान्तरभेदाः ६९/६८ , बाइल्यभेदाः ८८८२ नरकावाससंस्थानभेदाः १०४ PAT॥१५॥ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~28~ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा. विषयानुक्रमे श्रीजी वा० विषयसूचिः देखीए ॥१६॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए ८३ नरकावासानां वर्णभेदाः १०६ ९७-१०२ तिर्यग्योनिभेदाः ८५ नरकावासाना महत्त्वं .१००/ १०३-१०४ तिर्यकत्रीपुभेदाः ८५ नरकावासाधिकारः १०९/१०५ मनुष्यभेदाः |८६ उपपातसंख्याऽवगाहनाभेदाः ११० १०६ संमूछिममनुष्यभेदाः ८७ नारकाणां संहननसंस्थानगन्धाद्या | १०७ गर्भजमनुष्यभेदाः भेदाः ११८१०८ अन्तरद्वीपभेदाः ८८ नारकाणां श्वासाहारलेश्यादृष्टिज्ञाना- | १०९ एकोरुकमनुष्याणां भेदाः ज्ञानयोगोपयोगसमुद्घातभेदाः ११५/ ११०-११३ मनुष्याधिकारः ८९ नारकाणां क्षुत्पिपासमेदाः ११६ ११४ देवभेदाः ९. नैरयिकाणां स्थितिभेदाः १२६/११५ भवनवासिभेदाः ९१ नारकाणामुद्वर्तनाभेदाः ११६ भवनवासिभवनभेदाः ९२-९५ नरकेषु पृथिव्यादिस्पर्शस्वरूपः | ११.७ असुरकुमाराणां भवनभेदाः १२९| ११८ चमरस्य पर्षभेदाः ९६ तिर्यगभेदाः १३१॥ ११९ उत्तरत्यानामसुरकुमाराणां १८० १३३/ भवनानि भेदश्चः १६६ १४२/ १२० नागादिकुमाराणा भवनभेदाः । १४३१२१ वानमन्तराणां भवनभेदाः १७१ १२२ ज्योतिष्काणां भवनभेदाः १७४ १४४ १२३ तिर्यगलोकद्वीपसमुद्रभेदाः १२४ आकारभेदाः १२५ पद्मवरवेदिका १५६/ १२६-१२७ वनखण्डवर्णनम् १५८/१२८ विजयद्वारवर्णनम् १२९ जंबूद्वीपविजयद्वारवर्णनम् | १३. विजयद्वारवर्णनम् , १३१ विजयद्वारतोरणभेदाः १६५ १३२ विजयद्वारचक्रध्वजभेदाः । १३३ विजय० रत्नवर्णनम् । २०२ 'सवृत्तिक आगम भेदाः सुत्ताणि ~29~ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघबहदविषयानुक्रमा [ उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. विषयानुक्रमे श्रीजीवा० विषयसूचिः देखीए |१७|| दीप क्रमांक के लिए देखीए १३. विजय० विजयदेववर्णनम् २१६ १४६ स्पर्शोत्पाटपृच्छावर्णनम् | १३५ बिजयदेवराजधानीवर्णनम् २१८, १४७ उत्तरकुरुवर्णनम् १३६ विजयद्वारवनखण्डभेदाः । १.४८ यमकपर्वतवर्णनम् १३७ विजयदेवसभावर्णनम् २२६/ १४९ नीलवद्धदादिवर्णनम् १३८ माणवकस्तम्भदेवशयनीय- १५० काञ्चनपर्वतवर्णनम् वर्णनम् २३० १५१ जम्बूपीठवर्णनम् १३९ सिद्धायतनादिवर्णनम् २३२१५२ जम्बूवृक्षवर्णनम् १४० तिर्यगधिकारे सिद्धायतनम् २३५/ १५३ जम्बूद्वीपे चन्द्रसूर्याधिकार| १४१ विजयदेवाभिषकवर्णनम् । २३७| वर्णनम् ११२ विजयदेवजिनपूजावर्णनम् २५२/१५४ लवणसमुद्रवर्णनम् १४३ बिजयदेवपरिवारस्थित्यादि- १५५ लवणे चन्द्रादीनां वर्णनम् वर्णनम् २५९| १५६ लवणे वेलावृद्धिवर्णनम् १४४ वैजयन्तद्वारभेदाः २६०/ १५७ लवणे जलवृद्धौ कारणं १४. वैजयन्तस्यान्तरभेदाः , १५८ लवणे वेलन्धरवर्णनम् २६१ १५९ वेलन्धरभेदाः २६२, १६० अनुवेलंधरराजभेदाः २८६/ १६१ गौतमद्वीपवर्णनम् २८७/ १६२ जम्बूद्वीपगतचन्द्रसूर्यवर्णनम् ३१५ २९१ १६३ लवणगतचन्द्रसूर्यवर्णनम् ३१५/| १६४ धातकीखण्डगतचन्द्रसूर्यवर्णनम् ३१७ १६५ कालोदगतचंद्रसूर्यवर्णनम् , १६६ द्वीपसमुद्रवर्णनम् १६७ देवद्वीपादिचन्द्रसूर्यद्वीपादि वर्णनम् ३०३, १६८ लवणे वेलन्धराद्या उच्छ्रितो ३०५ दत्वादिवर्णनम् ३०७/ १६९ लवणे चन्द्रसूर्यद्वीपादिवर्णनम् ३२१ ३०८/१७० लवणे उद्वेधोत्सेधौ वर्णनम् ३२२ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥१७॥ ~30~ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्रीउपां ० विषयानुक्रमे ।। १८ ।। उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र - ३ “जीवाजीवाभिगम" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) १७१ लवणे गोतीर्थवर्णनम् १७२ लवणस्य विष्कम्भवर्णनम् १७३ लवणसमुद्राधिकारः १७४ धातकीखण्डवर्णनम् १७५ कालोदधिवर्णनम् १७६ पुष्करवरद्वीपवर्णनम् १७७ समयक्षेत्रवर्णनम् १७८ मानुषोत्तरवर्णनम् १७२ अन्तर्बहिश्चन्द्रादीनामूर्ध्वीप पन्नत्वादिभेदाः १८० पुष्करवरवरुणवरौ १८१ क्षीरवरक्षीरोदयोर्वर्णनम् १८२ घृतवरघृतोदवरक्षोदोदाः १८३ नंदीश्वरवर्णनम् ३२३ १८४ नंदीश्वरोदवर्णनम् ३२४ १८५ त्रिप्रत्यवताराः समुद्राः ३२५ १८६ सहग्नामानोऽसंख्यद्वीपवर्णनम् ३२७ १८७ वादक वर्णनम् ३२. १८८ समुद्रेषु मत्स्यकच्छपवर्णनम् ३३१ १८९ द्वोपोद घिमानम् ३३३ १९० द्वीपसमुद्रवर्णनम् (३४२ १९५ पुगलपरिणामः "" १२२ देवकृतः पुद्गलग्रहो बालमन्थनं च ३६५ ३६६ २७० ~31~ ३७१ ३७२ ३४५ ३७४ ३४७ १९३ चन्द्रादेरधः समोपरिभागेषु ताराः ३७५ ३५२ १९४ महादिपरिवरवर्णनम् ३७६ ३०३ १९५ मेरुलोकान्तपरस्पराचाघावर्णनम्, ३५७ १९६ अन्तर्वापर्यधस्तनास्ताराः १९७ चन्द्रादिसंस्थानायामादिवर्णनम् ३७८ १९८ चन्द्रादिवाहनानि वर्णनम् ३८० १९९ चन्द्रादीनां शीघ्रमन्दगतिमत्त्वं ३८२ ३७७ २०० चन्द्रा० अल्पमहर्द्धिकत्वं २०१ जम्बूद्वीपे तारान्तरवर्णनम् " ३७३ २०३ चन्द्रस्य देव्यः २०२ चन्द्रस्यामहिषीवर्णनम् " ३८३ " " २०४ सूर्यस्य देवीनां वर्णनम् २०५ चन्द्रस्य स्थितिवर्णनम् २०६ चन्द्रसूर्याणामपबहुत्वं २०७ वैमानिकभेदाः " २०८ वैमानिके शक्रस्य पदवर्णनम् ३८६ २०२ विमानाधारवर्णनम् ३९४ २१० विमानपृथ्वी चाहल्यवर्णनम् " ३८५ "" " श्रीजीवा० विषयसूचिः ।। १८ ।। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) साहित्य प्रत सूत्राक ११८ श्रीजीवा० | विषयसूचिः १२३ देखीए १२४ दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपा० २११-२१२ विमानानामुञ्चत्वसंस्थानः | २२४ एकेन्द्रियादिभेदस्थित्यन्तराणि ४०८/२३७ सूक्ष्मवादरयोरस्पबहुत्वं विषयानुक्रमे वर्णनम् ३१५/ २२५ एकेन्द्रियादीनामरूपबहुत्वं ११०२३८ निगोदाधिकारः ॥१९॥ | २१३ आयामादिवर्णनम् | इति चतुर्थी पतिपत्तिः । २३९ निगोदसंख्या २१. वैमा० संहननसंस्थानवर्णनम् ३१६, २२६ पृथ्वीकायभेदाः इति पंचमी प्रतिपत्तिः २१५ देववर्णादिवर्णनम् २२७ पृथ्व्याः स्थितिः २४० नैरयिकस्थित्यादिवर्णनम् ४२७ २१६ वैमा० अवधिवर्णनम् १०२ २२८, कायस्थितिः इति षष्ठी प्रतिपत्तिः २१७ समुद्घातवर्णनम् | २२९ , अल्पबहुत्वं ३२४१ प्रथमसमयनैरयिकादिवर्णनम् ४२९ SI २१८ वैमानिकानां विभूषावर्णनम् ४०४ २३. सूक्ष्मस्य स्थितिः इति सप्तमी प्रतिपत्तिः २११ वैमानिकानां कामभोगवर्णनम्, २३१ सूक्ष्मस्य कायस्थितिवर्णनम् ४१४ | २४२ पृथ्यादेः कायादिस्थितिः १३१ २२० वै० स्थितिवर्णनम् " २३२ सूक्ष्मस्यान्तरवर्णनम् इत्यष्टमी प्रतिपत्तिः २२१ वै० उद्वर्तनावर्णनम् १०६ २३३ सूक्ष्मस्याल्पबहुवं ४१५/ २४३ प्रथमसमयिकादीनां स्थितिकाय२२२ वै० जीवानां स्थितिवर्णनम् ,२३४ चादरस्य स्थितिवर्णनम् स्थित्यन्तरारुपबहुत्वं ४३३ | २२३ , अल्पबहुत्वं | २३५ बादरे कायस्थितिवर्णनम् ४१७/ २४४ सर्वजीवाभिगमे सिद्धासिद्ध ॥इति तृतीया प्रतिपत्तिः २३६ बादरस्यान्तरं 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि भेदा: ~32~ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक भीउपां. विषयानुक्रमे श्रीजीवा. | विषयसूचि विषयानुक्रमश्च देखीए ॥ २०॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए २४५ सर्वजीवानां सेन्द्रियकायवेद | २५६ सर्व त्रसादिवर्णनम् ४४९/ २७१ सर्व० दशविधत्वं पृथ्व्यादिभिः कषायलेश्याभेदाः ४३७/ २५७, मनोयोगादिवर्णनम् , प्रथमाप्रथमसमयनारकादिभिश्व ४६४ २४६ सर्वजीवज्ञानस्थितिः १३९ २५८ , स्त्रीवेदादिवर्णनम् ४५०२७२ सर्वजीवदशबिधत्वमुपसंहारः ४६६ २४७ सर्वजीवाहारकेतरस्थिति- २५९ -२६४ सर्वजीव चातुर्विध्ये इति जीवाजीवाभिगमस्य विषयसूचिः। জ্বীন चक्षुर्दर्शनादिवर्णनम् ४५१ | | २४८ सर्वजीवभाषकसशरीरेतरवर्णनम् ४४३ | २६५-२६६ सर्व सप्तविधत्वं काय२४९ सर्व०चरमेतरवर्णनम् ४४४ लेझ्यावर्णनम् च ४५७ २५० सम्यदृष्ट्यादिपर्णनम् ४४५ २६७ सर्व० अष्टविधत्वं ज्ञानाज्ञाने १५९ २५१ सर्वजीचत्रविध्ये परित्तादिवर्णनम् ४४६ २६८ सर्व नारकतिर्यग्योनतिर्यग२५२ सर्व पर्याप्जापर्याप्तवर्णनम् ४४७ योन्यादिभेदाः २५३ सूक्ष्मवादरवर्णनम् ४८ २६९ सर्व० नवविधत्वमिन्द्रियगति२५४ सर्व त्रैविध्ये संज्ञित्वादि सिद्धभेदाश्च १६१ वर्णनम् ४४८| २७० सर्व प्रथमापथमसमय२५५ सर्व० भव्यत्वादिवर्णनम् ४४१ नारकादिभिः 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि । २०॥ ~33~ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्राक यहां देखीए दीप क्रमाक के लिए देखीए श्रीजीयाजीवाभिगमस्य बृहद् विषयानुक्रमः सूत्राणि २७३, सूत्रगावाः २३*. मङ्ग, प्रयोजनाडुपन्यासः, द्वीपसमुद्रनामग्रहणस्य मनलता, मङ्गलत्रयम् । जिनमतादिविशेषणं जीवाजीवा भिगमाध्ययनं स्थविरप्रणीतम् । ४ २ जीवाजीराभिगमौ रुप्यरूप्यजीवाभिगमौ ३,धर्मास्तिका- सज्ञालेश्येन्द्रियसमुद्घातसज्ञिवेद- | २२,१-४* सूक्ष्मवादरवनस्पतयः१८, यादयोऽरूपिणः (१०)४, स्कन्धा- पर्यास्यपर्याप्तिदृष्टिदर्शनज्ञानयोगोप- पर्याप्तापर्याप्ताः१९, प्रत्येकसाधारणदयो रूपिणः ५, (धर्मास्तिकायादि- योगाः, अनन्तप्रदेशत्वाद्याहारस्वरूपं भेदौ २०, वृक्षगुल्मादि(१२)सिद्धिः क्रमोपन्यासप्रयोजनम् )। ७ आगतिस्थितिमरणसमुद्घात भेदाः, (एकबहुबीजादि, एकाखण्ड. ७ संसारासंसारसमापन्नजीवाः ६, अन- गतिनिरूपणं (स्वल्पानाभोगसंभवात् शरीरसमाधानम् ) २११-४, न्तर(१५) परम्परसिद्धभेदाः । ८ पृच्छा, शरीरपञ्चकव्युत्पत्त्यादि, आलूकादिसाधारणभेदादिः २२॥२८ ८ संसारसमापन्ने प्रतिपत्तिनवकम् । ९ संहननसंस्थानवर्णनं, इन्द्रियस्वरूपं, | २६ तेजोवायुद्वीन्द्रियाद्यास्त्रसाः २३, ९ सस्थावराः। समुद्घातस्वरूपम् )। २१ सूक्ष्मवादरतेजसी २४, सूचीकलाप१० पृथिव्यवनस्पतयः स्थावराः ।,१५ लक्ष्णखरवादरपृथिवीकायिकाः १४, | संस्थिताः सूक्ष्माः २५, बादरेऽङ्गा११ सूक्ष्मवादरपृथ्वीकायिकाः। १० श्लक्ष्णा सप्तधा, पर्याप्ताऽपर्याप्ता च, | रादिभेदादिः २६ । २९ १२ पर्याप्तापर्याप्तसूक्ष्माः (पर्याप्तिस्वरूपं, शरीरादीनि द्वाराणि, (चत्वारिंशत्- | २७ सूक्ष्मबादरा बायबा, प्राचीनादि शरीरावगाहनादीनि गत्यागत्यादीनि । खरपृथ्वीभेदाः) १५। २४ मेदादिः, पताकासंस्थान, शरीरच द्वाराणि)। ११ १७ अपकायस्य सूक्ष्मादिभेदादिः १६, । चतुष्कम् । १३ शरीरावगाहनसहननसंस्थानकषाय- | बादरेऽवश्यायादिभेदादिः। २५/२९ द्वीन्द्रियाद्याः (४) उदारत्रसाः २८, 'सवृत्तिक आगम १ सुत्ताणि ~34~ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपां० विषयानुक्रमे ॥ २२ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र - ३ “जीवाजीवाभिगम" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) द्वीन्द्रियाणां पुलाम्यादिमेदादिः २९ । ३१ ३१ त्रीन्द्रियाणामौपयिकादिभेदादिः ३०, चतुरिन्द्रियाणामन्धिकादिमेदादिः ३१ । ३३ पञ्चेन्द्रियाणां नारकादयो भेदाः ३२, नारकाणां रत्नप्रभादिमेदादिः संहननविचारः) । ३५ ३७ संमूच्छिमगर्भजास्तिर्यञ्चः ३४, जलस्थलखेचराः ३५, संमूच्छिमजलचराणां मत्स्यादिभेदादिः २६, संमूच्छिमस्थल चराणां चतुष्पदोरः परिसर्पभुजपरिसर्पभेदाः, चर्मपक्ष्यादिभेदादिः ३७ ॥ ३२ ३९ गर्भजा जलचरायाः ३८, जलचराण मत्स्यादिभेदादिः ३९ ( संहननसंस्थानवर्णनम् ) । ४१ स्थलचराणामेकखुरादिचतुष्पदोरगादिपरिसर्पमेदादिः ४०, चर्मपक्ष्यादयः खेचराः ४१ । ४२ संमूच्छिमगर्भजमनुष्याणां शरीरादिः (केवले शेषज्ञानापगमः) । ४३ असुरकुमारादिभवनपत्यादिदेवानां शरीरादिः । ४४ स्थावराणां त्रसानां च भवकायस्थित्यन्तरास्पबहुत्वानि (संव्यवहारेतरराशी ) । ॥ इति प्रथमा प्रतिपत्तिः ॥ ५१ ~35~ ४३ ४४ ४८ ४९ ४६ स्त्रीपुंनपुंसकाः ४५, मत्स्यादिचतुपद्यादिपरिसप्र्थ्यादिचर्मपक्षिण्यादितिर्यक् कर्मभूभिजा दिनारी भवनपत्यादिदेवस्त्रियः ४६, (स्त्रीत्वादिलक्षणम् ) ५३ ४८ स्त्रीवेद स्थिताय । देशपञ्चकम् ४७, सप्रभेदजलचरस्थलचरख चरकर्मभूमिजादिभवनपत्यादिस्त्रीस्थिति: ५७ ४८ । ६१ ४९ स्त्रीवेदसप्रभेदतिर्यग्मनुष्यदेवस्त्रीकाय स्थितिः । ५० स्त्रीसप्रभेदतिर्यगादिस्त्रीवेदान्तरम् । ६२ ५१ तिर्यङ्मनुष्यदेव स्त्रीणां स्वस्थानेऽन्योन्यं चापबहुत्वम् । ५२ स्त्रीवेदबन्धावाधानिषेकप्रकाराः । ६५ ६४ श्री जीवा o बृहद्विषयानुक्रमः ॥ २२ ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपां• IN५४ तिर्यगादयः पापाः ५३. तिर्यक | परस्परं चाल्पबहुत्वम्। ८७ संख्याः ) ७२। श्रीजीवा. विषयानुक्रमे वेदादिस्थितिः ६४। ६७६५, ५५ रूपादिकायस्थितिः ६४, ७३ खररत्नादिपशाब्बहुलरत्नप्रभादि॥ २३ ॥ ५५ समभेदपुरुषवेदकायस्थितिः। मनुष्यतिर्यगदेवानां स्त्रीपुंसयोररूप- ६९/ | विषयानुक्रमः घनोदधिधनवातादिवाहल्यम्। शश ५६ समभेदानुत्तरान्तपुरुषवेदान्तरम् । ७१] बहुत्वम् ६५, ५ ८ ८७४ रत्नप्रभादिषु सर्ववर्णादिपुद्गलसत्ता। १३॥ ५७ स्वस्थाने परस्परं च पुरुषाणामरूप- ॥ इति द्वितीया प्रतिपत्तिः॥ ७६ रत्नप्रभाखररत्नादिकाण्डादिशर्करा बहुत्वम् । (कृष्णपाक्षिकादिलक्षणं, ६९, ६* नारकादयो भेदाः (४) ६६, | प्रभादिसंस्थानम् ७५, रत्नप्रभादिदेवानामरूपबहुत्वं च) प्रथमाद्याः पृथिव्यः ६७, पृथ्वीनां । पृथिवीलोकान्ताऽबाधाः। ९५ ५८ पुवेदवन्धस्थित्यादिः । नामगोत्राणि ६८, तासां बाहल्यादिः, | ७७ रत्नप्रभादिधनोदध्यादिवलयमानम् । ९७ ५९ नारकाइयो नपुंसकभेदाः । ६१, ६। ८९७८ सर्वजीवपुद्गलानां तद्रूपता । ९८ ६. सपभेदनारकादिनपुंसकस्थिति- ७. खरकाण्डपङ्काबहुलकाण्डानि, रन. ७. रस्नप्रभादीनां शाश्वताशाश्वतत्वे । ९८ रन्तरं च । काण्डादिभेदाः (१६)। ९०८० पृथिवीकाण्डबनोदध्याद्यन्तरा६. स्वस्थाने परस्परं चाल्पबहुत्वम् । ८२ ७२,७* रत्नप्रभादिषु नरकावाससंख्या बाधादिः। १०१ ६२ नपुंसकस्थित्यादिः। ७१, ७* रत्नप्रभाधधो घनोदध्यादि।। ८१ पृथ्वीनां परस्परं बाहल्यतुल्य६३ सप्रभेदत्रीपुंनपुंसकानां स्वस्थाने । (आवलिकामविष्टप्रकीणकनरक- I स्वादिः । १०२ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥२३॥ ~36~ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपां० विषयानुक्रमे ॥ २४ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः ॥ इति प्रथमो नारकोद्देशः ॥ ८२ रत्नप्रभादिषु नरकावासानां स्थानं स्वरूपं च । [ उपांगसूत्र - ३ “जीवाजीवाभिगम" ] संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) १०४ ८३ रत्नप्रभादिषु आवलिक प्रविष्टप्रकीकानां नानाविधसंस्थानानि आयामविष्कम्भादि च । ८४ नरकावासानां वर्णगन्धरसस्पर्शनिरूपणम् । १०८ ८५ नरकावासानां महचानिरूपणम् १०९ ८६ नरकावासानां वज्रमयत्वं सर्वजीवपुगकोत्पत्यादिमवंशाश्व शाश्व तत् । ८७, ८* रत्नप्रभा दिवस सिरिसृपादिभ्य आगतिः असंख्यातोत्सर्पिणी १०६ ११० समयराशेराधिक्यं भवधारणीयोत्तरवैकियतनुमानं च (प्रतिप्रस्तटम् ) । ११३ ८८ संहननसंस्थान शरीरतवर्णगन्धस्पर्शाः । संस्थानादिसङ्गाथाः ९५, ९१३* । १२५ ॥ इति द्वितीयो नारकोद्देशः ॥ ११४९६, १४ - २४* नरके पुद्ध अनुभवः, केशवादीनामुत्पत्तिः, वैक्रियकाल, पुद्रला घनिष्टता, सातकाल, योजनाशत्युत्पातः । ॥ इति तृतीयो नारकोद्देशः ॥ ।। इति नारकाः || १३१ ९७ एकेन्द्रिये पृथ्वी काय सूक्ष्मादिभेदाः, खेचरा दियोनिसंमदश्य | ९ तिरयां लेश्यादिः, कुलकोटियोनिस्थितयः । २९. गन्धशतानि पुष्पजातय, वल्लीलता १३५ ८९ अनिष्टोच्छ्वासलेश्यादृष्ट्यादिः । ११६ ९० नारकाणां क्षुत्पिपासा मुद्गरादिवैक्रियशीतोष्णवेदना निरयानुभावानुभवाः रामजमदश्यादि (५) वर्णनं वेदनादिश्च । १२५ ९२ नारकाणां जघन्योत्कृष्ट स्थिती ९१, (प्रतिप्रस्तटं ) गतिश्च १२ । १२७ ९५, ९ १३ नारकाणां पृथ्व्यादिस्पर्शः, परस्परं पृथ्व्यादीनां क्षुल्लकत्वादिः ९३, सर्वजीवानामनन्तश उत्पत्तिः, महावेदनादिमत्त्वं च १४, पृथिव्यवगाह ~37~ १३२ श्रीजीवा० बृहद्विषयानुक्रमः ॥ २४ ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा. विषयानुक्रमेश श्रीजीवा. बृहद्विषयानुक्रमः देखीए ॥२५॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए शतानि, हरितकायाः, चतुरशीति- | दिनिर्लेपनविचारः १०३ । १४१ १११ वनखण्डतृणवर्णादिवापीप्रभृतिः।१४५ लक्षाः। १३०/१०४ अविशुद्धासमवहतानगाराविशुद्ध- | ११२ एकोरुके भूमिभागः, उद्दालकहरुस्वस्तिकादि(११)विमानानां लेश्यदेवेतरादिज्ञानादिविचारः।१४२ बालतिलकाद्यावृक्षाः, पद्माद्या लताः, महत्त्वं देवातिक्रमकालश्च, तथैवा. १०५ सम्यक्त्वमिथ्यात्वक्रिययोन यौग- | सेरिकाद्या गुरुमाः, वनराज्यः, मत्ताचिरादिकामादिविजयादीनामपि, | गाद्याः कल्पवृक्षाः(१०),तत्र नरा(चण्डादिगतिमानम् )। १३१ ॥ द्वितीयस्तियगुद्देशः॥ णामाकारलक्षणस्वरसंहननायुच्छय। प्रथमस्तिर्यगुदेशः ॥ १०७ समूच्छिमगर्भजमनुष्याः १०६, पृष्टकरण्डकाहारार्थाः,नारीणामपि, १.१ पृथ्वीकायाद्याः सर्वार्थसिद्धान्ताः। | समलिममनुष्योत्पत्त्यतिदेशः पृथ्वीपुष्पफलाहारास्ते, पृथ्व्यादी१३९/ नामास्वादा, वसतिवृक्षाणां संस्थानं, १०३ श्लक्ष्णाद्याः पृथ्वीभेदाः (१) १०९ कर्मभूमिजादिगर्भजाः १०८ गृहादिग्रामाद्यस्याद्यभावः, हिरण्याएकद्वादशचतुर्दशषोडशाष्टाद- ___एकोरुकाद्या आन्तरद्वीपकाः १०९। धनुपभोगः, राजदासाद्यभावः, मात्राशद्वात्रिंशतिसहस्रस्थितिकाः, दिप्रेमाल्पं, अरिमित्राऽऽवाहेन्द्रमहनारकादीनां स्थितिः, सर्वदा ११. एकोरुकस्य स्थानायामादि नटप्रेक्षाशकटाश्वसिंहशालीग - जीवपृथिव्यादित्वम् १.०२, पृथ्न्या- | वेदिकान्तम् । स्थाणुवंशाहिमहदण्डडिम्बमहा 'सवृत्तिक आगम १४१ सुत्ताणि ~ 38~ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपां ० विषयानुक्रमे ॥ २६ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र - ३ “जीवाजीवाभिगम" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) १५५ युद्धातिवर्षायआकरादिभावाभावविचारः, आयुर्गतिप्रसवाः, आभाषिकादीनामपि । ११४, २६ कर्णाद्यन्तरद्वीपानां स्वरूपम् ११३, २५-२६* हैमवतभरतार्यादिभेदाः ११४ । १५८ ११८ भवनवास्यादयो देवाः ११५, असुरकुमार दिभेदातिदेशः ११६, भवनावासादिस्थानातिदेशः ११७; असुरकुमारादिभवनस्थानातिदेशः ११८ । १६४ ११९ चमरस्य समिता चण्डाजाताः पर्षदः, तद्देवसाहरूयः, तद्देवदेवीस्थितिश्च । १६६ | पर्षदादिः । १७१ १२२ व्यन्तरतदिन्द्रस्थानपर्पदादिः । १७४ १७६ १२३ ज्योतिष्कानां स्थानादिः । १२४ द्वीपसमुद्रस्थान संख्या महत्त्वसंस्थानाssकारादिः । २११ १७७ १२० बलिनः पर्षत्तद्देवस्थित्यादयः । १६७ १३० विजयादीनि द्वाराणि १२९, १२१ नागकुमारादिभवनादिः, धरणादि- विजयद्वारकपाटा दिनेषेधिक्यादिवर्णनम् १३० । १३१ प्रकण्ठकप्रासादावतंसकमणिपीठिकासिंहासनादिवर्णनम् । १३२ मैषेधिवयां तोरणनागदन्तय संघाटकभृङ्गारादर्शस्थालपात्रीसुप्रतिष्ठकमनोगुलिका फलकशिक्क गवातकरकरत्नकरण्डकहयकण्ठपुष्पचनेर्यादिपुष्पपटलसिंहासनच्छत्रचा मर तिलसमुद्रादिवर्णनम् । १३३ अष्टशतचक्रध्वजादि-भौमनवकसिंहासनविजयदेव - तत्सामानि काग्रमहिषी पदारक्षक देवदेवी १२५ जम्बूद्वीपाऽऽयामादिजगति जालकटकवर्णनम् । १२६ पद्मवरवेदिकावर्णनम् । १२७ वनखण्डवर्णनम् । १२८ वापीत्रिसोपानतोरणाष्टमङ्गलोत्पा तादिपर्वतहंसासनाद्यादिगृहादि जातिमण्डपादिहंसासनादिवर्णनम् । २०१ ~ 39~ १७८ १८३ १९६ २०८ २१५ श्रीजीवा० बृहद्(विषयानुक्रमः ॥२६॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सुत्राक श्रीजीवा० श्रीउपां. विषयानुक्रमे विषयानुक्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए DIRSANSAREEEEEERY भद्रासनवर्णनम् । २१६ वृक्षतिलकलवकादिवृक्षमहेन्द्रध्वज- | १४२ विजयदेवस्योपपातः, सङ्कल्पः, १३४ अष्टमङ्गलकृष्ण चामरादिवर्णनम्।२१७ पुष्करिणी त्रिसोपानमनोगुलिका- जिनप्रतिमासक्थ्यर्चासासंकल्पः, १३. विजयदेवसामानिकादिवर्णनम् , गोमानसी फलकधूपघटिकावर्णनम् । देवदूष्यपरिधानजलमज्जनेन्द्राभि१३६ विजयदेवराजधानीतत्याकारकपि २३० कोपस्थापनाऽऽज्ञासौबर्णिकादिशीर्षकद्वारधिकीपकण्ठकसप्त- १३९ माणवकचैत्यस्तम्भायामादिफलक- कलशादिवैक्रिय पुष्करोदकादि दशभौमादिवर्णनम् । २२० सिकगसमुद्कार्चनीयजिनसक्थि- मागधादितीर्थमृत्तिकागङ्गादिजल१३७ अशोकसप्तपर्णचम्पकचूतवन महामणिपीठिकामहासिंहासन हिमवदादितूबरादिपाइदाधुदकादिप्रासादावतंसकतदधिष्ठायकवर्णनम् , | देवशयनीयादिवर्णनम्। २३२ भद्रशालादितूवरादिग्रहणोपस्थापनउपरिकालयनायामादिमणिपीठि- ११० सिद्धायतनादिदेवच्छन्दकजिन सामानिकाद्यभिषेकगन्धोदककादिप्रासादावतंसकतत्परिवार प्रतिमातदवयवचामरधारादिप्रतिमा- वर्षादिद्रुतादि(३२)नाट्याशीप्रासादोच्चत्वादिवर्णनम्। २२३ | घण्टाचन्दनकलशादिवर्णनम् । २३५ र्वादाः। २४८ १३८ सुधर्मसभाऽऽयामादितद्वारमुख १४१ उपपातसभादेवशयनीयाभिषेकालः | १४३ अलङ्कारसभाप्रवेशगात्ररूक्षणयुग मण्डपाष्टमङ्गलप्रेक्षागृहाक्षाटकमणि- कारव्यवसायसभावर्णनं, पुस्तकरत्न- लनिवेशहारादिपरिधानचतुर्विधापीठिकाचैत्यस्तूपजिनप्रतिमाचैत्य- वर्णन च । लकारविभूषाव्यवसायसमाप्रवेश 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥२७॥ ~ 40~ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपाग+प्रकीर्णकसूत्र-लघबहदविषयानक्रमा [ उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. विषयानुक्रमे देखीए ॥२८॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए पुस्तकरत्नवाचनधार्मिकव्यवसाय- स्थितिः। २६० १५२ जम्बूपीठमणिपीठिकासुदर्शनायामा- श्रीजीवा. ग्रहणनन्दापुष्करिणीप्रवेशहस्तादि- | १४६ वैजयन्तजयन्तापराजितद्वाराणि | दि चैत्यवृक्षवर्णनं च। २९५/ विषयानुक्रमः प्रक्षालनपद्मादिग्रहणसिद्धायतना- १४५, परस्पद्वाराबाधा १४६। । १५३,२७-२८ शालचतुष्कप्रासादागमनपरिवारानुगमनदेवच्छन्दा. वतंसकसिद्धायतनादिपरिवारजम्बू-.' गमनजिनप्रतिमाप्रणामप्रमार्जन- १४७ द्वीपसमुद्रप्रदेशस्पर्शजीवोत्पाताद्याः। | सामानिकादिजम्बूबनखण्डपुष्कस्नानदेवदूष्यनिवेशपुष्पाद्याभरणा २६२ रिणीप्रासादावतंसकसिद्धायतन न्तारोहणाष्टमङ्गलालेखनधूपोत्क्षेप- १४८ उत्तरकुरुवर्णनं, पद्मगन्धादिमनुष्या- भवनकूटसिद्धायतनतिलकादिवृक्षामहावृत्तस्तुतिशक्रस्तवपाठमण्डला- नुसर्जना। २८५ ष्टमङ्गलानि, द्वादश नामानि, अनालेखनद्वारचेटीप्रमार्जनादिचत्यस्तूप १४९ यमकपर्वताधिकारः। २८७| हतराजधानीवर्णनादिः। ३.० प्रमार्जनादिजिनप्रतिमाप्रणामादि- | १५० नीलबद्धदतत्पद्मभवनद्वारमणि- १५४,२९* जम्बूद्वीपे चन्द्रसूर्यादि सुधर्मासभाप्रवेशजिनसक्थिप्रक्षा- पीठिकापरिवारपाकर्णिकापरिरय प्रभासनादिः। लनार्चनादिशृङ्गाटकाद्यर्चनादेश प्रयाणि। २९० ॥ इति जम्बूद्वीपाधिकारः॥ सिंहासनोपवेशनानि। २५८/१५१ काश्चनकपर्वताधिकारः, उत्तर- |१५५, ३० वणसंस्थानविष्कम्भद्वार| ११४ सामानिकायुपवेशनं, पल्योपम- कुरुद्रहाधिकारः। २९२/ चतुष्कतदबाधाप्रदेशस्पर्शा. 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~41~ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा. विषयानुक्रमे श्रीजीवा० INI चूहद् विषयानुक्रमः देखीए ॥२९॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए न्वर्थाः ३.३ सहस्राः) समुद्रनामानि १६७,३३॥ ३१९ १५६ लवणे चन्द्र दिसंख्या, (लवणे १६०, ३१ गोस्तूपाद्या वेलन्धर १७० देवद्वीपसमुद्रस्थयम्भूरमणद्वीपदिवसरात्र्यादिविचारः, दकस्फा- नागराजाः, गोस्तूपोदकभास. चन्द्रसूर्यद्वीपराजधान्यः १६८, टिकविमानानि ऊर्ध्वलेश्याकता च)। शङ्खदकसीमावासपर्वतस्थाना लवणे एव वेलन्धराद्याः १६२, यामादिपासादावतंसकतद्राजधानी उच्छ्रितक्षुभितजलता लवणे वर्षा १२७ लवणस्य चतुर्दश्यष्टम्युद्दिष्ट वर्णनम् । ३१३ च, बाह्याः पूर्णाः १७०। ३२२ पूर्णिमासु वर्धन, वलयामुखाद्याः १६१. कर्कोटकादिवेलन्धरतदाबासादि।३१४ १७१ लवणे उद्वेधपरिवृद्धिः (१५)। ३२३ | पातालकलशाः, कालाद्या अधि- १६२ सुस्थितसत्कगौतमद्वीपभौमेय- १७२ लवणे गोतीर्थतद्विरहितक्षेत्रोछायकाः, त्रयस्त्रिभागाः बारबादि- विहारादिवर्णनम् । दकमालप्रमाणम्। ३२४ मन्तः, क्षुल्लकपातालाः, (७८८५) | १६७,३३॥* जबूद्वीप-१६३अभ्यन्तर १७४ लवणसंस्थानविष्कम्भोद्वेधोत्सेध-"वायूनामेनोदकोनामः। ३०७ बाह्यलवण-१६४धातकी सर्वाग्राणि १७३, जम्बूद्वीपानु१५. अहोरात्रे द्विधुद्धिहानी। ३०८ खण्ड-१६५ कालोदकपुष्कर- त्पीडनेऽहंदादिदेवलोकानुभावादि१५१ लवणशिखाविष्कम्भान्तरबाश- | वरादिचन्द्रसूर्यद्वीपराजधान्यः कारणम् । (लवणधनप्रतरगणितानि) वेलामोदकधारकाः (४२७२६० । १६६, जम्बूद्वीपलवणादिद्वीप १७४। ३२६ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥२९॥ ~42~ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. विषयानुक्रमे श्रीजीवा. यहां देखीए विषयानुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए १७५, ३५* धातकीखण्डसंस्थान शुक्लकृष्णभागपरक्षेत्रचन्द्रादि- १८३ घृवतरघृतोदक्षोदवरक्षोदोदचक्रवालविष्कम्भद्वारचतुष्कराज- संख्याकरणान्तराभिजित्पुष्य स्वरूपम्। धानीद्वाराबाधाप्रदेशस्पर्शाद्यन्वर्थ- योगाः, (प्रव्रज्यादौ शुभयोगैषणा)। | १८४ नन्दीश्वरद्वीप जनकपर्वतसिद्धानिमित्तधातकीमहाधातकीतद्देव यतनमुखमण्डपप्रेक्षागृह मण्डपस्तूपचन्द्रादिप्रभासादि। ३२९/ १७९ मानुषत्तरस्योञ्चत्वोद्वेषमूलादि जिनप्रतिमाचैत्यवृक्षा नन्दोत्तराद्याः १७६, ३१* कालोदसंस्थानादि । ३३१] विष्कम्भपरिरयान्वर्थाः, वर्षवर्ष- पुष्करिण्यश्व, भवनपत्यादीनां । १७७, ४८ पुष्करवरद्वीपसंस्थानादि । धरादयोऽर्वागेव। ३४५ चतुर्मास्यादिषु कल्याणकादिषु मानुषोत्तराभ्यन्तरपुष्करा - १८० अन्तर्मनुष्यक्षेत्रस्य चन्दादीनां च महिमकरणम्। ३६५ संस्थानादि च । ३३४ चारोपपनकादित्वं, इन्द्रच्युतौ १८५ नन्दीश्वरोदवर्णनसंक्षेपः। ३६६ १७८, ८३* समयक्षेत्रविष्कम्भचन्द्रः सामानिकोपसंपत् , षण्म सी. १८६ अरुणारुगोदारुशवरारुणवरोदा सूर्यप्रभासादिचन्द्रादित्यादिपिटक- विरहः, वहिश्चारस्थितिकत्वादि।३४७ रुणवरावभासकुण्डलादिरुचकादिपलिमेरुप्रदक्षिणामण्डलसंक्रमसुख. | १८१ पुष्करोदवरुणवरवरुणोदवर्णनम्। । हारादिप्रभृतिसूर्यबरावभासदेवदुःखकारणचारविशेषतापक्षेत्रवृद्धि- | देवोदस्वयम्भूरमणोदान्ताः। ३७० हानिसंस्थानचन्द्रवृद्धिहानिराहुस्थान- | १.८२ क्षीरवरक्षीरोदवर्णनम्। ३५३ | १८८ द्वीपसमुद्रनामसंख्ये १८७, 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~43~ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ “जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. विषयानुक्रमे श्रीजीवा० बृहद्विषयानुक्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए एवणपुष्करक्षीरघृतक्षोदस्वयम्भू- १९२ इन्द्रियविषयपरिणामाः। ३७४] १९९ चन्द्रविमानवाहकदेववर्णनम् । ३८२| रमणोदजलरसाः, लवणवरुण- १९३ पुद्गलः पूर्वपश्चातर्शघ्रमन्दगतिः, २०१ चन्द्रादिषु शीघ्रमन्दगत्योः २००, क्षीरघृतोदाः प्रत्येकरसाः, काल- | देवस्य प्रन्थिदीर्घहस्वानां करणम्। अरुपमहयोश्च स्वरूपम् २०१। पुष्करस्वयम्भूग्मणोदा उदकरसा, ३७५/ शेषाः क्षोदरसाः १८८। ३७२| १९५८५७ यथाऽऽतपश्चन्द्रसूर्ययोरुपर्यादौ । २०५ तरफयोरन्तरं २०२, चन्द्र१८९ लवणकालोदस्वयम्भूरमणा बहु. तारकाः १९४, चन्द्रसूर्य स्याप्रमहिष्यः २०३, जिनमत्स्याः , सप्तनवार्द्धत्रयोदशलक्ष परिवारे ग्रहनक्षत्रतारकाः १९५, सक्थिसद्भावान सुधर्मसभायां । मत्स्ययोनिकाः, पञ्चसप्त ३७६ मैथुनं २०४, सूर्यस्याग्रमहिष्यः दशयोजनमत्स्याश्च । ३७२, १९७ मेरुलोकान्तज्योतिश्चक्राचाधा, २०५। ३८५ शुभनामादिमन्तः सद्धिद्वयोद्धार अधस्तनोपरितनतारकचन्द्रसूर्य- २०६ चन्द्रादीनां स्थित्याचतिदेशः। , सागरसमयमाना द्वीपसमुद्राः रत्नपभावाधा १९६, बाह्याभ्यन्तर- | २०७ चन्द्रादीनामरूपबहुत्वम् । १००, पृथ्व्यादिपरिणामाः, नक्षत्राऽबाधा १९७। ३७८ ॥इति ज्योतिष्कोदेशः॥ सर्वजीवोत्पादोऽनन्तशः १९१॥३७३ | १९८ चन्द्रादिविमानसंस्थानबाहत्यादि। | २०८ वैमानिकविमानदेवस्थानाधति।। इति द्वीपसमुद्राः ॥ ३८० देशः। 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ૨૮૮ ~44~ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. विषयानुक्रमे श्रीजीवा. यहां देखीए ४. ९ विषयानुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए २०९ शकेशानादीनां समिताचण्डाजाता: रसस्पर्शपुद्गलपरिणामलेश्यादृष्टि- | २२५ एकेन्द्रियादिभेदाः भोगपर्याप्ता पर्षदः, तद्देवदेवीप्रमाणस्थिती। ३९० ज्ञानादि । २१६। १०२ पर्याप्तभेदैः परापरे स्थिती काय ॥ प्रथमो वैमानिको दशः॥ २१७, ८८* देवानामवधिमानम् । , स्थितिश्च । २१० विमानप्रतिष्ठानम् । ३९४ | २१८ समुद्घाताः, क्षुत्पिपासाऽभावः, |२२६ ओषपर्याप्तापर्याप्तानां तेषामरूप२१६ सौधर्मादिविमानपृथिवीबाहल्यादि वैक्रिय, सातौं। १०४ बहुत्वम्। २११, विमानानामुच्चत्वं २१२, २२१ देवदेवीनां विभूषा २१९, ।। इति चतुर्थी प्रतिपतिः॥ तेषां संस्थान २१३, आयामादिवर्ण- कामभोगातिदेशः २२०, २२९,८९ पृथ्व्यादयो मेदाः २२७, गन्धरसस्पशी, महत्त्वं, किंमयत्वं स्थित्यतिदेशः २२११४०५ स्थिति: २२८, कायस्थितिरन्तरं च जीवाद्युपादादि, शाश्वताशाश्वतत्वे, | २२२ कल्पेषु पृथिव्यादितया सर्वजीबो- | २२९, ८९ । ४१२ उत्पादः, समयसंख्या, असंख्यो- त्पातोऽनन्तशः। ४०६ २३१ ओषपर्याप्तापर्याप्तानामरूपबहुत्वं सर्पिणीमानता, अवेयकानुत्तरेषु २२४ नारकादिस्थित्यन्तरे २२३, २३०, सूक्ष्मपर्याप्तापर्याप्तानां पल्यासंख्यांशमानता, भवधारणी- तेषामल्पबहुत्वं च २२४ । ४०७ स्थितिः । २३१। । ४१४ योत्तरवैक्रियमानं च २१४, देवानां | ॥ द्वितीयो वैमानिकोदेशः॥ २३३ सूक्ष्मादीनां कायस्थितिः २३२, संहननसंस्थाने २१५, वर्णगन्ध- | ॥इति तृतीया प्रतिपत्तिः॥ । अन्तरं च २३३ । ४१५ 2 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥३२॥ ~45~ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपां विषयानुक्रमे 11 33 11 उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र - ३ “जीवाजीवाभिगम" ] संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः २३४ सूक्ष्मपर्याप्तापयाप्तानामरूपबहुत्वम् । स्थित्यन्तरास्पबहुत्वानि । ४२८ २४६ इन्द्रियकायवेदकषायलेश्या भेदैः ४१६ ॥ इति षष्ठी प्रतिपत्तिः ॥ स्थित्यादि । २३५ बादरपर्याप्तापर्याप्तानां स्थितिः । ४१७ २४२ प्रथमाप्रश्रमसमयनारकादीनां २४७ ज्ञानोपयोगैः स्थित्यादि । २३६, ९२* बादरबादरपृथिव्यादीनां स्थित्यन्तराल्पबहुत्वानि । ४३१ २४८ छद्मस्थभवस्थसयो ग्याहार के तराणां ॥ इति सप्तमी प्रतिपतिः ॥ स्थित्यादि । (क्षुल्लकभवादि२४३ पृथ्व्यादिद्वीन्द्रियादीनां स्थित्यादि । निरूपणम् ) ४४३ ४३३ २४९ भाषकाभाष कशरीर्यशरीरिस्थित्यादि । ४४४ कायस्थितिः । २३७ वादरबादरवनस्पतिनिगोदबादरनिगोदानामन्तरम् । "" २३८ सप्रभेदसूक्ष्मवादराणामरूपबहुत्वम् । २३९ निगोदभेदाः । २४० सप्रभेदानां निगोद तज्जीवानां ४१८ द्रव्यपदेशाभ्यामपबहुत्वम् । ॥ इति पश्चमी प्रतिपत्तिः ॥ २४१ नारकति नरदेवतत्स्त्रीणां ॥ इत्यष्टमी प्रतिपत्तिः ॥ प्रथमाप्रथमसमयै केन्द्रियादिस्थित्यन्तराल्पबहुत्वानि । ।। इति नवमी प्रतिपत्तिः ॥ ॥ इति संसारसमापन्नाः ॥ ४२३२४४ ४२४ ४२७ ४३५ २४५ सिद्धा सिद्धयोः स्थित्यन्तराल्पबहुत्वानि । ~46~ ४३६ ४३९ ४४० २५० चरमाचरमस्थित्यादि " २५१ सम्यग्दृष्ट्यादिस्थित्यादि । ४४६ २५२ संसारकायपरीचादिस्थित्यादि । ४४७ २५३ पर्याप्तादिस्थित्यादि । २५४ सूक्ष्मादिस्थित्यादि । २५५ सज्ञादिस्थित्यादि । "2 ४४८ 11 श्रीजीवा० बृहद् - विषयानुक्रमः २ ॥ ३३ ॥ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-३ "जीवाजीवाभिगम"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां० श्रीजीवाजीव विषयानुक्रमः यहां विषयानुक्रमे देखीए ॥३४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए | २५७ भव्यादि २५६ सादिस्थित्यादि। | २६८ मत्यादिज्ञान्यज्ञानिस्थित्यादि । ४६० ४४२२६९ नारकादिस्थित्यादि । १६१ २५८ मनोयोग्यादिस्थित्यादि। . २७. एकेन्द्रियादिस्थित्यादि। ४६२ (सम्पदायमामाण्यम्) ४५०/२७१ प्रथमसमयनारकादिस्थित्यादि । ४६४ २५९ स्यादिस्थित्यादि। ४५१ २७२ पृथ्व्यादिस्थित्यादि। ४६५ | २६० चक्षुर्दर्शन्यादिस्थित्यादि। ४५२| २७३ प्रथमसमयनारकादिस्थित्यादि। ४६७ | २६१ संयतादिस्थित्यादि। ४५३| | प्रशस्तिः ।। २६२,९३* क्रोधादिस्थित्यादि। ४५४ ॥ इति जीवाजीवाभिगमसूत्र विषयानुक्रमः।। २६३ नारकादिस्थित्यादि। २६४ मतिज्ञान्यायेकेन्द्रियादिस्थित्यादि। ४५६ २६५ औदारिकादिस्थित्यादि। ४५७ २६६ पृथ्वीकायिकादिस्थित्यादि । २६७ कृष्णलेश्यादिस्थित्यादि। ४५९ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ३४॥ ~ 47~ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपां ० विषयानुक्रमे ॥ ३४ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) [आगम-१५] उपांग-४ “प्रज्ञापना" श्रीप्रज्ञापनायाः विषयसूचि. १* श्रीवीर जिननति रूपं मंगलम् २* आसन्नोपकारितादर्शनम् ३४ आर्यश्यामनमनं (प्र.) ५* भगवद्वचोऽनुसारिता ~48~ २ ६- ९* पत्रिंशत्पदनामानि १. प्रज्ञापनाभेदी २ अजीवप्रज्ञापनाभेदौ ४ ३ अरूप्य जीवप्रज्ञापनाभेदाः ४ रूप्यजीव प्रज्ञापना मेदा: ५ जीवप्रज्ञापनाभेदौ ६ असंसारसमापन जीवप्रज्ञापनाभेदौ ७ अनन्तर सिद्धप्रज्ञापनाभेदाः (स्त्रीमुक्तिसिद्धिः) (१५) (प्रत्येक बुद्धस्वयं बुद्धभेदाः) ८ परम्पर सिद्धप्रज्ञापनाभेदाः १६ १७ १८ १८ २३ ९. संसारसमापन्नजीवप्रज्ञापनाभेदाः (५), ५ १० एकेन्द्रियप्रज्ञापनाभेदाः ( ५ ) २४ ६ १९ पृथ्वीकायप्रज्ञापना भेदा: " AVASADANANANAN जीवाजीव विषयानुक्रमः ॥ ३४ ॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए प्रज्ञा० विषयसूचिः दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपां. NI १२ सूक्ष्मपृथ्वीकायमेदो। २५] कायभेदाः। ३. भेदाः (५)। विषयानुक्रमे १३ बादरपृथिवीकायभेदी। , २४, १७-८३* साधारणवनस्पतिकाय- ३४ स्थलचरपंचेन्द्रियतैर्यग्योनिक१४ श्लक्ष्णपृथ्वीकायभेदाः। (७) २६] - वृक्षादीनां भेदाः (अनन्ताः)। ३४ भेदाः (२)। १५, १०-१३* खरपृथ्वीकायभेदाः २५, ८४.९६ अनन्त-प्रत्येकवनस्पति- | ३५ परिसर्पपञ्चेन्द्रियतिर्यगभेदो। ४६ ' (अनन्ताः )। कायलक्षणम् । (मूलाद्यपत्रवादः) । ३६ ३६, ११२ खचरपंचेन्द्रियतिर्यक् । १६ अप्कायमेदो। २८ २६, ९७-११०* साधारणवनस्पति- प्रभेदाः (४)। १७ तेजस्कायभेदौ। ३९/ ३७, ११३-१३३ मनुष्यप्रज्ञापनाभेदी १८ वायुकायभेदौ। | २७ द्वीन्द्रियप्रज्ञापनाभेदाः । | (अन्तरद्वीपाः२०) (द्वाराणि२०)।५० १९ वनस्पतिकाय भेदौ। २८ त्रीन्द्रियप्रज्ञापनाभेदाः। ४२ ३८ देवप्रज्ञापनाभेदाः (४)। ६९ २० सूक्ष्मवनस्पतिकायभेदी। । २९, १११ चतुरिन्द्रियप्रज्ञापनाभेदाः। इति प्रथम प्रज्ञापनाख्यं पदम् । २१ बादरवनस्पतिकायभेदौ। ३०/३० पंचेन्द्रियप्रज्ञापनाभेदाः (४)। । ३९ पृथ्व्यप्तेजास्थानानि । NSI २२, १४* प्रत्येकवादरवनस्पतिकाय- |३१ नैरयिकप्रज्ञापनाभेदाः (७)। ४३] ४. वायुवनस्पतिस्थानम् । मेदाः (१२)। ३२ तिर्यपचेन्द्रियप्रज्ञापनाभेदाः (३)1, | ११ विकलेन्द्रियस्थानम् । २३, १५-४६* चादरपत्येकवनस्पति- २३ जलचरपंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक- ४२ सामान्यपञ्चेन्द्रियनारकस्थानम् । ७९ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ।।३५ ॥ ~49~ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक प्रज्ञा विषयसूचिः m देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपां. ४३, १३४-१३७* रत्नप्रभादिनारक- इति द्वितीय स्थानपदम। ६६ लेश्याभिरल्पबहुत्वम् । विषयानुक्रमे स्थानम् । १८०-१८१* दिगादिभेदाः (२७)। १.१३/६७ दृष्टिभिरल्पबहुत्वम् । ॥३६॥ ४४ तिरबा पवेन्द्रियाणां स्थानम् । ८४/५६ दिग्द्वारं सामान्येन । ११४/६८ ज्ञानाज्ञानारूपबहुत्वम् । ४५, १३८* मनुष्याणां स्थानम् । | ५६ पृथिव्याघल्पबहुत्वम् । ११६ | ६९ दर्शनाल्पबहुत्वम् । १६, १३९-१४९* भवनपतीनां स्थानं । ५७ नारकादीनां पञ्चानामष्टाना(सवेदाना) | ७० संयताल्पबहुत्वम् । असुरादीनां च । ९२/ चाल्पबहुत्वम्। ११९/ ७१ उपयोगाल्पबहुत्वम् । ४७ व्यन्तरस्थानम् । ९५५८ एकेन्द्रियाद्यस्पबहुत्वम् । १२०, ७२ आहारकेतराल्पबहुवम् । १८, १५०-१५५* पिशाचस्थानम् । ९७ ५९ षट्कायास्पबहुत्वम् । १२२/७३ भाषकेतराल्पबहुवम् । ४९, १५२-१५४ बानमन्तरस्थानम् |, ६० सूक्ष्मबादराल्पबहुत्वम् । ७४ परीत्तेतराल्पबहुत्वम् । ५. ज्योतिष्कस्थानम् । ९९ ६१ बादराल्पबहुत्वम् । १२७ ७५ पर्याप्ततराल्पबहुत्वम् । | ५१ वैमानिकस्थानम् । १०० ६२ सूक्ष्मबादराणामल्पबहुत्वम् । ७६ सूक्ष्मेतराल्पबहुत्वम् । ५२ सौधर्मस्थानम् । १०१ ६३ योग्यास्पबहुत्वम् । १३४ ७७ संश्यसंश्यल्पबहुत्वम् । ५३, १५५-१५८ ईशानादिस्थानम् ।१०५/६४ वेदैरस्पबहुत्वम् । ७८ भवसिद्धिकेतराल्पबहुत्वम् । १५४, १५९-१७२* सिद्धस्थानादि । १०६| ६५ कषायैररुपबहुत्वम् । १३५] ७९ अस्तिकायाल्पबहुत्वम् । ARAMA NANE १३१ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि १४० ॥३६ ~50~ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा. विषयानुक्रमे देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए ८. चरमेतराल्पबहुत्वम् । १३| ९१ क्षेत्रदिग्भ्यां पुद्गलद्रव्याल्पबहुत्वम् ।१५८/१०१ ज्योतिष्काणां स्थितिः। १७५ प्रज्ञा ८१ जीवाल्पबहुत्वम् । ९२ द्रव्यक्षेत्रकालभावाल्पबहुत्यम् । १६० १०२ वैमानिकानां स्थितिः। १७६ विषयसूचिः ८२ क्षेत्रानुपातेन जीवाल्पबहुत्वम् । १४४ ९३ महादण्डकः (९९ भेदानां)। १६२/ ॥ इति चतुर्थ स्थित्यास्यपदम् ॥ IN ८३ गत्यपेक्षयाऽल्पबहुत्वम्। ११५ ॥ इति तृतीयमल्पबहुत्वपदम् ॥ १०३ जीवपर्यायाः (पर्यायभेदी)। १७१ | ८४ विशेषेण देवानामल्पबहुत्वम् । १४६ ९४ सामान्यपर्याप्तापर्याप्तरत्नप्रभादिना- | १०४ नारकपर्यायाः द्रव्यप्रदेशस्थिति| ८५ एकेन्द्रियारूपबहुत्वम् । १.१ रकाणांस्थितिः। | भेदौ च। ८६ क्षेत्रानुपातेन विकलेन्द्रियाल्प- | ९५ सामान्यविशेषतो देवानां स्थितिः।१७१ १०५ असुरकुमारादीनां पर्यायाः। १८५18 बहुत्वम् । १५२/ ९६ पृथ्त्र्यादीनां स्थितिः । १०६ पृथिवीकायिकादीनां पर्यायाः । १८५ ८७ क्षेत्रानुपातेन पञ्चेन्द्रियाल्पबहुत्वम्। । ९७ द्वीन्द्रियादीनां स्थितिः। १०७ द्वीन्द्रियादीनां पर्यायाः। १५३ ९८ जलस्थलखचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्- १०८ पंचेन्द्रियतिरश्वां पर्यायाः। , ८८ क्षेत्रानुपातेन पृथ्व्यादीनामल्प- योनिकानां सामान्यविशेषतः १०९ मनुष्याणां पर्यायाः। बहुत्वम् । स्थितिः। १७३ ११० वानव्यन्तराणां पर्यायाः। ८९ क्षेत्रानुपातेन त्रसकायिकाल्पबहुत्वम् । । ९९ मनुष्याणां स्थितिः । १७४ १११ जघन्यावगाहनादीनां नैरयि९. आयुर्वन्धकाद्यरुपबहुत्वम् । १५५/ १०० व्यन्तराणां स्थितिः । काणां पर्यायाः। 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~51 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा० विषयानुक्रमे ॥ ३८॥ प्रज्ञा० विषयसूचिः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए ११२ ज० असुरकुमारादीनां पर्यायाः। | १२२, १८२* उपपातविरहो गतिषु । २०५/१३७ वैमानिकानामुपापतः। २१४ १८९| १२३ रत्नप्रभादिभेदैरुपपातविरहः। २०६/ १३८ नारकाणामुद्वर्तना। | ११३ ज. पृथव्यादीनां पर्यायाः। १२४ रत्नप्रभादिभेदैरुद्वर्तनाविरहः। २०७/ १३९ असुरकुमाराणामना । ११४ ज० द्वीन्द्रियादीनां पयायाः। १९०/ १२५ सान्तरनिरन्तरोपपातः। २०७/ ११० पृथ्वीकायिकादीनामुद्वर्तना। " ११५ ज० पञ्चन्द्रियतिरबां पर्यायाः।, | १२६ सान्तरनिरन्तरोद्वर्तना। | १४१ पंचेन्द्रियतिरश्चामुद्वर्तना। ११६ ज. मनुष्याणां पर्यायाः। १९२ १२७ उपपातसंख्या। २०८ १४२ मनुष्याणामुद्वर्तना। ११७ असुरकुमारादिपर्यायाः। १९५/ १२९, १८३-१८४ नारकाणामागतिः।, | १४३ वानव्यन्तरादीनामुद्वर्तन।। २१६ ११८ अजीवपर्यायभेदौ। १९६/ १३० असुरकुमाराणामुपपातः। २११] १४४ परभवायुर्वन्धः। १६ ११९ रूप्यजीवपर्यायाः (४)। , १३१ पृथिवीकायिकानामुपपातः। २१२/१४५ जातिनामनिधत्त द्यायुर्बन्धभेदाः १२० परमावादीनां द्रव्यप्रदेशावगाह- १३२ विकलेन्द्रियाणामुपपातः। २१३ | | (६)। २१७ ___स्थितिगुणैः पर्यायाः। २०० | १३३ पंचेन्द्रियतिरश्चामुपपातः। ॥ इति व्युत्क्रान्त्याख्यं षष्ठं पदम् ।। १२१ जधन्यप्रदेशादीनां पर्यायाः। २०१] १३४ मनुष्याणामुपपातः । | १४६ उच्चासतद्विरहै।। २२० ॥ इति विशेषापरपर्याय पर्यायाख्यं । १३५ वानव्यतराणामुपपातः। २१४ ॥ इति सप्तममुच्चासाख्यं पदम् ।। पश्चमं पदम् ॥ .. । १३६ ज्योतिष्काणामुपपातः। ।१४७ दश संज्ञाः । 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि २२१ ॥३८॥ ~52~ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए श्रीउपां. विषयानुक्रमे प्रज्ञा विषयसूचि बहुता। ॥३९॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए १४८ दण्डकभेदेनाहारसंज्ञादिमतामरूप- | चरमादिभेदेनाल्पबहुत्वम्। २३०/ १६५, १९२-१९७* सामान्यतो २२३ १५७ परमाणोश्चरमतादिविचारः। २३२ भाषायाः कारणानि सप्रभेद।। इत्यष्टमं संज्ञाख्यं पदम् ।। १५८, १८५-१९०* द्विपदेशादीनां सत्यादिभेदाश्चः। १४९ योनिभेदाः (३)। २२४ चरमादित्वम्। २३८ १६६ भाषकाभाषको । १५० नारकादीमा शीताद्या योनयः। १५९ संस्थानभेदाः (५)। २४२ १६७ नारकादीनां भाषाजातानि। २६० १५१ नारकादीनां सचित्ताचा योनयः | १६०, १९१* जीवादीनां चरमाचरम- १६८,१०८* भाषाव्यग्रहणादि विभागः। २४१ विचारः। १५२ संवृताद्या योनयः २२७ ॥ इति दशम चरमाख्य पदम् ॥ १६९ सान्तरनिरन्तरग्रहणनिसर्ग| १५३ मनुष्याणां कूर्मोन्नताद्या योनयः।२२८ १६१ अवधारिण्याः स्वरूपं सत्यारा भेदादि। ॥ इति योन्याख्यं नवमं पदम् ॥ | धिन्यादित्वं च । २४६/१७० भाषाशब्दव्यभेदाः (4)। १५४ पृथ्वीनां चरमाचरमते। १६२ लिङ्गवाक्सत्यता। २४८१७१ नारकादिभाषा स्थितभाषा| १५५ रत्नप्रभादीनां चरमाचरमाद्यरुप- १६३ संज्ञिणां वागाहारादिराज द्रव्यग्रहणं च । बहुत्वम्। २२९ कुलादिवाचनज्ञानम् । २५२, १७२ सत्यादितया गृहीतनिसर्गयोर| १५६ अलोकस्य लोकालोकयोश्च चरमा- १६४ एकवचनादिका भाषा। भेदाः। 'सवृत्तिक आगम २६६ सुत्ताणि ॥३९॥ ~53~ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां० विषयानुक्रमे प्रज्ञा० | विषयसूचिः यहा देखीए ॥४०॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए १७३ षोडश वचनानि । २६६/ ॥इति द्वादशं शरीरारूपं पदम् ॥ १९०, २० * अष्टकर्मप्रकृतिचयोप१७४ चतस्रोऽप्याराधिन्यः सत्यभाषका- १८१ परिणामभेदौ । २७९ चयादिहेतुता। २९२] यल्पबहुत्वम् । २६७/ १८२ जीवपरिणामभेदाः (गत्यादि १०)। । ॥ इति चतुर्दशं कषायाख्यं पदम् ।। १७५ सत्यादिभाषानामल्पबहुत्वम् । २६८ २८३/ २०२-२०३* इन्द्रियाणां संस्थानादि॥ इति भाषाख्यमेकादशं पदम् ॥ १८३ गतिपरिणामादिनिरूपणं (१०)। द्वाराणि (१६)। २९३ १७६ शरीरभेदाः (५ दण्डकेषु) २७० २८६ / १९१ इन्द्रियाणां संस्थानबाहल्यपृथक्त्व- l १७७ औदारिकादीनां भेदौ संख्या च । , | १८५ अजीवपरिणामभेदाः (१०)। २८७ प्रदेशाः। १७८ नारकाणामौदारिकादिशरीर- १८५, १९९-२०० बन्धपरिणामादि- १९२ अवगाहनाल्पबहुत्वे।। तत्संख्यापृच्छा। २७४ भेदाः। (१०) | १९३ नैरयिकादिषु इंद्रियादीनि । २९७ १७१ असुरकुमारादीनामौदारिकादि- ॥ इति त्रयोदशं परिणामाख्यं पदम् ॥ | १९४ शब्दादेः स्पृष्टास्पृष्टत्वादि । २९८ शरीरतत्संख्यापृच्छा । २७५/ १८६ कषायभेदाः । २८२ १९५ इन्द्रियाणां विषयपरिमाणला १८० पृथ्वीकायिकादीनां द्वीन्द्रियादीनां १८७ कषायप्रतिष्ठोत्पत्तिश्च । निरूपणम् (इन्द्रियविषयेष्वचौदारिकादिशरीरतत्संख्यापृच्छा १८८ क्रोधादिमेदाः २८९ गुलासंख्येयभागादि मानम् । २९९ (गर्भजमनुष्यसंख्या)। २७७/१८९ आभोगाद्याः क्रोधभेदाः। २९१ | १९६ अन्त्यनिर्जरापुद्गलदर्शनज्ञाना 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~54~ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपां. विषयानुक्रमे देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए हारादिप्रश्नः। ३०४/ २०४ जीवादिषु पदेषु नियतप्रयोगा- २१३ लेश्यापदे चतुर्विशतिदण्डकस्या- प्रज्ञा० १९७ आदादिच्छाय प्रश्नः। भावः। हारादिपदैनिरूपणम् । विषयसूचिः ३४१ ११८, २०४-२०६० कम्बलावकाशा- २०५ गतिप्रपाताः प्रयोगो(२५)पपात- २१४ लेश्याभेदाः। काशस्पर्शनादिप्रश्नः। ३.५ (३)विहायो(१७)गतिभेदाः । ३२५, २१५ नैरयिकाणां लेश्याः । १९९, २०७-२०८* संस्थानादीनीन्द्रि-- ॥ इति षोडशं प्रयोगपदम्।। २१६ लेश्यादीनामष्टानामरूपबहुत्वम् ।। ___याणां द्वाराणि (९) अनगारादीन्य- २०६, २०१* समाहारशरीरादीनि द्वाराणि | २१७ नैरयिकेषु लेश्यानामरूपबहुत्वम् ।३४५ लोकान्तानि च (१६)। ३०८ (७) (लेश्यास्वरूपम् ) ३३१२१८ तिर्यपश्चन्द्रियेष्वल्पबहुत्वम् । ३४६ २०० इन्द्रियापायेहावग्रहमेदाः ३१०/ २०७ समकर्मत्वाद्यधिकारः। ३३२/ २१९ मनुष्येष्वरूपबहुस्यम् । ३४७18 २०१ द्रव्येन्द्रियभावेन्द्रियसंख्या, नारका- | २०८ समक्रियाऽधिकारः। ३३४ | २२० देवविषयमल्पबहुत्वम् । ३१८ दीनामतीतानागतवर्तमानद्रव्य- २.९ असुरकुमारादिष्पाहारादि- २२१ भवनवासिदेवविषयम् । भावेन्द्रियसंख्या च । पदनवकम् । ३३५ २२२ नैरयिकेषूपपातविषयम् । ३५२| ॥ इति पञ्चदशमिन्द्रियाख्यं पदम् ॥ | २१० समवेदनादि। | २२३ कृष्णलेश्यादिनैरयिकसत्कावधि२.२ प्रयोगस्य भेदाः। ३१७, २११ लेश्यापदे मनुष्यविषये। ३३९ ज्ञानदर्शनविषयक्षेत्रपरिमाण२०३ नारकादीनां प्रयोगाः। ३१९२१२,,, व्यन्तराणां विषये। ३४० तारतम्यम् । ३५५ ।११ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~55~ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपां ० विषयानुक्रमे ॥ ४२ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) २२४ का लेश्याः कतिषु ज्ञानेषु लभ्यन्ते । २२५, २१०* लेश्याणां परिणाम ३५७ लक्षणम् । २२६ लेश्यानां वर्णाधिकारः । २२७ लेश्यानां रसाधिकारः । २२८ लेश्यानां गन्धाधिकारः । २२९ लेश्यानां परिणामद्वारम् । २३० लेश्यानां स्थानद्वारम् । २३१ देवनैरविकविषयम् । २३२ सामन्यतया लेश्यावर्णनम्। ॥ इति सप्तदर्श लेश्याख्यं पदम् ॥ २३३, २११-२१२* कायस्थितिपरिणामः | ३५८ ३६० २३४ कायस्थितीन्द्रियद्वारम् । २३५ कायद्वारम् । २३६ कायद्वारे सूक्ष्मकायिकादीनां कालनिरूपणम् । २३७ योगद्वारम् । ३६४ २३८ वेदद्वारम् । ३६६ २३९ कषायद्वारम् । ३६७ २४० लेश्याद्वारम् । ३६८ २४९ सम्यक्त्वद्वारम् । ३७० २४२ ज्ञानद्वारम् । ३७१ २४३ दर्शनद्वारम् । २४४ संयतद्वारम् । २४५ उपयोगद्वारम् । ३७४२४६ आहारकद्वारम् । ~ 56~ ३७७ २४७ भाषाद्वारम् । ३७८ २४८ परीचद्वारम् । २४९ पर्याप्तद्वारम् । ३८१ २५० सूक्ष्मद्वारम् । ३८२ २५१ संशिद्वारम् । ३८३ २५२ भवसिद्धिकद्वारम् । ३८५ २५३ अस्तिकायद्वारम् । ३८६ २२४ चरिमद्वारम् । ३८७ ३८९ ३९० ३९१ ३९२ ३९३/ ३९४ ३९४ " 39 "1 "" 31 " || इत्यष्टादश कार्यस्थितिपदम् || १५५ सम्यग्दृष्ट्यादिमेदेन जीवाः । ३९५ इत्येकोनविंशतितमं सम्यक्त्वपदम् । १५६, २१३* अन्तक्रिया, तीर्थकृत्त्वा दिप्राप्तिसंग्रहः, जीवादिष्वन्सक्रियाविचारः । ३९६ प्रज्ञा० विषयसूचिः ॥ ४२ ॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्रीउपां ० विषयानुक्रमे ॥ ४३ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) मानम् । "2 २५७ नैरयिकेष्वन्तक्रिया । २५८ नैरयिकादिभवेभ्यः समयेनान्तक्रिया३२८ २५९ नैरािणामु धर्मश्रवणादिक्रिया । २६० असुरकुमाराणामुत्ते धर्म० । ४०० २६१ पृथिवी का विकादीनामुत्ते धर्म ०/४०१ २६२ विकलेन्द्रियाणामुद्वते धर्म० । २६३ पञ्चेन्द्रियतिरश्च मुद्वत्ते धर्मश्रवणादिः । २६४ रत्नप्रभावानां तीर्थंकरत्वाद्याप्तिविचारः । ३९६ / २६६ उपपातोऽसंयता भव्य द्रव्य देवादीनाम् (१४) | ४०४ २६७ असंइयायुर्भेदाः ( 8 ) | ४०६ ॥ इति विंशतितमं क्रियापदम् ॥ २४* विधिप्रमाणसंस्थानादिसंग्रहः ४०७ २६८ शरीरभेदाः ( ५ ) । ४०८ २६२ संस्थानानि । 891 २७०, २१५-२१६* अवगाहनामानम् । ४१२ ४१४ ४१६ ४१७ 13 ४०२ २६५ रत्नप्रभादिभ्यश्चक्रवर्त्तित्वाद्याप्तिः । ४०३ २७१ वैकियशरीरभेदौ । २७२ वैक्रियसंस्थानानि । २७३ वैक्रियावगाहनामानम् । २७४ आहारकशरीरस्य विधिसंस्थानावगाहनास्थानानि । : ~ 57~ ४२३ २७५ तैजसशरीरमेदाः (५) । २७६ तैजसावगाहनामानम् । २७७ पुगचयनम् । २७८ औदारिकादीनां द्रव्यप्रदेशोभयै रल्पबहुत्वम् । २७९ औदारिकादीनां जघन्योत्कृष्टोभयावगाहनाविषयमल्पबहुत्वम् । ४२६ ४२७ ४३१ ॥ इत्येकविंशतितमं शरीरपदम् ॥ २८० क्रियाभेदाः (५) । २८२ जीवानां प्राणातिपातादिभ्यः कर्मबन्धः । ४३३ ४३४ ४३५ २८१ जीवानां प्राणातिपातादिना क्रियाः । ४३७ ४३८ प्रज्ञा ० विषयसुचिः ॥ ४३ ॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) साहित्य प्रत सुत्राक श्रीउपा० विषयानुक्रमे प्रज्ञा० विषयसूचिः देखीए ॥४४॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए २८३ जीवनारकादीनां जीवनारकादिभ्यः | २९४ कर्मप्रकृतिविचारः। ४६५/ इति पञ्चविंशतितमं कर्मवेदाख्यं पदम् क्रियाः। ४३९/ २९५ पंचविधज्ञानावरणीयादिकर्मस्थितिः। | ३०२ कर्मप्रकृतिवेदवन्धः । ४९५ २८८ क्रियासंवेधः। ४४३ ४७५] इति पड्विंशतितम वेदबन्धाख्यं पदम् २८५ क्रिया(५)णां सहभावविचारः १४४६ २९६ एकेन्द्रियाणां कर्मस्थितिः। ४८५ ३०३ कर्मवेदवेदः। SI २८६ हिंसादिविरमणहेतुः। ४४८ २९७ द्वीन्द्रियादीनां कर्मस्थितिः। १८८ इति वेदवेदाख्यं सप्तविंशतितमं पदम् ॥ का २८७ प्राणातिपातविरमणे कर्मप्रकृति- २९८ ज्ञानावरणीयादिकर्मणां जघन्य- | ३०४ नारकादीनां सचित्ताद्याहारादि। ४२८ बन्धमानम्। स्थितिबन्धः ४८८ ३०५, २१८-२१९ असुरकुमारादीना| २८८ विरताना क्रियाभावः। ४५१ २९९ ज्ञाना० उत्कृष्टस्थितिबन्धः । ४९० माहारादि। ॥ इति द्वाविंशतितम क्रियापदम् ॥ ॥ इति त्रयोविंशतितमं कर्मप्रकृत्या- ३०६ पृथ्वीकायिकादीनामाहारादि । ५०५ २८९, २१७* कर्मप्रकृतेर्भेदाः (८)। ४५२ ख्य पदम् ।। ३०७ द्वीन्द्रियाणामाहारादि। ५०७ २९० कर्मप्रकृतबन्धः। १५०/३०० कर्मप्रकृतिबन्धबन्धनम् (८) १९१३०८ नारकादीनामेकेन्द्रियशरीराबाहारः।। २९१ कर्मस्थानानि । १५५ ॥इति कर्मबन्धाख्यं चतुर्विंशति ५०८ २९२ कर्मवेदना। तमं पदम् ॥ ३०९ नारकाणामोजआहारादिः। ५१० २९३ कर्मकर्मानुभावः । - ४५८| ३०१ कर्मबन्धवेदः । १९४/ २२०* आहारपदाधिकाराः (१३)। ५११ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~58~ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए ५४८ प्रज्ञा० विषयसूचिः दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपां. ३१० जीवानामाहारानाहारादि । ५१२ ॥ इति द्वात्रिंशत्तमं संयमाख्यं पदम् ॥ | ३२८ स्पर्शपरिचारणा । विषयानुक्रमे जा ३११ सलेश्यजीवानामाहारादि। ५१६३१८,२२३* अवधिज्ञानभेदौ । ५३६, ३२९ कायपरिचारणा। ॥ ४५ ॥ ३१२ गत्यादिष्वाहारकत्वादिः। ५२० ३१९ अवधिज्ञानविषयः । ५४० ॥ इति चतुर्विंशत्तम प्रवीचारपदम् ।। ॥ इत्यष्टाविंशतितममाहाराख्यं पदम् ॥ | ३२० अवधिज्ञानसंस्थानद्वारम् । ५४१ | ३३०, २२६-२२७* वेदनाभेदाः । ५५३| ३१३ नारकादीनां सागारोपयोगादिभेदाः। । ३२१ नैरयिकभवनपतिव्यन्तरज्योतिष्क- | ३३५, ३३२ वेदनाभेदौ। ५५६ ५२५/ वैमानिकानामवधिः। ५४२ ।। इति वेदनारुपं पश्चत्रिंशत्तमं पदम् ।। PRI| इत्येकोनत्रिंशत्तममुपयोगाख्यं पदम् ।। |॥ इति त्रयस्त्रिंशत्तममवध्याख्यं पदम् ।। | २२८ वेदनादिसमुद्घाताः। ५५९ ३१४ पश्यत्ताभेदाः (९) (मतिज्ञानाज्ञानयो | ३२२, २२४-२२५* परिचारणा। ५४३ ३३३ समुद्घातभेदाः। ५६१ ने)। ५२९/ ३२३ परिचारणा, आहारविषयमाभोग- | ३३४ नैरयिकेषु समुद्घाताः। ५६२ ३१५ आकारादिज्ञानदर्शनपृथक्त्वम् । ५३१ ५४४ ३३५ नैरयिकेषु वेदनासमुद्घाताः। ५६५ ॥ इति त्रिंशत्तम पश्यचापदम् ॥ | ३२४ परिचारणाविषयः। ५४७ ३३६ स्वपरस्थाने वेदनासमुद्घाताः। ६७५ ३१६, २२१* संज्ञाभेदाः। ५३३ ३२५ परिचारणामेदाः। | ३३७ स्व. कषायस्य समुद्घाताः । ५६९ इत्येकत्रिंशत्तमं संज्ञास्य पदम् ॥ ३२६ शीतपरिचारणा। ३३८ नारकादेर्नारकत्वादी मारणान्ति३१७, २२२ संयतः। ५३४ | ३२७ शुक्रपरिचारणा । काद्या: समुद्घाताः। नम् । 'सवृत्तिक आगम ५१८ सुत्ताणि ॥१५॥ ~59~ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्रीउपां ० विषयानुक्रमे ॥ ४६ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ३३९ नारकादीनां नारकत्वादी समुद् घाताः ५७५ ३४०-३४१ समुदूधातानामरूपबहुत्वम् । ३५१, २२९-२३०० कृतसमुद्घातस्य योगाः । ३५२ योगनिरोधः । ६०५ ६०७ ५७८ ।। इति षट्त्रिंशत्तमं समुद्घाताख्यं पदम् । ५८१ ॥ इति श्रीप्रज्ञापनाया विषयसूचिः ॥ ३४२ स्वपरस्थाने कपायस० । ३४३ क्रोधादिसमुद्घाताद्यल्पबहुत्वम् । ५८८ ३४४ छास्थिकाः समुद्घाताः । ३४५ समुद्घातपुद्गलपूरणादि । ३४६ वैक्रियसमुद्घातः । ५९० 19 ५१६ ३४७ के बलिसमुद्घातनिर्जरा पुद्गलसूक्ष्मता । ५९८ ३४८ केवलिसमुद्घातप्रयोजनम् । ६०५ ३४९ आवर्जीकरणम् । ६०७ ३५० केवलि० समयाः । " ~60~ प्रज्ञा० विषयसूचिबृहद्विषया नुक्रमश्ध ॥ ४६ ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्रीउपां ० विषयानुक्रमे ॥ ४६ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) अथ श्रीप्रज्ञापनोपाङ्गस्य वृहद्विषयानुक्रमः बीरनमस्कारमङ्गादि । प्रज्ञापनाशब्दार्थः प्रयोजनाभिधेयमङ्गलचर्चा | १* महावीरनमस्कारः, (अतिशय चतुष्कम् ) । २* वीरस्यासन्नोपकारिता । ~61~ १ २ ४ ५ ४* प्र० आर्यश्यामनमस्कारः । ५* दृष्टिवादनिरस्यन्दाध्ययनकथनप्रतिज्ञा । ९ प्रज्ञापनादि ( ३६ ) पदानामुद्देशः । १ जीवाजीवप्रज्ञापने । २ रूप्यरूप्यजीवज्ञापने । ७ ३ धर्मास्तिकायतदेशादि (१०, मेदाः । ९ ४ स्कन्धादीनां ( ४ ) वर्णगन्धादि (५) परिणामा (परिमण्डलादिसंस्थानानि ) १८ ५ संसारा संसारसमापन्नप्रज्ञापने । ८ अनन्तरपरम्परसिद्ध ज्ञापने ६, तीर्थादि (१५) सिद्धाः, (स्वयं बुद्धप्रत्येक बुद्धविचार:, स्त्रीमुक्तिसिद्धिः ) ७, अप्रथमसमयसिद्धादिप्रज्ञापना ( ८ ) 1 २३ 22 ६ ६ 6. " प्रज्ञा० विषयसूचि बृहद्विषया नुक्रमश्ध ॥ ४६ ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्रीउपां ० विषयानुक्रमे ॥ ४७ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) ९ एकेन्द्रियादिप्रज्ञापना, (द्रव्यभावेन्द्रि याणि ) १० पृथ्वी कायादिप्रज्ञापना | ११ सूक्ष्मबाद र पृथ्वी प्रज्ञापना । १२] पर्याप्तापर्याप्तसूक्ष्म पृथ्वीप्र० (पर्याप्तिनिरूपणम् ) । १३ श्लक्ष्णखर पृथ्वीप्र० १४ ऋक्ष्णकृष्णादि (७) मृत्तिकाप्रज्ञा २४ ** " २६ 22 पना | १५, १३* खरपृथ्वीशर्करादि (४०), योनयः, पर्याप्तनिश्रयोत्पत्तिः । २८ १६ सूक्ष्मबादरपर्याप्तापर्या साप्कायप्र० । २९ १७ सूक्ष्मबादरपर्याप्तापर्याप्ततेजस्काय । २९ " १८ सूक्ष्मबादरपर्याप्तापर्यासवायुकाय ७ । ३० २२, १४* सूक्ष्मवाद र वनस्पतिप्र० १९ पर्याप्तापर्याप्तसूक्ष्मवप्र० ३ २०, प्रत्येकसाधारणचादरव०प्र० २१, वृक्षादि (१२) बादरवः प्र० २२, १४* । २३, ४६* निम्बाम्राकास्थिक १७*अस्थिकादिबहुबीजवृक्ष २०*वृन्ताकादिगुच्छ २५ " सेचनकादिगुल्म२८* पद्मादिलता २९*पुंस्फल्या दिवली ३४ इक्ष्वादिपर्वग३६* साण्डिकादितॄण ३८* तालादिवलय ४०# आर्यावरोहादिहरित ~62~ ४३. शाल्याद्योषध्युदकादिजलरुहआयादिकुहुणप्र०, एकानेकजीवस्कन्धादिषु श्लेषवृत्तितिलपर्पटिकादृष्टातौ४६ * । ३४ २४, ८३ अवकायाः साधारण भेदाः ५३* संख्याऽसंख्यात जीवशृङ्गाटक जीवानन्तप्रत्येक मूलादिलक्षणम् । ८३* ३६ २५, ९६* अनन्तप्रत्येकचिह्नमेदाः । ३८ ९८* मूलप्रथमपत्रयोरेककर्तृकता ९७* किशलयोऽनन्तकायः ९८ । ३९ २६, ११०* साधारणानां युगपदुत्पश्यादि, अनन्तशरीरदृश्यता, अनन्तप्रत्येकमानं (गोला निगोदाध) १०६, सूक्ष्मानामाज्ञाप्राद्यत्वम् १०७* प्र०, प्रज्ञा ० बृहद् विषयानुक्रमः ॥ ४७ ॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपांο विषयानुक्रमे ॥ ४८ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" 1 मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) पर्याप्त पर्याप्त वनस्पति संख्या, कन्दादीनां त्वगादिष्यनियतादियोनिः ११०* । २७ पुताकृम्यादिद्वीन्द्रियप्रज्ञापना (योनिकुलयोर्भेदः) ४१ ४१ २८ औपयिकादित्रीन्द्रियप्र० । ४२ २९, १११ अधिकादिचतुरिन्द्रियप्र० । ३० नैरयिकादिपञ्चेन्द्रियप्र० । ३१ रत्नप्रभादिनारकप्र० । ३२ जलचरादितिर्यक्प्र० । ३३ मत्स्यादि (५) ४क्ष्णमत्स्याद्यस्थि कच्छपादिदिल्यादिप्राहसोण्डादिमकरादिजलचरप्र० 39 ४३ " "2 ४४ ३४ अश्वाद्येकखुरोष्ट्रादिद्विखुरहस्त्यादि गण्डीपद सिंहादिसनख चतुष्पदमः ॥४५ ३५ आशीविषादिदव कर दिव्याकादिमुकुल्या जगराऽऽशलिकमहोरगोरः परिसर्पनकुलादिभुजपरिसर्पप्र० । 8: ३६, ११२* वल्गुयादिचर्मपक्षिटङ्कादिरोमपक्षिसमुद्र विततपक्षिप्र०, (कुलकोटिसंग्रहः) ११२* । ३७, १३३* संमूर्चिछमनरोत्पत्तिस्थानकर्माकर्मभूम्यन्तरद्वीपकमनुष्याधिकारः (युगलिकवर्णनम् ), शकादयो म्लेच्छाः, ऋद्धिक्षेत्र जाति कुलकर्मशिल्पभाषाज्ञानदर्शनचारित्रार्याः, (नि ~63~ ५० ६८ सर्गादिभेदाः, निश्शङ्कितादय आचाराः परिहारविशुद्धिः ) । ३८ सप्रभेदभवनवास्यादिदेवप्रज्ञापना । ७१ ॥ इति प्रथमं प्रज्ञापनापदम् ॥ ३९. सूक्ष्मबादरपर्याप्त पर्याप्तपृथिव्यप्तेजसां स्थानानि (शिष्यप्रत्ययाय गौतमप्रश्न, तिर्यगलोकतट्टे च । ७७ ४० बादरादिवायुवनस्पति स्थानानि । ४१ द्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियस्थानानि । ४२ नारकाणां स्थानम् (सवर्णनम् ) । ४३, १३७* रत्नप्रभादिनारकस्थानानि सवर्णनानि । " ४४ पञ्चेन्द्रिय तिर्यस्थानानि । ४५ मनुष्यस्थानानि । 8 ७८ ८१ ८४ "" 22 प्रज्ञा बृहदूविषयानुक्रमः ॥ ४८ ॥ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा० विषयानुक्रमे २६ प्रज्ञा० यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए | ४६, १४९* सवर्णनभवनपत्यादिदक्षि- | स्पर्शलक्षणसुखपर्यायाश्च। ११३ पर्याप्ताल्यबहुन्वम् । णोत्तरतद्भेदस्थानानि । ९५ ॥ इति द्वितीय स्थानपदम् ॥ ६१ बादरबादर पृथ्व्याघल्पबहुत्वम् । १२९/ ४७ सवर्णनव्यन्तरस्थानानि । ९७/१८१* दिगादीनि द्वाराणि (२७)। ११४ ६२ सूक्ष्मसूक्ष्मज्यादिबादरबादरपृथ्व्या४९, १५४* पिशाचतद्भेदस्थानानि ४८, | ५५ जीवानां दिगनुपातेनाल्पबहुत्वम्। । वल्पबहुत्वम् । १५१, अनपर्णिकादिस्थानानि १५५ ६४ सयोगमनोयोम्या(५)द्यल्पबहुत्वम् ९८५६ पृथिव्यप्तेजोवाय्वादीनां सिद्धान्तानां । ६३, सद्बदस्त्रीवेदाद्यल्पबहुत्वम् ६४।। ५. ज्योतिष्कस्थानानि। ९९ दिगनुपातेनाल्पबहुत्वम् । ११९/ ५१. वैमानिकस्थानानि। १००५७ मारकतिर्यग्देवसिद्धानां पश्चाष्टगति- | ६६ सकषाय्यादि६५सलेश्यायल्प५२ सौधर्मदेवस्थानतदिन्द्रवर्णनम् । १०१ रूपेणाल्पबहुत्वम् । १२० बहुत्वम् ६६ । १३६ ५३,१५८* ईशानादिदेवस्थानवर्णन, |५८ सैकादी(७)न्द्रियाल्पबहुत्वं, ओघ- ६८ सम्यदृष्ट्यादि ६७ आभिनिसामानिकात्मरक्षकविमानसंख्या च । । पर्याप्तापर्याप्तबिशेषितं च । १२२ बोधिकज्ञान्याद्यल्पबहुत्वम् ६८ ॥१३७ १०६ ५९ सकायपृथ्वीकायाय(८)रूपबहुत्वम्। ७२ चक्षुर्दर्शन्यादि६९ संयतादि७०५४,१७९ सिद्धानां स्थानं तन्नाम साकारोपयुक्तादिआहारकास्वरूपे, अपतिघातसंस्थानावगाहना- | ६० सूक्ष्मसूक्ष्मपृथ्व्यादितत्पर्याप्ता द्यल्पबहुत्वम् ७२। १३८ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥१९॥ ~64~ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक प्रज्ञा देखीए विषयानुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपांश IS७८ भाषकादि७३ परीत्तादि७४पर्याप्तदि- ८५ ऊर्धादिक्षेत्रेवेकेन्द्रियतदपर्याप्त शानामेकादिप्रदेशावगाडानामेकादिविषयानुक्रमेश ७५सूक्ष्मादि७६सश्यादि७७- पर्याप्तानामरूपबहुल्बम् । समयस्थितिकानामेकादिगुणकालका॥५०॥ भव्यायल्पबहुत्वम् ७८। १४०८६ ऊर्ध्वादिषु द्वीन्द्रियादितदपर्याप्त दीनां पुद्गलानामल्पबहुत्वम् । १६१ ७९ धर्मास्तिकायादीनां द्रव्यप्रदेशोभयैर- | पर्याप्त नामल्पबहुत्वम् । १५३/ ९३ गर्भव्युत्क्रान्तिकादि(९८)सर्वजीवाल्पबहुत्वम् , (कालस्यानन्तगुण- ८७ ऊर्ध्वादिषु पञ्चन्दियतदपर्याप्त पचहुत्वम् (महादण्डकः)। १६८ स्वसिद्धिः)। १४३ पर्याप्तानामल्प०। १५४/ ॥ इति तृतीय पहुवक्तव्यतापदम् ।। चरमाचरमाल्यबहुत्वम् । ८८ ऊर्वादिषु पृथ्ख्यादीनामोषिकापर्याप्त- | ९४ ओधिकरत्नप्रभादितदपर्याप्त| ८१ जीवपुद्गलाद्धासर्वद्रव्यप्रदेशपर्याया- | पर्याप्तानामरूप। १५५] पर्याप्तनारकाणां परापरे स्थिती। ५७० रूपबहुत्वम् । १४४८९ ऊर्ध्वादिषु त्रसानामोधिक पर्याप्त- १०१ देवदेवीसप्रभेदभवनपत्यादिऊलोकादिक्षेत्रानुपातेनाल. । पर्याप्तानामरूप। देवदेवीनामपर्याप्तपय तानां परापरे १४५ ९० आयुर्वन्धकादी(१४)नामल्प० । १५८ स्थिती २५ भोषिकसूक्ष्मवादर८३ क्षेत्रानुपातेन पञ्चष्टगत्यल्प० । १४८| ९१ त्रैले क्यादिपूर्वादिषु च पुद्गलानां पृथिव्यादीनां ९६ द्वीन्द्रियादीनां ८४ क्षेत्रानुपातेन भवनपतितदेवीव्यन्तः | द्रव्याणां चास्यबहुत्वम् । १६० ९७ ओधिकसंमूच्छिमगर्भजजल रायपबहुत्वम्। १५१ ९२ परमाणुसंख्याऽसंख्याऽनन्तपदे- चरचतुष्पदोरोभुजपरिसर्पखचराणां 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~65~ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. विषयानुक्रमे यहां प्रज्ञा० बृहद्विषयानुकर देखीए ॥ ५ ॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए ९८ ओघसंमूछिमगर्भजनराणां | ११० असुरदीनां १.५ पृथ्व्यादीनां रूप्यजीवपर्यायाः ११९ पर९९ व्यन्तरदेवदेवीना १००१०६ द्वीन्द्रियादीनां १०७ माण्वादीनां द्रव्यप्रदेशावगाहनाज्योतिष्कतर्देवीचन्द्रादितद्देवीनां पञ्चेन्द्रियतिरश्चां१०८मनुष्याणां स्थितिकालादिपर्यायैस्तुल्यहीन परापरे स्थिती १०१। १७६ १०९व्यन्तरादीनां द्रव्यादिभिः स्वादि१२०, जघन्यमध्यमोत्कृष्ट१०२ वैमानिक दे देवीसौवर्मशान पर्यायाः ११०। १८६ प्रदेशानां पर्यायतुल्याधिकत्वादि देवपरिगृहीतापरिगृहीतदेवीसन १११ नारकाणां जघन्यमध्यमोत्कृष्टा २०४ कुमारादिदेवानां परापरे स्थिती। वगाहनास्थितिकालादिज्ञानादि- ॥ इति पञ्चमं विशेषपदम् ॥ पर्यायैररुपबहुत्वम् । १८९ १२२, १८२* नारकादिसिद्ध्यन्तगतीना।। इति चतुर्य स्थितिपदम् ॥ ११७ असुरादीनां ११२ पृथ्व्यादीना मुत्पादोद्वर्तनाविरहः। २०५ १०३ जीवनारकासुरकुमारादीनां पर्यायाः।। ११३ द्वीन्द्रियादीनां ११४ १२४ रत्नप्रभाद्यसुरादिपृथ्व्यादिद्वी पञ्चेन्द्रियतिरश्चां ११५ मनुष्याणां न्द्रियादिसंमूछिमगर्भनतिर्यग१०४ नारकाणां द्रव्यप्रदेशावगाहना ११६ व्यन्तरादीनां पर्यायाणां नरज्योतिष्कसौधर्मादिसिद्धोत्पादस्थितिकालादिवर्णादिमत्यादिज्ञान- | तुल्याधिकत्वादि ११७। १९६/ विरहः १२३ रत्नप्रभादिपूरर्तनाया दर्शनपर्यायैरल्पबहुत्वम्। १८४|१२१ अरूप्यजीवभेदाः (१०)११८ । विरहः १२४। CARE 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि PA॥५१ ~66~ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्रीउपां ० विषयानुक्रमे ॥ ५२ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) १२६ नारकादीनां सान्तर निरन्तरमुत्पत्तिः १२५ तथोद्वर्त्तना १२६ । २०८ १२८ उत्पाते नारकरत्नप्रभाद्यसुरादिसिद्धान्तानामेकसमयसंख्या १२७, उद्वर्त्तनायां संख्या १२८ २०९ १३७, १८४* सममेदनारकाणां १२९, १८४* असुरादीनां १३० पृथ्व्यादीनां १३१ द्वीन्द्रियादीनां १३२ पञ्चेन्द्रियतिरश्वां १३३ मनुष्याणां १३४ व्यन्तराणां १३५ ज्योतिष्काणां १३६ सप्रभेदवैमानिकानां चागतिविचारः १३७ । २१४ १४३ नारकाणां १३८ असुरादीनां १३९ पृथ्व्यादीनां १४० पञ्चेन्द्रियतिर १४१ मनु या १४२ व्यन्तरादीनां च गतिः १४३ । २१६ १४४ नारकादीनां परभवायुर्बन्धकालः । २१७ १४५ जातिनामनिधता युकादीनामाकर्षाः । ॥ इति पष्टं व्यु क्रान्तिपदम् ॥ १४६ नारकासुरादिपृथिव्यादिमनुष्यव्यन्तरज्योतिष्कसप्रभेदवैमानिकामुच्छ्वासान्तरम् । ॥ इति सप्तममुच्छ्। सपदम् ।। ~67~ १५० ॥ इत्यष्टमं सज्ञापदम् ॥ शीतोष्णमिश्रा योनयः १४९ नारकासुर पृथ्वी संमूच्छिम गर्भजतिर्यग्मनुष्यव्यन्तरादीनां योनिः शीतयोन्याद्यरूपबहुत्वं च १५० । २२६ १५१ नारकादीनां सचितादियोनिः । २२७ १५२ नारकादीनां संवृता दियोनिः । " २२११५३ कूर्मोन्नादियोनिविचारः । २२८ ॥ इति नवमं योनिपदम् ॥ १४२ आहारादि (१०) सज्ञा, नारकादीनां १४७ बाहुल्यसन्ततिभ्यां सज्ञोपयुक्त विचारः, गतिभेदेन सज्ञाऽल्पबहुत्वं च । २२४ २१८ प्रज्ञा ० बृहद्विषयानुक्रमः ॥ ५२॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक प्रज्ञा० यहां श्रीउपां. विषयानुक्रमे ॥ ५३॥ २३० देखीए विषयानुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए १५४ रत्नप्रभादीनां चरमाचरमत्वादि- स्थितिभवादिः (११) चरमा- १६७ जीवादीनां भाषकाभाषकविचारः विचारः। चरमत्वं च । २४६१६६ जीवादीनां सत्यामृषादि१५६ रत्नप्रभादीनामचरमचरमतदन्त- । ॥ इति दशम चश्माचरमपदम् ॥ | भाषत्वम् । १६७। २६० प्रदेशानां द्रव्यपदेशोभयाररूप १६१ अवधारिण्याः भाषायाः सत्यादिता। | १६९, १०.८* भाषाया द्रव्याबगाहबहुत्वं १५५ अलोकस्य लोका २४८ स्थितिवर्णादिस्वष्टावगाढादिलोकयोरचरमचरमाद्यल्पबहुत्वम्। | १६३ गोमृगादिव्याज्ञापन्यादिभाषा २५२ बिचारः १६८, १९८", सान्तर२३२/१६३ बालादीनां भाषाऽऽहारयोर निरन्तरभिन्नाभिन्नग्रहणविचारः । १५८, १९०* परमाणोश्वरमाचरमा- ज्ञानेऽपि प्रवृत्तिः। २५३ १६९। वक्तव्यतादिभङ्गाः (२६) १५७, | १६४ एकबहुवचनस्त्रीपुंनपुंसकादिभाषा। |७३ खण्डप्रतराया(4)मेदाः, तद द्विपदेशादीनां चरमत्वादि २५५ स्यत्वादि १७०, नारकादीनां १९०५५८ २४२ १६५, १९७* भाषाया आदिपबह स्थितादिभाषापुद्गलग्रहण १७१ 1१५९ संस्थानतत्संख्याप्रदेशमानावगाहाः, | संस्थानान्ताः, पर्याप्तापर्याप्तभेदाः, - सत्यादितया ग्रह्णनिसर्गौ१७२ तचरमत्वादि च। २४४ सत्यमृषामिश्रव्यवहारभाषाभेदाः । एकद्विवचनादि(१६)वचनानि १६०, १९१* जीवनारकादीनां गति- (१०-१०-१०-१२)। २५९/ २६७ LEADERER 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥५३ ~68~ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्रीउपां० विषयानुक्रमे ॥ ५४ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) २७० १७५ भाषाचतुष्केऽपि संयतासंयतमोराराधनाविराधने १७४ सत्यादिभाषका रुपबहुत्वम् १७५ / २६८ ॥ इत्येकादशं भाषापदम् ॥ १७६ शरीरभेदाः नारकादीनां शरीरसंख्या च । १७७ औदारिकादीनां बद्धमुक्तापबहुत्वम् । १७८ नारकाणामौदारिकादिषु बद्धमुक्तविचारः । १८० असुरादीनां १७१ पृथ्व्यादीनां द्वीन्द्रियादीनां मनुष्याणां व्यन्तरादीनां चौदारिकादिवद्धत्वादि विचारः १८० । २७४ २७५ २८४ || इति द्वादशं शरीरपदम् ॥ १८२ जीवाजीवपरिणामी १८१ गत्यादि (१०) परिणामाः १८२ । २८६ १८३ गतीन्द्रियकषाय लेश्यायोगोपयोगज्ञानदर्शनचारित्रवेदभेदास्तैर्नारिकादिविचारश्च । १८५, २००* बन्धनगतिसंस्थानादयो( १ ) ऽजीवपरिणामाः १८४ विश्वरूक्षबन्धस्पृशदस्पृशनत्यादिपरिणामविचारः १८५ २००*। ॥ इति त्रयोदशं परिणामपदम् ॥ १८८ नारकादीनां क्रोधादयः १८६ क्रोधादीनामात्मपरोभयनि २८. ~69~ २८७ प्रतिष्ठितत्वं क्षेत्र वास्तुशरीरोपधिभ्य उत्पत्तिः १८७ अनन्तानुबन्ध्याद्या भेदाः १८८। २९१ १९०, २०१* आभोगानाभोगोप शान्तानुपशान्तक्रोधादयः १८९ क्रोधादिभिरष्ट कर्मचयोपचयबन्धोदयोदीरण वेदननिर्जराः १९०, २०१ । ॥ इति चतुर्दशं कपायपदम् || २०३ संस्थानबाहल्यादिसङ्ग्रहणीगाथे २९२ १०३ । १९१ इन्द्रियाणां भेदसंस्थानबाहल्य पृथक्त्वमदेशविचारः १९१ / २९५ १९२ इन्द्रियाणामवगाहतदरूपबहुत्वे २९३ NAADA प्रज्ञा० बृहद्विषयानुक्रमः ॥ ५४ ॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपां० विषयानुक्रमे ।। ५५ ।। उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" 1 मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक - सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) कर्कशगुर्वादिगुणाल्पबहुत्वं च । २९६ १९३ नरकासुरादिभेदेनेन्द्रिय तत्संस्थानादिविचारः २९८ १९४ स्पृष्टादिशब्दादिश्रवणादि २९९ विचारः । १९६ श्रोत्रादीनां जघन्योत्कृष्ट विषयमानं (आत्मा शुलेनेन्द्रियमानं चक्षुषः प्रकाश्ये) । १९६ लोकव्यापिचरमनिर्जरापुद्गलानामभेदाद्यज्ञानेऽप्याहरणम् । ३०४ १९७ आदर्शादिषु स्वप्रतिभागप्रेक्षणम् । ३०५ ३०२ १९८, २०६ आवेष्टितविततयोः समामोsवगाहः, आकाशस्य धर्मास्ति कायादिभिर्व्याप्तिः, जम्बूद्वीपादेधर्मादिभिः, द्वीपसमुद्रपरिपाटी, लोकालोकयो धर्मादिस्पर्शविचारः । ३०८ || इन्द्रियपदे प्रथमोद्देशः ॥ २०७-८* इन्द्रियोपचयनिर्वर्तना दिस ३०९ हगाथे। १९९ नारकादीनामिन्द्रियोपचयनिर्वर्तनतत्समय मानलब्ध्युपयोगाद्धातज्जघन्योत्कृष्ट रुपबहुत्वावगाहना | ३१० २०० अपायेाऽवग्रहमेदाः नारकादीनां तत्संख्या च । २०१ नारकादीनां भूतानागतबद्धमुक्ते ~70~ ३११ न्द्रियसंख्या । ३१७ ॥ द्वितीयोद्देशः, इन्द्रियपदं १२ ॥ २०२ सत्यमन आदयः प्रयोगा: (१५) । ३१९ २०३ नारकादीनां प्रयोगसंख्या | ३२० २०४ जीवादिषु सत्यमन आदिप्रयोगभङ्गाः । २०५ प्रयोग (१५) तदुबन्धच्छेदोपपात(५) विहायो (१७) गति मेदाः (स्पृशदस्पृशदुपसम्पद्यमानादि विहायोगी | ३२५ ३३० ॥ इति षोडशं प्रयोगषदम् ॥ २०७, २०९* (लेश्याया योग परिणाम त्वसिद्धिः) आहारसमशरीरादिसंग्रहणी २०९* नारकाणां समा प्रज्ञा० बृहद्विषयानुक्रम ॥५५॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए श्रीउपा. विषयानुक्रमे प्रज्ञा० बृहद् विषयानुक्रमः दीप क्रमांक के लिए देखीए हारशरीरोच्छ्वासादिविचारः २०६ । ॥ इति लेश्यापदे प्रथमोद्देशकः॥ | भवनपतिज्योतिष्कवैमानिकसमकर्मवर्णलेश्यावेदनाविचारः |२१६ षड् लेश्याः २१४, नारका देवदेवीतदुभयसर्वेषामल्पबहु २०७। दीनां लेश्याविभागः २१५ त्वर२०कृष्णादीनां लेश्यानाम२०८ नारकाणामारम्भिक्यादिक्रिया- | सलेश्यादीनामरूपबहुत्वम् २१६। ल्पमहर्दिकत्वम् २२१ । ३५२ ऽऽयुरुत्पातसमत्वविचारश्च । ३३५ | . ३४५ ॥ इति लेश्यापदे द्वितीयोदेशकः ॥ २०९ असुरकुमारादीनां समाहारस्वादिः | २१८ कृष्णलेश्यादिनारकाणाम २२२ नारकादीनामुत्पादोद्वर्तनयोः समविचारः। ३३८| बहुत्वं २१७ तिर्यगेकेन्द्रिय- लेश्यत्वं न पृथ्व्यादिषु । ३५५ २१. पृथ्व्यादीनामपि, पञ्चेन्द्रिये पृथ्व्यप्तेजोवायुवनस्पतिद्वि- | २२३ नारकाणां लेझ्याभेदेनावधिसंयतासंयतानां तु क्रियात्रयम् । ३४० त्रिचतुःपञ्चेन्द्रियसंमच्छिमगर्भज- भेदः । ३५७ २११ मनुष्याणां समाहारत्वादि, अप्र- तत्स्त्रीतदुभयसंमूछिमस्त्रीगर्भज- २२१ लेश्यासु मत्यादिज्ञानविचारः। ३५८ मत्ते मायाप्रत्ययैव । ३४१ स्त्रीसंमूछिमगर्भजस्त्रीपश्चेन्द्रियः । ॥ इति लेश्यापदे तृतीयोद्देशः॥ २१२ व्यन्तरादीनामपि समाहारत्वादि।, तिर्यकत्रीतियक्तीलेश्याऽस्म- २२५, २१०* लेश्यापरिणामवर्ण२१३ नारकादीनां लेश्याभेदे समा बहुत्वम्। ३४७ रसादि(१४)द्वारसंग्रहणी२१.* हारत्वादिचिन्ता। . . ३५३/ २२१ मनुष्याणामपि२१९देवदेवी कृष्णादेनीलादितया परिणामश्चा३६० समाधि. 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥५६॥ ~71~ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपां. यहा प्रज्ञा बृहद्विषयानुक्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए २२६ कृष्णादिलेश्यानां वर्णाः। : ३६४ ॥ इति लेश्यापदे पश्चमोद्देशकः॥ | निन्द्रियौघाद्यपर्याप्तपर्याप्तकाय२२७ तासां रसवर्णनम् । ३६६ २३२ मनुष्यमानुपीकर्मभूमिभरतैर स्थितिः। २२८ तासां गन्धवर्णनं, अविशुद्धा- -वतान्तरद्वीपहैमवतारण्यक्त- | २३५ सकायाकायौपृथिव्याद्यपर्याप्त प्रशस्तसंक्लिष्टशीतरूक्षदुर्गतिगामि- । हरिवर्षरम्य गगनुष्यमानुषीणां पर्याप्तकायस्थितिः। ३८१ त्वानि सप्रतिपक्षाणि च। ३६७/ लेश्याष? ऽल्पबहुत्वं, समा- २३६ ओधसूक्ष्मवादरपृथिव्यादिनिगोद | २२१ तासां त्रिनवविधादिपरिणामो नान्यलेश्याकगर्भजनकत्वं च । ३७३ | तदपर्याप्तपर्याप्तकायस्थितिः। ३८२ ऽनन्तपदेशिकताऽसंख्यप्रदेशा | ॥ इति ले पापदे षष्ठोद्देशकः ॥ |२३७ सयोगमनोयोग्यादिकाय वगाहोऽनन्ता वर्गणाध । ३६८ ॥इति सप्तदश लेझ्यापदम् ।। स्थितिः। २३० तासां स्थानानि, जघन्योत्कृष्ट- २३३, २१२ जीवगतीन्द्रियादि- २३८ सामान्यविशेषवेदावेदस्थितिः। ३८५ स्थानानां द्रव्यप्रदेशोभयैरल्य (२२)द्वारसग्रहणीगाथे २१२२ २३९ सामान्यविशेषकषाय्यकषायिबहुत्वं च। जीवस्थितिः, नारकतिर्यग्मनुष्यः | स्थितिः। ॥ इति लेश्यापदे चतुर्थोद्देशकः ॥ | देवतत्स्त्रीसिद्धनारकाद्यपर्याप्तपर्याप्त- | २४० सलेश्यकृष्णालेश्याद्यलेश्यस्थितिः।। २३५. लेश्यानां न तद्रूपतादिपरिणामः, - स्थितिः। आकारप्रतिभागी स्याताम्। ३७२/ २३४ ओषेकद्वित्रिचतुःपञ्चन्द्रियाऽ- २४१ सम्यम्हएयादिस्थितिः, (एका 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि २८७ ~72~ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा. विषयानुक्रमे यहां विषयानुक्रमः देखीए ॥ ५८॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए क्षराश्रद्धाने रुचिनिन्दयोरभावे- दीनां २५२धर्मास्तिकायादीनां |२५९ उद्धृतनारकाणां नरतिर्यग्गत्यो ऽपि मिथ्यादृष्टित्वम् ) । ३८९/ २५३चरमाचरमयोश्च कायस्थितिः धर्मश्रवणश्रद्धाज्ञानशीलाद्यवधि२४२ ओघमत्यादिज्ञान्यज्ञानिस्थितिः। । २५४। संयतत्वादिप्राप्तिविचारः। ४०० ३९० इत्यष्टादशं कायस्थिति पदम् ॥ २६० असुरादीनामुद्वर्तना। , | २४३ चक्षुर्दर्शन्यादिस्थितिः (विभङ्गे २५५ जीवनारकासुरादिषु दृष्टिविचारः। २६१ पृथिव्यादीनां परत्र धर्मश्रवणादि। ऽवधिदर्शनबिचारः)। . ३९१]। २४५ संयतादिस्थितिः२४४, साकारो- ॥ इत्यकोनविंशतिः सम्यक्त्वपदम् ॥ २६३ द्वीन्द्रियादीनां२३२ पश्चेन्द्रियपयोगादिस्थितिः २४५) ३९२ २५८, २१३* नारकाद्यन्तक्रियाऽन तिरश्च म्। २६३। ४०२ छद्मस्थकेवल्याद्याहारकानाहारक- न्तरादि(१०)द्वारगाथार १३ | २६४ रत्नप्रभादिनारकाणां तीर्थकृत्वास्थितिः । जीवनारकादीनामन्तक्रियाविचारः न्तक्रियामनःपर्यवादिलाभप्रश्नः । भाषकाभाषकयोः२४७काय२५६नारकादीनामनन्तरपरम्परा ४.३ संसारपरीत्तापरीत्तादीनां२४८ गताना२५७अनन्तरागतनार- | २६५ रत्नप्रभादिनारकादीनां चक्रिवल. पर्याप्तादीनां२४९सूक्ष्मादीनां कादीनामेकसमयान्तक्रिया वासुदेवसेनापत्यादित्वलाभ२५० सम्यादीनां२५१भव्या-. । विचारश्वः २५८३९८ विचारः । ४०४ MANDARMERESENSEXRRERA 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~73~ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक औउपां. विषयानुक्रमे देखीए ॥ ५९॥ विचारः। दीप क्रमांक के लिए देखीए २६६ असंयतभव्यद्रव्यदेवादि(१४) २७१ वैक्रिपशरीरस्य स्वामिनः। ११६ परस्परं संवेधश्च। ४३३ प्रज्ञा जघन्योत्कृष्टोपपातविचारः। ४०६ २७२ तस्य संस्थानम् । ४१७ २७९ तेषां द्रव्यप्रदेशोभयैररुपबहुत्वं बृहद् । विषयानुक्रमः २६७ असञ्झ्यायुभेदारूपबहुत्व- २७३ वायुकायरत्नप्रभादिनारकासुर २७८,जघन्योत्कृष्टावगाहना ४०७|| कुमारादीनां वैक्रियमान(प्रस्तट स्वबहुत्वम् २७१। ४३५ ॥ इति विंशतितममन्तक्रियापदम् ॥ | भेदेन)। ४२३ ॥ इत्ये कविंशतितम शरीरपदम् ॥ २६८, २१४ विधिसंस्थानपमाणादि. | २७४ आहारकस्य स्वामिसंस्थाना- २८० कायिक्यादिक्रियाणामनुपरतादि(१०)द्वारसंग्रगाथा२१४। वगाहनाः, (मनः पर्यवादिलब्धि- भेदाः। ४३६ शरीरभेदाः, औदारिकस्यामि विचारः)। ४२६ २८१ हिंसामृषावादादिभिः षड़जीबविचारश्च । ४१० २७६ तेजसस्य स्वामिसंस्थाने२७५ निकायादिषु क्रिया। १३९/ २६९ एकेन्द्रियाद्यौदारिकशरीरस्य । जीबैकेन्द्रियपृथिव्यादिनामनुः | २८३ प्राणातिपातादीनां सप्तविधबन्धासंस्थानम् । तरान्तानां मरणसमुद्घाते तैज- दिविचार:२८२,ज्ञानावरणीया२७०, २१६* एकेन्द्रियपृथिव्याद्य साऽवगाहना, कार्मणस्य स्वाम्यादि दिबन्धे क्रियात्रयादिविचारः, पर्याप्तपर्याप्तभेदेनौदारिकावच २७६ । जीवनारकादीनां जीवनारकादिगाहनामानम् २१६, २७० ॥ ४१४ | २७७ औदारिकादीनां चयोपचयदिशः, | भ्यस्त्रिक्रियत्वादिविचारः(गुण । 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~74~ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सुत्राक श्रीउपा० प्रज्ञा विषयानुक्रमे विषयानुक्रमः देखीए ॥६०॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए चन्द्रबालचन्द्रकुलपुत्रदृष्टान्तः) | २९१ रागद्वेषाभ्यां तबन्धः (नय राग- | स्थितिबन्धमानम्। २८३। ४५७/२९८ ज्ञानावरणीयादिजघन्यस्थिति२८४ कायिक्यादीनां संवेधः। ४४६/२९२ ज्ञानावरणीयादिवेदकाः। बन्धस्वामिनः । २८५ आरम्भिक्यादीनां स्वामिनः २९३ ज्ञानावरणीयादीनां दशनवाट २९९ ज्ञानावरणीयाधुत्कृष्टस्थितिसंवेधश्च । . ४४८ पञ्चचतुश्चतुर्दशाष्टपश्चविधा बन्धस्वामिनः। ४९ २८८ हिंसाविरत्यादिषु स्वामिविषयाः अनुभावाः । ४६५ ॥ इति त्रयोविंशतितम कर्मप्रकृतिपदम् ।। २८६,सप्तविधयन्धादिविचारः | २९४ कर्मणां मतिज्ञानावरणादि- ३०० ज्ञानावरणीयादिवन्धे तदन्यससा२८७,आरम्भिक्यादिक्रियातद- (१५८)भेदाः। ४७ टादिबन्धाबन्धादिभङ्गाः। ४१४ ल्पबहुत्वविचारः २८८। ४५२/ २९५ सप्रभेदानां ज्ञानावरणीयादीनां इ ति चतुर्विंशतितम कर्मप्रकृतिबन्धपदम् ।। ।। इति द्वाविंशतितम क्रियापदम् ।। | परापरे स्थिती अबाधा निषेकश्च। | ३०१ ज्ञानावरणीयादिबन्धेऽष्टसम्वविधादि२९०,२१७ प्रकृतिबन्धादिद्वार(२) | ४८४ वेदनभङ्गाः। गाथा २१७०, नारकादीनां कर्मः | २९६ एकेन्द्रियस्य ज्ञानावरणीयादि- ॥ इति पञ्चविंशतितमं कर्मवेदपदम् ॥ प्रकृतयः२८९,ज्ञानावरणोदया- I स्थितिबन्धः। ४८६३०२ ज्ञानावरणीयादिवेदने सप्ताष्टविधादिदिनाऽष्टकर्मप्रकृतयः २१०। ४५५, २९७ द्वीन्द्रियादीनां ज्ञानावरणीयादि- । बन्धमङ्गाः । 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ४९७ ॥६ ॥ ~75~ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहा देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए IS| इति षड्विंशतितमं कर्मवेदवन्धपदम् ॥ नामाहारार्थादि३०५। ५.५ हारकत्वादिभङ्गाः। ५२०४ प्रज्ञा विषयानुक्रमे ३०३ ज्ञानावरणीयादिवेदने सप्ताष्टविध- |३०६ पृथ्व्यादिनामाहारार्थतद्दिगादि। ५०६/२१२ ज्ञान्यज्ञानिसयोगसवेदसशरीरा- I विषयानुक्रमः ॥६ ॥ वेदनम् । ४९८ ३०७ द्वीन्दियादिमनुष्यन्यन्तरज्योति- हारादिपर्याप्तादिष्वाहारकत्वा॥ इति सप्तविंशतितम कर्मवेदवेदपदम् ॥ कसौधर्मादीनामाहारादि । ५०८ दिभनाः। ५२४ ३०५, २१९* सचित्ताहारार्थादि(८). ३०८ नारकादीनामेकेन्द्रियाद्याहार- ॥ इत्याहारपदे द्वितीयोदेशकः॥ द्वाराणि२१८५, एकेन्द्रियशरीर- लोमाद्याहारविचारश्च । ५१० ॥ इत्यष्टाविंशतितममाहारपदम् ॥ लोमाहारमनोभक्षिद्वाराणि२१९, | ३०९ नारकादीनामोजोमनोभक्षितादि- | ३१३ नारकासुरादीनां साकारानाकानारकाणां सचित्ताद्याहारविचारः, | विचारः। रोपयोगसंख्या। ५२८ आमोगानाभोगाहारकालः, अनन्त- | ॥ इत्याहारपदे प्रथमोद्देशकः ॥ ॥ इत्येकोनत्रिंशश्चममुपयोगपदम् ।। प्रदेशिकादिपुद्गलैराहारः, आहारो- | २२०* आहाराभव्यादि(१३)द्वाराणि ।५१२/ ३१४ नारकादीनां साकारा(६)ऽनाकारच्वासयोरभीक्ष्णं, कादाचित्कत्वे | ३१० जीवनारकादीनामाहारानाहारक- । (३)पश्यत्ताविचारः। ५३१ असंख्येयभागे, आहारोऽनन्त त्वभङ्गाः, भव्यसञ्झ्यादिजीवा- | | ३१५ केवलिन एकसमयेन ज्ञानदर्शनाभागे, आस्वादः,दुःखतयापरिणामः | दीनामाहारकत्वादिभङ्गाः। ५१६ भावः । ३०४,असुरादिस्तनितकुमारान्ता- | ३११ लेश्यादृष्टिसंयतसकषाय्यादिप्वा- | ॥इति त्रिंशत्तमं पश्यत्सापदम् ॥ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~76~ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ "प्रज्ञापना"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपा० विषयानुक्रमे देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए ३१६, २२१* जीवनारकादीनां सब्जि- | वधिविचारः ३२१ । ५४३ दीनामरूपबहुत्वम् ३२९। ५५३ मज्ञा० स्वादिविचारः । ५३५ ॥इति प्रयस्त्रिंशत्तममवधिपदम् ॥ ॥ इति चतुत्रिशत्तम प्रवीचारपदम् ॥ बृहद् विषयानुक्रमः ॥ इत्येकर्षिशनमै सक्षिपदम् ।। | ३२२, २२५* अनन्तरागताहारादि- ३३०, २२७* शीतद्रव्यशारीरादि३१७, २२२* जीवनारकादीनां संयत- (७)द्वारगाथे२२५ , नारकादी द्वारगाथे२२७, नारकादीनां खादिविचारः। नामनन्तराहारादिवैक्रियान्तस्य । शीतादिद्रव्यादिशारीरादिसातादि॥ इति द्वात्रिंशत्तम संयतपदम् ।। विचारः। दुःखादिवेदना। ५५६ ३१८, २२३* भेदविषयसंस्थानादि- | ३२३ नारकादीनामाहारपुद्लज्ञाना ३३१. नारकादीनामौपक्रमिक्यादि. (१०) द्वारगाथा२२३, भवः ज्ञानादि । वेदनाविचारः। प्रत्ययक्षायोपशमिकस्वामिनः । ५३९| ३२१ देवानां देवीतत्परिचारणादि ३३२ नारकादीनां निदाऽनिदा ३१९ नारकादीनामनुत्तरान्तानामवधि- ३२४कायस्पर्शरूपशब्दमनः वेदनाबिचारः क्षेत्रमानम् । ५४१ प्रवीचारविचार:३२५इच्छा- ॥ इति पञ्चत्रिंशत्तम वेदनापदम् ॥ ३२१ नारकादीनामबधेराकार:३२० मनस उपशान्तिः३२६देवशुक्र- २२८* वेदनादिसमुद्घातास्तत्स्वामिनश्च। 19 नारकादीनामन्तरदेशानुगामि- " | पुद्गलपरिणामः३२७स्पर्शादिवर्द्धमानपतिपात्यवस्थितेतरा प्रवीचाररीतिः३२८कायप्रवीचारा- | ३३३ वेदनादिसमुद्घातकालमानं, 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥६२॥ ~77~ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्रीउपां विषयानुक्रमे ।। ६३ ।। उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-४ “प्रज्ञापना" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक - सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) नारकादीनां समुद्घाससंख्या च ५६२ ३३४ नारकादीनामतीतानागतवेदना समुदूधाताः । ५६५ ३३५ बेदनाऽऽहारक केवलिसमुद्घाताः । ५६७ ३३३ नारकादेर्नास्कादित्वेऽतीता. नागतवेदन समुद्घातमानम् । ५६९ ३३७ तथैव कषायसमुद्घातमानम् । ५७२ ३३८ सर्वदण्डकानां सर्वदण्ड के पु समुद्ातमानम् । ३३९ नारकादीनां नारकादित्वे वेद नादिसमुद्वातमानम् । ३४१ समुद्घानां जीवानामरूप ५७५ ५७८ बहुत्वं ३४०, समुषातामां ३४१ ~78~ ५८१ ३४२ नारकादीनामतीतानागतक्रोधादि ५८८ समुद्घातसङ्ख्या । ३४३ क्रोधादिसमुद्घातापबहुत्वम् । ५९० ३४४ नाकादीनां छाद्मस्थिकसंमुद्घातसंख्या । ३४५ वेदना दिसमुद्घातज विश्वन्यासपुद्गलेभ्यस्त्रिक्रियत्वादि, मारणा समुद्घातव्या शिश्व | ५९६ ३४७ क्रियसमुद्घा क्षेत्रकालमानं, तेजससमुद्घाते, आहारके च ३४६, क्षेत्र व्याप्तिक्रिये, लोकव्या 13 पचर पनिर्जरापुनरुज्ञाना ज्ञानादि २६७१ ३५०, २३०* केवलिनः समुद्घात कारण ३४८, २३००, आवजकरणकालमानं ३४०, केवलिसमुद्घातस्तत्र योग ३५० १६०५ समुद्घातस्य मनोवचनकाय ३५१ योगाः (न पण्मासी शेषे )। ६०७ ३५२, २३१" योगनिरोधादिरीतिः, सिद्धस्वरूपं च । । इति पत्रिंशत्तमं समुद्धा तपदम् ॥ ॥ प्रशस्तिः ॥ ६११ ६१.१ ।। इति श्रीप्रज्ञापनाया बृहद्विषयानुक्रमः ॥ ६.१ प्रज्ञा ० वृहद्विषयानुक्रमः ॥ ६३ ॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपां ० विषयानुक्रमे ।। ६४ ।। उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ५+६ "सूर्यप्रज्ञप्ति + चन्द्रप्रज्ञप्ति " ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) [आगम- १६+१७] उपांग- ५+६ "सूर्य+चन्द्र प्रज्ञप्ति " अथ श्रीसूर्यप्रज्ञतेविषय सूचिः ८ मुहूर्त्तवृद्ध्यपवृद्धी । ९. २१ सूर्यस्य तिर्यकपरिभ्रमः वीरस्तुतिः १ । १ ९ दिवसरात्रि विषये मु० । २२ भेदघातकर्णकले विप्रतिपत्तयः तीर्थकरस्तुतिः २ । आगमस्तुतिः ३ । सूर्यज्ञप्तितिः ४-५ । १ मिथिलानगर्युद्यानवर्णनम् । २ समवसरणदिशावर्णनम् । ३, १५* प्राभृताधिकाराः ४, ६-७ प्रथमपाभृते प्राभृनमा भूतनामानि (<)1 ५, ८* सूर्यस्य प्रतिपत्तयः । ६, ९११* सूर्योदये अस्तमयनेषु च विप्रतिपत्तयः । ७, १२ १२ दशमप्राभृनाधिकारः । " 17 " १ 3 ६ ७ 29 " 13 १० १० सूर्यमण्डलानि । ५१. सूर्यमण्डल विषयः । १२ दक्षिणार्द्ध मण्डलसंस्थितिः । १३ उत्तरार्द्ध मण्डलसंस्थितिः । १४ चीर्णचरणम् । १५ अन्तरपरिमाणं विप्रतिपत्तयश्च (६) । २५ १६ १७ अवगाहनामानम् (५) । ३१ १८ विकम्पनमानविप्रतिपत्तयः (५) । ३२ १९ मण्डलसंस्थानविप्रतिपत्तय: (८) । ३६ २० मण्डल विष्कम्भविप्रतिपत्तयः (३) । ३८ ॥ इति प्रथमं प्राभृतम् ॥ ~79~ 22 ११ २१ "7 " (२) । ४८ २३ मुहूर्त्तगतिः विप्रतिपत्तयश्च (४) । ५२ ॥ इति द्वितीयं प्राभृनम् ॥ २४ प्रकार क्षेत्रपरिमाणम् । ॥ इति तृतीयं प्राभृतम् !! २५ प्रकाशसंस्थानम् । २६ २७ ॥ इति चतुर्थ प्राभृनम् ॥ लेश्याप्रतिघातः । ॥ इति पञ्चमं प्राभृतम् । ओजः संस्थितिः । ४५ ॥ इति षष्ठ्ठे प्राभृतम् ॥ २८ सूर्यवारकः । ६३ ६७ ७६ ७ सूर्य • विषयसूचिः ८३ ।। ६४ ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्रीउपां० विषयानुक्रमे ।। ६५ ।। **F उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ५+६ "सूर्यप्रज्ञप्ति + चन्द्रप्रज्ञप्ति " ] पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) मुनि दीपरत्नसागरेण ॥ इति सप्तमं प्राभृतम् ॥ २९ उदयसंस्थितिः । ॥ इत्यष्टमं प्राभृतम् ॥ ३० पौरुषीच्छायाप्रमाणम् । ३१ पौ० निर्वर्त्तनम् । ॥ इति नवमं प्राभतम् ॥ ३२ योगस्वरूपे नक्षत्राणां विचारः । ३३ नक्षत्रे मुहूर्तमानं चन्द्रम्य । ३४ नक्षत्राणां सूर्यण योगः । ३५ पूर्वादिभागाः । ३६ योगस्यादिः । ३७ कुलोपकुलानि । ३८ पौर्णिमा दिनक्षत्रम् । ३९ कुलोपकुलाधिकारः । ८४ ४१ नक्षत्राणामाकाराः । ४२ नक्षत्रेषु तारामानम् । ४३ नेतॄणि नक्षत्राणि । ९३ ४४ चन्द्रमार्गाः । ९२ ४५ चन्द्रमण्डलमार्गः । ४६ नक्षत्रदेवाः । ४० सन्निपातो द्वयोश्चन्द्रं प्रति । ९२ 900 " ४७, १६-१८" मुहूर्त्तनामानि । १०१ ४८, १९-२२॥ दिनरात्रिनामानि । १४७ १०४ ४२ तिथिभेदाः । १४८ १०३ ५० नक्षत्रगोत्राणि ॥ १११ ५१ नक्षत्रभोजनानि । ५२ युगे सूर्यचन्द्रचाराः । " १२० ५३, २३-२४* मासनामानि । १२८ ५४ संवत्सराः । १२९ ५५ नक्षत्र संवत्सराः । १३१ ५६ युगसंवत्सराः । १३२ ५७ प्रमाणसंवत्सराः । १३७ ५८, २५-२९ लक्षणसंवत्सराः । १३८ ५९ नक्षत्रद्वाराणि । १४६ ६० नक्षत्रयोगादि । ६१-६२ नक्षत्रसीमाविष्कम्भादि । ६३ पूर्णिमामावास्याः । १८० ६४ सूर्यस्य पौर्णमासीदेश स्थितिः । १८१ १५० ६५ चन्द्रस्य पौर्णमासीदेशस्थितिः । १८२ १५१ ६६ सूर्यचन्द्रयोर्युनक्ति । १५२ ६७ नक्षत्रेण सूर्यचन्द्रयोर्युनक्ति । १५३ ६८ अमावास्यानक्षत्राणि । ~80~ १५३ " १५४ १६८ १७१ १७३ १७५ १७७ " १८५ १९० सूर्य • विषयसूचिः ।। ६५ ।। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) साहित्य प्रत सुत्राक पर श्रीउपां० विषयानुक्रमे सूर्य विषयसूचिः देखीए । ६६ ।। दीप क्रमांक के लिए देखीए ECXSEXSEENUEN-MECERNATAACREENER ६९ ताहगन्यनक्षत्रयोगः। १९४ ॥ इति द्वादशमं प्राभृतम् ॥ इति पोडशभ प्राभृतम् ॥ ७० चन्द्रादेः सर्वत्र समयोगिता। १९७/ ७९ चन्द्रमसो वृद्धयपवृद्धी। २३४८८ च्यवनोपपाती। ॥ इति दशमं प्राभूतम् ।। | ८० पूर्णिमामावास्यान्तरं । २३६ ॥ इति सप्तदशमं प्राभूतम् ।। ७१ संवत्सराणामाद्यतौ। १९८८१ चन्द्रायनमण्डलचारः। २३८ ८९ चन्द्रसूर्याधुच्चत्वम् । ॥ इति एकादशमं प्राभूतम् ॥ ॥ इति प्रयोदशमं प्राभूतम् ॥ ९० तारकस्याणुतादि । ७२ नक्षत्रादिवर्षानिन्दियमुहूर्तमानम्। ८२ ज्योत्स्नाप्रमाणम् । २४४ ९१ चन्द्रस्य महपरिवारः । २०१ ॥ इति चतुर्दशमं प्राभूतम् ॥ ९२ अवाधाचाराः । ७३ नोयुगयुगराबिन्दियमुहर्तमानम् । २०६८३-८४ चन्द्रादीनां गतितारतम्यम् । १३ अभ्यन्तरचाराः । ७४ स्यादीनामाद्यन्तसाम्यम् । २०७ २४५/ ९४ चन्द्रादेः संस्थानमायामादिवाहिनश्च । ७५, ३०* ऋतुन्यूनाधिकराच्यधिकारः। ८५ नक्षत्रादिमासैश्चन्द्र दीनां चारः। २५० २०९/८६ चन्द्रादीनामहोरात्रमण्डलयुगगत्तयः। | ९५ अल्पेतरगतिऋद्धी । ७६ आवृत्तयः। २१९/ २५६ ९. तारान्तरम् । ७७ हेमन्त्य आवृत्तयः। २२८ ।। इति पञ्चदशमं प्रामृतम् ॥ ९७ चन्द्रादिदेवी। ७८ वृषभानुजाताद्या योगा। २३३। ८७ ज्योत्स्नालक्षणम् । २५५/ २८ ज्योतिष्कस्थितिः । 'सवृत्तिक आगम 173 सुत्ताणि ~81~ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए सूर्य विषयसूचि द्विषयानुक्रमश्च दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपां. IS२९ चन्द्रसूर्ययोरखबहुत्वम् । २६६] विषयानुक्रमे ॥ इत्यष्टादशं प्रामृतम् ।। | १००, ३१-८७* चन्द्रसूर्यादिपरिमाणम् । २६८ | १.१ पुष्करोदादयः। २८२ ॥ इत्येकोनविंशतितमं प्राभृतम् ।। १०२ चन्द्रादीनामनुभावः । १०३ राहुक्रिया। २८७ ०४ चन्द्रादित्यान्यर्थः। १०. कामभोगाः। १०६,८८-१६* अष्टाशीतिहाः । २०४ १०७, ९७-१०२* शास्त्रोपसंहारः। २९५ ॥ इति विंशतितम प्राभृतम् ॥ ॥ इति श्रीसूर्यप्रसप्तर्विषयमूचिः॥ FATARIANTRACTREATRNARSA 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~82~ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्रीउपां ० विषयानुक्रमे 110 11 XIX IN IN XTR TARIK LA IN IR उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ५+६ "सूर्यप्रज्ञप्ति + चन्द्रप्रज्ञप्ति " ] पुन: संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) मुनि दीपरत्नसागरेण | अथ श्री सूर्यप्रज्ञप्तेर्बृहद्विषयानुक्रमः श्री वीरश्रुतके वलि जिनवचनानां नमः स्कारादि, निर्युकेर्युच्छेदात्सूत्रवृत्तिप्रतिज्ञा । १ मिथिलामाणिभद्रचैत्यजितशत्रुधारिणीसमवसरण पर्षन्निर्गमधर्मकथाद्यति देशः । २ इन्द्रभूतिवर्णनातिदेशः । ३, १५ मण्डलादि (२० ) प्राभृतार्थाधि , ~83~ ६ कारः । ७, ६- १५* मुहूर्त्तवृद्ध्यपवृद्ध्यादि (८)प्राभृतमाभृताधिकाराः४, पढाया: प्रथमप्राभृतप्रतिपत्तयः ५, उदयास्त- मनाद्या द्वितीये प्रतिपत्तयः ६, आवलिका ७ मुहूर्त्ताग्रादीनि(२२)दशमे प्राभृतप्राभृतानि७ । ९ ८ मुहर्त्तवृद्धवृद्धी । १० सर्वमण्डलचा होरात्रमानं९, सकृद्द्वि मण्डलचारः १०| ११ अष्टादशादिमुहूर्त्ता, रात्रिदिनमानम् । ११ ११ १६ ॥ इति प्रथमे प्रथमं प्राभूतप्राभृतम् ।। १३ दक्षिणा मण्डलचारे दिनरात्रिमानं १२, उत्तरार्द्धमण्डलचारेऽपि १३ । २१ ॥ इति प्रथमे द्वितीयं प्रा० प्राभृतम् ॥ १४ अर्द्धसंपूर्ण मण्डल चीर्णचरणम् । २४ ॥ इति प्रथमे तृतीयं प्रा० प्राभृतम् ॥ १५ सूर्ययोरन्तरे प्रतिपत्तिषङ्कं स्थित पक्ष सूर्य • विषयसूचिबृहद्विषया नुक्रमश्च ।। ६७ ।। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां देखीए श्रीउपां० विषयानुक्रमे सूर्यपज्ञप्ते वृहद्विषयानुक्रमः ॥ ६८ दीप क्रमांक के लिए देखीए श्व, प्रवेशनिर्गमयोदिनरात्रिमानम् । २८ २१ सूर्यस्य तियमातौ प्रतिपत्त्यष्टकं, २५ चन्द्रसूर्यतत्तापक्षेत्रसंस्थित्योः प्रति- ॥ इति प्रथमे चतुर्थ प्रा०प्राभुतम् ॥ | स्थितपक्षश्च । १८ पत्तिषोडशकं स्थितपक्षम। १६ द्वीपसमुनवगाहे पतिपत्तिपञ्चकम् । ३१ ॥ इति द्वितीये प्रथम प्रा०प्राभूतम् ।। | ॥ इति चतुर्थ प्राभृतम् ।। १७ स्थितपक्षः। ३१/ २२ मण्डलान्तरसक्रमे प्रतिप्रत्तिद्वयं, २६ सूर्यलेश्याप्रतिघाते विंशतिः प्रतिपत्त्यः ॥ इति प्रथमे पश्चमं प्रा०प्राभूतम् ।। । मेदघातकरणकलाभ्याम्। ५० स्थितपक्षश्च । १८ दिनराज्योर्विकम्पने प्रतिप्रत्तिसप्तकं ॥ इति द्वितीये द्वितीय प्रा०प्राभृतम् ।। ॥ इति पञ्चमं प्राभृतम् ॥ स्थितपक्षश्च। ३५/ २३ प्रतिमूहूर्त सूर्यगतौ प्रतिपत्तिचतुष्कं | २७ ओजःसंस्थितौ पञ्चविंशतिः प्रति॥ इति प्रथमे षष्ठं प्रा०प्राभूतम् ॥ | स्थितपक्षश्च (मुहर्तगतिष्टिपथप्राप्ति- | पत्तयः, स्थितपक्षश्च, त्रिंशत १९ मण्डलसंस्थितौ प्रतिपत्त्यष्टकम् । ३७ बिचारः)। मुहूर्तानवस्थिता, षण्मासीभ्यां ॥ इति प्रथमे सप्तमं प्रा०प्राभूतम् ॥ । ॥ इति द्वितीये तृतीयं प्रा०प्रामृतम् ।। वृद्धिहानी। २० मण्डलपदायामादौ प्रतिपत्तित्रयं, ॥ इति द्वितीय प्राभृतम् ॥ ।। इति षष्ठं प्रामृतम् ॥ स्थितपक्षः, तत्कारणं च। ४४/२४ चन्द्रसूर्यप्रकाश्य क्षेत्र प्रतिपत्तिद्वा- २८ सूर्यप्रकाश्ये विंशतिः प्रतिपत्त्यः ॥ इति प्रथमे अष्टमं प्राभृतप्राभृतम्।। दशकं स्थितपक्षश्च। ६६ स्थितपक्षश्च । इति प्रथम प्राभूतम् ।। ॥ इति तृतीयं पामृतम् ॥ । ॥ इति सप्तमं प्राभतम् ।। 'सवृत्तिक आगम ८४ सुत्ताणि ~84~ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सत्राक श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे विषयानुक्रमः देखीए ।। ६९।। दीप क्रमांक के लिए देखीए २९ उदयसंस्थितौ प्रतिपत्तित्रय, खित- ३३ नक्षत्राणां चन्द्रेण योगकालः। १.२/ दीनि । १२८ सूर्यपज्ञप्तेपक्षश्च, मन्दरपूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणासु | ३४ नक्षत्राणां सूर्येण योगकालः। १.४ ॥इति दशमे पाठ प्रा०प्राभतम् ॥ दिनरात्रिमानादिप्रथमसमयादि. |॥ इति दशमे द्वितीयं प्रा०प्राभूतम् ॥ | ४० पूर्णिमाऽमावास्थानक्षत्रैक्यविचारः। II विचारः। ९२ ३५ नक्षत्राणां पूर्वपश्चान्नक्तोभयभागाः। || इत्यष्टम प्रामृतम् ।। १०५ ॥ इति दशमे सप्तम प्रा०प्राभृतम् ॥ | ३. पौरुषीच्छाये प्रतिपत्तित्रय, छिन्न- । ॥ इति दशमे तृतीयं प्राध्याभूतम् ॥ | ४१ अभिजिदादीनां संस्थानानि । १३० लेश्यासंमूर्च्छनादीनां स्थितपक्षः। ९५ ३६ श्रावणाद्यभिजिदादिदिनमानम्। ॥इति दशमे अष्टमं पाभृतप्रामृतम् ॥ ३१ पौरुषीपादे प्रतिपत्तयः पञ्चविंशतिः, ११०४२ अमिजिदादीनां तारकसंख्या । १३१ सातिरेकैकोनषष्टौ खितपक्षः, ॥ इति दशमे चतुर्थ पायाभूतम् ॥ | ॥ इति दशमे नवमं प्रा०प्राभतम् ॥ स्तम्भादि(२५,छायाभेदाः। ९९/३७ नक्षत्रेषु कुलोपकुलोभयानि। १११ ४३ श्रावणादिमासेषु नक्षत्रदिनपौरुषी ॥ इति नवमं प्राभूतम् ॥ ॥ इति दशमे पञ्चमं पायाभूतम् ।। | का ३२ नक्षत्रावलिकायोगे प्रतिपत्तिपञ्चकं, ३८ श्रावणादिपौर्णमासीनक्षत्राणि । १२० ॥ इति दशमे दशमं प्रा०पाभूतम् ।। अभिजिदादियोगे स्थितपक्षः। १०० ३९ श्रावणादिपौर्णमासीकुलोपकुलो- ४४ नक्षत्राणां चन्द्रेण दक्षिणोत्तरप्रमई।। इति दशमे प्रथम प्रा.प्राभूतम् ।। . भयानि, अमावास्यानक्षत्र कुला योगाः। ॥६९॥ मान। 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि १३८ ~85 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-५+६ “सूर्यप्रज्ञप्ति+चन्द्रप्रज्ञप्ति" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे यहा द्विषयानुक्रमः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए | १५ चन्द्रमण्डलानि नक्षत्रयुक्तान्ययुक्तानि | ॥ इति दशमे सप्तदश प्रा०प्राभृतम् ॥ ॥ इति दशमे विंशतितमं प्रा० प्राभृतम् ॥ Sसूर्यपज्ञप्ते १४५/ ५२ युगे नक्षत्रमासादिसंख्या। १५३ ५९ नक्षत्राणां द्वारेषु प्रतिपत्तिपञ्चकं, ॥ इति दशमे एकादशं प्रा०प्राभृतम् ॥ ॥ इति दशमे अष्टादश प्रामाभूतम् ॥ अभिजिदादीनां पूर्वादिद्वारेण स्थितHI४६ नक्षत्राणां देवताः । १९६५३,२४* अभिनन्दादिमासनामानि । १५३/ पक्षः। ॥ इति दशमे द्वादश प्रा प्राभूतम् ॥ ॥ इति दशमे एकोनविंशतितमं ॥ इति दशमे एकविंशतितम प्रा०प्राभृतम् ।। | ४७,१८* रौद्रादिमुहूर्तनामानि। १४७/... प्राणाभृतम् ॥ ६० जम्बूद्वीपे सूर्यचन्द्रनक्षत्राणां मानं व हा॥ इति दशमे त्रयोदशं पा०प्राभूतम् ॥ | ५५ नक्षत्रादयः संवत्सराः५४, नक्षत्रादि- | नक्षत्राणां योगमानं च। १७६|| ४८, २२॥* दिवसरात्रिनामानि। १४८/ संवत्सरमासाः५५ । १५४/ ६२ नक्षत्राणां सीमविष्कम्भः६१, प्रात:- 10 ॥ इति दशमे चतुर्दशं पायाभूतम् ॥ | ५६ चन्द्रादिसंवत्सरास्तस्पर्वाणि च । १६८ सन्ध्यादियोगश्च ६२। १८० ४९ दिवसरात्रितिथिनामानि । १५० ५७ प्रमाणसंवत्सरे नक्षत्रचन्द्रादि- ६३ द्वाषष्टिपूर्णिमा चन्द्रयोगाः। १८ | ।। इति दशमे पञ्चदशं प्रा०प्राभृतम् ॥ वर्षभेदाः । १७१ ६६ द्वाषष्टिपूर्णिमासूययोगा:६४, द्वाषष्ट्य५० अभिजिदादीनां गोत्राणि। १५१ ५८, २९ लक्षणसंवत्सरभेदाः, नक्षत्र- मावास्याचन्द्रयोगा:६५,द्वाषष्ट्यइति दशमे पोडश प्रा०प्रामतम् ।। संवत्सरादीनां लक्षणानि, शनैश्वर - मावास्यासूर्ययोगाः ६६। १८५ ५१ नक्षत्रभोजनानि । १५२| संवत्सरभेदाः। १७३/ ६७ द्वापष्टिपूर्णिमानक्षत्राणि । १९० 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥ ७० ॥ ~86~ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपांगादि विषयानुक्रमे ।। ७१ ।। JNI उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ५+६ "सूर्यप्रज्ञप्ति + चन्द्रप्रज्ञप्ति " ] पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) मुनि दीपरत्नसागरेण ६८ द्वाषष्ट्यमावास्यानक्षत्राणि । २३३ १९४७६ प्रावृडाद्यावृत्तिषु चन्द्रसूर्य नक्षत्रयोगाः । ६९ नक्षत्र चन्द्रसूर्ययोगान्तरम् । १९६ २२८ ७० परस्परचन्द्रगति योगादिसाम्यम् । १९७७७ हैमन्तिक्या वृत्तिषु चन्द्रसूर्य नक्षत्र।। इति दशमे द्वाविंशतितमं प्रा० प्राभृतम् ।। योगाः । ॥ इति दशमं प्रभृतम् ॥ ७: वृषभवेणुकमचादि (१०) योगाः । २३४ ७) युगसंवत्सरादिनक्षत्रयोगाः । २०२ ॥ इति द्वादशं प्राभृतम् ॥ ॥ इत्येकादशं प्राभृतम् ॥ ७९ चन्द्रवृद्ध्यपवृद्धिमुहूर्त्तसंख्या ७२ नक्षत्रसवत्सरादिदिनरात्रिमुहूर्तमानम् । ८० पूर्णमास्यमावास्यामुहूर्त्तानि । ८१ चन्द्रार्द्धमासमण्डलानि । २४३ ॥ इति त्रयोदशं प्राभृतम् ॥ ८२ ज्योत्स्नान्धकारयोररूपबहुत्वम्। २४५ ॥ इति चतुर्दश प्राभृतम् ॥ ८३ चन्द्रादीनां शीघ्रमन्दगतित्वम्। २४७ २१९८४ चन्द्रसूर्यादीनां गतिषु विशेषः । २४९ "7 २०६ २०७ ७३ नोयुगदिनरात्रिमुहूर्तमानम् । ७४ आदित्य संवत्सरादीनां समादिपर्यवसाने । ७५, ३०* प्रावृडादिऋ] दिनरात्रिमानमवमातिरात्राश्च २०९ ~87~ २३६ ८५ नक्षत्रादिमासेषु चन्द्रादीनां मण्डलचारसंख्या । २५३ ८६ दिनेन चन्द्रमण्डलादिसंख्या, मण्डलेनाहोरात्रसंख्या च २५६ ॥ इति पञ्चदशं प्रामुनम् ।। ८७ ज्योत्स्नासूर्यलेश्यादेर्लक्षणानि । ॥ इति षोडशं प्राभृतम् ॥ ८८ चन्द्रादीनां च्यवनोत्पातयोः प्रतिपत्तयः पञ्चविंशतिः स्थितपक्षे चन्द्रादिस्वरूपम् । ॥ इति सप्तदशं प्राभृतम् ॥ ९३ सूर्यस्योचत्वे प्रतिपत्तयः पञ्च विंशतिः स्थितपक्षे सूर्याच्चत्वं ८९, चन्द्रादेरभस्तनादिषु तारका: " २५८ सूर्यपज्ञतेबृहद्विषया नुक्रमः ॥ ७१ ॥ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपांगादि विषयानुक्रमे ॥ ७२ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र- ५+६ "सूर्यप्रज्ञप्ति + चन्द्रप्रज्ञप्ति " ] संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः ९०, चन्द्रादेर्यहादिपरिवारमानं ९१, मेरुपर्वतज्योतिषाबाधा ९२ सर्वाभ्यन्तरबाह्या दिनक्षत्राणि ९३ । २६० ९५ चन्द्रादिविमानसंस्थानायामबाहकदेवस्वरूपनिरूपणं १४, चन्द्रादीनां शीघ्रमन्दगतित्वं ९५ । ९९ तारकयोरन्तरं९६, चन्द्रादेरप्रम हिषी, जिनसक्थ्याशातनाभया दन्यत्र भोगः ९७, चन्द्रादेः परापरे स्थिती९८, चन्द्रायल्पबहुत्वम् ९९ । || इत्यष्टादशं प्राभृतम् ॥ १००, ३१-८७* चन्द्रसूर्य सहख्यायां २६५ २६८ २८५ द्वादश प्रतिपत्तयः स्वमते द्वयादिचन्द्रसूर्यसङ्ख्या । २८२ १०१ पुष्करवरद्वी पादयस्तच्चन्द्रसूर्यादि सङ्ख्या च । ।। इत्येकोनविंशतितमं प्राभृतम् ॥ १०२ चन्द्रायनुभावे प्रतिपत्तिद्वयं, स्थितपक्षे तद्देवस्वरूपम् । १०३ राहुप्रतिपत्तिद्वयं स्थितपक्षे तद्देवस्वरूपनाम (१२) विमान (५) - गमनागमनविकुर्वणादि, ध्रुवपर्व राहुचन्द्रलेश्यावर्णादि २९१ १०२ चन्द्रसूर्ययोः राज्यादित्यत्वे हेतुः १०४, चन्द्रसूर्य काम २८६ भोगस्वरूपम् १०५ । २९४ ~88~ १०७, ८८ १०२* अष्टाशीतिर्महनामानि । १०६, ९६* उपसंहारः १०७, १०२ । २९७ ॥ इति विंशतितमं प्राभृतम् ॥ प्रशस्तिः । "2 ॥ इति श्री सूर्यप्रज्ञर्विषयानुक्रमः ॥ सूर्यप्रज्ञसे बृहद्विषया नुक्रमः जम्बूद्वीप ० विषयसूचिश्व ॥ ७२ ॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपांगादिविषयानुक्रमे ॥ ७३ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) अथ श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञतेविषय सूचिः हीरविजयगुरुस्तुति: ४-५ । वाचकानाशीर्वादः ६ । वीरस्तुतिः १ । १ नमस्कारनिक्षेपाः । २ गौतमवर्णनम् । ३ जम्बूद्वीपस्थानादिः । ४ वेदिकावर्णनम् । ५ वनपण्ड | धिकारः । ६ पद्मवर वेदिकावनपण्डवर्णनम् । ७ जम्बूद्वीप ( ४ ) द्वाराधिकारः । ८ विजयद्वारवर्णनम् । ९, १० विजयादिद्वारान्तराणि । १० भरतक्षेत्रवर्णनम् । ११ दक्षिणभरतार्द्धवर्णनम् । १२ वैतादथस्वरूपम् । सूरिस्तुतिः २ । मलयगिरिस्तुतिः ३ । १३ तत्सिद्धायतनवर्णनम् । १४, २-३ दक्षिणार्द्धकूटादिवर्णनम् 53 23 ९ १५ वैताढ्यवर्णनम् । १४ १६ उत्तर भरतवर्णनम् । 37 १८ १७ ऋषभकूटाधिकारः । ८६ २० ॥ इति भरत क्षेत्रनिरूपणो नाम प्रथमो ~ 89~ ८४ २७ वक्षस्कारः ॥ ३१ १८, ४-६ समयादिशीर्षप्रहेलिकान्तकालवर्णनम् । ४७ "" १९, ७-८ पल्योपमप्ररूपणा । ६५ २० सुषमसुषमाधिकारः ६६ २१ कल्पद्रुमाधिकारः । ६८ २२ युग्मिस्वरूपम् । ७१ २३ प्रथमारकनराहारवर्णनम् । ७७२४-२५ प्रथमारकनरवासादिवर्णनम् । ११९ ८२ २६ प्रथमारकनराणां स्थित्यादि । १२६ | [आगम-१८] उपांग-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति " अन्थनाम ७ । २७ द्वितीयारकस्वरूपम् । २८ तृतीयारकस्वरूपम् । २९ कुलकराः । ३० कुलकरनीतिः । ३१ कलादि ऋषभदीक्षा च । ३२ श्री ऋषभप्रभोः श्रामण्यादि । ३३ श्रीऋषभप्रभोः जन्मकल्याणकादिनक्षत्राणि । ८९ ९२ ९७ १५५ ३४ प्रभोः संहननादि निर्वाणगमनं च । १५६ ९९३५ चतुर्थारकस्वरूपम् । १६३ "" १०८ ३६ पञ्चमारक स्वरूपम् । १६४ ११८ ३७ षष्ठारकस्वरूपम् । ३८ उत्सर्पिण्यां प्रथमद्वितीयार कस्व रूपम् । १३३ १३५ १४६ " १२८ | १३१ १३२ ४ १७१ "2 .. जम्बूद्वाप० विषयसूचिः ॥ ७३ ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) साहित्य S प्रत सूत्रांक श्रीउपांगादि यहा विषयानुक्रमे देखीए ॥ ४ ॥ १७८] दीप क्रमांक के लिए देखीए ३९ पुष्कलसंवत्तक्षीरवृतामृतरसमेघाः। | ४९ चतुर्घण्टाश्वरथवर्णनम्। २१० ५९, १९* छत्ररत्नवर्णनम् । २४१| | जम्बूद्वीप० | विषयसूचिः १७३ ५. सिन्धुदेवीसाधनम्। २१४ ६०, २०* चर्मरत्ने धान्याद्युत्पादनम् । ४० मांसवर्जनव्यवस्था । १७५/ ५१ वैताढयकुमारकृतमालसुरसाधनम्। ४१ शेषोत्सर्पिणीवर्णनम् । २१६, ६१, २१-२४* आपातकिरातसाधनम्। ॥ इति द्वितीयो वक्षस्कारः॥ ५२ सुषेणेन सिन्धुपश्चिमनिप्कूटसाधनम् । २४० ४२ विनीतावर्णनम् । २१७ ६२ क्षुल्लकहिमवगिरिदेवसाधनम् । २४८ १३ भरतराजवर्णनम् । १८१ ५३ सुषेणेन तिमिश्रगुहादक्षिणकपाटो | ६३, २५-२६ ऋषभकूटे नामलिख| ४४, ९-११* चक्रोत्पत्तितत्पूजोत्सवाः। द्घाटनम् । २२२ नम्। १८४/५४ मणिरत्नं, काकिणीरत्नेन मण्डला- ६४, २७* नमिविनमिसाधनं श्रीरना- IR ४५ सचक्रस्य मागधतीर्थगमनम्। १९४ लेखनं च । २२४ प्तिश्च । ४६, १२-१५* मागधतीर्थकुमार- ५५ उन्मग्नानिमम्नास्वरूपम्। २२९/ ६५ खण्डपपाताधिपनृत्तमालसाधनं साधनम् । १९८ ५६ आपातचिलातयुद्धम् । २३१ निर्गमश्च गुहायाः। २५० ४७ वरदामतीर्थसाधनम् । २०५/ ५७, १८* अश्वरत्नखारने। २३३ ६६, २८-४१* गझाकुले निधिप्राप्तिः ४८, १६-१७* वास्तुनिवेशविधिः । २०७| ५८ मेघमुखदेवाराधना वृष्टिश्च । २३८ पश्चिमदिक्कसाधनं विनीतागमश्च ।२५७ ॥७४ ।। २५ AREENAXARAK 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~90~ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक यहां श्रीउपांगादि- विषयानुक्रमे देखीए ॥ ७५॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए ६७ भरतस्य विनीतायां प्रवेशः। २६० / ७९ हैमवतान्यर्थः । ३००/ ९२, ५४* उत्तरकुरुमाल्यवदादि | जम्बूद्वीप ६८ भरतस्य चक्रवर्तित्वाभिषेकः। २६८/८० महाहिमवान् पर्वतः। ३०१| बक्षस्काराः। विषयसूचिः ६९ रत्नानि। २७७८१ महाहिमवति महापद्मादि। ३०२ ९३ सहसाबकूट माल्यवदर्थश्च । ३३८18 ७० चक्रिणः समृद्धिः। . २७७/८२ महाहिमवति कूटानि । ३०३| ९४, ५५* कच्छविजयः। ७१ भरतस्य केवलं श्रामण्यं मोक्षश्च।२७८ ८३ हरिवर्षम् । ३०१ ९५ चित्रकूटवक्षस्कारः। ७२ भरतनामान्वर्थम् । २८०/८४ निषधः । | ९६, ५६* शेषविजयादि। ॥ इति भरतचकिचरितवर्णनो नाम | ८५ सनदीकति गिछिद्रवर्णनम् । ३०७/ ९७, ५७.५८* विदेह द्वितीयविभागः। तृतीयो वक्षस्कारः॥ ८६ महाविदेहाः। -३१० ७३ क्षुल्लकहिमवत्स्वरूपम्। २८१/८७ गन्धमादनः। ३१३ | ९८,५९* सौमनसदेवकुरवः। ७४ पद्मदस्वरूपम्। २८२८८ उत्तरकुरवः। ९९ चित्रविचित्रकूटौ। ७५ गङ्गासिन्धुरोहितांशा नद्यः। ८९, ४२-४३* यमकः । ३१६/ १०० निषधादिद्रहाः। ७६ हिमवति कूटानि। २९६/ ९०,४४-४६* नीलबदादिद्रहकाञ्चन- १०१ कूटशाल्मली। ७७ हैमवतं वर्षम् । २९८ पर्वताः। ३२९/१०२, ६० विद्युत्प्रभः । ७८ शब्दापातिवैताठ्यः । २९९ ९१, ४७-५३* जम्बूवृक्षः । ३३०/ १०३, ६१-६४* विजयाः। ॥ ७ ॥ ३५२ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~91~ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे जम्बूद्वीप० विषयसूचिः देखीए * दीप क्रमांक के लिए देखीए D १०४, ६५* मेरुपर्वतः। त्सवः । ३९१ ॥ इति पश्चमो जिनजन्माभिषेकाख्यो १०५ नन्दनवनम् । ३६६/ ११६ पालकविमानम् । ३९५ बक्षस्कारः॥ १०६ सौमनसवनम् । ३६९ ११७ जन्ममहोत्सवाय यानविमानम्। | १२५, परस्परस्पर्शजीवोत्पादौ। ४२५ १०७ पण्डकवनम् । ३९९ १२६, ८१-८२ खण्डयोजनादिपिण्डः। ' १०८ अभिषेकशिला। ३७२ ११८ जन्ममहे शकेन्द्रागमः। ४०१ १०९ मेरुकाण्डानि। ३७३ ११९, ७६-७८* जन्ममहे ईशानेन्द्रा- | ॥इति षष्ठो वक्षस्कारः।। ११०, ६६-६७* मेरुनामानि।। द्यागमः । ४०५, १२७, ८३* चन्दौ। १११, ६८ नीलबगिरिवर्णनम् । ३७६/ १२०, ७९* जन्ममहे चमराद्यागमः। | १२८ सूर्यमण्डलानि । | ११२, ६१* रम्यकादीनि। ३७८ ४०७ १२९ अबाधाः। ॥इति चतुर्थो वक्षस्कारः॥ १२१-१२२ जन्ममहे अच्युताभियोगः। | १३० सूर्यस्यान्तराबाधाः । ११३, ७० दिकुमायुःसवः। ३८३ / ४१२ १३१ सूर्यपरिमाणम् । ११४, ७१* ऊर्श्वलोकदिकुमायुत्सवः। | १२३, ८०* अच्युताशीर्वादः शेषे- १३२ मेरुमण्डलाबाधा । ३८८ न्द्राभिषेकश्च । ४१९/१३३ मण्डलायामादि । ११५, ७२-७५* रुचकवासिकुमायु- १२४ कृताभिषेकजिनानयम्। ४२२/ १३४ मुहूर्चगतिः । 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥७६॥ ~92~ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्राक जम्बूद्वीप ५००1विषयसूचिः देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपांगादि ॐा १३५ दिनरात्रिमानम् ४४९/१४८ चंन्द्रमण्डलायामादि। ४६८ १६०,१०४-११०* नक्षत्रगोत्रसंस्थाने । विषयानुक्रमे १३६, ८४* तापक्षेत्रमानम् । ४५३१४९ चन्द्रमुहूर्तगतिः। ४७० ॥ ७७॥ १३७ दूरादिदशनम् । ४५८ १५० नक्षत्रमण्डलादि। ४७४ १६१, १११.११८* नक्षत्रचन्द्रसूर्य१३८क्षेत्रगमादिः। १५१ सूर्यादेरी शान्यादावुद्गमादिः । ४७१/ योगकालः। १३९ क्रियाः। १५२, ८५-९० संवत्सरभेदाः। ४८५/१६२, १९९* कुलादिपूर्णिमामावास्याः। १४० उर्धादितापः। २१५३, ९१-९९* संवत्सरेषु पंचसु मास ५०४ १४१ ऊर्बोत्पन्नत्वादि। पक्षादिनामानि । १६३,१२०* माससमापकनक्षत्रवृन्दम् । S१४२ असूर्य स्थितिः विरहादि च। | १५४ करणाधिकारः । ४६३ १५५ संवत्सरायधिकारः। ४९४ १६४, १२१-१२२० अणुत्यादि। ५२१ १४३ चन्द्रस्य मण्डलम् । १६४/१५६, १००* नक्षत्राधिकारः। ४९५१६५ परिवारः । १४४, क्षेत्रम् । १५७,१०१ दक्षिणादियोगाधिकारः ।। ५६६ अवाधाः। १४५ चंन्द्रयोरवाधाः। ४९६१६७, १२३-१२५ अभ्यन्तरसंस्थान१४६ चंद्रस्यायामः । , १५८ नक्षत्रदेवाः । ४९८ विस्तारादि। ५२४ १४७ चन्द्रमण्डलाबाधा। ४६६ १५९, १०२-१०३ ताराणां संख्या। , | १६८, १२६-१२७* चन्द्रादिविमान BANJARERATEXXXX RECENSENTENCENTERACKER 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि .७७ ~93~ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' श्री उपांगादि विषयानुक्रमे 11 02 11 उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) वाहकाः । १६९ ज्योतिष्कगतिः । १७० ज्योतिष्काणामृद्धिः । १७१ तारकान्तराणि । "" १७२, १२८-१२९ अग्रमहिष्यो महाश्य । ५३२ ५२६ १८० द्वीपनामहेतुः । ५३१ १८१ उपसंहारः । १७५ चन्द्राद्यल्पबहुत्वम् । १७६ द्वीपे जघन्योत्कृष्ट जिनादिसंख्या १७३ स्थितिः । " १७४, १३० १३१. नक्षत्राधिष्ठातारः । १७७ द्वीपस्योद्वेधाः १७८ शाश्वतत्वादि । १७९ परिणामाः । " ५३५ ५३६ 27 ५३८ 97 "1 ५४० ॥ इति सप्तमो वक्षस्कारः ॥ ॥ इति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेर्विषयसूचिः ॥ ~94~ जम्बूद्वीप० विषयसूचि बृहद्विषया नुक्रमश्ध ।। ७८ ।। Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) साहित्य प्रत सूत्रांक श्रीउपोगादि| विषयानुक्रमे यहा RAANE जम्बूद्वीप० विषयसूचि हद्विषयानुक्रमश्च देखीए ॥ ७८ ॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए ॥ अथ श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेर्वृहद् विषयानुक्रमः॥ श्रीवीरगन्धहस्तिमलयगिरिहीरविजयसकल चन्द्राणां स्तुतिनमस्कारादि, शेषाङ्गोपाझविवरणात्परिशेषताऽस्य, मलयगिरिकृतवृत्तिपुच्छेदः, गणितानुयोगोऽत्र, फलयोगमङ्गलादिविचारः, दशवानन्तरमस्य दान, उपक्रमादिद्वारावतारः जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तीना निक्षेपाः । ९ १ मिथिलामाणिभद्रजितशत्रुधारिणीवर्णनातिदेशः, स्वाम्यागमनादि (नमस्कारार्हतोनिक्षेपाः, नामस्थापनाद्रव्यभावनयमतानि, स्थापनानमस्कार्यता)। १४ ३ श्रीगौतमवर्णनाद्यतिदेशः२, जम्बू द्वीपस्य महत्त्वस्थानाकारादिप्रश्नो तराणि (परिध्यानयनम् ) । २० ४ जगतीपद्मवरवेदिकावर्णनम् । २७ ५ वनखण्डवर्णनातिदेशः। ३० ६ वनखण्डभूमिभागवर्णनातिदेशः। ४७ ८ विजयादिद्वारराजधान्यतिदेशः । ७, विजयादिद्वारतत्स्थानोच्चत्वादि 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥ ७८ ॥ ~95 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्राक श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे जम्बूद्वीप० १०० द्विषया देखीए नुक्रमः ॥ ७९ ॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए SANJETINGREEN वर्णनातिदेशः ८। ६५/१६ वैतादयस्यान्वर्थतद्देवनामशाश्वत- २१ मत्ताङ्गदादिकल्पवृक्षवर्णनातिदेशः। ९, १* परस्परं द्वाराणामबाधा। त्वानि१५, उत्तरभरताद्धस्थानाकार१० भरतक्षेत्रस्थानस्वरूपाकारविभागाः। भागायामाकारमनुष्याकाराः१६, २२ भरते सुषमसुषमारकनवर्णनम् । ११८ ६७ (जीवानयनयनरीति वा च)। ८६२३ त-मनुजानामाहारार्थास्यादौ। ११९) १, दक्षिणाद्धभरतविभागायामादि भूमि १७ ऋषभकूटवर्णनम् । ८८ |२५ तद्वसति:२४.गृहग्रामासिहिरण्यभागतन्मनुजवर्णनं च। ७ ॥ इति प्रथमो वक्षस्कारः।। राजदासाम्रात्ररिमित्राबाधेन्द्रमहनट१२ वैतादयस्य स्थानायामादिवनखण्ड प्रेक्षाशकटगवाश्वसिंहशार्दुदाहिगुहाविद्याधरश्रेणिनगरतन्मनु जाभि१८, ४-६* सुषमसुषमाद्याः काल स्थाणुदंशमशकडिम्बदुर्भूतादिभावायोग्यश्रेणिदेवशिखरतलकूटसङ्ख्याः । | भेदाः, शीर्षप्रहेलिकान्तानां कालानां भावविचारस५। १२५] वर्णनं च। २६ ताग्मिनामायुस्चत्वसंहननसंस्थान१३ सिद्धायतनकूटदेवच्छन्दकजिन- १९,७८-+ निश्चयव्यवहारपरमाणोरारभ्य। गतियुगलप्रसवाः पद्मगन्धा दि(६)प्रतिमावर्णनादि। ८२ योजनान्तानां पल्योपमसागरोपमा १२८| ५.२३दक्षिणाईभरतकटादिततासि- | दीनां च निरूपणम् । ९३२७ द्वितीयारकतदयुम्युञ्चत्वादि. एका देवराजधान्यादिवर्णनादि। ८४/२० भरत सुपमसुषमारकस्य वर्णनम् । ९९ दि(४)भेदाश्च । TERRIERTAINARREARS 'सवृत्तिक आगम भेदाश्च । SANTANIYE सुत्ताणि ~96~ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपांगादि विषयानुक्रमे ॥ ८० ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति” ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) २८ सुषमदुष्पमाभागत्रयादि । १३२ | ३४ २९ सुमत्याद्याः(१५)कुलकराः । १३३ ३० कुलकराणां हकाराद्या दण्डनीतयः । १३५ १.४५ ३१ ऋषभदेवस्य कुमारवा समहाराज्य कला महिला गुणशिल्पदर्शनपुत्रा - भिषेक दीक्षा सवाः । ३२ ऋषभस्य साधिकवर्षचीवरधारितोषसर्ग सहनेर्यासमित्यादिश्रमण गुणाः केवलज्ञानोप्तादः सभावना कमहाव्रतप्ररूपणाः ऋषभसेनादिपरिवारादिवर्णनं च । ३३ ऋषभस्य पञ्चोत्तराषाढाऽभिजित् पठत्वम् । १५५ १५६ अष्टापदे निर्वाणं, देवेन्द्र द्यागमनं, जिनादिशरीरस्नानादि चितिका सक्थिग्रहणं नन्दीश्वराष्टा हि काकृतसमुद्रकक्षेपाचः । ३७ दुष्षमसुषमायाः ३५ दुष्पमायाः ३६ दुष्पमदुपमायाश्च वर्णनम् ३७ । ३८ उत्सर्पिणीदुष्पमादुष्यमारकवर्णनम् । ।। इति द्वितीयो वक्षस्कारः ॥ ४२ विनीतावर्णनम् ६४ १८१ ४३ भरत चक्रिणो लक्षणादिवर्णनम् । १८४ ४४, ९-११ रत्नोत्पत्तिवर्द्धापनिका तदप्रीतिदानत महोत्सवमज्जनेश्व रादिपरिवारानुगमनचक्ररत्नप्रमानाटक लेखनाच्छुककादिकरणानि । १७३४५, १२-१५* मागधाभिमुखचक्रगमनभरतनिर्गमनपौषधशाला करणाष्टमपौषधरथारोहाः । ४६ लवणावतारदेवनत्यादिचापमोचनकोषनामाङ्कदर्शनप्राभूतानयनाज्ञप्ति किंकरत्वमत्युत्तारमज्जनगृहादि । २०५ ॥ ८० ॥ ~97~ १७२ ३९. पुष्करसंवर्त्तक्षीरघृतामृतरसमेघाः । १७५ ४१ मांसादिवर्जनमर्यादा ४०, तत्र दुप्पम दुष्पमसुषमसुषमदुष्पमात्रिभागसुमत्यादि (१५) कुलकरवर्णनम् ४१ ॥ १७८ । १९४ जम्बूद्वीप बृहद्विषयानुक्रमः १९८ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक जम्बूद्वीप यहा देखीए नुक्रमः २५० दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपांगादि [गादक ४७ सैन्यवर्णनं, वरदामसाधनाय चक्रिणो । देशसाधनाऽऽभरणभूषणोपायनादि। ६०, २०* गाथापतिरत्नकृता शाल्याविषयानुक्रमे १ गमनम् । २०७ . २२२ द्युत्पत्तिः । ।। ८१॥ ४८, १७* एकाशीतिपदादिविभागे ५३ सुषेण कृततिमिस्रगुहाद्वारोद्घाटन- ६१,२४* नागकुमारनिर्धाटन, चिलातपौषधशालाकरणम्। २१० पौषधादि। २२४ वशीकाररस्नोपायनादि। २४८ ४९ स्थाश्वयोर्वर्णनं, वरदामप्रभाससाध- ५४ समहिममणिरत्नेनोद्योतः, काकिणी- | ६२ क्षुल्लकहिमवत्कुमाराष्टममालानादि। २१४ लेन मण्डला(४९)लेखनम् । २२९ गोशीर्षोपायनादि। ५. सिन्धदेव्या अष्टमपौषधादि, अब ५५ संक्रमेणोन्ममनिमझोत्तरणम् । २३.| ६३, २६" पभकूटे नामलिखनम् । २५१ धिनाऽऽलोक्य भद्रासनाद्युपायनादि। | ५६ आपातचिलातैः सैन्यप्रतिरोधः । २३२/ ६४,२७* विनमिनम्यष्टमो दिव्यमत्या २१६/५७,१८ सुषेणकृतःसमहिमाश्वासिना- | स्त्रीरत्नरत्नाद्यवयन, गङ्गासाधनादि ५१ वैतादयगिरिकुमाराष्टमपौषधान्ते कटका- भ्यामापातचिलातनिषेधः। २३८ च। द्यर्पणादि, तिमिसगुहाधिपकृतमाला- ५८ नागकुमाराराधनाऽऽगमनवृष्ट्यादि। ।६६ खण्डपपाताधिपनृत्तमालसाधनाष्टमान्ते तिलकचतुर्दशकापणादि ।२१७/ २४१ उलङ्क रोपायनादि, सुपेणकृतगङ्गा५२ सेनापतिवर्णन पाश्चात्यनिष्कुटे ५९, १९" समहिमचर्मच्छत्ररत्नाभ्यां । पाश्चात्यनिष्कुटसाधनरत्नानयनादि, हस्त्यादिरस्नैः सिंहलबर्वरादि- : सैन्यरक्षा। खण्डमपातगुहाद्वारोद्घाटनादि, 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~98~ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्राक जम्बूद्वीप द्विषया देखीए नुक्रमः ३०४ दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपांगादिली उन्मग्ननिममोत्तरणम् । २५६ ॥ इति तृतीयो वक्षस्कारः॥ ८१ महापद्महदही देवीरोहिताहरिlel६६, ४१* गङ्गापश्चिमकूले निध्यष्टम- क्षुल्लकहिमवर्षधरवर्णनम् । २८२ कान्तानदीप्रपातकुण्डद्वीपादिवर्णनम् । ॥ ८२ ॥ ताप्रादुर्भाववर्णनादि। २६०/७४ पद्मादतत्पद्ममणिपीठिकाशयनीय | ६७ चतुर्दशरत्ननिधिनवकस्त्रीरत्नादि । श्रीदेवीतत्सामानिकपद्मपरिक्षेपादि- ८२ महाहिमवत्कूटानि(८)। , युतस्य महा विनीताप्रवेशः। २६४ वर्णनम् ।। २८८ ८३ हरिवविकटापातिवर्णनम् । ३०६ ६८ चक्रवर्तिताऽभिषकवर्णनं, देवादि- ७५ गङ्गासिन्धुरोहितांशाप्रपातकुण्डद्वी- ८४ निषधपर्वततिगिन्छिदधृतिदेवीसत्कारादि। २७६/ पादिवर्णनम् । २९५ वर्णनम् । ६९ चक्रादिरस्नोत्पत्तिस्थानानि। २७७/७६ हिमवति सिद्धायतनक्षुल्लहिमवत्कूटादि- | ८५ हरिसीतोदाप्रपातादिसिद्धायतन७० चक्रवर्तिऋद्धिवर्णनम् । २७८ | (११)वर्णनम् । २९ कूटादि(२)वर्णनम् । ३१० ७१ आदर्शप्रेक्षणं, कैवल्यं, दशसाहरूया ७७ हिमवर्षाधिकारः। ।२९१८६ पूर्वपश्चिमविदेहदेवोत्तरकुरुभेदैदीक्षा, अष्टापदेऽनशनादि । २८०७८ शब्दापातिवृत्तवैताड्यतद्देववर्णनम्। | महाविदेहवर्णनम् । ३१२ ॥ इति भरत चरित्रम् ।। ३०० ८८ गन्धमादनतत्कूट(७)८७, उत्तर७२ भरतान्वर्थे पल्योपमस्थितिको भरतो | ७९ हिमवर्षान्वर्थः। ३०१ कुरुतद्भ मेभागवर्णन, पद्मगन्धाद्याः देवोऽपि । २८१/ ८० महाहिमवत्पर्वताधिकारः। , (६) जातयः ८८ । ३१६ PARORASREALTAR NIRSTRESEXY 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥ ८२ ॥ ~99~ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपांगादि विषयानुक्रमे ॥ ८३ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) ८, ४३० यमकपर्वतसविस्तरतद्देवराजधानी जिनसक्थ्या दिवर्णनम् । वर्णनम् । ३४० ९४, ५५ कच्छ विजय तादथ विद्याधरनगराभियोगिक श्रेणिसिन्धुकुण्डादिवर्णनम् । ३३० ९५ चित्रकूटवक्षस्कारतत्कूटादिवर्णनम् । ३४४ ३४५ ३२९ ९०, ४६० नीलवादिद्रह (५) काञ्चनपर्वतवर्णनम्। ९१, ५३* जम्बूवृक्षवेदिकात्रिसोपानमणिपीठिका शाला देवच्छन्द जिनप्रतिमाभवनशयनी यानादृततत्परि वारजम्बूद्मादिपुष्करिणीकूट वर्णनं, जम्बूनामा (१२) न्वर्थादि । ३३७ ९२, ५४ उत्तरकुरोरन्वर्थः, माझ्य बद्धक्षस्कार तत्कूट ( २ ) वर्णनं च । ३३८ ९३ हरिषहकूटतदधिपमास्यवदन्वर्थ ९६, ५६० सुकच्छादिविजयतद्वाज धानीगाथापत्यादिकुण्डनदीतदन्यर्थादिवर्णनम् । ३५३ ९७, ५८* सीतामुखनववच्छादि विजयसुसीमादिराजधानी त्रिकूटादिवक्षस्कारादिवर्णनम् । ३५३ १००, ५९ सौमनसवक्षस्कार सिद्धायतनादिकूटदेव कुरुपद्मगन्धादि ~ 100~ जातिवर्णनं २८, ५९* चित्रवि. चित्रकूटवर्णनं २९, निषधादि (५)द्रवर्णनं च १०० । ३५५ १०२, ६० कूटशाल्मली वर्णनं १०१, विद्युत्प्रभवक्षस्कारसस्कूटदेवराजधान्यन्वर्था१०२, ६० । ३५७ १०३, ६४ पक्ष्मादिविजयाश्व पुरादिराजधान्यङ्कावत्यादिवक्ष स्काराद्यतिदेशः । १०४, ६५* मेरुस्थानायामादि, भद्रशालनन्दनसौमनसपण्डक ३५९ वनानि, कुमुदायाः पुष्करिण्यः, पद्मोत्तरादयो दिक्कुटाः। ३६६ १०५ नन्दनायामादिसिद्धायतनपुष्क जम्बूद्वीप क बृहद्विपया नुक्रमः || 63 || Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपांगादि विषयानुक्रमे ॥ ८४ ॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ "जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) रिणीनन्दनादि (९ ) कूटानि । ३६९ | ११३, ७० जिनजन्माभिषेके भोगंकराधोलोकवास्तव्य दिक्कुमारी १०६ सौमनसायामादि । कृत्यम् । ३८८ ३७० ३७१ ३७४ ११४, ७१* मेषंकरार्धोक दिक्कुमारी ३९० १०७ पण्डकचूलिकायामादि । १०८ पाण्डुशिलायभिषेकशिलाः । १०९ मेरोः काण्डत्रयस्य स्वरूपम् । ३७५ ११०, ६७* मेरोर्नामान्यन्वर्थश्च ३७६ १११, ६८* नील द्वर्षघरसीतानारीकान्तानदी सिद्धायतनादि (९) कूटतदन्वर्थाः । ३७८ ११२, ६९ रम्बकगन्धापातिरुक्मि तत्कूट (८) हैरण्यवत माल्यवन्तवृत्तवैतादयशिखरितत्कुटैरावतस्वरूपतदन्यर्थाः । ॥ इति चतुर्थो वक्षस्कारः ॥ ३८२ कृत्यम् । ११५, ७५ नन्दोत्तरासमाहारेलादेव्याम्बुषादि (३२) पूर्वाद्विदिक्चित्रारूपादि (८) विदिग्मध्यरुचक दिकुमारी कृत्यम् । ३९५ ११६ शकेन्द्रासनकम्पस्तुतिमहिमचिकीष देवाहानोद्घोषणा पालकयानविकुर्वणादेशः । ११७ पालक विमानरचना । ११८ शकसामानिकादिनिर्गमप्रति ~ 101 ~ ३९९ ४०१ रूपकस्थापनमेरुनयनानि । ११९, ७८० ईशानादि (९) देवेन्द्रा ४०५ गमनम् । ४०७ ४१२ १२०, ७९* चमरवलीन्द्राद्यागमनम् । ४०९ १२१ अभिषेक सामय्यानयनम् । १२२ अभिषेक हिरण्यवृष्ट्यादिवाद्यगेयनृत्यादि । १२३, ८०* अलङ्कारविभूषाऽष्टमङ्गलालेखन, स्तुतिः, वृषभरभिषेकश्च । १२४ जिनस्य प्रत्यानयनं, हिरण्यादि वृष्टिरशुभचिन्तननिरोधो घोषणामष्टाहिकाच । ॥ इति पञ्चमो वक्षस्कारः || ४१९ ४२२ ४२४ जम्बूद्वीप बृहद्विपया नुक्रमः ॥ ८४ ॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपांगादि विषयानुक्रमे ।। ८५ ।। उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति” ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग + प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी- साहित्य) १२५ जम्बूलवणप्रदेशस्पर्शजीवप्रत्या गमनादि । १२६, ८२* खण्डयोजन वर्षपर्वत कूटतीर्थश्रेणि विजयद्रहसरित्प्रमाणम् । ४२५ ४३२ ॥ इति पो वक्षस्कारः ॥ १२७, ८३* चन्द्रादीनां प्रकाशादि । ४३४ १३१ सूर्यस्य चतुरशीतं शतं मण्डलानां १२८, अभ्यन्तरबाह्यमण्डलाबाधा १२९, प्रतिमण्डलमभ्यन्तरं ५.३०, मण्डलायामविष्कम्भपरिक्षेपाः १३१ । १३२ सर्वाभ्यन्तरमण्डलमन्दराबाधा, ४३६ प्रतिमण्डलं तद्वृद्धिः, बाह्यमण्डला बाधा च तद्विरहकालब्ध। ४३७ १४६ चन्द्रस्य मण्डलानि १४३, अभ्य न्तरबाह्या बाधा १४४ मण्डलपरस्पराबाधा १४५, मण्डलायामादि १३३ अभ्यन्तरादिमण्डलायामविष्कम्भादि । १३४ मण्डलेषु मुहूर्त्तगतिः । १३५ दिनरात्र्योवृद्धिहानी । १३६, ८४* सर्वाभ्यन्तरादिमण्डलतापक्षेत्रस्थितिः । १३९ उद्गमनादौ दूरमूलादिदर्शनं १३७, अतीतादिक्षेत्रे गमनादि १३८, क्रियादि १३९ । १४१ ऊर्ध्वादितापः १४०, ऊर्ध्वकल्पविमानोत्पन्नत्वादि १४१ । ४६३ १४२ इन्द्रच्यवने सामानिकव्यवहारः, ~ 102~ ४४० ४४९ ४५३ ४५८ ४६२ ४६४ १४६ । ४६६ १४७ मेर्वभ्यन्तरादिमण्डलाबाधा । ४६८ १४८ सर्वाभ्यन्तरादिमण्डलायामादि। ४७० १४९ अभ्यन्तरादिमण्डलेषु मुहूर्त्तगतिः । ४७३ १५० नक्षत्राणां मण्डलान्यवगाहोऽभ्यन्तरबाह्यान्तरं च परस्परमन्तर मायामादि मेर्वबाधा मुहूर्त्तगतिचन्द्रमण्डलावतारभागशतगम नानि । ४८० जम्बूद्वीप • बृहद्विषया नुक्रमः ॥ ८५ ॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक श्रीउपागादि विषयानुक्रमे जम्बूद्वीप बृहद्विषया देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए १५१ चन्द्रसूर्ययोरुदकमाच्युद्गमनादि- १५७, १०१* नक्षत्राणां चन्द्रेण . | १६३, १२० श्रावणादिषूत्तराषाढादि.. (दिनरात्रिमानाद्यतिदेशः)। ४८५ दक्षिणोत्तरादियोगः। ४९८ नयनदिनमानपौरुषीमानानि १५२, ९०* नक्षत्रादिसंवत्सरतन्मास- १५९, १०३* अभिजिदादीनां देवता । योगादिसङ्ग्रहगाथा च। ५२१ पर्व रक्षणानि । १५८तारकाणि च १५९, १६६, १२२ अबस्तनादिस्थान१५३, ९९ लौकिकलोकोत्तरमास १०३ । ५०० शशिपरिवारादिसङ्ग्रहगाथे पक्षदिवसतत्तिथिरात्रितत्तिथि १६०, ११.नक्षत्राणां गोत्राणि १२२* चन्द्रसूर्ययोरधस्तनामुहूर्तनामानि । १०७*, संस्थानानि११०, दिषु तारकाः१६४, अष्टाशीति१५४ चबादीनि चलस्थिरकरणानि प्रहादिनामानि परिवारः१६५, तत्तिथिनियमश्च । ४९४ १६१, ११८* अभिजिदादीनां चन्द्र- मन्दरधरणीतलपरस्परज्योति१.५ संवत्सरायेषु चन्द्राद्यादयः, सूर्याभ्यां सह योगकालमानम् । श्चक्र द्यबाधा १६६। ५२४ युगेऽयनादिमानं च । ५०४|१६७, १२७* बायाभ्यन्तरोपर्यधो१०. योगादि(20)द्वारगाथा ! १६२, ११९ कुलोपकुलतदुभयानि नक्षत्रचारश्चन्द्रसंस्थानादि च। ५२५ पूर्णिमाऽमावास्यातन्नक्षत्रकुलो- १६८, १२७* चन्द्रविमानवाहकदेव१५६ नक्षत्रनामानि । पकुलादियोगाः। वर्णनम् । 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥ ६ ॥ ~103~ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ उपांगसूत्र-७ “जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्रांक देखीए जम्बूद्वीप बृद्विषया नुक्रमः निरयावल्या अकसूचाच दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपांगादि १७१ चन्द्रादीनां शीघ्रमन्दगतयः १६९, | १७२ जम्बूद्वीपस्यायामविष्कम्भपरिविषयानुक्रमेला महाल्पद्धिकता च १७०, तार क्षेपोधोच्चत्वसर्वााणि १७७, कयोरन्तरम् १७१। ५३२ तस्य शाश्वताशाश्वतत्वं १७८, १७३, १२९* चन्द्रस्याप्रमहिष्या, पृथिव्यादिपरिणामः सर्वप्राणो. पूज्यजिनसक्थिमावाद्विमाने त्पातश्च१७९। ५३९ मैथुननिषेधश्च, अङ्गारकादिन- १८१ जम्बूद्वीपस्यान्वर्थः १८०, हाममहिष्यः १७२,१२९ उपसंहारः१८१ ५४२ चन्द्रादिदेवदेवीजघन्योत्कृष्ट ।। इति सप्तमो वश्वस्कारः ॥ खितयः १७३। ॥ प्रशस्तिः॥ ४६ १७४, १३१* नक्षत्रदेवताः। ५३६| ॥ इति श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तना १७६ चन्द्रादीनामल्पबहुत्वं १७२, जम्बूद्वीपे तीर्थकर चक्रिवलबासु बृहद्विषयानुक्रमः ।। देवनिधिपञ्चकेन्द्रियरत्नसंख्या 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ५३८/ ~104 ~ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत आगम उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ संबंधी साहित्य [उपांगसूत्र- ८ से १२ "निरयावलिका-पंचक" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) | [आगम १९-२३] उपांग ८-१२ "निरयावलिका-आदि पंचक" सूत्राक अथ श्री निरयावलिकासूत्रस्य |११ २१ परिवहति ११/२९ १० निक्खेवओ॥३॥ २५ । ३९ ५ १२ य ॥२॥ १॥ सूत्रतद्वाथासूचा सान्तशब्दा १२ १३ संवड़ेति । १२/ ३५ ३० पण्णत्ते ॥४॥ ॥ इति मूत्रगाथाङ्कमचा ।। देखीए सूत्राणि ३१ सूत्रगाथा: ५ १२ २४ दाओ निक्खेवओ॥२॥ २७ इति निरयावलिकासूत्रस्य सूत्रतद्गाधाकपत्राङ्कः पत्यकः शब्दान्तः सूत्राङ्कः | ८ हन्वमागच्छति ३६ २२ सम्मत्तो॥ सूचा ॥ दीप १ १२ पुडविसिलापट्टए १ ६ होत्था १५/३८ २५ , २ १७ पडिगया ८ विहरति १६] ४२ १० , क्रमाक ३ १ विहरति ३ निच्छुहावेइ । १७४२ १५ सम्मत्त के लिए ३ २१ कण्हे १० उ २५ उवबन्ने इति सूत्राङ्कसूचा देखीए ४ १९ सुरूवे १९ २ पन्नत्ते १९/ अथ सूत्रगाथाङ्कमचा ६ १७ ओयाए १९ ११ भाणियब्बो तहा २०/ १२ १६ परियत्ता ॥१॥ १५ पडिगया २० ८ तिबेमि ॥१॥ २१ २९ २० ॥१॥ 'सवृत्तिक ९ ९ उबक्ने २१. ४ सम्मत्तो २२ २६ २१ समादहे। आगम ९ १७ अणुपविट्ठा २३ ५ निक्खेवओ ॥२॥ २३] २७ ? समादहे।। ३॥ सुत्ताणि' || ११ १८ परिवहति २३ २० , ॥२॥ .. २४ ३७ ३ गंधदेवी य ॥१॥ ४॥ 6 . - - ~105~ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपाग+प्रकीर्णकसूत्र-लघबहदविषयानक्रमा [उपांगसूत्र- ८ से १२ "निरयावलिका-पंचक" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सूत्राक यहा देखीए देशः। दीप क्रमांक के लिए देखीए ॥ अथ श्रीनिरयावलिकाया वृहद्विषयानुक्रमः॥ १ राजगृहनगरगुणशीलचैत्यादि___वर्णनातिदेशः। २ आर्यसुधर्मवर्णनाद्यतिदेशः केशिवत् । निरयावलिकासु कालादी(१०)- ११ गर्भस्थानाशः । अर्द्धराज्यदानेऽर्पणोक्तिः, काला न्यध्ययनानि । ३ | १२ कोणिकजन्मोत्कुरुटिकायां त्यागः, | दीनामैकमत्यं, युद्धाय निर्गमः, गण५ चम्पापूर्णभद्रश्रेणिकपुत्रकोणिक १२ (१८)राजसभा, युद्धाय निर्गमः । १८ पद्मावतीकालीकालकुमारवर्णनाति- । १३ कोणिकालीवेधः, मुखे धरणमष्टको १९ कालस्य दृढपतिशवद्विदेहेषु मुक्तिः। | दायश्च। ६ कालस्य रथमुशलसङ्ग्रामे गमनम् । ६ १४ श्रेणिकबन्धनं, कोणिकस्य नृपः | ॥ इति प्रथमाध्ययनम् ॥ ७ श्रीवीरसमवसरणादि, प्रश्ने रथमुशल- त्वं च । १३ २८ सुकालकुमारवर्णनं, शेषाणा(८)युद्धे कालस्य कालकरणकथनम् । ९ | १५ चेल्लुगातुष्टिपृच्छा, स्वरूपकथनं । मतिदेशश्च । ८ कालस्य पङ्कप्रभायां हेमामे दशसाग- परशुहस्तस्य गतिः, तालपुटभक्षणं, ॥ इति निरयावलिकायाः प्रथमो वर्गः।। रस्थितिकतयोत्पत्तिः। " काणिकविलापः, चम्पानिवेशश्च । १४ २१ पद्मादी(१०)न्यध्ययनानि, काल९ युद्धनिमित्तकथनेऽभयस्य वर्णने चित्र- | १६ कालादीनां राज्यभागदानम् । पद्मावत्योः पुत्रः पद्मः, स्थविरास्यातिदेशः चेलगायाश्च प्रभावत्याः। | १७ बिहल्लस्य सेचनकक्रीडा, हार- ते दीक्षा, सौधमें देवत्वम् । २० हस्तियुगलयाचनं, विशालागमनं, २० सुकालपुत्रमहापद्मस्येशाने | १० गर्भागमनदोहदपूर्तिः। त्रिर्दूतप्रेषणम् । १७/ गतिः, शेषाव्यष्ट* 'सवृत्तिक आगम ३ जम्बूस्वामिवर्णनातिदेशः। ४ निरयाबलिकाकल्पावतंसिकापुष्पिका. पुष्पचूलिकावृष्णिदशावर्गाः, सुत्ताणि ~106~ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [उपांगसूत्र- ८ से १२ “निरयावलिका-पंचक" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सुत्राक श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे निरयावल्याः कीर्णकानां देखीए ॥ ९ ॥ वृहद्विषयानु दीप क्रमांक के लिए देखीए ARENEAREERARRETRESS ।। इति द्वितीयो वर्गः॥ बहुपुत्रिकतयोत्पत्तिः, विभेले जन्म, | निषधस्य धर्मजागरिका, दीक्षा, | २३, २२ चन्द्रस्योत्पत्तिः, पाान्तिके द्वात्रिंशत्पुत्राः, राष्ट्रकूटाज्ञा, श्रावक- | सर्वार्थसिद्धे देवत्वं, विदेहेषु मुक्तिः । दीक्षा च। २३ धर्माशीकारः प्रव्रज्या च । ३५ २४ सूर्यस्योत्पत्तिः। २७ पूर्णभद्रदीक्षादि। ३६ ॥ इति पञ्चमो वर्गः ॥ २५ शुक्रस्योत्पत्तिः, पार्धान्तिके सोमिलः | २८ माणिभद्रदीक्षादि, दत्ताद्यतिदेशश्च । ३६| ३१निरयावलिकाश्रुतस्कन्धवर्गादि। " स्य यात्रादिप्रश्नाः, श्रावकधर्माङ्गी ॥ इति तृतीयो वर्गः॥ ॥ इति श्रीनिग्यावलिकाया कारः, मिथ्यात्वं, आमाद्यारोपणे, वृहद्विषयानुक्रमः ॥ होतृकादिषु तापसत्वं, दिशां प्रोक्षणं, णादि, भूतादीक्षा, शरीरबकुशत्वं, देवागमः, दुष्पत्रजितत्वाख्यान, काष्ट- हीदेव्याधतिदेशः। मुद्राबन्धः पञ्चमदिवसे प्रश्नोत्तरे, ॥ इति चतुर्थो वर्गः ।। अणुव्रतपतिपत्तिश्च । २९ ३०, ५||* निषधा(१२)वध्ययनानि, सुभद्रायाः पुत्राभिलाषः, सुव्रता- रैवतकनन्दनद्वारवतीकृष्णवर्णनं, ऽऽऽऽगमन, श्रावकधर्माङ्गीकारः, नेमिगणमृद्वरदत्तकृता निषधपृच्छा, दीक्षा, बालाभ्यजनादि, पृथग्भावः, वीराङ्गदभवे दीक्षा, मनोरमे देवः, 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~107~ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्राक यहां देखीए उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र- १ “चतु:शरण"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ॥ अथ श्रीचतुःशरणादिप्रकीर्णक २९* विविधसिद्धगुणकीर्तनतच्छरणे। २ दशकस्य वृह द्विषयानुक्रमः॥ १०* चतुर्दशपूर्व्यादिसाधुशरणम्। , १॥ अथ चतुःशरणम् ।। ४८ विविधमहिम्ना धर्मस्य शरणम्। १ १* आवश्यकषट्के षडाधिकाराः। १ ६७* सामायिकेन चारित्रस्य चतुर्विंशति ५४ मिथ्यात्वाईदायवर्णजीवपरितापना. स्तवेन दर्शनस्य प्रतिपत्त्या ज्ञानादीनां धर्मविरुद्धादीनां गाँ। ५८. अर्हदादीनामहत्त्वादेर्जिनवचनाप्रतिक्रमणेन तस्खलितस्य नुस्खारिक यानां चानुमोदना। , कायोत्सर्गेण चरणायतिचाराणां ६०* कुशलप्रकृतिबन्धशुभानुबन्धादि। ५ प्रत्याख्यानेन तपोऽतिचारस्य सर्वै. ६३* त्रिकालकर्तव्यता जन्मसफलता रावश्यकैर्वीर्याचारस्य च शुद्धिः ।। नितिकारणत्वं च। ८* स्वम चतुर्दशकम् । ९* कुशलानुबन्ध्यध्ययनकीर्तनप्रतिज्ञा। १ १० चतुःशरणदुष्कृतगह सुकृतानु मोदनानि । ११* अहंदादिचतुष्कशरणलाभो धन्यस्य । दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि २२* विविधार्हद्गुणकीर्तनेन तच्छरणम् । २ [आगम-२४] प्रकीर्णक-१ “चतु:शरण" ~108~ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र- २ “आतुरप्रत्याख्यान” ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक - सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी-साहित्य) ८ | २ अधातुरप्रत्याख्यानम् ॥ ६४* बालपण्डितमरणलक्षणम् । ६५* देशविरतिलक्षणम् । ६८* अणुव्रतगुणत्रत शिक्षाव्रतानि । ७० बाटपण्डितमरणे आशुकार मरणादिकारणानि । ७१* भक्तपरिज्ञोक्तोपक्रमातिदेशः । ७२* कल्योपपस्यादि तत्फलम् । ७३ पण्डित पण्डितमरणोपक्रमः । १. उत्तमार्थादिप्रतिक्रमणमज्ञानादिध्यानत्रिषष्टिपतिक्रमणं च । ७८* श्रीवर्द्धमानगणधरनमस्कारः, प्राणारम्भादिप्रत्याख्यानं, साम्यं, वैराशानां व्युत्सर्गः समाधिपालनमाहारसागौरव पायममत्वत्यागक्षामणानि साकारप्रत्याख्यानं च। ७ ६ " 19 23 ५ ५ ५ ५ ८६* सिद्धनमकारः, तत्त्वश्रद्धा, पापप्रत्याख्यानं, संस्तारकप्रतिज्ञा, दुष्कृतव्युत्सर्गः, सामायिकोच्चारः, उपधिशरीरादिन्युत्सर्गः साम्यादि, रागाद्युत्सर्गः, आत्मालम्बनं च । ७ ७ ८७ आत्मनो ज्ञानादिमयत्वम् । ९४* एकस्यैवोत्पत्त्यादि, आत्मनः शाश्वतत्वं संयोगमूलं दुःखं, मूलोत्तरगुणानाराधनाप्रतिक्रमणं, भयमदसज्ञागौरवाशातनारागद्वेषा संयमा ज्ञानमिध्यात्वममस्वनिन्दागदि । ८ ९५* बालबदालोचना । ९६* आलोचकगुणाः । 33 " " ९७* अकृतज्ञताक्षामणम् । ९८* बालादि (३) मरणत्रयलक्षणानि । ९९* अनाराघकलक्षणानि । १०६* मरण विराधनायां कान्दर्पिकाद्या (५) देवदुर्गतयः, दुर्लभसुलभ [आगम-२५] प्रकीर्णक-२ " आतुरप्रत्याख्यान” 33 27 लक्षणम् । १०७* जिनवचनाज्ञस्य बालमरणम् । १०२* शस्त्रग्रहणादीनि मरणानुबन्धीनि पण्डितमरणप्रतिज्ञा । ~109~ १२८* धीरकपुरुषशीलः शीलानां मरणम् । " १२९४ ज्ञानाद्युपयोग कारकस्य मुक्तिः ।" १३०* चिरोषितब्रह्मचर्यादिसिद्धिः । ९ १३४. निष्कषायादेः शुभप्रत्याख्यानता । " " ११०* उद्वेजक जातिमरण वेदनास्मरणम् ।" १११* वेदनोत्पादे स्वभावदर्शनम् । ११४* सर्वपुद्गलाहारादि, सरिद्भिर्लवणवत्कामभोगैरतृप्तिः, सचिताहारविपाकेक्षणम् । ११८* परिकर्मण आवश्यकत्वम् । १२४* भवविमुक्तिलक्षणं सर्वज्ञोपदेशः, वीतरागहेतुपदस्मृतिः, आराधनाफलम् । १२६* श्रमणत्वसंयतत्यध्यानं, शेषव्यु 11 " " १० सर्गः, जिनवचोमार्गलाभ:, मरणे निर्भयत्वम् । 29 १३३ आतुरप्रत्याख्यानस्य फलमुप संहारथ । 27 17 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृद्विषयानुक्रमों [ प्रकीर्णकसूत्र- ३ "महाप्रत्याख्यान" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) ॥३ अथ महाप्रत्याख्यानम् ॥ १७१. क्षीरनयनोदकयोः सागरसमत्वम् । उपदेशबलेन तपःपोतधरणम्। , २४४* श्रमणत्वाद्यनुध्यानं, निषिद्धत्यागः, १५७ तीर्थकरादिनमस्कारः, अद्धानं, १३ २१७* कन्दरासु दुर्गेऽध्यर्थसाधनं, किं पुनः उपध्यादेरचिन्तनीयादेरसंयमादेश्व पापप्रत्याख्यान, दुष्कृतनिन्दा, १८१* याबल्लोकप्रदेश प्रतियोनि च मरण, सङ्ग्रहयले जिनोक्तिश्रवणे च, व्युत्सर्गः। सामायिककृतिः, उपध्यादित्यागः, बालमरणानि, मात्रादिसम्बन्धबहुता, शिलातलगता धन्याः। १६ २४६* एकेनापि पदेन प्रत्याख्यानात्समाधिः । रागादिव्युत्सर्गः, क्षामणा, निन्ध एकस्य कर्मकरणादि, गतिचतुष्क- २२१* परिकर्मण आवश्यकता। " २५१* अईसिद्धाचार्योपाध्यायसाधूना निन्दादि, ममत्वपरिज्ञानादि, वेदनादेः स्मरणेन पण्डितमरणम् ।, २२२* तपसा कर्मनाशः। मलत्यादि। आत्मनो ज्ञानत्यादि, आराधना- ९* पण्डितमरणे फलं, विधिः, सर्व- २२३* पण्डितमरणान्मरणान्तः। २५३* सिद्धोपसम्पत्यादिना आराधकत्वम्। निन्दादि, आत्मन एकत्यादि, संयोग- पुद्गलानामाहारपरिणामिते, नरक २२५. अनशनादिना पण्डितमरणम्। " मूल दुक्खं, असंयममिथ्यात्वादि- म्लेच्छजातिभ्रमणम् , कामार्थ २२६* इन्द्रियसुखसातस्य मोहः। " २५८* वेदनासु नरकवेदनाना कृतकर्मणा परिज्ञानादि, अपराधक्षामणा, भोजनगन्धशब्दादि, युम्यादिसुखै२२७* लज्जादिनाऽनालोचकाऽनाराधकाः। दुःखविपाकानां च स्मरणम् । बालबन्भायात्यागेन ऋजोर्निर्वाणम् । रतृप्तिरत्राण च, राज्यभोगैरपि, २७२* अभ्युद्यतमरणं महापुरुषसेवितं, तृष्णासुखेच्छायोरच्छेदः, प्रार्थना- २३१* आराधनायाः श्रेयस्त्वं, आत्मनः तपःस्नेहपानं, आराधनापताकाहरणं, १६२* भावशल्यदोषाः। निन्दा, मुक्तिकारणानि, महाव्रतासंस्तारकत्वं, जिनवचनानुगमादिना कर्मबल्लीच्छेदः, भवत्रयेण मुक्तिः, १६५* आलोचनादिना कर्मलघुता, यथा ऽमूढसज्ञता, प्रमोदे तपोलोपः । १६ रजावतारा, बद्धकक्षता, कषायादिरोपः, क्रोधकलहादित्यागः, इन्द्रिययत्प्रायश्चित्तकृतिः, यथावृत्तकथनम् । नाशेन पताकाहरणे, जीवनमरणयोसंबरणादि, लेश्याभयगुप्त्यादीनां ११४ सवरण कमदाहः ज्ञानिनः कर्म रचिन्ता, उद्यतभावस्वं उत्कृष्ट जपन्य क्षयश्च । १६७* प्राणारम्भादिप्रत्याख्यानम् । त्यागादाने। मध्यमाराधनाफलम् । २३९* मरणे पदस्याप्युपकारः। १६९* पालनभावविशुद्धस्वरूपम्। १३ २१२* संगशल्यत्यागः, गुप्तिसमितिशरणं, २७५ सर्वभूतसाम्यादि धीरमरणं प्रत्या२४. धर्मस्य भूतहितत्वादित्वम् । ख्यानफलं च । दीप क्रमांक के लिए देखीए १७ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [आगम-२६] प्रकीर्णक-३ “महाप्रत्याख्यान" ~110~ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' मुनि दीपरत्नसागरेण ॥ ४ अथ भक्तपरिज्ञा ॥ २८०* वीरनमस्कारः शासनस्तुतिः ज्ञानव्यवसायोपदेशः, मोक्षसुखस्याबाध्यता भवसुखस्य परिणामदारुणता च। २० २८३ आज्ञाऽऽराधनात् शाश्वतसुखं, ज्ञानायाराधनं, अभ्युद्यतमरणेनाविकला राधनम् । २९० भक्त परिक्षा (३) यभ्युतमरणं, सविचाराविचारमाद्यं धृतिचलविकलानां प्रशमसुखपिपासितादीनां भक्तपरिज्ञा । २९१" भवस्य दुरन्तता । ३०४* नत्वा भक्तपरिज्ञविज्ञप्तिः, आलो २० " उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र- ४ “भक्तपरिज्ञा" ] पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) २० चनादिप्रतिपत्तिः, वन्दनं शुद्धिहेतुराराधना, बाल्यादालोचनादानं, प्रायश्चित्तप्रतिपत्तिः, महाव्रताद्यारोपणं, यावज्जीवप्रतिज्ञा प्रत्यर्पणं; उपस्थापना, देशविपण २१ ३५० गुरुपूजा, जिनेन्द्र भवनादिषु द्रव्यदानादि, संस्तारकमव्रज्या, चरमप्रत्या रूपानं, भक्तपरिज्ञाप्रति पतिः । ३१४ क्षेत्रप्रतिलेखना, त्रिविधाहारप्रत्याख्यानं, द्रव्यदर्शनं भुक्त्वा ऽपि संवेगः, शुभध्यानम् । ३१७ समाधिपानं तल्लक्षणं फलं च । ३२५ सङ्घनिवेदनमुत्सर्गश्य, चतुर्धाss २२ " 37 हारत्यागः, चैत्यवन्दनं, सङ्घक्षामणा, आचार्यादिक्षामणा, अपराघक्षामणा, मृगावतीवपापक्षयः । ३२७ अनुशास्तिस्वरूपम् । ३३४* मिथ्यात्वच्छेदः सम्यक्त्यभावना, वीतरागभक्तिः, नमस्काररतिः, स्वाध्यायोद्यमः, व्रतरक्षा, शल्यत्यागः इन्द्रियदमः कषायधातः, मिथ्यात्ववर्जनं दृढसम्यक्त्वता, [आगम-२७] प्रकीर्णक-४ “भक्तपरिज्ञा " २३ नमस्कार कुशलता च । ३४४ मृगतृष्णावदधर्मात्सुखेच्छा, अयादेरपि तीव्रं मिथ्यात्वं दत्त साधुद्वेष द्वयसनं सम्यक्त्वप्रतिछानि ज्ञानादीनि, जिनशासनरक्तता, ~ 111~ "1 13 सदर्शनस्या पर्यटनं, दर्शन रहितस्यासिद्धिः सदर्शनस्य जिननामदर्शनस्यानयता, अक्षयसुखहेतुता च । २४ ३५०* अर्हदादिभक्तिः, दुर्गतिनिवारणं, परम्परसुखप्राप्तिश्च नाभक्तिमतो निर्वृतिः, अभक्तिमानूषरे शालीवापी असस्येप्सुः अनभ्रवर्षेप्सुश्च मणिकारदृष्टान्तः । ३५६* संसारक्षयकारणो नमस्कारः, संसारोच्छेदः, मेण्टदृष्टान्तः, तं विना द्रव्यलिङ्गत्वं आराधनाहस्तः, सुगतौ रथः, सुदर्शनदृष्टान्तः । २५ ३६३* ज्ञानं, हृदय पिशाचवशीकरणं, हृदयकृष्ण सर्पोपशमनं मनोमर्कट २४ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: बन्धनं, संसारेऽप्यनाशकारणं, यवर्षेः चिळातिपुत्रस्य च दृष्टान्तः । २५ ३७१ जीववधत्यागः, आत्मौपम्येन दया, अनन्यधर्मत्वं बधे सम्बन्धिवधः, दयायां स्वदया, हिंसाफलं दुःखं, अहिंसाफलमारोग्यादि, चण्डाल दृष्टान्तः । ३७६* यतेरपि भाषादोषन लेपः, सत्यं प्रशस्तं सत्यवचसो विश्वासादि, इतरस्य पाषण्डचाण्डालता, वसुदृष्टान्तः । २६ ३८१* अदत्तदन्तशोधनस्यापि त्यागः, अर्थहारी जीवितहारी, अदत्तं लोक उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र- ४ “भक्तपरिज्ञा" ] संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) २६ "" धर्मविरुद्धं, दारिद्रयादिहेतुः, श्रावकपुत्रो दृष्टान्तः । ४०५* कामा दोषहेतवः, दुःखावहा मैथुनसज्ञा, कामो भुजङ्गोपमः हकवेदना, वणिजः कुबेरदत्तस्य च दृष्टान्तः, महिला दोषवयः, दुःखसमुद्रपातहेतु:, नदीबद् गुरुगिरि मेदिन्यः, महिलासु भुजङ्गीवाविश्वासः, निधन कारिकाः, हृदयहारिकाः वध्यमालावद्विनाशिकाः मालतीय मर्दनासहाथ, देवरतिनृपदृष्टान्तः, शोकदुरितादिकारिण्यः अपछापनस्थानं घन मालाब मोहविषयवर्द्धिन्यः चारित्र प्राणनाशिकाः मुनिमनोविद्राविकाश्च सिंहगुहावासिमुनिदृष्टान्तः, नदीवन्निमज्जिकाः, तारुण्यं महार्णववत् । २८ ४०९* सङ्गवर्जनं, सङ्गेन मारणादि, मणिपतिदृष्टान्तः, निःसङ्गस्य चक्रिणोऽप्यधिकं सुखम् । ४१६* निदानस्वरूपं, रागद्वेषमोहभेदाः, गङ्गदत्त विश्वभूतिचण्डपिङ्गलदृष्टाताः, काचन वैडूर्यहारणं, दुःखक्षयादिप्रार्थनं, निदानादिरहितः शिवसाधकः । ४२४* इन्द्रियासक्तः संसारभ्रमिः, स्वा स्थिले नवद् विषयाः सङ्गे परिश्रमः, कदलीव मिस्सारा विषयाः, प्रोषित २९ ~ 112 ~ २८ प्रियादिका (५) दृष्टान्ताः, विषयापेक्षस्यं भवः । ४२९* इन्द्रियदमः, आराधना, क्रोधादिनिग्रहः सुखदुःखे तद्भावाभावजे नन्दपरशुरामाद्या दृष्टान्ताः । ३. ४४७* अनुशास्तिप्रार्थना, परीवहादिसंभवे प्रतिज्ञास्मारणं, अवन्तीसुकुमारहष्टान्तः, भवनैर्गुण्यं, धर्मयानदुर्लभता, चिन्तामण्यादिवदपूर्वता, नमस्कारस्ारणेन प्राणत्यागः, जघन्यतः सौधर्मे उत्कूतोऽयुते सर्वार्थसिद्धौ वा, उपसंहारः । ३६ २६ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपांगादि विषयानुक्रमे 1108 11 उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र- ५ “तन्दुलवैचारिक" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) ॥ ५ अथ तन्दुलचारिकम् || ४५० * मङ्गलादि, अभिधेयनिर्देशः । ३१ ४५५* गर्भे दिनरात्रि मुहूर्त्तश्वासमानम् । ३२ ४६१* योनिऋतुज कालमानम् । ४६३ रुषादीनां रक्ताद्युत्कटत्वं स्थानं, पितृपुत्रसंख्या, गर्भस्थितिः । ,, में " ~113~ ७ मातापित्रङ्गानि । ८ गर्भगस्य नरके उपपातः । ९ गर्भगस्य देवलोके उपपतिः । १० गर्मगस्य सानत्यादि । ४६८* पचैर्गर्भस्वरूपम् । ११, ४७०* स्त्रीत्वा ( ४ ) अन्यतर जन्म १२ पादादिना जन्म | ४७१* द्वादश वर्षाणि गर्भस्थितिः । ४७३० जन्मदुःखादिना जातिस्मरणाभावः मातुर्वेदना च । ४७७ अशुचिस्वरूपम् । 31 [आगम-२८] प्रकीर्णक- ५ " तन्दुलवैचारिक " ३४ 77 ३५ २ ओजआहारः ३ कललार्बुदपेशीप्रभृत्यवस्था, शिराधमनी रोमादिसङ्ख्या | ३३ ४ गर्भगस्योपचाराद्यभावः सर्वाहारस्य श्रोत्रादीन्द्रियतयोपचयः । " ४८८* बालादि (१०) दशास्वरूपम् । ३७ ५ कवलाहाराभावः सर्वत आहारादि, रसहरणीशिरास्वरूपम् । १३, ४९५* दशाक्षेपणोपक्षेपाद्यवस्था । ३८ ६ ओज बाहारः, रसहरण्याऽऽहारः । ३४ ४९६* सुखिनोऽपि धर्मकर्तव्यता, दुःखिनो 75 ३.६ 11 प्रकीर्णकानां बृहद्विषयानु क्रमः ॥ ९९ ॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र- ५ "तन्दुलवैचारिक" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सुत्राक श्रीउपांगादि विषयानुक्रमे देखीए पुण्येन। दीप क्रमांक के लिए देखीए विशेषेण, सुखप्राप्तये दुःखवारणाय | राज्युच्छ्वासादिमानम्। ४४ नार्यादितत्पर्यायव्युत्पत्तिश्च । ५२/प्रकीर्णकानां च धर्मः, जातिकुलादिपुरस्कारश्च ५२९* आयुषि निद्रादिविभागः, धर्माकरणे | ५७६* स्त्रीचरित्रस्वरूपे। बृहद्विषया नुक्रमः पश्चात्तापः, आत्मज्ञानोपदेशः, जीवि-५८३* जडस्य सर्व निरर्थकं, पुत्रादि १४ बातिकादिरोगबहुलत्वेन शोभना तादीनां नदीवेगादिसमत्वं, भवस्य । नालम्बन, मरणे द्वितीयो धर्मः, धर्म एव भविष्यन्ती धर्मचिन्ता। जरामरणव्याप्तत्वम्। ४५ त्राणशरणादि प्रीतिकरादिश्च, भोगज्ञाने१५ युगलधार्मिकपुरुषवर्णनम् । ४०/१७ पृष्ठकरण्डकपांशुलिकादिमानादि, । न्द्रत्वादि राज्यादि च धर्मफलम्। ५३ १६ संहननसंस्थानवर्णनम् । ४१ अशेगागिन्यादिविरास्वरूपं, पित्तधारि-|५८६* उपसंहारः, उपदेशश्च । ५.१* संहननसंस्थानादिहानिः। प्यादिशिरामानं रुधिरादिमानं च । १६ ५२२० वर्षशताशीर्वादे युगायनर्तुमास- ५३१* अन्तर्वाशपरिवर्तजुगुप्सा, आच्छापक्षरात्रिदिवसमूहाच्छाससंख्या, दनाये रम्यता। तन्दुरुसङ्ख्या मुद्गलवणस्नेहपट- | १८ मनुष्यशरीरस्याशुचिता। ४७ शाटकसङ्ख्या, समयोच्छ्वासप्राण- | १६८, १९ विषयवैराग्यं, स्त्रीनिन्दा, स्तोकलवमुहूत्र्तस्वरूपं, नालिका- | बहिःपदार्थमनोहरता। १९ छिद्रस्य तदुदकस्य च स्वरूपं, वर्षे । २० स्त्रीणां प्रकृतिविषमत्यादि(९३)स्वरूपं, | ॥९८॥ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~114~ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि' उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र - ६ “संस्तारक" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलितः उपांग+प्रकीर्णक - सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) तीपुत्रस्य मजलकुमालस्य वीर ।। ६ अथ संस्तारकप्रकीर्णकम् ॥ ५८७* वर्धमाननमस्कारादि । ६००" संस्तारकस्याराधनादिस्वरूपत्वं, भूतग्रहणायुपमाच देवेन्द्रध्येयत्वं, सत्यस्मिन् सिद्धिपताका, शुक्लध्यानकेवलज्ञाननिर्माणलाभः श्रामण्यस्योत्कृष्टता । "" ६४ ६१४* संस्तारकस्य परममङ्गलता, तद्वतः शौयं परमार्थलाभः वसुधारोपमा, कल्याणरत्नमालारत्नाहरणं, निर्वाणलाभाश्रवनिरोधाद्यर्थत्रिकत्वा तीर्थत्वं निर्वाणस्य राज्यत्वं, राज्याभिषेकता, परमार्थता, देवानामपि विनयः, चन्द्रादिवरप्रेक्षणीयस्वादि । ६२९० संस्तारके भ्रमणस्वरूपं, शुद्धा शुद्धसंस्तारकस्वरूपम् | ५५ ५६ ६३७* संस्तारके प्रथम दिवसे लाभबहुता प्रतिसमयं कर्मक्षयः, तत्र चक्रिणोऽप्यधिकं सुखं नाट्याज्जिनवचने पस रतिः, वीतरागस्य विशुद्धं सुखं, सेवितगच्छा अपि भवे मग्नाः | ५६ ६३८* अन्तेऽपि संस्तारकादात्मनः पथ्यम् । ५६ ६४० आत्मैव संस्तारकः, संस्तारके यथाख्यातत्वम् । ५७ ६४१ वर्षात्रे तस्वा हेमन्ते संस्तारकः । ५७ ७७४* अर्णिकापुत्रस्य स्कन्धकशिष्याणां दण्डकस्य सुकोशल, अवन्तीसुकुमालस्य कार्तिकार्यस्य धर्मसिंहस्य चाणक्यस्य अमृतघोषस्य चण्डवेगस्य ललितघटायाः सिंह सेनस्य कुरूदत्तस्य चिला शिष्ययोश्वाराधनायां दृष्टान्ताः । ५९ ६७८* सागारप्रत्याख्यानं, पानक व्युत्सर्जनं च सर्वसङ्घक्षामणा, सर्वापराधक्षामणा, ६८४* उत्तमार्थानुमोदनं चतुर्गतिसुख दुःखस्मरणं, नरकेऽवशातनं, देवमनुज पराभियोगः, तिर्यक्रखे भीमवेदनादि, अतीतजन्ममरणानन्त्यम् । ६८६* मरणमयजन्मदुःख चिन्तनाच्छरीरात्मान्यत्व चिन्तनाच्च ममत्वोच्छेदः । ~ 115 ~ [आगम-२९] प्रकीर्णक-६ “संस्तारक” ५९ 21 ६८८" कायममत्वेन निर्विशेषदुःखम् । ६० ६२२* सङ्घस्य आचार्यादेः श्रमणसङ्घस्य जीवराशेश्व क्षामणम् । 27 ६९४० क्षामितातिचारादिरनन्तभवकर्म क्षपणम् । ७०९ अनुशास्तिः, गिरावप्युत्तमार्थ साधनं, धर्मार्थे शरीरत्यागः, संस्तारात्कर्मीकम्प, ज्ञानिनो बहुकर्मक्षयः, संस्तारातृतीये भवे मुक्तिः, सङ्घस्य महामुकुटत्वं चन्द्रक वेधसमत्व संस्तारकस्य, उपसंहारथ । ६१ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ __ [ प्रकीर्णकसूत्र- ७ “गच्छाचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) साहित्य प्रत सुत्राक यहां देखीए ६४ा बृद्विषया दीप क्रमांक के लिए देखीए श्रीउपांगादि-IN स्ततस्तत्परीक्षा। न्दता, शिष्यवर्गानोदने आज्ञा- प्रकीर्णकानां विषयानुक्रमेय ७२०* उन्मार्गस्थितमरिलक्षणम् । विराधना । ७२२* आचार्यस्याप्यालोचना। ७५८* गच्छकुगच्छलक्षणं गीतार्थमहिमा II ७२५ सङ्ग्रहादिहीनः सामाचार्यग्राहकः । अगीतार्थनिन्दा च अगीतार्थकुशीमार्गादेशकश्च सूरिचरी। लादिसंसर्गवर्जनम् । ७२७* स्मारणादिमान् भद्रका गुर्वबोधकः | ७५९ कुगच्छरक्षणम् शिष्यो वैरी। | ७६७* गच्छाबासे फलं, गच्छवासिलक्षणं च। ७२९* गुर्वनुशासनविधिः। , ७३०* सचारित्रिलक्षणम्। ७६८* आहारकारणानि। ॥ ७ अथ गच्छाचारप्रकीर्णकम् ॥ ७४०* सन्मार्गोन्मार्गस्थितसूरिलक्षणानि। ,७७५* ज्येष्ठसन्मानं आर्याकल्पाभोगः ७१०* मङ्गलाभिधेयादि। ,७४५* शुद्धकथकस्य संविनपक्षता संविम तदङ्गोपानाध्यानं च गच्छे। ७१६* गच्छवासेऽपि तन्निरपेक्षाणां भव- - पक्षलक्षण च। ६३ ७७२* आर्यासंसर्गवर्जनम् । ६६ वृद्धिः, निपुणगच्छे वासः। ७४८केषाञ्चित्सूरीणां नामग्रहेऽपि प्राय- | ७८०* भ्रष्ट चारित्रस्य निग्रहः । , ७१७ गच्छस्य मेट्यादिभूत आचार्य- श्चित्तं, प्रतिपृच्छादिरहितत्वे स्वच्छ | ७८४* संनिहितादिवर्जन, निभूतस्वभाव- १०.॥ 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [आगम-३०] प्रकीर्णक-७ “गच्छाचार" ~116 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत श्रीउपांगादिविषयानुक्रमे सूत्राक यहां ॥१०॥ देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए ZAREEKEEPEXEET LARSHAN उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र-७ “गच्छाचार"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) त्वादि, नानाभिग्रहाः, पृथ्व्याद्य- . आर्याऽध्यापनवर्जनं, स्त्रीराज्यकुत्सा, कथा, क्लेशः, अनालोचनं, वेष्ट. IN/प्रकीर्णकाना पीडकत्वं च। ६६ मण्डल्यामार्याऽनागमः, कषाया- लादिप्रयोगे दुर्गच्छता आर्याणाम् ।६९ हद्विषयानु ७८५ खर्यापमार्जनेन दयाहीनत्वम्। , नुदीरकत्वं, कषायरोधः, यहबो- ८३१ प्रापूर्णकावत्सलत्वं गतिविभ्रमादियु७८६* जलवर्जनं, ज्वलनोज्ज्वालनवर्जनं, गीतार्थाः, अशूनत्वं, चारित्रोज्ज्व- तत्वं बहुश उच्छोलनादि च न गच्छे। यतनया स रूपिकादिभिः कारणं, लत्वं, क्रयविक्रयवर्जनं, सुविहिते पुष्पादिसंघट्टनादिवर्जनं, हास्यक्री- वासश्च । ६८८४० तरुणी स्थविरान्तरा, धावनादि- . डादेः स्त्रिया बालादिकानामपि ८१६* उपाश्रयस्यैकक्षुल्लादिना क्षुल्लि । वर्जिका, समीपे न खराद्याः, पशबः नः करतनुस्पर्शस्य च बजनम्। ६७॥ कादिना वा न रक्षा। भुक्तयोगादि, अनालस्यादिगुणा७९४ अईतोऽपि स्त्रीकरस्पर्श निर्गुणत्वम्। ८१७* बहिःश्रमणीवसतौ दुर्गच्छस्वम् । , श्वार्याः संविमादिगुणाः, उत्तरप्रत्युत्तर ,८२० एकाकिश्रमणश्रमणीजल्पे जकार- । बर्जिकाः गणिनीपृष्ठिस्थितभाषिका, ८१४ अयोग्यादीक्षणं, निर्गुणनिर्धाटन, । मकारादिजल्पे गृहस्वभाषाजल्पे च गुप्तिविभेदानाख्यायिकाश्च । ७० शुषिराणामपरिभोगः, शुक्ल वस्त्रं, । दुर्गच्छत्वम् । ,८४२* विहारभेदेऽदर्शनादि, धर्मोपदेश हिरण्याद्यस्पर्शः,आर्या प्रतिग्रहाभोगः, ८२८ चित्ररूपत्वं, सीवनादि, सविलास- मुक्त्वा न भाषणम् । तदौषधाभोगः, एकस्त्रीसमवर्जन, गत्यादि, गृहस्थगृहे कथा, रात्री ८४३" गृहस्थभाषायां मासोपवासाद्यपि निष्फलम् । ७० ८४६* महानिशीथादेरुद्धारः, उत्तमता गच्छाचारस्य फलं च। 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ~117~ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [प्रकीर्णकसूत्र- ८ "गणिविज्जा"] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत श्रीउपांगादि सूत्रांक यहां देखीए चैत्यपूजादिषु वावय॑नक्षत्राणि । प्रकीर्णकानां बृहद्विषया विषयानुक्रमे ॥१०२॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए mama ८९१ बवादीनि करणानि, तदानयनो॥ ८ अथ गणिविद्याप्रकीर्णकम् ॥ | पायः, निष्क्रमणादिषु प्राथाणि च ।। ८४७* अभिधेयप्रामाण्यम् । ८४८* दिवसतिथिनक्षत्राघभिधेयनिर्देशः ८९३ निष्क्रमणादिषु गुर्बादयो वाराः ।। ८४२* दिवसरात्र्योर्बलाबलत्वम् । ९०१* रुद्रादिमुहूर्तानां छायामानं, तत्कृ८५६ प्रतिपदादितिथीनां फलं बलाबलं च। त्यानि च। ७१ ५१४* शकुनानां पुंस्वादित्व, तत्कृत्यानि, ८८६ गमनादिषु नक्षत्राणि सन्ध्याग चलस्थिरराशिहोरादिकृत्यानि। ७४ तादीनां स्वरूपं फलं च, पादपोप- ९२२* निमित्तानां स्वरूप, तत्कार्य, तत्मागमनविद्यालोचोपस्थापनादि बल्यं च। कार्यारम्भविद्याधारणमृदुकर्म- ९२८ तिथ्यादिषु निमित्तान्तेषु बलाभिक्षागुरुपतिमातपःकर्मोपकरण- बलविचारः। XANU NVIKENN 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि ॥१०२॥ [आगम-३१] प्रकीर्णक-८ “गणिविज्जा" ~118~ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र- ९ "देवेन्द्रस्तव" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत ७९ देखीए सूत्राक ||९ अथ देवेन्द्रस्तवाकीणकम् ॥ ९२९* मजलाभिधेयादि । ९३४ श्रावककृता वीरस्तुतिः । ९३८" देवेन्द्रतद्वाससंख्यास्थितिदीप भवनबाहल्यादिरतिलयनो. रासाबध्यादिप्रश्नाः। क्रमाक ९४२* उत्तरस्योपक्रमः। के लिए ९७३* भवनपतीनामिन्द्राः, तद्भवनसङ्देखीए ख्या, उत्तरदक्षिणभेदेन स्थितिः। तद्धवनस्थान, सद्भबनस्वरूपाऽ5'सवृत्तिक यामादि, दक्षिणोत्तरभेदेनेन्द्राणां नामानि, भवनसङ्ख्या , अग्रमहिषीआगम सङ्ख्या । | १७८* जम्बूद्वीपादिसमश्रध्या आबासादी सङ्ख्या, असुरादीनामावासस्थानम्।। महाऽल्पद्धिकत्वं, अभ्यन्तर ऽऽवरणं च । बाह्यनक्षत्रत्वं च। ८२१०८६* नृक्षेत्राद्वहिरवस्थिता ज्योतिष्काः, ९९४ चमरादीना(२०)वैक्रियशक्तिमानम्। १००८* जघन्योत्कृष्टनिर्व्याघातेतरत्तार- | परस्परान्तरितत्व, अन्तरमानं, कान्तरम् । एकशशिपरिवारश्च। ८६] १.८ म्यन्तराणां भेदास्तन्नामानि च, तब्द- १०३६* अभिजिदादीनां चन्द्रसूर्य- १.९०* ज्योतिष्काणां परापरे स्थिती। .. सतिः, भवनस्थान, भवनविस्तारः, योगकालः । ८१.९६ द्वादश कल्याः, अवेयकेषु नान्यदक्षिणोत्तरभेदेनेन्द्राः, तरिस्थतिश्च ।। १०६३* जम्बूद्वीपादिषु चन्दसूर्यग्रहनक्षत्र- | लिङ्गेनोत्पादः, व्यापन्नदर्शनानां तारकसया , पिटकानि, अवेयकेषूत्पादः। ८७ १०१२* ज्योतिकानां भेदाः, विमा पतयः, मेर्वनुचराः। ८५११११* सौधर्मादिषु विमानसङ्ख्या, नाकारः, ज्योतिश्चक्रवाहल्यं, १८६७° ज्योतिष्कचारेण सुखदुःखविधिः। स्थितिः, नवौवेयकनामानि, चन्द्रसूर्यनक्षत्र महताराणां तद्विमानसङ्ख्या, स्थितिश्च। ८८ विष्कम्भादि। ८११०६९* तापक्षेत्रस्य वृद्धिहानी, बहि- १११४* अनुत्तराणां नामानि, दिम्यवस्था, |१०२१ विमानवाहकामराः। ८२ रन्तः संस्थानम् । स्थितिश्च । १०२६* चन्द्रादीनां मन्दीप्रगतित्वं, ।१०७५* चन्द्रस्य वृद्धिहान्यादि, राहुणा- | १११८* कल्पनैवेयकानुत्तरसंस्थानानि, सुत्ताणि आगम-३२ प्रकीर्णक-९ “देवेन्द्रस्तव" ~119~ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि श्री उपांगादि विषयानुक्रमे ॥१०४॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र- ९ "देवेन्द्रस्तव" ] संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः तदाधारः । ११२५* भवनपत्यादीनां लेश्यावर्णः, शरीरमानं, स्थित्यनुसारेण शरीर मानकरणम् । ८९ ११२६* विमानपृथ्व्योर्मानं द्वात्रिंशच्छतानि । ११३०* कायस्पर्शरूपशब्दमन: प्रवीचाराप्रवीचाराः। ११४४* विमानानां गन्धस्पर्शवर्णनं, ऊर्ध्वलोक विमानानां आवलिकाप्रविष्टानां पुष्पावकीर्णानां च सङ्ख्या स्थानं संस्थानं परस्परस्थितिः प्राकारादिभेदाश्च । ९० ११४७* भवनानां भीमनगराणां ज्योतिष्क 33 विमानानां सङ्ख्या, वैमानिकापबहुत्वं च । ९० ११५२* सौधर्मेशानयोर्देवी विमानसङ्ख्या, अनुचराणां सुखस्पर्शगन्धाः, एकगर्भाश्च । १९६० * स्थितिविशेषेण देवानामाहारोसकालः । ११६८* सौधर्मादीनामवधिविषयः, नारकाद्या अवधेरवाद्याः। १२०० सौधर्मादिषु पृथ्व्या बाहल्य विमानानां वर्णः देवदेवीवर्णनं, प्रासादासनवर्णनं च । १२०६* सिद्धशिलाया अन्तरं संस्थानमायामादि बाहस्य च । ~ 120~ २० ९१ ९३ ९४ १२३०* सिद्धानां स्थानं, प्रतिघातादि, संस्थानं, त्रिभेदावगाहना, अन्योन्यावगाहना, लक्षणं, स्पर्शना, ज्ञानदर्शने, सुखं, ग्लेच्छदृष्टान्तः, नामानि अव्याबाधत्यं च । १२३५ अहंतां वन्दनमहिमस्तुतिसिद्धिदानकीर्तनेनोपसंहारः । ९६ ९५ प्रकीर्णकानां बृहद्विषयानु क्रमः ॥ १०४ ॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र- ९ "मरणसमाधि" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) ॥१० अथ मरणसमाधिप्रकीर्णकम् ॥ १३२७* आलोचनसंलेखनाक्षामणादि१२३६ मङ्गलाभिधेयादि। ९० (११)मरणविधिः। १०२ १३९३ सम्यक्त्वचारित्रप्रशंसा।। १०७ १२४५" अभ्युद्यतमरणे गुणवदाचार्याय १३३२ विनयफलं, शुद्धिकारकस्वरूपं, । १४२३* शुद्धिरुपध्यादित्यागः, तपशिष्यपृच्छादि । ९७ अष्टादशविधः, करूपः आलोचक उद्यमः, परिकर्म, विषयत्यागः, १२५१* आराधनोपदेशः दर्शनज्ञाना गुणाः, उपस्थापनास्थानानि(१०), संलेखनाच। १०९ द्याराधना च। अतिचारालोचना, यथावत्कथनं, १४४२ कषायविषयवर्जन, समिति१२५५* दर्शनाऽऽराधना तत्फलं च । , दव्यभावशल्यवर्जन च। १०२ गुप्तियुक्तता, रागादेःखादि। १२५८% बालपण्डितमरणानां फलं, पण्डित१३४४७ अनाराधकाराधकलक्षणं आलो हेतुत्वं, अनिदानता च ।। ११० मरणस्वरूपम् । चनायाः तत्फलं तद्विधिश्च । १०३ १५३५* आतुरप्रत्याख्यानाध्ययनम् । ११६ १२७७* परिकर्मविधिः। १३५७* शस्त्रादिभ्योऽधिकं शल्यं दुर्लभ १५५८ सिद्धाधुपसंपत्तिः, वेदनायां - १२९३* पण्डितमरणविधिः। १०० बोधित्वहेतुश्च, शल्यभेदाः, बति सालम्बन, अभ्युद्यतमरणं, आराधना१३०१* कान्दर्षिकाद्या(५)भावनाः। , सेवाकारणानि, अज्ञातापराधक्षा विधिः, उत्कृष्टमध्यमजघन्या१३०४* समाधिप्रास्वप्राप्तियोम्याः। १.१ " मणा च। राधनाफलं, धीराधीरयोमरण १३१०" धर्मप्राप्तिदुर्लभता, कामानां १३६१आलोचनादोषा:(१०),प्रायश्चित्त सुविहितस्य वैमानिकत्वादि। ११० • तुच्छता, विषयतृष्णानिन्दा च।,, विधिश्च । । १३१२४ बालमरणस्वरूपम्। " १३६३* द्वादशभेदं तपः । १०५ १३१३* मोहिनोऽप्यालोचनायामाराधक १३८४ स्वाध्यायप्रशंसा, श्रुतयोगफलं च। स्वम क्रमाक के लिए देखीए 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि [आगम-३३] प्रकीर्णक-१० "मरणसमाधि' ~ 121~ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य प्रत सूत्रांक यहां देखीए दीप क्रमांक के लिए देखी 'सवृत्तिक आगम सुत्ताणि उपांगादि षयानुक्रमे १०६॥ उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहद्विषयानुक्रमौ मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः [ प्रकीर्णकसूत्र- ९ “मरणसमाधि" ] संकलितः उपांग+प्रकीर्णक- सूत्रस्य विषयानुक्रमः (आगम-संबंधी - साहित्य) " १५६९ " अविचारानशनकारक गुणाः, निर्यामकगुणाश्च । १५८९* आचार्यादिक्षामणा, अनशन १२० १२२ कारकस्वरूपं, स्नेहदीपक्षयत्रत्क्षयः संस्तारकस्य, तस्य विधिः स्थानं, चतुर्विधाहारव्युत्सर्गश्च । १६१४* निर्यामणाविधिः, अप्रमादक्षमादि कुटुम्बराम्यं च । १६३९* गतिषु सुखदुःखे वेदना क्लेशः जन्ममरणे च गर्भवासदुःखं, जन्मदुःखं, गर्भेऽशुचिता, वैमानिकस्यापि योन्यन्धकारे कलमले भैरवेअवतारः गिरिगुफायां वासः, नरके त्रय्वादिपानं उद्दामशब्दश्रवणं घातादि वैतरण्यादिच, तिर्यक्षूद्वेगः, नरत्वे भीषणता, समुद्रे वृक्षाच बासः कृतं मातुर्दुग्धं नयनोदकं च चिन्तयित्वा ममत्यच्छेदश्च । १३१ १७३०* आराधकलक्षणं आर्चरौद्रयोः रागद्वेषयोश्ध वर्जनं वेदनासहनं, सन कुमारस्य, जिनधर्मश्रेष्ठिनः मेतार्यस्य चिलातीपुत्रस्य गजसुकु मालस्य नभःसेनस्य अवन्तीसुकुमालस्य चन्द्रावतंसकस्य दमदन्तस्य स्कन्दक शिष्याणां धन्यशालिभद्रयोः सुरचितादीनां पाण्डवानां दण्डस्य सुकोशलस्य वज्रः क्षुल्लकस्य धर्मयशसः ~122~ अर्हनकस्य चाणाक्यस्य द्वात्रिंशदूधटाया: इलापुत्रस्य हस्तिमित्रस्य सुमनोभद्रर्थ्यादेः जातिमुकस्य स्थूलभद्रस्य दत्तस्य कुरूदचसुत स्य सोमदत्तस्य अर्जुनस्य कृष्णस्य दण्डनस्य कालवेश्यस्य नन्दकस्य इन्ददत्तस्य अशकटपितुः आषाढभूतेः तिरब्धः वानरयूथपतेः सिंह सेनगजस्य गन्धहस्तिनः भुजयोध दष्टान्ताः । १७७२० पादपोपगमनविधिः । १७७८* इङ्गिनीमरणविधिः । १७८४* आहार त्यागोपदेशः शिलातलादावनशनं च। १३४ १३२ १३३ 29 प्रकीर्णकांन बृहद्विषया नुक्रमः | ॥ १०६ ॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम संबंधी साहित्य उपांग+प्रकीर्णकसूत्र-लघुबृहविषयानुक्रमौ [ प्रकीर्णकसूत्र- ९ "मरणसमाधि" ] मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्रस्य विषयानुक्रम: (आगम-संबंधी-साहित्य) प्रत सत्राक यहा श्रीउपांगादिशा देखीए विषयानुक्रमे प्रकीर्णकनां बृहद्विषया नुक्रमः शुद्धिपत्रकं च १०७॥ दीप क्रमांक के लिए देखीए १७८५१ भक्तपरिज्ञास्थानम् १३४ १८९६० मनुष्यजातेबैंचित्य नरत्वादेदी । १८९१ उपसंहारः। १८०४* उपसर्गे जन्मादेः गतिदुःखानां लभ्यं मात्रादेरत्राणत्वं, दुःखाः ॥ इति मरणसमाधिप्रकीर्णकम् ॥ नुपशमकत्वं, रोगादिपीडा, च चिन्तनम् । धर्मस्य दुःखप्रतिपक्षत्वं जिन ॥ इति श्रीचतु:शरणादिप्रकीर्णक१८७५" भावनाद्वादशकम् । मतमहिमा च । १४२ दशकस्य बन विषयानुक्रमः शुद्धिपत्रकम् पृष्ठांकः भागः पंक्तिः अशुद्धम् शुद्धम् पृष्ठांकः भागः पंक्ति अशुद्धम् शुद्धम् 1 २९ २१ भिच्छो मिच्छो ६९ २ १ आहाराभब्यादि, आहारभव्यादि। ६ २ ७ २९. १२१३०७ ६. २ ११ भव्यसञ्झ्यादिजीवा भव्यसझ्यादिजीवा १० २ ४ त्रिशाद्विध प्रिंशद्विध०७६२ २४ कृताभिषेकजिनानयम् कृताभिषेकजिना-1 शिविध १४ ३ ८ समूच्छिमपंचद्रिय संमूच्छिमपंचेन्द्रियः नयनम् ५९ २ १० पृथिव्यादिनाम पृथिव्यादीनाम०८८ २ १० ६१ २ २ पृथ्व्यादिनामा पृथ्व्यादीनामा०८८ २ ११ इति श्रीमीपपातिक-राजप्रक्षीय-जीवाजीचाभिगम-प्रशापना-चंद्रसूर्यप्राप्तियुग्म-जंवूशीपप्रशप्ति-उपांगपंचकमयनिरयापलिका। चतुःशरणाविप्रकीर्णकदशकानां सूत्रसूत्रगाथानामकारादिक्रमः लघुर्घहंध विषयानुक्रमः समाप्तः। श्रीभागमोद्धारसंग्रहे भागः २ RAPENREENERAL 'सवृत्तिक आगम २९२१ सुत्ताणि १०७॥ मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: उपांग+प्रकीर्णक-सूत्र लघुबृहत् विषयानुक्रम: परिसमाप्त: ~ 123~ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नम: पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च उपांग+प्रकीर्णक-सूत्र लघुबृहविषयानुक्रमौ ' (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: “उपांग+प्रकीर्णक-सूत्र लघु-बृहत् विषयानुक्रम:” नाम्ना परिसमाप्त: > Remember it's a Net Publications of 'jain_e_library's' ~124 ~