Book Title: Stav evam Stavan Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229311/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून - २०१२ श्री मेकनन्दनोपाध्याय कृत स्तव एवं स्तवन - म. विनयसागर श्री जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार, जैसलमेर, प्रकरण पोथी पत्र संख्या ६७-६८ और ५६-५८ पर ये कृतियाँ अंकित हैं । इसके प्रणेता श्री मेरुनन्दनोपाध्याय हैं जो कि श्री जिनभद्रसूरि के शिष्यरत्न थे । इनके जीवनवृत्त, जन्म, स्थान, दीक्षास्थान, दीक्षा संवत्, उपाध्याय पद संवत्, स्वर्गवास संवत् इत्यादि के सम्बन्ध में इतिहास मौन है। अतएव इस सम्बन्ध में कुछ भी लिखना भूलभरा ही होगा । इसमें प्रथम कृति श्री करहेटक पार्श्वनाथ स्तवन है । करहेटक का वर्तमान प्रसिद्ध नाम करहेडा पार्श्वना है, जो कि मेवाड़ में स्थिति है । इस करहेटक पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा सम्भवतः श्री जिनवर्द्धनसूरि ने करवाई थी । इसका जीर्णोद्धार भी लगभग पचास वर्ष पूर्व हो चुका है। राजस्थान के प्रसिद्ध तीर्थों में इसका नाम है । वसन्ततिलकावृत्त में रचित श्री करहेटक पार्श्वनाथ का स्तव है, जो कि पाँच पद्यों का है। इसमें करहेटक पार्श्वनाथ की स्तुति की गई है और उनका गुणवर्णन करते हुए कहा गया है कि कल्पवृक्षादि के समान यह मेरे घर में आ गया है। मुझे अब कुछ नहीं चाहिए, पापों का विनाश हो और मेरे हृदय में पार्श्वनाथ का निवास हो । दूसरी लघु कृति वीस विहरमाण स्तवन है। यह अपभ्रंश भाषा से प्रभावित मरुगुर्जर भाषा में रचा गया है । इस विहरमान स्तवन में जम्बूद्वीप के चार, धातकीखण्ड के आठ और पुष्करार्धद्वीप के आठ, इस प्रकार वीस विहरमान तीर्थङ्करों को नमस्कार किया गया है । सीमन्धरादि प्रत्येक तीर्थङ्कर का नामोल्लेख सहित गुण वर्णन करते हुए देहमान, वर्णनलञ्छन तथा चौंतीस अतिशय का भी उल्लेख किया गया है। अन्त में कृतिकार मेरुनन्दन ने अपना नाम दिया है। प्रस्तुत है यह दोनों कृतियाँ - Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ श्री करहेडक-पार्श्व - स्तवः आनन्दभ(क)न्द-कुमुदाकरपूर्णचन्द्रं विश्वत्रयीनयनशीतलभावचन्द्रम् । उद्दण्डचण्डमहिमारमया सनाथं नित्यं नमामि करहेटक-पार्श्वनाथम् ॥१॥ नाथ ! त्वदीयमुखमण्डलमीक्षमाणो, नायं जनो लवणिमापरपारमेति । पोतः प्रयत्नचलितोऽपि कदापि किं वा, यं (यद्?) गम्यते चरमसागरपुष्करान्तम् ॥२॥ कान्तं तवेश नयनद्वितयं विलोक्य कारुण्यपुण्यपयसा भरितं सरोवत् । मल्लोचने हरिणवच्चपले चिराय सन्तोषपोषमयतां भवदावते ||३|| कल्पद्रुमो मम गृहाङ्गणमागतोऽद्य अनुसन्धान- ५९ चिन्तामणिः करतले चटितोऽद्य सद्यः । अद्याऽऽश्रिता मम पदौ सुरधेनुरेव यद् भेटितोऽसि करटक-पार्श्वदेवः ॥४॥ सिद्धानि मेऽद्य सकलानि मनोमतानि, पापानि पार्श्वजिन ! मे विलयं गतानि । याचे न किञ्चिदपरं भवतो गभीरं ध्यानं तवाऽस्ति यदि महदि मे स धीरम् ( ? ) ॥५॥ ॥ इति करहेटक-श्रीपार्श्वस्तवनं कृतं श्री मेरुनन्दनोपाध्यायेन ॥ श्रीवीसविहरमाणस्तवनम् भत्ति-सरोवरु ऊलटिउ जागिय हियइ जगीस । साहिब आणंदिहिं संथुणिमो विहरमाण जिण वीस ॥१॥ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून २०१२ - जंबुदीवि चत्तारि जिण धायईसंडिहिं अट्ठ । पुक्खरद्धि तह अट्ठ इम वीस नमउं गय-कट्ठ ॥२॥ सामिय करुणारसभरिय सीमंधर जिणराय । नियदंसणु दइ अमिय- समु पूरि मणोरह ताय ॥३॥ जाणउं ते सुकयत्थ जण जे तुह वयण सुणंति । धन्नति जे तुह करि चरणु पामिय कम्म हति ॥४॥ पावपंक जगउद्धरण सधर जुगंधर सामि । भव सायर उत्तारि मम लीणउ छउं तुह नामि ॥५॥ मयणानलि संतावियउ वंछउं तुह पय छांह । नंदणवण सम बाहुजिण दइ अवलंबण बांह ||६|| जीव जोनि चउगइ भमिउ जिण चउरासी लक्ख । सिरि सुबाह हिव तुह सरणि आविउ दय करि रक्ख ||७|| गुण संकुल कमलानिलय निम्मल सामि सुजाय । करउ केलि महु हियइसरि कमलोवम तुह पाय ॥८॥ सामि सयंपहु सो जयउ जसु पसाइ मयकुंभो । मोह महाभडु भंजि करि ऊभिज्जइ जस खंभो ॥९॥ गुण-काणण सिंचण सुघण रिसहाणण पय- रंगो । किम पामिय हुं रंजवियो निय मणे स सारंग ॥ १०॥ जे नमंति मनि खंति धरिऽणंतवीरिय पय कंत । भोगवंति ते भविय जण सिव सुह- रिद्धि अनंत ॥११॥ पहु सूरप्पहु संघवणि नाण - किरण गण चूरि । पुन्नपयोहर उल्लसिय पाव तिमिर गय दूरि ॥१२॥ ते अजरामर हुंति जिण सिरि तित्थयर विसाल । सवणंजलि जेति तु पीयइं वाणिय अमिय-रसाल ॥१३॥ नाण महीधर वज्जवर पुद्धर वयरधर धीर । रक्ख रक्खि जिण वज्जधर रयणायर गंभीर ॥१४॥ ३ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-५९ तिय दंसणि वण-कुमुय जिम उल्लसिय मुणिविंद / नंद नंद आणंदमय चंदाणण जिणचंद / / 15 / / निच्छइ हिव नहु संभवए भूरि भमणु संसारि / चंदबाहु जउ भमर जिम ठिउ मण-कमल मझारि // 16 / / काम-भुयंगम बल-दलणु नाममंतु मण रंगि / जे समरई सिरि भुयग जिण रोग नहीं तिह अंगि // 17 // रयणि दिवसु किम वीसरई ईसर जिण तुह पाय / सासय-सुक्खहं कारणिहिं जह सेवई सुरराय // 18 // कवण सु होसिइ मुज्झ दिणु नेमिप्पह नयणेहिं / जिणि जोइ सु रोमंचियउ थुणिसु महुर-वयणेहि // 19 / / विस्ससेण जिण विसय-विस लहरिउ अम्ह सरीरो / निय संगम पीयूष-रसि-छंटिय करि वयधीरो // 20 // कलि कलमल-नासण सलिल महिमालउ गमह भद्द / निय सेवय महु देहि पहो सिव मंगल महभद्द // 21 // सुर नर तिरि संसय विसर देसण सद्विहरंतो / समवसरण भूसणु जयउ देवेसरु अरुहंतो // 22 // तह मंदिर अंगणि रमइं सिद्धि बुद्धि जस रिद्धि / जे तिसंउ झायंति मणि तित्थेसरु जस रिद्धि / / 23 / / देह माणि धणु पंचसय सवि जिण कंचण-वन्न / चउतीसइ अइसय सहिय वसहंकिय सिरि-पुन्न // 24 // सुरतरु सुंदरु इय थुणिय विहरमाण जिण सार / वसउ मेरुनंदणिहिं जिम महु मणि सुह फलकार // 25 // // इति श्री वीसविहरमाण स्तवनं //