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श्रीउत्तमविजयजी कृत
Kap
पिस्तालीस आगम-पूजा ॥
" वाचक जस" ना शिष्य गुणविजयजी, तेमना शिष्य सुमतिविजयजी, अने तेमना शिष्य उत्तमविजयजीए रचेली, आशरे ७६ कडीओमां पथराएली आ रचना छे. वि.सं.१८३४मां, सूरत बंदरना संघवी ताराचंदनां पत्नी रत्नबाईनी विनंतिथी, तथा ते चातुर्मासमां सूरतमां श्राविका - समुदाये करेल आगम- तपनी तेमज तेना ऊजमणांनी स्मृतिरूपे आ पूजा कविए बनावी होवानुं, पूजानी छेल्ली केटलीक कडीओ वांचतां समजाय छे.
४५ आगमो जैन संघनां पवित्र धर्मशास्त्रो छे. तेनुं पूजन अने बहुमान जैनो विशेष रूपे करे छे. ते अर्थे पं. बीरविजयजी तथा पं. रूपविजयजीए, नानी तथा मोटी पूजाओ बनावी छे, जे आजे पण जैनो द्वारा ठाठपूर्वक मंदिरोमां भणाववामां आवे छे. ते परंपरानी ज आ एक रचना छे.
आमां सात ढाळो छे. अन्य पूजाओनी माफक अहीं जलादि अष्ट प्रकारी पूजा वगेरेनुं विधान नथी. मात्र गेय रचना तरीके ज आ पूजा स्वीकारवानी होय तेवुं लागे छे. अन्यथा तेनी आठ ढाळ होत, दरेकमां जल वगेरे एकेक द्रव्य वडे पूजानो निर्देश होत, ते अंगेनां काव्य-मंत्र पण होत. ते कशुं ज नथी, ते परथी लागे छे के आमां कर्ताए मात्र आगमोनां नामो तथा महिमा वर्णववानो ज उद्देश राख्यो छे.
सुखकर साहिब सेवीइं श्री संखेश्वर जगधणी
- विजयशीलचन्द्रसूरि
आ रचनानी ९ पत्रोनी एक प्रतिनी झेरोक्स परथी आ संपादन थयुं छे. ते प्रतिनो ले. सं. १८९० छे. पाठभेद माटे ला. द. विद्यामंदिरनी एक प्रतिनो आधार लीधो छे, तेनो क्रमांक झेरोक्समां नथी. केम के संभवतः ए पत्रो कोई चोपडाआकारनी पोथीमांथी झेरोक्स थयां जणाय छे.
४५ आगमनी पूजा ॥
दूहा ॥
गोडीमंडण पास
प्रणमुं अधिक उल्लास ||१||
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अनुसंधान-१५ • 77 ब्रह्मांणी वरदायनी गीरवांणि(णी) जी(जि)नवांण । भगवती भारती सारदा श्रुतदेवी सुख खांण ॥२।। इंम अनेक अभिधा-धरी पसरी त्रिभुवन मांह । ते जिनवाणी नमी करी आगम थुणिइं उच्छाह ॥३॥ जिनपति अर्थ थकी करी(कही ?) गुंथी गणधर-माल | सिद्ध(द्धि)वधू वरवा भणी ज्ञान सुगंध रसाल ॥४॥
आगम अगम अछे घणुं नय-गम-भंग-प्रमाण । स्याद्वाद तम सोधता लहीइं तत्त्व निरवाण ॥५॥ द्वादश अंग थकी अधिक श्रुत नहि जगमां कोय । त्रिपदी पांमी गणधरें विरची' शुभमति जोय ॥६॥ चोरासी आगम प्रथम पंचम आरें जांण । प्रवचन पणयालीस हवे वरते , गुंणखांण ॥७॥ तेहतणा नाम ज कहुं पूजा-हेतें सार । जस समरण सुखसंपदा पांमें अतिविस्तार ||८|| हूं नवि जाणुं श्रुत भणी मंदमती अनांण । तो पिण माहरी मुखरता करज्यो कवि प्रमाण ॥९॥
ढाल : प्रथम पूरवदिसि ए देशी ॥ परम मंगलकलं, सविजिन हितकरूं, जिनवरं इंणी परें उपदिशें ए । भवि-जीव धारज्यो, कर्म-रिपु वारज्यो, तारज्यो आतमा भा(भव थकी ए। धुरि अंग आचार तो, सुअरबंध होय धार तो, पणवीस अज्झयणे सोभतो ए। भाव अपूर्ण कह्या, मुनिगुं(ग)णे सद्दह्या, पूजीइं भावथी श्रुत गुणीए ॥१॥
ढाल १r अंग बीजु सूअ(ग)डंग, जिनआणा सूरवड, परवडो मारग देखीइं ए । सूअखंध दोय भला, अर्थ जीहां निरमला, त्रीणसें त्रेशट्ठि मत वला(ली) ए। वेवीस अज्झयणा, गाथाबंधे भण्या, मुनि नय ठांण ए गुंण तणा ए।
१.०वादे तस लाद. । २. विरच्या लाद. । ३."पूजादीठ बदाम एक एक मेलवी अने वासपूजा करता जावी, ए विधिए ज्ञानपूजा भणाववी" इति लाद. ॥ ४. दिसी कृत सुची स्नानको" लाद. १ ५. प्रथमाल( मांग पूजा ला. ||
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अनुसंधान-१५ . 78
पूजो आ(ग)म धणी, वाणी श्रीजिनवरतणी, नांण वर रयण ए हित भणीए ॥२॥
ढाल २॥ त्रिजु ठांणंग का, विविध अर्थे लद्यं, वह्यं श्रुतधरें बुधिबल थकी ए। एकादी दस ठाणनो, अर्थ वर नांणनो, जाणनो संग करी धारीई ए । अंतगड पज्जवा, [अक्षर अज्जवा], सज्जवा गुरुमुखथी लही ए । परमपूरचेरे भणी, सुद्ध चेतनगुणी, पूजीइं आगम वर-मणी ए ॥३॥
ढाल ३ ॥ चोथु समवाअंग रे, एकादी अंतर सभंग ए, रंग ए अर्थना फरसथी ए । विनय करी धारीइं, कुंमति-मती वारीई, तारीइं चेतन कुगतिथीई ए । गुरु उपगारीया, जेणे बहू तारीया, हारीया कुमती अनाणीया ए । पूजीई भक्ति धरी, द्रव्य-भावें करी, एह साधन परमपदवी तणुं ए ॥४॥
ढाल ४ ॥ अंग पंचम महोदधी, भगवतीसूत्र विधी, रिधी वर गणधर 'गुण तणी ए । प्रष्ण छत्रीस सहस, श्रुतवर तणो ए नीधस, रस लीयो गौतम गणपती ए । एह थकी अधिक नही, सूत्र सोलस सही, वहीयों गुरुमुखथी ग्रहो ए । अर्थ गंभीरता, सूत्रतणी सरलता, विमलता वंदी आगम भणी ए ॥५॥
ढाल ५॥ अंग छट्ठो गुंण भर्यो, कथानुजोगे कर्यो, वर्यो मुनीवरें शिष्यनें कारणे ए । वीस एक-ऊण ए, अज्झयणा गुंणमए, चुंण लीइ मुनीवर-हंसला ए । दुसम कालमां, मति बहुं आलमां, जालमांथी वली वली काढीई ए । जिनवरवांणीनो, पार नही पाणीनो, महोदयी जिम अंग पूजो सही ए ॥६॥
ढाल ६॥ उपासग सातमुं, दस अझयण नमुं, तमोपहा एह अंग ज सही ए । श्रावक दश "तर्या, थिरता गुंणें भर्या, सास्वता अर्थ एहवा इंहां ए । गृहीपणे एहवा, अचलधर्म सेववा, होइं इहार सुरवरा सुखभर रहें ए । १. द्वितीयांगपूजा ला. ॥ २.पुरुषे लाद. । ३."तृतीयांगपूजा" लाद. 1 ४."चतुर्थांगपूजा" लाद. । ५.गण ला. । ६. "वही योग गुरुथी ग्रहो ए" लाद. । ७."पंचमांगपूजा" लाद. ॥ ८.एही ए लाद. । ९."षष्टांगपूजा" लाद. । १०.तणा लाद. । ११. 'हा इम सुर०' लाद. |
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अनुसंधान - १५• 79
चेतन सुद्धता, आत्मगुंण बुद्धता, उद्धता वारी आगम अचिई ए ॥७॥
ढाल ७॥१
अष्टम अंतगडदशा, कर्मक्षय शिव वसा, वरग आठें करी सोभतुं ए । यादव वंशना, शुभ पुंन्य अंशना, मुगतिरमणी वरी सिद्ध हुया ए । सहू मली अज्झयणा, चउनैय वली भण्या, गण्या मुनिवरें सुत्रअर्थे करी ए । आतमज्ञांननें, नीरमल वांननें, श्रुत भणी पूजीइं भक्तिथी ए ||८||
हाल ८ ॥
नवमु अंग अति ऊजलु, अणुत्तरोववाइ भलूं, अज्झयणा तेत्रीस इहां लह्या ए । एक अवतारका, भवस्थिति वारका, तारका आत्मवीर्ये वसी ए । कर्म रस पाकथी, 'पूर्णना वाक्यथी, 'थकी चवी एअ धर्मे वसें ए । परमपुण्याढ्यता, 'लही शुभ साधता, बाद्धता छोडिने श्रुत नमो ए ॥९॥
ढाल ९॥ प्रष्ण व्याकर्णंग जें, दसम अंग" जे भजें, तजे नवनव वेसनें प्रांणिया ए । द्वार इंहां दश कह्या, पंच संवर लह्या, पंच आश्रव तजी गुंण भजो ए । काटवो क्रोध तें, संजम सोधतें, बोधतें एह आगम थकी ए । आगम एह सेवीई, परम पद लेवी, हेवीइं पूजवा श्रुत भणी ए ॥१०॥ ढाल १०॥११
इग्यारमो अंग सांभलो, मुकी मन-आंमलो, कांबलो नवी लहे रंगनें ए । शुभाशुभ विपाकना, दश दश अज्झयणा, बिहूं मली वीस अज्झयण हूया ए । वात चेतनतणी, जिनवरें भवि भणी, गणी ए गणधर वर गुच्छना ए । वली वली अंग ए, सूंणीइं मन रंग ए. चंग ए पूजो अंग इग्यारमो ए ॥११॥ ढाल ११।१३
दूहा ॥ अंग-देश उपांग जे वीरचे श्रुतधर जेह ।
भाव अधिक करी पूजीइं बार उपांग ससनेह ||१||
१. "सप्तमांगपूजा" लाद । २. वस्था ला. लाद । ३. चउनवई लाद । ४. " अष्टमांगपूजा " लाद. 1 ५. पूणना नाकथी लाद । ६. नाकथी चवीय धर्मे लाद । ७. साद्धता लाद । ८. "नवमांगपूजा " लाद । ९.० रणांगजे लाद । १०. अंगने लाद । ११. “ दसमी अं०" लाद. १२. गुथता लाद । १३. "एकादसांगपूजा एकादसमी" लाद. |
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अनुसंधान-१५ . 80 ढाल १। नदि जमुना के तीर उडे दोय पंखीया - ए देशी ।। धुर उववाई उपांग सूंणो तुंमें गणधरा
सूत्रे रचि सुविशेष जे अर्थथी गणधरा । वर्णन सूत्र विचार जगती परिणांमनो
भवि पूजो शुभ भाव आगम मन कांमनो ॥१२॥ ढाल १ ॥ रायपसेणी उपांग भावें करी पूजीइं
सूरियाभ सुर अधिकार के भक्तिथी लीजीइं । राय प्रदेशी प्रश्ण के चित्त धारी सिरें _ नमो रे नमो भवि प्रांणी दुजो उपांग सिरे ॥१३॥ ढाल २ ॥ जीवाभिगम उपांग ए त्रीजुं पूजीइं
प्रतिपति दश अध्ययन घणुं सुणी रीझीइं । जीवना भेद अनेक कह्या बहुश्रुत भणी
कीजीइं जन्म कृतारथ सूत्र अर्थे भणी ॥१४॥ ढाल ३॥ उपांग चोथु पनवणा मन धारीइं
पद छत्रीस गुंणाकर अर्थ निरधारीइं । सिद्धांतकेरो परम रेरस विचारीइं
पूजी प्रणमी सूत्र ए अज्ञांन मति वारीइं ॥१५। 'ढाल ४ ॥ पांचमुं जंबुदीवपन्नती दिल धरो
क्षेत्र स्वरूप विचार उदार ते गुणें करो । जंबुद्वीपमां भाव कह्या जे जगधणी
वंदो श्रुत शुभ भाव के वांणि जिनतणी ॥१६॥ "ढाल ५ ॥ छटुं उपांग ‘जे सूरपन्नती श्रुतें' भण्डे
सूर्य तणो इहां चार गणित गणीइं गण्यु । पाहुडा "सत्तावन इहां मन आंणजो
ए कालें अतीकठीण पूजी गुंण जांणजो ॥१७॥ "ढाल ६ ॥
१.गुणी लाद. । २.चौदमी पूजा लाद. 1 ३.रहस्य लाद. । ४.सूत्र अज्ञानता वा० लाद. | ५.पनरमी पूजा लाद. । ६.गुणकरो लाद. । ७.सोलमी पूजा लाद. । ८.ते लाद. 1 ९.श्रुत भणुं लाद. १०.सतावीस आ.। ११.सत्तरमी पूजा लाद. ।
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अनुसंधान - १५ 81
चंदपती उपांग सातमुं ए सही
कालतणी मरजाद ए चार थकी लही ।
पाहुडा पंचास श्रुतधर बले वही
गुरुसेवाथी अर्थ 'लह्यो तुंमे उम्हही ||१८|| ढाल ७||
नीरियाहीवही (निरयावली) उपांग आठमु हितकरू देवादिकना भाव का श्रीजिनवरू ।
गाथाबंध बंधित श्रुत मनोहरू
वंदीइं वारोवार ते आगम सुखकरु || १९|| ढाल ८ ॥ कपवर्डिग उपांग नमुं श्रीसुखकरु
दश अध्ययन छें एहमां वस्तु ते सुंदरु । मंगलकरण सिद्धांत ए सदा जयकरू
सेव करो नितमेव भवोभव दुखहरू ॥२०॥ ढाल' ९|| पूफीआ (पुप्फिया) उपांग ए दसमुं जिन कह्युं
एहमां दश अध्ययन छें श्रुत ए नांमें ग्रह्युं । दुख - दोहग सवि ' जाए थाई सुखकरूं
वंदो सूत्रना धारक वली' मुनीवरू ॥ २१॥ ' ढाल १० ॥ पूफचूलीया उपांग इग्यारमुं वंदीई
गुंण थुंणी मुनिमाहंतना आतम नंदीई ।
अघवारण सुखकारण जीनवांणी नमो
एहमां दश अध्ययन भणी नीरमल रमो ॥ २२॥ ढाल ११ ॥ उपांग बारमुं "वन्नीदशा भवी सेवीइं
दश अध्ययन सुणिनें वांछित वर लेवीइं ।
पूजतां परम कल्यांण के नांण चरण गुणा
वंदो सर्व उपांग ते" श्रुतधर गुण थुण्या ||२३|| ढाल १२॥
१. ल ला. । २. अढारमी पूजा लाद. ३. उगणीस्स लाद । ४. सदा इह ज० लाद । ५. वीसमी पूजा लाद । ६. जांई लाद । ७. वली वली लाद । ८. एकवीसमी पूजा लाद । ९.२२मी पूजा लाद. | १०. वह्नि० लाद । ११. के लाद । १२. तेवीसमी पूजा लाद.
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अनुसंधान - १५० 82
दुहा ॥
गुणखाणि गणधर नमो कर्या पयन्ना जेण । जे जे कालें वरतता तेह प्रमांणे कहेण ॥ १ ॥
ढाल : १ || मीठडा जी रे || ए देशी ||
श्रुतदेवी समरी सदा जी रे, हवें पयन्ना सूत्र वखांण रे जी रे,
जीनवांणि जीन पूजीइं जी रे, 'काइ आगम अर्थ नीधांन रे जी रे || आंकणी || पहीलो पयनो वंदीइं जी रे, चउसरण नांमे सुखकार रे, ॥ जी० ॥
चार सरण सुधा लही जी रे, पांमीजें भवनो पार रे जी रे || जी० ॥ २४२ ढाल २॥ बीजो पयनो पूजीइं जी रे, कांइ मरणविधि नांम धार रे जी रे ॥जि० ॥ समाधिमरण सुधो करी रे, कांइ भवोभव दूख निवार' रे जी रे ॥ जी०॥ ढाल ३ || त्रीजो पयन्नो जाणीइं जी रे, कांइ व्रत पच्चखाण उदार रे 1 अर्थ थकी नांम धारीइं जी रे, घट काय' वर हित धा रे ॥ जी०|| ३२ ढाल १० || (?)
चोथो पयन्नो अर्चता जी रे, नांमें आयुर पचखांण रे जी रे । भाव - आतुरता यलवी जी रे, पच्चखांण धरो जीन-आंण रे || जी० ॥ ढाल" ५॥ पांचमो पयन्नो प्रतीतथी जी रे, संथारंग नांमे सेव" रे जी रे ।
काल अनंतो गयो वही जी रे, गुणकर एह नीतमेव रे जी रे || जी० ॥२८॥ ढाल ६ || छट्टो पयन्नो वंदी रे, तंदूलवीया लीडं नाम रे ।
गरम स्वरूप इहां कह्या १४ जी रे, उपजे जीव जे कांम रे जी रे || जी० ॥ २९१५, ढाल ७||
चंदावीजय नांमे भलो जी रे, पयन्नो सतमेसुअनांण रे जी रे । समाधीमरणनें जोगा जी रे, जेट होए मुनिवर राण रे जी रे || जी०गा ३०,
ढाल ८||
१. आ पंक्ति आदर्श प्रतिमां नथी । २. चोवीसमी २४ लाद । ३. पूजीए जी० लाद. | ४. भवभव लाद. । ५.निवारी रे लाद । ६. पंचवीसमी पूजा २५ लाद । ७. कायने लाद । ८. घारो लाद. ९. छवीसमी पूजा २६ लाद । १०. सतावीसमी पूजा २७ लाद. ११. सेववो जी लाद. । १२.२८मी पूजा लाद ॥ १३. वेआलीअनांमो ला. ॥। १४. कछु लाद ।। १५. उगणत्रीसमी पूजा लाद । १६. सत समु नाण आदर्शे ।। १७. योग्यता लाद । १८ त्रीसमी पूजा लाद. ॥
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अनुसंधान-१५ •83 देवींद्रसत' आठमो जी रे, पयनो अर्थ प्रमाण रे जी रे । इंद्रस्वरूपनी वरणना जी रे, कहीइं नमो जीनभांण रे जी रे॥जी॥२ ३१।। ढाल९।। नवमो पयन्नो संथुण्यो जी रे, गणिवीजा नाम गुंणखांण रे जी रे । ग्रहनक्षत्र करणादीनुं जी रे, गणित का गणधार रे जी रे ॥जी०॥ ३२॥ढाल१०॥ दशमो पयनो सांभलो जी रे, वीरथुई उदार रे जी रे । वीर तणी स्तवना करी जी रे, तुंमे पामो "भवतणो पार रे जी रे ॥जी॥३३॥६
ढाल ११॥ जे जे कालें वरतता जी रे, तीर्थंकरना सीष्य रे जी रे । प्रतेकें पयना ते करी रे जी रे, वंदो" भवि निसदीस रे जी रे ॥जी०॥३४॥ ढाल १२।।
दूहा ॥ छेद तणी पूजा हवें, करीई चित्त हित आंण । सूत्र कह्या षट भेद ए, वंदो संत सुजाण ॥३५॥(१)॥
ढाल १॥ तुंमें आव्या ने स्युं लाव्या जी'- ए देशी ॥ पहिलो छेद भवि पूजो जी, सुत्रतणा" रसिया । व्रतकल्पर नांमें बुझो जी, मुनीवर मन वसीया । खडगधारा सम राहे जी सु० । चरणकरण अवगाहें जी मु०१३ ॥३६॥ ढाल१॥ बीजो छेद हवें जांणो जी सु० । पंचकल्प मन आंणो जी मुं० 1 विवहार इहां पंच भाख्या जी सु० । गांभिर मुंनि मन राख्या जी मुं० ॥३७॥ ढाल २॥ विवहार छेद त्रीजो जांणो जी सु० । मुनि विवहार प्रमाणो जी मुं० । अपवाद ने उछरंग(रंग) साचा जी सु० । वंदो अविचल वाचा जी मुं० ॥ ३८॥
ढाल || "दिसाकल्प चोथो छेद जी सु० । भाषा भाव अभेदजी मुं. ! धन धन ए जीनवांणि जी सु० । वंदो "जिनागम नांणि जी मु. ॥३९॥८ ढाल ४||
१.देवींद्रसत आ० आदर्श ।। २.एकत्रीसमी पूजा लाद. ॥ ३.कह आ. ॥ ४.बत्रीसमी पूजा लाद, ॥ ५.भवनो लाद. ।। ६. तेत्रीसमी पूजा लाद. ।। ७. ते वंदो लाद. १ ८.सयाण लाद. ॥ ९.जी, मोरा साजना-९ लाद. ॥ १०.तणा रागी लाद.॥ ११.वृहत कल्प० लाद. ।। १२.गुणरागी लाद. ॥ १३.चोत्रीसमी पू० ३४ लाद. ।। १४.पांत्रीसमी पूजा ३५ लाद. ॥ १५. छत्रीसमी पूजा ३६ लाद.२२, १६. दसा० लाद. ।। १७.वंदो अत्तागम० लाद. ।। १८.साङग्रीसमी पूजा ३७ लाद. ॥
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अनुसंधान-१५ . 84 लघु निशीथ छेद सारो जी सु० । श्रद्धावंतनें प्यारो जी मुं० । पूजो पंचम छेद जी सु० । टलि मननो खेद जी मु० ॥४०॥ ढाल ५॥ माहानिशीथ छेद छठ्ठो जी सु० । जिनमारग उतकिट्ठो जी मु० । गोपांग(?) कह्या अर्थ एहना जी सु०। वंदो सांत सनेहा जी मु०॥४१॥ ढाल ६।। श्रुतधरनी छे एह आणाजी सु० । आगम अर्थ प्रमाणा जी मु० । ओछी बुधि नवि करवी जी सु० । उत्तम थीरता धरवी मु० ॥४२॥
ढाल || 'नमो नमो श्री सेर्बुजा गिरवर - ए देशी ! मूल सूत्र पूजो हवे च्यार, साधुनो सुद्ध आचार रे।। जस भावन मन पावन एही ज, 'सजगती मुगती दातार रे ।।
'नमो नमो आगम सुखकार ॥४३॥ आं०|| दशवैकालक मुल सुत्र धारो, सजंभव पूत्र प्यारो रे । मनकमुनि उपगारने कीधो, आगम रस ए लीधो रे ।नमो०॥ ४४|ढाल २॥ उत्तराध्ययन मूलसुत्र बीजें, अध्ययन छत्रीस कहीजें रे । वीरनी वांणि चीतमा धारी, पूजो भावि हीतकारी रे नि० ४५॥ ढाल ३॥ त्रीजी ओघनीरयुक्ती कहीइं, विवीध अर्थे लहीइं रे । भद्रबाहु गुरु वचन वीचारी, पूजो शुभ आचारी रे ।।न० ४६॥ ढाल ४|| आवश्यक मूल सूत्र वखांणो, अधावंत चीत आंणो रे । षट आवश्यकनी नीरयुक्ती, गुरु भद्रबाहुनी उक्ती रे । नमो० ४७॥११ मूल सूत्र पूजो भवि भावें, रत्नत्रयी गुंण पावें रे। वंदो ए सुजस-गुणनी रचना, सुमतिवीजय गुरु वचना रे ॥नमो० ४८॥
ढाल : २भविजन वंदो - ए देशी ॥ आगम अनोपम गुण रयणे भरी, गणवर अर्थनी पेटी । नमो रे नमो सवि भविजन भावें, अनादी अनांणनें मेट ॥
... १३भवियण वंदो रे आगम सुखकारी ॥४९|| १.आडत्रीसमी पूजा ३८ लाद. ॥ २.गोपात्त लाद. ॥ ३.ए वंदो सात० लाद. ॥ ४.उगणचालीसमी ३९ लाद. ॥ ५.नमो रे नमो० लाद. ॥ ६.सदगती० लाद. ॥ ७."नमो रे नमो आगम सनेही, प्रभु वाणी गुण गेही रे । आतम अरथीने हीतकारण सुणीए सुत्र उमेही रे नमो० २॥" लाद.।। ८. चालीसमी पूजा० लाद. ।। ९.एकताली समाप्त लाद. ॥ १०.बेतालीसमी पूजा लाद. ॥ ११.नेतालीसमी पूजा लाद. ।। १२.भवीजीन वंदो रेकल्याणक दीन मीठो - ए देशी लाद. ॥१३ १३.भवीअण भावे रे लाल जीवरवन (? वाणी लाद. ॥
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अनुसंधान - १५ • 85
मंगल धुर लहीइं सवि श्रुतनें, नंदीसुत्र आनंदो ।
आतम ज्ञांनी अनुभव रसिया, नांण सुधारस 'वंदो भ० ॥ २५० ॥ ढाल ॥ बीजो अनुजोगद्वार ज जाचो, अनुजोग स्यर्णे भरीओ ।
अर्थ गांभिर अपार मनोहर, सयंभुरमण जीम दरीओ भ० ॥ ५१ ॥ * चार नीखेपा जीनवरें "भाष्या, श्रुतमें गणधरे राख्या । ग्वणादिक लिपीनें अभियोगें, भावश्रुर्ते रस चाख्या भ० ॥५२॥५ अष्ट महासिद्धि नवनिधि प्रगटें, कांमकुंभ सुरधेणुं । रण चिंतामणि सुरद्रुमथी पिण, आगम उत्तम लेंहणुं भ० ॥५३॥
ढाल
एह आगम संथुणतां मुझनें, हरख वध्यो श्रुतनेहें जी । बालक-बोली सम ए रचना, नांम थकी करी एहें जी || १|| आगम तप कीधो सबी सीधो, श्राविका टोली सनेहा जी । सूत्र थकी आगम पणयालीस, सुणतां लाभ अछेहा जी ||२|| "सुरतबिंदरमांहिं सोभागी, संघ सयल गुण रागी जी । संघवी ताराचंद पत्नी अनोपम, रत्नबाई मति जागी जी ॥३॥ उजमणुं समुदाई करीने, नरभव लाहो लीधो जी । करणि पुन्यतणि शिवरमणी, वरवा हाथो दीधो जी ||४|| मंगलमाला लच्छिविशाला, माता मयंगल' राजें जी । मनगमती रति सरीखी रामा, पदमनी रूपें छाजेंजी ॥५॥ सुगुणसेवीत नीत पुत्र पुत्रीका, मीत्र मिलें मन सुहाला जी । नव नव रंग अभंग रसाला, लहीइं झाकझमाला जी ||६|| संवत अढार चोत्रीसनें मानें, कार्त्तिकि शदि पंचमी ज्ञांनें जी । बुधवारे ए आगमस्तवना, पूरण करी शुभ वचना जी ||७||
१. चंदो ला. ॥ २. चोमालीसमी ४४ पूजा ला ॥ ३.५१मी कडी पछी १ कडी ला. प्रतिमां अधिक छे: "खीर खांड घृत इक्षु अनोपम, दधी पय मीसरी मीठी । एहथी पीण अधिकी प्रभुवांणी, जो अनुभवथी दीठी " ॥ ४.०वरभाषा ला. ॥ ५.५२ पछी १ कडी ला. मां अधिक : "गणीवर पेटी सुत्रनी कुच्ची, मुढ संदेहनी सुची । श्रुतनांणी मती जेहनी उच्ची, अर्थ लहे मन खूची ॥" ६. ढाल : राग धन्यासी ला. ॥ ७. सुरती बंदीर ला. ॥ ८. मयगल ला. ॥ ९. सुहीला ला. ।।
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________________ अनुसंधान-१५ . 86 तपगच्छनायक गुणनिधि गोरुया, श्रीविजयधर्मसूरीराय जी / जास प्रसादें श्रुतगुंण धुणीओ, जन्म कृतारथ गणीयो जी / / 8 / / 'नायचारीज बिरुदनो धारी, परमती दूर निवारी जी / श्रीजसवीजय वाचक वर शिष्य, गुणविजय जगीस जी // 9 // गुरु श्रीसुमतिविजय मुझ पाठक, तस पद मधुकर रशियो जी / उत्तमविजय' आगम वंदें, पून्य महोदय वशियो जी // 10 // आगमनांण जे भणस्य गणस्यें, तस घर मंगलमालाजी / जगमाहिं जसलच्छि वरस्यें, जय जयकार विशाला जी // 11 // इति श्रीपिस्तालीस आगमनी पूजा समाप्तम् // संवत् १८९०ना वर्षे भाद्रवा वदि 5 वार सोमे // लि.डुंगरजी // सरसपुरमध्ये // वासणसेरी मध्ये // श्रीरस्तु / / १.न्यायाचारीज ला. // 2. परमत ला. / / ३.सीसा, श्रीगुण. ला. // ४.ए आगम ला. // ५.नाम जे ला. // 6.