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लावण्यसमयकृत
नेमिरङ्गरत्नाकर छन्द : आस्वाद अने पाठ / अर्थशुद्धि
डॉ. कान्तिभाई बी. शाह
लावण्यसमय विक्रमना सोळमा शतकमां थई गयेला एक गणनापात्र जैन साधुकवि छे. एमणे ज रचेली महत्त्वनी कृति 'विमलप्रबन्ध'नी प्रशस्तिमां कविओ पोताना वंशादिनो परिचय आप्यो छे. ते अनुसार एमनो जन्म सं. १५२१ (ई. १४६५)मां अमदावादमां थयो हतो. पिता श्रीधर अने माता झमकलदेवीना चार पुत्रो पैकीना ए सौथी नाना पुत्र. संसारी नाम लघुराज.
आ लघुराजे सं. १५२९ (ई. १४७३) मां नव वर्षनी बाळवये पाटण मुकामे तपगच्छना सोमसुन्दरसूरिनी परम्परामां लक्ष्मीसागरसूरि पासे दीक्षा लीधी अने साधु लावण्यसमय बन्या. समयरत्न एमना विद्यागुरु हता.
सोळमे वर्षे सरस्वतीदेवीनी कृपाथी एमनामां कवित्वशक्तिनी स्फुरणा थई, जेना परिणामरूपे एमणे रास, चोपाई, छन्द, संवाद, एकवीसो, हमचडी, स्तवन,सज्झाय, विवाहलो जेवी विविध स्वरूपोवाळी दीर्घ- लघु रचनाओ क छे. 'खिमऋषि, बलिभद्र, यशोभद्रसूरिरास' ए एमनी सं. १५८९ मां रचायेली छेल्लुं रच्यावर्ष धरावती कृति छे. आ रीते कवि लावण्यसमयनो जीवनकाळ सं. १५२१ थी १५८९ (ई. १४६५ थी १५३३) सुधीनो निश्चित थई शक्यो छे.
'विमलप्रबन्ध' ए जेम ऐतिहासिक व्यक्तिविशेषनी जीवनघटनाओने निरूपती एमनी महत्त्वनी प्रबन्धरचना छे, ए रीते 'नेमिरङ्गरत्नाकर छन्द' ए एमनी सौथी महत्त्वनी सं. १५४६ (ई. १४९०) मां रचायेली छन्दस्वरूपी रचना छे. जैनेतर कवि श्रीधर व्यासे सं. १४५४ (ई. १३९८) मां नोंधपात्र 'रणमल्लछन्द' जेवी कृति आप्या पछीनी लगभग एक शतकना गाळे मळती आ छन्द-रचना काव्यतत्त्वनी दृष्टिए नोंधपात्र होईने मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां अनुं ऐतिहासिक महत्त्व पण छे.
आ कृतिमां कविए जैनोना २२मा तीर्थंकर नेमिनाथना जन्मथी मांडीने केवळपदप्राप्ति सुधीना जीवनप्रसंगोने निरूप्या छे. नेमिनाथना लग्नप्रसंगने
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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
केन्द्रमा राखीने पूर्वापर घटनाओ, एमां निरूपण थयुं छे. कृष्णना अन्तःपुरनी राणीओनुं नेमि साथेनुं वसन्तखेलन, एमनी हसीमजाक, लग्न माटेनी एमनी विनवणी, नेमिए दर्शावेली दाम्पत्यजीवननी मुसीबतो, छेवटे लग्न माटेनी मूक संमति, नेमिनुं जानप्रस्थान, मांडवे पशुपंखीनो भोजनार्थे थतो वध, पशुचित्कार सांभळी नेमिनो निर्वेद, लीला तोरणेथी एमर्नु पाछा फरी जवू, राजुलनी विरहव्यथा, गिरनार पर नेमिनी दीक्षा अने केवलपदप्राप्ति, एमनी उपदेशवाणी, अन्ते प्रतिबोधित राजुलनो संयमस्वीकार - आ बधा प्रसंगोने कविए कलात्मक रीते आलेख्या छे.
__ अन्त्यानुप्रास, चरणान्तप्रास, आन्तरप्रास, शब्दानुप्रास, वर्णसगाई, झडझमक, यमकप्रयोग, रवानुकारी शब्दावलि - आ बधाथी ऊभुं थतुं नादसंगीत अने रमणीय लयछटा कृतिना बहिरङ्गने सौन्दर्यमण्डित करे छे तेमज कृतिना छन्दोगानने सहायक बने छे. दुहा, रोळा, हरिगीत, आर्या, चरणाकुल, पद्मावती, पद्धडी जेवा मुख्यत्वे मात्रामेळ छन्दोमां आ कृति रचाई छे. छन्दोगान ए आ कृतिनुं माणवा जेवू तत्त्व छे, जे कृतिने अपायेली 'छन्द' संज्ञाने सार्थक करे छे. ज्यां छन्द के वर्णन, एकम बदलाय छे त्यां अन्तिम चरणना शब्दोने पछीनी पंक्तिना आरम्भे पुनरावर्तित करीने लगभग ३० थी वधु स्थानोमां कविए करेला ऊथलाना प्रयोगो ए आ कृतिनी विशेषता छे. जेमके कडीना अन्तिम शब्दो 'जीता वयणे चंद' ए पछीनी कडीना आरम्भमां 'जीता जीता वयणि चंदला' एम ऊथला रूपे आवे छे.
समग्र काव्य बे अधिकारमा विभक्त छे. प्रथम अधिकारमा १० अने बीजामां १६२ एम कुल २५२ कडीनुं आ काव्य छे.
- कृतिनो आरम्भ कवि सरस्वतीवन्दनाथी अने काव्यप्रबन्ध अर्थे सुमतिनी कृपायाचनाथी करे छे.
'सारद सार दया कर देवी, तुझ पयकमल विमल वंदेवी,
मागू सुमति, सदा तइं देवी, दुरमति दूर थिकी नंदेवी. (१/१) कृतिना बहिरङ्गने कवि केवू शणगारे छे एनो अणसार आपणने पहेला अधिकारनी पहेली कडीथी ज मळी रहे छे. अहीं अन्त्यानुप्रास-चरणान्तप्रास छे. देवी, वंदेवी, देवी, नंदेवी - ए प्रत्येक शब्दमां 'देवी' उच्चारणनो
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एकसरखो वर्णक्रम जोवा मळे छे. वळी, प्रथम अने त्रीजा चरणना भिन्न भिन्न अर्थमां प्रयुक्त 'देवी' शब्दमां यमक प्रयोग छे. उपरांत 'स'कार अने 'द'कारनां. उच्चारणो द्वारा वर्णसगाई, तेमज ‘पयकमल' – “विमल' जेवा शब्दानुप्रास एक विशिष्ट लयसंगीत सर्जी रहे छे.
'हिवइ हउं बोलउं मेल्ही माया,तूं कवियणजण केरी माया, बहु गुणमणि तुझ अंगि समाया, अवगुण अवर अनंत गमाया.
(१/२) आ बीजा कडीमां पण उपर निर्देशेलु काव्यसौन्दर्य माणी शकाशे. लगभग आखी कृतिने कविए आम प्रासानुप्रासथी सजावी छे.
पांचमी कडीमां कवि 'नव नव छंदिइं कवित कहउं' एम कहीने कृतिमां छन्दवैविध्य माटेनी पोतानी संकल्पबद्धता व्यक्त करे छे.
प्रसन्न थयेली सरस्वती पासेथी अविरल वाणीनी भेट स्वीकारीने कवि नेमिचरित्रनो आरम्भ करे छे.
२१ थी २५ कडीमां नेमिना जन्मोत्सवने कविए वर्णव्यो छे. देवो अने मानववृन्दो उत्सव मांडे छे, स्त्रीओ धवल-मङ्गल गीतो गाय छे, शेरीए शेरीए वाजिंत्रनाद थाय छे, तेमज बन्दीजनो, भाट-चारणो नेमिजन्मने वधाववा नगरने मार्गे प्रयाण करे छे.
२६ थी ४० कडीमां प्रथम बाळनेमिनां वस्त्रालङ्कारोने वर्णवी कवि नेमिना अङ्गबळनुं विस्तारथी वर्णन करे छे. कृष्णनी आयुधशाळामां पहोंचीने नेमि मोटी शिला उपाडे छे, गदाने फंगोळे छे, शङ्ख फूंके छे, धनुष्यने उपाडी स्थानचलित करे छे. नेमिना बळप्रयोगना पडेला प्रत्याघातोना वर्णनमां कविए रवानुकारी क्रियापदोवाळां चित्रो सा छे अने हास्यनी छांट उमेरी छे.
'तिणि अवसरि धरणी धडहडई, दह दिसि गयणंगण गडगडए, गज अध-गज जातां आथडइए, गिरिसिरि सिखर खडहडए.
(१/३३) रोसि भरी नारी तडफडए, विण त्रेवडि ऊत्रेवडि पडए, महीयलि नाद सुणी एवडए, चंद-सूर बेहु लडथडए.' (१/३४)
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कविए अहीं हाथीओने एकबीजानी अरधा गज जेटला नजीक पहोंची आथडी पडता, गिरिशिखरोने खडी पडता, स्त्रीओनां मस्तक परनी ऊतरडोने वण-त्रेवडे पडी जती अने चन्द्र- सूरजने लडथडी जता आलेख्यां छे. नेमिना बळप्रयोगने हास्यथी रसित करीने कविए केवो चित्रित कर्यो छे ! ओमांये वळी, 'गज अध-गज' के 'विण त्रेवडि ऊत्रेवडि पडए' जेवा पंक्तिखण्डोमां यमकप्रयोग तो खरो ज.
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कृष्ण ज्यारे नेमिना हाथने वाळवा गया त्यारे नेमिए हाथ उपर कृष्णने बेसाडीने झुलावी दीधा. कृष्णने थयुं के आवा बळया नेमि स्त्रीविहोणा शा माटे ? नेमिने परणावीने एमनां मातापिताने प्रसन्न करवाना विचारथी कृष्णे अन्तःपुरनी राणीओने नेमिने पटाववा मोकली. विविध दृष्टान्तो द्वारा, नर्ममर्मयुक्त वाणी उच्चारीने, हसीमजाक करीने राणीओ नेमिने लग्न माटे पटावे छे. जुओ
'तुह्मि जाणउ झाझी जेठाणी, अम्ह घरि नारि हुसिइ देराणी, पाय पडंतां अति दुःख आवइ, किसिउं तेणि परिणतुं न भावइ ?' ( १/५१ )
[= परणीने आवनारी नारीए देराणी बनीने घणी जेठाणीओने चरणे नमवानुं श्रमकारक थशे माटे तमने शुं परणवुं नथी गमतुं ?]
प्रत्युत्तरमां नेमि दाम्पत्यजीवननी मुसीबतो अने पत्नी द्वारा पतिने थती परेशानीनुं विस्तारथी वर्णन करे छे, एमां घरसंसारनी कटु वास्तविकतानुं चित्र प्रतिबिम्बित थयुं छे. पत्नीनी रोजिंदी मागणीओ अने असन्तोषने कवि आ रीते व्यक्त करे छे
'किम खासिउ लूखउं, सहू को भूखिउं, नहीं सालणउं सराख, धरि तेल ते नीठउं, मिरी न मीठउं, वानां जोईइ लाख. ' (१/६४)
'हुं सदा अणूरी, एक न पूरी तई पुहचाडी आस, इम ऊठइ हूंकी रे रे सुखी, तुझ - सिउं सिउ घरवास ?' ( १/६८ )
कृष्णनी राणीओनो वळतो उत्तर ए छे के जेम अकुलीन स्त्रीओ होय छे तेम सीता सरखी कुलीन स्त्रीओ पण होय छे, जे पतिसुखे सुखी ने
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डिसेम्बर २०१० पतिदुःखे दुःखी थनारी, दानी, शीलवती अने इकोतेर पेढी तारनारी होय छे.
नेमिनाथे हा के ना कहेवाने बदले मौन रहेतां भाभीओए नेमिनी लग्न माटेनी मूक संमति मानी लीधी.
बीजा अधिकारनो आरम्भ पण कवि सरस्वतीदेवीनी कृपायाचनाथी करे छे अने देवीओ अगाउ आपेला वाणीना वरदान- पालन करवा वीनवे छे.
११ थी २३ कडी उग्रसेन राजानी पुत्री राजुल-राजिमतीना सौन्दर्यवर्णनने आवरे छे. आ वर्णनने कविए उपमा, रूपक तेमज विशेषतः व्यतिरेकोथी अलङ्कत कर्यु छे.
'जीता जीता वयणि चंदला, त्राठा गया गयणि नाठा, दिवस ऊगता माठा लाजि मरई' (२/१६) 'वेणइं वासग जित्त जव, जइ पइआलि पइठा, जीतां रातां कमल करि, जइ जल मांहि नाठा.' (२/२०)
नेमिनाथन राजुल साथे सगपण कराय छे. लग्ननी पूर्व तैयारीओना वर्णनमां ते समयना लग्नोत्सवो केवी रीते ऊजवाता एन प्रतिबिम्ब जोवा मळे छे. मण्डपनी रचना, भोजननी विविध वानगीओ, जमण अने पीरसण व.नां वीगतभाँ चित्रणो अहीं अपायां छे'मोटा मोदक मूंकीइ मधुरा अमृत समान, खरहर खाजां चूरीयइ बहुत परि पकवान.' (२/४०)
ए ज रीते नेमिनाथना वरघोडाना वर्णनमां वरराजानो शृङ्गार, जानैयाओनो उत्साह, गान-वादन-नर्तन-खेलननो आनन्दकिल्लोल व.नां चित्रणो रसपूर्ण रीते थयां छे :
'खेलंति खेला खंति, ते ताल नवि चूकंति, वाजिन वर वाजंति, घण ढोल ढमढमकंति.' (२/६४)
६८-६९मी कडीमां राजुलना नववधूना शणगारनुं वर्णन छे. 'पहिरइ सिरि सिणगार सार, आरोपिउ रिदय उदार हार, झबकइ झाझी झालि गालि, मयमत्ता मयगल जित्त चालि.'
(२/६८)
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'खिणि फरकिउं दक्षिण अंग ताम' - जमणुं अङ्ग फरकवाना उल्लेख द्वारा कविए कशाक विपरीतनी आगाही आपी छे. एमां पण तत्कालीन मान्यताओनुं प्रतिबिम्ब जोई शकाशे.
लग्नोत्सुक नेमिना जीवनमां महत्त्वना वळांकबिन्दु समी घटना बनी छे भोजन माटे थता पशुपंखीवधनी. वध समयनी पशुपंखीनी मरणचीसो नेमिना हृदयने पीगळावी नाखे छे. पशुपंखीओना तरफडाट चित्र हृदयद्रावक बन्यु
'न-न चालइ चाला, पडिआ गाला, ससा सुंहाला धूजि मरइ'
(२/७३) 'न-न फावइ फाला, हरिणा काला, नयणि घणाला नीर झरइ'
(२/७४) नेमिनाथ लीला तोरणेथी पाछा फरी गया. संयम लइ गिरनार गया.
८१ थी ११० कडीओमां राजुलनी विरहव्यथा, सखीओ साथेनो संवाद, नेमिने उपालम्भ व.नुं कलात्मक आलेखन थयुं छे. विरहव्यथाना वर्णनमां कविए करेला यमकप्रयोगो नोंधपात्र छ : 'खिणि भीतरि खिणि वली आंगणइए, प्रिय विण सूनी
__वलीआं गणइए.' (२/८५) 'करुण सरई थानकि कोरडए, जण जाणए नारद को रडइए.'
(२/८६) 'क्षणि ऊठी जाइ ऊतारइं, हार-दोर-कंकण ऊतारइ' (२/८७)
साथे आ उपमाचित्र पण केवं नोखं ज ऊपसी आव्युं छे : 'अलगी नांखइ सोवनत्रोटी, जिम जवरोटी कागइ बोटी.'
(२/९४) (-जेम कागडाए बोटेली जवनी रोटली फेंकी देवामां आवे तेम राजुल सुवर्ण-आभूषण अळगुं नाखी दे छे.)
विरहव्यथित राजुल आम बधो शणघार उतारी नाखे छे, आभूषणो
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तोडीफोडी नाखे छे, केशगुम्फन छोडी नाखे छे, भोजन अने कुसुमशय्या त्यजे छे. सखीओ आ बधुं पुनः धारण करवा, स्वीकारवा वीनवे छे ने सामे राजुल 'अंह अंह' नो नकार-प्रत्युत्तर वाळे छे.
'नवउ ति नवसर हार, सा गलि धरूं कि ?' 'अंह अंह' 'कुसुमसेज सुकुमाल सोइ पत्थरूं कि ?' 'अंह अंह' (२/९८)
सखीनी वात नकारवानो राजुलनो लहेको-लढण अहीं केवु लयात्मक रूप पामे छे !
राजुल प्रियतम नेमिने उपालम्भ आपतां कहे छे'रिधिरमणि-सुख मेल्ही देव ! डूंगरि सिउं दीठउं ?' (२/१०६) 'अट्ठ भवंतरि नेहल नेमि ! न छेह दाखियउ, भव नवमइ तइं नाहला ! ए ऊपजतु कां राखिउ ?' (२/१०८)
छेवटे परिवर्तन पछीनो राजुलनो उद्गार'हत्थिई हत्थ न मेलिउ, प्रिय ! सोइ हत्थ मत्थइ करु.' (२/१११)
राजुल सपरिवार गिरनार गई अने समवसरणमां देशना आपता नेमिने जोई आनन्दविभोर बनी, प्रणाम करी नेमिनाथनी उपदेशवाणी सांभळवा लागी. आ उपदेशवचनोमां जीवहिंसा करनार जीवो पापकर्मो द्वारा केवी घोर नरकयातना अने परमाधामीओनी भयङ्कर शिक्षा पामे छे एनुं तेमज जिनाज्ञापालन करनार एनां केवां सुफळ प्राप्त करे छे एनुं वर्णन थयुं छे.
राजुले प्रतिबोधित थई संयम स्वीकार्यो. नेमिनाथ साधु-साध्वी श्रावकादिना मोटा समुदायने प्रतिबोध पमाडी परमपदने पाम्या.
काव्यान्ते कवि गुरुपरम्परा, कृतिरचनासमय अने स्वकर्तानाम दर्शावी काव्यनी समाप्ति करे छे. संपादन : केटलीक पाठ/अर्थशुद्धि* :
काव्यसौन्दर्य ओपती आ कृतिनुं सम्पादन संशोधन-सम्पादनक्षेत्रे लब्धप्रतिष्ठ विद्वान डॉ. शिवलाल जेसलपुराए ई. १९६५मां कर्यु हतुं. ला.द.भा.सं. विद्यामन्दिर द्वारा ए प्रकाशित थयुं छे. सम्पादके आ सम्पादन माटे श्रीहेमचन्द्राचार्य
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जैन ज्ञानमन्दिर - पाटणमांथी प्राप्त थयेली त्रण हस्तप्रतोने उपयोगमां ली छे. आ त्रणेय प्रतो पुष्पिका अने लेखनसंवत विनानी छे. जोके सम्पादक भाषास्वरूपने आधारे A अने C प्रत सं. १६०० पहेलां अने B प्रत पछी लखायेली होवानुं अनुमाने छे. सं. १६००ना लेखनवर्ष अने पुष्पिकावाळी एक वधु प्रत सम्पादकने ला. द. भा. सं. विद्यामन्दिरमांथी ज उपलब्ध थई हती, परन्तु अना अक्षरो अवाच्य अने पाठो भ्रष्ट होईने उपयोगमां लेवाई नहोती.
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सम्पादके ‘उपोद्घात’मां कवि लावण्यसमयना जीवन-कवननो परिचय आप्यो छे, जेमां कर्ताए रचेली नानीमोटी सर्व कृतिओनी संक्षिप्त नोंधो समाविष्ट छे. ‘नेमिरङ्गरत्नाकर छन्द'नी विस्तृत समालोचना करतो अभ्यासलेख रजू करायो छे. उपरान्त आ कृतिनी जूनी गुजराती भाषाना स्वरूप अने व्याकरणनी पण आवश्यक नोंध सम्पादके लीधी छे. कडीवार पाठान्तरो अने कृतिने छेडे सार्थ शब्दकोश आपवामां आव्यां छे. आम अत्यन्त श्रमपूर्वक तैयार थयेलुं आ सम्पादन छे.
हस्तप्रत उपरथी कृतिनी तैयार थयेली वाचनामां क्यांक पाठनिर्धारणनी तेमज केटलाक शब्दोना अर्थनिर्णयनी अशुद्धि जोवा मळी छे तेनी अहीं नोंध लई यथाशक्य पाठ / अर्थशुद्धि करवानो प्रयास कर्यो छे, जे पाछळनुं प्रयोजन केवळ कृतिनी वधु नजीक रही शकवानुं छे.
कृष्णनी राणीओ कृष्णना पितराई भाई नेमिकुमारने लग्न करवा फोसलावे - पटावे छे एनुं वर्णन करती पंक्ति आ प्रमाणे छे
'गुल गलीउ नइ साकर भेली, इणि परि अतिघण उठां मेली' ( १/५१ ) [ = गोळ गळ्यो ने एमां वळी साकर भेळवी होय, ए प्रकारे घणां दृष्टान्तो / कहेवतो मेळवीने.....]
हस्तप्रतमांथी आ पंक्तिमांनो 'उठां' (दृष्टान्तो) शब्द सम्पादक पकडी शक्या नथी. एटले 'उठां' शब्दमांनो 'उ' वर्ण डाबी बाजुनी शब्द साथे, अने 'ठां' अक्षर जमणी बाजुना शब्द साथे जोडीने पाठ आ प्रमाणे कर्यो छे इणि परि अतिघणउ ठांमेली.' खोटा पाठनिर्धारणने लईने 'ठांमेली' जेवो
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भळतो ज शब्द अही सम्पादके ऊभो कर्यो छे अने शब्दकोशमां अर्थ आप्यो छेठांमेली = ठरेली, घडायेली, पाकी. आम पाठनिर्णयनी अशुद्धिमां मूळ कृतिमांनो कर्ताने अभिप्रेत पाठ 'उठां' रगदोळाई गयो छे.
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'चडचड चारउली चतुरा प्रीसइ' (२/३८) ए पंक्तिखण्डनी आगळ– पाछळनी पंक्तिओमां खारेक, खुरमां, खडी साकर, वरसोलां, फळमेवा, गोळपापडी व. खाद्य वानगीओ पीरसाती होवानी वात छे. एटले 'चारउली' [ = चारोळी ] पाठ संगत गणाय. वळी B अने C प्रत 'चाली' पाठ आपे ज छे (सम्पादके नोंधेलुं पाठान्तर). परन्तु सम्पादके अहीं शब्दभङ्ग करीने 'चार उली' पाठ आप्यो छे अने 'चार ओळ ( आवलि)मां पंगतमां चतुरा पीरसे छे' ओवो अर्थ एमणे कर्यो छे. मारी दृष्टिए आ 'चार उली' पाठ/अर्थनिर्णय ताणी-खेंचीने करायो होय ऐवी छाप ऊभी थाय छे.
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कृष्णनी राणीओ नेमिने लग्न माटे आग्रह करे छे ते सन्दर्भे A अने B प्रतनी एक पंक्ति आम हती
'ठाकुर ! बोल कहु ठरवानु, नेमि ! न कीजई नीठर वानु. ' ( १/६८ )
आमांथी 'ठाकुर ! बोल कहु ठरवानु' एटलो AB प्रतनो पाठ छोडीने सम्पादके C प्रतनो 'ठाकुर ! बोल कहइ वरवानु' पाठ वाचनामां स्वीकार्यो छे. पण मारी दृष्टिए A प्रतनो पाठ छोडवानुं कोई कारण नहोतुं . ऊलटानुं, A प्रतना पाठथी तो आ पंक्तिमां ठरवानुं / नीठरवानुं ओम एकसरखो वर्णानुक्रम भिन्न अर्थसन्दर्भे बेवडातां यमक प्रयोगनी चमत्कृति सधाई होत, ते पाठ छोडवाने कारणे चाली गई छे. वळी A प्रतनो पाठ सन्दर्भमां पण बराबर बेसे ज छे. ( = हे ठाकुर ! ठरवानी - स्थिर थवानी वात कहो. हे नेमि ! निष्ठुर वानां न करो.)
नेमिनाथ मांडवेथी पाछा वळी जतां राजुल पोतानी विरहदशा व्यक्त करतां कहे छे
'की गाइ वली संभारइ मेहनइ मोरा, प्रिय विण प्राण हरइ गाढेरा. ' ( २ / ९४ )
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________________ 76 अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ अहीं सम्पादके करेलुं 'की गाइ' पदविभाजन जरूरी नहोतुं. 'कीगाई' (= केकारव करीने) शब्द पाठ अने अर्थ दृष्टिए वधु उचित जणाय छे. शब्दकोशमां सम्पादके आपेला केटलाक शब्दार्थो जे-ते स्थानसन्दर्भ अशुद्ध जणाय छे. जेमके कर्ताए 'शांणा आगलि सुंडल मांडई' (1/76) एवी एक कहेवतने उपयोगमां लीधी छे. त्यां सम्पादके 'शांणा'नो अर्थ 'छाणां' को छे. नजीकना उच्चारसाम्यने लईने केवळ अनुमानथी आ अर्थ अपायो लागे छे. हकीकते, 'शांणा' एटले कोठीमांथी अनाज काढवानुं छिद्र. त्यां सुंडलो धरी राखतां छिद्रमांथी अनाज ठलवातुं जाय. 'दीख्या' (२/११२)नो अर्थ 'देखाया' अपायो छे. साचो अर्थ छे 'दीक्षित थया'. गिरनार उपर गयेला नेमिनाथना सन्दर्भे आ क्रियारूप आवे छे. ___'नरवरविंदा' (१/२२)नो अर्थ 'श्रेष्ठ राजाओ' अपायो छे. आ अर्थ माटे सम्पादके वर+नरइन्द्र > नरइंदो > नरविंदो एवी व्युत्पत्तिनो आश्रय लीधो छे. पण 'नरवरविंदा' एटले 'राजाओ, वृंद' ए अर्थ होवानी शक्यता विशेष जणाय छे. आ उपरान्त केटलाक शब्दोनी अर्थशुद्धि नीचे प्रमाणे छे : अणूरी (1/68) = दासी, पत्नी अशुद्ध; अधूरी, असन्तुष्ट शुद्ध. ऊजाणी (1/72) = कूदीकूदीने अशुद्ध; धसमसीने, दोडीने शुद्ध. घाठी (1/72) = नुकसान पामी अशुद्ध; छेतराई शुद्ध. वेडि (2/17) = तकरारमां अशुद्ध; वनमां, रानमां शुद्ध. तोडीइ (2/33) = चमके अशुद्ध; नाखवामां आवे शुद्ध. खुरमा (2/37) = रोटला अशुद्ध; एक फळमेवो, खजूर शुद्ध. द्र्य (2/159) = वृक्ष अशुद्ध; ध्रुवनो तारो शुद्ध. आ लेखमां सम्पादननी केटलीक पाठ/अर्थशुद्धि माटे 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश' (सं. जयंत कोठारी)नी तेमज प्रस्तुत सम्पादनग्रन्थनी, डॉ. हरिवल्लभ भायाणीनी अंगत नकल (जे हवे श्री नेमिनन्दन शताब्दी ट्रस्टना ग्रन्थालयमा भेट अपायेल छे) मां करायेली निशानीओनी सहाय मळी छे तेनी साभार नोंध लउं छु. C/o. 7, कृष्णा पार्क, खानपुर, अमदावाद-१