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श्रीज्ञानविजयकृत श्रीनेमिनाथस्तवन
- मुनि प्रशमचन्द्रविजय
जैन दर्शनना चारित्र विषयक ग्रन्थोमां सौथी वधु ग्रन्थो जो कोइने पण अनुलक्षीने लखाया होय तो ते व्यक्ति एटले प्रभु नेमिनाथ भगवान. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र जेवो महाकाय ग्रन्थ होय के पछी बारमासा, स्तवन जेवू नानु साहित्य होय दरेकमां कोइने कोइ प्रकारे तेमनुं जीवन गुंथायेलुं जोवा मळे. प्रस्तुत कृति प्रभुजीना चरित्र पर प्रकाश पाडती पद्यरचना छे. प्रभुजीने लग्न माटे मनावती कृष्णनी स्त्रीनो संवाद, प्रभुनी मूक सम्मति, पशुनो पोकार सांभळी लग्न मण्डपथी पाछा जq, राजुलनो विलाप इत्यादि प्रसङ्गोने कविए काव्यमां सुन्दर रीते गोठव्या छे. कृतिमां विशेषता कशी नथी. परंतु कर्ताना हाथे ज लखायेल छे तेथी लेखनदोषो के भाषाकीय अशुद्धि प्रवेशी नथी ते नोंधवा लायक छे.
__ कृतिकार तपागच्छीय परम्पराना विजयदेवसूरिजीना पट्टधर उपा० लावण्यविजयजीना शिष्य छे. कर्तानो विशेष परिचय अन्य ठेकाणे प्राप्त थतो नथी. सं. १७३३नी लखायेली प्रतनी प्रशस्तिमां तेमना गुरु उपा. लावण्यविजयना नामनो उल्लेख मळे छे. ते परथी कर्ता पण आसपासनी संवतमां ज थयानुं विचारी शकाय.
__ कृतिनी प्रत आपवा बदल श्री वढवाण-संवेगीशाळा जैन ज्ञानभण्डारना व्यवस्थापकश्रीनो तेमज मुनिराज श्रीधर्मतिलकविजयजीनो खुब खुब आभार.
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। महोपाध्याय पूश्रीलावण्यविजयगणिगुरुभ्यो नमः ।
दूहा ब्रह्मधूआ समरूं सदा, प्रणमुं मनउलास, अंबा एतुं मागीइं, मुझ मुख करजे वास. १ विणा-पुस्तकधारणी, कविजनकेरी माय, नेमिनाथजिनगुण थुगुं, ते तुम तणो पसाय. २
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अनुसन्धान-५७
नेमिनाथ बावीसमो, शियलरयणभण्डार, ब्रह्मचारीचूडामणी, जगजीवनआधार. ३ रंभ सरीसी राजीमती, जेणि छोडी निरधार, मन थिर करी दीक्षा धरी, जइ रह्यो गढ गिरनारि. ४ ते श्रीनेमिजिणंदना, बोलुं गुण सुपवित्त,
सांभलयो भवि भावस्युं, देइ मन एक चित्त. ५
ढाल राग - सारिंग ॥
सोरीपुर सोहामणुं रे, अमरापुरी सम जाण, समुद्रविजय तिहां राजीओ रे, रायकलानो जाण. ६ यादवराय ! थुणस्युं हो नेमिजिणंद, ए तो यादवकुलनभचंद, गायस्युं शिवादेवीनो नंद, यादव..... [आंकणी]
तस घरि सोहि सूंदरी रे, इंद्राणी अवतार,
शीवादेवी शियलिं सती रे, रूपिं रंगिली नारि. ७ यादव.... तस उअरि सरि हंसलो रे, रूअडुं श्रीनेमिकुमार, चउदसपनसूचित जण्यो रे, चउविह संघ सुखकार. ८ यादव ..... योवनवय जिन आवीयो रे, सामलीओ सुखकार, माता-पिता इणिपरिं कहई रे, पुत्र परणो तुमे नारि. ९ यादव ....
॥ ढाल राग- रामगीरी ॥
नेमकुमर बोलई वयरागी वयणडां रे, अम नारिं न परणिं काज रे, मन थिर करी अमे दीख्या ग्रही रे,
लेस्युं लेस्युं मुगतिनां राज रे, १० नेमजी ते बोलइं वयरागी वयणडां रे [आंकणी] मुगतिनारिनई रे परणई जे जना रे,
तेहनो होइं अविहड मोह रे, तेणिं नारि परणीनइं ते स्युं कीजीइं रे,
जेणि होइ परणिं विछोह रे. ११ नेमजी.....
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हुं नवि परणुं रे नारी इणि भवि रे,
वली लेस्युं लेस्युं संयम योग रे,
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मुगतिरमणीस्युं अहमे चित्त लायस्युं रे,
तेहथी लहिस्युं वंछित भोग रे. १२ नेमजी ..... ॥ ढाल फागनी राग काफी ॥ एणि समई मधुमास आवीयो हो, फूल्या सब सहकार, कृसनजी रमवा चालीया हो, साथि लेइ नेमिकुमार. १३ मनमोहन । नेमजी मन वस्यो हो, मन वस्यो नेमकुमार सखी ! यादवकुलशिणगार, मन..... [ आंकणी] गोपांगना टोलि मली हो, रमई माधवजी साथि, हाव-भाव करती थकी हो, नेमजी साथि लिई बाथि १४ मनहोमन..... जंबूवती पदमावती हो, बोलई बहु बोल नारि,
परणो नारि तुमे नेमजी हो, भोगवो भोग संसारि. १५ मनमोहन.... नेम न बोलई नारिस्युं हो, तव बोलई गोपांगना एम, एक नारि पूरुं नवी पडई हो, तेणि पुरुषई अहो किजीइं केम.१६
मनमोहन.....
एक नारि परणो तुम्हे हो, चिंत करसइ अम नाथ, मरकलडे नेमजी हस्या हो, मान्यु मान्य करती सब साथि. १७
मनमोहन.....
ढाल राग गोडी ॥ ससनेहा सुणि वातडी एहनी ढाल । ह[व] उग्रसेन बेटी राजीमती रे, विवाह मेहलि एम, राजीमती हरखी घणुं रे, भलई पाम्युं वर नेम रे. १८ विरह निवारवा.. हवई शुभ लगनई शुभ दिनइ रे, परिणवा चाल्यो रे नेम,
रथ बइंसी तोरण आवीया रे, आणी मन बहु प्रेम रे, विरह ...... पशुय पोकार सुण्यो तदा रे, सारथी प्रतिं कहिं सामि,
कुण कारणि पशु मेलीयां रे, सारथी कहिं तिणि ठामि रे, १९ विरह... तुम विवाहनई कारणि रे, आण्या ए छई रे जीव,
तेणि ए वधना भय थकी रे, करता छई बहू रीव रे. २० विरह....
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अनुसन्धान-५७
रथ वाली नेमजी वल्या रे, छोडी जीवना बंध, दीख्या लेवा उमह्या रे, मुंकी सब जग धंध रे. २२ विरह....
ढाल राग-मारुणी ॥ नेम वल्या निसुण्या जव कानिं, विलपइं राजुल नारी रे, विण अपराध मूंकई कां रे वाला, पूरव प्रीत वीसारी रे. २२ पीउ रहो रहो रे प्राणाधार, अबला सार करीजइं रे, तुम पाखई रे कुण गति थाय, वाला वेगि वलीजइ रे, पीउ रहो...
[आंकणी] तुम वियोग एकलडी हुँ अबला, केम करुं निरधार रे, वाला ताहरि वियोगिं ए सघलो, सूंनो एह संसार रे. २३ पीउ.... माय कहिं पुत्री तणि वियोगि, सुणिं तु रायुल बाल रे, नेम गयो तो जावा दइउं, वरजे अवर भूपाल रे. २४ पीउ.... सुणिय वयण मुखि अंगुलि देती, वयण एहवू न बोलीजई रे, जो एणि नेम न परणी मुझनइं, तो सही संयम लीजइं रे. २५ पीउ... राजीमती हवि नेमजी पासिं, लीधो संयमभार रे, नव भवनी प्रीत अविहड राखी, ध्यन ध्यन राजुल नारि रे. २६ पीउ...
ढाल-चुपई संवच्छरी देइ करी, श्रीनेमिश्वर निज हित करी, दिख्या लेइ सारि काज, श्रीगिरिनारि गया जिनराज. २७ राजीमतीनई दिधी दिख, आपी सुमतिनइं अविरल सिख, नव भवनो नेम नेह पालीओ, कामपिशाच जेणि बालीओ. २८ नेमनाथनइं राजीमती, बेहु पाम्यां वली सदगती, अहनिसि लिजइं एहनुं नाम, जिम मनवंछित सिझइं काम. २९ ए श्रीनेमि तणुं चरित्र, भणतां गणतां पुण्यपवित्र, भवि भवि मागु एह ज देव, तुम चरणे देयो मुझ सेव. ३०
कलस इम थुण्यो सामी, मुगतिगामी, नेमिनाथ जिणेसरो, मइं स्तव्यो भगति, भली युगति, सेवकजनमनदुखहरो,
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________________ डिसेम्बर 2011 तपगच्छमंडण, दुरितखंडण, श्रीविजयदेवसूरीसरो, // इति श्रीनेमिजिनवरेन्द्रस्तवनम् // लिखितं गणि ज्ञानविजयेनालेखि // सुश्राविका मेलाई तत्पुत्री श्रा / पदमा पठनाय // C/o. निकेश संघवी गोपीपुरा, सूरत