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________________ डिसेम्बर २०११ श्रीज्ञानविजयकृत श्रीनेमिनाथस्तवन - मुनि प्रशमचन्द्रविजय जैन दर्शनना चारित्र विषयक ग्रन्थोमां सौथी वधु ग्रन्थो जो कोइने पण अनुलक्षीने लखाया होय तो ते व्यक्ति एटले प्रभु नेमिनाथ भगवान. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र जेवो महाकाय ग्रन्थ होय के पछी बारमासा, स्तवन जेवू नानु साहित्य होय दरेकमां कोइने कोइ प्रकारे तेमनुं जीवन गुंथायेलुं जोवा मळे. प्रस्तुत कृति प्रभुजीना चरित्र पर प्रकाश पाडती पद्यरचना छे. प्रभुजीने लग्न माटे मनावती कृष्णनी स्त्रीनो संवाद, प्रभुनी मूक सम्मति, पशुनो पोकार सांभळी लग्न मण्डपथी पाछा जq, राजुलनो विलाप इत्यादि प्रसङ्गोने कविए काव्यमां सुन्दर रीते गोठव्या छे. कृतिमां विशेषता कशी नथी. परंतु कर्ताना हाथे ज लखायेल छे तेथी लेखनदोषो के भाषाकीय अशुद्धि प्रवेशी नथी ते नोंधवा लायक छे. __ कृतिकार तपागच्छीय परम्पराना विजयदेवसूरिजीना पट्टधर उपा० लावण्यविजयजीना शिष्य छे. कर्तानो विशेष परिचय अन्य ठेकाणे प्राप्त थतो नथी. सं. १७३३नी लखायेली प्रतनी प्रशस्तिमां तेमना गुरु उपा. लावण्यविजयना नामनो उल्लेख मळे छे. ते परथी कर्ता पण आसपासनी संवतमां ज थयानुं विचारी शकाय. __ कृतिनी प्रत आपवा बदल श्री वढवाण-संवेगीशाळा जैन ज्ञानभण्डारना व्यवस्थापकश्रीनो तेमज मुनिराज श्रीधर्मतिलकविजयजीनो खुब खुब आभार. ए । महोपाध्याय पूश्रीलावण्यविजयगणिगुरुभ्यो नमः । दूहा ब्रह्मधूआ समरूं सदा, प्रणमुं मनउलास, अंबा एतुं मागीइं, मुझ मुख करजे वास. १ विणा-पुस्तकधारणी, कविजनकेरी माय, नेमिनाथजिनगुण थुगुं, ते तुम तणो पसाय. २
SR No.229598
Book TitleNeminath Stavan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamchandravijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size63 KB
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