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मानदत्त आदि मुनिकृत विविध स्तवन-सज्झायो
सं. साध्वी समयप्रज्ञाश्री विजयगच्छना ओटले के वीजामतना मानदत्त मुनि तथा मेघा मुनिए रचेली दश गीतो धरावती एक त्रूटक, ४ पानांनी प्रत पूज्य आचार्यश्रीविजयशीलचन्द्रसूरि महाराजे मने केटलाक वखत अगाऊ आपी हती, ते परथी आ नकल तथा सम्पादन करेल छे. प्रत १९मा सैकामां लखायेली होवानुं लागे छे. बधी रचनाओ भक्तिरसथी कां तो वैराग्यप्रेरक बोधथी भरेली छे. त्रीजी-चोथी रचनाओ 'मेघा' कृत छे बाकीनी आठ "मानदत्त'नी छे.
बालचेष्टा जेवा मारा आ प्राथमिक प्रयासमां त्रुटिओ रही हशे ते सुधारीने वांचवा सर्वेने विनंति करुं छु.
॥ वे वे मुनिवर वेरण पागर्या रे । ए देशी ॥ कर्म समानो बलियो को नही रे, दीखाडे अतही संताप रे; विण भोग्यां छुटै नही रे, पूरव कृत जे पाप रे० ..... क० ॥१॥ कर्मे आदीसर रह्या अणशरीरे, वरस एक तग सीम रे; वीर जिणेशर केरा कानमें रे, खोस्यो खीलो अतीभीम रे..... क० ॥२॥ नीर भराणो घर मातंगने रे, सत्यवादी हरिराय रे; नल दवदंती नगर्यां रवड्यां रे, शीतां कलंक कहाय रे..... क० ॥३॥ मल्लजिनेस्वर स्त्रिलिंग थया रे, द्रुपदी पंच भरतार रे; कर्म तणें वसि पडि रडवड्यां रे, श्रीकृष्ण सरीखा अवतार रे...क० ॥४॥ पांच पाडव कर्मे नड्या रे, रामजी रह्या बनवास रे; रावण राणे दस सीर रड्या रे, मूंज नरपति भिख्याभ्यास रे..... क० ॥५॥ . अरणक मुनिवर रह्या वेश्या घरां रे, वलि आषाढ्या अणगार रे; सेठ येलापुत्र नट थयो रे, चंदन कुरकट अवतार रे..... क० ॥६॥ बेचाणी बब्बर तटें रे, सुरसुंदरी वले नार रे; कर्मे सहुं कसीया खरा रे, नही राजा रांक विचार रे...... क० ॥७॥
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अनुसन्धान ३५ येम वयण श्रवणें सूणी रे, प्रभुजीसुं पभणे अभयकुमार रे; कर्म सुभट किम जीपीये रे, वीरजी कहै उपचार रे..... क० ॥८॥ समकित केशरीया वागो पहरनें रे, पंच महाव्रत बगतर टोप रे; धरम ढाल करमें लीजीये रे, खिमा खडग ले देई उपरे..... क० ॥९॥ सतर सावतवा रें सूरवां रे दश मुकटबध ल्येवो राय रे सहस अढारें सुभट सजी करी रे, बठो तुम शीलरथमाहि रे..... क० ॥१०॥ दया हस्ती तुम शिणगारने रे, सुमत पचरंगथर राय रे; ग्यान नगारो देई करी रे, भावन भेरी चढो वजडाय रे.....क० ॥११॥ एम वयण सुंणी हरखनें रे, उठीयो थई तैयार रेः । करम सुभट जीपण भणी रे, लीधा सस्तर अभयकुमार रे..... क० ॥१२॥ जोर जुगत करी जीपीया रे, देवां मिल बोल्या जयजयकार रे; मानदत्त शिवनारी वरी रे, प्रणमुं हुं नितें वारंवार रे..... क० ॥१३॥
इति अभयकुमार स्वाध्याय संपूर्ण ॥
(२) ॥ चरण कमल रे प्रणमी गुरु तणा, कहस्युं सील वखाण; भव भय टाली रे मनवंछित लह्या, सील तणे परमाण..... १ सील समाणो रे भवि व्रत को नहीं... आं० सील प्रभावे रे परतिख देखीयो, अगन थई जलराशि, सीता सती रे जग जस वांधीयो, गुण गावें मुनि ताशि.... २ शी० चलणी काढ्यो रे पाणी निरमलो, बांधी काचो रे तार; देई छांटा रे सतीय सुभदरा, खोल्या चंपा द्वार..... ३ शी० पांच पांडव विनरे(वे) वलिवलि नर जिके जाण्या द्रोपदी वीर; जास प्रभावें रे भविजन प्राणीयो, वाध्यो अति घणो चीर..... ४. शी० श्रेणक नृपनी रे मनभावती, सती चेलणा जाण; समोसरणमें रे वीर जिणंदजी, कीधो जास वखाण..... ५. अभया राणी रे दुःख दीधो घणो, चित न चलायो रे तेह; सूली फोट रे थयो सिहासणो, सेठ सुदरसण जेह..... अहि अरि नाग रे आदि देई करी, भय जावें सब नाठ; रण वनमें रे इण परभावथी, होवें जिहां तिहां रे थाठ..... ७. शी०
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फेब्रुआरी - 2006 इम जाणी रे भवि नरनारीयां, पालो दृढ मन लाय; सरूप सुगुरनो रे शिख इम आखवें, मान पूजा शिव पाय..... ८. शी०
इति शील स्वाध्याय ।।
॥ देशी गरभाकी ॥ इक दिन अरणक जाम, गोचरी उठीया रे, खरी दुपहरीमाहि, मुकतिनो रसीयो
अद्भुत काम सरूप, जोबन वेसे रे; उभो गोखने हेठ, दीठो वेसें रे..... २ दासी येक बुलाय, इण पर बोलें रे; तेडी लावो ए साधु, नही इण तोलें
आई दासी रे ताम इण पर भाखें रे, आम पधारो राज, पुरो अविलायें
रे..... ४ दासी वचन रसाल सुणकर हाल्या रे; तसलीम करी कहै नारि आवो मन
वाल्हा रे..... ५ या चत्रसालीमांहि भोगो भोगा रे; जोबन लाहो लेह, लीजो जोगा रे..... ६ कोमल तन सुकमाल देखी चूक्यो रे; मण वसे मुनिराय संजम मूक्यो रे...७ इक दिवसनें योग गोखां बयठे रे; चोपड रमतां मात देखें हे रे..... ८ गलीयां गलीयां माहि फिरें जोती रे; दीठो कोई माहरो नंद अरणकमोती
उतरि चिंतव जाम ध्रगध्रग मुझने रे; क्षिमा करो मुझ माय विनवू तुझनें
रे..... १० अणसण नोका बैठ भवदधि तरिया रे; मेंघा सिवपुर जाय रमणी वरिया
रे..... ११ इति अरणक सिज्झाय ॥
(४)
|| आरती ॥ जय जय जिनदेवा ज०; सुरनर करें तुम सेवा, पावें नही मेवा अष्टमहाप्रतिहारज, अतिसय गुणधारी; दोषरहित प्रभु राजे लबधि गुणें भारी....
जै० २
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अनुसन्धान ३५
जोतीरूप अरूपी अरिंत, त्रिभुवन जन भूपो; अजरामर अविनासी कोई न लहै
रूपो..... ज० ३ अंतरजामी हो तुम नह चै जानत सब घटकी; कलपद्रुम तुम सरिखा पूरत
सब मनकी..... जै० ४ सयंभूरमण बिंदु जलकेरों संख्या लहैं कोई; तुम गुण केरो नाथ पावत नही
__ कोई..... ज० ५ उत्तम वस्त्र पहर आभूषण इंद्रादिक आई; थेई थेई नाचत हरखित बहुत भगती
लाई..... ज० ६ धपमप धपमप मादल बाजै भौंकारें; गुड गुड झांकट झांकट नोबत सुरभारें.....
जै० ७ रतन जडत लेई आरति करपूर संयुगती आरती कर कहै एम आपो मुझ
मुगती..... जै० ८ करें केवल महिमा सुरपति पोहपन(?) वरषाई; आविध स्तुति करें बहु भगतें
मेघा सिर नाई ..... जै० ९ ॥ इति आरती संपूर्ण ॥
॥ सुमरो जिनराज सुमतिदाता सुमतिदाता रे कुमतित्राता सु०; नरसुर सिवपद लछि लहो रे, ओर लहो रे तुम सुखसाता. सु० ..... भवसायरमें डुंबत राखें, रास लेवें रे कुगति जाता. सु० .....२
आंगण उभी तुरीयां रे हीसें; हसती ही दरे थारें मदमाता. सु० ..... तीनलोकनो साहिब त्यागी क्यों रे फिरो प्रानी ध्याता. आमनी होंस कबु नही भांजें आमलीयांना रे फल खाता. सु० मानदत्त आपन भल चाहो अहोनिस रहो जिनगुण गाता. सु० .....
॥ इति सुमतनाथ गीतं ।।
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॥ मेघकुमारना गीतमें देशी ॥ वीर जिणंद वखाणियोजी, पूजानो अधिकार; गोयम आदि देई करीजी, बारह परषदा सार रे...
प्राणी; पूजो श्री जिनराज ।।
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63 जीवाभगवी अंगमांजी, रायपसेणी मझार; अंग उवाई जोईयेजी, अनुयोगद्वार उदार रे... प्रा० ... २ अंबड श्रावक वंदियाजी, मन धर प्रभ ऊलास; जे कुमती मानें नहीजी, जाको नरक निवास रे... प्रा० ... ३ विद्या जंघाचारणेजी, नंदीसर वंद्या रंग; ते मूरख मानें नहीजी, जोवो पंचम अंग रे... प्रा० ... ४ छठे अंगमाहे कह्योजी, वंदन अरचन दोय; . द्रोपदीये वंछित लह्याजी, श्री वरधमान विसेष; आर्द्रकुमर प्रतिबूझियाजी, जिनवर प्रतिमा देख रे... प्रा० ...६ सूत्र मानें प्रतमानंदेंजी, (नहीं जी ?), धीठा खरा ही अबोध; चौरासी भ्रमना करीजी, पडसें नरक निगोद रे... प्रा० ... ७ सूत्र सिधांत अधेननाजी, कानो मात्रा हीन; कूडो अक्षर जे कहैजी, ते भवभ्रमना लीन रे... प्रा० ... ८ जिनप्रतिमा जिनसारखीजी, कही जिनागममाहि; जो प्रतिमा वंदे नहीजी, वंदनीक ते नाहि रे... प्रा० ... ९ असिआऊसा मन धरीजी, दरशन ज्ञान चरित्त; जिनमुख देखी एह जपोजी, कर नरभव पवित्त रे... प्रा०... १० सीस सुगुर सरूपनोजी, कहै दत्तमान अनूप; एह वचन मन ना धरेंजी, ते पडो ओंड कूप रे... प्रा० ... ११ ॥इति।। - [इति जिनप्रतिमापूजा स्वाध्याय]
(७) ॥ बैद न कोई असो देख्यो, वेदन मुझ नसाय; नाम तुम्हारों सुणकें प्रभुजी, अब आयों तुम पायजी... १
श्री चिंतामण पास, [तु]म चरणा सीस नमाजी, में आप तणा गुण गाजी, में समकित गुण वुजवालुजी... श्री० आं० ... सुंदर सूरति मूरति थारी दीठा मन हुलसाय; कोड भवारी बेदन म्हारी एक पलकम जायली. श्री० ... २
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धन माता वामादे राणी जायो तुमसे नंद; सुरनर किंनर आदि देई, नमाये मुनंदजी... श्री० आप तिरे बहुते रे त्यारे, करुणाकर जिनराज; अब हुं श्रुतनोका बसाणा, अपडावें सिवपाजजी... श्री० कर जोडी सेवक जिन विनवें, अरज सुणो महाराज; मानदत्त चेराकी तुमनें, बाह गहेंकी लाजजी... श्री० ॥ इति [ चिन्तामणि पार्श्वगीत ] संपूर्णं ॥
ओर कहां तुमें कहुंजी, जीवन प्राण आधार; सेवक जाण मया करोजी, पतित ऊधारणहार... दत्तसरूप सुगुर तणोजी, मान कहै सुविचार; भवसायर तें डुबतोजी, अबकें लेहो ऊवार...
॥ इति स्तवन ॥
अनुसन्धान ३५
( ८ )
|| देशी । नरुकाका गीतनी ॥
रे जिनेस्वर साहिबा माहरी अरज सुणीजोजी० आं० लख चौराशी योनमेंजी, भ्रमत फिर्यो बहुकाल; दुःख अनंता में सह्याजी, साहिब दिनदयाल. तारणनो बिरुद सांभलीजी, श्रीगुरकेरी वांण; जब में तुमचें आवियोजी, साहिब चतुर सुजाण ... जि० इण अवतारें साहिबाजी, भेट्या देव अनंत; पिण को काज सर्यो नहीजी, सांभल श्री अरिहंत... जि० मुझमें अवगुण छ घणाजी, कहत न आवें पार; पिण तुम झाज तणी परेंजी, छो प्रभु तारणहार... जि० निरगुणीयांना कर ग्रहीजी, उत्तम छोडें केम; विष विषधर अरु चंद्रमाजी, ईश्वर राखें जेम...
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( ९ )
॥ कपूर हुवें अति ऊजलो रे । ए देशी ॥
देवी देव मनावतां रे, नीठ थयो सुत एक; कामातुर तिरिया वसें रे, मातसुं मांड्यो द्वेक... भविकजन; विषय महाबलवंत. होजी कोई जीत्या छे संत महंत...
सिटत पटित कलेवरु रे, काकजंघा सम स्वान; तसु केर्डे लाग्यो फिरें रे, विषय करी हयरान... रिद्ध वृद्ध कुलविध तजी रे, पायक भीम समान; मयणवसें दुःखीयो थयो रे, मूंज महाराजान... लंकापति अतुली बली रे, सुरपति पदवी सार; धरणी तसु मस्तक रुल्या रे, हह विषय विकार... केसफरस नियाणो कीयो रे, व्रत पाल्यो बहु काल; संभूत चक्रवरति बारमो रे, जायें सत्तम पायाल..... विषय - फल विष सारिका रे, जे सेवें नरनार; ते दुरगति दुःख पामसे रे, न लहें सास लगार...... कामनी मिरगफासमें रे, पडें तब पिछताय; जीवत चूंट कालजो रे, मुंवां नरक ले जाय.... इम जाणीनें तुम तजो रे, विषय चतुर सुजान; सीस सुगुर सरूपनो रे, पभणे इम रुषिमान... इति विषयत्याग गीतम् ॥
(१०)
गोतम प्रश्न कीयो भलोजी, चरणा सीस नमाय; काल पंचम आयो थकोजी, जाणीजे किण प्राय. हो प्राणी; जोवो अरथ विचार... १
वीर जिनेश्वर इम कह ( है ) जी, सुण गोतम सुवनीत; ग्यानीयें असो कह्योजी, जाणीजे इण रीत ...
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अनुसन्धान ३५
नगर ग्राम सरिखा होसेंजी, ग्राम ते चिता रे समान; कुटमी दास सरिसा होसेंजी, लांचग्राही पुरुष प्रधान...हो प्रा० ..... ३ राजतेज जम सारिखोजी, सजन निलजपणि जोय; केतिक कुलनी कामनीजी, वेस्या सदृस होय.... हो प्रा० ..... पुत्र स्वछंदें चालसेंजी, गुरु नंदक सिष्य मुगध; दुरजन सुखी ऋद्धना धणीजी, सुजन दुःखी अल्प रिध... हो प्रा०.... ५ मात पिता बठा रहेंजी, पुतर पामें जी काल, वाय प्रचंड वहसें वली, वेगला पडसें काल..... हो प्रा० ... ६ सरपादिक बहु जीवडाजी, थासें प्रथवी रें मांहि; अतीत ब्राह्मण धन लोभियाजी, थासें समता न आंहि...हो प्रा० .... ७ कुलाचार त्यागी होसेजी, साधु श्रावक दोय; कलह कषाइ जीवडाजी, विसनें बहु रित होय .... हो प्रा० .... ८ मिथ्याती नर देवताजी, ए पिण बहुलाजी होय; मंत्र यंत्र वलि ओषधीजी, लघु परभावीक जोय..... हो प्रा० ... ९ दया धरम पिण थोडलोजी, वलि धन आयू रे जाण; देव दरसण मनुष्यनेंजी, कठिन श्रवण वखाण.... हो प्रा० ... १० आचारज वलि साधनेंजी, स्रावक भणासी रे सूत्र; मावित्रसुं त्थी कारणेजी, कलहें करसी रे पुत्र .... हो प्रा० ... ११ सतियां मेला कापडाजी, कुलटा रंग विरंग; मलेछ राज बहुलो हुसेंजी, सांभलज्यो सहू संग... हो प्रा०... १२ श्रीभगवती माहें कह्योजी, तीसें बोलें विचार; श्रीवरधमान पसावलेजी, गुंथ्यो उण अनुसार... हो प्रा० .... १३ विजय गछमा दीपताजी, श्रीरूपदत्तमुनीस; तास पटोधर राजिताजी, सरूपदत्त सुजगीस .... हो प्रा०.... १४ तास सीस इण पर भणेजी, मानदत्त सुविचार; एह बोल सुणतां थकीजी, मनमां कीयोजी हकार.... हो प्रा० ... १५
|| इति कलयुग स्वाध्याय ॥
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कडी
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शब्दकोष शब्द अर्थ अभयकुमार स्वाध्याय
प्रथम पंक्तिमां
वे वे
शूरा
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वेरण वहोरवा पागुर्या पधार्या अणशरी अणसणी-उपवासी सावतवा सामंतो सूरवां
सस्तर . शस्त्र : शील स्वाध्याय :
वांधीयो चलणी चाळणी फीट
फीटी-मटी गई
वध्यो
थाठ
ठाठ
गरभाकी
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: अरणक सिज्झाय :
गरबाकी वेसें वेश्याए अविलायें अभिलाषाओ तसलीम स्वागत (?) चत्रसाली चित्रशाला चोपड चोपाट
ध्रगनग धिग् धिग् भवदधि
भवोदधि-भवसागर
: आरती : भेवा अष्टमहाप्रतिहारज ८ महाप्रातिहार्य, जैन
तीर्थंकरनी समृद्धिओ.
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भेद
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अनुसन्धान ३५
नहचे
भेरी
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अरिंत
अरिहंत
निश्चे सयंभूरमण
स्वयम्भूरमण नामे
महासमुद्र भेरन करपूर
कपूर
: सुमतनाथ गीत : तुरीयां
तुरीया दशा हींदरेथारे आम
केरी : जिनप्रतिमापूजा स्वाध्याय :
जीवाभगवी जीवाभिगम (ग्रन्थनाम)
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प्रेम
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श्रुगडांग प्रतिबूझिया अधेनना
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सूत्रकृताङ्ग (ग्रन्थनाम) प्रतिबोध पाम्या अध्ययनना ऊंडा
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ओंड
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: चिन्तामणि पार्श्वगीत :
वुजवालु त्यारे श्रुतनोका बसाणा अपडावे सिवपाज चेरा : स्तवन : झाज ऊवार
अजवाळु तार्या ज्ञाननी नावडी बेठो छु; बेसीने पहोंचाडे (?) मोक्षरूपी घाट चेला
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जहाज ऊगारी
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________________ फेब्रुआरी - 2006 69 ا ه द्वेक ه ___or orm 3 م له مر مر * 3 مر مر : विषयत्याग गीत : नीठ नेट-नक्की उद्रेक (?) सिटतपटित सडेलुं- लबडेखें पायक सुभट केसफरस (स्त्रीना) वाळना स्पर्शथी नियाणो निदान (आवी स्त्री मने मळो तेवी इच्छा) सत्तम पायाल सातमी नरके सारिका सरीखा मिरगफास मृगलां पकडवानो फांसलो चुंटका चुंटे, फोले : कलियुग स्वाध्याय : कुटमी कुटुम्बी निलजपणि निर्लज्जपणे नंदक लोभी काल मृत्यु विसनें व्यसनमा लघु शीघ्र C/o. नीतू अमृतलाल जैन 404, से-२२, तुर्भेगाम न्यू मुम्बई 400705 سه سه ه ه ه Twor ه ه