Book Title: Mahamahopadhyaya Yashovijayjini Be Rachnao
Author(s): Dhurandharvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महोपाध्याय श्रीयशोविजयजीनी बे रचनाओ सं. मुनि धुरन्धरविजय महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजनी, एक अपूर्ण अने एक पूर्ण, अपूर्व कृतिओ विबुध जनोना करकमलोमां मूकतां हर्ष थाय छे. उपाध्यायजी 'गणि' हशे त्यारनी आ रचनाओ होवानुं बन्नेना अन्त भागे 'गणि जसविजयकृता' तथा 'यशोविजयगणिना' एवा उल्लेख जोतां, लागे छे बन्नेना लिपिकर्ता पण्डित नयविजयगणि (कर्ताना गुरु ) छे. नयविजयजी गणिए सं. १७१० मां लखेल 'द्रव्य गुण पर्याय रास नी तेमज स्वरचित 'भक्तामरस्तोत्रटीका'नी प्रतिओना अक्षर आवा ज छे. पश्चिम राजस्थानना कोई गाममांथी वेचावा माटे मारी पासे आवेला एक ग्रन्थसंग्रहगत एक गुटका (पुस्तक) मांथी जुदां पडी जतां ४ पानां मारा हाथमां आवेलां, जेमां आ बे कृतिओ लखायेली छे. पानां छूटां ज छे, तेथी लागे छे के प्रथम कृतिनां आगलां त्रण पानां पण क्यांक होवां ज जोईए. प्रथम कृति छे प्रसिद्ध अजितशान्तिस्तवनी अनुकृतिरूप, द्वीपबन्दर ( दीव) मण्डन सुविधिनाथ जिन तथा पार्श्वनाथ जिननुं संस्कृत स्तवन प्राप्त अंशमां गाथा ३१ थी ३९ छे, १ थी ३० अनुपलब्ध छे. पछीना त्रण पत्रोमां 'जय तिहुअण स्तोत्र'नी अनुकृति जेवी, अपभ्रंशभाषानिबद्ध 'शंखेश्वर पार्श्व स्तुति' छे, जे २९ गाथात्मक छे. त्रीजी गाथामां त्रीजुं चरण लखवानुं छूटी जवा उपरांत क्वचित् लेखनक्षति जोवा मळे छे. कृतिओ मजानी छे बन्ने कृतिओना प्रान्तभागे पोतानी प्रथा अनुसार कर्ताए पोताना गुरुजनोनुं स्मरण कर्तुं छे. प्रथम कृतिना अन्तिम श्लोकोमा स्पष्ट निर्देश छे के द्वीप बन्दरना संघनी विनंतिथी, कर्ताए, अजितशान्तिवत् सुविधि - पार्श्वस्तवनी रचना करी छे. जो आ स्तवरचना पूर्ण प्राप्त थई होत तो उपाध्यायजीनी एक अत्यन्त सुन्दर ने प्रासादिक रचना मळी होत. शंखेश्वर पार्श्व स्तुतिमां पण कर्तानी कमलकोमल प्रासादिकता जणाई आवे छे ज. संभवतः, उपाध्यायजीए नव्य न्यायनुं अध्ययन करवा मांड्यु, ते पहेलांनी आ रचनाओ होय तो ना नहि. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३३ (१) श्रीसुविधि-पार्श्वजिनस्तवः (अपूर्णः) ।। • • • • • • • • • . . बमानमेखलाभिरामदामवलयवल्गनावलम्बवल्गुना सुरेन्द्रपद्मलोचनाकरेण ! यस्य सुन्दराभिषेककारिणा गभस्तिबिम्बचुम्बिदेवशैलदेशपेशलप्रदेशसङ्गिगाङ्गनिर्झरानुकारिणा । विराजितं विराजितं भवाहिनाशने नमामि तं नितान्तशान्तसेवधि भुजङ्गराजलाञ्छनं जिनम् ॥३१॥ नाराचकः ॥ इन्दुसुन्दरसितातपत्रपरिमण्डितौ घनभवगहनजननभयभञ्जनपण्डितौ । हारशशाङ्कपाण्डुरयशोभरशालिनी कोविदवदनपग्रहसितद्युतिमालिनौ ॥३२॥ ललितकम् ॥ कृपावतारौ सुरैज्जितारौ कृतोपचारौ गताऽतिचारौ ! शुचिप्रकारौ गलद्विकारौ सुखप्रचारौ समग्रसारौ ॥३३॥ वानवासिका ॥ तौ महोदयविलासभाजना-नन्दितावभिनुतौ सभाजनाः । एतयोरुपरि येऽसभाजना- स्ते भवन्ति किल रासभा जनाः ॥३४॥ अपरान्तिका ॥ स्तुतमिति जिनपतियमलं, विबुधव्रजसेव्यमानपदयमलम् । सिद्धधुनीजलविमलं सृजतु विनिद्रं हृदयकमलम् ॥३५।। आर्या ॥ सुविहितकुलकोटीरं वन्दे श्रीविजयदेवगुरुवीरम् । श्रीविजयसिंहधीरं श्रीमत्कल्याणविजयगुरुहीरम् ॥३६॥ आर्या ॥ श्रीलाभविजयविबुधा-स्तेषां शिष्या विशेषविद्वांसः । तेषां शिष्यवतंसौ विबुधौ श्रीजीतविजय-नयविजयौ ॥३७॥ आर्या ॥ अलिनेव तच्चरणवर-पङ्कजपरिचरणकरणरसिकेण । श्रीसङ्घप्रार्थनयो-द्युक्तेन यशोविजयगणिना ॥३८॥ आर्या ।। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ September-2005 अभ्रंलिहजिनगृहयो-रनयोः श्रीद्वीपबन्दिरोदितयोः । स्तवनाद् यदकृत सुकृतं तेनाऽस्तु स्वस्ति सङ्घाय ॥३९॥ आर्या ।। इति श्रीअजितशान्तिस्तवच्छन्दोरीतिपरीत-श्रीसुविधिपार्श्वजिनस्तवः ॥ पण्डितनयविजयेन लिखितः ॥ (२) श्रीशङ्केश्वर पार्श्वजिन स्तुति ॥ ऐं नमः ॥ जय जोगिंदमुर्णिदचंद-देविंदपवंदिय ! जय संखेसर पासनाह ! तिहुअणअभिणंदिय ! । जणमणवंछियअत्थसत्थसुरतरु ! जणिउच्छ्व ! धनंतरिसमसमरसेण मह सुक्खकरो भव ॥१॥ अहवा किं मम पत्थिएण तुह थुणणसुरद्रुम सेवणमेव समत्थमत्थवित्थारकए मम । छायापायवमासियाण पहियाण पहस्सममहणकए णहि पत्थणा बिअ णुइस्सइ विस्सम ॥२॥ जह मज्जंति न काणणम्मि करिणो पंचायणअप्फोडियलंगूलसद्दभरिए सुहभायण । तह जिण ! तुह अभिहाणझाणपणिहाणपरायणभविअजणाण हु माणसम्मि दुरियाई विसंति ण ॥३॥ तमपडलाइं गलंति मज्झ सयलाई वि सामिय ! तुह मुहचंदनिहालणेण परिणयसमयामिय ! । अह जिण ! मह तुह आगमेसु जहसत्ति सुबंधुर भत्तिविअत्तिनिबंधबंध ! दुरिउक्करमुद्धर ॥४॥ परिअट्टेवि पहू तुमं सि लोआलोआण वि मह दुहमित्तविणासणं तु सुकरं तुह संभवि । Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तह वि इमं मम पत्थणाइ जुज्जइ अपुणब्भवि धम्मसमुस्सिअ - सामिदासभावो बलवं भुवि ॥५॥ जय भयभंजण पासणाह ! तिहुअणमणरंजण ! जण जणवंछियकप्परुक्ख ! विगलियकम्मंजण ! | जय जिण ! दप्पयदप्पसप्पमाहप्पपभंजण ! परमसमत्तनिहाण ! झाणकयकलिमलगंजण ! ॥६॥ परिपेरंतफुरंतविज्जुभीसणभरि - अंबरि । घणगज्जियकयतट्टणट्ठहरिगयकयडंबरि । मुसलपमाणयमुक्कमेहजलधारसुपीवरि तुज्झ खमा न हु पंकिलावि चंचलकमठासुरि ॥७॥ जय णयसुरवरवरकिरीडमणिचुंबियणहयल ! फणिफणमणिसंकंतकंतिकिम्मीरियणहयल ! अतुलसजलजलवाहसंगिअंजणगिरिमेहलनववेरुलियकरप्परोह ! फलिणीदलसामल ! ॥८॥ तुह आणाइ पिसाय भूअ अइकूर महग्गहसाइणि डाइणि डंबराइ णासर गहविग्गह । तिहुअणजण आराहिआण भुवणत्तयसुप्पह ! तुह नामं चिय परममंतवरकज्जकरं मम (मह) ||९|| जे अडवीसु अडंति जंति गहणे पहलुंटणसंकप्पियणियतेणवित्तिपउरा चोरा जिण ! | ते पोरव्व ण तुज्झ णाममंतक्खरसमरणकर[ण]परायणमाणसाण भयया भयभंजण ! ॥१०॥ पणवपुरस्सरकज्जसज्जलज्जानीउत्तर अरिहं चिय सिरिपासणाहणामक्खरसइपर | असुरगरुलगंधव्वजक्खरक्खसवरकिंनर नागाइ अविलंघियाण अइरा होहिसि गर ! ॥११॥ अनुसन्धान ३३ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ September-2005 जय जगजणमणवंछिअत्थपूरणु चिंतामणि ! चिंतामणिणयणागहाण पङमावइ सामिणि । जय संखेसर पासणाह ! सु(स?)रणागयकामिणि कामविलासक्खुभियचित्त ! जिण ! मुणिजणगामणि ! ॥१२॥ अट्ठारसघणदोसि(स?)सोसि-केवलकिरणुक्करपसभपबोहियसमणसंघलोअणकमलायर ! । कुमइकुमइसच्छंदमंदसंकप्पसमुद्धरतिमिरतिरोहग ! पासणाह ! जय तिहुअणदिणयर ! ॥१३॥ जय णयपत्थिवमत्थयत्थलंबंतसमुस्सियकप्पडुमअभिरामदामसंपूजियणियपय ! । पयडीकयपरमत्थसत्थ ! पुरिसत्थपवत्तय ! पुरिसुत्तम ! वरपुरिससीह ! सिवमग्गुवदेसय ! ॥१४|| तुह केवलकिरणोदयेण वड्डइ झाणण्णव अणवमणवमरसप्पसप्पिलहरी अपुणब्भव ! | पत्थ (पेच्छ ?)तुम उल्लसइ मुज्झ माणसमिणमो जिण ! इय तिहुअणआणंदचंद ! मह तावनिवारण ! ||१५| जइ बीहेसि भवाउ वाउचलआउअथिर-परदविणसमुल्लणदुव्वणाइदुत्थाउ जिणेसर ! । ता संखेसरपासणाह ! समरणरण[रण]किय झाणकरणएगग्गलग्गहिअओ हव ! पियवय ॥१६।। जय उन्नयकयणय-पमाणवयवयणसुगज्जिअ ! अज्जियसुकयसमुद्दलद्धसमरसभरसज्जिअ ! | 'मारिसजणमणसिहिपमोअतंडवपरिमंडण ! इय जिण ! रोहियबोहिबीअ ! घणदुरिअविहंडण ! ॥१७॥ जिण ! तिविहं तिविहेण तुज्झ सरणं पडिवज्जिय तज्जियमोहभडा हवंति दुरियं पि विसज्जिय । Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 जय जय मयणपहारधीर ! इय तिहुअणतारण ! तिहुअणवच्छल ! तिहुअणिक्कदुहदुरियनिवारण ! ॥ १८ ॥ तुहमुवयारपरायणो सि उवयारपयं पुण अपुणभव ! भवभमणदुक्खदुहिओहमिहं जिण ! | ता भुवणत्तयवंदणिज्ज ! णिअपहमवलंबिय कुणसु सुहाई जिणिदचंद ! विदलियसयलाहिअ ||१९|| अट्ठमहाभयदुकुट्ठजरपदरभगंदर अच्छिकुच्छिसुइमूलसूलपमुहाई जिणेसर ! । तुह नामक्खरसमरणेण जिययं सयलाई वि । तिमिराइं विरविज्जुईइ णासंति दुहाई वि ॥ २०॥ सुस्सुअसमयविहीइ भग्गभविजणभवअंतर ! परमरसायणसम ! पहाण ! तेलुक्कसुहंकर ! | वयसमयंजणअंजणेण विमलीकयलोअण ! अनुसन्धान ३३ जणगणसंथुआ ! भुवणविज्जु ! मारिसपडिबोहण ! ||२१|| सरणागयजणताण ! पाणसंतइसंरक्खर (ण) ! वरअट्टुत्तरसहसमाणजिणलक्खणलक्खण !! जय हयमोह हओहसोह दुहसरसंतक्खण ! तिहुअणजण आणंदकंद घण ! परमविअक्खण ! ||२२|| तुह गुणगुणणपरायण त्थु रसणा जिणणायग ! हिययं पुण तुह झाणपुण्णमुत्तमपहसाहग !! गत्तं तुज्झ पमाण ( पणाम?) भावरोमंचपसाहग- 1 मि(इ)य पत्थिज्जइ देसु देव ! सासयसुहदायग ! ||२३|| नहि विहलं तुह पत्थणं ति वीसासवसेण उ सुहमासिज्जइ भुवर्णाविज्ज ! निउणेण ण केण उ । इय जाणिज्जइ तहवि भूरिभत्तिब्भर भासिय हिययविजंभियमेयमेव बहु बहु भासियमिय ॥२४॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ September-2005 तुह सरणागयवच्छलस्स मह उवरि पियामह ! जुग्गाजुग्गविचिंतणं पि सुविलंबसहं कर(कह) / अहमिह पुण जाणामि जुग्गसंगय जुग्गं चिय अप्पाणं तुह पायमूलसुसरणमुवलंबिय // 25 / / किमु वयघोरपरक्कमेहिं कयकायकिलेसिहिं जोगब्भासनिवासपासजंतियणियलेसिर्हि / जइ भव्वा ! भवभूअभीइभीया सिवमिच्छह ता संखेसरपासणाहणामं चिय समरह // 26 // घणदुरियाई जिणाई मुज्झ सिग्धं णासंति हु अणिमाइयवरअट्ठसिद्धिबुद्धी विलसंति हु / सिरिसंखेसरपासणाहसेवासुपसाइण ता किं परसुरसेवणेण इय चिंतिसु भवियण ! // 27 // मुज्झ मणोरहपत्थअत्थकप्पद्रुम ! सामिय ! मा अवहीरइ दासमिय(मेय) भासइ सिर नामिय / सिरि संखेसरपासणाह ! भवदुहभरमोअण ! सुण विनत्तिरहस्स तुट्ठिसुपसायपलोअण ! // 28 // तवगणगुरुसिरिविजयदेवसूरीसर ! वरगुणपट्टपहायरविजयसिंहसूरिंद पसाइण | इअ थुणिओ सिरिजीतविजयबुधम्मसहोअरसिरिनयविजयमुर्णिदसीसजसविजयसुहंकर // 29 // इति श्रीशङ्केश्वरपार्श्वजिनस्तुतिः / गणिजसविजयकृता / पं. नयविजयगणिना लिखिता // Clo. समृद्धि एपार्टमेन्ट, 'चन्दन'नी पाछळ, हाई-वे, डीसा-३८५५३५