Book Title: Jain Tirthsthan Taranga Ek Prachin Nagri
Author(s): Ramanlal Mehta, Kanubhai V Sheth
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन तीर्थस्थान तारंगा : एक प्राचीन नगरी रमणलाल महेता कनुभाई शेट तारंगा (उ.अ. २३-५९, पू.रे. ७२-४९) गुजरातना महेसाणा जिल्लाना खेरा तालुकामां आवेतुं छे. तारंगा (दंरासर) गुजरातना विविध स्थळो साथे आजे स्टेट ट्रान्सपोर्ट सर्विसना बसरूटथी संकळायेल छे. तथा महेसाणा - तारंगा रेल्वेथी भारतना अन्य भागो साथे संकळायेल छे. तारंगानी उत्तरे भेमपुरा, टींबा, ईशानमा खोडामली, पूर्वमां आशरे पांच छ किलोमीटर पर साबरमती नदी, अग्निखूणे हाडोल, दक्षिणे कनोरिया, कुंडा, राजपर तथा पश्चिमे कारडी अने तारंगा स्टेशन छे. तारंगा पर्वत समुद्रनी सपाटीथी आशरे ३६४मीटर उंचो छे. अने आजु बाजना प्रदेशथी ते आशरे १५० थी २०० मीटर उंचो छे. सामान्यता गुजरातना सपाट प्रदेशथी पूर्व तरफना पहाडी प्रदेशनी विवधतामां तारंगा अरवल्ली गिरिमाळाना ग्रेनाईट पडोदयो धरावे छे. तेवी आ हारमाळामा गोलाकार धरावतां, पवन अने धोवाणनी प्रक्रियाथी गुफावाळा स्थानो घणां छे. तेनी साथे आ विस्तारमा पवनथी ऊडेली रेतना टींबा तथा धारो पण छे. आम बे भूस्तरो धरावता आ विस्तारनी परिस्थिति जोतां पर्वतनो पश्चिम तरफनो भाग वधु ढाळवाळो तथा वमबाट माटे ओछो अनुकुळ छे. तेथी अहींना नदीना बांधानी नजीक केटलांक वसतीनां स्थानो डे. ते वाघानी पासे भेखडपर तथा त्यांना खड़कोनी गुफामां देखाय छे. आजे तारा के धारण मातानुं नानुं सामरणयुक्त मंदिर, तेनी पासेनी जोगीडानी गुफा थोडांघणां जाणीतां छे. अहीं ईटोनो उपयोग करीने केटलुक बाधकाम थयु छ. आ स्थळनी पूर्वमा पर्वतना उपरना भागमां भौगोलिक परिस्थिति बदलाय छे. अहीं पर्वतनी बे धार वच्चे, पवनथी उडेली रेत पथरायेली कंईक त्रिकोणाकार खीण छे. आ खीणना नीचाणचाळा भागो प्रमाणमा ओछा ढाळवाळा छे. अहीं उत्तर अने दक्षिणनी धारो परथी चोमासामा बहेता नाळाथी बनेली खीण आशरे २०० मीटर पहोळी छे. तेनी बन्ने बाजीना खडकोनी तकेटीना ढाळ पण सरळताथी समतल बनावाय एवा छे. आम तारंगानी आ खीण मानव बसवाटने माटे कंईक अनुकुळ परिस्थिति दर्शाचे छे. आ स्थळनी उपर्युक्त परिस्थितिनो लाभ लईने अहीं मानव वसवाट थयो होय अम अनुमान थई शके छे अने अहींथी प्राप्त पुरावयवो आ अनुमानने पृष्ट करे छे. साबरमती पासेनो आ प्रदेश तारंगानु अजितनाथनुं देरासर सोलंकीवंशना केन्द्रस्थ सारस्वत मंडळनो भाग होय एम उपलब्ध प्रमाणो दर्शावता नथी. पण ते पूर्व सीमा पर हतो परंतु ते आबुना परमारो अने त्यार बाद चौहाणोनो प्रदेश होवानुं लागे छे. आ बे राज्योना सीमाडा पर तारंगा पर्वतर्नु स्थळ होवाथी तेनुं लश्करी द्रष्टिए महत्त्व स्पष्ट छे. [40] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लश्करी द्रष्टिए महत्त्वना तारंगानु नाम पण भाषाकीय नजरे केटलुक सूचवे छे. तारंगाना देहेरासरमां प्राप्त लेखमा 'तारंगक' नामनो उल्लेख छे. आमां तारण के बचावसूचक धातु वपरायेलो जणाय छे. तेने पाणिनीय धातुपाठनो 'ऋक' धातु पुष्ट करे छे. आ धातु रक्षण -- तारणना अर्थमां वपरातो होय, तेनी परथी 'तारंगक' जेवो शब्द साधित थाय अने 'तारंगक,ना अत्यं 'क'नो लोप थता 'तारंगा' स्वरूप थाय. आ उपर्युक्त परिस्थितिनुं स्थानिक पुरावस्तुओ समर्थन करे छे. मानव वसवाट माटे जरूरी एवा रहेबाना मकानो, मार्गो, मूर्तिओ, माटीकामना अवशेषो वगेरे अत्रे वीखरायेलां पडेला छे. आ अवशेषोनी चारेबाजु दुर्गनी रचना छे. तेनां दरवाजा आदिमां जीर्णोद्धारो थया मकान अने वासणो अजितनाथनी खीणनां विशिष्ट लक्षणोमां पर्वतनी तळेटीना धीमा ढोळावो छे. आ ढोळायोने समतल करीने मकानोनी रचना थई छे. तेथी ते मकानोनुं बांधकाम करवा माटे नाना टेकरानी आजुबाजु पथ्थरोनी भीत बनावीने जमीन समतल करवामां आवी छे. आवी समतल जमीनना तथा भीतोना अवशेषो अजितनाथना देरासरनी बन्ने बाजुए तथा पश्चिममा घणी जग्याए देखाय छे. आ अवशेषोमा स्थानिक ग्रेनाईटना पथ्थरो तोडीने ते गोठवीने बनावेली भीतो एकबीजाने काटखूणे मळती देखाय छे. तेमा केटलीकवार नीचे मोटी भीतथी जमीन समतल करीने तेनी उपर प्रमाणमां नानी भीतो बांधेली छे. आ भीतो पथ्थर अने ईटोनी बनावेली छे. अहींनी ईंटोनी भीतो माटे छीन्नभिन्न थयेली छे. पण केटलीक जग्याए व्यवस्थित सचवायेली जोवा मळे छे. अहीं वपरायेली इंटो 45x30x7से.मी. ना कद नी छे. तेथी तेनी सरखामणी देवनी मोरी ना स्तुप तथा तेनां समकालीन बांधकाममां वपरायेली आ कदनी इंटो साथे थई शके. तेना अनुकालीन युगनी इंटो 37.5x30x7नी छे. सुलतान युगमां 30x22.5x7नी इंटो वपरायेली छे ते बाबत लक्षमा लेता आ अवशेषो दोढहजार वर्ष करता जूनी परंपरा दर्शावे छे. आ अवशेषोमां माटीना नळियां तथा वासणो वगेरे घरवखरी मळी आवी छे. नळियां आजना मेंग्लोरी टाईल्स साथे समानता धरावता बन्ने बाजुए उभी धारवाळा छे आने 'थापला' कहे छे. जे देवनी मारी तथा तेना समकालीन स्तरोमां प्राप्त 'थापला' करता उंची धारवाळा छे. एनी शैली परथी देवनी मोरीना अनुकालीन लागे छे. ए परथी अहीना मकानोनो काळनिर्णय करता ते हजार वर्ष करता वधू प्राचीन होवान सूचवे छे. माटीना कोडिया वाडका, कथरोट, हांडी जेवां वासणोनां ठीकरां पण अत्रेथी मळे छे. ते थापलाना समयना लागे छे आ परिस्थितिमां आ वसवाट आशरे हजार - बारसो वर्ष जूनो गणवामां [41] Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोई बाधक प्रमाण नथी. आ बसवाट एक नाना गाम के नगरनी रचना छे. कालक्रमनी नजरे आ अवशेषों पैकी केटलाक इ.स. दसमी/अगियारमी सदी पहलाना छे. तेथी तारंगा पर वसवाटनी प्रक्रिया अजितनाथ देरासर करता केटली सदीओ पहेलानी छे. मार्गा ___ अहीं पूर्व-पश्चिमना मुख्य मार्गने तळेटीनां बंधायेलां मकानो, तळाव पर आववाना रस्ता आदि साथे सांकळी लेवामां आव्यो हतो, तेथी साथे दुर्गुनी अंदर फरवाना मार्गो पण होवानां प्रमाणो छे. ते पैकी केटलाक स्थळे चढवा उतरवा माटे व्यवस्थित पगथिया बांधकामां आव्या होय एम लागे छे. आ पगथीयानी तैयार थयेली सोपानपंक्तिओ मकान तरफ जती होवानो प्रमाण छे. आम आ मार्गो, मकानोनी घरवखरी आदि तारंगा पर आशरे हजार वर्ष करता पूर्व मानव वसबाट होवानुं सूचन करे छे.. शिल्पो अत्रे दुर्ग अने नगरना अवशेषोमां केटलांक शिल्पो महत्वनां छे. ते पैकी अजितनाथना दहेरासरना हाल वपराता दरवाजानी अंदरना 'गणेश' अने 'विष्णु'ना पारेवाना पथ्थरना शिल्पो शैली द्रष्टिए नवमी-दशमी सदीनां छे. तेवी रीते अजितनाथना देहेरासरना मुख्य प्रवेशमंडपनी जमणाहाथनी देवकुलिकानी अंदर स्थापन करेली 'पदमावतीदेवी'नी लगभग आ समयनी अत्यंत मनोहर प्रतिमा छे. तेनी साथे दहेरासरनी कोटनी उत्तरनी भीतना गोखमा रहेली 'गोमुख यक्ष'नी आरसनी प्रतिमा पण बारमी सदीना पूर्वाधनी शैलीने अनुसरे खे. तदुपरांत सोमनाथना महादेवना मंदिरना प्रवेशद्वारनी बन्ने बाजुए खारा पथ्थरनी 'ईशान' अने 'वायु दिग्पालनी प्रतिमाओ पण बारमी सदीथी प्राचीन छे. आ उपरांत दुर्गनी भीतोमा जडायेलां शिल्पो, पूर्वना दरवाजा पासेनी चौहाणोनी कुलदेवी 'आशापुरी'नी महिषमर्दिनीनी प्रतिमा अने तेमाथी थोडे दूर घसायेली, उभेली प्रतिमा आदि अहीनां प्राचीन देवस्थानोना अजितनाथ दहेरासर पूर्वना काळना अवशेषो होवानुं सूचवे छे. आम अहींथी प्राप्त थता मकानना अवशेषो, मार्गना अवशेषो, नळिया अने वामणोघरवखरीना अवशेषो, शिल्पोना अवशेषो वगेरे परथी तारंगाना स्थाने हजार - बारमो वर्ष पूर्वे कोई नानु गाम के नगरी होवानुं सूचन करे छे. आ समग्र परिस्थितिनुं अवलोकन करतां हालनां अजितनाथनां दहेरासरचं स्थान तारंगानी प्राचीननगरीनां केन्द्र स्थाने मुख्य मार्गनी दक्षिणे होवानुं स्पष्ट थाय छे. तेथी ए दहेरासर ते तारंगानी प्राचीननगरीचं महत्त्व- देवस्थान के चैत्य होवु जोइए. आ दर्शाव छे ते प्राचीनगरीमा जैनोनी अने तेमनी प्रवृत्ति सविशेष प्रमाणमा होवी जोईए. आ दहेरासर मात्र पर्वतस्थित तीर्थस्थान ज नहीं पण प्राचीन तारंगानगरीएक महत्त्व- देवस्थान हतुं. जे अंगे हजी पण अन्वपणने अवकाश छे. [42] Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धसेन दिवाकरना चरितमां मळतुं एक अपभ्रंश पय सिद्धसेन दिवाकरना प्रबंधगत चरितमां एक एवो प्रसंग छे के सिद्धसेनसूरि राजमान्य बन्या तेथी साधु-आचारनी विरुद्ध राजसत्कार भोगवता थया अने गच्छमां आचारनी शिथिलता प्रवर्ती. सिद्धसेनसरिने जाग्रत करवा वृद्धवादी गुप्तवेशे तेनी पासे आव्या अने एक पद्यनो अर्थ पोताने समजातो नथी तो करी बताववा कह्यु. पद्य 'प्राकृत' भाषामा हतुं. सिद्धसेनसूरिनी समजमां कशुं न आयु. आगंतुके ते पद्य नो मर्म बताव्यो. तात्पर्य एबुं हतुं के तुं यमनियम अने व्रतोनो अतिचार न कर, साधुव्रतनुं दृढताथी पालन कर. सिद्धसेनसूरि कळी गया के आगंतुक बीजा कोई नहीं, गुरु वृद्धवादी ज छे. ('प्रभावकचरित', पृ. ५७-५८; 'प्रबंधकोश', पृ. १७-१८). ए बंने स्थाने जे पद्य आपेलुं छे, ते अपभ्रंश भाषानुं पद्य छे, अने जे रूपे पाठ मळे छ तेमां भाषा तेम ज छंदनी दृष्टिए केटलीक अशुद्धि छे. छंद आंतरसमा चतुष्पदी छे. एकी चरणोमा १४ मात्रा अने बेकी चरणोमां १२ मात्रा. पद्यनो शुद्ध पाठ नीचे प्रमाणे होवानो संभव छ : अणफुल्लिय फुल्ल म तोडहि, मण आरामा मोडहि । मण-कुसुमेहिं अच्चि निरंजणु, हिंडहि कांइ वणेण वणु }} 'अणविकस्या पुष्पवाळी (लता)ना पुष्प न चूंट; पुष्पवाटिकाओ उजाड नहीं; मानसिक पुष्पथी निरंजननी पूजा कर; एक वनमांथी बीजा वनमां कां तुं भटकी रह्यो छे ?' अहीं बीजा चरणमा आवतो मण निषेधार्थ मा नी साथे भारवाचक ण जोडाईने बन्यो छे. हिंदीमां कहो न । करो न जेवा प्रयोगोमां जे म छे ते : गुजरातीमां ते ने रूपे छ : 'करोने', 'बोलोने'. जो आ अर्थने मुख्य गणीए तो तात्पर्य एवं समजाय के पुष्पादिथी थती बाह्य पूजा करतां मानसिक पूजा ए ज साची पूजा छे. परंतु राजशेखरसूरिना वृत्तांतमां संदर्भ अनुसार उपर सूचित करेल व्यंग्यार्थ आयो छे, ज्यारे प्रभाचंद्रसूरिए तो विदग्धताथी त्रण अर्थ करी बताव्या छ, अने कह्यु छे के आ प्रमाणे वृद्धवादीए पद्य ना अनेक अर्थ करी बताव्या. आ कारणे, अन्य संदर्भमां प्राप्त पधने प्रस्तुत संदर्भमा योज्यु होवानी आपणने शंका जाय छे. चरितने बहेलाववा प्रचलित सुभाषितो वगेरेने जोडी देवानी प्रणाली चरितकारोमां सामान्य हती. धर्ममहिमानुं एक सुभाषित सिद्धसेनसूरिना चरित्रनी जे उत्तरकालीन प्रबंधसाहित्य सुधीनी परंपरा मळे छे, तेमां आप्रदेवसूरिकृत 'आख्यानक-मणि-कोश-वृत्ति' मा (ई.स. ११३३) आपेल 'सिद्धसेनाख्यानक' मां, सिद्धसेन अने वृद्धवादी बच्चे गोवाळोनी समक्ष थयेला वादमां वृद्धवादी पोतार्नु वक्तव्य छंमा [43] Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीचेना अपभ्रंशभाषाना पद्य वडे रजू करे छे (ए फ्ध सात चरणना, द्विभंगी प्रकारना रड्डा छंदमां होवानो ख्याल न आवतां, तेमां चरणो खूटता होय तेम मानी पाट अपायो छे, पण ते भूल छे. पाठ शुद्ध ज छे, अने ते नीचे प्रमाणे छे) : धम्मु सामिउ सयल-सत्ताहं, विणु धम्मिं नाहि धर, धन्नु धणु धम्मह पसाएण / धम्मक्खर बाहिरिण, धिसि धिरत्थु तेण जाएग / / धरणिहि भारु करतेण, पय-पूरण-पुरिसेण / किउ संसारि भमंतेण, धम्यु सुमित्तु न जेण / / (पृ. 171, गा.२०-२१नी वच्चे) 'धर्म सर्व प्राणीओनो स्वामी छे; धर्म विना धरानुं अस्तित्व नथी; धर्मनी कृपाथी ज धनधान्य प्राप्त थाय छे; जेणे संसारमा भ्रमण करतां, धर्मने सन्मित्र नथी बनाव्यो तेवा, धर्माक्षरनी बहार रहेला, मात्र पाद पूरक समा ए पुरुषना जन्मने धिक्कार छ, धिक्कार छे.' आ साथे स्वयंभूकृत 'स्वयंभूछंद' मां (ईसवी नवमी शताब्दीनो अंतभाग) आपेल रड्डर छंद- उदाहरण सरखावो : जेण जाएण रिउ ण कंपति, सुअणा-वि गंदंति णवि, दुजणा-वि ण मुअंति चिंतए / तें जाएं कमणु गुणु, वर-कुमारी-कण्णहलु वंचिउ // किं तणएण तेण जाएण, पअ-पूरण-पुरिसेण / / जासु ण कंदरि दरि विवरु, भरि उव्वरिउ जसेण / / 'जेना जन्मवाथी शत्रुओ कांपता नथी, सज्जनो आनंद पामता नथी, दुर्जनो चिंताथी मरणतोल थता नथी, एवा मात्र पादपूरक पुरुष जेवा, कोई सुंदर कुमारीना कन्याभावना निष्फळ लोपक बननारा, जेनो यश कंदरा, गुफा अने बखोलने भरी दईने पण हजी शेष बचतो न होय, एवा पुत्रना जन्मवाथी शो लाभ / ___ आमां 'धिरत्यु तेण जाएण' ('किं तेण जाएण') अने 'पअ-पूरण-पुरिसेण' ए शब्दो समान छे. स्पष्टपणे पुत्रविषयक स्वयंभूना सुभाषित उपरथी आम्रदेवसूरिनुं धर्मविषयक सुभाषित घडायुं छे. है. भायाणी [44]