Book Title: Jage Yuva Shakti
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जागे युवा शक्ति ! तीन अवस्थाएँ प्रकृति का यह कैसा अटल नियम है, कि प्रत्येक चेतन पदार्थ की तीन अवस्थाएं होती हैं-बचपन, यौवन और बुढ़ापा । चाहे आप एक जगत की महानतम शक्ति-सूर्य को देखिए, चाहे एक नन्हें से पुष्प को । सूर्य उदय होता है, उसकी किरणें कोमल और सुहावनी होती हैं, प्रातःकाल की कोमल धूप अच्छी लगती है। मध्यान्ह में सूर्य पूरे मा यौवन पर आता है तो धूप प्रचंड और असह्य हो जाती है। शरीर को सुहावनी लगने वाली किरणें जलाने लग जाती हैं। सायंकाल होते-होते सूर्य बुढ़ापे की गोद में चला जाता है, तब तेज, मन्द पड़ जाता है, किरणें शान्त हो जाती हैं। __पुष्प, अंकुर और प्रत्येक जन्मधारी प्राणी इन्हीं तीन अवस्थाओं से गुजरता है। भगवान महावीर ने इन्हें तीन याम 'जाम' कहे हैं। 'तओ जामा पण्णत्ता, पढमे जामे मज्झिमे जामे....' दिन के तीन प्रहर - की भांति प्रत्येक जीवन के तीन प्रहर–अर्थात् तीन अवस्थाएँ होती है। अर्जन का काल : बाल्यकाल प्रथम याम -अर्थात्-उदयकाल है-बचपन का सुहावना समय है, उदयकाल में प्रत्येक जीवधारी शक्तियों का संचय करता है। प्राण शक्ति और ज्ञान शक्ति, दोनों का ही अर्जन-संचय अथवा संग्रह बाल्यकाल में होता है । बाल्यकाल कोमल अवस्था है। कोमल वस्तु को चाहे जैसा आकार दिया जा सकता है, चाहे जिस आकृति में ढाला जा सकता है। बाल्यकाल में शरीर और मन, बुद्धि और शरीर की नाडियां, नसें सभी कोमल होती हैं, अतः शरीर को बलवान, पहलवान बनाना हो तो भी बचपन से ही अभ्यास किया जाता है। अच्छे TIP संस्कार, अच्छी आदतें, बोलने, बैठने की सभ्यता और संस्कार, काम करने का सलीका, बचपन से ही सिखाये जाते हैं। मानस शास्त्री कहते हैं-'यन्नवे भाजने लग्नः संस्कारो नान्यथा भवेत' जो संस्कार, आदतें बचपन में लग जाती हैं, वे जीवन भर मिटती नहीं, इसलिए बचपन 'अर्जन' का समय है । बल संचय, विद्या अर्जन और संस्कार निर्माण-यह बचपन की ही मुख्य देन हैं । यौवन : सर्जन का समय जीवन की दूसरी अवस्था है-जवानी। कहने को जवानी को 4 दिवानी कहते हैं । शरीर, बुद्धि, संस्कार-सभी का पूर्ण विकास इस अवस्था में हो जाता है। छोटा-सा पौधा धीरे-धीरे जड़ें जमाकर जागरण का शंखनाद ! जीवन-निर्माण के लिए २९६ चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम - साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jaih Education International www.jaineribrary.org Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A अपना विकास कर लेता है और फूल तथा फल बसन्त में सभी वृक्ष, लता, पौधे खिल जाते हैं, देने में समर्थ हो जाता है । इस अवस्था में विकसित होकर झमने लगते हैं और All स्वाभाविक ही रक्त में उष्णता, स्फूर्ति और व फलों से अपना सौन्दर्य प्रकट करते हैं, उसी E५ प्रवाहशीलता अधिक होती है, इसलिए मनुष्य का प्रकार यौवन भी उत्साह व स्फूर्ति की लहरों से शरीर कष्ट सहने में अधिक सक्षम रहता है, तरंगित होकर कुछ न कुछ करने को ललकता है, काम करने में फुर्तीला और समर्थ रहता है। निर्माण करने को आतुर होता है। यदि जवानी में बचपन में जो बल-शक्ति घुटनों में थी, वह अब किसी को निर्माण करने का अवसर नहीं मिलता हृदय में संचारित हो जाती है, इसलिए युवक में है, सर्जन करने की सुविधा व मार्गदर्शन नहीं साहस और शक्ति का प्रवाह बढ़ने लगता है। मिलता है, तो उसकी शक्तियाँ कुण्ठित हो जाती ( बाल्यकाल में यदि शिशु अच्छे संस्कार व अच्छी हैं, कुण्ठा व आन्तरिक तनाव से वह भीतर ही आदतें सीख लेता है, खान-पान आदि के संयम के भीतर घुटन महसूस करता है। साथ रहता है तो युवा अवस्था में उसमें अद्भुत मानव-जीवन भी तीन अवस्थाओं में गुजरता शक्ति व स्फूर्ति प्रकट होती है, उसके शरीर में संचित वीर्य, ओज, तेज बनकर उसके तेजस्वी, है, बचपन अधूरा होता है, बुढ़ापा अक्षम होता है, प्रभावशाली और सुदर्शन व्यक्तित्व का निर्माण विकास की अन्तिम सीढ़ी पर खड़ा होता है । करते हैं, इसलिए माता-पिता, जो अपनी सन्तान यौवन ही वह समय है, जो जीवन को समूचेपन से को तेजस्वी बनाना चाहते हैं, आकर्षक व्यक्तित्व भरता है, समग्रता देता है, परिपूर्णता देता है। वाला बनाना चाहते हैं, उन्हें बचपन से ही उनके यौवन सोचने की सामर्थ्य भी देता है और करने संस्कारों की तरफ ध्यान देना चाहिए। की क्षमता भी, इसलिए 'यौवन' मनुष्य की अन्तर् बाह्य शक्तियों के पूर्ण विकास का समय है। इस __ संसार में जितने भी तेजस्वी और प्रभावशाली अवस्था में मनुष्य अपने हिताहित का स्वयं निर्णय व्यक्तित्व हुए हैं, उनके जीवन-निर्माण में जागरूक कर सकता है और स्वयं ही उसको कार्यरूप दे माता का हाथ उसी प्रकार रहा है, जैसे अच्छे सकता है । बचपन और बुढ़ापा-परापेक्ष हैं, परावफलदार वृक्षों के निर्माण में कुशल माली की देख लम्बी हैं। यौवन स्व-सापेक्ष है, स्वावलम्बी है। रेख रहती है। भगवान महावीर ने इसे जीवन का मध्यकाल . जिन बच्चों की बचपन में देखरेख नहीं रहती बताया है, जागरणकाल बताया है और निर्माणजिन्हें अच्छे संस्कार नहीं मिलते, योग्य शिक्षण काल भी। व संरक्षण नहीं मिलता, वे जवानी आने से पहले मज्झिमेण वयसा एगे संबुज्झमाणा समुट्ठिता (Eph) ही मुर्झ जाते हैं, दीपक प्रज्वलित होने से पहले ही बुझ जाते हैं । वृक्ष, फलदार बनने से पहले ही यौवन वय में कुछ लोग जाग जाते हैं, स्वयं की सूखने लग जाता है, अतः कहा जा सकता है, यौवन पहचान कर लेते हैं, अपने व्यक्तित्व की असीम उन्हीं का चमत्कारी और प्रभावशाली होता है, क्षमताओं का अनुमान कर लेते हैं और पुरुषार्थ की जिनका बचपन संस्कारित रहता है। अनन्त-अनन्त शक्ति को उस मार्ग पर लगा देते हैं, ___ बचपन अर्जन का समय है तो यौवन-सर्जन का जिस पथ पर बढ़ना चाहते हैं, उस पथ को अपनी सफलताओं की वन्दनवार से सजा देते हैं। समय है । तरुण अवस्था नव-सर्जन की वेला है। बचपन शिशिर ऋतु है, तो जवानी बसन्त ऋतु है। जो युवक होकर भी, यौवन में अपनी क्षमता MAHAVEHOROSS on चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Reprivate Personalise Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A का उपयोग नहीं कर सकता, या अपने को पहचान भी २८ वर्थ की अवस्था में गृहत्याग कर यौवन नहीं पाता, वह जीवन की बाजी हार जाता है। को तपाते हैं और बुद्धत्व प्राप्त करते हैं । सिकन्दर, इसलिए यौवन का क्षण-क्षण, एक-एक पल कीमती चन्द्रगुप्त, अशोक, गाँधी, नेहरू, मार्क्स, लेनिन, है, इसको व्यर्थ मत जाने दीजिए सिर्फ कल्पना या चचिल, रूजवेल्ट, सभी का इतिहास उठा कर देख स्वप्न देखना छोड़कर निर्माण में जुट जाइए। लीजिए । २५ से ४५ वर्ष का जीवनकाल ही सबके उत्साह : यौवन की पहचान है अभ्युदय और सफलता का महान समय रहा है। हा मैं एक युवक सम्मेलन में उपस्थित हुआ था, ___ आयु का यही वह समय है, जब मनुष्य कोई महान " सैंकड़ों युवक बाहर से आये थे, स्थानीय कार्यकर्ता । कार्य कर सकता है, अथक परिश्रम व कष्ट सहने ने युवकों का परिचय कराया, तो एक युवक को । । की क्षमता, आपत्तियों का मुकाबला करने की शक्ति, संघर्ष की अदम्य चेतना यौवन काल में ही सामने लाकर बोले-महाराज साहब, यह हमारे दीप्त रहती है । यौवन में न केवल भुजाओं में बल गाँव का उत्साही युवक है।। रहता है, किन्तु सभी मानसिक शक्तियाँ भी पूर्ण मैंने उसे गौर से देखा, और सोचा-"उत्साही जागृत और पूर्ण स्फूर्तियुक्त रहती हैं, उनमें ऊर्जा द युवक", इसका क्या मतलब ? उत्साह तो युवक भी भरपूर रहती है और ऊष्मा भी। इसलिए सफ की पहचान है, उत्साह युवक का पर्याय है, जिस लता का यह स्वर्ण काल कहा जा सकता है । नवपानी में तरलता व चंचलता नहीं, वह पानी ही सर्जना का यह बसन्त और श्रावण मास माना जा नहीं, जिस घोड़े में स्फूर्ति नहीं, तेजी नहीं, वह सकता है । भगवान् महावीर ने इसे ही जीवन का मरियल टट्टू कोई "अश्व" होता है ? इसी प्रकार मध्यकाल कहा है । * जिस युवक में उत्साह नहीं, वह कोई युवक है ? हाँ, अगर कोई कहता, ये "उत्साही बुजुर्ग है" कि हाँ. अगर कोई करता. या विसर्जन का समय : बढापा । तो उत्साह उसकी शोभा होता, "उत्साही-युवक" बचपन का अर्जनकाल, यौवन का सर्जनकाल कर यह युवक का विशेषण नहीं, या युवा की पहचान पूर्ण होने के बाद, बुढ़ापे का विसर्जनकाल आता । नहीं, किन्तु यौवन का अपमान है, उसकी शक्तियों है। बचपन में जो शक्ति संचित की जातो है, वह की अवगणना है। यौवन में व्यय होती है, और नव-सर्जन में काम आती है, किन्तु अर्जन और सर्जन परिपूर्ण होने के यौवन में ही महान कार्य हुए हैं बाद "विसर्जन" भी होना चाहिए। जगत से, ____संसार के महापुरुषों का इतिहास उठाकर प्रकृति से, समाज से और परिवार से जो कुछ प्राप्त / देखिए, जितने भी वीर, योद्धा, प्रतिभाशाली, देश- किया है, उसे, उसके लिए देना भी चाहिए । जो भक्त, धर्मनेता, राष्ट्रनेता, वैज्ञानिक, आवि- ज्ञान, अनुभव, नया चिन्तन और विविध प्रकार की | कारक, महापुरुष और अपने क्षेत्र की हस्तियाँ हुई जानकारियाँ आपको दीर्घकालीन श्रम के द्वारा, ||5) हैं, उन सबका अभ्युदय काल यौवन ही है । यौवन साधना के द्वारा प्राप्त हुई हैं, उनको समाज के की रससिक्त ऋतु ने ही उनके जीवन वृक्ष पर सफ- लिए, मानवता के कल्याण हेतु विसर्जन करना भी - लता के फल खिलाये हैं । भगवान् महावीर ३० वर्ष आपका कर्तव्य है । जो धन-समृद्धि, वैभव आपको, न की भरी जवानी में साधना-पथ पर चरण बढ़ाते हैं, अपनी सूझ-बूझ, परिश्रमशीलता और भाग्य द्वारा और यौवन के १२ वर्ष तपस्या, साधना, ध्यान उपलब्ध हुआ है, उन उपलब्धियों को चाहे, वे आदि में बिताकर तीर्थंकर बनते हैं। गौतम बुद्ध भौतिक हैं, या आध्यात्मिक हैं, मानवता के हित ३०१ चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम १८. साध्वीरत्न कुसमवती अभिनन्दन ग्रन्थ uration International www.janendry.org Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्याण हेतु उनका अर्पण-विसर्जन करना भी अनि- व विपक्ष पर 'छु' करके छोड़ देते हैं । वे युवकों को वार्य है। सरोवर में या कुए में जल भरता ही नाना प्रलोभन देकर, सरसब्ज बाग दिखाकर दिग-112 रहे, कोई उस जल का उपयोग न करे, तो वह जल भ्रांत किये रखते हैं। इस मृगतृष्णा में पड़ा युवक गन्दा हो जाता है, खारा हो जाता है, किन्तु जल न तो अपना स्वतन्त्र चिन्तन कर कुछ निर्माण कर प्रवाह बहता रहे, तो जल स्वच्छ और मधुर बना सकता है और न ही उनके चंगुल से छूटने का साहस रहता है । इसलिए प्रौढ़ अवस्था के बाद मनुष्य को ही दिखा सकता है। दूसरों के इशारों पर कलासमाज-सेवा, राष्ट्र-सेवा तथा दान एवं परोपकार बाजी दिखाना और विद्रोह-विध्वंस में अपनी शक्ति का की तरफ विशेष रूप से बढ़ना चाहिए। यह सेवा का दुरुपयोग करते रहना-यह युवा-शक्ति के लिए परोपकार एवं दान ही "विसर्जन" का रूप है, जो शर्म की बात है । अब विद्रोह और विध्वंस का नहीं मुख्य रूप में वृद्ध अवस्था, या परिपक्व अवस्था में किन्तु निर्माण का रास्ता अपनाना है। यद्यपि ENA किया जाता है, किन्तु यहाँ अधिक इस विषय में विध्वंस करना सरल है, निर्माण करना कठिन है। C) अभी नहीं कहना है, यहाँ हमें युवाशक्ति के विषय किसी भी सौ-दो सौ वर्ष पुरानी इमारत को एक पर ही चिन्तन करना है। धमाके के साथ गिराया जा सकता है ____ मैंने कहा था कि समाज में, संसार में चाहे । ___ निर्माण करने में बहुत समय और शक्ति लगती है। o जिस देश का या राष्ट्र का इतिहास पढ़ लीजिए, मैं युवकों को कहना चाहता हूँ, प्रत्येक वस्तु आपको एक बात स्पष्ट मिलेगी कि धार्मिक या को रचनात्मक दृष्टि से देखो, विरोध-विद्रोह, सामाजिक, राजनैतिक या आर्थिक, जिस किसी विध्वंस की दृष्टि त्यागो, जो परिस्थितियाँ हमारे क्षेत्र में जो क्रान्तियाँ हुई हैं, परिवर्तन हुए हैं, और ___ सामने हैं, जो व्यक्ति और जो साधन हमें उपलब्ध 5 नवनिर्माण कार्य हुए हैं, उनमें पचहत्तर प्रतिशत हैं, उनको कोसते रहने से या गालियाँ देते रहने से 10 युवाशक्ति का योगदान है। इसलिए युवाशक्ति कुछ नहीं होगा, बल्कि सोचना यह है कि उनका यानी क्रान्ति की जलती मशाल ! युवा शक्ति यानी उपयोग कसे, किस प्रकार से कितना किया जा नवसृजन का स्वर्णिम प्रभात ! सकता है ताकि इन्हीं साधनों से हम कुछ बन सकें, मान कुछ बना सकें। रचनात्मक दृष्टिकोण रखिए : राम ने जब लंका के विशाल साम्राज्य के साथ __ मैंने बताया कि यौवन सर्जन का काल है, यह युद्ध की दुन्दुभि बजाई तो क्या साधन थे उनके बसन्त का समय है, जिसमें जीवन के प्रत्येक पहलू पास ? कहाँ अपार शक्तिशाली राक्षस राज्य और पर उमंग और उल्लास महकता है, कुछ करने की कहाँ वानरवंशी राजाओं की छोटी-सी सेना। ललक उमंगती है इसलिए यौवन एक रचनात्मक सीमित साधन ! अथाह समुद्र को पार कर सेना ? काल है। आज के युवावर्ग में रचनात्मक दृष्टि का को उस पार पहुँचाना कितना असंभव जैसा कार्य । अभाव है। वे दूसरों की तो आलोचना तो करते हैं, था, किन्तु उन सीमित साधनों से छोटी-सी सेना मा नारेबाजी और शोर-शराबा करके विद्रोह का को भी राम ने इस प्रकार संगठित और उत्साहित विगुल भी बजा देते हैं। वे किसी भी निहित स्वार्थ किया जो रावण के अभेद्य दुर्ग से टक्कर ले सकी। वालों के इशारों पर अपनी शक्ति का दुरुपयोग राम ने अभावों की कमी पर ध्यान नहीं दिया, करने लग जाते हैं । आजकल के राजनीति छाप समुद्र पर पुल बनाने के लिए और कुछ साधन नहीं ) समाज नेता, युवाशक्ति को अलसे शियन कुत्ते की मिले तो पत्थरों का ही उपयोग कर अथाह समुद्र तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, जिन्हें किसी भी विरोधी की छाती पर सेना खड़ी कर दी। ३०२ चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ FOI Private & Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो इस प्रकार अल्प साधना नगण्य सहयोग की की दृष्टि से संसार का सर्वाधिक सम्पन्न और सब तर्फ नहीं देखकर जो उपलब्ध है उसे ही सकारात्मक ऋतुओं के अनुकूल वातावरण वाला महान देश रूप देना है, रचनात्मक दृष्टि से लेना है और छोटे भारत गरीब राष्ट्रों की गिनती में आता है। और छोटे तिनकों से हाथियों को बांध देना है। युवा छोटे-छोटे देशों से भी कर्ज लेकर अपने विकास हर वर्ग इस प्रकार जीवन में रचनात्मक दृष्टि से सोचने और निर्माण कार्य कर रहा है। भारत के हजारों, की आदत डालें। लाखों युवा वैज्ञानिक और लाखों कुशल डाक्टर शक्ति का उपयोग सर्जन में हो विदेशों में जाकर बस गये, अपनी मातृभूमि की । सेवा न करके, अन्य राष्ट्रों की सेवा में लगे हैं, का युवाशक्ति-एक ऊर्जा है, एक विद्य त है। इसका क्या कारण है ? मेरी समझ में सबसे मुख्य विद्य त का उपयोग संसार में निर्माण के लिए भी कारण है-युवाशक्ति में दिशाहीनता और निराशा होता है, और विध्वंस के लिए भी । अणु-शक्ति का छाई हुई है, कर्तव्य भावना का अभाव और देश व उपयोग यदि शान्तिपूर्ण निर्माण कार्यों के लिए मानवता के प्रति उदासीनता ही इस विनाश और होता है, तो संसार में खुशहाली छा जाती है और विपत्ति का कारण है। Neil यदि अणबम या अणयुद्ध में उसका उपयोग किया इसलिए आज यवाशक्ति को कर्तव्यबोध करना 419) 30 गया तो सर्वत्र विनाश और सर्वनाश की विभीषिका है। जीवन का उद्देश्य, लक्ष्य और दिशा स्पष्ट 5 छायेगी । यूवाशक्ति भी एक प्रकार की अणुशक्ति करती है। है, इस शक्ति को यदि समाज-सेवा, देश-निर्माण, राष्ट्रीय-विकास और मानवता के अभ्युत्थान के संस्कृत में एक सूक्ति हैकार्यों में लगा दिया जायेगा तो बहत ही चमत्कारी यौवनं धन-संपत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता। मा परिवर्तन आ जायेंगे । संसार की दरिद्रता, बेकारी, एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम् ? पीड़ाएँ, भय, युद्ध, आतंक आदि समाप्त होकर प्रेम, भाईचारा, खुशहाली, सुशिक्षा, आरोग्य, और सभी योवन, धन-सम्पत्ति, सत्ता, अधिकार और को विकास के समान अवसर मिल सकेंगे । आप अविवेक (विचारहीनता)- ये प्रत्येक ही एक-एक देख सकते हैं, जापान जैसा छोटा-सा राष्ट्र जो पर- दानव हैं, यदि ये चारों एक ही स्थान पर एकत्र हो माणु युद्ध की ज्वाला में बुरी तरह दग्ध हो चुका हो जायें, अर्थात् चारों मिल जाएँ, तो फिर क्या All था, हिरोशिमा और नागासाकी की परमाण विभी- अनर्थ होगा ? कैसा महाविनाश होगा ? कुछ नहीं म षिकाएँ उसकी समूची समृद्धि को मटियामेट कर कहा जा सकता। चुकी थीं, वही राष्ट्र पुनः जागा, एकताबद्ध हुआ, युवक, स्वयं एक शक्ति है, फिर वे संगठित हो युवाशक्ति संगठित हुई और राष्ट्रीय भावना के । . हो जायें, एकता के सूत्र में बंध जायें, अनुशासन में साथ नवनिर्माण में जुटी तो आज कुछ ही समय में संसार का महान धनाढ्य और सबसे ज्यादा प्रगति ___ चलने का संकल्प ले लें, विवेक और विचारशीलता ' से काम लें, तो वे संसार में ऐसा चमत्कारी परिशील राष्ट्र बन गया है। वर्तन कर सकते हैं कि नरक को स्वर्ग बनाकर दिखा कर्तव्य बोध कीजिए सकते हैं, जंगल में मंगल मना सकते हैं। इसलिए आज भारत की युवापीढ़ी बिखरी हुई है, दिशा- चाहिए, कुछ दिशाबोध, अनुशासन, चारित्रिक हीन है, और निर्माण के स्थान पर विध्वंस और नियम, अतः मैं इसी विषय पर युवकों को कुछ विघटन में लगी हुई है, इसलिए प्राकृतिक साधनों संकेत देना चाहता हूँ । | चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम ३०३ . 23 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Cation International or Private & Personal Use Only www.janversary.org Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 अनुशासन में रहना सीखो औद्योगिक क्षेत्र में, वह हर जगह अपना अलग ही स्थान बनायेगा, उसका व्यक्तित्व अलग चमकेगा, __ युवा वर्ग को आज सबसे पहली जरूरत है सबको प्रभावित भी करेगा; और सभी क्षेत्रों में अनुशासित रहने की, संगठित रहने की । छोटे-छोटे प्रगति, उन्नति एवं सफलता भी प्राप्त करेगा। स्वार्थों के कारण, प्रतिस्पर्धा के कारण, जहाँ युवक अप परस्पर टकराते हैं, एक-दूसरे की बुराई और एक- अनुशासन भी कई प्रकार के हैं सबसे पहला दूसरे को नीचा दिखाने का काम करते हैं, वहाँ और सबसे आवश्यक अनुशासन है- 'आत्मानुशासन।' कभी भी निर्माण नहीं हो सकता, नवसृजन नहीं जिसने अपने आप पर अनुशासन करना सीख लिया हो सकता। वह संसार में सब पर अनुशासन कर सकता है और . सब जगह सफल हो सकता है। ___अनुशासन, प्रगति का पहला पाठ है । जो स्वयं । अनुशासन में रहना जानता है, वह दूसरों को भी आत्मानुशासन का मतलब है-अपनी अनावअनुशासित रख सकता है । जहाँ सब मिलकर एक- श्यक इच्छाओं पर, आकांक्षाओं पर, गलत आदतों जुट होकर काम करते हैं, वहाँ प्रगति, समृद्धि और पर, और उन सब भावनाओं पर बुद्धि का नियन्त्रण सत्ता स्वयं उपस्थित होती है। तथागत बुद्ध ने कहा रखना, जिनसे व्यर्थ की चिंता, भाग-दौड़, परेशानी, था-'जब तक वैशाली गणराज्य के क्षत्रिय परस्पर हानि और बदनामी हो सकती है । मनुष्य जानता है । मिलकर विचार करेंगे, वद्धजनों का परामर्श मानेंगे, कि मेरी यह इच्छा कभी पूरी होने वाली नहीं, (६) एक-दूसरे का सन्मान करेंगे और संगठित-एकमत या मेरी इस आदत से मुझे बहुत नुकसान हो सकता होकर कोई कार्य करेंगे, तब तक कोई भी महा- है, बोलने की, खाने की, पीने की, रहन-सहन की, शक्ति इनका विनाश नहीं कर सकती। ऐसी अनेक बुरी आदतें होती हैं, जिनसे सभी तरह की हानि उठानी पड़ती है, आर्थिक भी, शारीरिक भारत जैसे महान राष्ट्र के लिए भी आज यही भी। कभी-कभी इच्छा व आदत पर नियन्त्रण न बात कही जा सकती है, यहाँ का युवावर्ग यदि अपने कर पाने से मनुष्य अच्छी नौकरी से हाथ धो बैठता वृद्धजनों का सन्मान करता रहेगा, उनके अनुभव से है, अपना स्वास्थ्य चौपट कर लेता है और धन लाभ लेता रहेगा, उनका आदर करेगा और स्वार्थ बर्बाद कर, दर-दर का भिखारी बन जाता है, अतः की भावना से दूर रहकर धर्म व राष्ट्रप्रेम की जीवन में सफल होने के लिए 'आत्मानुशासन' सबसे । भावना से संगठित रहेगा, एक-दूसरे को सन्मान महत्त्वपूर्ण गुर है । देगा तो वह निश्चित ही एक दिन संसार की महा आत्मानुशासन साध लेने पर, सामाजिक अनुशक्ति बन जाएगा । कोई भी राष्ट्र इसे पराजित तो शासन, नैतिक अनुशासन और भावनात्मक अनुशाक्या टेढ़ी आंख से भी देखने की हिम्मत नहीं करेगा सन, स्वतः सध जाते हैं, अतः युवा वर्ग को सर्वप्रथम अतः सर्वप्रथम युवावर्ग को 'अनुशासन' में रहने की भगवान् महावीर का संदेश पद-पद पर स्मरण आदत डालनी चाहिए। अनुशासित सिपाही की रखना चाहिए-'अप्पादन्तो सुही होई' अपने र भांति, संगठित फौज की भांति उसे अपनी जीवन आप पर संयम करने वाला सदा सुखी रहता है। शैली बनानी चाहिए। अपनी भावना पर, अपनी आदतों पर और अपनी ___ जो व्यक्ति अनुशासित जीवन जीना सीख लेता हर गतिविधि पर स्वयं का नियन्त्रण रखे । है, वह चाहे राजनैतिक क्षेत्र में रहे, धार्मिक क्षेत्र पाँच आवश्यक गुण में रहे, प्रशासनिक क्षेत्र में रहे, या व्यापारिक, यह माना कि 'युवा' आज संसार की महान चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम ३०४ Jain 659 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ । ZAGO)org www.jainema Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शक्ति है। 'युवावस्था' जीवन की सबसे महत्वपूर्ण फिर श्रद्धा का दीपक जलायें। श्रद्धाशीलता हो । घड़ी है, किन्तु इस शक्ति को, इस समय की सन्धि मनुष्य को कर्तव्य के प्रति उत्साहित करती है, को हम तभी उपयोगी बना सकते हैं, जब वह अपनी कर्तव्य से बाँध रखती है। श्रद्धा कर्ण का वह कवच सकारात्मक शक्तियों को जगायेगी। अपनी सकारा- है जिसे भेदने की शक्ति न अर्जुन के वाणों में थी त्मक शक्तियों को जगाने के लिए युवा वर्ग को इन और न ही भीम की गदा में। पाँच बातों पर ध्यान केन्द्रित करना है ___ श्रद्धा अज्ञानमूलक नहीं, ज्ञानमूलक होनी १. श्रद्धाशील बनें-आज का युवा मानस . चाहिए। इसलिए पहले पढ़िये, स्वाध्याय कीजिए, श्रद्धा, आस्था, विश्वास, फेथ (Faith) नाम से ज्ञान प्राप्त कीजिए। सत्य-असत्य की पहचान का थर्मामीटर अपने पास रखिए और फिर सत्य पर नफरत करता है, वह कहता है-श्रद्धा करना बूढ़ों का काम है, युवक की पहचान है-बात-बात में श्रद्धा कीजिए, लक्ष्य पर डट जाइए। यदि आपमें तर्क, अविश्वास और गहरी जाँच-पड़ताल । मैं श्रद्धा की दृढ़ता नहीं होगी तो आपका जीवन बिना समझता हूँ-युवा वर्ग में यही सबसे बड़ी भ्रान्ति नींव का महल होगा, आपकी योजनाएँ और कल्पया गलतफहमी हो रही है। श्रद्धा या विश्वास एक नाएँ, आपके सपने और भावनाएँ शून्य में तैरते ऐसा टॉनिक है, रसायन है जिसके बिना काम करने गुड़ - गुब्बारों के समान इधर-उधर भटकते रहेंगे । इस1 की शक्ति आ ही नहीं सकती। जब तक आप अपने लिए युवा वर्ग को मैं कहना चाहता है, सर्वप्रथम स्वयं के प्रति श्रद्धाशील नहीं होंगे, अपनी क्षमता पर श्रद्धा का कवच धारण करें। विश्वास करना सीखें हा भरोसा नहीं करेंगे, तव तक कुछ भी काम करने की तो सर्वत्र विश्वास प्राप्त होगा। अफवाहों में न हिम्मत नहीं होगी। श्रद्धाहीन के पाँव डगमगाते उड़ें, भ्रान्तियों के अंधड़ में न बहें, स्वयं में स्थिरता, रहत है, उसकी गति में पकड़ नहीं होती, स्थिरता हढ़ता और आधारशीलता लायें। नहीं होती और न ही प्रेरणा होती है। हम एक २. आत्मविश्वासी और निर्भय बनें-श्रद्धाशीलता व्यक्ति पर, एक नेता पर, एक धर्म सिद्धान्त पर, का ही एक दूसरा पक्ष है-आत्मविश्वास । एक नैतिक सद्गुण पर या भगवान नाम की किसी विश्वास' जीवन का आधार है। जीवन के हर क्षेत्र परम शक्ति पर जब तक भरोसा नहीं करेंगे, श्रद्धा में विश्वास से ही काम चलता है। सबसे पहली बात नहीं करेंगे तब तक न तो हमारे सामने बढने का हैं, दूसरों पर विश्वास करने से पहले, अपने आप कोई लक्ष्य होगा, न ही मन में बल होगा, उत्साह पर विश्वास करें। जो अपने पर विश्वास नहीं कर सकता, वह संसार में किसी पर भी विश्वास नहीं होगा और न ही समर्पण भावना होगी। प्रेम जैसे कर सकता। विश्वास करने की उसकी सभी बातें है। समर्पण चाहता है, राष्ट्र वैसे ही बलिदान चाहता है और भगवान् श्रद्धा चाहता है । नाम भिन्न-भिन्न झूठी हैं, क्योंकि आपके लिए सबसे जाना-पहचाना और सबसे नजदीक आप स्वयं हैं, इससे नजदीक का हैं, बात एक ही है, अन्तर् का विश्वास जागृत हो। मित्र और कौन है ? जब आप अपने सबसे अभिन्न जाये तो श्रद्धा भी जगेगी, समर्पण भावना भी बढ़ेगी। अंग आत्मा पर, अपनी शक्ति, अपनी बुद्धि और अपनी और बलिदान हो जाने की दृढ़ता भी आयेगी। कार्यक्षमता पर भी विश्वास नहीं कर सकेंगे तो . इसलिए मैं युवा वर्ग से कहना चाहता हूँ- दुनिया में किस पर विश्वास करेंगे ? माता, भाई, आप 'श्रद्धा' नाम से घबराइए नहीं । हाँ, श्रद्धा के पत्नी, पुत्र, मित्र ये सब दूर के एवं भिन्न रिश्ते हैं। है नाम पर अंधश्रद्धा के कुएं में न गिर पड़ें, आँख खुली आत्मा का रिश्ता अभिन्न है, अतः सबसे पहले में रखें, मन को जागृत रखें, बुद्धि को प्रकाशित, और अपनी आत्मा पर विश्वास करना चाहिए। ३०५ चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम ( 0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain ducation International Nr Private & Personal Use Only www.jainemorary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपकी आत्मा में अनेक शक्तियाँ हैं। धर्म- और दूसरे साथियों को भी उत्साहित करें, जीवन शास्त्र की भाषा में आत्मा अनन्तशक्तिसम्पन्न है। लक्ष्य को प्राप्य करें, मन की शक्तियों को केन्द्रित और आज के विज्ञान की भाषा में मानव शरीर, करें, आत्मा को बलवान बनायें--'नायमात्मा बलअसीम अगणित शक्तियों का पुंज है। कहते हैं, हीनेन लभ्यः' यह आत्मा या समझिए, संसार का एक पश्चिम के मानस शास्त्रियों ने प्रयोग करके बताया भौतिक व आध्यात्मिक वैभव बलहीन, दुर्बल TH है कि मनुष्य अपनी मस्तिष्क शक्तियों को केन्द्रित व्यक्तियों को प्राप्त नहीं हो सकता, 'वीरभोग्या ICT करके उनसे इतनी ऊर्जा पैदा कर देता है, कि एक वसुन्धरा'- यह रत्नगर्भा पृथ्वी वीरों के लिए ही लम्बी ट्रेन १०० किलोमीटर प्रति घण्टा की रफ्तार से चल जाती है। हजारों, लाखों टन वजन की ट्रेन आत्म-विश्वास जगाने के लिए किसी दवा या चलाना, क्रन उठाना, यह जब आपकी मस्तिष्कीय ___टॉनिक की जरूरत नहीं है, किन्तु आपको ध्यान, THERA ऊर्जा से सम्भव हो सकता है, तो कल्पना कीजिए, योग, जप. स्वाध्याय,जैसी विधियों का सहारा लेना आपकी मानसिक ऊर्जा में कितनी प्रचण्ड शक्ति पडेगा। ध्यान-योग-जप, यही आपका टॉनिक है, (पावर) होगी। यही वह पावर-हाउस है, जहाँ का कनेक्शन जुड़ते प्राचीन समय में मन को एकाग्र करके मन्त्र- ही शक्ति का अक्षय स्रोत उमड़ पड़ेगा। जाप करने से देवताओं का आकर्षण करने की घट अतः बन्धुओ ! जीवन में सफलता और महान । नाएँ होती थीं, क्या वे कल्पना मात्र हैं ? नहीं। आदर्शों के शिखर पर चढ़ने के लिए स्वयं को मानव, मन की प्रचण्ड शक्ति से करोड़ों मील दूर बैठे देवताओं का आसन हिला सकता है, तो क्या। __ अनुशासित कीजिए, आत्म-विश्वास जगाइये, अपने आस-पास के जगत् को, अपने सामने खड़े निर्भय बनिये और स्वयं के प्रति निष्ठावान ! रहिये........। व्यक्ति को प्रभावित नहीं कर सकता? इसमें किसी प्रकार के मैस्मेरिज्म या सम्मोहन की जरूरत नहीं ३. चरित्रबल बढ़ाइये-चरित्र मनुष्य की है, किन्तु सिर्फ मनःसंयम, एकाग्रता और दृढ इच्छा सबसे बड़ा सम्पत्ति है । एक अंग्रेजी लेखक ने कहा शक्ति की जरूरत है। ___ "धन गया तो कुछ भी नहीं गया, स्वास्थ्य ___आज के युवा वर्ग में देखा जाता है, प्रायः इच्छा शक्ति का अभाव है, न उसमें मानसिक संयम है, गया तो बहुत कुछ चला गया और चरित्र चला गया तो सब कुछ नष्ट हो गया।" चरित्र या न एकाग्रता और न इच्छा शक्ति और यही कारण मॉरल एक ही बात है, यही हमारी आध्यात्मिक है कि आज का यूवक दीन-हीन बनकर भटक रहा और नैतिक शक्ति है, मानसिक बल है, हमें किसो है । जीवन में निराशा और कुण्ठा का शिकार हो भी स्थिति में किसी के समक्ष बोलने, करने या डट रहा है। असफलता की चोट खाकर अनेक युवक जाने की शक्ति अपने चरित्रबल से मिलती है। आत्महत्या कर लेते हैं, तो अनेक यूवक असमय चरित्र या नैतिकता मनुष्य को कभी भी पराजित में ही बुड्ढे हो जाते हैं, या मौत के मुह में चले ___ नहीं होने देती, अपमानित नहीं होने देती । सच्चजाते हैं। रित्र व्यक्ति, अपनी नैतिकता का पालन करने ____ मैं अपने युवा बन्धुओं से कहना चाहता हूँ, वे वाला कभी भी किसी भी समय निर्भय रहता है जागे, उठे-उत्तिष्ठत ! जाग्रत ! प्राप्य वरान्, और वह हमेशा सीना तानकर खड़ा हो सकता निबोधत ! स्वयं उठे, अपनी शक्तियों को जगायें है। चरित्रवान् की नाक सदा ऊँचो रहती है। 62. चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Ludation International PFON Private & Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ युवा वर्ग को अपनी शक्तियों का उपयोग करने राष्ट्र का उत्थान करना है तो सबसे पहले स्वयं के hi के लिए यह जरूरी है कि वह सर्वप्रथम अपने चरित्र व नैतिक बल को सुदृढ़ व सुरक्षित रखना आचरण पर ध्यान देवें, चरित्रवान बनें । होगा। ____ आज की परिस्थितियों में चरित्रवान या सदा- ४. सहनशील बनिए-सहिष्णुता एक ऐसा गुण ! चारी बने रहना कुछ कठिन अवश्य है, परन्तु है जो मनुष्य को देवता बना देता है । कहावत हैअसम्भव नहीं है और महत्व तो उसी का है जो सौ-सौ टाँचे खाकर महादेव बने हैं । पत्थर, हथौड़ी कठिन काम भी कर सकता हो। और छैनी की मार खा-खाकर ही देवता की मूर्ति बनती है। मनुष्य भी जीवन में कष्ट सहकर सफल आज खान-पान में, व्यवहार में, लेन-देन में, , होता है। बिना आग में तपे सोना कुन्दन नहीं * मनुष्य की आदतें बिगड़ रही हैं । व्यसन एक फैशन बन गया है। बीड़ी-सिगरेट, शराब-जुआ-सिनेमा, होता, मिट्टी का घड़ा भी आग में पकने पर ही गन्दा खाना और फिजूलखर्ची-यह सब युवा उपयोगी होता है। उसी प्रकार मनुष्य भी विप त्तियों, असफलताओं और परिस्थितियों से संघर्ष शक्ति के वे घुन हैं जो उसे भीतर-भीतर खोखला __ करके, प्रतिकूलताओं से जूझकर, कष्टों को सहन कर रहे हैं। इन बुरी आदतों से शरीर शक्तियाँ करके अपने चरित्र को निखार सकता है। क्षीण होती जाती हैं, यौवन की चमक बुढ़ापे की 1 झुरियों में बदल जाती हैं, साथ ही मानसिक दृष्टि युवा वर्ग में आज सहनशीलता की बहत कमी से भी व्यक्ति अत्यन्त कमजोर, हीन और अबि है। सहनशीलता के जीवन में दो रूप हो सकते श्वासी बन जाता है । आज का युवा वर्ग इन बुरा- ह .. हैं-पहला कष्टों में धैर्य रखना, विपत्तियों में भी इयों से घिर रहा है और इसलिए वह निस्तेज और - स्वयं को सन्तुलित और स्थिर रखना तथा दूसरा निरुत्साह हो गया है । वह इधर-उधर भटक रहा रूप है-दूसरों के दुर्वचन सहन करना, किसी अनहै। परिवार वाले भी परेशान हैं, माता-पिता भी जाने या विरोधी ने किसी प्रकार का अपमान कर चिन्तित हैं और इन बुरी आदतों से ग्रस्त व्यक्ति दिया, तिरस्कार कर दिया तब भी अपना आपा न स्वयं को भी सुखी महसूस नहीं कर पाता है, किन्त खोना । स्वयं को सँभाले रखना और उसके अपवह बुरी आदतों से मजबूर है। स्वयं को इनके मान का उत्तर अपमान से नहीं, किन्तु कर्तव्यचंगुल से मुक्त कराने में असमर्थ पा रहा है। यह पालन से और सहिष्णुता से देवें । उसकी सबसे बड़ी चारित्रिक दुर्बलता है। युवक एक कर्मठ शक्ति का नाम है । जो काम पहले व्यक्ति बुराइयों को पकडता है फिर करता है उसे समाज में भला-बुरा भी सुनना पड़ता फिर बुराइयाँ उसे इस प्रकार जकड़ लेती हैं कि वह है। शारीरिक कष्ट भी सहने पड़ते हैं और लोगों आसानी से मुक्त नहीं हो पाता। वे बुराइयाँ, की आलोचना भी सुननी पड़ती हैं क्योंकि लोग मनुष्य के मानसिक बल को खत्म कर देती हैं। र आलोचना भी उसी की करते हैं जो कुछ करता नतिक भावनाओं को समाप्त कर डालती हैं और है। जो निठल्ला बैठा है कुछ करता ही नहीं शरीर शक्ति को भी क्षीण कर देती हैं इस प्रकार उसकी आलोचना भी क्या होगी, अतः कार्यकर्ताओं उसका नातक एवं शारीरिक पतन होता जाता है। को समाज में आलोचनाएँ भी होती हैं। युवक क्रान्ति की उद्घोषणा करता है, परियुवाशक्ति को शक्तिशाली बनना है और वर्तन का बिगुल बजाता है, समाज व राष्ट्र की अपने आत्मबल एवं चरित्रबल से समाज तथा जीर्ण-शीर्ण मान्यताओं को सुधारना, अन्धविश्वास ३०७ चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम 6068 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain education Internationat Yor Private & Personal Use Only www.janturorary.org Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की जगह स्वस्थ उपयोगी कार्यक्रम देना चाहता है बैठा है-'सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ते' सभी गुण, और समाज में जागृति लाना चाहता है, इन सुन्दर सभी सुख धन के अधीन हैं, इस धारणा के कारण स्वप्नों को पूरा करने के लिए उसे समाज के साथ मनुष्य धन के पीछे पागल है और धन के लिए चाहे संघर्ष भी करना पड़ता है, परन्तु ध्यान रहे, इस जैसा अन्याय, भ्रष्टाचार, अनीति, हिंसा, तोड़फोड़, संघर्ष में कटुता न आवे, व्यक्तिगत मान-अपमान हत्या, विश्वासघात कर सकता है । संसार में कोई की क्षुद्र भावनाएँ न जगें, किन्तु उदार व उदात्त पाप ऐसा नहीं जो धन का लोभी नहीं करता हो। दृष्टि रहे। आपका संघर्ष किसी व्यक्ति के साथ आज के जीवन में मनुष्य की आवश्यकताएँ, म नहीं, विचारों के साथ है । भाई-भाई, पति-पत्नी, , इच्छाएँ, अपेक्षायें इतनी ज्यादा बढ़ गई हैं कि पिता-पुत्र दिन में भले ही अलग-अलग विचारों के उनकी पति के लिए धन की जरूरत पड़ती है, इसखेमे में बैठे हों, किन्तु सायं जब घर पर मिलते हैं लिए मनुष्य धन के लोभ में सब कुछ करने को तो उनकी वैचारिक दूरियाँ बाहर रह जाती हैं तैयार हो जाता है। कुछ युवक ऐसे भी हैं, जिनमें स और घर पर उसी प्रेम, स्नेह और सौहार्द की गंगा एक तरफ धन की लालसा है, भौतिक सुख-सुवि- IST बहाते रहें-यह है वैचारिक उदारता और सहि- धाओं की इच्छा है तो दूसरी तरफ कुछ नीति, धर्मा। ष्णता । जनदर्शन यही सिखाता है कि मतभेद भले और ईश्वरीय विश्वास भी है। उनके मन में कभी-IVAL हो, मनभेद न हो। “मतभेद भले हो मन भर, कभी द्वन्द्व छिड़ जाता है, नीति-अनीति का, न्यायमनभेद नहीं हो कण भर ।" विचारों में भिन्नता अन्याय का, धर्म-अधर्म का प्रश्न उनके मन को मथताएर हो सकती है, किन्तु मनों में विषमता न आने दो। है, किन्तु आखिर में नीतिनिष्ठा, धर्मभावना दुर्बल विचारभेद को विचार सामंजस्य से सुलझाओ, , हो जाती है । लालसायें जीत जाती हैं । वे अनीति || और वैचारिक समन्वय करना सीखो। व भ्रष्टाचार के शिकार होकर अपने आप से विद्रोह का युवा पीढ़ी में आज वैचारिक सहिष्णुता की कर बैठते हैं। अधिक कमी है और इसी कारण संघर्ष, विवाद एवं यवावर्ग आज इन दोनों प्रकार की मनःस्थिति विग्रह की चिनगारियाँ उछल रही हैं, और युवा- में है। पहला-जिसे धर्म व नीति का कोई विचार शक्ति निर्माण की जगह विध्वंस के रास्ते पर जा ही नहीं है वह उद्दाम लालसाओं के वश हुआ बड़े ||.५ रही है। से बड़ा पाप करके भी अपने पाप पर पछताता नहीं। मैं युवकों से आग्रह करता हूँ कि वे स्वयं के दूसरा वर्ग-पाग करते समय संकोच करता व्यक्तित्व को गम्भीर बनायें, क्षुद्र विचार है कुछ सोचता भी है, किन्तु परिस्थितियों की मज-Kal व छिछली प्रवृत्तियों से ऊपर उठकर यौवन को बूरी कहें या उसकी मानसिक कमजोरी कहें-वह समाज व राष्ट्र का शृंगार बनायें। अनीति का शिकार हो जाता है । धन को नहीं, त्याग को महत्व दो एक तीसरा वर्ग ऐसा भी है-जिसे हम आटे ____ आज का युवा वर्ग लालसा और आकांक्षाओं में नमक के बराबर भी मान सकते हैं जो हर कीमत से बुरी तरह ग्रस्त हो रहा है। मैं मानता हूँ भौतिक पर अपनी राष्ट्रभक्ति, देशप्रेम, धर्म एवं नैतिकता की सुखों का आकर्षण ऐसा ही विचित्र है, इस आकर्षण रक्षा करना चाहता है और उसके लिए बड़ी से बड़ी की डोर से बंधा मनुष्य कठपुतली की तरह नाचता कुर्बानी भी करने को तैयार रहता है। ऐसे युवक रहता है। आज का मानव धन को ही ईश्वर मान बहुत ही कम मिलते हैं। परन्तु अभाव नहीं है। ३०८ __चतुथं खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम - साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ (965 Jain Elmon International Srovate & Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AS ___ मैं आप युवा वर्ग से कहना चाहता हूँ शायद मनुष्य मनुष्य का शत्र बन जाता है । मित्रता, प्रेम, HD आप पहली या तीसरी कोटि में नहीं है। आप में त्याग और सेवा से ही मिलती है, प्रशंसा और कीर्ति । से अधिकांश दूसरी स्थिति में हैं, जिनके मन में धर्म धन से नहीं, कर्तव्य-पालन से मिल और नीति के प्रति एक निष्ठा है, एक सद्भावना प्रसन्नता और आत्म-सन्तोष धन से कभी किसी को है, किन्तु भौतिक प्रलोभनों का धक्का उस निष्ठा मिला है ? नहीं ! इसलिए युवा वर्ग को अपना की कमजोर दीवार को गिरा सकता है अतः आपसे दृष्टिकोण बदलना होगा। इन आंखों में लक्ष्मी के | ही मेरा संदेश है कि आप स्वयं को समझें, अपने सपने नहीं किन्तु कर्तव्य-पालन और सेवा एवं सह-IN महान लक्ष्य को सामने रखें । महान लक्ष्य के लिए योग के संकल्प सँजोओ! स्वयं बलिदान करने वाला मरकर भी अमर रहता अधिकार बनाम कर्तव्य . एक उर्दू शायर ने कहा है आज चारों तर्फ अधिकारों की लड़ाई चल रही 10) जी उठा मरने से, जिसकी खुदा पर थी नजर, है। परिवार में पुत्र कहता है-मेरा यह अधिकार |IKES जिसने दुनियां ही को पाया, था वह सब खोके मरा! हा __ है, पुत्री कहती है- मेरा यह अधिकार है। पत्नी माता-पिता, सभी अपने-अपने अधिकार की लड़ाई 3 में कर्तव्य एवं प्रेम का खून बहा रहे हैं । इसी प्रकार जो जीना हो तो पहले जिन्दगी का मुद्दआ समझे समाज में वर्ग संघर्ष बढ़ रहा है। नौकर अपने एक खुदा तोफीक दे तो आदमी खुद को खुदा समझे! अधिकार की माँग करता है, तो मालिक अपने अधिकार की माँग करता है। अधिकार की भावना धन, सुख-सुविधायें, ऊंचा पद, ऐशो-आराम यह मनुष्य जीवन का लक्ष्य नहीं है, ये तो एकमात्र जीने ने ही वर्ग संघर्ष को जन्म दिया है, परिवारों को के साधन हैं । साधन को साध्य समझ लेना भूल है। तोड़ा है, घर को उजाड़ा है, और समाज-संस्था संसार में लाखों, करोड़ों लोगों को अपार सम्पत्ति को भिन्न-भिन्न कर दिया है। अधिकार की और सुख साधन प्राप्त हैं, फिर भी वे बेचैन हैं और लड़ाई में आज कर्तव्य-पालन कोई नहीं पूछता । लूखी-सूखी खाकर भी मस्ती मारने वाले लोग पुत्र का अधिकार है, पिता की सम्पत्ति में, परन्तु कोई उससे पूछे, उसका कर्तव्य क्या है ? माता- 15 दुनिया में बहुत हैं। पिता की सेवा करना, उनका दुःख-दर्द बांटना, युवकों का दृष्टिकोण-आज धनपरक हो रहा क्या पुत्र का अधिकार नहीं है । अधिकार की माँग || है या सुखवादी होता जा रहा है। धन को ही करने वाला अपने कर्तव्य को क्यों नहीं समझता ? सब कुछ मान बैठे हैं । उन्हें धन की जगह त्याग यदि युवक, अपने कर्तव्य को समझ ले, तो अधिऔर सेवा की भावना जगानी होगी । संसार धन से कारों का संघर्ष खत्म हो जायेगा, स्वयं ही उसे नहीं, त्याग से चलता है, प्रेम से चलता है। एक अधिकार प्राप्त हो जायेंगे। माता पुत्र का पालन-पोषण किसी धन या उपकार एक सूक्ति है-'भाग की चिन्ता मत करो, की भावना से नहीं करती, वह तो प्रेम और स्नेह के कारण ही करती है। क्या कोई नर्स जिसको भाग्य पर भरोसा रखो । भगवान् सब कुछ देगा।' आप चाहें सौ रुपया रोज देकर रखें, माँ जैसी सेवा मुझे एक कहानी याद आती है-एक बड़े परिचर्या कर सकती है ? धन कभी भी मनुष्य को, धनाढ्य व्यक्ति ने एक नौकर रखा, उसको कहा मनुष्य का मित्र नहीं बनने देता । धन के कारण तो गया, तुम्हें यह सब काम करने पड़ेंगे, जो हम ३०६ चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ www.jaineliorary.org Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना चाहते हैं / नौकर ने कहा- मुझे आप लिस्ट बना- शिखर पर पहुँचे हैं, उनमें कर्तव्य-पालन की भावना कर दे दीजिए, जो-जो काम करना है, वह पूरी अवश्य रही है / युवक जीवन में इन मुख्य गुणों के 12 वफादारी से करूगा / उस व्यक्ति ने एक लम्बी साथ-साथ कुछ ऐसे गुण भी आवश्यक हैं, जिन्हें / लिस्ट (सूची) टाइप करवाकर सर्वेन्ट को दे दी। हम जीवन-महल की नींव कह सकते हैं, या जीवन सुबह से शाम तक, यह तुम्हारी ड्यूटी है। उसने पुस्तक की भूमिका कहा जा सकता है। वे सुनने 110) देखा-सुबह, सबसे पहले बॉस टहलने के लिए में बहुत ही सामान्य गुण हैं, किन्तु आचरण में 'मोरनिंग-बाक' के लिए जाते हैं, तब उनके साथ- असामान्य लाभ देते हैं। सच्चाई, ईमानदारी, साथ जाना है। सदाचार, विनम्रता और सदा प्रसन्नमुखता-ये __एक दिन मालिक नहर के किनारे-किनारे . गुण ऐसे साधारण लगते हैं, जैसे जीने के लिए पानी या हवा बहुत साधारण तत्व प्रतीत होते हैं, टहल रहा था, टहलते हुए उसका एक पाँव फिसल किन्तु जैसे पानी व पवन के बिना जीवन संभव गया और छपाक से नहर में डुबकियाँ लगाने लगा, नहीं है, उसी प्रकार इन गुणों के बिना जीवन में | चिल्लाया-'बचाओ' ! 'निकालो' ! पीछे-पीछे आता नौकर रुका, बोला, ठहरो-अभी देखता हूँ, सफलता और सुख कभी संभव नहीं है। ___आज का युवा वर्ग अपने आप को पहचाने, अपनी ड्यूटी की लिस्ट में मालिक के नहर में अपनी शक्तियों को पहचाने. और उन शक्तियों को गिरने पर, निकालने की ड्यूटी लिखी है, जगाने के लिए प्रयत्नशील बने,जीवन को सुसंस्काO नहीं ? रित करने के लिए दृढ-संकल्प ले, तो कोई तो इस प्रकार की भावना, मालिक और नहीं कि युवा शक्ति का यह उद्घोष-इस C नौकर के बीच हो, परिवार और समाज में हो, धरती पे लायेंगे स्वर्ग उतार के सफल नहीं हो। तो वहां कौन, किसका सुख-दुःख बांटेगा? कोई अवश्य सफल हो सकता है / आज के युग में शिक्षा किसी के काम नहीं आयेगा ? अतः आवश्यक है, प्रसार काफी हुआ है, मगर संस्कार-प्रसार नहीं हो / आप जीवन में कर्तव्य पालन की भावना जगाएँ। पाया है, अतः जरूरत है, युवा शक्ति को संस्कारित एक अधिकार के लिए कुत्तों की तरह छीना-झपटी न संगठित और अनुशासित होने की।"...""जीवन करें / संसार में जितने भी व्यक्ति सफलता के निर्माण करके राष्ट्र-निर्माण में जुटने की 0 5 (शेष पृष्ठ 268 का) प्रत्येक आत्मा जिनागम में प्रतिपादित, मुक्तिमार्ग का जयजगत्' लिखकर विश्व को अपना आशीर्वाद का पालनकर ईश्वरत्व प्राप्त कर सकता है / सहि- प्रदान किया है / भूदान-पद के सम्बन्ध में अपनी ष्णुता, समानता, सर्वजीवसमभावादि की नींव पर देश-व्यापी यात्राओं में सन्त विनोबा दिलों को ही तो टिका है 'सर्वोदय' का दीप-स्तम्भ, जो आज जोड़ने का स्तुत्य प्रयास करते रहे। उनका 'जयकी भटकी मानवता का मार्ग आलोकित कर सकता जगत्' का उद्घोष अहिंसा, अनेकान्तादि समन्वय वादी सिद्धान्तों को व्यवहार में लाने से ही 'सर्वोआचार्य विनोबा भावे की प्रेरणा से 'जैनधर्म- दय' को अर्थवत्ता प्रदान कर सकता है। सबकी सार' नामक उपयोगी पुस्तक श्री जिनेन्द्रवर्णीजी ने उन्नति से विश्वबन्धुत्व और विश्व-नागरिकता को तैयार की। उसके 'निवेदन' के अन्त में 'विनोबा सही दिशा मिल सकती है। MONOMON - 1 जैनधर्मसार, श्लोक 3-4 310 चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम 83-60 साध्वीरत्न कुसमवती अभिनन्दन ग्रन्थ ON Jain E rion International Bor Sivale & Personal Use Only