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की जगह स्वस्थ उपयोगी कार्यक्रम देना चाहता है बैठा है-'सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ते' सभी गुण, और समाज में जागृति लाना चाहता है, इन सुन्दर सभी सुख धन के अधीन हैं, इस धारणा के कारण स्वप्नों को पूरा करने के लिए उसे समाज के साथ मनुष्य धन के पीछे पागल है और धन के लिए चाहे संघर्ष भी करना पड़ता है, परन्तु ध्यान रहे, इस जैसा अन्याय, भ्रष्टाचार, अनीति, हिंसा, तोड़फोड़, संघर्ष में कटुता न आवे, व्यक्तिगत मान-अपमान हत्या, विश्वासघात कर सकता है । संसार में कोई की क्षुद्र भावनाएँ न जगें, किन्तु उदार व उदात्त पाप ऐसा नहीं जो धन का लोभी नहीं करता हो। दृष्टि रहे। आपका संघर्ष किसी व्यक्ति के साथ
आज के जीवन में मनुष्य की आवश्यकताएँ, म नहीं, विचारों के साथ है । भाई-भाई, पति-पत्नी, ,
इच्छाएँ, अपेक्षायें इतनी ज्यादा बढ़ गई हैं कि पिता-पुत्र दिन में भले ही अलग-अलग विचारों के उनकी पति के लिए धन की जरूरत पड़ती है, इसखेमे में बैठे हों, किन्तु सायं जब घर पर मिलते हैं लिए मनुष्य धन के लोभ में सब कुछ करने को तो उनकी वैचारिक दूरियाँ बाहर रह जाती हैं तैयार हो जाता है। कुछ युवक ऐसे भी हैं, जिनमें स और घर पर उसी प्रेम, स्नेह और सौहार्द की गंगा
एक तरफ धन की लालसा है, भौतिक सुख-सुवि- IST बहाते रहें-यह है वैचारिक उदारता और सहि- धाओं की इच्छा है तो दूसरी तरफ कुछ नीति, धर्मा। ष्णता । जनदर्शन यही सिखाता है कि मतभेद भले और ईश्वरीय विश्वास भी है। उनके मन में कभी-IVAL हो, मनभेद न हो। “मतभेद भले हो मन भर, कभी द्वन्द्व छिड़ जाता है, नीति-अनीति का, न्यायमनभेद नहीं हो कण भर ।" विचारों में भिन्नता अन्याय का, धर्म-अधर्म का प्रश्न उनके मन को मथताएर हो सकती है, किन्तु मनों में विषमता न आने दो। है, किन्तु आखिर में नीतिनिष्ठा, धर्मभावना दुर्बल विचारभेद को विचार सामंजस्य से सुलझाओ,
, हो जाती है । लालसायें जीत जाती हैं । वे अनीति || और वैचारिक समन्वय करना सीखो।
व भ्रष्टाचार के शिकार होकर अपने आप से विद्रोह का युवा पीढ़ी में आज वैचारिक सहिष्णुता की कर बैठते हैं। अधिक कमी है और इसी कारण संघर्ष, विवाद एवं यवावर्ग आज इन दोनों प्रकार की मनःस्थिति विग्रह की चिनगारियाँ उछल रही हैं, और युवा- में है। पहला-जिसे धर्म व नीति का कोई विचार शक्ति निर्माण की जगह विध्वंस के रास्ते पर जा ही नहीं है वह उद्दाम लालसाओं के वश हुआ बड़े ||.५ रही है।
से बड़ा पाप करके भी अपने पाप पर पछताता नहीं। मैं युवकों से आग्रह करता हूँ कि वे स्वयं के
दूसरा वर्ग-पाग करते समय संकोच करता व्यक्तित्व को गम्भीर बनायें, क्षुद्र विचार
है कुछ सोचता भी है, किन्तु परिस्थितियों की मज-Kal व छिछली प्रवृत्तियों से ऊपर उठकर यौवन को
बूरी कहें या उसकी मानसिक कमजोरी कहें-वह समाज व राष्ट्र का शृंगार बनायें।
अनीति का शिकार हो जाता है । धन को नहीं, त्याग को महत्व दो
एक तीसरा वर्ग ऐसा भी है-जिसे हम आटे ____ आज का युवा वर्ग लालसा और आकांक्षाओं में नमक के बराबर भी मान सकते हैं जो हर कीमत से बुरी तरह ग्रस्त हो रहा है। मैं मानता हूँ भौतिक पर अपनी राष्ट्रभक्ति, देशप्रेम, धर्म एवं नैतिकता की सुखों का आकर्षण ऐसा ही विचित्र है, इस आकर्षण रक्षा करना चाहता है और उसके लिए बड़ी से बड़ी की डोर से बंधा मनुष्य कठपुतली की तरह नाचता कुर्बानी भी करने को तैयार रहता है। ऐसे युवक रहता है। आज का मानव धन को ही ईश्वर मान बहुत ही कम मिलते हैं। परन्तु अभाव नहीं है।
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__चतुथं खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम - साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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