Book Title: Dhumavali Prakaran Author(s): Suryodaysuri Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229282/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरिपुरन्दर श्री हरिभद्रसूरि - विरचित धूमावली" - प्रकरण ---सं. आ. विजयसूर्योदयसूरि आचार्य श्री हरिभद्रसूरि महाराजनी अनेक रचनाओ प्रसिद्ध अने प्रतिष्ठित छे. तेमनी रचेली कृतिओनी नोंध 'गणधरसार्धशतकवृत्ति (सुमतिगणि, सं. १२९५ ) मां तथा 'चतुर्विंशतिप्रबन्ध' (राजशेखरीय) मां मळे छे. ('हरिभद्रसूरिः जीवन अने कवन', ही. र. कापडिया, वडोदरा, पृ. ४८). पण ते सूचिओमां 'धूमावली' नामनी रचनानी कोई नोंध नथी. 'धूमावली 'नी प्राप्ति फुटकर - पत्रोमाथी आनायासे थई छे. एक ज पत्र, ते पण छेडेथी फाटेलुं, जूनां पत्रो फेंदता फेंदता मळी आव्युं, अने ते जोतां १४मी गाथामां स्थित 'भवविरह' पदे ध्यान आकर्म्यु. आ पद तो हरिभद्रसूरिजीनी पाकी ओळखनुं पद गणाय. एटले आनी प्रतिलीपि अत्रे प्रस्तुत करो छे. आना विशे क्यांक उल्लेख मळे के आनी बीजी नकलो मळी आवे, तो आ कृति अने तेना कर्ता त्रिशे वधु चोकसाई करी शकाय अत्यारे तो 'भवविरह' पदने ज प्रमाणभूत गणी ते हरिभद्रसूरिकृत समजी अहीं प्रसिद्ध करवामां आवे छे. 'जिनरत्नकोश' (वेलणकर, ई. १९४४, पृ. १९८) तपासतां तेमां जयभूषणकृत 'धूमावलिका' नामक कृतिनो तथा 'धूमावल्यादिवृत्ति' नामे शीलाचार्यनी रचनानो उल्लेख छे. वादिवेताल शान्तिसूरिकृत पर्वपंचाशिका' पर शीलाचार्यकृत वृत्ति ते ज 'धूमावल्यादिवृत्ति' होवानुं प्रा. वेलणकर निर्देशे छे. 'पर्वपंचाशिका' जो के जिनेश्वरनी स्नानादिपूजाना विषयनी ज रचना छे, अने प्रस्तुत कृति पण धूपपूजाना विषयनी ज छे, छतां आ 'धूमावली' स्वतंत्र अथवा जुदी ज कृति छे, तेम कल्पना थाय छे. कृतिमां तूटतो अंश अटकलथी [ ] मां उमेर्यो छे. देखीता लेखनदोष सुधारी लीधा छे. लखावट जोतां प्रति (पानुं) संभवत: १७ मासैकानुं जणाय छे. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "धूमावली"- प्रकरणम् ॥ असुरिंदसुरिंदाणं किनरगंधव्वचंदसूराणं । विजाहरियसुराणं सजोगसिद्धाण सिद्धाणं॥१॥ मुणियपरमत्थवित्थर-विगिट्ठविविहतवसोसियंगाणं। सिद्धिवहुनिब्भरक्कंठियाण जोगीसराणं च॥२॥ जे पुज्जा भगवंतो तित्थयरा रागदोसतमरहिया। विणयपणएण तेसिं समुद्भुओ मे इमो धूओ॥३॥ तित्थंकरपडिमाणं कंचणमणिरयणविद्दुममयाणं । तिहुअणविभूसगाणं सासय-सुरवरकयाणं च॥४|| चमरबलिप्पमुहाणं भवणवईणं विचित्तभवणेसु। जाओ य अहोलोए जिणिदचंदाण पडिमाओ॥५॥ जाओ य तिरियलोए किनरकिंपुरिसभूमिनयरेसु। गंधव्वमहोरगजक्खभूय तह(य)रक्खसाणं च॥६॥ जाओ य दीवपव्वय-विज्जाहरपवरसिद्धभवणेसु। तह चंदसूरगहरिक्ख-तारगाणं विमाणेसु॥ ७॥ जाओ य उड्डलोए सोहम्मीसाणवरविमाणेसु। जाओ मणोहरसणंकुमारमाहिंदकप्पेसु॥ ८॥ जाओ य बंभलोए-लंतयसुक्के तहा सहस्सारे। आणयपाणयआरण-अच्चुयकप्पेसु जाओ य॥ ९॥ जाओ गेविज्जेसुं जाओ वरविजयवेजयंतेसु। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3) तह य जयंतपराजि[ यविमा]णसव्वट्ठसिद्धेसु॥ 10 // सिद्धाण य सियधणकम्म-बंधमुक्ाण परमनाणीणं। आयरिया [ण तहेव य पं] चविहायारनिरयाणं // 11 // तह य उवज्झायाणं साहूणं झाणजोगनिरयाणं। तवसो(सु)सियसरीराणं सिद्धिवहूसंगमपराणं॥ 12 // सुयदेवया वि पंकय-पुत्थ[य]मणिरयणभूसियकराए। वेयावच्चगराण य समुद्भुओ मे इमो धूओ॥ 13 // एवं अभित्थुया मो (मे) भावसुगंधेण परमधूवेण। तित्थयरसिद्धपमुहा सव्वे वि कुणन्तु भवविरहं।। 14 / /