Book Title: Dharmsuri Barmasa
Author(s): Ramnik Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्ञातकर्तृक प्राचीन गुर्जर काव्य धर्मसूरि-बारमासा संपा. रमणीक शाह वारमासा काव्यप्रकार प्राचीन गूजराती, राजस्थानी, हिंदी, बंगाळी आटि साहित्यमां शताब्दीओथी प्रचलित छे. प्राचीन गूजरातीमा तो ईस्वीसननी छेक बारमी - तेरमी शताब्दीथी बारमासा-काव्यो मळे हे. उपलब्ध बारमासा-काव्योमानां मोटा भागनां जैन कविओए रचेला छे. बारमासा मळे शृंगारपरक काव्य छे; परंतु जैन कविओए शृंगारनिरूपक बारमासा काव्यप्रकारनो वैराग्यबोधक रचनाओमा विनियोग को छे. जैनसाहित्यमा आवा शंगार अने वैराग्य बन्नेने साथे वणी शकाय तेवो विषय धरावतां बे प्रचलित कथानको छे – नेमिनाथ अने राजीमतीनो विवाह-प्रसंग तथा स्थूलभद अने रूपकोशानो प्रणयप्रसंग. अने मोटा भागना जैन बारमासा-काव्यो आ विषयने लईने ज रचायां छे. परंत आ उपरांत केटलांक वारमासा-काव्यो गरुनी स्ततिरूपे पण रचायेला मळे छे. आवं एक विशिष्ट अने प्राचीन बारमासा-काव्य धर्मसूरि-बारहनावउं (धर्मसूरि-बारमासा) नामे, पाटणना हस्तप्रत भंडारनी एक ताडपत्रीय हस्तप्रतमाथी मळी आव्यं छे. अहीं ते प्रथम वार प्रकाशित थाय छे. पाटणना संघभंडार नामे ओळखाता हस्तप्रतसंग्रहनी आशरे तेरमा के चौदमा शतकनी ताडपत्रीय प्रत नं. ५६ मां संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदिनी नानी मोटी २८ गद्य-पद्य कृतिओ संग्रहाई छ. तेमा क्रमांक २०वाळी प्रस्तुत कृति पत्र २१६थी २२१ पर लखायेली छे. सूचिपत्रमा तन नाम धर्मसूरि-स्तति आपेल छे. आ कृतिनी फोटोस्टेट नकल ला.द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावादमा छे. तेना आधारे आ संपादन करवामां आव्यं छे. प्रस्तुत काव्यना नायक आचार्य धर्मसूरि के धर्मघोषसूरि जैन परंपरामा प्रसिद्ध छे. राजगच्छना आ. शीलभद्रसूरिना तेओ पट्टधर शिष्य हता अने तेमनो समय ईस्वीसननी बारमी शताब्दीनो, लगभग ई.स. ११०० - ११७५ना अरसानो छे. १. जुओ डॉ. हरिवल्लभ भायाणीनो प्रस्तावना, प्राचीन-मध्यकालीन बारमासा संग्रह भा-१, संपा. डॉ. शीवलाल जेसलपरा, अमदावाद, १९७४. २. पत्तनस्थ प्राच्य जैन भाण्डागारीय ग्रन्थसूची, भा. १. संपा. ची. डा. दलाल, वडोदरा, १९३७, पृ. ३७०. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्कालीन राजस्थान तेम ज माळवाना राजेन्द्रो तेमने मान आपता. शाकंभरीना अजयराज, अर्णोराज तथा विग्रहराज चोथाने तेमणे प्रतिबोध्या हता तेवं तेमना शिष्य-प्रशिष्यनी कृतिओमां नोधायेल छ. अर्णोराजनी सभामा दिगंबर वादि गणचंद्रने तेमणे हराव्यो हतो तेवो उल्लेख तेमां मळे छे. तेमणे सर्वे वादिओने हराव्या हता तेवो संप्रति संपादित काव्यनी १७ मी कडोमां सामान्य निर्देश छे. तेमना नामथी पछीथी धर्मघोष गच्छ नामे स्वतंत्र गच्छ शरू थयो हतो, धर्मघोषसूरिनी स्मृति प्रखर हती अने पोणा प्रहरमां ( छ घडीमा) तेओ ५०० गाथा कंठस्थ करी शकता तेवी किंवदंती ते समये प्रचलित हती. प्रस्तुत काव्यमां कडी ९ मा आ वातनो उल्लेख मळे छे. आवा प्रतिभाशाळी काव्यनायकने काव्यमा भावपूर्वक अंजलि आपवामा आवी छे. ___धर्मघोषसूरिना मुख्य शिष्योमा एक यशोभदसरि हता, जेमणे गद्यगोदावरी ग्रंथनी रचना करेली. प्रस्तुत काव्यमांना जससूरि ते आ ज आचार्य जणाय छे. आ यशोभदसूरिना शिष्य आ. रविप्रभसूरिए धर्मघोषसूरिनी स्तुतिरूपे लखेल एक लघुकाव्य उपरोक्त ताडपत्रीय प्रतमा 'धर्मसूरि-बारमासानी पूर्वे ज लखायेल मळे छे. आ हकीकत परथी तथा काव्यमांना वर्णन वगेरे परथी कल्पी शकाय छे के प्रस्तत बारमासा काव्य पण आ. धर्मधोषसूरिना बृहद शिष्य- प्रशिष्य परिवारमांना ज कोई मुनिए रच्यु हशे. साराये काव्यनो ध्वनि एवो छे के ते समये यशोभदसूरि विद्यमान छे अने कदाच धर्मसूरि पण. ___काव्यनी भाषा गुजराती - राजस्थानी जदी पडया पूर्वेनी उत्तरकालीन अपभ्रंश, जेने विद्वानोए प्राचीन गूर्जर भाषा नाम आप्यु छे, ते छे. विविध मात्रामेळ छंदोना यथायोग्य उपयोगथी आणेली गेयता, सकोमळ मधर पदावली, चित्रात्मक वर्णनो अने भावाभिव्यक्तिनी कशळताने कारणे गुरुस्तुति रूपे रचायेल होवा छतां आ बारमासा काव्य प्राचीन गूर्जर काव्योमा अनोखी भात पाडतुं काव्य छे. * काव्यनी फोटोस्टेट नकलनो उपयोग करवा देवा माटे तथा प्रकाशन करवानी संमति माटे १ ला.द, भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरनो आभारी छं. * एक ज हस्तप्रत परथी आ काव्यनं संशोधन कर्य छे. मूळनी अशुद्धिओ पादटीपमा नोंधी छे. पाठशुध्धि माटे प्रा. हरिवल्लभ भायाणी साहेबनी सहाय माटे तेओश्रीनो अत्रे आभार मान छु. [७०] Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धमसूरि - बारहनावउं (१) तिहुयण मणिचूडामणिहि, बारहनावउँ धमसुरि-नाहह । निसुणहु सुयणहु नाण-सह, पहिलउँ सावण - सिरि फुरिय || १ कुवलय-दल- सामल धणु गज्जइ, नं मद्दल-मंडल - झुणि छज्जइ । विज्जुलडी झवकिहिं लवइ || २ + मणहरु वित्थारेवि कलावु' अन्नु करेविणु कलि- केकारवु । फिरि फिरि नाचहिं मोरला || ३ मेइणि हार हरिय छवि णवर त्री-जण भय उडिढय' नीलंबर | वियसिय ६ नव मालइ - कलिय ॥ ४ हलि ! तुह कहियाँ गुणहँ निहाणु, धमसुरि अनु जससूरि समाणु । न अस्थि को वि जमि ॥ ४ अन्नु 6. इहु प्रिय ! वरिसंत न गणिज्जउ, ' जायवि धमसुरि-गुरु वंदिज्जउ । किज्जउ माणुस - जम्मु सफलु 11 ६ (२) भाद्रव - मासु वं दंतह धमसूरि-गुरु', मयगलि जिम्व गुलुगुलुवि घणि, जलु किउ ११ उहु सहि ! वियसिउ केउडउ, सेरउ जस सुरि-नयण पराभविउ, नं सेवइ २ पहूतु " महिहि प्रभूतु ॥ 1 विहिउ लोउ । पउणि पहरि जिण पंच सय, पढिविणु तसु धमसुरि-गुरु-तणिय वड, हुयउ न होसइ कोउ " ॥ ९ ७ धवल - विलासु । वणवासु 11 ८ मूल पाठ : १. धमुसुरि २. सामण ३. कलासु ४. छमि पू. उड्डिय ६ वियलिय ७. अनु ८. गणिज्जइ ९. गुरू १०, पहूत्तु ११. तुह १२. पढिविणि १३. कोइ [ ७१] Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुज्जरि वोलइ चालु प्रिय, मज्झ देसण सुणहु सुहावणिय, वंदे विणु (३) महियलि विमलउ सयलु जलु, वय पहुतउ धमसूरि फेरउँ चित्तु जिम्ब, वय निम्मलु ठिउ चंदिणडउं करि चंगु चंदा चंदा चंदडा, वय' ' मंडि-न महि तुहुँ हंसडा, वय" भमरुला कमलिहि रंगु ॥ १२ - मणोरह पूरि । ससूरि ॥ १० साव जससुरि धवलह पम्हलहँ, वय कुवलय-दल- सरलाहँ । सलोणह तुम्ह तणहँ, वय बलि- किज्जउँ नयणाहँ ॥ १३ वलि वलि निम्मल रलिय - स्व, वय माणिकथारी" रति । प्रिय पाणि-न सांढडिय, वय वंदहु धमसुरि भत्ति ॥ १४ (४) आसोय - मासु । आगासु ॥ ११ कातियडउ रलियावणउ, मासु पहुतउ लोए 1 पिल्लि न रहू प्रिया ! देखिवउ, गुरु धमसुरिं" [.......]॥ १५ हेलि ! ए गुरु धमसूरि C [.. .] [.. ' पाकउ कलम कियार कणु, उहु सूयडउ चुणेइ ॥ १६ पिल्लिन रहु .... खिल्लि खाउलु रासडउ ", नाचिवि डोल्लिवि बाह | वादिय सवि हाराविया, धमसुरि विद्धिय राह ↓↓ १७ पिल्लि - न ....... दीहर - सिंह दीवालियहिं दीवडुला पजलंति F जससुरि-केरा विमल गुण, तिहुयणु धवलु करति ॥ १८ पिल्लि - न १४. वय चडावय चंदिण० १५. भमरुल्ला कमलहिं भरज | १६. राति १७. पेल्ले न १८. धामसूरी १९. रामडउ २० हाराविय [७२] Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रहसाउल मई चल्लिवइं.२१ किय भावीज खन्न । वीख म खंचिसि करहडा, वंदिसु जससुरि धन्न २२ ॥ १९ पिल्लि - न......... कमलायर मउलि य स यल, मगसिर ए सिरि पइसारि । पूरि-न प्रियतम ! कोडु महु, चालि-न करहु पलाणि ।। २० जायवि जससुरि-पय नमहु, [..................] । धमसुरि-केरइ मुह-कमलि, सरसी ए किउ अवतारु ॥ २१ पूरि-न............... भसल विउल परिमल बहल, रणजण ए सद्दु करं ति । धमसुरि तुह सुंदर चरिउ, अनु दिणु ए नं गायंति ॥ २२ पूरि-न. २"छई सण निन्नय करण, वादिय ए विहंडण वीर । जय जय सिलसुरि-पाटधर, धमसुरि ए तिहुयण - धीर ॥ २३ पूरि-न............. ....... "बहिनि ए मणवण वासु ए , नासिवि माण-गइंदु जगि । पहुतउ पोसु सुसीहु ए , विरहिणि-हरिणि८ – हलोहलउ ॥ २४ कुंदह कलिय रुहंति ए , मालियडा तु हुँ वाडि यहिँ । नं सिय-दंत हसंति ए , वियसिय पोस-सिरिहि तणा !! २५ स महरि ए सीउ पडे इ ए , 'झल झलइ अंगीठडिय । चाचरि ए कठ्ठ करेवि ए., तापहि नीधण लोकडा ।। २६ २१. चंधिवहं २२. जसभुरि वउ । २३. जयवि २४. रणज्झण २५. छाईसण २६. वदिय ए विरुडण धीर । २७. वहिली बहिनि पिए २८. हल्लोहलउ २९. हयंति ३०. तणी ३१. ज्झेलषढिलइ अगोठडिय । [७३] Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊडिवि ए दाडिमडीय ए चडि वायस बीजउरडिय । कहि महु धमसुरि आगविरं ।। २७ कुरुलइ ए महरइ सादि ए, (७) , सीयडुलउ माहठु पडइ, रे रे सूया मासु पहूतउ माहु । दंत - वीण - वायणु करहि रे रे सूया नोधण-जण - मिहुणाई ॥ २८ दलिहिवि पडिय सुरहि महि, रे रे सूया अंगइ ईसर लोय" । वात न पूछहिँ सिरखंडिहिं, रे रे सूया वहइ" समालइ कोइ || २९ कुंकुम - पंकिण पिंजरिहिं, रे रे सूया अंगइ ईसर लोय" । वात न पूछहिँ सिरखंडहि, रे रे सूया ससमइ ( ) सउ अग्घेइ || ३० घडिया - जोयण - लंघणीय, रे रे प्रिय आपणा वंदावे, रे रे सूया (6) सूया तुह सा वाहि-न अज्ज । धमसुरि दुह - गिरि - वज्ज || ३१ पिल्लिवि माहु" रमाउलउ, मोरा पहुतउ फागुण मोरा महुर- सरेण लविवि धमसुरि - [. ·H.. ..] ! जगु जिम्व जससुरि-तणउ जसु, मोरा चंदुडउ धवलेइ ॥ ३३ मासु । आग* नाचु करेहिं ॥ ३२ तह सोहहिँ किं सुय - कुसुम, मोरा राता छवछवडाई । विरहिय - हियय - महावणह, मोरा दहण - हुयास - समाई ॥ ३४ बापुरि सहइँ कुसुंभडीय, मोरा रुयडी रातुडिलीय । नावइ थवकिय कुंकुमिण, मोरा सयल वि भुंडलीय ॥ ३५ करहा ! तुहुँ रे वीखडीय, मोरा करि मिल्हेविणु काणि । मणि उमाहु करंति मई, मोरा वंदावि जससूरि ..] ॥ ३६ ३२. दाडिवडीय ३३. लोया ३४. पूच्छहिं ३५. समालकेवइ । ३६. ममाउलउ ३७. ना करेहिं । [७४] Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . . . . . . चेत्तु पहूतउ मासडउ, रे मालियडा धमसुरि नंदउ लोइ । वणि वणि नव नव फूलडा, रे मालियडा झुंबक झुंबकडेहिं ॥ ३७ हे हेलि म साहेलडि ए, झंबक झुंबकडेहिं...... राइणि झुबकड़िय सहहिं रे मालियडा पाकिय कंचण-तुल्ल । जय जय असभद्रसूरि गुरु, रे मालियडा सुय सुरि-सेहर-फुल्ला ॥३८ हे हेलि म............. मलयानिल विलसेहिं भरु, रे मालियडा मउरिक अंबारामु । धमसुरि अनु जससुरि गुरु, रे मालियडा पुनिहिं लम्भइ सामि ।। ३९ हे हेलि म........ ऊडि रे करह ! आजु तुहु, रे मालियडा "करिविणु पंखडियाउ । पसरह धमसुरि नामह जिंव, रे मालियडा जसरि अनु मुणिराउ ॥४० हे हेलि म............ (१०) पयडउ इह वइसाहु जगि, पहुतउ आजु गुडे वि । पाडल-परिमल-लोलुअलि, कलयलि पडहुलु देवि ४० ।। ४१ सहि आजु सु वंदावि मई, धमसुरि नाण - विलासु ........... सहि चालु -न ऊतावलिय, जससुरि-वंदण-रेसि । सहि मज्झ मणु ऊमाहियउ, धमसुरि .- वंदण - रे सि ॥ ४२ सहि आजु सु ...... पाकिय झुंबहिं उववणि, अंबा लुंब रि आज ४१ । कोडि वरिस जं करिज तुहुँ, जससुरि संजम-राज ॥ ४३ ___ सहि आजु सु................" ... .. ... .. ... . ३८. झंबटडिय ३९. करविणु पंखडियाहु । ४०. देइ ४१. अजो [७५] Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरसिय४ कोइल कुहकुहइ, जित्थु सुकोमल - कंठ ४३ । करहा-आणण-रेसि तुहुँ, प्रिय ! बलावि-न वंठ ।। ४४ सहि आजु सु ............. वाडि ४४ झोक्कवि करह तुहुँ, खाविसु रुक्खा वेलि । देसु त दावणु तुज्झ हउं, वंदिवि धमसुरि सूरि (?) ॥ ४५ __ सहि आजु सु........ (११) ४६झुलकइ दारुण लूय, जिट्ठि "झुवहिं (?) जुवइ वर । करि लडहिय सिंगारु, नवलु परि पहिरिवि चीवर ॥ ४६ पीयलि करिवि सपिंड, पहिरि किन्नहिं चल कुंडल । ४८ ढलढलंत कंकण-सणाह, हस्थिहिं पुण हत्थल ।। ४७ नवसरु मोत्तिय - हास कंठि कलकंठि ठवे विणु । पाल विसाल चलंत चयलु, पायहिं पहिरेविणु ॥ ४८ चालि-न उतावली सहिय, पुरि पुरि विहरंतउ । जायवि धमसुरि नमहु सु, पुणु जससुरि गुणवंतउ ।। ४९ (१२) माणिणि - माण - महंतु, मयगल -पउ मोडिवि । पहि - मंडलि वणि पत्तु ४९, आसाढ सु केसरि ।। ५० मेहुडलइ नवि गयणि घुडुक्कइ, तहिं खणि विरहिणि-हियउं खुडुक्कड़। पसरिउ इंद्रधणु फुड फारु, किउ ५० विजलिय तरल-झबकारु ।। ५१ विदलिय-कंद केलि - कपणु ५९ लाविय तणु । ५२विफुरिउ पयणु तवहु दाहिण रवि - संदणु ।। ५२ ४२. केइल्ल डुहडुहइ ४३. कंठो ४४, ज्झोक्कवि ४५. रुखा ४६. झुलकई ४७. ज्झवहिं जवय वर । ४८. ज्झलज्झलंत ४९. पत्तो ५०. विजलिय तरल ज्झलकारू । ५१. लालिय ५२. वफरिउ पवयष पयदट्टो [७६] Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ऊडिय चडि वायस खज्यूरि, लवि महुरई सरि जोइवि दूरि आवंतउ कहि धमसुरि-नाहु, पहुचि जिम्व तसु वंदण जाहु / / 53 (13) अड्ढाइय - वरिसे हिं, जसु लोए समागमु / अहिय - मासु संपत्तु 5, मास हिय - मणोरमु // 54 तहिं वंदउं जससुरि सुहकारु, तवसिरि - कन्नवयंस पयारु / धमसुरि - बाहर - नावउं संतह, हरउ दुरिउ सुह करउ पढंतह / / 55 विन्नत्तिय निसुणे हि, सासण-दिवि सायरु / नंदउ धमसुरि लोए, जा चंद - दिवायरू / / 56 // बारह - नावउं समत्तं // 53. ऊविय 54. संपत्तो [77]