Book Title: Ath Vyangahiyali
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६ •224 अथ व्यंग्यहीयाली जाइ (जइया ? ) सहीहिं भणिया तुज्झ पई सुनदेउलसरिच्छो । तो कीस मुद्धडमुही अहिययरं गव्वमुव्वहइ ? ॥१॥ [ शून्यदेवकुले प्रतिमा कापि न भवति । ] जइ सासुयाइ भणिया पियवसहिं पुत्ति ! दीवयं दिज्जा । ता कीस मुद्धमुही हसिऊण पलोयए वच्छं ? ॥२॥ [ तया चिन्ततं मत्प्रियस्य वसतिर्मम हृदये किं तत्र दीवयं ददामि ? ] श्रीभंवरलाल नाहटा जइ देवरेण भणियं खग्गं गहिऊण राउले वच्च । ता कीस मुद्धडमुही हसिऊण पलोयए सिज्जं ? ||३|| [विपरीतरतं कृतं पुरुष इवाचरितं इति तेनोक्तम् । ] जइ सामिएण भणियं तुज्झ मुहं चंदबिंबसारिच्छं । ता कीस मुद्धडमुही करेण गंडस्थलं फुसइ ? ॥४॥ [चन्द्रमाः सकलङ्कः ता मम गंडत्थले किं कलङ्कं ? इति हेतोः । ] दण तं जुवाणं परियणमज्झम्मि पोढमहिलाए । उप्फुल्लदलं कमलं करेण मउलावियं कीस ? ॥५॥ [तयोक्तं यदा कमलं संकुचति तदा आगन्तव्यं, रात्रौ इत्यर्थः । ] अहिणवपिम्म-समागम - जुव्वण- रिद्धी-वसंतमासम्मि । सुत्तस्स तीइ पइणो (?) सहि ! कीस पलोइयं सीसं ? ॥६॥ [पशुरयं अस्य मस्तके शृङ्गमप्यस्ति ? इति शिरो विलोकितम् । ] सहस्रनयनैः पश्यामि । ] दूरपवासपउत्थं(त्तं) दइयं दट्ठूण भवणदारम्मि । वासुइ वाण - पुरंदर संभारिया केण कज्जेण ? ॥७॥ [सहस्राभिजिभिः स्तौमि, सहस्रवासु (बाहु ?) भिरालिङ्गनं करोमि, Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १६•225 अब्भत्थिया जुवाणी जइ सा तरुणेण गव्वियमणेण । अंगुलिदोउम्मेयं ता चंदं कीस दंसेइ ? ॥८॥ [यदा एष अस्तं याति तदा आगन्तव्यं, कृष्णपक्षे इत्यर्थः । ] भूयाण पियं सुहडाण मंडणं निवडियं च चलणेसु । दट्ठूण जाइ चिंता मरियव्वं अज्ज सीएण ॥९॥ [ निश्चितं पुष्पवती एषा अतो अनु (अ) भोग्या इति । ] विवरीयरए लच्छी बंभं दट्ठूण नाहिकमलत्थं । हरिणो दाहिणनयणं झंपेइ ता कीस (?) (झंपइ ता केण कज्जेण ?) ॥१०॥ [दक्षिणनयनं सूर्यस्तस्मिन् स्थगिते कमलं संकोचं गृह्णाति ॥ ] जा सहि ! भएण दिज्जइ सुहडा रक्खति सा पयत्तेण । सा महु पिएण दिना तेण इसी (सि? ) सामलं वयणं ॥११॥ [कोऽर्थः ? पृष्टिः पराङ्‌मुखो भूत्वा सुप्तः । ] हे देवर ! जाण तुमं करयलमज्झम्मि जं मए गहियं । • पयइपरुच्चिया बाला विक्खिरइ करंजपत्ताइं ॥ १२ ॥ संकेतस्थानं प्रकटयति । ] जइ सा सहीहि भणिया तुज्झ पई दोसगहणयसइहो । ता कीस मुद्धमुही अहिययरंगट्टमुव्वहइ ? ||१३|| [मा मत्प्रियस्य दृष्टिर्भविष्यति ।] ( नोंध : श्रीनाहटाजीए धूजती कलमे पण केटलीक पद्यरचनाओ जूनी ओमांथी उतारी मोकलेल छे. उंमर तेमज आंखोनी तकलीफने कारणे लखाणमां 11 क्षतिओ रही जाय तो ते समजी शकाय तेम छे. परंतु ८८-८९ वर्षनी पाकट वये पण संशोधननो रस अकबंध होवो ते परिणत विद्वत्तानी तथा अखंड ज्ञान-रस- जिज्ञासानी निशानी ज गणाय. तेओए 'व्यंग्य हीयाली' शीर्षक हेठळ केटलांक समस्यारूप पद्यो लखी मोकल्यां छे, तेमां जेटलां पद्यो उकेल सहित हतां, अने जेटलाना अक्षरो उकेरावा शक्य बन्या, तेटलां पद्यो उपर आप्यां छे. नाहटाजीए आ साथे लखावी मोकलेल नोधमां जणाव्युं छे के- "कुछ हीयालीसंग्रह तथा हैद्राबाद के चार कमान मंदिर के ज्ञानभंडारसे Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१६ * 226 संग्रहित कुछ सामग्री भिजवा रहे हैं, यथोचित प्रकाशित कर सकते हैं"। अन्य सामग्री आगळना अंकोमां, आ रीते, आपवामां आवशे. 'हीयाली' ते पाछळथी 'हरियाली' तरीके प्रसिद्ध थयेल काव्य प्रकारनुं ज मूळ रूप लागे छे. आ प्रकारमां, अहीं आपेलां पद्योमा छे तेवा सांकेतिक प्रश्नो के समस्याओ गूंथवामां आवे छे, जेनो उकेल/उत्तर विचक्षण जणे शोधी काढवानो रहे छे.)