Book Title: Agam 37 Chhed  04 Dashashrut Skandh Part 01 Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री दशाश्रुतस्कंध सूत्र - १ ॥ श्री आगम-गुण- मञ्जूषा ॥ ।। श्री भागम-गुण-मंभूषा ।। II Sri Agama Guna Manjusa II (सचित्र) प्रेरक-संपादक अचलगच्छाधिपति प.पू. आ. भ. स्व. श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म.सा. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HOROS555555555555555555555555555 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 555555555555555555555555555QUOTE | ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय | ११ अंगसूत्र के जीवन चरित्र है, धर्मकथानुयोग के साथ चरणकरणानुयोग भी इस सूत्र मे सामील है । इसमे ८०० से ज्यादा श्लोक है। श्री आचारांग सूत्र :- इस सूत्र मे साधु और श्रावक के उत्तम आचारो का सुंदर वर्णन है । इनके दो श्रुतस्कंध और कुल २५ अध्ययन है। द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र :- यह मुख्यत: धर्मकथानुयोग मे रचित है। इस सूत्र में श्री धर्मकथानुयोग और चरणकरणानुयोगोमे से मुख्य चौथा अनुयोग है। उपलब्ध श्लोको शत्रुजयतीर्थ के उपर अनशन की आराधना करके मोक्ष मे जानेवाले उत्तम जीवो के छोटे छोटे चरित्र दिए हए है। फिलाल ८०० श्लोको मे ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती 5 कि संख्या २५०० एवं दो चुलिका विद्यमान है। है। श्री सूत्रकृतांग सूत्र :- श्री सुयगडांग नाम से भी प्रसिद्ध इस सूत्र मे दो श्रुतस्कंध और २३ अध्ययन के साथ कुलमिला के २००० श्लोक वर्तमान में विद्यमान है । १८० श्री अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र :- अंत समय मे चारित्र की आराधना करके क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी अपरंच द्रव्यानुयोग इस आगम का अनुत्तर विमानवासी देव बनकर दूसरे भव मे फीर से चारित्र लेकर मुक्तिपद को प्राप्त मुख्य विषय रहा है। करने वाले महान् श्रावको के जीवनचरित्र है इसलीए मुख्यतया धर्मकथानुयोगवाला यह ग्रंथ २०० श्लोक प्रमाणका है। श्री स्थानांग सूत्र :- इस सूत्र ने मुख्य गणितानुयोग से लेकर चारो अनुयोंगो कि बाते आती है। एक अंक से लेकर दस अंको तक मे कितनी वस्तुओं है इनका रोचक वर्णन श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र :- इस सूत्र मे मुख्यविषय चरणकरणानुयोग है। इस आगम है, ऐसे देखा जाय तो यह आगम की शैली विशिष्ट है और लगभग ७६०० श्लोक है। में देव-विद्याघर-साधु-साध्वी श्रावकादि ने पुछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्रभु ने कैसे दिया इसका वर्णन है । जो नंदिसूत्र मे आश्रव-संवरद्वार है ठीक उसी तरह का वर्णन इस सूत्र श्री समवायांग सूत्र :- यह सूत्र भी ठाणांगसूत्र की भांति कराता है । यह भी मे भी है । कुलमिला के इसके २०० श्लोक है। संग्रहग्रंथ है । एक से सो तक कौन कौन सी चीजे है उनका उल्लेख है। सो के बाद देढसो, दोसो, तीनसो, चारसो, पांचसो और दोहजार से लेकर कोटाकोटी तक ११) श्री विपाक सूत्र :- इस अंग मे २ श्रुतस्कंध है पहला दुःखविपाक और दूसरा कौनसे कौनसे पदार्थ है उनका वर्णन है। यह आगमग्रंथ लगभग १६०० श्लोक प्रमाण सुखविपाक, पहेले में १० पापीओं के और दूसरे में १० धर्मीओ के द्रष्टांत है मुख्यतया मे उपलब्ध है। धर्मकथानुयोग रहा है । १२०० श्लोक प्रमाण का यह अंगसूत्र है। श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र (भगवती सूत्र) :- यह सबसे बडा सूत्र है, इसमे ४२ १२ उपांग सूत्र शतक है, इनमे भी उपविभाग है, १९२५ उद्देश है। इस आगमग्रंथ मे प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी गणधरादि ने पुछे हुए प्रश्नो का प्रभु वीर ने समाधान १) श्री औपपातिक सूत्र :- यह आगम आचारांग सूत्र का उपांग है । इस मे चंपानगरी किया है। प्रश्नोत्तर संकलन से इस ग्रंथ की रचना हुइ है। चारो अनुयोगो कि बाते का वर्णन १२ प्रकार के तपों का विस्तार कोणिक का जुलुस अम्बडपरिव्राजक के ७०० शिष्यो की बाते है। १५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। अलग अलग शतको मे वर्णित है। अगर संक्षेप मे कहना हो तो श्री भगवतीसूत्र रत्नो का खजाना है। यह आगम १५००० से भी अधिक संकलित श्लोको मे उपलब्ध है। श्री राजप्रश्नीय सूत्र :- यह आगम सुयगडांगसूत्र का उपांग है। इसमें प्रदेशीराजा का ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र :- यह सूत्र धर्मकथानुयोग से है। पहले इसमे साडेतीन करोड अधिकार सूर्याभदेव के जरीए जिनप्रतिमाओं की पूजा का वर्णन है। २००० श्लोको से भी अधिक प्रमाण का ग्रंथ है। कथाओ थी अब ६००० श्लोको मे उन्नीस कथाओं उपलब्ध है। १७) श्री उपासकदशांग सूत्र :- इसमें बाराह व्रतो का वर्णन आता है और १० महाश्रावको Gorak45555555555555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा G555555555555555555555555555555ory OG5555555555555555555555555555555555555555555555553535959595959OLICE Gan Education Interna rnww.iainelibrary.orp) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %。 %%%%%%85 २) त्रास %%%%%%%%%%% doOKHAR153835555555555555555555345555555555555555555555555ODXOS KAROKKAXXE E EEEE994%953589 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 985555359999999455889 श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है । जीव और अजीव के दश प्रकीर्णक सूत्र बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव ने कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताइ है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पनवणासूत्र के ही पदार्थ है । यह के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है। आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है । इसमे ३६ पदो का वर्णन श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है। और मृत्युसुधार ५) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र : श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार (१) चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००, भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है। २२०० श्लोक है। श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग ६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन मे है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है। ६ आरे के स्वरूप है। इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। बताया है। ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। गये उसका वर्णन है। ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्यकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है। ८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने । १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है । चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका में समजाया गया है। देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित ई श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे अन्य बातों का वर्णन है। पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली पञ्चक भी कहते है। १०A) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है। %%%%% %%% %%%% %% %%%% %%%% %%%%% १०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है। (GainEducation-international 2010-03 VOON N54555554454549 श्री आगमगुणमजूषा E f54 www.dainelibrary.00) $$# KOR Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐乐玩玩乐乐听听听听听听圳坂圳乐乐听听听听的 १०८) श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में ज्योतिष संबधित बड़े ग्रंथो का सार है। ३) उपरोक्त दसों पयन्नों का परिमाण लगभग २५०० श्लोकों में बध्य हे। इसके अलावा २२ अन्य पयन्ना भी उपलब्ध हैं। और दस पयन्नों में चंदाविजय पयन्नो के स्थान पर गच्छाचार पयन्ना को गिनते हैं। श्री नियुक्ति सूत्र :- चरण सत्तरी-करण सत्तरी इत्यादि का वर्णन इस आगम ग्रन्थ में ७ है। पिंडनियुक्ति भी कई लोग ओघ नियुक्ति के साथ मानते हैं अन्य कई लोग इसे अलग आगम की मान्यता देते हैं । पिंडनियुक्ति में आहार प्राप्ति की रीत बताइ हें। ४२ दोष कैसे दूर हों और आहार करने के छह कारण और आहार न करने के छह कारण इत्यादि बातें हैं। छह छेद सूत्र श्री आवश्यक सूत्र :- छह अध्ययन के इस सूत्र का उपयोग चतुर्विध संघ में छोट बडे सभी को है । प्रत्येक साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा अवश्य प्रतिदिन प्रात: एवं सायं करने योग्य क्रिया (प्रतिक्रमण आवश्यक) इस प्रकार हैं : (१) सामायिक (२) चतुर्विंशति (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कार्योत्सर्ग (६) पच्चक्खाण (१) निशिथ सूत्र (२) महानिशिथ सूत्र (३) व्यवहार सूत्र (४) जीतकल्प सूत्र (५) पंचकल्प सूत्र (६) दशा श्रुतस्कंध सूत्र इन छेद सूत्र ग्रन्थों में उत्सर्ग, अपवाद और आलोचना की गंभीर चर्चा है । अति गंभीर केवल आत्मार्थ, भवभीरू, संयम में परिणत, जयणावंत, सूक्ष्म दष्टि से द्रव्यक्षेत्रादिक विचार धर्मदष्टि असे करने वाले, प्रतिपल छहकाया के जीवों की रक्षा हेतु चिंतन करने वाले, गीतार्थ, परंपरागत क उत्तम साधु, समाचारी पालक, सर्वजीवो के सच्चे हित की चिंता करने वाले ऐसे उत्तम मुनिवर जिन्होंने गुरु महाराज की निश्रा में योगद्वहन इत्यादि करके विशेष योग्यता अर्जित की हो ऐसे * मुनिवरों को ही इन ग्रन्थों के अध्ययन पठन का अधिकार है। दो चूलिकाए १) श्री नंदी सूत्र :- ७०० श्लोक के इस आगम ग्रंन्थ में परमात्मा महावीर की स्तुति, संघ की अनेक उपमाए, २४ तीर्थकरों के नाम ग्यारह गणधरों के नाम, स्थविरावली और पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन है। चार मूल सूत्र श्री दशवकालिक सूत्र :- पंचम काल के साधु साध्वीओं के लिए यह आगमग्रन्थ अमृत सरोवर सरीखा है। इसमें दश अध्ययन हैं तथा अन्त में दो चूलिकाए रतिवाक्या व, विवित्त चरिया नाम से दी हैं । इन चूलिकाओं के बारे में कहा जाता है कि श्री स्थूलभद्रस्वामी की बहन यक्षासाध्वीजी महाविदेहक्षेत्र में से श्री सीमंधर स्वामी से चार चूलिकाए लाइ थी। उनमें से दो चूलिकाएं इस ग्रंथ में दी हैं। यह आगम ७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री अनुयोगद्वार सूत्र :- २००० श्लोकों के इस ग्रन्थ में निश्चय एवं व्यवहार के आलंबन द्वारा आराधना के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गइ है । अनुयोग याने शास्त्र की व्याख्या जिसके चार द्वार है (१) उत्क्रम (२) निक्षेप (३) अनुगम (४) नय यह आगम सब आगमों की चावी है। आगम पढने वाले को प्रथम इस आगम से शुरुआत करनी पड़ती है। यह आगम मुखपाठ करने जैसा है। ॥ इति शम्॥ श्री उत्तराध्ययन सूत्र :- परम कृपालु श्री महावीरभगवान के अंतिम समय के उपदेश इस सूत्र में हैं । वैराग्य की बातें और मुनिवरों के उच्च आचारों का वर्णन इस आगम ग्रंथ में ३६ अध्ययनों में लगभग २००० श्लोकों द्वारा प्रस्तुत हैं। ) Gain Education International 2010_03 Mora :58498499934555555555; आगमगुणमजूषा-5555555555555555555555555 ) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKO ALLA RURU RAREO ai i ferox (9) (3) KC国乐国为乐明明明明明明明明乐明明明明明F%%%%明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明军5B Introduction 45 Agamas, a short sketch I Eleven Angas : Acäränga-sutra : It deals with the religious conduct of the monks and the Jain householders. It consists of 02 Parts of learning, 25 lessons and among the four teachings on entity, calculation, religious discourse and the ways of conduct, the teaching of the ways of conduct is the main topic here. The Agama is of the size of 2500 ślokas. Sayagadanga-sutra : It is also known as Sütra-Kytänga. It's two parts of learning consist of 23 lessons. It discusses at length views of 363 doctrine-holders. Among them are 180 ritualists, 84 nonritualists, 67 agnostics and 32 restraint-propounders, though it's main area of discussion is the teaching of entity. It is available in the size of 2000 ślokas. Thápānga-sūtra : It begins with the teaching of calculation mainly and discusses other three teachings subordinately. It introduces the topic of one dealing with the single objects and ends with the topic of eight objects. It is of the size of 7600 ślokas. Samavāyanga-sutra : This is an encompendium, introducing 01 to 100 objects, then 150, 200 to 500 and 2000 to crores and crores of objects. It contains the text of size of 1600 Slokas. Vyakhya-prajñapti-sutra : It is also known as Bhagavati-sutra. It is the largest of all the Angas. It contains 41 centuries with subsections. It consists of 1925 topics. It depicts the questions of Gautama Ganadhara and answers of Lord Mahavira. It discusses the four teachings in the centuries. This Agama is really a treasure of gems. It is of the size of more than 15000 ślokas. Jäätādharma-Kathanga-sutra : It is of the form of the teaching of the religious discourses. Previously it contained three and a half crores of discourses, but at present there are 19 religious discourses. It is of the size of 6000 ślokas. Upasaka-dasānga-sutra : It deals with 12 vows, life-sketches of 10 great Jain householders and of Lord Mahavira, too. This deals with the teaching of the religious discourses and the ways of conduct. It is of the size of around 800 Slokas. (8) Antagada-dasänga-sutra : It deals mainly with the teaching of the religious discourses. It contains brief life-sketches of the highly spiritual souls who are born to liberate and those who are liberating ones: they are Andhaka Vrsni, Gautama and other 9 sons of queen Dharini, 8 princes like Akşobhakumara, 6 sons of Devaki, Gajasukumāra, Yadava princes like Jali, Mayāli, Vasudeva Krsna, 8 queens like Rukmini. It is available of the size of 800 Slokas. Anuttarovavayi-daśãnga-sútra: It deals with the teaching of the religious discourses. It contains the life-sketches of those who practise the path of religious conduct, reach the Anuttara Vimana, from there they drop in this world and attain Liberation in the next birth. Such souls are Abhayakumāra and other 9 princes of king Srenika, Dirghasena and other 11 sons, Dhanna Anagara, etc. It is of the size of 200 ślokas. (10) Prasna-vyakarana-sūtra : It deals mainly with the teaching of the ways of conduct. As per the remark of the Nandi-satra, it contained previously Lord Mahāvira's answers to the questions put by gods, Vidyadharas, monks, nuns and the Jain householders. At present it contains the description of the ways leading to transgression and the self-control. It is of the size of 200 ślokas. (11) Vipaka-sütrānga-sūtra : It consists of 2 parts of learning. The first part is called the Fruition of miseries and depicts the life of 10 sinful souls, while the second part called the Fruition of happiness narrates illustrations of 10 meritorious souls. It is available of the size of 1200 ślokas. 图纸娱乐明明明明明明明明明明垢玩垢圳明明听听听听听听听听听听听垢乐明明明明明明明明明听听听听听听听听 (5) (6) (1) II Twelve Upangas Uvaväyi-sütra : It is a subservient text to the Acāranga-sutra. It deals with the description of Campā city, 12 types of austerity, procession-arrival of Koñika's marriage, 700 disciples of the monk Ambada. It is of the size of 1000 ślokas. Rayapaseni-sutra : It is a subservient text to Süyagađanga-sutra. It depicts king Pradesi's jurisdiction, god Suryabha worshipping the Jina idols, etc. It is of the size of 2000 ślokas. (7) (2) www.Lainelibrary XXXX XXXXL PITJUGET TOYOX Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFhible Gamin nh* HIFThe ha EEEEEEEEEEEE开F听听听听听听听听明明Ow (3) Jivābhigama-sutra : It is a subservient text to Thāṇānga-sūtra. It one Vasudeva, his son Balabhadra and his son Nişadha. deals with the wisdom regarding the self and the non-self, the Jambo continent and its areas, etc. and the detailed description of the III Ten Payanna-sutras : veneration offered by god Vijaya. The four chapters on areas, society, (1) Aurapaccakhāņa-sūtra : It deals with the final religious practice etc. published recently are composed on the line of the topics of this and the way of improving (the life so that the) death (may be Sutra and of the Pannavaņa-sutra. It is of the size of 4700 Slokas. improved). Pannavaņā-sutra : It is a subservient text to the Samavāyānga- (2) Bhattaparinna-sutra : It describes (1) three types of Pandita death, sätra. It describes 36 steps or topics and it is of the size of 8000 (2) knowledge, (3) Ingini devotee ślokas. (4) Pādapopagamana, etc. (5) Sürya-prajfapti-sutra and (4) Santhäraga-payannā-sutra : It extols the Samstäraka. Candra-prajñapti-sätra : These two falls under the teaching of the calculation. They depict the solar and the lunar transit, the ** These four payannás can also be learnt and recited by the Jain movement of planets, the variations in the length of a day, seasons, householders. ** northward and the southward solstices, etc. Each one of these Āgamas are of the size of 2200 Slokas. (5) Tandula-viyaliya-payanna-sūtra : The ancient preceptors call this Jambadvipa-prajñapti-sutra : It mainly deals with the teaching Payanna-sutra as an ocean of the sentiment of detachment. It of the calculations. As it's name indicates, it describes at length the describes what amount of food an individual soul will eat in his life objects of the Jambu continent, the form and nature of 06 corners of 100 years, the human life can be justified by way of practising a (ära). It is available in the size of 4500 Slokas. religious life. Nirayávali-pacaka : (6) Candāvijaya-payannā-sūtra : It mainly deals with the religious (8) Nirayávali-sütra : It depicts the war between the grandfather and practice that improves one's death. the daughter's son, caused of a necklace and the elephant, the death (7) Devendrathui-payanna-sutra : It presents the hymns to the Lord of king Greñika's 10 sons who attained hell after death. This war is sung by Indras and also furnishes important details on those Indras. designated as the most dreadful war of the Downward (avasarpini) (8) Maranasamadhi-payanna-sutra : It describes at length the final age. religious practice and gives the summary of the 08 chapters dealing (9) Kalpāvatamsaka-sutra : It deals with the life-sketches of with death. Kalakumara and other 09 princes of king Sreņika, the life-sketch of (9) Mahäpaccakhāņa-payanna-sutra : It deals specially with what a Padamakumpra and others. monk should practise at the time of death and gives various beneficial (10) Pupphiya-upanga-sutra : It consists of 10 lessons that covers the informations. topics of the Moon-god, Sun-god, Venus, queen Bahuputrikā, (10) Gaņivijaya-payanna-sūtra : It gives the summary of some treatise Purnabhadra, Manibhadra, Datta, sila, Bala and Aņāddhiya. on astrology (11) Pupphacultya-upanga-sutra : It depicts previous births of the 10 These 10 Payannās are of the size of 2500 ślokas. queens like Sridevi and others. Besides about 22 Payannās are known and even for these above (12) Vahnidaśa-upanga sätra : It contains 10 stories of Yadu king 10 also there is a difference of opinion about their names. The Gacchācāra Andhakavrşni, his 10 princes named Samudra and others, the tenth is taken, by some, in place of the Candāvijaya of the 10 Payannās. 明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐国乐乐乐乐手乐乐乐乐乐明與乐乐乐乐乐乐乐乐FFFF乐乐乐明 XOXOFF $ farmark ** F YOX Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKOK YU BALLU BURU VERLO PLA Xoxo (1) (2) IV Six Cheda-sūtras (1) Vyavahāra-sūtra, (2) Nisītha-Sutra, (3) Mahānisitha-sūtra, (4) Pancakalpa-satra, (5) Daśāśruta-skandha-Sotra and (6) Bhatkalpa-sutra. These Chedasätras deal with the rules, exceptions and vows. The study of these is restricted only to those best monks who are (1) serene, (2) introvert, (3) fearing from the worldly existence, (4) exalted in restraint, (5) self-controlled, (6) rightfully descerning the subtlety of entity, territories, etc. (7) pondering over continuously the protection of the six-limbed souls, (8) praiseworthy, (9) exalted in keeping the tradition, (10) observing good religious conduct, (11) beneficial to all the beings and (12) Who have paved the path of Yoga under the guidance of their master. VI Two Colikas Nandi-sutra : It contains hymn to Lord Mahavira, numerous similies for the religious constituency, name-list of 24 Tirtharkaras and 11 Ganadharas, list of Sthaviras and the fivefold knowledge. It is available in the size of around 700 Slokas. Anuyogadvāra-sutra : Though it comes last in the serial order of the 45 Ágamas, the learner needs it first. It is designated as the key to all the Agamas. The term Anuyoga means explanatory device which is of four types: (1) Statement of proposition to be proved, (2) logical argument, (3) statement of accordance and (4) conclusion. * It teaches to pave the righteous path with the support of firm resolve and wordly involvements. It is of the size of 2000 ślokas. ** ********* V Four Molas atras (1) Dajavaikalika-sutra : It is compared with a lake of nectar for the monks and nuns established in the fifth stage. It consists of 10 lessons and ends with 02 Colikas called Rativakya and Vivittacariya. It is said that monk Sthūlabhadra's sister nun Yakşă approached Simandhara Svāmi in the Mahavideha region and received four Calikas. Here are incorporated two of them. (2) Uttaradhyayana-sutra : It incorporates the last sermons of Lord Mahavira. In 36 lessons it describes detachment, the conduct of monks and so on. It is available in the size of 2000 Slokas. . (3) Anuyogadvara-sutra: It discusses 17 topics on conduct, behaviour, etc. Some combine Piryaniryukti with it, while others take it as a separate Agama. Pindaniryukti deals with the method of receiving food (bhiksă or gocari), avoidance of 42 faults and to receive food, 06 reasons of taking food, 06 reasons for avoiding food, etc. Avašyaka-sútra: It is the most useful Agama for all the four groups of the Jain religious constituency. It consists of 06 lessons. It describes 06 obligatory duties of monks, nuns, house-holders and housewives. They are: (1) Samayika, (2) Caturvimšatistava, (3) Vandana, (4) Pratikramana, (5) Kāyotsarga and (6) Paccakhana. 明明明明明明明明明與乐乐乐为历历明明明明明明明明兵兵兵兵兵兵兵兵乐乐乐乐玩玩乐乐明步兵兵玩乐乐乐恩 * O YOK LOXOV L FT STATUTEUT- O 20:10 03 www.ainelibrary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ આગમ - ૩૯ - ૧ ચરણાનુયોગમય દશાશ્રુતસ્કંધ સૂત્ર - ૩૯ આચાર કરા દશા ઉપલબ્ધ મૂલપાડ ગદ્યસૂત્ર પદ્યસૂત્ર કરા પ્રથમા દ્વિતીયા તૃતીયા ચતુર્થી પંચમી XOY સૂત્રસંખ્યા ૨૧ ૨૨ ૩૫ ૧૯ ૨૮ ૧૨૫ ૧૮૩૦ -૨૧૬ --૫૨ કરા ષષ્ઠી સપ્તમી અષ્ટમી નવમી દશમી શ્લોક પ્રમાણ સૂત્રસંખ્યા ૨૮ ૩૪ ૧ 五五五五五五五五五五 * - સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ પૂર્ણ ૧૪૩ + ૧૨૫ २१८ પ્રથમા દશામાં સ્થવિરો દ્વારા કહેવાયેલાં ૧૦ અસમાધિસ્થાનો જણાવ્યાં છે. દ્વિતીયા દશામાં સ્થવિરોક્ત (સ્થવિરો દ્વારા કહેવાયેલાં) ૨૧ સબળ દોષો છે. તૃતીયા દશામાં સ્થવિરોક્ત ૩૩ આશાતનાઓ છે ચતુર્થી દશામાં સ્થવિરોક્ત આઠ ગણિસંપદા, વિનયશિક્ષાના ચાર ભેદ, શિષ્યવિનયના ચાર ભેદ, તથા ઉપકરણ-ઉત્પાદન, સહાયતા, ગુણાનુવાદ અને ગણભાર વહનના ચાર-ચાર ભેદો છે. પંચમી દશામાં ભગવાન મહાવીરનું વાણિજ્ય ગ્રામમાં સમવસરણ અને સ્થવિરોક્ત ૧૦ ચિત્ત-સમાધિ સ્થાનોની વાત છે. ષષ્ઠી દશામાં સ્થવિરોક્ત ૧૧ ઉપાસક પ્રતિમાઓ તેમજ અક્રિયાવાદી અને ક્રિયાવાદીના વર્ણન છે. સપ્તમી દશામાં સ્થવિરોક્ત ૧૨ ભિક્ષુ પ્રતિમાઓની વાત છે. અષ્ટમી પર્યેષણા દશામાં ભગવાન મહાવીરના પાંચ કલ્યાણની વાત છે. નવમી દશામાં ભગવાન મહાવીરનું ચંપાનગરીમાં સમવસરણ અને ૩ મહામોહનીય સ્થાનોનું વર્ણન છે. દામી આયતી દશામાં ભગવાન મહાવીરનું રાજગૃહમાં પદાર્પણ, નવનિદાન કર્મો, નિદાન કરનારાઓની ગતિ-ફળ તેમજ નિગ્રંથ-નિગ્રંથીઓની આલોચનાથી માંડીને આરાધના સુધીની વાતો છે. श्री आगमगुणमंजूषा ५१ 高19 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROR9$$$$$$$$$$$ (३९/१ दसासूयक्खध छेयसुनं (६) दसा - १,२,३ ] 555555555555555FONOR SC$$$$乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听C सिरि उसहदेव सामिस्स णमो। सिरि गोडी - जिराउला - सव्वोदयपासणाहाणं णमो। नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ महइ महावीर वद्धमाण सामिस्स । सिरि गोयम - सोहम्माइ सव्व गणहराणं णमो। सिरि सुगुरु - देवाणं णमोकश्रीदशाश्रुतस्कंघसूत्रम् अ नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्वसाहूणं (३१०प्र०) एसो पंचनमुक्कारो. सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम होइ हवइ मंगलं (प्र०॥१॥) सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं ।१। इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिठाणा पन्नत्ता, कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिठाणा पं०?, इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिठाणा पं० तं०-दवदवचारी यावि भवति, अप्पमज्जियचारी यावि०, दुप्पमज्जियचारी यावि०, अतिरित्तसेज्जासणिए, रायणियपरिभासी, थेरोवघाइए, भूतोवघातिए, संजलणे, कोहणे, पिढ़िमंसिए यावि० १० अभिक्खणं अभिक्खणं ओधारित्ता, णवाइं अधिकरणाई अणुप्पणाई उप्पाइया यावि०, पुराणाइं अधिकरणाइं खामित्तविउसविताइं उदीरित्ता, अकाले सज्झायकारी यावि०, ससरक्खपाणिपादे, सद्दकरे, झंझकरे, कलहकरे, सूरप्पमाणभोई एसणाइ असमिए यावि भवति २०, एते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिठ्ठाणा पन्नत्तत्ति बेमि।२।। असमाधिस्थानाध्ययनं १|| सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कवीसं सबला पं०, कयरे खलु०?, इमे खलु० तं०-हत्थकम्मं करेमाणे सबले, मेहुणं पडिसेवेमाणे, राइभोयणे भुंजमाणे , आहाकम्म भुंजमाणे, रायपिंडं भुंजमाणे, उद्देसियं कीयं पामिच्चं अच्छिज्जं अणिसिद्धं आहट्ट दिज्जमाणं भुंजमाणे, अभिक्खणं २ पडियाइक्खित्ता भुंजमाणे, अंतो मासस्स तओ 卐 दगलेवे करेमाणे, अंतो छण्हं मासाणं गणाओ गण संकममाणे, अंतो मासस्स तओ माइठाणे करेमाणे १० सागारियं पिंडं भुंजमाणे, आउट्टियाए पाणाइवायं ई करेमाणे, आउट्टियाए मुसावायं करेमाणे, आउट्टियाए अदिण्णादाणं गिण्हमाणे, आउट्टियाए अणंतरहियाए पुढवीए ठाणं वा सेज वा निसीहियं वा चेतेमाणे, एवं ससिणिद्धाए पुढवीए एवं ससरक्खाए, आउट्टियाए चित्तमंताए सिलाए चित्तमंताए लेलुए कोलावासंसि वा दारूए जीवपइठ्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउस्से सउत्तिंगपणगदगमट्यिमक्कडसंताणए तहप्पगारं ठाणं वा सिज्ज वा निसीहियं वा चेतेमाणे,आउट्टियाए मूलभोयणं वा कंदभोयणं वा (खंध०) तया० वा पवालभोयणं वा पुप्फभोयणं वा फलभोयणं वा बीयभोयणं वा हरियभोयणं भुंजमाणे, अंतो संवच्छरस्स दस दगलेवे करेमाणे, अंतो संवच्छरस्स दस माइठाणाई करेमाणे, आउट्टियाए सीतोदगरयउग्याइएण हत्थेण वा मत्तेण वा दव्वीए वा भायणेण वा असणं वा० पडिगाहेत्ता भुंजमारे २१, एते खलु थेरेहिं भगवतेहिं एक्कवीसं सबला पन्नत्तत्ति बेमि।३॥ शबलाध्ययनं २॥★★★सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पं०, कयरा खलु थेरेहिं०?, इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पं० २०-सेहे रायणिस्स पुरओ गंतो भवति आसायणा सेहस्स, सेहे रायणियस्स सपक्खं (पक्खओ) गंता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे रायणिगस्स आसण्णं गंता भवति आसायणा सेहस्स, एवं एएणं अभिलावेणं, सेहे राइणियस्स पुरओ चिठ्ठित्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स सपक्खं चिठ्ठित्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स आसन्नं चिट्ठित्ता भवति आसायणा सेहस्स सेहे ॥ राइणियस्स पुरवो निसीइता भवति आसापणा सहेस्स सेहे रायणियस्स सपक्खं निसीइता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे साइणियस्स आसन्न निसीइत्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणिएण सद्धिं बहिया वियारभूमि निक्खंते समाणे तत्थ पुवामेव सेहतराए आयामति पच्छा रायणिए आसायणा सेहस्स १० सेहे राइणिएणं सद्धिं बहिया विहारभूमि वा वियारभूमि वा निक्खंते समाणे तत्थ पुव्वामेव सेहतराए आलोएति पच्छा राइणिए आसायणा सेहस्स, केइ राइणियस्स पुव्वसंलत्तए सिया तं पुव्वामेव सेहतराए आलवइ पच्छा राइणिए आसायणा सेहस्स, सेहे रायणियस्स राओ वा वियाले वा वाहरमाणस्स अज्जो ! के सुत्ते ? के जागरे ? तत्थ सेहे जागरमाणे राइणियस्स अप्पडिसुणित्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे असणं वा० पडिग्गाहिज्जा तं पुवामेव सेहतरागस्स आलोएति पच्छा रासणियस्स आसायणा सेहस्स, सेहे असणं वा० पडिग्गाहित्ता पुव्वामेव सेहतरागं पडिदंसेति० आसायणा सेहस्स, सेहे असणं वा० पडिग्गाहित्ता पुव्वामेव सेहतरागं 听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐历历明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明乐乐乐SOR (सौन्य :-सं. सौ. रीटा शोर परा४ भैशेश ह. भेला रा५२ ()) xercFF55555555555555555555 श्री आगममुणमंजूषा - १९२९ 55555555555555555$FFOO Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ XO793135hhi+59555555 (३९/१) सासूयक्खध छेयसुत्त (६) दसा - ३,४ श 555555555555550oY उवणिमंतेति पच्छा रासणिए आसायणा सेहस्स, सेहे राइणिएणं सद्धिं असणं वा० पडिगाहित्ता तं राइणियं पणापुच्छित्ता जस्स २ इच्छति तस्स २ खद्धं २ दलयति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणिएण सद्धिं असणं वा० आहारेमाणे तत्थ सेहे खद्धं २ डायं २ रसियं २ ऊसढं २ मणुण्णं २ मणामं २ निद्धं २ लुक्खं २ आहारित्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स वाहरमाणस्स अपडिसुणित्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स वाहरमाणस्स तत्थगते चेव पडिसुणित्ता भवति आसायणा सेहस्स, २० सेहे राइणियं किंति वत्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियं तुमंति वत्ता भवति आसायणा (२४५) सेहस्स, सेहे राइणियं खद्धं २ वत्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियं तज्जाएणं तज्जायं पडिभणित्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स इति एवं वत्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स कह कहेमाणस्स णो सुमरसित्ति वत्ता भवति आसातणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स नो सुमणा भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स परिसं भेत्ता भवति आसायणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स कहं आच्छिदित्ता भवति आसादणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स कहं कहेमाणस्स तीसे परिसाए अणुठ्ठिताए अभिन्नाए अव्वोच्छिन्नाए अव्वोगडाए दुच्वंपि तमेव कहं कहेत्ता भवति आसादणा सेहस्स ३० सेहे राइणियस्स सेज्जासंथारगं पाएणं संघट्टित्ता हत्येणं अणणुण्णवेत्ता गच्छति आसातणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स सेज्जासंथारए चिठ्ठित्ता वा निसीइत्ता वा तुयट्टित्ता वा भवति आसादणा सेहस्स, सेहे राइणियस्स उच्चासणंसि वा समासणंसि वा चिठ्ठित्ता वा निसीइत्ता वा तुयट्टित्ता वा भवति आसादणा सेहस्स, एताओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पण्णत्ताओत्ति बेमि।४॥ आशातनाध्ययनं ३।। सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं अठ्ठविहा गणिसंपदा पं०, कयरा खलु थेरेहिं भगवंतेहिं अठ्ठविहा गणिसंपदा पं०१, इमा खलु थेरेहिं भगवंतेहिं अठ्ठविहा गणिसंपदा पं० तं०आयारसंपया सुय० सरीर० वयण वायणा० मति० पजोग० संगहपरिण्णा णाम अठ्ठमा ।५। से किं तं आयारसंपया?, २ चउब्विहा पं. तं०-संजमधुवजोगजुत्ते यावि भवति असंपगहिज्जए अणियता वित्ती वुद्धसीले यावि भवति, से तं आयारसंपदा ।६। से किं तं सुयसंपदा?, २ चउव्विहा पं०, तं०-बहुसुत्ते यावि भवति विचित्तसुत्ते० परिचित्तसुत्ते घोसविसुद्धिकारए०, से तं सुयसंपदा ।७। से किं तं सरीरसंपदा ? २ चउब्विहा पं० तं० आरोह परिणाह संपन्ने यावि भवति अणोतप्प सरीरे थिरसंघक्ष्णे बहुपडिपुण्णेदिह यावि भवति, से तं सरीरसंपदा ।८। से किं तं वयणसंपदा?, २ चउब्विहा पं० तं०-आदिज्जवयणे यावि भवति महुरवयणे० अणिस्सियवयणे फुडवयणे, सेत्तं वयणसंपदा।९। से किं तं वायणासंपदा ?, २ चउव्विहापं० तं०-विजयं उद्दिसति विजयं वाएति परिनिव्वावियं वाएति अत्थणिज्जवए यावि भवति, सेतं वायणासंपदा ।१०।से किं तं मतिसंपदा?,२ चउव्विहा पं० तं०- उग्गहमतिसंपदा ईहा० अवाय० धारणा०, से किं तं उग्गहमइ०१, २ छव्विहा पं० तं०-खिप्पं ओगिण्हति बहुं० बहुविहं० धुव० आणिस्सिय० असंदिद्धं०, से तं उग्गहमती, एवं ईहामतीवि, एवं अवायमतीवि, से किं तं धारणमती ?, २ छव्विहा पं० तं०-बहुं धरति बहुविधं० पुराणं० दुद्धरं० अणिस्सियं० असंदिद्धं धरेति, से तं धारणामती, से तं मतिसंपदा ।११। से किं तं पओगसंपदा?,२ चउव्विहा पं० तं०-आयं विदाय वादं पउंजित्ता भवति परिसं विदाय वादं पउजित्ता० खेत्तं विदाय वादं० वत्थु०, से तं पओगमतिसंपदा ।१२। से किं तं संगहपरिण्णासंपदा ?, २ चउन्विहा पं० तं०-बहुजणपाउग्रत्ताए वासावासासु खित्तं पडिलेहित्ता भवति बहुजणपाओगत्ताए पाडिहारियं सेज्जांसंथारयं ओगिण्हित्ता भवति कालेणं कालं समाणइत्ता भवति आहागुरू संपूइत्ता भवति, से तं संगहपरिण्णा ।१३। आयरियत्तो अंतेवासी इमाए चउब्विहाए विणयपडिवत्तीए विणइत्ता णिरिणत्तं गच्छति, तं०-आयारविणएणं सुयविणएणं विक्खेवणाविण,णं दोसनिग्घायणाविणएणं, से किं तं आयारविणए?, २ चउविहे पं० २०-संजमसामायारी यावि भवति तवसामायारी० गणसामायारी० एगल्लविहारसामायारी० से तं आयारविणए, से किं तं सुयविणए ?, २ चउव्विहे पं० तं०-सुयं वाएति अत्थं० हियं० निस्सेसं०, से तं सुयविणए, से किं तं विक्खेवणाविणए ?, २ चउव्विहे पं० २०-अदिळू वाएति दिठ्ठपुव्वगत्ताए विणएत्ता भवति, दिठ्ठपुव्वगं साहम्मियत्ताए०, दिठ्ठपुव्वगं सहेतुतं GOO乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$TO屬 mero555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१५३०95555555555555555555555555GHORI Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फ्र (३९/१) दसासूयक्खंधं छेयसुत्तं (६) दसा ४.५ फ्र धम्माओ धम्मे ठावित्ता भवति, तस्सेव धम्मस्स हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए अब्भुठ्ठेत्ता भवति, से तं विक्खेवणाविणए, से किं तं दोसनिग्घायणाविणए ?, २ चउव्विहे पं० तं०-कुद्धस्स कोहं विणइत्ता भवति, दुठ्ठस्स दोसं णिणिण्हित्ता भवति, कंखियस्स कंखं छिदित्ता भवति, आया सुप्पणिधितो यावि भवति, से तं दोसनिग्धायणाविणए । १४। तस्सेवंगुणजातीयस्स तेवासिस्स इमा चउव्विहा विणयपडिवत्ती भवति तं०-उवगरणउप्पायणता साहिल्लता वण्रसंजलणता भारपच्चोरूहणता, से किं तं उवगरणउप्पायणया ?, २ चउव्विहा पं० तं० अणुप्पन्नाई उवगरणाई उप्पापत्ता भवति, पोराणाई उवगरणशई सारक्खित्ता भवति, संगोवित्ता परित्तं जाणित्ता पच्चुद्धरित्ता भवति, आहाविहिं विसंभत्ता भवति, सेत्तं उवगरणउप्पायणया, सें किं तं साहिल्लया ?, २ चउव्विहा पं० तं०- अणुलोमवइसहिते यावि भवति अणुलोमकायकिरियत्ता० पडिरूवकायसंफासणया० सव्वत्थेसु अप्पडिलोमया०, से तं साहिल्लया, से किं तं वण्णसंजलणया १, २ चउव्विहा पं० तं० आहातच्चाणं वण्णवाई भवति, अवण्णवाइं पडिहणित्ता, वण्णवाइं अणुबूहित्ता, आयवुड्ढासेवी यावि०, से तं वणसंजलणया, से किं तं भारपच्चोरूहणता ?, २ चउव्विहा पं० तं० - असंगहियपरिजणं संगिण्हित्ता, भवति, सेहं आयारगोयरं गाहित्ता भवति, साहम्मियस्स गिलायमाणस्स आहाथामं वेयावच्चे अब्भुठ्ठित्ता भवति, साहम्मियाणं अधिकारणंसि उप्पण्णंसि तत्थ अणिस्सितोवस्सितो वसंतो अपक्खगाहए मज्झत्थभावभूते सम्मं ववरम तस्स अधिकरणस्स खामणविउसमणयाए सया समियं अब्भुठ्ठित्ता भवति कहं (नु) साहम्मिया अप्पसद्दा अप्पझंझा अप्पकलहा अप्पकसाया अप्पतुमतुमा संयमबहुला संवरबहुला समाहिबहुला अप्पमत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा एवं च णं विहरेज्जा, से तं भारपच्चोरूहणता, एसा खलु थेरेहिं भवगंतेहिं अठ्ठविहा गणिसंपदा पण्णत्तत्ति बेमि ★ ★ ★ | १५ || गणिसंपदध्ययनं ४ ॥ ★★ सुयं मे आउसंतेण भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्तसमाहिठणा पं०, कयरे खलु ते थेरेहिं०?, इमे खलु ते० दस चित्तसमाहिठाणा पं० तं० तेणं कालेण० वाणियगामं नामं नयरे होत्था एत्थ णं नगरवण्णओ भाणियव्वो, तस्स णं वाणियगामनगरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए दूइपलासे नामं चेइए होत्था चेइयवण्णओ भाणियव्वो, जियसत्तू राया, तस्स धारिणी देवी एवं सव्वं समोसरणं भाणियव्वं जाव पुढवीसिलापट्टए, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया । १६ । अज्जोत्ति समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे निग्गंथीओ य आमंतित्ता एवं वयासी इह खलु अज्जो ! निग्गंथाण वा निग्गंधीण वा ईरियासमियाणं भासासमियाणं एसणासमियाणं आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमियाणं उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपारिठ्ठावणियासमियाणं मणस० वयणस० काय० मणगुत्ताणं वयगुत्ताणं कायगुत्ताणं गुत्तिदियाणं गुत्तभयारीणं आणि आयहियाणं आयजोईणं आयपरक्कमाणं पक्खियपोसहीए सुसमाहीपत्ताणं झियायमाणाणं समाई दस चित्तसमाहिठाणाई समुप्पज्जिज्जा, ० धम्मचिंता वा से असमुप्पण्णपुव्वा समुप्पज्जेज्जा सव्वं धम्मं जाणेत्तए, सण्णिणाणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुप्पज्जेज्जा अहं सरात्ति अप्पणो पोराणियं जाई सुमरित्तए, सुमिणदंसणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा आहातच्चं सुमिणं पासित्तए, देवदंसणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा दिव्वं देविड्विं दिव्वं देवजुई दिव्वं देवाणुभावं पासित्तए, ओहिनाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा ओहिणा लोयं जाणित्तए, ओहिदंसणष वा से असमुप्पन्नपव्वे समुप्पज्जेज्जा ओहि लोयं पात्तिए, मणपज्जवनाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा अंतो मणुस्सखेत्तेसु अड्डाइज्जेसु दीवसमुद्देसु सन्नीणं पंचिदियाणं पज्जत्तगाणं मणोगए भावे जाणेत्तए, केवलनाणे वा स्वे असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा केवलकप्पं लोयालोयं जाणेत्तए, केवलदंसणे वा से असमुप्पण्णपव्वे समुप्पज्जेज्जा केवलकप्पं लोयालोयं पासित्तए, केवलमरणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा सव्वदुक्खप्पहीणाए | १७| 'ओयं चित्तं समादाय, झाणं समणुपासति । धम्मे ठिओ अविमणो, निव्वाणमभिगच्छति ॥१॥ ण इमं चित्तं समादाय, भुज्जो लोयसि जायति । अप्पणो उत्तमं ठाणं, सण्णीणाणेण जाणति ॥२॥ अहातच्चं तु सुविणं, खिप्पं पासति संवुडे । सव्वं वा ओहं तरति, दुक्खादा य विमुच्चति ॥ ३॥ पंताई भयमाणस्स, विचित्तं सयणासणं । अप्पाहारस्स दंतस्स, देवा दंसेति ताइणो ||४|| सव्वकामविरत्तस्स, खमाते Poron श्री आगमगुणमंजूषा - १५३१ON [३] Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CCTC$$$$$听听听听听听听乐听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐听听听听听听听听听听听听听C AGRO555555555555555 555555555555555OXO भयभेरवं । तओ से ओही भवति, संजयस्स तवस्सिणो ॥५।। तवसाऽवहडलेसस्स, दंसणं परिसुज्झति । उहुं अहे य तिरियं च, सव्वं समणुपस्सति ।।६।। सुसमाहडलेस्सस्स, अवितक्कस्स भिक्खुणो। सव्वओ विप्पमुक्कस्स, आया जाणति पज्जवे ॥७॥ जया से नाणावरणं, सव्वं होति खयं गयं । तया लोगमलोगं च, जिणो जाणति केवली ।।८|| जया सेदंसणावरणं, सव्वं होति खयं गयं । तओ लोगमलोगं च, जिणो पासइ केवली ॥९॥ पडिमाए विसुद्धाए, मोहणिज्जे खयं गए। असेसं लोगमलोगं च, पासति सुसमाहिए ॥१०|| जहा य मत्थयसूई, हयाए हम्मते तले । एवं कम्माणि हामंति, मोहणिज्जे खयं गए ॥११॥ सेणशवतिमि णिहते, जहा सेणा पणस्सति । एवं कम्मा पणस्संति, मोहणिज्जे खयं गए ।।१२।। धूमहीणो जहा अग्गी, खिज्जते से निरिंधणे । एवं कम्मारि खीयंते, मोहणिज्जे खयं गए ||१३|| सुक्कमूले जहा रूक्खे, सिच्चमाणे ण रोहति । एवं कम्म ण रोहंति, मोहणिज्जे खयं गए ॥१४|| जहा दड्डाण बीयाणं, ण जायंति पुणंकुरा । कम्मबीए तहा दड्ढे है (प्र० सु दड्डेसु), न रोहंति भवंकुरा ||१५|| चिच्चा आरालियं बोदि, नामगोत्तं च केवली । आउयं वेयणिज्जं च, छित्ता भवति नीरए ।।१६।। एवं अभिसमागम्म, ' चित्तमादाय आउसो !। सेणिसोधिमुवागम्म, आया सोहीमुवागए ॥१७॥ - **त्ति बेमि ।। चित्तसमाधिस्थानाध्ययनं ५|| सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं इक्कारस उवासगपडिमाओ पं०, कयराओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं इक्कारस उवासगपडिमाओ पं०?, इमा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं इक्कारस उवासगपडिमाओ पं० तं०-अकिरियावादी यावि भवति नाहियवाई नाहियपण्णे नाहियदिठ्ठी नो सम्मावादी नो णितियावादी नोसंतिपरलोगवादी णत्थि इहलोए णत्थि परलोए णत्थि माया णत्थि पिया णत्थि अरिहंता नत्थि चक्कवट्टी णत्थि बलदेवा णत्थि वासुदेवा णत्थि नरया णत्थि नेरइया णत्थि सुक्कडदुक्कडाणं फलवित्तिविसेसे णो सुचिण्णा कम्मा सुचिन्नफला भवंति णो दुच्चिण्णा कम्मा दुच्चिण्णफला भवंति अफले कल्लाणपावए नो पच्चायति जीवा णत्थि निरया णत्थि सिद्धी, से एवंवादी से एवंपण्णे एवंदिट्ठी एवंछंदरागभिणिविढे आवि भवति, से य भवति महिच्छे महारंभे महापरिग्गहे अहम्मिए अहम्मसेवी अहम्मिटे अधम्मक्खाई अधम्मपलोई अधम्मजीवी अधम्मपलज्जणे अधम्मसीलसमुदायारे अधम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ, हण छिंद भिंद विकत्तए अंतके लोहितपाणी चंडा रूद्दा खुद्दा साहस्सिया उक्कंचणमायाणियडिकूडकवडसातिसंपओगबहुला दुस्सीला दुप्परिचया दुरणुणेया दुव्वया दुप्पडियाणंदा निस्सीला। निग्गुणा णिम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासी असाहू सव्वाओ पाणाइवायाओ अप्पडिविरया जावजीवाए एवं जाव सव्वाओ कोहाओ सव्वाओ माणाओ सव्वाओ मायाओ सव्वाओ लोभाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुन्नाओ परपरिवादाओ अरतिरतीओ सव्वाओ मयामोसाओ मिच्छादसणसल्लाओ अप्पडिविरया जावजीवाए सव्वाओ कसायदंड (त) कठ्ठण्हाणुव्वट्टणब्भंगणवण्णयमद्दणविलेवणसद्दफरिसरसरूवगंधमल्लालंकाराओ अप्पडिविरया जावजीवाए सव्वाओ सगडरहजाणजुग्गगिल्लिथिल्लिसीयासंदमाणियासयणासणयाणवाहणभोयणपवित्थरविधीतो अप्पडिविरया जावजीवाए असमिक्खियकारी सव्वाओ आसहत्थिगोमहिसगवेलयदासीदासकम्मकरपुरिसाओ अप्पडिविरया जावजीवाए सव्वाओ कयविक्कयमासद्धमासरूवगसंववहाराओ अप्पडिविरया जावजीवाए सव्वाओ हिरण्णसुवण्णधणधण्णमणिमुत्तियसंखसिलप्पवालाओ अप्पडिविरया जावजीवाए सव्वाओ कूडतुलकूडमाणाओ अप्पडिविरया सव्वाओ आरंभसमारंभाओ अप्पडिविरया सव्वाओ पयणपयावणाओ अप्पडिविरया सव्वाओ करणकारावणाओ अप्पडिविरया सव्वाओ कुट्टणपिट्टणतज्जणताडणवधबंधपरिकिलेसाओ अप्पडिविरया जावजीवाए जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरियावणकडा कज्जति ततोवि अप्पडिविरया जावजीवाए से जहानामए केइ पुरिसे कलमसूरतिलमुग्गमासनिप्फावकुलत्थअलिसंदगजवएवमादीहिं अयते कूरे मिच्छादंडं पउंजइ एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाए तित्तिरवट्टगलावगकपोतकपिंजलमिगमहिमवराहगोगोकुम्मसरीसिवाइएहिं अयते कूरे मिच्छादंडं पउंजति, जाऽविय से बाहिरिया परिसा भवति तं०-दासेति वा पेसेति वा भतएति वा भाइल्लेति वा कम्मकरएति वा भोगपुरिसेति वा तेसिपिय णं अण्णयरगंसि अहालघुसयंसि अवराहसि सयमेव गरूयं दंडं निवत्तेति तं०-इम 乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 5 55555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१५३२5555555555555 P OR Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FIO95555555555555 (३९/२) दसासूयक्खंधं छेयसुत्तं (६) दसा- ६ ५] 555555555555yPSION G OGC%听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩乐乐听听听听听听听听听听听听听5O दंडेह इमं मुंडेह इमह तज्जेह इमं तालेह इमं दुब्बंधणं करेह इमं नियलबंदणं इमं हडिबंधणं इमं चारगबंधणं इमं नियलजुयलसंकुडियमोडितयं इमं हत्थच्छिन्नयं इमं पादाच्छिन्नयं इमं कण्णच्छिन्नयं इमं नक्कच्छिन्नं इमं ओठच्छिण्णं इमं सीसच्छिन्नं इमं मुखच्छिण्णयं इमं वइयच्छीइयं इमं हियउप्पाडियं एवं नयणदसणवयण० इमं जिब्भुप्पाडियं करेह इमं ओलंबिययं इमं घंसिययं इमं घोलितयं इमं सूलाइयं इमं सूलाभिण्णं इमं खारवत्तियं इमं दब्भवत्तियं इमं सीहपुच्छियं इमं वसभपुच्छिंयं इम कड (दव) ग्गिदड्वयं इमं काकणिमंसखातियं इमं भत्तपाणनिरूद्धयं करेह इमं जावज्जीवबंधणं करेह इमं अन्नतरेणं असुभेणं कुमारेणं मारेह, जाऽविय से अभितरिया परिसा भवंति तं०-माताति वा पिताति वा भायाइ वा भइणीती वा भज्जजाति वा धूयाति वा सुण्हाति वा तेसिपिय णं अण्णयरंसि अहालहुसगहसि अवराहसि सयमेव गरूयं दंडं निव्वत्तेति तं०-सीतोदगवियडंसि कायं बोलित्ता भवति उसिणोदगवियडेण कायं ओसिचित्ता भवति अगणिकाएण कायं उबडहिया भवति जोत्तेण वा वेत्तेण वा नेत्तेण वा कसेण वा छिवाडीए वा लताए वा पासाई उद्दालेत्ता भवति दंडेण वा अठ्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलुणा वा कवालेण वा कायं आउट्टित्ता भवति, तहप्पगारे पुरिसजाए संवसमाणे दुम्मणे भवति, तहप्पगारे पुरिसजाते विप्पवसमाणे सुमणा भवति, तहप्पगारे दंडपासी (रूई) दंडगुरूए दंडपुरक्खडे अहिए अस्सिंलोयंसि अहिए परंसि लोगंसि ते दुक्खति सोयति एवं जूरति तिप्पति पिट्टति परितप्पति, ते दुक्खणसोयणजूरणतिप्पणपिट्टणपरितप्पणवधबंधपरिकिलेसाओ अप्पडिविरया भवंति, एवमेव ते इत्थिकामेहिं मुच्छिया गढिया गिद्धा अज्झोववण्णा जाव वासाई चउपंचमाई छ।समाणि वा अप्पतरं वा भुज्जतरं वा कालं अँजित्ता भोगभोगाइं पसवित्ता वेरायतणाइं संचिणित्ता बहुयाइं पावाइं कम्माइं ओसण्णं संभारकडेण कम्मुणा से जहानामए अयगोलेति वा सेलगोलेति वा उदयसि पक्खिते समाणे उदगतलमइवइत्ता अहेधरणितलपतिठ्ठाणे भवति एवामेव तहप्पगारे पुरिसजा, वज्जबहुले धुण्ण० पंक० वेर० दंभ० नियडि० आसायण० (असाय०) अयस० अप्पत्तिय० ओसण्णं तसपाणघाती कालमासे कालं किच्चा धरणितलमतिवतित्ता अहेनरगतलपतिठाणे भवति, ते णं नरगा अंतो वट्या बाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिया निव्वंधगारतमसा ववगयगहचंदसूरनक्खत्तजोइसप्पहामेदवसामसरूहिरपुयपडलचिक्खल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा काउयअगणिवन्नाभा कक्खडफासा दुरहियासा नरगा असुभा नरगा असुभा नरगेसु वेदणा नो चेव णं नरएसु नेरइया निद्दायंति वा पलयायंति वा सुतिं वा रतिं वा धिति वा मतिं वा उवलभंति, ते णं तत्थ उज्जलं विउलं पगाढं कक्कसं कडुयं रोई दुक्खं चंडं तिव्वं तिक्खं तिव्वं दुरहियासं नरएसु नेरइया नरयवेयणठ पच्चणुभवमाणा विहरंति, से जहानामए रूक्खे सिया पव्वतग्गे जाए मूलच्छिन्ने अग्गेगरूए जतो निन्नं जतो दुग्गं जतो विसमं ततो पवडति एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाए गब्भाओ गब्भं जम्माओ जम्मं मरणाओ मरणं दुक्खाओ दुक्खं दाहिणगामिए नेरइए कण्हपक्खिए आगमिस्साणं दुल्लभबोधिते यावि भवति, से तं अकिरियावादी।१८। से किं तं किरियावादी ?,२ भवति तं०-आहियवादी आहियपण्णे आयिदिठ्ठी सम्मावाई नियावाई संतिपरलोयवादी अत्थि इहलोए अत्थि परलोए अत्थि पिया अत्थि माता अत्थि अरिहंता अत्थि चक्कवट्टी अत्थि बलदेवा अत्थि वासुदेवा अत्थि सुकडदुक्कडाणं कम्माणं फलवित्तिविसेसे सुचिन्ना कम्मा सुचिन्नफला भवंति दुच्चिण्णा कम्मा दुच्चिण्णफला भवंति सफले कल्लाणपावए पच्चायति जीवा अस्थि नेरझ्या अस्थि देवा अत्थि सिद्धी, से एवंवादी एवंपन्ने एवंदिठ्ठि एवं छंदरागभिनिविठू आवि भवति, से भवति महिच्छे जाव उत्तरगामिए नेरइए सुक्कपक्खिए आगमेसाणं सुलभाबोहिए यावि भवति, से तं किरियवादी ।१९। सव्वधम्मरूई यावि भवति, तस्स णं बहूई सीलव्वयगुणवयवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववसाइं ना सम्म पठ्ठवितपुव्वाइं भवंति, एवं दंसणसावओ पढमा उवासगपडिमा ।२०। अहावरा दोच्चा उवासगपडिमा-सव्वधम्मरूई यावि भवति, तस्स णं बहूई सीलवयगुणवयवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासाइं सम्मं पठविताइं भवंति, से णं सामाइयदेसावगासियं नो सम्म अणुपालित्ता भवति, दोच्चा उवासगपडिमा ।२१। अहावरा तच्चा उवासगपडिमा सव्वधम्मरूई यावि भवति, तस्स णं बहूई सीलवयगुणवयवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासाई सम्म पठ्ठविताइं भवंति, से णं सामाइयदेसावगासियं सम्म अणुपालित्ता भवति, से णं $$$$$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FSC xerc5555555555555555555555श्री आगमगुणमंजूषा - १५३३ 5555555555555555555555FFFFFSION Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PROF9555555555555555 (३९/१) दसासूयक्खधं छेयसुत्तं (६) दसा - ६,७ [६] 55555555555EROE 9555555555555555555555555555555555555555eos चाउद्दसअठ्ठमीउद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं नो सम्म अणुपालेत्ता भवति, तच्चा उवासगपडिमा ।२२। अहावरा चउत्था उवासगपडिमा-सव्वधम्मरूई यावि भवति, तस्स णं बहूइं सीलवय जाव सम्म पठ्ठविताइं भवंति, सेणं सामाइयदेसावगासियं सम्म अणुपालेत्ता भवइ, सेणं चाउद्दसअमिउद्दिठ्ठपुण्णमासिणीसु । पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेत्ता भवति, सेणं एगराइयं उवासगपडिमंनो सम्मं अणुपालेत्ता भवति, चउत्था उवासगपडिमा।२३। अहावरा पंचमा उवासगपडिमा सव्वधम्मरूई यावि भवति, तस्स णं बहूई सीलवय जाव सम्मं अणुपालेत्ता (पडिलेहियाइं) भवति, से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जह० एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेणं पंच मासे विहरिज्जा, पंचमा उवासगपडिमा ।२४। अहावरा छठ्ठा उवासगपडिमा-सव्वधम्मरूई यावि भवति जाव सेणं एगराइयं उवासगपडिमं अणुपालित्ता भवति, से णं असिणाणए वियडभोई मउलीयकडे दिया वा राओ वा बंभयारी, सचित्ताहारे य से परिण्णाए ण भवति, से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जह० एगाहं वा दुयाहं वा जाव उक्को० छम्मासा विहरिज्जा, छठ्ठा उवासपडिमा ।२५। अहावरा सत्तमा उवासगपडिमा सव्वधम्मरूई यावि भवति जाव राओ वा बंभयारी सचित्ताहारे से परिण्णाए भवति, आरंभे से अपरिणाए भवति, से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जह० एगाहं वा दुयाहं वा जाव उक्को० सत्त मासे विहरिज्जा, सत्तमा उवासगपडिमा ।२६। अहावरा अठ्ठमा उवासगपडिमा-सव्वधम्मरूई यावि भवति जाव राओ वा बंभयारी सचित्ताहारे से परिण्णाए भवति आरंभे से परिण्णाए भवति, पेसारंभे य से अपरिण्णाए भवति, सेणं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जाव एगाहं वा दुयाहं वा जाव उक्को० अठ्ठ मासा विहरिज्जा, से तं अठ्ठमा उवासगपडिमा ।२७। अहावरा नवमा उवासगपडिमा-सव्वधम्मरूयी यावि भवति जाव राओ (राओवरायं) बंभयारी सचित्ताहारे से परिण्णाए भवति आरंभे से परिण्णाए भवति पेसारंभे से परिण्णाए भवति, उद्दिठ्ठभत्ते से अपरिणाए भवति, से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जह० एगाहं वा दुयाहं वा जाव उक्कोसेणं नव मासा विहरिज्जा, से तं नवमा उवासगपडिमा ।२८। अहावरा दसमा उवासगपडिमा-सव्वधम्मरूई यावि भवति जाव उद्दिठ्ठभत्ते से परिणाए भवति, सेणं खुरमुंडए वा छिहलिधारए वा, तस्स णं आभ (इ) ठुस्स वा समाभठ्ठस्स वा कप्पाति दुवे भासाओ भासित्तए तं०-जाणं वा जाणं अजाणं वा नो जाणं, सेणं है एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जह० एगाह वा याहं वा उक्को० दस मासा विहरिज्जा, दसमा उवासगपडिमा।२९। अहावरा एक्कारसमा उवासगपडिमा-सव्वधम्मरूई जाव उद्दिठ्ठभत्ते से परिण्णाए भवति, से णं खुरमुंडए वा लुत्तसिरए वा गहियायारभंडगनेवत्थे जारिसे समणाणं निग्गंथाणं धम्मे पं० तं सम्मं काएण फासेमाणे पालेमाणे पुरओ जुगमायाए पेहमाणे दट्ठण तसे पाणे अदट्ट पाए रीएज्जा साहट्ट पाए रीएज्जा वितिरिच्छं वा पायं कट्टरीएज्जा, सति परक्कमे संजतामेव परिक्कमेज्जा, नो उज्जुयं गच्छेज्जा, केवलं से नायए पेज्जबंधणे अवोच्छिण्णे भवति, भवं से कप्पति नायविहिं एत्तए, तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे कप्पति से जालोदणे पडिगाहित्तए नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए, तत्थ णं से पुव्वागमणेणं दोवि पुव्वाउत्ताई पुव्वाउत्ते भिलिंगसूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे कप्पति से भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए नो से कप्पति चोउलोदणे पडिगाहित्तए, तत्थ णं से पुव्वागमणेणं दोवि पुवाउत्ताई कप्पंति से दोवि पडिगाहित्तए, जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पच्छाउते नो से कप्पइ पडिगाहित्तए, तत्थ णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविठ्ठस्स कप्पइ एवं वइत्तए समणोवासगस्सं पडिमामपडिवण्णस्स भिक्खं दलयह, एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणं केइ पासित्ता वदेज्जा-के आउसो ! तुमं वत्तव्वं सिया ?, समणोवासए पडिमं पडिवज्जिते अहमंसीति वत्तव्वं सिया, सेणं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जह० एगाहं वा दुयाहं वा वियाह वा उक्को० एक्कारस मासे विहरेज्जा, एगारसमा उवासगपडिमा, एताओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एगारस उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओत्ति बेमि ।★★★ ३०॥ श्रमणोपासकप्रतिमाध्यययनं ६॥ *** सुयं मे आउसंतेण भगवया एवमक्खयायं-इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पं०, कयराओ खलु ताओ जाव पं०?, इह खलु एताओ पं०२०-मासिया भिक्खुपडिमा दोमासिया भिक्खुपडिमा तिसामिया भिक्खुपडिमा चउमासिया पंचमासिया छम्मासिया सत्तमासिया पढमा सत्तराइंदिया दुच्चा सत्तराइंदिया तच्चा 明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听乐听听听听 MOKO$$$555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा- १५३४॥5555555555555555555555FORIOR Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० (३९/१) दसासूयक्खंधं छेयसुत्तं (६) दसा ७ [७] FOR सत्तराइंदिया अहारोइं- (२४६) दिया एगराईदिया भिक्खुपडिमा । ३१ । मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स निच्वं वोसठ्ठकाए चियत्तदेहे जे कई उवसग्गा उप्पज्जेति तं ० - दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा ते उप्पण्णे सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति, मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पइ एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहित्तए एगा पाणगस्स, अण्णाउंछं सुद्धोवहडं निज्जूहित्ता बहवे दुप्पयचउप्पयसमणमाहण अतिहिकिविणवणिमगा, कप्पइ से एगस्स भुंजमाणस्स पडिगाहित्तए, णो दुण्हं णो तिण्हं णो चउण्हं णो पंचण्हं णो गुव्विणीए णो बालवच्छाए णो दारगं पेज्जमाणीए नो अंतो एलुयस्स दोवि पाए साहट्टु दलमाणीए नो बाहिं एलुयस्स दोवि पाए साहड दलमाणीए, एगं पाए अंतो किच्चा एवं पायं बाहिं किच्चा एलुयं विक्खंभइत्ता एवं दलयति एवं से कप्पति डिगाहित्तए, एवं से नो दलयति एवं से नो कप्पइ पडिगाहित्तए, मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स तओ गोयरकाला पं० तं० आदिसे मज्झिमे चरिमे, आदि चरेज्जा णो मज्झे चरिज्जा णो चरिमे चरिज्जा, मज्झे चरेज्जा नो आइ चरेज्जा नो चरिमे चरेज्जा, चरिमं चरेज्जा नो आदिमं चरेज्जा नो मज्झे चरेज्जा, मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स छव्विहा गोयरचरिया पं० तं० - पेला अद्धपेला गोमुत्तिया पयंगवीथिका संबुकावट्टा गंतुंपच्चागया, मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स जत्थ णं केइ जाणति कप्पर से तत्थ एगराइयं वसित्तए, जत्त णं केइ न जाणइ से कप्पति तत्थ एगरायं वा दुरायं वा वसित्तए, परायाओ वा दुरायाओ वा परं वत्थए, जं तत्थ एगरायाओ वा दुरायाओ वा परं वसति से संतरा छेदे वा परिहारे वा, मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स कप्पंति चत्तारि भासाओ भासित्तए तं०-जायणी पुच्छणी अणुण्णवणी पुठ्ठस्स वागरणी, मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स० कप्पंति तओ उवस्सगा पडिले हित्तए तं०- अहे आरामगिहं अहे वियडगिहं अहे रूक्खमूलगिहं, मासियण्णं० कप्पइ तओ उवस्सया उवायणावित्तए तं चेव, मासियं णं० कप्पइ तओ संथारगा पडिलेहित्तए तं० अहे पुढवीसिलं वा कठ्ठसिलं वा आहासंथडमेव, मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स कप्पइ तओ संथारा अणुण्णवेत्तए तं चेव, मासियं णं० कप्पंति तओ संथारा ओवायणावित्तए तं चेव, मासियं० इत्थी उवस्सयं उवागच्छिज्जा से इत्थी एवं पुरिसे णो से कप्पइ तं पडुच्च निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, मासियं० जाव पडिवण्णस्स केइ उवस्सयं अगणिकाएण झामेज्जा नो से कप्पइ तं पडुच्च निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, तत्थ णं केइ वधाय असिं गहाय आगच्छेज्ना जाव से नो कप्पइ पडुच्च अलंबित्तए वा पलंबित्तए वा, कप्पइ से आहारियं रीइत्तए, मासियं णं भिक्खुपडिमं जाव पायंसि थाणू वा कंटए वा हीरए वा सक्करा वा अणुपविसेज्जा नो कप्पर से नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा कप्पर से आहारियं रीइत्तए, मासियं णं जाव अच्छिसि वा० पाणाणि वा बीयाणि वा रए वा परियावज्जिज्ज नो से कप्पइ नीहरितए वा विसोहित्तए वा, कप्पर से आहारीय रीइत्तए, मासियं णं० जत्थेव सूरिए अत्थमेज्न तत्थेव जलंसि वा थलंसि वा दुग्गंसि वा निण्णंसि वा पव्वयंसि वा विसमंसि वा गड्डाए वा दरीए वा कप्पड़ से तं रयणिं तत्थेव उवायणावित्तए, नो से कप्पर पदमवि गमित्तए, कप्पड़ से कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव जलते • पाईणाभिमुहस्स वाद हिणाभिमुहस्स वा पडीणाभिमुहस्स वा उत्तराभिमुहस्स वा आहारीय रीइत्तए, मासियं णं० नो कप्पर अणंतरहियाए पुढवीए निद्दाइत्तए वा पयलाइत्तएवा, केवली बूया- आदाणमेयं, से तत्थ निद्दायमाणे वा पयलायमाणे वा हत्थेहिं भूमिं परामुसेज्जा अहाविधिमेव ठाणं ठाइत्तए निक्खमित्तए वा, उच्चारपासवणेणं उब्बाहिज्जेज्जा नो से कप्पइ ओगिण्हित्तए, कप्पइ से पुव्वपडिलेहितए थंडिले उच्चारपासवणं परिठ्ठवित्तए, तमेव उवस्सयं आगम्म अहाविधिं ठाणं ठात्तए, मासि नो कप्पइ ससरक्खेहिं पाएहिं (काएहिं प्र०) गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा नि० पवि०, अह पुण एवं जाणेज्जा स सरक्खे सेअत्ताए वा जल्लत्ताए वा मलत्ताए वा पंकत्ता वा विद्धत्थे (परिणए) से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्ख० पवि०, मासियं० नो कप्पइ सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा हत्थाणि वा पायाणि वा दंताणि वा अच्छीणि वा मुहं वा उच्छोलित्तए वा पधोवित्तए वा णण्णत्थ लेवालेवेण वा, मासियं णं० ना कप्पइ आसस्स वा हत्थिस्स वा गोणस वा महिसस्स वा कोलस्स वा साणस्स वा (कोलसुणगस्स वा) दुठ्ठस्स वा वग्घस्स वा० आवडमाणस्स पदमवि पच्चोसक्कित्तए, अदुठ्ठस्स आवडमाणस्स कप्पति जुगमित्तं पच्चोसक्कित्तए, मासियं णं० नो कप्पइ छायाओ सीयंति उण्हं इत्तए उपहाओ उण्हंति नो छायं एत्तए, जं जत्थ जया सिंया तं तत्थ अहियासए, एवं श्री आगमगुणमंजूषा - १५३५ ॐ 03 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR39555555555555555 (३९/१) दसासूयक्बंध छेयसुत्त (६) दमा - ७.८. ९ ८ ) 555555555555555220 CO乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听GC网 खलु एसा मासिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासित्ता पालित्ता सोहित्ता तीरित्ता किट्टित्ता आराहित्ता आणाए अणुपालित्ता भवति ।३२। दोमासियं णं भिक्खुपडिमं० निच्चं वोसठ्ठकाएं तं चेव जावदो दत्ती, तिमासियं० तिण्णि दत्तीओ चाउमासियं० चत्तारि दत्तीओ पंचमासियं पंच दत्तीओ छमासियं छ दत्तीओ सत्तमासियं सत्त दत्तीओ, जत्थ जत्तिया दत्तीओ।३३। पढमं सत्तराइंदियं णं भिक्खूपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्सस निच्चं वोसिठ्ठकाए जाव अहियासेइ, कप्पइ से चउत्थेणं, भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा उत्ताणगस्स वा पासेल्लगस्स वा नेसज्जियस्स वा ठाणं ठाएत्तए, तत्त दिव्वमाणुसतिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जिज्जा, ते णं उवसग्गा० पयलिज्ज वा पवडिज्न वा नो से कप्पइ पयलित्तए वा पवडित्तए वा, तत्थ से उच्चारपासवणे उब्बाधेजा नो से कप्पइ उच्चारपासवणं ओगिण्हेत्तए, कप्पइ से पुव्वपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिठ्ठवित्तए, अहाविधिमेव ठाणं ठाइत्तए, एसा खलु पढमा सत्तराइंदिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अणुपालित्ता भवति, एवं दोच्चा सत्तराइंदियावि, नवरं गोदुहियाए वा वीरासणियस्स वा अंबखुज्जस्स वा ठाणं ठाइत्तए सेसं नं चेव जाव अणुपालिता भवति, एवं तच्या सत्त राइंदियावि भवति, नवरं गोदुहियाए वा विरासणीयस्स वा अंबखुज्जस्स वाठा ठाइत्तए, एवं चेव जाव अणुपालिता भवति।३४। एवं अहोरातियावि, नवरं छठेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जावरायहाणियस्स वाईसिंदोवि पाए साहटु वग्धारियपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए, सेसं तं चेव जाव अणुपालिता भवति, एगराइंणं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स निच्चं वोसिठ्ठकाए जाव अहियासेति, कप्पइ से अट्टमेण भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा ईसिपब्भारगएणं काएणं एगपोग्गलठ्ठिताए दिठ्ठीए अणिमिसनयणे अहापणिहितेहिं गत्तेहिं सव्विदिएहिं गुत्ते दोवि पाए साहट्ट वग्धारियपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए, तत्थ से दिव्वमाणुसतिरिच्छजोणिया जाव अहाविधिमेव ठाणं ठाइत्तए, एगराई णं भिक्खुपडिम अणणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा अहियाए असुभाए अखमाए अणिस्सेसाए अणाणुगामियत्तशए भवंति, तं०-उम्मायं लभेज्जा दीहकालियं वा रोगायंकं पाउणेज्जा केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ वा भंसेज्जा, एगराइयं णं भिक्खुपडिमं सम्मं अणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा हियाए जाव आणुगामियत्ताए भवंति, तं०ओहिणाणे वा से समुप्पज्जेज्जा मणपज्जवनाणे वा से समुप्पज्जेज्जा केवलनाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा, एवं खलु एसा एगराइया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएण फासिता पालिता सोहिता तीरिता किट्टिता आराहिता आणाए अणुपालिता यावि भवति, एताओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पण्णत्ताओत्ति बेमि ** ३५॥ भिक्षुप्रतिमाध्ययनं ७||★★★ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे होत्था तं०-हत्थुत्तराहिंचुए चइत्ता गब्भह वक्ते, हत्थुत्तराहिं गब्भाओगब्भं साहरिए, हत्थुत्तराहिं जाए, हत्थुत्तराहि मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइए, हत्युत्तराहिं अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केव,वरनाणदसणे समुप्पन्ने, साइणा परिनिव्वुए भयवं, जाव भुज्जो २ उवदंसेइत्ति बेमि। ***३६॥ पर्युषणाकल्पाध्ययनं ८॥ तेणं कालेणं० चंपा नामं नगरी होत्था वण्णओ, पुण्णभद्दे चेइए, कोणिए राया, धारिणी देवी, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया, अज्जोत्ति समणे भगवं महावीरे बहवे निणंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासी-एवं खलु अनो! तीसं मोहणीयठ्ठाणाई इमाई इत्थी वा पुरिसो वा अभिक्खणं २ आयरमाणे वा समायरमाणे वा मोहणिज्जत्ताए कम्मं पकरेति, तं०- 'जे केवि तसे पाणे, वारिमज्झे विगाहिया । उदएणऽकमम मारेति, महामोहं पकुव्वई॥१८॥ सीसावेढेण जे केइ, आवेढेइ अभिक्खणं । तिव्वासुभसमायारे, महामोहं०॥१९|| पाणिणा संपिहिताणं, सोयमावरि पाणिणं । अंतो नदंतं मारेइ० ॥२०|| जायतेयं समारब्भ, बहु ओंरूभियाजणं । अंतो धूमेण मारेइ० ॥२१॥ सीसंमि जे पहणंति, उत्तमंगंमि चेयसा। विभज्ज मत्थयं फाले०॥२२॥ पुणो २ पणिधीळ, हणित्ता (बाले) उवहसे जणं । फलेण अदुवा दंडेणं० ।।२३।। गूढायारी निगूहिज्जा, मायं मायाए छायए। असच्चवाई निण्हाइ० ॥२४॥ धंसेइ जो अभूएणं, अकम्मं अत्तकम्मुणा । अदुवा तुममकासित्ति० ॥२५|| जाणमाणो पुरिसओ, सच्चमोसाइ भासति । अक्खीणझंझे पुरिसे० ।।२६।। अणायगस्स नयवं, दारं तस्सेव धंसिया । विउलं विक्खोभइत्ताणं, किच्चाणं पडिबाहिरं ॥२७|| उवगसंतंपि झंपित्ता, पडिलोमाहिं वग्गुहिं । भोगभोगे reO1 9555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा : १५३६ 4555555555555555555555555FORORY Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROHR95555555555555555 (३९/) सासूर्यक्खंच छेयसुत का वसा . ९.१० CO乐乐乐乐乐乐圳乐乐乐乐明明 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明信 वियारेति० ॥२८|| अकुमारभूए जे केइ, कुमारभूएत्तिऽहं वए। इत्थीविसयगेहीए०।२९।। अबंभयारी जे केई, बंभयारीतिऽहं वए। गद्दभेव गव मज्झे, विस्सरं नदती नदं॥३०॥ अप्पणो अहिए बाले, मायामोसं बहुं भसे। इत्थीविसगिद्धीए०॥३१॥ जंनिस्सिए उव्वहती, जससाऽभिगमेण य। तस्स लुब्भइ वित्तमि०॥३२॥ ईसरेण अदुवा गामेणं, अणीसरे ईसरीकए । तस्स संपरिगहित (यहीण) स्स, सिरी अतुल्लमागया ॥३३।। ईसादोसेण आइट्ठे, कलुसाउलचेयसे । जे अंतरायं चेएइ० ||३४|| सप्पी जहा अंडपुडं, भत्तारं जो विहिंसइ । सेणावतिं पसत्थारं० ॥३५॥ जे नायगं च रस्स, नेयारं निगमस्स वा । सेठिं बहुरवं हता० ॥३६।। बहुजणस्स नेतारं, दीवं ताणं च पाणिणं । एयारिसं नरं हंता० ॥३७॥ उवठ्ठियं पडिविरयं, संजयं सुसमाहियं । विउक्कम्म धम्माओ भंसेति० ॥३८॥ तहेवाणंतनाणीणं, जिणाणं वरंदसिणं । तेसिं अवण्णवं बाले० ॥३९|| णेयाउयस्स मग्गस्स, दुढे अवहर (रज्झ) ती बहुं । तं तिप्पयंतो भावेति० ॥४०|| आयरियउवज्झाया, सुयं विणयं च गाहिए । ते चेव खिंसती बाले० ॥४१॥ आयरिउवज्झायाणं, सम्मं न पडितप्पई । अपरिपूयए थद्धे० ॥४२|| अबहुस्सएवि (य) जे केई, सुएणं पविकत्थई । सज्झायवादं वदति०॥४३|| अतवस्सी य जे केई, तणेवं पविकत्थई । सव्वलोगपरे तेणे०॥४४|| साहारणठ्ठा जे केइ, गिलाणंमि उवठ्ठिए । पमू न कुव्वई किच्चं, मज्झंपि से ण कुव्वति ॥४५॥ सढे नियडिपण्णाणे, कलुसाउलचेयसे । अप्पणो य अबोहीए०॥४६॥ जे कहाअधिकरणाई, संपउंजे पुणोप णो। सव्वतित्थाण भेयाए०॥४७|| जे य आहम्मिए जोए, संपउंजे पुणो पुणो । सहाहेउं सहीहेउं० ।।४८।। जे य माणुस्सए भोए, अदुवा पारलोइए। तेऽतिप्पयंतो आसयती० ॥४९॥ इडढी जुत्ती जसो वण्णो, देवाणं बलवीरियं । तेसिं अवण्णवं बाले०॥५०|| अप्पसमाणो पस्सामि, देवे जक्खे य गुज्झगे। अण्णाणो जिणपूयठ्ठी० ॥५१॥ एते मोहगुणा वृत्ता, कम्मत्ता चित्तवद्धणा । जे उ भिक्खू विवज्जेज्जा, चरित्त (ज्ज) त्तगवेसए ॥५२।। जंपि जाणेइ जो पुव्वं, किच्चाकिच्चं बहुं जढं । तं वन्ता ताणि सेविज्जा, जेहिं आयारवं सिया ॥५३॥ आयारगुत्ते सुद्धप्पा, धम्मे ठिच्चा अणुत्तरे । तत्तो वमे सए दोसे, विसमासीविसो जहा ॥५४॥ सुझंतदोसे सुद्धप्पा, धम्मठ्ठी विदितापरे । इहेव लभते कित्ति, पेच्चा य सुगंति वरे॥५५॥ एवं अभिसमागम्म, सूरा दढपरक्कमा । सव्वमोहविणिम्मुक्का, जातिमरणमतिच्छिय ॥५६|| त्ति बेमि ★★★ मोहनीयस्थानाध्ययनं ९॥ तेणं कालेणं० रायगिहे नामं नयरे होत्था वण्णओ, गुणसिलए चेइए, रायगिहे नगरे सेणि, नाम राया होत्था रायवण्णओ, एवं जहा आवाइए जाव चेल्लणाए सद्धिं० विहरइ।३७। तए णं से सेणिए राया अण्णया कयाई ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सिरसाहाते कंठमालेकडे आविद्धमणिसवण्णे कप्पियहारद्धहारे तिसरयपालंबपलंबमाणकडिसुत्तयसुकयसोहे पिणद्धगेविज्जे अंगुलेज्जगजाव कप्परूक्खए चेव अलंकियविभूसिए नरिंदे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं जाव ससिव्व पियदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवठ्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइत्ता सीहासणवरंसि पुरच्छाभिमुहे निसीयइत्ता कोडुंबियपुरिसे सददावेइ त्ता एवं वदासी-गच्छह णं तुम्हे देवाणुप्पिया ! जाई इमाई रायगिहस्स नगरस्स बहिया तं०-आरामाणि य उज्जाणाणि य आसणाणि य आयतणाणि य देवकुलाणि य संभाओ य पवाओ य पणियगिहाणि य पणियसालाओ य छुहाकम्मंताणि य वाणियकम्मंताणि य एवं कठ्ठकम्मंताणि य इंगालकम्मंताणि य वणकम्मंताणि य दब्भकम्मंताणि य जे तत्थेव महत्तरगा आणता चिठ्ठति ते एवं वदह-एवं खलु देवाणुप्पिया! सेणिए राया भंभासारे आणवेति-जयाणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरेजाव संपाविउकामे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामंतिज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे इहमागच्छेजा तया णं देवाणुप्पिया! तुमे भवगओ महावीरस्स अहापुडिरूवं उग्गहं अणुजाणहत्ता सेणियस्स रण्णो भंभासारस्स एयमलैं पियं निवेएह, तए णं ते कोडंबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा भंभासारेण एवं वुत्ता समाणा हठ्ठतुठ्ठा जाव हियया जाव एवं सामित्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणंति त्ता सेणियस्स रण्णो अंतियाओ पडिनिक्खमंति त्ता रायगिहनगरस्स मज्झंमज्झेणं निग्गच्छंति त्ता जाइं इमाइं भवंति रायगिहस्स बहिया आरामणि वा जाव जे तत्थ महयरगा आण (अण्ण) ता चिठ्ठति ते एवं वदंति जाव सेणियस्स रण्णो एयमलृ पियं निवेदिज्जा भे पियं भवतु, दोच्चपि एवं वदंति त्ता जामेव दिसंपाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया ॥३८॥ तेणं कालेणं० समणे भगवं महावीरे दिगरे जाव गामाणुगामं दूइज्जमाणे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तते णं रायगिहे नगरे 总乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐蛋乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐 Merro55555555555555555555555श्री आगमगुणमंजूषा- १५३७555555555555554K १०१ ox w.jamelibrary.org TOIVELESTERONE Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RO9555555555555555 b555555555555520 सिंघाडगतिगचउक्कचच्चर जाव परिसा पडिगया जाव पज्जुवासैति, तते णं महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति त्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति त्ता नामगोयं पुच्छंति त्ता नामगोत्तं पधारेति त्ता एगयओ मिलंति त्ता एगंतमवक्कमंतित्ता एवं वदासी-जस्सणं देवाणुप्पिया! सेणिए राया दंसणं कंखइ जस्स णं देवाणुप्पिया ! सेणिए राया दंसणं पीहेति जस्स णं देवाणुप्पिया ! सेणिए राया दंसणं पत्थेति जस्स णं देवाणुप्पिया ! सेणिए राया दंसणं अभिलसति जस्स णं देवाणुप्पिया ! सेणिय राया नामगोत्तस्सवि सवणयाए हठ्ठतुठ्ठ जाव भवति से णं समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्थगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं वहिरमाणे इहमागयाते इह संपण्णे इह समोसढे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! सेणियस्स रण्णरो एयमठू पियं निवेदेमो पियं भे भवतुत्तिकट्ट एयमदूं अण्णमण्णस्स पडिसुणंति त्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवागच्छंति त्ता रायगिहं नगरं मज्झमज्झेणं जेणेव सेणियस्स रण्णो गिहे जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छन्ति त्ता सेणियरायं करतलपरिग्गहियं जाव जएणं विजएणं वद्धावेति त्ता एवं वयासी-जस्स णं सामी ! दंसणं कंखति जाव सेणं समणे भगवं महावीरे गुणसिलए चेइए जाव विहरइ, तं णं देवाणुप्पियाणं पियं निवेदामो पियं भे भवतु ।३९। तते णं से सेणिए राया तेसिं पुरिसाणं अंतिए एयमळू सोच्चा निसम्म हळूतुजावहियए सिंहासणाओ अब्भुढेति त्ता जहा कोणिओ जाव वंदसि नमसति त्ता ते पुरिसे सक्कारेति संमाणेति त्ता विउलं जीवियारिहं पीतिदाणंदलयति त्ता पडिविसजजेइ त्ता नगरगुत्तिए सद्दावेइ त्ता एवं वदासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! रायगिहं नगरं सब्भितरबाहिरियं आसियसंमज्जिओवलित्तं जाव पच्चप्पिणंति ।४०। तए णं से सेणिए राया बलवाउयं सद्दावेत्ति त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! हयगयरहजोहकलियं चाउरंगिणिं सेन्नं सन्नाहेह जाव सेऽपि पच्चप्पिणंति, तते णं से सेणिए राया जाणसालियं सद्दावेति वा एवं वदासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! धम्मियं, जाणपवरं ॥ जुत्तामेव उवट्ठावेहत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि, ततेणं से जाणसालिए सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हठ्ठतुठ्ठजावहियये जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ त्ता ज़ाणसालं अणुपविसइ त्ता जाणं पच्चुवेक्खइ त्ता पच्चोरूभति त्ता जाणगं संपमज्जइ त्ता जाणगं णीणेति त्ता जाणगं संवट्टइ त्ता दूसं पवीणेति त्ता जाणाई समलंकरेइत्ता जाणाई वरभंडमंडियाई करेइत्ता जेणेव वाहणसाला तेणेव उवागच्छइत्ता वाहणसालं अणुपविसति त्ता वाहणाइं पच्चुविक्खति त्ता वाहणाइं संपमज्जइ त्ता वाहणाई अप्फालइत्ता वाहणाई णीणेति त्ता दूसे पविणेति त्ता वाहणाई अलंकारेति त्ता वाहणाइं वराभरणमंडियाई करेति त्ता जाणगं जोएति त्ता वट्टिमोगाहेति त्ता पओगलट्ठि पओगधरए य समं आरोहइ त्ता जेणे व सेणिए राया तेणेव उवागच्छइत्ता करयल जाव एवं वदासी-जुत्ते ते सामी ! धम्मिए जाणपवरे, आइठ्ठा भदंत ! वगुगाही ।४१। तए णं सेणिए राया भंभासारे जाणसालियस्स अंतिएं एयमठु सोच्चा निमस्स हठ्ठतु जाव मज्जणघरं अणुपविसइ जाव कप्परूक्खए चेव अलंकियविभूसिए नरिद जाव मज्जणघराओ पडिनिक्खमति त्ता जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छइत्ता चिल्लणं देवीं एवं वदासी-एवं खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्थगरे जाव पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तं महाफलं खलु देवाणिप्पिए ! तहारूवाणं अरहताणं जाव तं गच्छामो देवाणूप्पिए ! समणं भगवं महावीरं वंदामे नमसामो सक्कारेमो संमाणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेमो एतं ण्हं इहभवे य परभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सति ।४। तते णं सा चिल्लणा देवी सेणियस्स रण्णो अंतिए एयमठु सोच्चा निसम्म हठ्ठतुठ्ठ जाव पडिसुणेति त्ताप जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ ता पहाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता, किं ते ?, वरपायपत्तनेउरमणिमेहलाहाररइयउन्विहियकडगक्खडुएगावलिकंठमुरजतिसरयत-वरवलयहेमसुत्तयकुंडलुज्जोवियाणणा रयणभूसियंगी चीणंसुयवत्थपवरपरिहिया दुगुल्लसुकुमालकंतरमणिज्जउत्तरिज्जा सव्वोउयसुरभिकुसुमसुंदरइयपलंबसोहंतकंतविकसंतचित्तमाला वरचंदणचच्चिया वराभरणभूसियंगी कालागुरूधूवधूविया सिरीसमाणवेसा बहूहिं खुजाहिं + चिलातियाहिं जाव महत्तरगाविंदपरिक्खित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छइ ।४३। तए णं से सेणिए राया चिल्लए देवीए सद्धिं धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहति सकोरिटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं उववाइयगमेणं जाव पज्जुवासइ, एवं चेल्लणावि जाव महत्तरगाविंदपरिक्खित्ता जेणेव समणे : RORo999999999996555555559श्री आगमगुणमंजूषा- १५३८1555555555555555555555 H IGH Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THOR9595555555555555 (३९/१) दसासूयक्खधं छेयसुत्त (६) दसा - १० १ १] 5555599359530xymore #SRE555555SONY %%%%%%%%%%%%%! GCS55555%%%%%%%%%%%%%% भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति त्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति त्ता सेणियं रायं पुरओ काउं ठितिया चेव पुज्जवासति, एवं चेल्लमावि जाव 9 महत्तरगाविंदपरिक्खित्ता जेणेव समर्ण भगवं महावीरे मेणेव उवागच्छतित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति नमं सतित्ता सेणियं रायं पुरओ काउंठितिया चेव पुज्जवासति तते णं समणे भगवं महावीरे सेणियस्स रण्णो भंभासारस्स चिल्लणाए य देवीए तीसे महतिमहालियाए परिसाए चइपरिसाए इसि० मुणि० देव० मणुस्स० देवी० अणेगसयाए जाव धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया, सेणिओ राया पडिगओ।४४॥ तत्थेगतियाणं निग्गंथाण य निग्गंथीण य सेणियं रायं चिल्लणं देवीं पासित्ताणं ॥ इमेयारूवे अज्झथिए जाव संकप्पे समुप्पज्जित्था अहो णं सेणिए राया महड्डिए जाव महासोक्खे जे णं बहाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्तेसव्वालंकारविभूसिते चिल्लणाए देवीए सद्धिं उरालाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरति, न मे दि© देवे देवलोगंमि, सक्खं खलु अयं देवे, जइ इमस्स तवनियमबंभचेरवासस्स फलवित्तिविसेसे अत्थि तया वयमवि आगमेस्साए इमाई उरालाई एयारूवाइं माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरामो सेतं साह, अहो णं चिल्लणा देवी महिड्डिया जाव महासोक्खा जा णं व्हाया कयबलिकम्मा जाव सव्वालंकारविभूसिया सेणिएणं रन्ना सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ, ण मे दिठ्ठाओ देवीओ देवलोए सक्खं खलु इयं देवी, जइ इमस्स सुचरियस्स तवनियमबंभचेरवासस्स कल्लाणफलवित्तिविसेसे अत्थि वयमवि गणिस्साणं इमाइं एयारूवाइं उरालाई जाव विहरामो, सेतं साहुणी ।४५/ अज्जोत्ति समणे भगवं महावीरे बहवे निग्गंथा य निग्गंधीओ य आमंतित्ता एवं वयासी-सेणियं रायंचिल्लणं देवीं च पासित्ता इमे एयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था-अहो णं सेणिए राया महिड्डिए जाव से तं साहू, अंणं चिल्लणा देवी 5 महड्डिया सुंदरा जाव से तं साहुणी, से गूणं अज्जो ! अत्थे समठे ?, हंता अत्थि, एवं खलु समणाउसो 'मए धम्मे पण्णत्ते इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे म पडिपुण्णे केवलिए संसुद्धे णेआउए सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निजाणमग्गे निव्वाणमग्गे अक्तिहमविसंधिं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे इत्थं ठिया जीवा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिव्वाइंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति, जस्सणं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवठ्ठिए विहरमाणे पुरा दिगिंछाए पुरा पिवासाए पुरा वातातवेहिं पुढेहिं विरूवरूवेहि परिसहोवसग्गेहिं उदिण्णकामजाए यावि विहरेज्जा, सेय परक्कमेज्जा से य परक्कममाणे पासेज्जा जे इमे उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया तेसिं णं अण्णतरस्स अतिजायमाणस्स वा निज्जायमाणस्स वा पुरओ महं दासीदासकिंकरकम्मकरपुरिसपदायपरिक्खित्तं छत्तभिंगारं गहाय निग्गच्छंति तदणंतरं च णं पुरओ महाआसा आसवरा उभओ तेसिं नागा नागवरा पिठ्ठओ रथा रथवरा रथसंगिल्ली सेन्नं उद्धरियसेयच्छत्ते अब्भुग्गयभिंगारे पगहियतालविंटे पवियण्णसेयचामरवालवरणीए अभिक्खणं २ अतिजाति य निज्जाति य सप्पभा, सपुव्वावरं चणं ण्हाए कयबलिकम्मे जाव सव्वालंकारविभूसिए महतिमहालियाए कूडागारसालाए महतिमहालयंसि सिंहासणसि जाव सव्वरातिएणं जोइणा झियायमाणेणं इत्थिगुम्मपरिवुडे (२४७) महयाहयनट्टगीयवाइयतंतीतलतालतुडियघणमुयंगमद्दलपडुप्पवाइयवरवेणं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ, तस्सणं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारिपंच अवुत्ता चेव अब्भुढेतिभणह देवाणुप्पिया! किं करेमो? किं आहरेमो ? किं उवणेमो? किं आचिठ्ठामो ? किं भे हियइच्छियं ? किं ते आसगस्स सदति, जं पासित्ता निग्गंथे निदाणं करेति जइ इमस्स तवनियमबंभचेरवासस्स जाव साहू, एवं खलु समणाउसो ! निग्गंथे निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइयअप्पडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा अणतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवति महिड्डिएसु जाव चिरठ्ठिइएसु, से णं तत्थ देवे भवति महिड्डिए जाव चिरठ्ठिइए, ततो देवलोगाओ आउक्खएणं० अणंतरं चयं चइत्ता जे इमे उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया तेसिंणं अण्णतरंसि कुलंसि पुत्तत्ताए पच्चायाति, सेणं तत्थ दारए भवति सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे, तते णं से दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिणयमित्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते सयमेव पेइयं दायं पडिवज्जति, तस्स णं अइजायमाणस्स वा णिज्जायमाणस्स वा पुरआ महं जाव दासीदास० किं ता आसगस्स सदति ?, तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजायस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा उभयकाल केवलिपण्णत्तं धम्म आइक्खेज्जा?, हंता आइक्खेज्जा, सेणं पडिसुणेज्जा ?, णो इणढे समठे, अभविए णं से तस्स धम्मस्स सवणयाए, से य भवति महिच्छे महारंभे महापरिग्गहे अहम्मिए जावल xerc355555555555555FFFFF5555 श्री आगमगुणमंजूषा - १५३९ 555555555555555555 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听0元 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NO9555555555555555 (३९/१) दसासूयक्खंधं छेयसुत्तं (६) दसा - १० १श 55岁$$$ $ 25 MOR955555555555555555555555555555555555555555eog आगमेसाणं दुल्लभबोहिए यावि भवति, तंएवं खलु समणाउसो ! तस्स निदाणस्स इमेयारूवे पावफलविवागे जं णो संचाएति केवलिपण्णत्तं धम्म पडिसुणेत्तए ।४६। एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पं० तं०-इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेति जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवठ्ठिया विहरमाणी पुरा दिगिंछाए० उदिण्णकामजाया विहरेज्जा, साय परक्कमेज्जा, सा य परक्कममाणी पासेज्जा से जा इमा इत्थिया भवति एगा एगजाया एगाभरणपिहाणा तेलपेलाइव सुसंगोविया चेलपेलाइव सुसंपरिग्गहिया रयणकरंडगसमाणा तीसे णं अतिज़ायमाणीए वा निज्जायमाणीए वा पुरओ महं दासीदास जाव किं ते आसगस्स सदति ?, जं पासित्ता निग्गंथी निदाणं करेति-जति इमस्स तवनियमबंभचेर जाव भुंजमाणी विहरामि, सेत्तं साहुणी, एवं खलु समणाउसो ! निग्गंथी निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइयअपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति महड्डिएसु जाव साणं तत्थ देवे भवति जाव भुंजमाणे विहरइ, साणं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं० अणंतरं चयं चइत्ता जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउगा भोगपुत्ता महामाउया एतेसिंणं अण्णतरंसि कुलंसि दारियत्ताए पच्चायाति, साणं तत्थ दारिया भवति सुकुमाल जाव सुरूवा, ततेणं तं दारियं अम्मपियरो उम्मुक्कबालभाव विणयपरिणयमित्तं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूवेणं सुकेणं पडिरूवस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलंति, साणं तस्स भारिया भवति एगा एगजाया इठ्ठा जाव रयणकरंडगसमाणी, तीसे जाव अतिजायमाणीए वा निज्जायमाणीए वा पुरओ महं दासीदास जाव किं ते आसगस्स सदति ?, तीसे णं तहप्पगाराए इत्थियाए तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओकालं केवलिपण्णत्तं धम्म आइक्खेज्जा?, हंता आइक्खेज्जा, सा णं भंते ! पडिसुणेज्जा?, णो इणढे समठे, अभविया णं सा तस्स धम्मस्स सवणयाए, सा य भवति महेच्छा महारंभा महापरिग्गहा जाव दाहिणगामिए नेरइए आगमिस्साए दुल्लभबोहियत्ताए भवति, एवं खलु समणाउसो! तस्स निदाणस्स इमेयारूवे पावफलविवागेजंणो संचाएति केवलिपण्णत्तं धम्म पडिसुणगामिए ।४७। एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते इणमेव निग्गंथे पावयणे तह चेव जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे सिक्खाए उवठ्ठिए विहरमाणे पुरादिगिंछाए जाव से य परक्कममाणे पासेज्जा-इमा इत्थिका भवति एगा एगजाया जव किं ते आसगस्स सदति ?, जं पासित्ता निग्गंथे निदाणं करेति दुक्खं ' खलु पुमत्तणए, जे इमे उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया एतेसिंणं अण्णतरेसु उच्चवएसु महासमरसंगामेसु उच्चावयाइं सत्थाई उरसि चेव पडिसंवेदेति तं दुक्खं खलु पुमत्तणए, इत्थीत्तणं साहु, जति इमस्स तवनियमबंभचेरवासस्स फलवित्तिविसेसे अत्थि वयमवि आगमेस्साणं जाव इमेरूवाइं उरालाई इत्थीभोगाइं भुञ्जिस्सामो, सेत्तं सहू, एवं खलु समणाउसो! निग्गंथे निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइअपडिक्वंते जाव अपडिवज्जित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु जाव सेणं तत्थ देवे भवति महिड्डिए जाव विहरति, सेणं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव अणंतरं चइत्ता अण्णतरंसि कुलंसि दारियत्ताए पच्चायाति जाव ते णं तंदारियं जाव भारियत्ताए दलयंति, साणं तस्स भारिया भवति एगा एगजाया जाव तहेव सव्वं भाणियव्वं, तीसेणं अतिजायमाणी वा जाव किं ते आसगस्स सदति?, तीसे णं तहप्पगाराए इत्थिकाए तहारूवे समणे वा माहणे वा धम्म आइक्खेज्जा ?, हंता आइक्खेज्जा, जाव किं पडिसुणेज्ज ?, णो तिणठे समठ्ठ, अभविया णं सा तस्स धम्मस्स पडिसवणयाए, सा य भवति महिच्छा जाव दाहिणगामिए नेरइए, आगमिस्साणं दुल्लभबोहिए यावि भवति, एवं खलु समणाउसो तस्स निदाणस्स इमेयारूवे पावफलविवागे भवति जंणो संचाएति केवलिपण्णत्तं धम्म पडिसुणेत्तए ।४८। एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पन्नते इणमेव निग्गंथे जाव अंतं करेति जस्सणं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवठ्ठिया विहरमाणी पुरादिगिंछाए जाव उदिण्णकामजाया विहरेज्जा, सा य परक्कममाणी पासेज्जा से जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता माहामाउया जाव किं ते आसगस्स सदति ?, जं पासित्ताणं निग्गंथी नियाणं करेति-दुक्खं खलु इत्थित्तणए, दुस्संचाराई वामंतराइं जाव सन्निवसंतराइं, से जहानामए अंबपेसियाति वा अंबाडपेसीयाति वा मातुलुंगपेसियाति वा मंसपेसियाति वा उच्छुखंडियाति वा संबलिफालियाति वा बहु जणस्स आसासणिज्जा पत्थणिज्जा विं (पी) हणिज्जा अभिलसणिज्जा एवामेव इत्थिकावि बहुजणस्स आसासणिज्जा जाव अभिलसणिज्जा, तं दुक्खं खलु इत्थित्तणए, पमुत्तणए साहु, जइ इमस्स तवनियम जाव अत्थि अहमवि आगमिस्साणं इमाइं एयारूवाइं पुरिसभोगभोगाइं भुंजिस्सामि, से तं साहुणी, एवं खलु समणाउसो! MOO听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐听听听听听听乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐 Xero555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा १५४०555$$$$$$$$$$$$$$$$$55555SOR Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGO555555555555555 (३९/१) दसासूयक्खंधं छेयसुत्तं (६) दसा - १० [१३] 555555555555555FROoly CCC$$$$$$$$$$$$$$$$$$$折$$$$$$$$$$$$$乐乐明明明明明明明明明明明明45C निग्गंथी निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइयअपडिक्कंता जाव अपडिवज्जित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, सेणं तत्थ देवे भवति महिड्डिए जाव चइत्ता तहेव दारए भवति जाव किं ते आसगस्स सदति ?, तस्सणं तहप्पगारस्स पुरिसजायस्स जाव अभविएणं से तस्स धम्मस्स सवणयाए, से य भवति महिच्छे जाव दाहिणगामिए नेरइए जाव दुल्लहबोहिए यावि भवति, एवं खलु जाव पडिसुणित्तए ।४९। एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते इणमेव निग्गंथे पावयणे जाव तहेव, जस्स णं धम्मस्स निग्गंथे वा निग्गंथी वा सिक्खाए उवठ्ठिए विहरमाणे पुरादिगिंछाए जाव उदिण्णकामभोगे विहरिज्जा, से य परकमेज्जा, से य परिक्कममाणे माणुसेहिं कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा, माणुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अणितिया असासया सडणपडणविद्धंसणधम्मा उच्चारपासवणखेलसिंघाणवंतपित्तसुक्कसोणियसमुन्भवा दुरूवउस्सासनिस्सासा दुरूवमुत्तपुरिसपुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सं विप्पजहणिज्जा, संति उ8 देवा देवलोए ते णं तत्थ अण्णेसिं देवाणं देवीओ अभिमुंजिय २ परियारेति अप्पणा चेव अप्पाणं विउव्वित्ता परियारंति अप्पणिज्जियाओ देवीओ अभिजुंजिय २ परियारंति, जति इमस्स तवनियम जाव तं चेव सव्वं भाणिव्वं जाव वयमवि आगमेसाणं इमाइं एयारूवाइं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा विहरामो, सेत्तं साहू, एवं खलु समणाउसो ! निग्गंथे वा निग्गंथी वा निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति तं०-महिड्डिएसु जाव पभासमाणे, से णं देवे अण्णं देवं अण्णं देवीं तं चेव जाव पवियारेति, से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं तं चेव जाव पुमत्ताए पच्चायाति व किं ते आसगस्स सदति ?. तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजायस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा जाव पडिसुणेज्जा ?, हंता पडिसुणेज्जा, से णं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोइज्जा ?, णो इणठे समठे, अभविये णं से तस्स धम्मस्स सद्दहणताए०, से भवति महिच्छे जाव दाहिणगामिए नेरइए आगमेस्साए दुल्लभबोहिए यावि भवति, एवं खलु समणाउसो ! तस्स णियाणस्स इमेयारूवे पावफलविवागे जं णो संचा,ति केवलिपण्णत्तं धम्मं सहहेत्तए वा पत्तिइत्तए वा रोइत्तए वा ।५०। एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते तं चेव से य परक्कममाणे माणुस्सएसु कामभोगेसु निव्वेयं गच्छेज्जा, माणुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अणितिया तहेव जाव संति उद्धं देवा देवलोगंसि ते णं तत्थ णो अण्णठ देवं णो य अण्णाओ देवीओ अभिजुंजिय २ परियारेति अप्पणा चेव अप्पाणं विउव्वित्ता परियारेति ता जइ इमस्स तवनियम तं चेव सव्वं जाव से णं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा?, णो इणढे समठे, अण्णत्थरूई रूइमायाए से भवति, से जे इमे आरण्णिया आवसहिया गामणियंतिया किण्हुरहस्सिया णो बहुसंजया णो बहुपडिविरया सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु अप्पणा सच्चामोसाइं पउंजंता अहं ण हंतव्वो अण्णे हंतव्वा अहं न अज्जावेयव्वो अण्णे अज्जावेयव्वा अहं न परियावेयव्वो अण्णे परियावेयव्वा अहं न परिघेत्तव्यो अण्णे परिघेत्तव्वा अहं न उद्दवेयव्वो अण्णे उद्दवेयव्वा, एवामेव इत्थिकामेहिं मुच्छिया गढिया गिद्धा अज्झोववण्णा जाव कालमासे कालं किच्चा अण्णतराई आसुराई किब्बिसियाइं ठाणासं उववत्तारो भवंति, ततो मुच्चमाणा भुज्जो २ एलमूलयत्ताए पच्चायति, तं खलु समणाउसो! तस्स निदाणस्स जाव णो संचाएति केवलिपण्णत्तं धम्म सद्दहित्तए वा० ।५१। एवं खलु समणाउसो ! मएम धम्मे पण्णत्ते जाव माणुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा तहेव संति उड्ढे देवा देवलोयंसि अण्णं देवं च देवी अभिमुंजिय २ परियारेति णो अप्पणा चेव अप्पाणं विउव्विय २ परियारेति, जति इमस्स तवनियम तं चेव जाव एवं खलु समणाउसो! निग्गंथो वा निग्गंथी वा निदाणं किच्चा अणालोइयअप्पडिक्कंते जाव विहरति, से णं तत्थ अण्णे देवे अण्णाओ देवीओ अभिमुंजिय २ परियारेति, णो अप्पणा चेव अप्पाणं विउव्विय २ परियारेति, से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं तहेव वत्तव्वं णवरं हंता सद्दहिज्जा पतिएज्जा रोएज्जा से णं सीलवयगुणव्वयवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासाइं पडिवज्जेज्जा ?, नो इणढे समढे, से णं दंसणसावए भवति अभिगयजीवाजीवे जाव अट्रिमिंजपेमाणुरागरते जाव एस अद्वे० सेसे अणद्वे, से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूई वासाई समणोवासगपरियागं पाउणइ त्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तंएवं खलु समणाउसो! तस्स निदाणस्स इमेयारूवे पावफलविवागे जंणो संचाएइ सीलव्वयगुणवयवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासाइं पडिवज्जित्तए।५२। एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पं० तं चेव सव्वं जाव से य परक्कममाणे देवमाणुस्सएहिं 99999999श्री आगमगुणमजूषा - १५४१15 5 555555555555555OOR 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听CTC Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RORRO5555555555555555 (39/1) दसासूयक्खधं छेयसुत्तं (6) दसा - 10 [14] $$ $$ $22COS CSC明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明玩明明明明明明明明听听听听听听听C कामभोगेहिं निव्वेदं गच्छेज्जा, माणुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा जाव विप्पजहणिज्जा, दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा अणितिया असासया चला चयणधम्मा पुणरागणिज्जा पच्छा पुव्वं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जा, जति इमस्स तवनियम जाव आगमिस्साणं जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया जाव पुमत्ताए पच्चायंति, तत्थ णं समणोवासए भविस्सामि अभिगतजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे जाव फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेमाणे विहरिस्सामि, से तं साहू, एवं खलु समणाउसो ! निग्गंथो वा निग्गंथी वा निदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय जाव देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव आसगस्स सदति ?, तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्स जाव हंता सद्दहिज्जा, सेणं सीलवयजावपोसहोववासाश्य पडिसज्जेज्जा ?, हंता पडिवज्जेज्जा, सेणं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा ?, णो इणढे समढे, सेणं समणोवासए भवति अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरति, से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूणि वासाई समणोवासगपरियागं पाउणइ त्ता आबाधंसि उप्पण्णंसि वा अणुप्पन्नंसि वा बहूई भत्ताई पच्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेति त्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसुदेवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, एवं खलु समणाउसो! तस्स निदाणस्स इमेयारूवे पावफलविवागे जं णो संचाएति सव्वओ मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए / 53 / एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते जाव से य परक्कममाणे दिव्वमाणुस्सएहिं कामभोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा, माणुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा जाव विप्पजहणिज्जा, दिव्वावि खलु कामभोगा अधुवा जाव पुणरागमणिज्जा, जइ इमस्स तवनियम जाव वयमवि आगमेसाणं जाई इमाई कुलासं भवंति तं०- अंतकुलाणि वा पंतकुलाणि वा तुच्छकुलाणि वा दरिद्दकुलाणि वा किविणकुलाणि वा भिक्खागकुलाणि वा एएसिंणं अण्णतरंसि कुलंसि पुयत्ताए पच्चायंति, एस मे आयापरियाए सुणीहडे भविस्सति, से तं साहू, एवं खलु समणाउसो ! निग्गंथो वा निग्गंथी वा नियाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइयअपडिक्कंते सव्वं तं चेव से णं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइज्जा ?, हता पव्वइज्जा, से णं तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झेज्जा जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेजा ?, णो तिणढे समढे, से णं भवति जेमे अणगारा भगवंतो ईरियासमिया जाव बंभयारिए तेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणंति त्ता आबाहंसि उप्पण्णंसि वा जाव भत्ताई पच्चक्खाइति ?, हंता पच्चक्खाइंति, बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेति ?, हंता छेदेति०, छेदित्ता आलोइयपडिकंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, एवं समणाउसो ! तस्स नियाणस्स इमे एयारूवे पावफलविवागे जं णो संचाएति तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झेज्जा जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेज्जा / 54 / एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पण्णत्ते इणमेव निग्गंथे पावयणे जाव से परक्कमज्जा सव्वकामविरत्ते सव्वरागविरत्ते सव्वसंगातीते सव्वसिणेहातिकंते सव्वचारित्तपरिवुडे, तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दंसणेण जाव परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्नेज्जा, तते णं से भगवं अरहा भवति जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी सदेवमणुआसुराए जाव बहूई वासाईं केवलिपरियागं पाउणति त्ता अप्पणो आउसेसं आभोएति त्ता मत्तं पच्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेइत्ता तओ पच्छा चरमेहिं ऊसासनिस्सासेहि सिज्झति जाव सव्वदुक्खारमंतं करेति, तंएवं समणाउसो! तस्स अणिदाणस्स इमेयारूवे कल्लाणे फलविवागे जं तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव सव्वदुक्खाणंमंतं करेति।५५। तते णं ते बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमळू सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति त्ता तस्स ठाणस्स आलोएंति पडिक्कमंति जाव अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडित्तज्जति / 56 / तेण कालेणं० समणे भगवं महावीरे रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावियाणं बहूणं देवाणं बहूणं देवीणं सदेवमणुयासुराए परिसाए मज्झगए एवं आइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ आयातिठाणनामं अज्झयणं सअठ्ठ सेहउयं सकारणं ससुत्तं सअत्थं सतदुभयं सवागरणं जाव भुज्जो भुज्जो उवदंसेतित्ति बेमि।५७॥ आयातिस्थानाध्ययनं 10 // आयारदसाओ दशाश्रुतस्कंधच्छेदसूत्रं ) Mor5 55555555555555श्री आगमगुणमंजूषा - 15425555555555555555555555555FOOR ZO听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听23