Book Title: Agam 27 Bhattaparinna Chauttham Painnayam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स पू. आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः २७ भत्तपरिण्णा-चउत्थं पइण्णयं मुनि दीपरत्नसागर Date : // 2012 Jain Aagam Online Series-27 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | २७ गंथाणुक्कमो कमको विसय गाहा अणुक्कमो पिट्ठको मंगलं-नाणमहत्तण सासयासासय-सुखं ५-७ मरण-भेआइ ८-११ ८-११ आलोयणा, पायच्छित्त १२-२३ १२-२३ वय-सामाइय-आरोवणाइ २४-३३ २४-३३ आचरण-खामणा ३४-१७३ ३४-१७३ उवएस-आइ [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [1] [२७|भतपरिणा] Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नमः २७ भत्तपरिण्णा नमो नमो निम्मलदंसणस्स [8] ― नमिऊण महाइसयं महानुभावं मुनिं महावीरं । भणिमो भत्तपरिण्णं निअसरणट्ठा परट्ठा य ।। [२] भवगहणभमणरीणा लहंति निव्वुइसुहं जमल्लीणा । तं कप्पद्दुमकानन-सुहयं जिनसासनं जयइ ।। [३] मनुयत्तं जिनवयणं च दुल्लहं पाविऊण सप्पुरिसा सासयसुहिक्करसिएहिं नाणवसिएहिं होयव्वं ॥ [४] जं अज्जं सुहं भविणो संभरणीयं तयं भवे कल्लं । मग्गंति निरुवसग्गं अपवग्गसुहं बुहा तेणं ।। [५] नरविबुहेसरसोक्खं दुक्खं परमत्थओ तयं बिंति । परिणामदारूणमसासयं च जं ता अलं तेन ॥ [६] जं सासय-सुहसाहण-माणाआराहणं जिनिंदाणं । ता तीए जइयव्वं जिनवयण - विसुद्धबुद्धीहिं || [७] तं नाण- दंसणाणं चरित्त तवाण जिनपणीयाणं । [दीपरत्नसागर-संशोधितः] जं आराहणमिणमो आणाआराहणं बिंति || [८] पव्वज्जाए अब्भुज्जओऽवि आराहओ अहासुतं । अब्भुज्जयमरणेणं अविगलमाराहणं लहइ ।। [९] तं अब्भुज्जयमरणं अमरणधम्मेहिं वन्नियं तिविहं । भत्तपरिन्ना इंगिणि पाओवगमं च धीरेहिं ।। [१०] भत्तपरिन्नामरणं दुविहं सवियारमो य अविआरं । सपरक्कमस्स मुणिणो संलिहियतणुस्स सविआरं [११] अपरक्कमस्स काले अप्पहुप्पंतंमि जं तमवियारं । तमहं भत्तपरिन्नं अहापरिन्नं भणिस्सामि || [१२] धिइबलवियलाणमकाल मच्चुकलिआणमककरणाणं । निरवज्जमज्जकालिय-जईण जुग्गं निरुवसग्गं ।। [१३] पसम सुहसप्पिवासो असोअ-हासो सजीवियनिरासो । विसयसुह - विगयरागो धम्मुज्जम जायसंवेगो ।। [१४] निच्छिअमरणावत्थो वाहिग्घत्थो जई गिहत्थो वा । भविओ भत्तपरिन्नाइ नायसंसारनेग्गुन्नो || [१५] पच्छायावरपरद्धो पियधम्मो दोसदूसणसयहो । अरहइ पासथाई वि दोसदोसिल्लकलिओऽवि ।। चउत्थं पइण्णयं [2] ॐ ह्रीं नमो पवयणस्स ! || [ २७|भत्तपरिण्णा] Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-१६ [१६] वाहि-जर-मरणमयरो निरंतरुप्पत्तिनीर निबो । परिणामदारूणदुहो अहो दुरंतो भवसमुद्दो ।। [१७] इअ कलिऊण सहरिसं, गुरुपामूलेऽभिगम्म विनएणं । भालयलमिलिय-करकमल-सेहरो वंदिउँ भणइ ।। [१८] आरुहियमहं सुपुरिस ! भत्तपरिन्ना-पसत्थ-बोहित्थं । निज्जामएण गुरुणा इच्छामि भवन्नवं तरिठं ।। [१९] कारुण्णामय-नीसंद-सुंदरो सोऽवि से गुरु भणइ । आलोयण-वय-खामण-पुरस्सरं तं पवज्जेसु ।। [२०] इच्छामोत्ति भणिता भत्ति-बह्मान-सुद्ध-संकप्पो । गुरुणो विगयावाए पाए अभिवंदिऊँ विहिणा ।। [२१] सल्लं उद्धरिउमनो संवेगुव्वेय तिव्वसद्धाओ । जं कुणइ सुद्धिहेउं सो तेनाऽऽराहओ होइ ।। [२२] अह सो आलोयणदोसवज्जियं उज्ज्यं जहाऽऽयरियं । ___ बालुव्व बालकालाउ देइ आलोयणं सम्म ।। [२३] ठविए पायच्छिते गणिणा गणिसंपयासमग्गेणं । सम्ममनुमन्निय तवं अपावभावो पुणो भणइ ।। [२४] दारुणदुहज्जलयर नियरभीमभवजलहि-तारणसमत्थे । निप्पच्चवाय पोए महव्वए अम्ह उक्खिवसु ।। [२५] जइ वि स खंडियचंडो अक्खंडमहव्वओ जई जइ वि । पव्वज्जवठट्ठावण-मुट्ठावणमरिहइ तहावि ।। [२६] पणो सुकयाणत्तिं भिच्चा पच्चप्पिणंति जह विहिणा । जावज्जीवपइण्णाणत्तिं गुरुणो तहा सोऽवि ।। [२७] जो साइयारचरणो आउटियदंडखंडियवओ वा । तह तस्स वि सम्ममुवट्ठियस्स उट्ठावणा भणिया [२८] तत्तो तस्स महव्वय पव्वयभारोनमंतसीसस्स । सीसस्स समारोवइ सुगुरू वि महव्वए विहिणा ।। [२९] अह होज्ज देसविरओ सम्मत्तरओ रओ य जिनधम्मे । तस्स वि अणुव्वयाइं आरोविज्जंति सुद्धाइं ।। [३०] अनियाणोदारमनो हरिसवस-विसट्ठकंटय-करालो । पूएइ गुरु संघं साहम्मिय-माय भत्तीए || [३१] नियदव्वमपुव्व जिणिंदभवन जिनबिंब वरपइट्ठासु । वियरइ पसत्थपुत्थय सुतित्थ तित्थयरपूयासु ।। [३२] जइ सोऽवि सव्वविरई कयानुराओ विसुद्धमइ-काओ । छिन्नसयणाणुराओ विसयविसाओ विरत्तो अ ।। छिन्नर [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [3] [२७|भतपरिणा] Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-३३ ? | [३३] संथारयपव्वज्जं पव्वज्जइ सोऽवि नियम निरवज्जं । सव्वविरइ-प्पहाणं सामाइय-चरित्त-मारुहइ ।। [३४] अह सो सामाइयधरो पडिवन्नमहव्वओ य जो साहू । देसविरओ अ चरिमे पच्चक्खामि ति निच्छइओ ।। [३५] गुरुगुणगुरूणो गुरुणो पयपंकय नमियमत्थओ भणइ । भयवं! भत्तपरिन्नं तुम्हानुमयं पवज्जामि [३६] आराहणाइ खेमं तस्सेव य अप्पणो य गणिवसहो । दिव्वेण निमित्तेणं पडिलेहइ इहरहा दोसा ।। [३७] तत्तो भवचरिमे सो पच्चक्खाइ ति तिविहमाहारं । उक्कोसियाणि दव्वाणि तस्स सव्वाणि दंसिज्जा [३८] पासित्तु ताई कोई तीरं पत्तस्सिमेहिं किं मज्झ देसं च कोइ भोच्चा संवेगगओ विचिंतेइ ।। [३९] किं च तं नोवभुत्तं मे, परिणामासुई सुई । ___ दिट्ठसारो सुहं झाइ, चोयणेसाऽवसीयओ [४०] उयरमलसोहणट्ठा समाहिपानं मणुन्नमेसोऽवि । महुरं पज्जेअव्वो मंदं च विरेयणं खमओ ।। [४१] एल-तय-नाग-केसर-तमालपत्तं ससक्करं दुद्धं । पाऊण कढियसीयल समाहिपानं तओ पच्छा ।। [४२] महुरविरेयणमेसो कायव्वो फोप्फलाइदव्वेहिं । निव्वाविओ य अग्गी समाहिमेसो सुहं लहइ ।। [४३] जावज्जीवं तिविहं आहारं वोसिरइ इहं खवगो । निज्जवगो आयरिओ संघस्स निवेयणं कुणइ ।। [४४] आराहण-पच्चइअं खमगस्स य निरुवसग्ग-पच्चइअं । तो उस्सग्गो संघेण होइ सव्वेण कायव्वो ।। [४५] पच्चक्खाविंति तओ तं ते खमयं चठव्विहाहारं । संघसमुदायमज्झे चिइवंदनपुव्वयं विहिणा ।। [४६] अहवा समाहिहे सागारं चयइ तिविहमाहारं ।। तो पाणयं पि पच्छा वोसिरियव्वं जहाकालं ।। [४७] तो सो नमंतसिरसंघडत-करकमलसेहरो विहिणा | खामेइ सव्वसंघं संवेगं संजणेमाणो ।। [४८] आयरिय उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुल गणे य । जे मे केइ कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि ।। [४९] सव्वे अवराहपए खामेमि अहं खमेठ मे भयवं अहमवि खमामि सुद्धो गुणसंघायस्स संघस्स ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [4] [२७|भतपरिणा] Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-५० [५०] इय वंदन-खामण गरिहणाहिं भवसयसमज्जियं कम्मं । उवनेइ खणेण खयं मियावई रायपत्ति व्व ।। [५१] अह तस्स महव्वयसुट्ठिअस्स जिनवयणभावियमइस्स । पच्चक्खायाहारस्स तिव्व संवेग-सुहयस्स ।। [५२] आराहणलाभाओ कयत्थमप्पाणयं मुणंतस्स । कलुसकलतरणलट्ठिं अनुसळिं देइ गणिवसहो ।। [५३] कुग्गहपरुढमूलं मूला उच्छिंद वच्छ ! मिच्छत्तं । __ भावेसु परमततं सम्मतं सुत्तनीईए ।। [५४] भत्तिं कुणसु तिव्वं गुणानुराएण वीयरायाणं । तह पंचनमुक्कारे पवयणसारे रइं कुणसु ।। [५५] सुविहियहियनिज्झाए सज्झाए उज्जुओ सया होसु । निच्चं पंच महव्वयरक्खं कुण आयपच्चक्खं [५६] उज्झसु नियाणसल्लं मोहमहल्लं सुकम्मनिस्सल्लं | ___ दमसु य मुनिंदसंदोह निदिए इंदियमयंदे ।। [५७) निव्वाणसुहावाए विइन्न निरयाइदारुणावाए | ____ हणसु कसायपिसाए विसयतिसाए सइसहाए || [५८] काले अपहप्पंते सामन्ने सावसेसिए इण्हिं । मोह-महारिउ-दारण-असिलठिं सुणसु अनुसठिं ।। [५९] संसारमूलबीयं मिच्छत्तं सव्वहा विवज्जेहि । सम्मतं दढचित्तो होसु नमुक्कारकुसलो य ।। [६०] मगतिण्हियाहिं तोयं मन्नति नरा जहा सतण्हाए । सोक्खाई कुहम्माओ तहेव मिच्छत्त मूढमनो ।। [६१] नवि तं करेइ अग्गी नेव विसं नेव किण्हसप्पो य । जं कुणइ महादोसं तिव्वं जीवस्स मिच्छत्तं [६२] पावइ इहेव वसनं तुरुमिणिदत्तुव्व दारूणं पुरिसो । मिच्छत्तमोहिअमनो साहुपओसाउ पावाओ ।। [६३] मा कासि तं पमायं सम्मत्ते सव्वक्खनासणए । जं सम्मत-पइट्ठाइं नाण-तव-विरिअ-चरणाई ।। [६४] भावानुराय पेमानुराय सुगुणानुरायरत्तो य । धम्मानुरायरत्तो य होसु जिनसासने निच्च ।। [६५] दंसणभट्ठो भट्ठो न ह भट्ठो होइ चरणपब्भट्ठो । दंसणमनुपत्तस्स ह परियडणं नत्थि संसारे ।। [६६) दंसणभट्ठो भट्ठो दंसणभट्ठस्स नत्थि निव्वाणं । सिज्झंति चरणरहिआ दंसणरहिआ न सिज्झंति ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [5] [२७|भतपरिणा] Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-६७ ? || [६७] सुद्धे सम्मत्ते अविरओऽवि अज्जेइ तित्थयरनाम । जह आगमेसिभद्दा हरिकुलपहु सेणिआईया ।। [६८] कल्लाणपरंपरयं लहंति जीवा विसुद्धसम्मत्ता । सम्मइंसणरयणं नऽग्धइ ससुराऽसुरे लोए ।। [६९] तेलुक्कस्स पहुतं लभ्रूणवि परिवडंति कालेणं । सम्मत्तं पुण लड़े अक्खयसुक्खं लहइ मोक्खं ।। [७०] अरिहंत सिद्ध चेइय पवयण आयरिय सव्वसाहूसुं । तिव्वं करेसु भत्तिं तिगरणसुद्धेण भावेणं ।। [७१] एगा वि सा समत्था जिनभत्ती दुग्गइं निवारे । दुलहाई लहावेठं आसिद्धिं परंपर सुहाई ।। [७२] विज्जा वि भत्तिमंतस्स सिद्धिमुवयाइ होइ फलया य । किं पुन निव्वुइविज्जा सिज्झिहिइ अभत्तिमंतस्स। [७३] तेसिं आराहणनायगाण न करिज्ज जो नरो भत्तिं । धणियं पि उज्जमंतो सालिं सो ऊसरे ववइ ।। [७४] बीएण विना सस्सं इच्छड़ सो वासमब्भएण विना । आराहण-मिच्छंतो आराहय-भत्तिमकरंतो ।। [७५] उत्तमकुलसंपत्तिं सुहनिप्फतिं च जिनभत्ती । मणियारसेट्ठीजीवस्स दडुरस्सेव रायगिहे ।। [७६] आराहणापुरस्सरमणन्न-हियओ विसुद्धलेसाओ | संसारक्खयकरणं तं मा मुंची नमुक्कारं ।। [७७] अरिहंतनमुक्कारो इक्कोऽवि हविज्ज जो मरणकाले । सो जिनवरेहिं दिट्ठो संसारूच्छेअण-समत्थो ।। [७८] मिठो किलिट्ठकम्मो नमो जिणाणं ति सुकयपणिहाणो । कमलदलक्खो जक्खो जाओ चोरो त्ति सूलिहओ ।। [७९] भाव नमुक्कार विवज्जियाई जीवेण अकयकरणाई । गहियाणि य मुक्काणि य अनंतसो दव्व-लिंगाई ।। [८०] आराहणापडागागहणे हत्थो भवे नमोक्कारो । तह सुगइमग्गगमने रह व्व जीवस्स अप्पडिहो ।। [८१] अन्नाणीऽवि य गोवो आराहिता मओ नमुक्कारं । चंपाए सेट्ठिसुओ सुदंसणो विस्सुओ जाओ ।। [८२] विज्जा जहा पिसायं सुठुवउत्ता करेइ पुरिसवसं । नाणं हिययपिसायं सुठ्ठ-वउत्तं तह करेइ ।। [८३] उवसमइ किण्हसप्पो जह मंतेण विहिणा पउत्तेणं । तह हियय किण्हसप्पो सुठुवउत्तेण नाणेणं ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [6] [२७|भतपरिणा] Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-८४ ? || [८४] जह मक्कडओ खणमवि मज्झत्थो अच्छिउँ न सक्केइ । तह खणमवि मज्झत्थो विसएहिं विना न होइ मनो ।। [८५] तम्हा स उठ्ठिठमनो मनमक्कडओ जिनोवएसेणं । काउं सुत्तनिबद्धो रामेयव्यो सुहज्झाणे ।। [८६] सूई जहा ससुत्ता न नस्सई कयवरंमि पडिया वि ।। जीवोऽवि तह ससुत्तो न नस्सई गओ वि संसारे [८७] खंडसिलोगेहि जवो जइ ता मरणाउ रक्खिओ राया । पत्तो अ सुसामण्णं किं पुण जिनवुत्तसुतेणं [८८] अहवा चिलाइपुत्तो पत्तो नाणं तहाऽमरतं च । उवसम विवेग संवर पयसुमरणमित्त-सुयनाणो ।। [८९] परिहर छज्जीववहं सम्मं मनवयणकायजोगेहिं । जीवविसेसं नाउं जावज्जीवं पयत्तेणं ।। [९०] जह ते न पियं दुक्खं जाणिय एमेव सव्वजीवाणं । सव्वायरमुवउत्तो अत्तोवम्मेण कुणसु दयं ।। [९१] तुंगं न मंदराओ आगासाओ विसालयं नत्थि । जह तह जयंमि जाणसु धम्ममहिंसासमं नत्थि ।। [९२] सव्वे वि य संबंधा पत्ता जीवेण सव्वजीवेहिं । तो मारंतो जीवे मारइ संबंधिनो सव्वे ।। [९३] जीववहो अप्पवहो जीवदया अप्पणो दया होइ । ता सव्व जीव-हिंसा परिचत्ता अत्तकामेहिं ।। [९४] जावइयाई दुक्खाई हंति चउग्गइगयस्स जीवस्स । सव्वाइं ताई हिंसा-फलाई निठणं वियाणाहि || [९५] जंकिंचि सुहमुयारं पत्तणं पयइ सुंदरं जं च । आरुग्गं सोहग्गं तं तमहिंसाफलं सव्वं ।। [९६) पाणोऽवि पाडिहेरं पत्तो छूढोऽवि सुंसुमारदहे । एगेण वि एगदिनऽज्जिएणऽहिंसावयगुणेणं ।। [९७] परिहर असच्चवयणं सव्वंपि चठव्विहं पयत्तेणं । संजमवंता वि जओ भासादोसेण लिप्पंति ।। [९८] हासेण व लोहेण व कोहेण भएण वावि तमसच्चं । मा भणसु भणसु सच्चं जीवहियत्थं पसत्थमिणं [९९] विस्ससणिज्जो माया व होइ पुज्जो गुरूव्व लोयस्स | सयणु व्व सच्चवाई पुरिसो सव्वस्स होइ पिओ || [१००] होठ व जडी सिहंडी मुंडी वा वक्कली व नग्गो वा । लोए असच्चवाई भण्णइ पासंड-चंडालो [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [7] [२७|भत्तपरिण्णा] Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-१०१ [१०१] अलिअं सइंपि भणियं विहणइ बहआई सच्चवयणाई । पडिओ नरयंमि वसू एक्केण असच्च-वयणेणं ।। [१०२] मा कुणसु धीर ! बुद्धिं अप्पं व बहुं व परधनं घेत्तुं । दंतंतरसोहणयं किलिंचमितं पि अविदिन्नं ।। [१०३] जो पुन अत्थं अवहरइ तस्स सो जीवियं पि अवहरइ । जं सो अत्थकएणं उज्झइ जीअं न उण अत्थं ।। [१०४] तो जीवदयापरमं धम्म गहिऊण गिण्ह माऽदिन्नं । जिन-गणहरपडिसिद्धं लोगविरूद्धं अहम्मं च ।। [१०५] चोरो परलोगंमि वि नारय-तिरिएस लहइ दुक्खाई । मनुयतणे वि दीनो दारिद्दोवद्दुओ होइ ।। [१०६] चोरिक्कनिवित्तीए सावयपुत्तो जहा सुहं लहई । किढि-मोरपिच्छ-चित्तिय-गुट्ठी-चोराण चलणेसु ।। [१०७] रक्खाहि बंभचेरं बंभगुत्तीहिं नवहिं परिसुद्धं । निच्चं जिणाहि कामं दोसपकामं वियाणिता ।। [१०८] जावइया किर दोसा इहपरलोए दहावहा होति । आवहई ते सव्वे मेहुणसन्ना मनूसस्स ।। [१०९] रइ-अरइ-तरल-जीहा-जुएण संकप्प-उब्भड-फणेणं । विसय-बिलवासिणा मय-मेहण बिब्बोय-रोसेणं ।। [११०] कामभुयंगेण दट्ठा लज्जा-निम्मोय-दप्प-दाढेणं । नासंति नरा अवसा दुस्सह-दुक्खावह-विसेणं ।। [१९१] लल्लक्कनिरयवियणाओ घोरसंसारसायरूव्वहणं । संगच्छइ न य पिच्छइ तुच्छत्तं कामियसुहस्स ।। [११२] वम्महसरसयविद्धो गिद्धो वणिठ व्व रायपत्तीए । पाउक्खालयगेहे दुग्गंधेऽनेगसो वसिओ || [११३] कामासत्तो न मुणइ गम्माऽगम्म पि वेसियाणु व्व । सिट्ठी कुबेरदत्तो निययसुयासुरयरइरत्तो ।। [११४] पडिपिल्लिय कामकलिं कामग्घत्थासु मुयसु अनुबंधं । महिलासु दोसविस-वल्लरीसु पयइं नियच्छंतो ।। [११५] महिला कुलं सुवंसं पियं सुयं मायरं च पियरं च । विसयंधा अगणंती दुक्खसमुद्दम्मि पाडेइ ।। [११६] नीयंगमाहिं सुपओहराहिं उप्पिच्छ मंथरगईहिं । महिलाहिं निन्नयाहि व गिरिवरगुरूया वि भिज्जति [११७] सुठ्ठ वि जियासु सुठ्ठ वि पियासु सुठ्ठ वि परूढपेमासु । महिलासु भुअंगीसु व वीसंभं नाम को कुणइ ? || [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [8] [२७|भत्तपरिण्णा] Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-११८ ? || [११८] वीसंभनिब्भरं पि ह उवयारपरं परूढपणयं पि । कयविप्पियं पियं झत्ति निति निहणं हयासाओ ।। [११९] रमणीयदंसणाओ सोमालंगीओ गुणनिबद्धाओ । नवमालइमालाओ हरंति हिययं महिलियाओ ।। [१२०] किं तु महिलाण तासिं दंसणसुंदेरजनियमोहाणं । आलिंगणमइरा देइ वज्झमालाण व विनासं ।। [१२१] रमणीण दंसणं चेव सुंदरं होऊ संगमसुहेण । ____ गंधोच्चिय सुरहो मालईइ मलणं पुण विनासो ।। [१२२] साकेअपुराहिवई देवरई रज्जसोक्खपब्भट्ठो । पंगुलहेतुं छूढो बूढो य नईइ देवीए ।। [१२३] सोयसरी दुरियदरी कवडकुडी महिलिआ किलेसकरी । वइरविरोयणअरणी दुक्खखणी सुक्खपडिवक्खा ।। [१२४] अमुणियमण-परिकम्मो सम्म को नाम नासिङ तरइ । वम्महसरपसरोहे दिछिच्छोहे मयच्छीणं [१२५] घनमालाओ व दूरून्नमंतसुपओहराओ वड्दति । मोहविसं महिलाओ आलक्कविसं व पुरिसस्स ।। [१२६] परिहरसु तओ तासिं दिठिं दिट्ठीविसस्स व अहिस्स । जं रमणि-नयनबाणा चरितपाणे विनासेंति [१२७] महिलासंसग्गीए अग्गी इव जं च अप्पसारस्स । मयणं व मनो मुणिणोऽवि हंत सिग्घं चिअ विलाइ [१२८] जइ वि परिचत्तसंगो तवतन्यंगो तहा वि परिवडइ । महिलासंसग्गीए कोसाभवणूसिय व्व रिसी ।। [१२९] सिंगारतरंगाए विलासवेलाइ जोव्वणजलाए । पहसियफेणाए मुनी नारिनईए न बुड्डंति [१३०] विसयजलं मोहकलं विलासबिब्बोयजलयराइण्णं । मयमयरं उतिण्णा तारूण्णमहण्णवं धीरा ।। [१३१] अभिंतर-बाहिरए सव्वे गंथे तुमं विवज्जेहि । कयकारियऽनुमईहिं काय-मनो-वय जोगेहिं ।। [१३२] संगनिमित्तं मारेइ भणइ अलीयं करेइ चोरिक्कं | सेवइ मेण मुच्छं अप्परिमाणं कुणइ जीवो ।। [१३३] संगो महाभयं जं विहेडिओ सावएण संतेणं । पुत्तेण हिए अत्थंमि मणिवई कुंचिएण जहा ।। [१३४] सव्वग्गंथविमुक्को सीईभूओ पसंतचित्तो य । जं पावइ मुत्तिसुहं न चक्कवट्टी वि तं लहइ ।। ? || [दीपरत्नसागर-संशोधितः [9] [२७|भतपरिणा] Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-१३५ [१३५] निस्सल्लस्सेह महव्वयाई अक्खंड निव्वणगुणाई । उवहम्मति य ताई नियाणसल्लेण मुणिणोऽवि [१३६] अह रागदोसगब्भं मोहग्गब्भं च तं भवे तिविहं । धम्मत्थं हीनकुलाइ-पत्थणं मोहगब्भं तं ।। [१३७] रागेण गंगदत्तो दोसेणं विस्सभूइमाईया । मोहेण चंडपिंगलमाईआ हंति दिळंता ।। [१३८] अगणिय जो मुक्खसुहं कुणइ नियाणं असारसुहहेउं । सो कायमणिकएणं वेरूल्लिअमणिं पणासेड़ ।। [१३९] दुक्खक्खय कम्मक्खय समाहिमरणं च बोहिलाभो य । एयं पत्थेयव्वं न पत्थणिज्जं तओ अन्नं ।। [१४०] उज्झियनियाणसल्लो निसिभत्तनियत्ति समिइ गुत्तीहिं । पंचमहव्वयरक्खं कयसिवसुक्खं पसाहेइ ।। [१४१] इंदियविसयपसत्ता पडंति संसारसायरे जीवा । पक्खि व्व छिन्नपक्खा सुसील-गुण-पेहुण-विहूणा ।। [१४२] न लहइ जहा लिहंतो मुहिल्लियं अट्ठियं रसं सुणओ । सोसइ तालुयरसिअं विलिहंतो मन्नए सुक्खं ।। [१४३] महिलापसंगसेवी न लहइ किंचि वि सुहं तहा पुरिसो । सो मन्नए वराओ सयकायपरिस्समं सुक्खं [१४४] सुठुवि मग्गिज्जंतो कत्थ वि कयलीइ नत्थि जह सारो । इंदिअविसएसु तहा नत्थिं सुहं सुठ्ठ वि गविठं ।। [१४५] सोएण पवसियपिआ चक्खूराएण माहरो वणिओ । घाणेण रायपुत्तो निहओ जीहाए सोदासो ।। [१४६] फासिदिएण दुट्ठो नट्ठो सोमालियामहीपालो । एक्किक्केण वि निहया किं पुन जे पंचसु पसत्था [१४७] विसयाविक्खो निवडइ निरविक्खो तरइ दुतरभवोहं । देवी-देवसमागय-भाग्य-जअलं व भणिअं च ।। [१४८] छलिआ अवयक्खंता निरावयक्खा गया अविग्घेणं । तम्हा पवयणसारं निरावयक्षेण होयव्वं ।। [१४९] विसए अवियक्खंता पडंति संसारसायरे घोरे । विसएसु निरवयक्खा तरंति संसारकंतारं ।। [१५०] ता धीर ! घीइबलेणं दुदंते दमसु इंदिय-मइंदे । तेणक्खय-पडिवक्खो हराहि आराहण-पडागं ।। [१५१] कोहाईण विवागं नाऊण य तेसि निग्गहेण गुणे । निग्गिण्ह तेण सुपुरिस ! कसायकलिणो पयत्तेणं ? || [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [10] [२७|भतपरिणा] Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-१५२ ? || [१५२] जं अइतिक्खं दक्खं जं च सहं उत्तमं तिलोईए । तं जाणं कसायाणं वुढिक्खयहेऽयं सव्वं ।। [१५३] कोहेण नंदमाई निहया मानेन फरसुरामाई । मायाइ पंडरज्जा लोहेणं लोहनंदाई ।। [१५४] इय उवएसामयपाणएण पल्हाइअम्मि चितंमि । जाओ सुनिव्वुओ सो पाऊण व पाणियं तिसिओ ।। [१५५] इच्छामो अनुसळिं भंते ! भवपंक-तरण-दढलळिं । जं जह वुत्तं तं तह करेमि विनओणओ भणइ ।। [१५६] जड़ कह वि असुहकम्मोदएण देहम्मि संभवे वियणा । अहवा तण्हाईया परीसहा से उदीरिज्जा ।। [१५७] निद्धं महरं पल्हायणिज्जं हिययंगमं अणलियं च । तो सेहावेयव्वो सो खवओ पण्णवंतेणं ।। [१५८] संभरसु सुयण ! जं तं मज्झंमि चठव्विहस्स संघस्स | बूढा महापइण्णा अहयं आराहइस्सामि ।। [१५९] अरिहंत-सिद्ध-केवलिपच्चक्खं सव्व-संघ-सक्खिस्स | पच्चक्खाणस्स कयस्स भंजणं नाम को कुणइ [१६०] भालुंकीए करुणं खज्जतो घोरवियणतोऽवि । आराहणं पवन्नो झाणेण अवंतिसुकुमालो ।। TRE१] मग्गिल्लगिरिम्मि सकोसलोऽवि सिद्धत्थदडयओ भयवं । वग्घीए खज्जंतो पडिवन्नो उत्तमं अलैं ।। [१६२] गुठे पाओवगओ सुबंधुणा गोमए पलिवियम्मि । इज्झंतो चाणक्को पडिवन्नो उत्तमं अठं ।। [१६३] रोहीडगम्मि सत्तीहओ वि कुंचेण अग्गिनिवदइओ । तं वेयणमहियासिय पडिवन्नो उत्तमं अट्ठ ।। [१६४] अवलंबिऊण सत्तं तुमं पिता धीर ! धीरयं कुणसु । भावेसु य नेगुन्नं संसार-महा-समुदस्स ।। [१६५] जम्म-जरा-मरणजलो अणाइमं वसणसावयाइन्नो । जीवाण दुक्खहेऊ, कठें रूद्दो भवसमुद्दो ।। । [१६६] धन्नोऽहं जेण मए अनोरपारंमि भवसमुद्दम्मि । भवसयसहस्सदुलहं लद्धं सद्धम्मजाणमिणं ।। [१६७] एअस्स पभावेणं पालिज्जंतस्स सइ पयत्तेणं । जम्मतरेऽवि जीवा पावंति न दुक्ख-दोगच्चं ।। [१६८] चिंतामणी अऊव्वो एअमपुव्वो य कप्परुक्खुत्ति । एवं परमो मंतो एयं परमामयसरिच्छं ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [11] [२७|भतपरिणा] Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-१६९ [169] अह मणिमंदिर-सुंदर-फुरंत-जिनगुण-निरंजणुज्जोओ / पंचनमुक्कारसमे पाणे पणओ विसज्जेइ / / [170] परिणामविसुद्धीए सोहम्मे सुरवरो महिढीओ | आराहिऊण जायइ भत्तपरिन्नं जहन्नं सो / / [171] उक्कोसेणं गिहत्थो अच्चुयकप्पंमि जायए अमरो / निव्वाणसुहं पावइ साहू सव्वट्ठसिद्धिं वा / / [172] इय जोईसर जिनवीर भद्दभणियानुसारिणीमिणमो / भत्तपरिन्नं धन्ना पढंति निसणंति भावेति / / [173] सत्तरिसयं जिणाण व गाहाणं समयखित्तपन्नतं / आराहतो विहिणा सासयसुक्खं लहइ मोक्खं / / मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादितश्च "भत्तपरिण्णा पइण्णयं सम्मत्तं" 27 // "भत्तपरिणा-चउत्थं पइण्णयं" सम्मतं [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [12] [२७|भतपरिण्णा]