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नमो नमो निम्मलदंसणस्स बाल ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नम: पूज्य आनन्द-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर-गुरूभ्यो नम:
आगम-२२
पुष्पचूलिका आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद
अनुवादक एवं सम्पादक
आगम दीवाकर मुनि दीपरत्नसागरजी
[ M.Com. M.Ed. Ph.D. श्रुत महर्षि ]
आगम हिन्दी-अनुवाद-श्रेणी पुष्प-२२
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आगम सूत्र २२,उपांगसूत्र-११, 'पुष्पचूलिका'
अध्ययन/सूत्र
आगमसूत्र-२२- "पुष्पचूलिका' उपांगसूत्र-११- हिन्दी अनुवाद
कहां क्या देखे?
क्रम
विषय
पृष्ठ क्रम
विषय
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१
अध्ययन-१ से १०
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (पुष्पचूलिका) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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आगम सूत्र २२,उपांगसूत्र-११, 'पुष्पचूलिका'
अध्ययन/सूत्र
४५ आगम वर्गीकरण
सूत्र | क्रम
क्रम
।
आगम का नाम
आगम का नाम
०१ | आचार
पयन्नासूत्र-२
अंगसूत्र-१ अंगसूत्र-२
०२ सूत्रकृत् ०३ स्थान
| २५ । आतुरप्रत्याख्यान
महाप्रत्याख्यान
भक्तपरिज्ञा २८ । तंदुलवैचारिक
संस्तारक
२६ २७
अंगसूत्र-३
पयन्नासूत्र-३ पयन्नासूत्र-४ पयन्नासूत्र-५ पयन्नासूत्र-६
०४ | | समवाय
अंगसूत्र-४
०५
२९
भगवती ज्ञाताधर्मकथा
अंगसूत्र-५ अंगसूत्र-६ अंगसूत्र-७
पयन्नासूत्र-७
| उपासकदशा
अंगसूत्र-८
३०.१ गच्छाचार ३०.२ | चन्द्रवेध्यक
गणिविद्या देवेन्द्रस्तव वीरस्तव
३१
अगसूत्र-९
०८ | अंतकृत् दशा ०९ | अनुत्तरोपपातिकदशा १० प्रश्नव्याकरणदशा ११ विपाकश्रुत १२ | औपपातिक
३२
३३
३४
निशीथ
अंगसूत्र-१० अंगसूत्र-११ उपांगसूत्र-१ उपांगसूत्र-२
३५
बृहत्कल्प
राजप्रश्चिय
३६
व्यवहार
पयन्नासूत्र-७ पयन्नासूत्र-८ पयन्नासूत्र-९ पयन्नासूत्र-१० छेदसूत्र-१ छेदसूत्र-२ छेदसूत्र-३ छेदसूत्र-४ छेदसूत्र-५ छेदसूत्र-६ मूलसूत्र-१ मूलसूत्र-२ मूलसूत्र-२
१४
जीवाजीवाभिगम
उपागसूत्र-३
उपांगसूत्र-४
उपागसूत्र-५
उपांगसूत्र-६
३७ दशाश्रुतस्कन्ध ३८
जीतकल्प ३९ । महानिशीथ
आवश्यक ४१.१ ओघनियुक्ति ४१.२ पिंडनियुक्ति ४२ । दशवैकालिक
४०
१५ | प्रज्ञापना १६ सूर्यप्रज्ञप्ति १७ | चन्द्रप्रज्ञप्ति १८ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति
| निरयावलिका २० कल्पवतंसिका
पुष्पिका | पुष्पचूलिका
उपांगसूत्र-७
१९
उपागसूत्र-८
मूलसूत्र-३
४३
उत्तराध्ययन
उपांगसूत्र-९ उपांगसूत्र-१० उपांगसूत्र-११ उपांगसूत्र-१२ पयन्नासूत्र-१
४४
नन्दी
मूलसूत्र-४ चूलिकासूत्र-१ चूलिकासूत्र-२
वृष्णिदशा
अनुयोगद्वार
| चतुःशरण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (पुष्पचूलिका) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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आगम सूत्र २२,उपांगसूत्र-११, 'पुष्पचूलिका'
अध्ययन/सूत्र
10
[45]
06
मुनि दीपरत्नसागरजी प्रकाशित साहित्य आगम साहित्य
आगम साहित्य साहित्य नाम बक्स क्रम
साहित्य नाम मूल आगम साहित्य:
147 6 आगम अन्य साहित्य:1-1- आगमसुत्ताणि-मूलं print [49] -1- याराम थानुयोग
06 -2- आगमसुत्ताणि-मूलं Net
-2- आगम संबंधी साहित्य
02 -3- आगममञ्जूषा (मूल प्रत) [53] | -3- ऋषिभाषित सूत्राणि
01 आगम अनुवाद साहित्य:165 -4- आगमिय सूक्तावली
01 1-1-मागमसूत्रगुती सनुवाई
[47] | | आगम साहित्य- कुल पुस्तक
516 -2- आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद Net: [47] | -3- Aagamsootra English Trans. | [11] | -4- सामसूत्रसटी ४राती सनुवाई | [48] -5- आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद print [12]
अन्य साहित्य:3 आगम विवेचन साहित्य:171 1तवाल्यास साहित्य
-13 -1- आगमसूत्र सटीक
[46] 2 सूत्रात्यास साहित्य-2- आगमसूत्राणि सटीकं प्रताकार-11151]| 3
વ્યાકરણ સાહિત્ય
05 | -3- आगमसूत्राणि सटीकं प्रताकार-20
વ્યાખ્યાન સાહિત્ય
04 -4-आगम चूर्णि साहित्य [09] 5 उनलत साहित्य
09 | -5- सवृत्तिक आगमसूत्राणि-1 [40] 6 aoसाहित्य-6- सवृत्तिक आगमसूत्राणि-2 [08] 7 माराधना साहित्य
03 |-7- सचूर्णिक आगमसुत्ताणि [08] 8 परियय साहित्य
04 आगम कोष साहित्य:149 પૂજન સાહિત્ય
02 -1- आगम सद्दकोसो
તીર્થકર સંક્ષિપ્ત દર્શન -2- आगम कहाकोसो [01]| 11 ही साहित्य
05 -3-आगम-सागर-कोष:
[05] 12
દીપરત્નસાગરના લઘુશોધનિબંધ -4- आगम-शब्दादि-संग्रह (प्रा-सं-गु) [04] | આગમ સિવાયનું સાહિત્ય કૂલ પુસ્તક आगम अनुक्रम साहित्य:
09 -1- भागमविषयानुभ- (भूग)
02 | 1-आगम साहित्य (कुल पुस्तक) -2- आगम विषयानुक्रम (सटीक) 04 2-आगमेतर साहित्य (कुल -3- आगम सूत्र-गाथा अनुक्रम
दीपरत्नसागरजी के कुल प्रकाशन 60 ASमुनि हीपरत्नसागरनुं साहित्य AROO | भुनिटीपरत्नसागरनु आगम साहित्य [ पुस्त8 516] तेजा पाना [98,300] 2 भुनिटीपरत्नसागरनुं मन्य साहित्य [हुत पुस्त8 85] तना हुस पाना [09,270] मुनिहीपरत्नसागर संशसित तत्वार्थसूत्र'नी विशिष्ट DVD तेनास पाना [27,930] |
सभा। प्राशनोहुल 5०१ + विशिष्ट DVD हुल पाना 1,35,500
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मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (पुष्पचूलिका) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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आगम सूत्र २२, उपांगसूत्र-११, ‘पुष्पचूलिका’
[२२] पुष्पचूलिका उपांगसूत्र-११- हिन्दी अनुवाद
अध्ययन - १ - से- १०
अध्ययन / सूत्र
सूत्र - १
हे भदन्त ! यदि मोक्षप्राप्त यावत् श्रमण भगवान महावीर ने पुष्पिका नामक तृतीय उपांग का यह अर्थ प्रतिपादित किया है तो चतुर्थ उपांग का क्या अर्थ- कहा है ? हे जम्बू ! चतुर्थ उपांग पुष्पचूलिका के दस अध्ययन प्रतिपादित किए हैं, वे इस प्रकार हैं
सूत्र - २
श्रीदेवी, ह्रीदेवी, धृतिदेवी, कीर्तिदेवी, बुद्धिदेवी, लक्ष्मीदेवी, इलादेवी, सुरादेवी, रसदेवी और गन्धदेवी ।
सूत्र - ३
हे भदन्त ! श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त भगवान महावीर ने प्रथम अध्ययन का क्या आशय बताया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । गुणशिलक चैत्य था । श्रेणिक राजा था । श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे । परिषद् नीकली ।
उस काल और उस समय श्रीदेवी सौधर्मकल्प में श्री अवतंसक विमान की सुधर्मासभा में बहुपुत्रिका देवी के समान श्रीसिंहासन पर बैठी हुई थी उसने अवधिज्ञान से भगवान को देखा । यावत् नृत्य - विधि को प्रदर्शित कर वापिस लौट गई । यहाँ इतना विशेष है कि श्रीदेवी ने अपनी नृत्यविधि में बालिकाओं की विकुर्वणा नहीं की थी । गौतमस्वामी ने भगवान से पूर्वभव के विषय में पूछा ।
हे गौतम ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । गुणशिलक चैत्य था, राजा जितशत्रू था । उस राजगृह नगर में धनाढ्य सुदर्शन नाम का गाथापति था । उसकी सुकोमल अंगोपांग, सुन्दर शरीर वाली आदि विशेषणों से विशिष्ट प्रिया नाम की भार्या थी । उस सुदर्शन गाथापति की पुत्री, प्रिया गाथापत्नी की आत्मजा भूता नाम की दारिका थी । जो वृद्ध-शरीर और वृद्धकुमारी, जीर्णशरीर वाली और जीर्णकुमारी, शिथिल नितम्ब और स्तनवाली तथा वरविहीन थी ।
उस काल और उस समय में पुरुषादानीय एवं नौ हाथ की अवगाहनावाले इत्यादि रूप से वर्णनीय अर्हत् पार्श्व प्रभु पधारे । परिषद् नीकली । भूता दारिका इस संवाद को सूनकर हर्षित और संतुष्ट हुई और माता-पिता आज्ञा माँगी-‘हे मात-तात ! पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् यावत् शिष्यगण से परिवृत होकर बिराजमान हैं । आपकी आज्ञा-अनुमति लेकर मैं वंदना के लिए जाना चाहती हूँ । 'देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो, किन्तु विलम्ब मत करो । तत्पश्चात् भूता दारिका ने स्नान किया यावत् शरीर को अलंकृत करके दासियों के समूह के साथ अपने घर से नीकली । उत्तम धार्मिक यान- पर आसीन हुई ।
इस के बाद वह भूता दारिका अपने स्वजन परिवार को साथ ले कर राजगृह नगर के मध्यभागमें से नीकली । पार्श्व प्रभु बिराजमान थे, वहाँ आई । तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा कर के वंदना की यावत् पर्युपासना करने लगी । तदनन्तर पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्वप्रभु ने उस भूता बालिका और अति विशाल परिषद् को धर्मदेशना सुनाई । धर्मदेशना सूनकर और उसे हृदयंगम करके वह हृष्ट-तुष्ट हुई। फिर भूता दारिका ने वंदन - नमस्कार किया और कहा-' भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ-प्रवचन पर श्रद्धा करती हूँ- यावत् निर्ग्रन्थ-प्रवचन को अंगीकार करने के लिए तत्पर हूँ । हे भदन्त ! माता-पिता से आज्ञा प्राप्त कर लूँ, तब मैं यावत् प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहती हूँ ।' अर्हत् पार्श्व प्रभु ने उत्तर दिया-'देवानुप्रिये ! ईच्छानुसार करो ।'
इसके बाद वह भूता दारिका यावत् उसी धार्मिक श्रेष्ठ यान पर आरूढ हुई । जहाँ राजगृह नगर था, जहाँ मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (पुष्पचूलिका)" आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद”
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आगम सूत्र २२,उपांगसूत्र-११, 'पुष्पचूलिका'
अध्ययन/सूत्र
अपना आवास स्थान-वहाँ आई । रथ से नीचे उतर कर माता-पिता के समीप आकर दोनों हाथ जोड़कर यावत् जमालि की तरह माता-पिता से आज्ञा माँगी । तदनन्तर सुदर्शन गाथापति ने विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम भोजन बनवाया और मित्रों, ज्ञातिजनों आदि को आमंत्रित किया यावत् भोजन करने के पश्चात् शुद्ध-स्वच्छ होकर अभिनिष्क्रमण कराने के लिए कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर उन्हें आज्ञा दी-शीघ्र ही भूता दारिका के लिए सहस्र पुरुषों द्वारा वहन की जाए ऐसी शिबिका लाओ । तत्पश्चात् उस सुदर्शन गाथापति ने स्नान की हुई और आभूषणों से विभूषित शरीरवाली भूता दारिका को पुरुषसहस्रवाहिनी शिबिका पर आरूढ किया यावत् गुणशिलक चैत्य था, वहाँ आया और छत्रादि तीर्थंकरातिशयों को देखकर पालकी को रोका और उससे भूता दारिका को उतारा ।
इसके बाद माता-पिता उस भूता दारिका को आगे करके जहाँ पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्वप्रभु बिराजमान थे, वहाँ आए और तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा करके वंदन-नमस्कार किया तथा कहा-यह भूता दारिका हमारी एकलौती पुत्री है । यह हमें इष्ट-है । यह संसार के भय से उद्विग्न होकर आप देवानुप्रिय के निकट मुंडित होकर यावत् प्रव्रजित होना चाहती है । हम इसे शिष्या-भिक्षा के रूप में आपको समर्पित करते हैं । पार्श्व प्रभु ने उत्तर दिया-'देवानप्रिय ! जैसे सुख उपजे वैसा करो ।' तब उस भूता दारिका ने पार्श्व अर्हत् की अनुमति-सूनकर हर्षित हो, उत्तर-पूर्व दिशा में जाकर स्वयं आभरण-उतारे । यह वृत्तान्त देवानन्दा के समान कह लेना । अर्हत् प्रभु पार्श्व ने उसे प्रव्रजित किया और पुष्पचूलिका आर्या को शिष्या के रूप में सौंप दिया । उसने पुष्पचूलिका आर्या से शिक्षा प्राप्त की यावत् वह गुप्त ब्रह्मचारिणी हो गई।
कुछ काल के पश्चात् वह भूता आर्यिका शरीरबकुशिका हो गई । वह बारबार हाथ, पैर, शिर, मुख, स्तनान्तर, कांख, गुह्यान्तर धोती और जहाँ कहीं भी खड़ी होती, सोती, बैठती अथवा स्वाध्याय करती उस-उस स्थान पर पहले पानी छिड़कती और उसके बाद खड़ी होती, सोती, बैठती या स्वाध्याय करती । तब पुष्पचूलिका आर्या ने समझाया-देवानुप्रिये ! हम ईर्यासमिति से समित यावत् गुप्त ब्रह्मचारिणी निर्ग्रन्थ श्रमणी हैं । इसलिए हमें शरीरबकुशिका होना नहीं कल्पता है, तुम इस स्थान की आलोचना करो । इत्यादि शेष वर्णन सुभद्रा के समान जानना । यावत् एक दिन उपाश्रय से नीकल कर वह बिल्कुल अकेले उपाश्रय में जाकर निवास करने लगी । तत्पश्चात् वह भूता आर्या निरंकुश, बिना रोकटोक के स्वच्छन्दमति होकर बार-बार हाथ धोने लगी यावत् स्वाध्याय करने लगी।
तब वह भूता आर्या विविध प्रकार की चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त आदि तपश्चर्या करके और बहुत वर्षों तक श्रमणीपर्याय का पालन करके एवं अपनी अनचित अयोग्य कायप्रवत्ति की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किए बिना ही मरण करके सौधर्मकल्प के श्रीअवतंसक विमान की उपपातसभा में यावत् श्रीदेवी के रूप में उत्पन्न हुई, यावत् पाँच-पर्याप्ति से पर्याप्त हुई। इस प्रकार हे गौतम ! श्रीदेवी ने यह दिव्य देवऋद्धि, लब्धि और प्राप्ति की है। वहाँ उसकी एक पल्योपम की आयु-स्थिति है । वह आयुष्य पूर्ण करके 'महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगी और सिद्धि प्राप्त करेंगी।
इसी प्रकार शेष नौ अध्ययनों का भी वर्णन करना । मरण के पश्चात् अपने-अपने नाम के अनुरूप नामवाले विमानों में उनकी उत्पत्ति हुई। सभी का सौधर्मकल्प में उत्पाद हुआ । उनका पूर्वभव भूता के समान है। नगर, चैत्य, माता-पिता और अपने नाम आदि संग्रहणीगाथा के अनुसार है । सभी पार्श्व अर्हत् से प्रव्रजित हुई और वे पुष्पचूला आर्या की शिष्याएं हुई । सभी शरीरबकुशिका हुईं और देवलोक के भव के अनन्तर च्यवन करके महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होंगी। (२२)-पुष्पचूलिका-उपांगसूत्र-११ का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “ (पुष्पचूलिका)- आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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________________ आगम सूत्र २२,उपांगसूत्र-११, 'पुष्पचूलिका' अध्ययन/सूत्र नमो नमो निम्मलदंसणस्स પૂજ્યપાદ્ શ્રી આનંદ-ક્ષમા-લલિત-સુશીલ-સુધર્મસાગર ગુરૂભ્યો નમ: 22 ONNONRNA XOXOXOXOXXX XXXXXXXXXXXX XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX XXXXXXXXX OOOOOOXXXXXX XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX R पुष्पचूलिका आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद onomenone [अनुवादक एवं संपादक] आगम दीवाकर मुनि दीपरत्नसागरजी ' [ M.Com. M.Ed. Ph.D. श्रुत महर्षि ] 201 21188:- (1) (2) deepratnasagar.in मेला ड्रेस:- jainmunideepratnasagar@gmail.com भोपाल 09825967397 मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (पुष्पचूलिका) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 7