Book Title: Aagam Manjusha 31 Painnagsuttam Mool 08 Ganivijja
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः On Line -आगममंजूषा [३१] गणिविज्जा * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर M.Com. M.Ed., Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुणंतु जं जहा भणियं, इच्छता हियमप्पणो ॥१३७॥२०-८४६॥ गच्छाचारपइण्णयं समत्तं ७॥ अहं गणिविज्जापइण्णय बुच्छे बलावलविहिं नवपालविहिमुत्तमं विउपसत्यं । जिणव. यणभासियमिणं पवयणसत्यम्मि जह विट्ठ ॥१॥८४७आदिवस तिही नक्खत्ता करण गहदिवसया मुहुत्तं च। सउणवलं लावलं निमित्तबलमुत्तमं वावि॥२॥होराबलिआ दिवसा जुण्हा पुण दुचला उभयपक्खे। विवरीयं राईसु बलाचलविहिं बियाणाहि ॥३॥ दारं। पाडिवए पडिवत्ती नस्थि विवत्ती भणति वीआए। तइयाए अत्यसिद्धी विजयग्गा पंचमी भणिया ॥४॥ | जा एस सत्तमी सा उ बहुगुणा इत्थ संसओ नस्थि। दसमीइ पत्थियाणं भवंति निकंटया पंथा ॥५॥ आरुगमविग्घ खेमियं च इकारसिं वियाणाहि । जेऽविहु ९ति अमित्ता ते तेरसी पिट्ठो जिणइ ॥६॥ चाउहसि पन्नरसिं बजिजा अट्ठमि च नवमि च । छर्टि चाउस्थि वारसिं च दुण्डंपि पक्खाणं ॥७॥ पढमी पंचमि दसमी पन्मरसिकारसीविय तहेव। एएमय दिवसेसु सेहे निक्खमणं करे ॥८॥ नंदा भद्दा विजया तुच्छा पुन्ना य पंचमी होइ। मासेण य छवारे इकिकावत्तए नियए॥९॥ नंदे जए य पुन्ने, सेहनिक्खमणं करे। नंदे भद्दे सुभदाए, पुन्ने अणसणं करे ॥१०॥ दारं। पुस्सऽस्सिणिमिगसिररेवई य हत्थो तहेब चित्ता या अणुराहजिट्ठमूला नव नक्खत्ता गमणसिदा ॥१॥ मिगसिर महा यमूलो चिसाह तहचेव होइ अणुराहा। हत्धुत्तर रेवइ अस्सिणी य सवणे य नक्खते॥२॥ एएमय अदाणं पत्थाणं ठाणयं च कायई। जइय गहत्थं न चिट्ठइ संझामुकं च जइ होइ ॥३॥ उप्पन्नमत्तपाणो अद्धागम्मि सया उ जो होइ। फलपुष्फोवगवेओ गओवि खेमेण सो एइ ॥४॥ संझागय रविगय विइडेरं सम्गहं विलंपिं च । राहुगयं गहभिन्नं च बजए सपनक्खत्ते॥५॥ अत्यमणे संझागय रविगय जहियं ठिओ उ आइयो। विड्डेरमबदारिय सम्गह कूरगहठियं तु ॥६॥ आइचपिट्टओ से बिलंचि राहूहयं जहिं गहणं । मझेण गहो जस्स उ गच्छह त होइ गहभिन्न ॥७॥ संज्झागयम्मि कलहो होइ विवाओ चिलंपिनक्खते। विड्डेरे परविजओ आइयगए अनिवाणी ॥८॥ जं सग्गहम्मि कीरह नक्खते तत्थ निग्गहो होइ । राहुयम्मि य मरणं गहमिन्ने सोणि उम्गाले ॥॥ संझागयं राहुगयं आइचगयं च दञ्चलं रिक्ख । संझाइचउविमकं गहमकं चेव बलिया पस्सो हत्थो अभीई य, अस्सिणी भरणी तहा। एएमय रिक्खनु, पाओवगमणं करे॥१॥सवणेण धणिहाइ पुणनसूनवि करिज निक्खमण। सयभिसयपूसथंभे (हत्ये) विजारंभे पवित्तिज्जा ॥२॥ मिगसिर अदा पुस्सो तिन्नि धणिहा पुणवसू रोहिणी। पुस्सो य(पुधाई मूलमस्सेसा। हत्थो चित्ता यतहा दस बुढिकराई नाणस्स)॥३॥ पुणवसूणा पुस्सेण, सवणेण धणिट्ठया।एएहिं चउरिक्खेहि, लोयकम्माणि कारए॥४॥कित्तियाहि विसाहाहिमघाहिं भरणीहि या एएहिं चाउरिक्खेहिं, लोयकम्माणि वज्जए॥५॥ तिहिं उत्तराहिं रोहिणीहि, कुज्जा उसेहनिक्खमण । सेहोवट्ठावणं कुजा, अणुन्ना गणिवायए॥६॥ गणसंगहणं कुज्जा, गणहरं चेव ठावए । उम्गहं क्सहिं ठाणं, थाराणि पपत्तए॥७॥ पुस्सो हत्थो अमिई, अस्सिणी य तहेव याचत्तारि खिप्पकारीणी, कजारंभेसु सोहणा ॥८॥विजाणं धारण कुजा, भजोगेय साहए। सज्झायं च अणुन्नं च, उद्देसे य समुहिसे॥९॥अणुराहा रेखई चेव, चित्ता मिगसिरं तहा। मिऊनियाणि चत्तारि, मिउकम्म तेसु कारए॥३०॥ भिक्खाचरणमत्तार्ण, कुज्जा (२३२) ९२८ गणिविद्याप्रकीर्णकं आहा-9-10 मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गहणधारणं / संगहोवग्गहं चेव, बालवुड्ढाण कारए॥१॥ अदा अस्सेस जिट्ठा य, मूलो चेव चढत्यओ।गुरूणो कारए पडिमं, तवोकम्मं च कारए॥२॥ दिवमाणुसतेरिच्छे, उबसम्माहियासए। गुरू सुचरणकरणो, उम्गहोवग्गहं करे॥३॥ महा भरणि पुराणि, तिनि उग्गा वियाहिया। एएसुनवं कुजा, सब्भिनरबाहिरं चेव // 4 // तिन्नि सयाणि सट्ठाणि, तबोकम्माणि आहिया। Pउम्मनक्खत्तजोएसुं, तेसुमन्नतरे करे // 5 // किनिया य विसाहा य, उम्हा एयाणि दुन्नि उ। लिंपणं सीवणं कुजा, संथारुग्गहधारणं // 6 // उपकरणभंडमाईणं, विवायं चीवराणि य / उवगरणं विभागं च, आयरियाणं तु कारए॥ 7 // धणिट्ठा सयभिसा साई, सवणो य पुणवसू। एएसु गुरुसुस्सूसं, चेइयाणं च पूयणं // 8 // सज्झायकरणं कुज्जा, विजा विरहं च कारए। व वओबबावणं कुज्जा, अणुचं गणिवायए // 9 // गणसंगहर्ण कुज्जा, सेहनिमखमणं करे। संगहोवम्गहं कुजा, गणावच्छेइयं तहा // 40 // दारं 3 // वय पालवं च नह कोलवं च थिलोयणं गराई च। वणियं विट्ठी व तहा सुद्धपडिवए निसाईया // 1 // सउणि चप्पय नागं किंथुग्धं च करणा धुवा हुंति। किण्हचउदसिरति सउणी पडिचजए करणं // 2 // काऊण तिहिं चिगुण जुहगे सोहए न पुण काले। सत्तहिं हरिज भाग सेसं जं न भवे करणं // 3 // बवे य बालवे चेब, कोलवे बणिए तहा। नागे चउप्पए यावि, सेहनिक्खमणं करे॥४॥ बवे उवट्ठा वणं कुजा, अणुनं गणिवायए / सउणीमि य विट्ठीए, 'अणसणं तत्थ कारए // 5 // दारं। गुरुसुक्कसोमदिवसे, सेहनिक्खमणं करे। वओवट्ठावणं कुज्जा, अणुनं गणिवायए॥६॥रविभो. Mमकोणदिवसे, चरणकरणाणि कारए। तबोकम्माणि कारिजा, पाओवगमणाणि य॥७॥दार। रुद्दो उमुहुत्ताणं आई छत्रवइअंगुलच्छाओ। सेओ उहवइ सट्ठी वारसमित्तो हवइ जुज्झो R // 8 // छञ्चेव य आरभडो सोमित्तो पंचअंगुलो होइ / चनारि य वइरिजो दुबेव य सा वसू होइ॥९॥ परिमंडलो मुहुत्तो असीवि मसंतिते ठिए होइ / दो होइ रोहणो पुणवलो य चउरंगलो होइ॥५०॥ विजओ पंचंगुलिओ उचेव य नरिओ हवह जुत्तो। वरुणो यहबद वारस अजमदी यहवह पारस अजमदीवा हवइ सट्ठी॥१॥छनउडअंगलाई एए दिवसमहत्ता वियाहिया। दिवस. मुहत्तगईए छायामाणं मुणेयर्व // 2 // मिने नंदे तह सुट्ठिए य, अभिई चंदे तहेव या। वरुणम्गिवेसईसाणे, आणंदे विजए इय // 3 // एएसु मुहुत्तजोएसु, सेहनिक्खमणं करे / वउबट्टावणाई च, अणुना गणिवायए॥४॥ बंभे वलए चाउम्मि, उसमें वरुणे नहा। अणसणपाउवगमणं, उत्तमर्दु च कारए // 5 // दारं / / पुजामधिजसउणेसु, सेहनिक्वमणं करे। थीनामेसु सउणेसुं, समाहिं कारए विऊ // 6 // नपुंसएसु सउणेसु, सबकम्माणि वजए। वामिस्सेसु निमित्तेसु, सवारंभाणि वज्जए // 7 // तिरिय पहिरतेसु, अद्धाणगमणं करे। पुफियफलिए बच्छे, सज्झायं करणं करे // 8 // दुमखंधे बहिरतेसु, सेहुवट्ठावणं करे। गयणे वाहतेसु, उत्तमढे तु कारए // 9 // बिलमूले वाहरतेसु, ठाणं तु परिगिण्हए। उप्पायम्मि वयंतेसु, सउणेसु मरणं भवे // 60 // पकमतेसु सउणेसु, हरिसं तुट्टिच वागरे / दारं / चलरासिविलम्गेसु, सेहनिक्खमणं करे // 1 // थिररासिविलग्गेसु, वओवट्ठावणं करे। सुयक्खंधाणुन्नाओ, उदिसे य समु. दिसे // 2 // बिसरीरविलग्गेसु, सज्झायकरणं करे। रविहोराविलम्गेसु, सेहनिक्खमणं करे // 3 // चंदहोराविलग्गेसु, सेहीणं संगहं करे। सुण्णदिकोणलग्गेसु, चरणकरणं तु कारए // 4 // कृणदिकोणलग्गेसु, उत्तमई तु कारए। एवं लम्गाणि जाणिज्जा, दिकोणेसुण संसओ // 5 // सोमराहविलम्गेसु, सेहनिक्खमणं करे। कूरगविलम्गेसु, उत्तमदं तु कारए // 6 // राहुकेउ बिलग्गेसु, सवकम्माणि वजए। बिलग्गेमु पसन्थेसु, पसत्थाणि उ आरभे // 7 // अप्पसत्येसु लमोसु, सबकम्माणि वजए। बिलग्गाणि उ जाणिज्जा, गहाण जिणभासिए // 8 // दारं। 'न निमित्ता विवजंति, न मिच्छा रिसिभासियं। निमित्तेणं दुहिदेणं, आदेसो उ विणस्सइ // 9 // सुदिटेण निमित्तेणं, आदेसो न विणस्सइ। जा य उपाइया भासा, जं च पनि बाळ्या // 7 // जंवित्थीओ पभासंति, नस्थि तस्स वइकमो / तजाएण य तज्जायं, तण्णिभेण य वचिभं // 1 // तारूवेण य तारू, सरिसं सरिसेण निहिसे / श्रीपुरिसनिमित्तेसु, सेहनिक्समणं करे // 2 // नपुंसकनिमित्तेसु, सबकजाणि वजए। वामिस्सेसु निमित्तेसु, सधारंभे विवजए॥३॥ निमित्ते कित्तिमे नस्थि, निमित्ते भावि सुज्झए / जेण सिद्धा वियाणंति, निमितुष्पायलक्खणं // 4 // निमिनेसु पसन्थेसु, दढेसु बलिएसु य / सेहनिक्खमणं कुजा, वउवट्ठावणाणि य॥५॥ गणसंगहणं कुज्जा, गणहरे इत्थ वा यए / सुयक्खंधाणुनाओ, अणुन्ना गणिवायए॥६॥ निमित्तेसुऽपसत्थेसु, सिढिलेसुऽबलेसु य। सबकजाणि बज्जिजा, अप्पसाहरणं करे // 7 // पसत्थेसु निमित्तेसु. पसत्थाणि सयाऽऽरभे। अप्पसस्थनिमिनेसु, सबकजाणि वजए॥८॥ दिवसाओ तिही बलिओ तिहीउ बलियं तु सुबई रिक्खं / नक्खत्ता करणमाहंसु करणाउ गहदिणा चलिणी // 9 // क्खत्ता करणमाहंस करणाउ गहदिणाबलिणो॥९॥ गहदिणाओ महत्ता. महत्ता सउणो बन्ली। सर. णाओ बलवं लग्गं, तओ निमित्तं पहाणं तु // 8 // विलगाओ निमित्ताओ, निमित्तबलमुत्तमं / न त संविजए लोए, निमित्ता जपलं भवे // 1 // एसो बलाबलविही समासओ कितिओ सुविहिएहिं / अणुओगनाणगेज्मो नायवो अप्पमत्तेहिं / / 8 / / 20-928 // गणिविजापइपण समत्तं 8 // RE- श्री देवेन्द्रस्तवप्रकीर्णकम् अमरनरवदिए वंदिऊण उस