Book Title: Aagam 23 VRUSHHNI DASHAA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' [२३] श्री वृष्णिदशा (उपाग)सूत्रम् नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः । “वृष्णिदशा” मूलं एवं वृत्ति: [मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्तिः] तः [आट्य संपादक: - पूज्य अनुयोगाचार्य श्री दानविजयजी गणि म. सा. ] (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.) | 15/01/2015, गुरुवार, २०७१ पौष कृष्ण १० jain_e_library's Net Publications मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित. आगमसूत्र-[२३], उपांग सूत्र[२] "वृष्णिदशा" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्तिः ~0~ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२३) “वृष्णिदशा” - उपांगसूत्र-१२ (मूलं+वृत्तिः ) अध्य यनं [-]----------- ------- मूलं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [२३], उपांग सूत्र - [१०] "वृष्णिदशा" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: SO ENTE + R T 9 ++ + -+-+-+ -+-+-+ -+ 16 i nyasiseREYSANERIAwerSTREYSINESRAEIGAMESHEJAROO श्रीचन्द्रसूरिविरचितवृत्तियुतं प्रत सूत्राक श्री वृष्णिदशासूत्रम् P - S/3omerserseas --- ARATIOGRAMMERINEERIAGAIMEROINSRY - - न्यायाम्भोनिधिश्रीमद्विजयानन्दसूरिपुरन्दरशिष्यमहोपाध्यायश्रीमदुधीरविजयशिष्य रन-अनुयोगाचार्यश्रीमहानविजयगणिभिः संशोधितम् रु. ५०१) श्रेष्टि हरचंद सोमचंद ह. नेमचंदभाइ मु० सुरत पतस्य श्राद्धस्य द्रव्यसाहारयेन, प्रकाशयित्री श्रीआगमोदयसमितिः इदं पुस्तकं अमदाबाद(राजनगर मध्ये शाह वेणीचंद सूरचंद श्री आगमोदय समिति.सैकटरी इत्यनेन युनियनपीन्टिगप्रेसमध्ये टंकशालायां शाह मोहनलालचीमनलालद्वाराप्रकाशितम् । षीरसंवत् २०४८, पण्य रु-१२-० प्रतयः ७५० विक्रमसंवत् १९७८. सन १९२२. MEMOIRATRIOMMEMATURMEETHAKTIMALLAINEERINATREAKIMAMSIRAMEkmerekNSkOMMEXIMMENamastotosiOM G+ ++ +- +- + - + -+- + -+-+- -+ -+- +-+-+ -वार HVARANETSMARTSANETSAMLISARESMARTHAEINARETWAREISAIRSANETSARKETINResetSTRAININETSARETIREMARATHIMIRZU RISTMETRORISASTEREShewereeti दीप अनुक्रम FO वृष्णिदशा-उपाङ्गसूत्रस्य मूल “टाइटल पेज" ~1~ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलाका १+१ मूलांक: ००१ अध्ययन [१] निषध पृष्ठांक: ००४ वृष्णिदशा- उपाङ्ग सूत्रस्य विषयानुक्रम मूलांक: ००४ अध्ययनं [२-१२] मायनि आदि ११ पृष्ठांक: ~2~ ०१० मूलांक: दीप- अनुक्रमाः ४ अध्ययन मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [२३], उपांग सूत्र [१२] "वृष्णिदशा" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्तिः पृष्ठांक: Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ['वृष्णिदशा' मूलं एवं वृत्तिः] इस प्रकाशन की विकास- गाथा यह प्रत सबसे पहले “निरयावलिका” के नामसे सन १९२२ (विक्रम संवत १९७८) में आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादकमहोदय थे पूज्यपाद अनुयोगाचार्य श्री दानविजयजी गणि महाराज साहेब | इसमे 'निरयावलिका, कल्पवतंसिका, पुष्पिता, पुष्पचुलिका, वृष्णिदशा' पांच उपांग थे. - इसी प्रत को फिर से दुसरे पूज्यश्रीओने अपने-अपने नामसे भी छपवाई, जिसमे उन्होंने खुदने तो कुछ नहीं किया, मगर इसी प्रत को ऑफसेट करवा के, अपना एवं अपनी प्रकाशन संस्था का नाम छाप दिया. जिसमे किसीने पूज्यपाद् सागरानंदसूरिजी के नाम को आगे रखा, और अपनी वफादारी दिखाई, तो किसीने स्वयं को ही इस पुरे कार्य का कर्ता बता दिया और संपादकपूज्यश्री तथा प्रकाशक का नाम ही मिटा दिया | * हमारा ये प्रयास क्यों? * आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५- आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की [पूर्वाचार्य] पूज्य श्री के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसमे बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर अध्ययन और मूलसूत्र के क्रमांक लिख दिए, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा अध्ययन एवं सूत्र चल रहे है उसका सरलता से ज्ञान हो शके, | बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके । हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढते हुए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रो के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस [-] दिए है और जहां गाथा है वहाँ ||-|| ऐसी दो लाइन खींची है या फिर गाथा शब्द लिख दिया है । हमने एक अनुक्रमणिका भी बनायी है, जिसमे प्रत्येक अध्ययन आदि लिख दिये है और साथमें इस सम्पादन के पृष्ठांक भी दे दिए है, जिससे अभ्यासक व्यक्ति अपने चहिते अध्ययन या विषय तक आसानी से पहुँच शकता है । अनेक पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट भी लिखी है, जहां उस पृष्ठ पर चल रहे खास विषयवस्तु की, मूल प्रतमें रही हुई कोई-कोई मुद्रण-भूल की या क्रमांकन-भूल सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है | अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसि को मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। ........मुनि दीपरत्नसागर....... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. ....आगमसूत्र - [२३], उपांग सूत्र - [१२] "वृष्णिदशा" मूलं एवं चन्द्रसूरि- विरचिता वृत्तिः ~3~ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२३) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [1-3] “वृष्णिदशा” - उपांगसूत्र - १२ ( मूलं + वृत्तिः ) अध्ययनं [१] मूलं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [२३], उपांग सूत्र - [१२] "वृष्णिदशा" मूलं एवं चन्द्रसूरि - विरचिता वृत्तिः दिसा ५. व जणं भंते उबवेवओ० उर्वगाणं चउत्थस्स वग्गस्स पुप्फचूलाणं अयमट्टे पण्णत्ते, पंचमरस णं भंते । वन्गस्स गाणं वन्हिदसाणं समणेणं भगवया जाव संपत्तेर्ण के अहे पणते ? एवं खलु जंबू ! समणं भगवया महावीरेणं जाब दुबालस अज्झयणा पष्णता, तं जहा निसढे ? माअनि २ वह ३ ४ पगता ५ जुत्ती ६ दसरहे ७ दढरहे ८ य । महाधणू ९ सत्तणू १० दसघणू ११ नामे यणू १२ य ॥ १ ॥ जइ णं भंते ! समर्पणं जाव दुबालस अण्झयणा पण्णत्ता, पढमरस णं भंते ! उक्खेवओ। एव खलु जंबू ! तेणं कालेणं २ वारवई नाम नगरी होत्था दुवालसजोयणायामा जाव पचवखं देवलोयभूया पासादीया दरिसणिजा अभिरुवा पडिख्वा । तीसे णं बारबईए नगरीए बहिया उत्तरपुरच्छि दिसीभाए एत्थ णं रेवए नाम पहए होत्था, मुंगे गगणतलम पुलिस सिहरे नाणादिहरु गुच्छ गुम्मलतावल्लीपरिगताभिरामे हंसमियमयूरकोंच सारसका गमयणसाला कोइल कुलोव घेते तडकडग वियर उम्मरपाल सिहर पउरे अच्छरगणदेवसंघ विज्जाह र मिहुणसंनिचिन्ने निरयणए दसारबरवीरपुरिसते लोकबलबगाणं सोमे भए पियदसणे सुरुये पासादीए जान पटिये । तरस णं वयगरस पहयरस अदूरसाते एत्थ णं नंदणवणे नामं उज्जाणे होत्था, सवोउयपुरफ जान पञ्चवर्गे वदिशाभिधाने द्वादशाध्ययनानि प्रज्ञतानि निसढे इत्यादीनि । प्रायः सर्वोऽपि सुगमः पश्चमवर्गः, नवरं १ निखेव प्र For Penal Use On अत्र अध्ययन- १- 'निषध' आरभ्यते [ मूलसूत्र १-३] ~4~ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२३) “वृष्णिदशा” - उपांगसूत्र-१२ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययनं [१] -------- ------ मूलं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [२३], उपांग सूत्र - [१२] "वृष्णिदशा" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: निरया बलिका. ॥३९॥ ACM दरिसणिज्जे । तत्थ णं नंदणवणे उज्जाणे सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खायतणे होत्था चिराईए जाव बहुजणो आगम्म अञ्चेति सुरष्पियं जक्खाययणं । से णं सुरप्पिए जक्खाययणे एगेणं महता वगसंडेणं सबओ समंता संपरिक्खित्ते जहा पुण्णभद्दे जाव सिलावट्टते । तत्य णं बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया होत्था जाव पसासेमाणे विहरति । से णं तस्य समुद्दविजयपामोक्खाण दसह दसाराण, बलदेवपामोक्खाणं पंचण्ई महावीराणं, उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसह राईसा. हस्सीणं, पज्जुण्णपामोक्खाणं अबुट्टाणं कुमारकोडीणं, संबपामोक्खाणं सहीए दुइंतसाहस्सीणं, वीरसेणपामोक्खाणं एकवीसाए वीरसाहस्सीणं, रुप्पिणिपामोक्खाण सोलसहं देवीसाहस्सीणं, अणंगसेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं, अण्णेसिं च बहूर्ण राईसर जाव सत्यवाहपभिईणं वेयडगिरिसागरमेरागस्स दाहिणभरहस्स आहेबच्चं जाव विहरति । तत्य ण बारवईए नयरीए बलदेवे नामं राया होत्था, महया जाव रज्जं पसासेमाणे विहरति । तस्स ण बलदेवस्स रणो रेवई नामं देवी होत्या सोमाला जाव विहरति । तते णं सा रेवती देवी अण्णदा कदाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि जाव सीह मुमिणे पासित्ता ण, एवं सुमिणदसणपरिकहणं, कलातो जहा महाबलस्स, पंनासतो दातो कृष्णासरायकण्णगाणं एगदिवसेणं पाणि नवरं निसहे नाम जाव उर्षि पासाद विहरति । तेणं कालेणं २ अरहा अरिदृनेमी आदिकरे दसवणूई वण्णतो जाव समोसरिते, परिसा निग्गया । तते णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लडढे 'चिराईए' ति चिरः-चिरकाल आदिनिवेशो यस्य तश्विरादिकम् । 'महय' त्ति 'महया हिमवंतमलयमंदरमहिंदसारे' इत्यादि रश्यम्, तत्र महाहिमवदादयः पर्वतास्तवत्सारः प्रधानो यः। 界本島之本宫本字之本字於政 अनुक्रम [१-३] ~5~ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२३) “वृष्णिदशा” - उपांगसूत्र-१२ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययनं [१] -------- ------ मूलं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [२३], उपांग सूत्र - [१२] "वृष्णिदशा” मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: FET समाणे हेढ़तो एतो य कुटुंबियपुरिसे सद्दावेति २ एवं वदासो-खिप्पामेव देवाणुप्पिया ! सभाए मुहम्माए. सामुदाणिय भेरि तालेहि । तते णं से कुटुंबियपुरिसे जाव पडिमुणित्ता जेणेव सभाए मुहम्माए सामुदाणिया मेरी तेगेच उवा०२ तं सामुदाणियं भेरि महता २ सद्देणं तालेति । तते णं तीसे सामुदाणियाए भेरीए महता २ सद्देण तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा देवीओ उग भाणियवाओ जाव अणंगसेणापामोक्खा अणेगा गणिया सहस्सा भन्ने य बहवे राईसर जाव सत्यवाहणभितितो हाया जाव पायच्छित्ता सदालंकारविभूसिया जहाविभवइडिसकारसमुदएणं अप्पेगइया हयगया जाब पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवा० २ करतल. कई वासुदेवं जएणं विजएणं बद्धावेति । तते णं से काहे वासुदेवे कोडंचियपुरिसे एवं बयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेकहत्थि कप्पेह हयगयरहपवर जाव पञ्चपिणंति । तते णं से कण्हे वासुदेवे मज्जणघरे जाव दुरूढे अट्ठमंगलगा जहा कूणिए सेयवरचामरेहि उद्धधमाणेहि २ समुहविजयपामोक्खेहि दसहि दसारेहि जाव सत्थवाहप्पभितीहि सद्धि संपरिचुडे सविडीए जाव रवेणं बारवई नगरि मज्झं मझेणं सेसं जहा कूणिभी जार पज्जुवासइ । तते णं तस्स निसढस्स कुमारस्स उपिपासायवरगयस्स तं महता जण सई च जहा जमालो जाव धम्म सोचा निसम्म चंदइ नमसइ २ एवं वदासी-सद्दहामि गं भते निगडं पारयणं जहा चित्तो जाव सावगधम्म पडिवज्जति २ पडिगते । तेण कालेणं २ अरहा अरिट्टनेमिस्स अंतेवासी वरदत्ते नाम अणगारे उराले जाव विहरति । ततेणं से वरदत्ते हदुतो य पुरिसे. अनुक्रम [१-३] SAREnimaland For Pare Mediurary.orm ~6~ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२३) “वृष्णिदशा” - उपांगसूत्र-१२ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययनं [१] -------- ------ मूलं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [२३], उपांग सूत्र - [१२] "वृष्णिदशा" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: निरया॥४०॥ * * अणगारे निसद कुमारं पासति २ जातसद्धे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-अहो ण मते ! निसढे कुमारे इडे इहरूबे कते कंतरूवे एवं पिए मणुन्नए मणामे मणामरूपे सोमे सोमरूवे पियदसणे सुरूवे, निसढे भंते ! कुमारे णे अयमेयारूवे माणुयइडी किणा लद्धा किणा पत्ता पुच्छा जहा मूरियाभरस, एवं खलु वरदचा ! तेणं कालेणं २ इहेव जंबुद्दीवे २ भारहे वासे रोहीडए नाम नगरे होत्था, रिद्ध, मेहवन्ने जाणे मणिदत्तरस जवखरस जवखाययणे । तत्य ण रोहीडए' नगरे महब्बले नाम राया, पउमावई नामं देवी, अनया कदाइ तसि तारिसगंसि सय णिजसि सीह मुमिणे, एवं जम्मणं भाणियत्वं जहा महब्बलस्स, नवरं वीरंगतो नाम बत्तीसतो दातो बत्तासाए रायवर कन्नगाणं पाणि जाव ओगिज्जमाणे २ पाउसवरिसारत्तसरयहेमंत गिम्हवसते छपि उऊ जहाविभवे समाणे २ इट्ट सह जाब विहरति । तेणं कालेणं २ सिद्धत्या नाम आयरिया जातिसंपन्ना जहा केसी, नवरं बहुस्मुथा बहुपरिवारा जेणेव राहीरए नगरे जेणेव मेहवो उज्जाणे जेणव मणिदत्तस जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागते, अहापटिस्वं जाव विहरति, परिसा निग्गया । तते णं तस्स वारंगतस कुमारर उप्पिं पासायवरगतस्स त महता जणसई च जहा जमाली निगतो धाम सोचा जे नवरं देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुरछामि जहा जमाली तहेब निवखंतो जाव अणगारे जाते जाव गुत्तभयारी । तते णं से वीरंगते अणगारे सिद्धत्याण आयरियाणं अंतिए सामाइयमादियाई जाव एक्कारस अंगाई अहिज्जति २ बहूई जाव चउत्थ जाव अप्पाणं भावमाणे बहुपडिपुष्णाई पणयालीसवासाई सामनपरियाय पाउणत्ता दोमासियाए सलेहणाए अत्ताण झूसित्ता सवीसं भत्तसयं अणसणाए छेदिता आलोइय समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा बंपलोए कप्पे मणोरमे विमाणे देवचाए अनुक्रम [१-३] 4 ॥४०॥ -%2500 METRana For Pare Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२३) “वृष्णिदशा” - उपांगसूत्र-१२ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययनं [१] -------- ------ मूलं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [२३], उपांग सूत्र - [१२] "वृष्णिदशा” मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: उववन्ने । तत्य णं अत्थेगइयाणं देवाणं दससागरोबमाई लिई पन्नता । तस्थ णं वीरंगयरस देवरस दससागरोबमाई लिई पणत्ता। सेणं वीरंगते देवे तातो देवलोगाओ आउवखएणं जाव अतरं चयं चइत्ता इहेव बारवईए नयरीए बलदेवस्स रनोरेवईए देवीए कुञ्छिसि पुत्तत्ताए उबबन्ने । तते णं सा रेवतो देवी तंसि तारिसगंसि सयणिज्ज॑सि सुमिणदंसणं जाव उपि पासायवरगते विहरति । तं एवं खलु वरदत्ता ! निसडेणं कुमारेणं अयमेयारूवे ओराले मणुयइट्टी लद्धा ३१ पभू ण भंते ! निसढे कुमारे देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पवइत्तए ! हवा पभू ! से एवं भैते भंते ! इइ वरदत्ते अणगारे जाव अप्पाणं भावमाणे विहरति । तते णं अरहा अरिहनेमी अण्णदा कदाइ बारवतीओ नगरीओ जाव बहिया जणवय विहारं विहरति, निसढे कुमारे समणोवासए जाए अभिगतजीवाजीवे जाव विहरति । तते णं से निसदे कुमारे अण्णया कयाइ जेणेव पोसहसाला तेणेव उवा० २, जाय दम्भसंथारोवगते विहरति । तते णं तस्स निसदस्स कुमारस्स पुदरत्तावरत्त० धम्मजागरिय जागरमाणस्स इमेयास्वे अज्झस्थिप०-धन्ना ण ते गामागर जाव संनिदेसा जत्थ णं अरहा अरिहनेमी विहरति, धन्ना णं ते राईसर जाव सत्यवाहप्पभितिओ जे णं अरिहनेमीं वंदति नमसति जाव पज्जुवासति, जति णं अरहा अरिहनेमी पुवाणुपुर्वि नंदणवणे विहरेज्जा तेणं अहं अरहं अरिहनेमि बंदिज्जा जाब पज्जुवासिज्जा । तते गं अरहा अरिहनेमी निसढस्स कुमारस्स अयमेयारूवं अज्झस्थिय जाब वियाणिचा अट्ठारसहि समणसहरसेहिं जाब नेदणवणे उज्जाणे, परिसा नि ग्गया, तते ण निसहे कुमारे इमीसे कहाए लद्धडे समाणे हट्ट चाउटेणं आसरहेणं निग्गते, जहा जमाली, जाव | नगरनिगमसिद्रिसेणायासत्यवाहपभितिओ । जे णं भगवतं वंदति । तदनु नन्दनवने उद्याने भगवान् समवसृतः । अनुक्रम [१-३] FarParaanaaratauleonm ~8~ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२३) “वृष्णिदशा” - उपांगसूत्र-१२ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययनं [१] -------- ------ मूलं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [२३], उपांग सूत्र - [१२] "वृष्णिदशा" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: निरया॥४॥ प्रत सूत्राक दीप अम्मापियरो आपुच्छिता पदयिते, अणगारे जाते जाच गुत्तभयारी । तते णं से निसढे अणगारे अरहतो अरिट्टनेमिस्स IA तहारुवाणं थैराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एकारस अंगाई अहिज्जति २ बहूई चउत्थछट्ट जाब विचिचेहि तबोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहुपढिपुष्णाई नव वासाई सामष्णपरियाग पाउणति वायालीसं भत्ताई अणसणाए छेदेति, आलोइयपडिको समाहिपत्ते आणुपुतीए कालगते । तते ण से वरदत्ते अणगारे निसर्ट अणमारं कालगतं जाणित्ता जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणेव उवा०२ जाब एवं बयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाण अंतेवासी निसढे नार्म अणगारे पगतिभहए जाव विणीए से णं भंते ! निसढे अणगारे कालमासे कालं किचा कहिं गते ? कहि उपवण्णे १ वरदचादि अरहा अरिहनेमी वरदत्त अणगारं एवं वयासी-एवं खलु वरदत्ता ममं अंतेवासी निसहे नार्म अणगारे पगइभद्दे जाब विणीए मर्म तहारुवाण थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एकारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुण्णाई नव वासाई सामण्णपरियाग पाउणित्ता बायालीस भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उर्दू चंदिमसूरियगहनक्खत्ततारारुवाणं सोहम्मीसाण जाव अच्चुते तिण्णि य अट्ठारमुत्तरे गेविज्जविमाणे पाससते वीवीपतित्ता सबसि विमाणे देवताए उबवण्णे । तत्थ णं देवाणं तेनीस सागरोवमाई लिई पण्णत्ता । से ण भैते ! निसढे देये तातो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइता कहि गच्छिहिति ? कहि उववज्जिहिति ? वरदत्ता ! वायालीसं भत्ताई ति दिनानि २१ परिहत्यानशनया। निसढे ताओ देवलोगाओ आउक्खपणं ति आयुर्दलिकनिर्जरणेन, 'भवक्खएणं' ति देवभवनिबन्धनभूतकर्मणां गत्यादीनां निर्जरणेन, स्थितिक्षयेण-आयुःकर्मणः स्थितेर्वेदनेन, 'अनंतर वयं ॥४१॥ चहत्त 'त्ति देवभवसंबन्धिनं चर्य-शरीरं त्यक्त्वा, यहा च्यवनं कृत्वा क यास्यति ? गतोऽपि क्वोत्पत्स्यते ? Earpranaamvam umony अनुक्रम [१-३] ~9~ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२३) “वृष्णिदशा” - उपांगसूत्र-१२ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययनं [१] -------- ------ मूलं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [२३], उपांग सूत्र - [१२] "वृष्णिदशा” मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: इहेब अंबुद्दीये २ महाविदेहे चासे जेन्नाते नगरे विमुद्धपिइसे रायकुले पुत्तचाए पञ्चायाहिति । तते ण से उम्मकबालभावे विण्णयपरिणयमिते जोवणगमणुष्पत्ते तहारूवाणं घेराण अंतिए केवलबोहिं युज्झित्ता अगाराको अणगारिय पद्धजिहिति । से तत्थ अणगारे भविस्सति । इरियासमिते जाव गुत्तभयारी से तस्य बहुई चउत्पछट्टहमदसमदुवालसेहि मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तबोकम्मेहि अप्पाणे भावेमाणे पहुई वासाई सामण्णपरियागं पाउणिस्सति २ मासियाए सलेहणाए अचाणं झुसिहिति २ सहि भत्ताई अणसणाए छेदिहिति । जस्सहाए कीरति णम्गभावे मुंडभावे अण्हाणए जाव अदंतवणए अच्छत्तए अणोवाहणाए फ लहसेज्जा कट्टसेजा केसलोए यंभचेरवासे परघरपवेसे पिंडवाउलखावलढे उच्चावया य गामकंटया अहियासिज्जति, तमह आराहेंति, आराहिता चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं सिज्झिहिति बुझिहिति जाव सबटुक्खाणं अंतं काहिति । एवं खलु जंबू ! समणेण भगवया महा० जाव निक्खेवाएवं सेसा वि एकारस अज्झयणा नेयवा संगइणी अणुसारेण अहीणमइरित एक्कारसम वि ॥ ॥ पंचमो वग्गो सम्मत्तो॥ अनुक्रम [१-३] 'सिनिमहिति' सेत्स्यति निष्टितार्थतया, भोत्स्यते केवलालोकेन, मोश्यते सकलकमीशैः, परिनिर्वास्थति-स्वस्थो भविष्यति सकलकर्मकृतविकारविरहितया, तात्पर्थमाह-सर्वदुःखानामन्तै करिष्यति । रचाते प्र. - Sinmuraryou अत्र अध्ययनं -१- 'निषध' परिसमाप्तं अत्र अध्ययन २-१२ 'मायनि,वध आदि' आरब्धानि एवं परिसमाप्तानि मूलसूत्र ४] ~ 10~ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२३) “वृष्णिदशा” - उपांगसूत्र-१२ (मूलं+वृत्तिः ) अध्ययनं [२-१२] ------- --------- मूलं [४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [२३], उपांग सूत्र - [१२] "वृष्णिदशा” मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: बलिका निरया ॥४२॥ निरयावलियामुयखंधो सम्पत्ती । संमत्ताणि उगाणि । निरयावलिया उर्वये क एगो सुयखंघो पंच वग्गा पंचमु दिबसेसु उद्दिस्सति, तत्त्व चउसु वग्गेसु दस दस उद्देसगा, पंचमवग्ने बारस उद्देसगा। निरयावलियामुयखंधो सम्मचो । निरयावलियामुचं सम्मत् ॥ ग्रंथानं ११००॥ इति श्रीश्रीचन्द्रसूरिविरचितं निरयावलिका श्रतस्कन्धषिधरणं समाप्तमिति । श्रीरस्तु । प्रन्यानम् ६०० अनुक्रम [१-३] वृष्णिदशा-उपांग १२ परिसमाप्तं तत् समाप्ते उपांगसूत्राणि अपि परिसमाप्तानि |॥४२॥ मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र २३) “वृष्णिदशा" परिसमाप्त: ~11~ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः | 23 23 पूज्य अन्योगाचार्य श्रीदानविजयजी गणि संशोधित: संपादितश्च। “वृष्णिदशा-उपांगसूत्र” [मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्तिः] | (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: “वृष्णिदशा” मूलं एवं वृत्तिः” नामेण परिसमाप्त: - Remember it's a Net Publications of jain_e_library's' ~12~