Book Title: Aagam 22 PUSHPA CHOOLIKAA Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । [२२] श्री पुष्पचूलिका (उपांग)सूत्रम् नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः । । “पुष्पचूलिका" मूलं एवं वृत्ति: [मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्तिः] [आदय संपादकः - पूज्य अनुयोगाचार्य श्री दानविजयजी गणि म. सा. ]। (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.) | 15/01/2015, गुरुवार, २०७१ पौष कृष्ण १० jain_e_library's Net Publications __मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित....आगमसूत्र-२२], उपांग सूत्र-[१७] "पुष्पचूलिका" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्तिः Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२२) "पुष्पचूलिका” - उपांगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) अध्ययनं [-]---------- ------- मूलं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [२२], उपांग सूत्र - [११] "पुष्पचूलिका" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: SO + ENRIESWARISRAESAREATR 9 ++ + -+-+-+ -+-+-+ -+ 16 E SExpresRESMARTSARETIANErswersmneISRAELTSHEMES श्रीचन्द्रसूरिविरचितवृत्तियुतं प्रत सूत्राक श्री पुष्पचूलिकासूत्रम् EZINEGATINEERIMIMIRHAMAKAaen KisammersnKEriRERSARESHEETSumerammar दीप अनुक्रम न्यायाम्भोनिधिश्रीमद्विजयानन्दसूरिपुरन्दरशिष्यमहोपाध्यायश्रीमतीरविजयशिष्य रन-अनुयोगाचार्यश्रीमदानविजयगणिभिः संशोधितम् रु. ५०१) श्रेष्टि हरचंद सोमचंद ह. नेमचंदभाइ मु० सुरत पतस्य श्राद्धस्य द्रव्यसाहारयेन, प्रकाशयित्री श्रीआगमोदयसमितिः इदं पुस्तकं अमदाबाद(राजनगर मध्ये शाह वेणीचंद सूरचंद श्री आगमोदय समिति.सैकटरी इत्यनेन युनियनपीन्टिगप्रेसमध्ये टंकशालायां शाह मोहनलालचीमनलालद्वाराप्रकाशितम् । षीरसंवत् २०४८, पण्य रु-१२-० प्रतयः ७५० विक्रमसंवत् १९७८. सन १९२२. MEMOIRATRIOMMEMATURMEETHAKTIMALLAINEERINATREAKIMAMSIRAMEkmerekNSkOMMEXIMMENamastotosiOM G+ ++ +- +- + - + -+- + -+-+- -+ -+- +-+-+ -वार HVARANETSMARTSANETSAMLISARESMARTHAEINARETWAREISAIRSANETSARKETINResetSTRAININETSARETIREMARATHIMIRZU SHARESS NRNAawarawadeituREGMICHANMENT2 FO पुष्पचूलिका-उपाङ्गसूत्रस्य मूल “टाइटल पेज" ~1~ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलाइका: १+१ पुष्पचूलिका-उपाङ्ग सूत्रस्य विषयानुक्रम दीप-अनुक्रमा: ३ मूलांक: अध्ययन पृष्ठांक: मूलांक: अध्ययन पृष्ठांक: || मूलांक: अध्ययनं पृष्ठांक: ०१-०३ | [१-१०] भूता/(श्री) आदि दश | ००४ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित........आगमसूत्र - [२२], उपांग सूत्र - [११] "पुष्पचूलिका" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: ~ 2~ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'पुष्पचूलिका' - मूलं एवं वृत्ति:] इस प्रकाशन की विकास-गाथा यह प्रत सबसे पहले "निरयावलिका" के नामसे सन १९२ २ (विक्रम संवत १९७८) में आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादकमहोदय थे पूज्य अनुयोगाचार्य दानविजयजीगणि महाराज साहेब | इसमे 'निरयावलिका,कल्पवतंसिका,पुष्पिता,पुष्पचुलिका,वृष्णिदशा' पांच उपांग थे. इसी प्रत को फिर से दुसरे पूज्यश्रीओने अपने-अपने नामसे भी छपवाई, जिसमे उन्होंने खुदने तो कुछ नहीं किया, मगर इसी प्रत को ऑफसेट करवा के, अपना एवं अपनी प्रकाशन संस्था का नाम छाप दिया. जिसमे किसीने पूज्यपाद् सागरानंदसूरिजी के नाम को आगे रखा, और अपनी वफादारी दिखाई, तो किसीने स्वयं को ही इस पुरे कार्य का कर्ता बता दिया और संपादकपूज्यश्री तथा प्रकाशक का नाम ही मिटा दिया | हमारा ये प्रयास क्यों? : आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की पूर्वाचार्य पूज्य श्री के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने इसी प्रत को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसमे बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर अध्ययन और मूलसूत्र के क्रमांक लिख दिए, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा अध्ययन एवं सूत्र चल रहे है उसका सरलता से ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके | हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढ़ते हुए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रो के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस -] दिए है और जहां गाथा है वहाँ |-|| ऐसी दो लाइन खींची है या फिर गाथा शब्द लिख दिया है | ___ हमने एक अनुक्रमणिका भी बनायी है, जिसमे प्रत्येक अध्ययन आदि लिख दिये है और साथमें इस सम्पादन के पृष्ठांक भी दे दिए है, जिससे अभ्यासक व्यक्ति अपने चहिते अध्ययन या विषय तक आसानी से पहुँच शकता है | अनेक पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट भी लिखी है, जहां उस पृष्ठ पर चल रहे ख़ास विषयवस्तु की, मूल प्रतमें रही हुई कोई-कोई मुद्रण-भूल की या क्रमांकन-भूल सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसि को मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। ......मुनि दीपरत्नसागर..... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [२२], उपांग सूत्र - [११] "पुष्पचूलिका" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: ~3~ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२२) “पुष्पचूलिका” - उपांगसूत्र-११ (मूलं+वृत्तिः ) अध्य यन [१-१०] ------------------------- ------- मूलं [१-3] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [२२], उपांग सूत्र - [११] "पुष्पचूलिका” मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: प्रत सूत्राक दीप अनुक्रम पुप्फचुला ४. .जाणं भते समणेण भगवता उक्लेवओ जाब दस अज्झयणा पण्णता। तं जहा-"सिरि-हिरि-धिति-कित्ति (ती)ओ बद्धि (डी) लच्छी य होइ बोधवा । इलादेवी मुरादेवी, रसदेवी गंधदेवी य॥१॥ जाण भैते समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उबंगाणं चउत्थस्स वग्गस्स पुष्फचूलाणं दस अज्झयणा पण्णचा । पढमस्स णं भंते उक्खेवओ, एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं २ रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए सेणिए राया सामी समोसडे, परिसा निग्गया । तेणं कालेणं २ सिरिदेवी सोहम्मे कप्पे सिरिवर्डिसए विमाणे सभाए मुहम्माए सिरिंसि सीहाणसणंसि चउहि सामाणियसाहस्सेहिं चउर्हि महत्तरियाहि सपरिवाराहिं जहा बहुपुत्तिया जाव नट्टविहिं उबदं सित्ता पडिगता । नवरंदारियाओ नत्थि। पुवभवपुच्छा । एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं २ रायगिहे नगरे गुणसिलए चेइए जियसनू राया। तत्व णं रायगिहे नयरे सुदसणो नार्म गाहावई परिवसति, अड़े। तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स पिया नाम भारिया होत्था सोमाला । तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स ध्या पियाए गाहावतिणीए अत्तिया भूया नाम दारिया होत्या बुडाबुद्दकुमारी जुष्णा जुण्णकुमारी पडितपुतत्थणी घर [ग] परिवज्जिया (पक्षेक्जिया) चतुर्थवर्गोऽपि दशाध्ययनात्मकः श्रीहीधृतिकोतिबुद्धिलक्ष्मीइलादेधीसुरादेषीरसदेवीगन्धदेवीतिवक्तव्यताप्रतिबद्धाध्ययननामकः । तत्र श्रीदेवी सौधर्मकल्पोत्पना भगवतो महावीरस्य नारयविधि दारकविकुर्षणया प्रदर्य स्वस्थानं जगाम । प्राग्भषे राजगृहे सुदर्शनगृहपतेः प्रियाया भार्याया अङ्गजा भूतानाम्नी अभवत् । न केनापि परिणीता । पतितपुतस्तनी जाता। 'पर [ग पक्खेलिया] परिवजिया' वरपितृप्रवेदिता भाऽपरिणीताऽभूत | सुगम सर्व याषचतुर्थवर्गसमाप्तिः ॥ वरगपारिवजिया, पहुण्यापौष पश्यते । २ परमपक्खोजिया, श्यते बहुवावशेषु । अत्र अध्ययनानि १-१०, मूलसूत्र- १-३] आरभ्यते ~ 4~ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२२) “पुष्पचूलिका” - उपांगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) अध्य यन [१-१०] ----------------------- ------- मूलं [१-3] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [२२], उपांग सूत्र - [११] "पुष्पचूलिका" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: निरया॥३७॥ यावि होत्या । तेणं कालेणं २ पासे अरहा पुरिसादाणीए जाव नवरयणीए, वणी सो चेब, समोसरणं, परिसा निग्गया। तते णं सा भूया दारिया इमोसे कहाए लवासमाणी हट्टतुट्ठा जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवा०२ एवं वदासीएवं खलु अम्मताओ पासे अरहा पुरिसादाणीए पुवाणुपुचि चरमाणे जाव देवगणपरिखुडे विहरति, ते इच्छामी गं अम्मयाओ तुम्भेहि अन्भणुण्णाया समाणी पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स पायबंदियागमित्तए । अहामुई देवाणुप्पिया मा परिबंधं । तते ण सा भूया दारिया ण्हाया जाव सरीरा चेडीचकवालपरिकिण्णा साओ गिहामी पडिनिक्खमति २ जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवा०२ धम्पिय जाणप्पवरं दुरूढा । तते णं सा भूया दारिया निययपरिवारपरिबुडा रायगिहं नगरं मझ मज्झेण निगच्छति २ जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवा०२छत्तादीए तिस्थकरातिसए पासति, धम्मियाओ जाणप्पवरा ओ पच्चोरुभित्ता चेडीचकवालपरिकिष्णा जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवा०२ तिक्खुतो जाव पज्जुवासति । तते णं पासे अरहा पुरिसादाणीए भूयाए दारियाए तीसे महइ० धम्मकहाए धम्म० सोचा णिसम्म हट्ट वंदति २ एवं वदासी-सद्दहामि ण भैते निगथं पावयणं जाव अब्भुढेमि णं भंते निम्ग) पावयणं से जहे तं तुम्भे बदह जं, नवरं देवाणुप्पिय ! अम्मापियरो आपुच्छामि । तते णं अहं जाव पचइत्तए । अहामुहं देवाणुप्पिया ! सते णं सा भूया दारिया तमेव धम्मियं जाणप्पवरं जाव दुरुहति २ जेणेव रायगिहे नगरे वेणेव उवागता, रायगिर्ह नगरं मज्झं मझेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागता, रहाओ पचोरुहिता जेणेव अम्मापितरो तेणेव उवागता, करतल० जहा जमाली आपुच्छति । अहामुहं देवाणुप्पिए ! तते णं से सुदंसणे गाहावई विउलं असणं ४ उवक्खडावेति, मित्तनाति आमतेति २ जाव जिमिय ॥३७॥ REarmana Farparinaamwan unconm ~5~ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२२) “पुष्पचूलिका” - उपांगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) अध्य यनं [१-१०] ------- ------- मूलं [१-3] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [२२], उपांग सूत्र - [११] "पुष्पचूलिका" मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: भुत्तुत्तरकाले सूईभूते निक्खमणमाणित्ता कोडंबिय पुरिसे सद्दावेति २ एवं वदासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! भूयादारियाए पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं उबट्टवेह २ जाव पञ्चप्पिणह । तते गं ते जाव पञ्चप्पिणंति । तते ण से सुदंसणे गाहावई भुयै दारियं व्हाय जाब विभूसियसरीरं पुरिससहस्सबाहिणि सीयं दुरूहति २ मित्तनाति० जाब रवेणं रायगिह नगरं मझ मज्झेणं जेणेव गुणसिलए चेइए तेगेव उवागते, छत्ताईए तित्थयरातिसए पासति २ सीयं ठायेति २ भूयं दारियं सीयाओ पञ्चोख्तेति २ । तते णं तं भूयं दारियं अम्मापियरो पुरतो काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव उवागते, तिखुत्तो बंदति नमंसति २ एवं वदासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! भूया दारिया अम्हं एगा धूया इट्ठा, एस णं देवाणुप्पिया! संसारभउबिग्गा भीया जाव देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा जाव पदयाति २ त एवं णं देवाणुप्पिया! सिस्सिणिभिक्वं दलयति, पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! सिस्सिणीभिक्खं । अहामुहं देवाणुः । तते थे सा भूता दारिया पासेणं अरहा० एवं बुत्तासमाणी हट्ठा उत्तरपुरच्छिमं सयमेव आभरणमल्लालंकारं उम्मुयइ, जहा देवाणंदा पुष्फचूलाणं अंतिए जाव गुत्तवंभयारिणी । तते णं सा भूता अज्जा अण्णदा कदाइ सरीरपाओसिया जाया यावि होत्था, अभिक्खणं २ हत्थे धोवति, पादे धोवति एवं सीसं धोवति, मुई धोचति, थणगंतराइं धोवति, कक्खंतराइं धोवति, गुज्झंतराई धोवति, जत्थ जत्य वि य णं ठाणं वा सिज्ज वा निसिहियं वा चेतेति तत्थ तत्त्व वि य णं पुवामेव पाणएणं अभुक्खेति । ततो पच्छा ठाणं । वा सिज्ज वा निसीहिय वा चेतेति । तते णं तातो पुप्फचूलातो अजातो भूयं अज्ज एवं वदासी-अम्हे णं देवाणुप्पिए 1 उवखण प्र. १ बाउसिवाणं प्र.. SARERuralin ~6~ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (२२) शिक ॥३८॥ “पुष्पचूलिका” - उपांगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) अध्य यनं [१-१०] ----------- ------- मूलं [१-3] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [२२], उपांग सूत्र - [११] "पुष्पचूलिका” मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति: X निरया समणीओ निग्गंधीओ इरियासमियाओ जाब गुत्तबंभचारिणीओ, नो खलु कप्पति अम्हं सरीरपाओसियाण होचए, तुमं च ण देवाणुप्पिए सरीरपाओसीया अभिक्खणं २ हत्थे धोवसि जाव निसीहियं चेतेहि, ते णं तुम देवाणुप्पिए एयस्स ठाणस्स आलोएहि ति, सेसं जहा मुभहाए जाव पाडियकं उबस्सयं उपसंपज्जिचा णे विहरति । तते ण सा भूता अजा अणाहट्टिया अणिवारिया सच्छंदमई अभिवखणं २ हत्थे धोवति जाव चेतेति । तते ण सा भूया अज्जा बहूहि चउत्थछट्ट० बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता तरस ठाणस्स अणालोइयपडिकंता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सिरिवटिसए विमाणे उबवायसभाए देवसयणिज्जसि जाव तोगाइणाए सिरिदेवित्ताए उबवण्णा पंचविहाए पजत्तीए भासामणपज्जत्तीए पज्जता । एवं खलु गोयमा ! सिरीए देवीए एसा दिया देविड़ी लद्धा पत्ता, टिई एगं पलिओवमं । सिरीण भैते देवी जाव कहि गच्छिहिति ? महाविदेहे वासे सिज्झिहिति । एवं खलु जंबू ! निखेवओ । एवं सेसाण वि नवण्ह भाणिया, सरिसनामा विमाणा सोहम्मे कप्पे पुत्वभवे नगरचेइयपियमादीणं, अपणो य नामादी जहा संगहणीए, सदा पासस्स अंतिए निक्र्खता । तातो पुप्फचूलाणं सिस्सिणीयातो सरीरपाओसियाओ सच्चाओ अणंतरं चर्य चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिर्हिति ।। ॥ चउत्थवग्गो सम्मत्तो॥ 1॥३८॥ अत्र अध्ययनानि १-१०, मूलसूत्र- १-३] परिसमाप्तानि, तत् समाप्ते "पुष्पचूलिका सूत्र अपि परिसमाप्त: aantitaram.org मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र २२) "पुष्पचूलिका” परिसमाप्त: Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः ( 22 ) 22 पूज्य अनुयोगाचार्य श्रीदानविजयजी गणि संशोधित: संपादितश्चा ' “पुष्पचूलिकासूत्र" [मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्तिः] | (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: "पुष्पचूलिका” मूलं एवं वृत्तिः” नामेण परिसमाप्त: Remember it's a Net Publications of 'jain_e_library's' ~8~