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आगम (२२)
शिक
॥३८॥
“पुष्पचूलिका” - उपांगसूत्र-११ (मूलं+वृत्ति:) अध्य यनं [१-१०] -----------
------- मूलं [१-3] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [२२], उपांग सूत्र - [११] "पुष्पचूलिका” मूलं एवं चन्द्रसूरि-विरचिता वृत्ति:
X निरया
समणीओ निग्गंधीओ इरियासमियाओ जाब गुत्तबंभचारिणीओ, नो खलु कप्पति अम्हं सरीरपाओसियाण होचए, तुमं च ण देवाणुप्पिए सरीरपाओसीया अभिक्खणं २ हत्थे धोवसि जाव निसीहियं चेतेहि, ते णं तुम देवाणुप्पिए एयस्स ठाणस्स आलोएहि ति, सेसं जहा मुभहाए जाव पाडियकं उबस्सयं उपसंपज्जिचा णे विहरति । तते ण सा भूता अजा अणाहट्टिया अणिवारिया सच्छंदमई अभिवखणं २ हत्थे धोवति जाव चेतेति । तते ण सा भूया अज्जा बहूहि चउत्थछट्ट० बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता तरस ठाणस्स अणालोइयपडिकंता कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सिरिवटिसए विमाणे उबवायसभाए देवसयणिज्जसि जाव तोगाइणाए सिरिदेवित्ताए उबवण्णा पंचविहाए पजत्तीए भासामणपज्जत्तीए पज्जता । एवं खलु गोयमा ! सिरीए देवीए एसा दिया देविड़ी लद्धा पत्ता, टिई एगं पलिओवमं । सिरीण भैते देवी जाव कहि गच्छिहिति ? महाविदेहे वासे सिज्झिहिति । एवं खलु जंबू ! निखेवओ । एवं सेसाण वि नवण्ह भाणिया, सरिसनामा विमाणा सोहम्मे कप्पे पुत्वभवे नगरचेइयपियमादीणं, अपणो य नामादी जहा संगहणीए, सदा पासस्स अंतिए निक्र्खता । तातो पुप्फचूलाणं सिस्सिणीयातो सरीरपाओसियाओ सच्चाओ अणंतरं चर्य चइत्ता महाविदेहे वासे सिज्झिर्हिति ।।
॥ चउत्थवग्गो सम्मत्तो॥
1॥३८॥
अत्र अध्ययनानि १-१०, मूलसूत्र- १-३] परिसमाप्तानि, तत् समाप्ते "पुष्पचूलिका सूत्र अपि परिसमाप्त:
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मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र २२)
"पुष्पचूलिका” परिसमाप्त: