Book Title: shiksha Dasha aur Disha
Author(s): Sharatchandra Pathak
Publisher: Z_Ashtdashi_012049.pdf

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Page 2
________________ 'वसुधैव कुटुम्बकम् और तेन त्यक्तेन भुंजीथा' का सन्देश दिया था। परन्तु आज हम अपने पड़ोसी को भी सहन करने में असमर्थ हो रहे हैं। शिक्षा का एक उद्देश्य मानव निर्माण भी होना चाहिये। एक ऐसे मनुष्य का निर्माण जिसमें क्षमा, दया, मैत्री, करुणा, सहानुभूति आदि गुण विकसित हों, उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति यदि स्वार्थी, लोभी, अभिमानी और क्रूर हो तो अशिक्षित रहना ही मानवता के लिए कल्याणकारी होगा। मानव निर्माण में शिक्षा की भूमिका को कैसे उपयोगी बनाया जाये, यह भी आज का एक विचारणीय प्रश्न है। चिन्ता का विषय है कि आज शिक्षा का बड़ी तेजी से उद्योगीकरण हो रहा है। हमारे देश में ऐसे शिक्षण संस्थान स्थापित हो रहे हैं जो प्रतिवर्ष लाखों रुपये शुल्क (Fees) के रूप में वसूल कर रहे हैं। ऐसी शिक्षा मनुष्य को वित्तोपार्जक अर्हता प्रदान करती है किन्तु उसमें मानवीय मूल्यों के प्रति सम्मान का भाव नहीं जगा पाती। समाचार पत्रों में प्रायः ऐसे समाचार पढ़ने को मिल जाते हैं कि पुत्र विदेश अथवा देश में ही किसी दूसरे नगर में बड़े पद पर है और माता या पिता अकेलेपन के कारण अवसाद ग्रस्त होकर आत्महत्या कर रहे हैं। आज शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य यही रह गया है कि हम अधिक से अधिक धन कमाने योग्य बन सकें। हमें यह स्मरण रखना होगा कि अर्थ स्वयं में साधन है, साध्य नहीं। अत: शिक्षा की भूमिका उन मूल्यों के रक्षण और पोषण में भी महत्वूर्ण है जो हमारे संबन्धों में आत्मीयता का अमृत प्रवाहित करता है। शिक्षा यदि हमारा सही मार्ग दर्शन नहीं कर सकी तो एक दिन हम गोस्वामी जी के समान यही अनुभव करेंगेडसित ही गई बीति निसा सब कबहुं न नाथ नींद भरि सोयो। ___ मैं मानता हूँ कि आज की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है, शिक्षा को औद्योगिकरण की लौह-शृंखला से मुक्त करना। बाजारवाद बहुत-सी दूसरी वस्तुओं के समान पश्चिम से आया है। और अपनी मानसिक ग्रंथि के कारण हम हर क्षेत्र में उसे ही अनुकरणीय मानते हैं। अज्ञेय ने सही कहा है अच्छी कुंठा रहित इकाई, सांचे ढले समाज से। अच्छा अपना ठाट फकीरी मंगनी के सुखसाज से। पूर्व प्राचार्य, श्री जैन विद्यालय, कोलकाता 0 अष्टदशी / 1320 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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