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किरण ११]
मूलाचार की मौलिकता और उसके रचयिता
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पुरातन-जैनवाक्य-सची की प्रस्तावनाके 11 पर ध्यायने मुझे बताया किकनकीमें 'बेह' कोटी पहादीको पाचार्य श्री. जुगकिशोरजी मुख्तारने लिखा है- और 'करो' गवी या मोहल्लेको कहते है। बेखगाय और
"xxx इस (बहराइरिय) नामके किसी भी पारबाद जिले में इस मामके गांव भय भी मौजूद हैं। प्राचार्यका उक्लेख अन्यत्र गुर्वावलियों, पहावलियों शिखा- भागे भाप लिखते है-"पं. सुब्सम्या शास्त्रीसे जेब तथा प्रम्भ प्रशस्तियों मादिमें कहीं भी देखने में नहीं मालूम हुमा कि श्रवणवेल्गोखका भी एक मुहला वेहगेरि पाता और इसलिए ऐतिहासिक विद्वानों एवं रिसर्च स्क- नामसे प्रसिद्ध है।कारिकलके हिरियंगडि बस्ति पत्रावती बरोंके सामने यह प्रश्न पराबर सपा मा है कि ये बह- देवी मन्दिरके एक स्तम्भ पर शक सं०१५१७ का एक करादिनाम कौनसे भावार्य और का " शिलालेख है जो भगवी भाषामें है । इस लेख में बहकार'
श्री मुख्तार साने 'बहराचार्य के सन्धि-विच्छेद- गांवका नाम दो बार भाया है और वह कारिकसके पास द्वारा अर्थ-संगति बिठानेका प्रयास भी उक्त प्रस्तावनामें ही कहीं होना चाहिए । सो हमारा अनुमान है कि भूखाकियावे 'बहराइरिय' का बकरा मारिया चारके कर्ता 'बहकेरि' भी कमामके गांवोमसही किसी ऐसा सन्धि-विच्छेद करते हुए लिखते है:
गांवके रहने वाले होंगे।" __ "वटक' का अर्थ वर्तक-प्रवर्तक है, ''शिवाणी- प्रेमीजीके इस लेख में सुझाई गई पनामों के विषय. सरस्वतीको कहते हैं, जिसकी वाणी सरस्वती प्रवर्तिका में मुख्तार साहब अपनी उसी प्रस्तावनामें बिखतेहो जनताको सदाचार एवं सम्मान में लगाने वाली हो- “बेहगेरि पाबेट्टकेरी नामके कुछ माम तथा स्थान पाये उसे बहकेर' सममना चाहिए। दूसरे, बहका-प्रवतंकों में जाते हैं. मुखाचारके कर्ता उन्हों में से किसी हरि या जो इरिगिरि प्रधान-प्रतिष्ठित हो, अथवा रि=समर्थ- बहकेरी ग्रामके ही रहने वाले होंगे और उस परसे औरतशक्तिशाली हो, उसे 'बहकेरि' जानना चाहिए। तीसरे कुण्डादिकी तरह 'बेहोरी' कहलाने लगेगे, हम 'वट' नाम वर्तन-माचरणका है और 'क' प्रेरक तथा संगत नहीं मालूम होता-बेह और वह शब्दोंके रूपमें ही प्रवर्तकको कहते हैं, सदाचारमें जो प्रवृत्ति कराने वाला हो नहीं. किन्तु भाषा तथा अर्थमें भी बहुत अन्तर है।'' उसका नाम 'वहरक' है। अथवा घट्ट माम मार्गका है. शम्मप्रेमीजीके लेखानुसार छोरी पहादीका वाचा कमी सन्मार्गका जो प्रवर्तक, उपदेशक एवं नेता हो उसे भी भाषाका शब्द है और 'गेरि' उस भाषामें गली-मोहल्लेबहरक कहते हैं। और इसलिए अर्थकी हटिसे ये वह को कहते हैं, जबकि 'वह' और बट्टक' जैसे शब्द प्राकृत रादि पद कुन्दकुन्दके लिए बहुत ही उपयुक्त तथा संगत भाषाके उपयुक्त अर्थके वाचक शब्द है और प्रम्पकी मालूम होते हैं। भारचर्य नहीं, जो प्रवर्तकरव-गुणकी भाषाके अनुकूल पड़ते हैं। प्रन्यभरमें तथा उसकी टीकामें विशिष्टता के कारण ही कुन्दकुन्द के लिए बहकेरकाचाय
'बेहगेरि' या 'बेडकरी' रूपका एक जगह भी प्रयोग नहीं (प्रवर्तकाचार्य) जैसे पदका प्रयोग किया गया हो।" पाया जाता और न इस प्रन्यके कवरूपमें अन्यत्री श्रीमानकर उसका प्रयोग देखने में माता है, जिससे उक्त कापनाको शीर्षक लेख जैन सिदान्त-भास्करके भाग १२ की किरय अवस में प्रकाशित भा., उसमें वे लिखते है:
पुरातन जैनवाक्यसूरी प्रस्ता..)
उपयुक्त दोनों विद्वानों के कथनोका समापन करते xxxपहरि' नाम भी गाँवका बोधक होना
हुए मुझे गुरुवार साहबका अर्थ वास्तविक नामकी ओर चाहिए और मूलाचारके कर्ता बेडगेरी या बेकरी प्रामके
अधिक संकेत करता दुभा जान पाता है। बदि पहरा ही रहने वाले होंगे और जिस तरह कोखकुण्डके रहने
हरिय' का सम्धि-विम्लेर 'बट्टक+एरा+भारिय' करके वाले प्राचार्य कोणाकोणाचार्य, तथा उम्मुलर प्रामके और संस्कत-प्राइतके 'उ-खयोः वयोरमेद: नियमको रहने वाले तुम्बुलूराचार्य कहलाये, उसी तरह ये बकरा ध्यान में रख सकार्य किया जाय, तो सहजमें ही बाय कहलाने लगे।
पक+एखा+भाचार्य-वर्तकलाचार्य नाम प्रगट हो इसी लेख में पाप विवेक ५. एन. उपा- बापाचार्य इन्दकुन्दका एक नाम 'एखाचार्य भी