Book Title: bhanuchandragani charit Author(s): Siddhichandra Upadhyay Publisher: Jinshasan Aradhana Trust View full book textPage 3
________________ विज्ञप्तिकम्.... आपना करकमलमां उपस्थित उपाध्यायश्री सिद्धचंद्रगणिविरचित 'भानुचन्द्रगणिचरित्र'ना पुनर्मुद्रण प्रसंगे,आनंद अने हर्षनी ऊर्मि अनुभवीए छीए...अकबरना वखतमां थयेल श्री भानुचंद्रगणिना प्रसंगोनुं चार सर्गात्मक अत्रे कथन छे...ऐतिहासिक ग्रंथ तथा काव्यापेक्षाए आनु मूल्यांकन छे... जैनसहित्यपरंपरामां साहित्यविषयक घणो भाग चरित्रग्रंथो काव्यादिमय छे....कारण द्रव्यानुयोगनी प्रधानता छतां प्रभूत जनभोग्य तो धर्मकथानुयोग ज बने छे...सर्व जीवोने धर्म प्रति वाळवामां आ धर्मकथाओ, चरित्र ग्रंथो ज प्रबळ भाग भजवे छे अने ए ग्रंथो जनसमूह सुधी पहोंचे ए घणी अगत्यनी बाबत बनी रहे छे. प्रस्तुत ग्रंथ- संपादन श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई (B.A., L.L.B., एडवोकेट, हाइकोर्ट, मुंबई) ए कर्यु छे. आ उपरांत जैन गुर्जर कविओ भाग १ थी ५, जैन साहित्य संक्षिप्त इतिहास आदि ग्रंथोना तेओ लेखक पण छे. आ ग्रंथ आजथी ६२ वर्ष पूर्वे सींधी जैन ग्रंथमाला, अमदावाद कलकत्ता द्वारा प्रकाशित थयेल...आजे जूज मात्रामा ज उपलब्ध थतो आ ग्रंथ (आवतीकाले अनुपलब्ध न बनी जाय) एवा ज एक उमदा हेतुथी पुनर्मुद्रित थइ रह्यो छे...आ प्रसंगे पूर्वसंपादक अने पूर्वप्रकाशक प्रत्ये कृतज्ञतानी लागणी व्यक्त करीए छीए. .. 'ज्ञान-क्रियाभ्यां मोक्षः' मां प्रथम ज्ञान मूक्युं . 'पढमं नाणं तओ दया' इत्यादि शास्त्रपाठो द्वारा ठेर ठेर ज्ञाननो अपूर्व महिमा गवायो छे. आ ज्ञाननो अनुयोग प्रभुवीर शासनना अंतिम आचार्य दुप्पसहसूरि सुधी अविच्छिन्नपणे वहेतो राखवानी जवाबदारी आपणा सौनी छे. अने ए माटे ज आजथी २५ वर्षों पूर्वे प.पूआचार्य भगवंत श्री हेमचंद्रसूरिजीनी प्रेरणा अने मार्गदर्शन हेठळ आ कार्य उपाडायुं...अद्यावधि २६५ थी अधिक ग्रंथोनी ४५०/४५० जेटली नकलो जिनशासनना विविध ज्ञान भंडारोमा भेट अपाय छे. हजी पण आ कार्य चालु ज छे. श्रुतधिष्ठायिका श्री सरस्वती देवी अमोने आ कार्यमां सहायता बक्षे ए ज अभ्यर्थना सह.... लि... श्री जिनशासन आराधना ट्रस्ट ट्रस्टीओ चंद्रकुमार बाबुभाइ जरीवाला ललितकुमार रतनचंद कोठारी पुंडरिकमाइ अंबालाल शाहPage Navigation
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