Book Title: Yugdharm Banne ka Adhikari Kaun
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Z_Bansidhar_Pandit_Abhinandan_Granth_012047.pdf

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Page 1
________________ युगधर्म बननेका अधिकारी कौन? अर्वाचीन युगके इस द्वितीय महायुद्धमे मानव-जगत काफी उत्पीडित हुआ है । बमों, उड़नबमों और अणुबमोंके द्वारा निरीह और निरपराध जनतासे आबाद अनेक शहर बर्बाद कर दिये गये हैं, बहुतसे छोटे-छोटे देश परस्परके शत्र बड़े देशोंके बीचमें पड़ जानेके कारण चक्कोके दो पाटोंके बीच में पड़े हुए अनाजके दानोंकी तरह पिस गये है, युद्धरत देशोंके लाखों मनुष्य युद्धके मैदानमें मारे गये हैं और भारत जैसे कृषिप्रधान देशमें भारत सरकारकी गैर जवाबदारीपूर्ण अव्यवस्थाके कारण अर्घ कोटिके करीब मनुष्य अकालके उदरमें समा गये हैं। यद्यपि आज युद्ध समाप्त हो गया है, परन्तु उसकी छाया आज भी मौजूद है। विजित राष्ट्र विजेता राष्ट्रोंका बदला लेनेकी भावनाके शिकार हो रहे हैं, उन्हें (विजित राष्ट्रोंको) कुचल दिया गया है, परतन्त्र बना लिया गया है और अभी भी दमनकी चक्कीमें पीसा जा रहा है। युद्धापराधियोंकी सूचीमें आये हुए या तो स्वयं आत्मघात कर रहे हैं या फिर उन्हें कानूनी न्यायके आधारपर गोलीसे उड़ाया जा रहा है । बहुतसे देशोंमें शासनकी बागडोर सम्हालने वाली पार्टी अपने ही देशवासियोंको न्यायका ढोंग रच-रच कर खत्म कर रही है और बड़े-बड़े राष्ट्रोंके साम्राज्यवादके शिकार हए देश युद्धकालमें किये गये बायदोंके आधारपर स्वतन्त्र होनेके लिये छटपटा रहे हैं, उनका हर तरहसे दमन किया जा रहा है। इस युद्ध में जिन लोगोंके कुटुम्बीजनोंका विनाश हो गया है और जिन्हें जबर्दस्त आर्थिक क्षति उठानी पड़ी है उन लोगोंको तो इसकी याद करके जिंदगी भर रोना ही है। परन्तु युद्धकी समाप्तिसे संपूर्ण मानवजातिमें वही पुराना शांतिका जीवन प्राप्त करनेकी जो आशा उदित हो गयी थी उसकी पूत्तिके आसार नजर नहीं आ रहे हैं । युद्धके दरम्यान जिन कानूनी कठिनाइयोंका उसे सामना करना पड़ रहा था वे कठिनाइयाँ आज भी मौजूद हैं, मॅहगाई, चोर बाजार और घूसखोरीसे छोटेसे लेकर बड़े तक हजारों, लाखों और करोड़ों तककी दौलत कमाने वाले लोग, जिनके सौभाग्यसे ही मानों युद्धकी भट्टी धधक उठी थी, आनन्दविभोर होते हुए आज भी अपनी आदतोंसे बाज नहीं आये हैं। इसके अतिरिक्त बेकारीकी समस्या भी प्रत्येक देशमें धीरे-धीरे घर करती जा रही है। इन सब बातोंके परिणामस्वरूप दुनियाके इस छोरसे उस छोर तक मानवजातिको एक ही चाह है और एक ही आवाज है कि ऐसे उपाय किये जाने चाहिये कि भविष्यमें कभी भी युद्धका मौका आनेकी सम्भावना जाती रहे। परन्तु दुनियाँकी बड़ी-बड़ी ताकतोंकी साम्राज्य-लिप्सा, विजित राष्ट्रोंका दमन और आपसमें वर्ती जानेवाली दाव-पेंचकी अविश्वासपूर्ण नीतिको देखते हुए यह कहना कठिन है कि निकटभविष्यमें ही युद्धका मौका नहीं आ सकता है। वास्तवमें सम्पूर्ण मानव जाति अब इस किस्मके अमानवीय युद्धोंमें यदि नहीं फँसना चाहती है तो इसे युद्धको प्रोत्साहन देनेवाली स्वार्थपूर्ण दूषित मनोवृत्तियों और प्रवृत्तियोंको छोड़कर धार्मिकताकी ओर कदम बढ़ानेका प्रयत्न करना होगा। विजित राष्ट्र विजेता राष्ट्रों द्वारा बलपूर्वक दबा लिये जाँय, इसकी अपेक्षा विजित राष्ट्रोंके प्रति सहृदयता और प्रेमका व्यवहार करनेकी जरूरत है ताकि विजेता राष्ट्र सम्पूर्ण मानवजातिके प्रति सहृदयता और प्रेमका व्यवहार करना सीख जायें, शक्तिसे युद्धको दबाया तो जा सकता है परन्तु उसके बीजोंको समूल नष्ट नहीं किया जा सकता है । पहला महायुद्ध शक्तिसे ही तो दबाया गया था। जिससे अल्पकालमें ही हमें उससे भी भयंकर दूसरा युद्ध देखना पड़ा है । धार्मिकताके आधारपर कायम की गयी शान्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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