Book Title: Yogashwittavruttinirodha ki Jain Darshan Sammat Vyakhya Author(s): Rajkumari Singhvi Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf View full book textPage 6
________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ / MARATrammam HEADLIN E 7. सर्वशब्दाग्रहणात्संप्रज्ञातोऽपि योग इत्याख्यायते / - व्या० भा० 1/2, पृ० 6 / 8. योग सूत्र 1/1 सूत्र व्या० भा०, पृ० 1 / 6. क्लेशकर्मविपाकाशयपरिपन्थाचित्तवृत्तिनिरोधः / -त० वै०, पृ० 10 // 10. अनयो योरेकाग्रनिरुद्धयो म्योर्यश्चित्तस्य काग्रतारूपः परिणामः स योग इत्युक्तं भवति / -यो० सू०/१/११ सूत्र, भो० पृ०, 11 / 11. द्रष्टस्वरूपावस्थितिहेतुश्चित्तवृत्तिनिरोधः / -यो० वा०, पृ०१३ / 12. “जो जुजदि अप्पाणं णियभावे सो हवे जोगो' / --नियमसार, गाथा 136, पृ० 118 / 13. “क्लेश कर्म विपाकाशयपरिपन्याचित्तवृत्तिनिरोधः" / --त० वै०, पृ० 10 / 14. “द्रष्ट्रस्वरूाविस्थितिहेतुश्चित्तवृत्तिनिरोधः / —यो० वा०, पृ० 13 / 15. अविद्याक्षेत्रमुतरेषामप्रसुप्ततनुविच्छिन्नोदाराणाम् / -यो० सू० II/4 / 16. अत्राविद्यादयो मोहनीय कर्मण औदयिक भाव विशेषाः / -यशोविजय वृत्ति। 17. पृथक्त्व कवितर्क सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाति व्युपरतक्रियानिवृत्तीनि / -त० सू०, 6-41 / ध्यान के चार भेद इस प्रकार हैं (1) पृथक्त्ववितर्कसविचार, (2) एकत्ववितर्कअविचार, (3) सूक्ष्मक्रियाअप्रतिपाति, (4) व्युपरतक्रियानिवृत्ति / 18. यशोविजयकृत योगसूत्रवृत्ति सूत्र 1/17, 18, पृ० 7 / 16. योगबिन्दु, कारिका 420 / mmittttttttt+ --- SENA + PH NIRE 368 | सातवां खण्ड : भारतीय संस्कृति में योग - - EvionalS www.jainelibri MPERAMPage Navigation
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