Book Title: Yoga tatha Nari Roga Author(s): K C Khare Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 1
________________ योग तथा नारी रोग 0 डॉ० के. सी. खरे एम. डी., एफ. सी. सी. बी. महिलामों में बहत से रोग सामान्य रूप से पुरुषों की अपेक्षा अधिक होते हैं, जैसे कमर का दर्द, घुटनों का दर्द, बार-बार कमजोरी तथा थकान का महसूस होना एवं मासिकधर्म की बीमारियाँ। इनके अलावा गर्भावस्था तथा प्रसव के बाद होने वाली बीमारियाँ। १. कमर का दर्द-२५ से ३० प्रतिशत व्यक्ति कमर के दर्द से पीड़ित रहते हैं, जिनमें अधिकांश महिलायें ही होती हैं । इसका मुख्य कारण है, जब हम कुर्सी पर बैठते हैं तो पीठ का पिछला हिस्सा कुर्सी के पीछे वाले भाग को टिका कर नहीं रखते जिससे रीढ़ की हड़ी पर तनाव शुरू हो जाता है जो बाद में कमरदर्द में परिणत हो जाता है। हमारी गहणियाँ भी काम करते समय रसोई के प्लेटफार्म पर आगे झुककर काम करती हैं, जिससे उन्हें कमरदर्द की शिकायत यौवनावस्था में ही शुरू हो जाती है। कहने का तात्पर्य यह कि हमें यह उपाय करना चाहिये कि कमर और उसकी हड्डियों पर अत्यधिक तनाव न हो । योगसाधना का अभ्यास तनाव को कम करता है, इसलिये यह कमरदर्द को पूरी तरह दूर कर देता है। मोटापा जो कि महिलाओं में प्रसव के बाद शुरू हो जाता है, उसे योग-साधना का अभ्यास दूर करता है तथा कमरदर्द तथा अन्य बीमारियां जल्दी ही ठीक हो जाती हैं। स्त्रियों में मासिकधर्म की बीमारियां अधिकांशरूप में पाई जाती हैं। मासिकधर्म नालिका विहीन ग्रन्थियों से संचालित होते हैं। पिट्यूटरी ग्रन्थी का प्रोवरियन ग्रन्थि पर नियंत्रण होता है। मूत्रपिंड के उपर की ग्रन्थि और थायरायड ग्रन्थि का भी गर्भाशय पर विशेष प्रभाव होता है इसलिये यदि हम योग के द्वारा इन ग्रन्थियों के स्रावों को स्वस्थ रख सकते हैं तो गर्भाशय को स्वस्थ रखने में भी सफलता मिल सकती है। सर्वांग आसन त्रिकोण आसन पादहस्त आसन समस्थ तम आत्मस्थ मन तब हो सके आश्वस्त जम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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