Book Title: Yoga ke Shatkarm evam Rognivaran Author(s): B K Bandre Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 2
________________ पंचम खण्ड / 236 अर्चनार्चन लगता है। दमा, 'एलर्जी कोल्ड', सुगंध-दुर्गंध आदि का न आना, सिर दर्द, चश्मा के नम्बर बढ़ते जाना एवं नकसीर में यह क्रिया अति उपयोगी सिद्ध होती है। जिनके नाक से पानी पार नहीं होता उन्हें सूत्र एक नाक से डाल कर मुह से निकालना एवं उसे चलाना होता है। फलस्वरूप नाक का रास्ता साफ हो कर श्वास-प्रश्वास सामान्य होने लगता है / उच्च रक्तचाप सामान्य हो जाता है। सिर-दर्द, सर्दी-जुकाम, गले की खराश आदि मिटाने में जलनेति अति उत्तम है। कपालभांति-श्वास-प्रश्वास तेज करते हुए फेफड़ों की सफाई करना इस क्रिया का प्रमुख उद्देश्य है। श्वास को इतनी जल्दी एवं तेज गति से बाहर फेंकना होता है कि प्रतिक्रिया के रूप में पुनः श्वास भीतर आ जाती है। इस प्रकार जल्दी-जल्दी फेफड़ों को चलाना होता है। कपालभांति से दमा, खांसी-कफ, जुकाम समाप्त हो जाता है। जिन लोगों को सिगरेट छोड़ना है उन्हें यह मदद देती है। सिर का दर्द मिटाती है / कपालभाँति टी. बी. एवं हृदयरोगी को नहीं करना चाहिये। त्राटक-यह प्रांखों की ज्योति (शक्ति) बढ़ाने के कार्य में उपयोगी है। किसी विषय, जैसे दीपक, चित्र, बिन्दु प्रादि को सिर-गर्दन सीधी रखते हए लगभग दो फुट की दूरी पर बैठ कर बिना पलकें गिराये हुए लगातार देखना होता है। इससे आँखों की शुद्धि हो कर ज्योति बढ़ती है / इच्छाशक्ति बढ़ाने के लिये लगभग तीस मिनट तक करना उचित है / अभ्यास को धोरेधीरे बढ़ावें / यह क्रिया चंचल मन को शीघ्र स्थिर करती है और मनोबल बढ़ाती है। योग के षट्कर्म में बस्ती क्रिया का प्रचलन कम हो गया है, क्योंकि इसका सरल प्रकार 'एनिमा' हो गया है। योगी गुदाशय में 6" मोटी नली को फंसा कर पेट का श्वास बाहर निकालकर पीछे की तरफ सिकोडते हैं। फलस्वरूप नली के द्वारा पानी ऊपर पिचकारी की तरह खींचा जाता है और थोड़ी ही देर में इसे बाहर निकालने से जमा हुमा मल बाहर निकाल कर अनेक रोगों से बचाव किया जाता है। जैसे बवासीर, हानिया, भगंदर, खून का मलद्वार से पाना आदि / गॅसेस, कब्जियत दूर करने में बस्ती क्रिया बेजोड़ है / यह क्रिया पानी के टब, तालाब, नदी या जलाशय में की जाती है। अनेक लोगों को मलद्वार में अंगुली डाल कर मल निकालना पड़ता है। फिर निष्कासन अच्छा न होने पर कैंसर जैसे भयंकर रोग होने की संभावना बनी रहती , यह क्रिया लाभ पहुंचाती है। नौलि क्रिया पेट के लिये की जाती है। यह षट्कर्मों में से एक है। इसे खड़े हो कर या किसी प्रासन से बैठकर किया जाता है / खड़े हो कर कमर से थोड़ा सामने झुकें, जिससे हाथ घटनों तक पहुंच जायें। घुटनों को थोड़ा आगे की तरफ झुकायें, सामने देखते हुए श्वास बाहर फेंक दें और बाहर ही रोक रखें। जब तक श्वास रुकती है, पेट को अन्दर की तरफ सिकोड़ एवं गुदाशय को ऊपर खींचें जिससे पेट का प्राकार दण्डाकृति हो जायेगा / इसे नौलि कहते हैं। इसे घमाने पर पेट के भीतरी अवयवों की मालिश हो जाती है और भोजनपाचन सम्बन्धी सभी कष्टों को दूर किया जाता है। इससे पेट के अनेक रोग ठीक हो जाते हैं। भूख लगती है। यह मधुमेह में लाभकारी है। जिगर की सूजन कम होती है। प्रांतों का कार्य सक्रियता से होने पर गैसेस एवं कब्जियत मिटती है। इस प्रकार योग के षटकर्म सामान्य-जीवन एवं रोगनिवारण के लिए उपयोगी हैं। 07 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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