Book Title: Yog Aur Kshem Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 4
________________ बुराई में ही उपयोग करते हैं, उस धन और श्रम से उनको कोई लाभ नहीं होता, अपितु अकल्याण ही होता है, हानि ही होती है। एक सुभापितकार कवि ने कहा है "विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्तिः परेषां परिपोड़नाय । खलस्य साधोविपरीतमेतद, ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय।।" विद्या प्रज्ञान के अन्धकार को ध्वस्त करने के लिए है, ज्ञान के प्रकाश के लिए है। उस विद्या का उपयोग यदि पन्थों और मजहबों की लड़ाई में किया जाए, तो उस विद्या से जीवन पवित्र नहीं होता, बल्कि और अधिक कलषित बन जाता है। अजमेर सम्मेलन के अवसर पर एक परम्परा के किसी वृद्ध मुनि से किसी दूसरी परम्परा के मुनि ने सिद्धान्त कौमुदी के मंगल श्लोक का अर्थ पूछा । वृद्ध मुनि को उस श्लोक का अर्थ कुछ विस्मृत हो गया था। इस पर वह मुनि लोगों में इस बात के प्रचार पर उतारू हो गया कि--ये कैसे पण्डित है ! एक श्लोक का अर्थ पूछा, वह भी नहीं बता सके ? दूसरी बार जब किसी विषय पर तत्त्व-चर्चा चल रही थी, तो मैंने उन्हें जरा गहराई में धकेल दिया। प्रतिप्रश्न पूछा तो डगमगा उठे। अाखिर उन्होंने स्वीकार किया कि मुझे स्मरण नहीं है। परन्तु अपनी इस विस्मृति का उन्होंने कहीं भी कोई जिक्र नहीं किया। विद्या के दंभ में प्राकर व्यक्ति दूसरों की गलती पर तो उनका मजाक उड़ाता है, किन्तु अपनी गलती की कभी कहीं चर्चा नहीं करता। इसी प्रकार धन और शक्ति का उपयोग भी है। तुम्हारे पास धन है, तो इसका यह मतलब नहीं कि उससे दूसरों के लिए आफत खड़ी करो या दुर्व्यसनों में ही नष्ट कर डालो। धन, सम्पत्ति और ऐश्वर्य सेवा, परोपकार एवं दान के लिए होता है, न कि अहंकार के लिए। तुम्हारे पास यदि शक्ति है, तो किसी गिरते हुए को बचायो, न कि उसको एक धक्का लगा कर और जोर से गिराने की चेष्टा करो। शक्ति और विवेक : __ यह मान्यता सही नहीं है कि जो शक्ति मिली है, उसका कुछ-न-कुछ उपयोग होना चाहिए, चाहे किसी भी रूप में क्यों न हो, यह गलत धारणा है। उपयोग के साथ विवेक का होना आवश्यक है। शक्ति तो दुर्योधन और दुःशासन में भी थी, कंस और रावण में भी थी, किन्तु उनकी शक्ति से विश्व को हानि ही पहुँची है। इसीलिए उनकी शक्ति आसुरी शक्ति कहलाई। एक सेठ ने चन्दन की लकड़ियाँ खरीद कर अपने गोदाम भर रखे थे। सोचा थाचन्दन के भाव तेज होने पर इससे काफी बड़ा मुनाफा कमाऊँगा। इसी बीच सेठ किसी कार्यवश कहीं बाहर चला गया। पीछे वर्षा पाने से घर में ईंधन की कमी हुई, तो सेठानी ने इधर उधर तलाश किया। गोदाम को जब खोला, तो सेठानी लकड़ियों का ढेर देखकर बड़ी खुश हुई। सोचा, वास्तव में सेठ बड़ा ही बुद्धिमान है, जो समय पर काम आने के लिए घर में हर वस्तु का पहले से ही संग्रह कर रखते हैं। सेठानी ने धीरे-धीरे चन्दन की सब लकड़ियाँ जला डालीं। पीछे से जब सेठ आया, तो एकदिन मन में विचार किया कि चन्दन का भाव बहुत तेज हो गया है। अतः अब बेचने से बहुत अच्छा लाभ मिल जाएगा। खुशी-खुशी उसने जब गोदाम खोला, तो एकदम सन्न रह गया कि यह क्या? यहाँ तो सब चौपट हो गया ! उसने सेठानी से पूछा--"चन्दन कहाँ गया ?" सेठानी ने बताया--"चन्दन-वन्दन तो मैं जानती नहीं । हाँ ! लकड़ियाँ थीं, सो मैंने जलाने के काम में ले लीं।" १६२ Jain Education International पन्ना समिक्खए धम्म www.jainelibrary.org For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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