Book Title: Yeh Ek Naya Pagalpan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 1
________________ 12 यह एक नया पागलपन आज जैन-समाज में, विशेषतः स्थानकवासी-समाज में एक नया धार्मिक-उन्माद, एक नया जनून पैदा होता जा रहा है, जो एक प्रकार से धर्म के नाम पर मानसिक पागलपन की सीमा पर पहुंच रहा है। यह वह पागलपन है, जो कहता है कि जैन स्थानकों, उपाश्रयों आदि में अपने द्वारा मान्य साधु-साध्वियों के अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं ठहरने देंगे। वर्तमान-युग की दृष्टि से कुछ क्रांतिशील विचारक साधु-साध्वियों ने परम्परागत क्रिया-काण्डों में विवेक पूर्वक कुछ युगानुरूप परिवर्तन किए हैं, जिनमें यथाप्रसंग वाहन आदि के भी परिवर्तन हैं। किन्तु, तथाकथित धर्म-धुरन्धरों की दृष्टि में यह सब पापाचार है, अतः वे हमारे पवित्र उपाश्रय में, स्थानक में निवास के अधि कारी नहीं रहे हैं। सूक्ष्म-दृष्टि से तो क्या, स्थूल-दृष्टि से भी देखा जाए, तो आप द्वारा मान्य आपके अनेक पूज्य पुरुषों ने, महात्माओं ने परंपरागत चली आ रही अपनी चर्या में अनेक परिवर्तन कर लिए हैं। वे आरम्भ-परिग्रह के जाल में दूर तक उलझ गए हैं। अपने शिष्यों को पढ़ाने के लिए, पत्र-व्यवहार एवं अपने कार्यक्रमों की रिपोर्ट आदि भेजने के लिए वेतनभोगी पण्डित रखते हैं, यत्र-तत्र स्थानकों एवं संस्थानों का निर्माण करवा रहे हैं। दीक्षा आदि के आडम्बर भी कम नहीं हैं। हजारों के मूल्य के शाल उपयोग में ले रहे हैं। विहार आदि में कहीं प्रत्यक्ष, तो कहीं परोक्ष शास्त्रीय-मार्ग का अतिक्रमण कर रहे हैं, वर्षों-ही -वर्षों से डोली, व्हीलचेयर, बाबा गाड़ी, रिक्शा आदि वाहन का प्रयोग कर रहे हैं और क्षुद्र नश्वर शरीर के अपवाद के नाम पर कार एवं वायुयान का प्रयोग कर लेते हैं। कहाँ तक गिनाए ? एक लम्बी सूची तैयार हो सकती है, इनके उक्त धार्मिक पराक्रमों की। इतने लम्बे-चौड़े प्रत्यक्ष परिवर्तन हो गए है, फिर भी अन्ध-भक्तों में यह श्रद्धा फैलाई जा रही है कि हम तो शास्त्र के अक्षर-अक्षर पर चल रहे हैं। मियांजी 170 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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