Book Title: Yantra Rachna Prakriya aur Prabhava
Author(s): Satishchandramuni
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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________________ (१) (२) (३) (४) (4) (७) (८) शिखा को स्पर्श करते समय ॐ ह्रीं अर्दयामम बोलना । मस्तक को (ललाट को ) स्पर्श करते समय ॐ ह्रीं सिद्धेश्योनमः बोलना । (६) गले से स्पर्श करते हुये Jain Education International ढयास क्रिया दोनों आँखों को क्रमशः स्पर्श करते हुये ॐ ह्रीं आचार्योंयोनमः बोलना । नासिका को स्पर्श करते हुये ॐ ह्रीं उपाध्यायेध्यो नमः बोलना । मुख (दोनों होठो को) स्पर्श करते हुये ॐ ह्रीं साधुथ्यो नमः बोलना । ॐ ह्रीं ज्ञानेध्यो नमः बोलना । नाभि से नीचे के भाग पैर स्पर्श करते हुये ॐ हः चारित्रेध्यो नमः कहना। इस प्रकार क्रिया करने के पश्चात यंत्र के लेखन सामग्री यंत्र लेखन से पूर्व गुरु द्वारा निर्देशित जाप विधि से पूर्ण होना चाहिये। मंत्र की तरह यंत्रों से भी लाभ प्राप्त होता है। इसमें विभिन्न प्रकार के होते हैं त्रिभुज २, रेखा वर्ग वृत आदि । यंत्र का अर्थ होता है, विशाल स्वरूप की वस्तु को किसी विशिष्ट स्थान में संकुचित करना । यंत्र द्वारा सिद्धि प्राप्त करने के लिये विभिन्न साधनाओं से गुजरना पड़ता है, जिसमें विधि दी गई हो वैसा करना चाहिये। जिसमें विधि का उल्लेख न हो उन्हें भोजपत्र पर अष्टगंध से लिख, तांबे के ताबीज (मादालिपा में) डाल पुरुष दाँये एवं स्त्री बायें हाथ पर धारण करे । जो यंत्र मंत्र मुक्त होता है उसे सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण पुरुष नक्षत्र में १०८ बार जाप कर उसकी शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। (१५५) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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