Book Title: Vyakti evam Samaj Author(s): Deshbhushan Aacharya Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf View full book textPage 7
________________ चाहिये / जहाँ तक हो सके बच्चे को ठीक समय पर दूध पिलाना चाहिये / दूध उतना ही पिलाया जाए जितनी उसे भूख हो। जब उसे पीने की अनिच्छा हो तो जबरदस्ती और दूध न पिलाना चाहिये / न उसे सुलाने के लिये कभी अफीम का अंश देना चाहिये। ऐसी व्यवस्था रखनी चाहिये कि बच्चा रोने न पावे। रोने की आदत डलवाना ठीक नहीं। एक वर्ष तक बच्चे के स्वास्थ्य की सबसे अधिक सावधानी रखने की आवश्यकता है। तदनन्तर ज्यों-ज्यों बडा होता जाए उसके अनुसार उसके आहार-पान की व्यवस्था करते रहना चाहिये। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि बच्चे के सामने कभी काम-सेवन न किया जाए। बच्चों को अबोध समझकर उनके सामने मैथुन क्रिया करना बहुत भारी ग़लती है / बच्चे इतने अबोध नहीं होते जितना कि उन्हें समझा जाता है। बच्चों में भी ज्ञान शक्ति है / वे शिशु अवस्था में बोल नहीं सकते, किन्तु थोड़ा-बहुत समझते सब कुछ हैं। उनके सामने की हुई काम-क्रीड़ा से उनके चरित्र पर दुराचार का प्रभाव तथा संस्कार पड़ता है जो कि उनके बड़े हो जाने पर उनमें प्रकट होता है / अतः यह कार्य उनके सामने कभी न करना चाहिये। बच्चा ज्यों ही बोलने लगे उसको अच्छी बातें सिखानी चाहिये / बच्चों के सामने गाली-गलौज करना या बुरी बातें कहना व सुनना बहुत बुरा है। बुरी बातें या गालियां सुनकर बच्चे भी वैसा ही बोलना सीख जाते हैं। मूर्ख माता-पिता छोटे बच्चे की तोतली बोली में गाली-गलौज सुनकर बड़े प्रसन्न होते हैं। वे ये नहीं समझते कि तोतली भाषा की वे ही गालियां बच्चों की जीभ पर पक जाती हैं, जो कि आगे चलकर बुरी आदतों में शामिल हो जाती हैं। इसलिए न तो बच्चों के सामने दुर्वचन बोलने चाहिये और न गाली-गलौज ही करनी चाहिये। इसके सिवाय बच्चों के सामने हंसी-मजाक में झूठ बोलना भी उचित नहीं, क्योंकि बच्चे तो कोरे घड़े के समान शुद्ध हृदय वाले होते हैं। जिस तरह कोरे घड़े को हजार बार धो डालने पर भी उस घड़े से हींग की गंध नहीं जाती, इसी तरह छोटे बच्चों के हृदय पर यदि झूठ बोलने का संस्कार पड़ जाए तो वह भी स्थायी हो जाता है, बड़े होने पर भी नहीं छूटता। इस कारण बच्चों के सामने हँसी-मजाक में भी झूठी बातें करना ठीक नहीं। उसका उनके हृदय पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आचार्यरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन पंप For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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