Book Title: Vivek Chudamani
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 151
________________ १५४ विवेक-चूडामणि पड़ी। पतिके संन्यासी हो जानेपर भारती ब्रह्मलोकको जानेको उद्यत हुईं, परंतु शंकराचार्य उन्हें समझा-बुझाकर शृंगगिरि लिवा लाये और वहाँ रहकर अध्यापनका कार्य करनेकी प्रार्थना की। कहते हैं, भारतीद्वारा शिक्षा प्राप्त करनेके कारण ही शृंगेरी और द्वारकाके शारदा मठोंका शिष्य-सम्प्रदाय 'भारती' के नामसे प्रसिद्ध हुआ। मध्यभारतपर विजय प्राप्तकर शंकराचार्य दक्षिणकी ओर चले और महाराष्ट्रमें शैवों और कापालिकोंको परास्त किया। एक धूर्त कापालिक तो उन्हींकी बलि चढ़ानेके लिये छलसे उनका शिष्य हो गया। परंतु जब वह बलि चढ़ानेके लिये तैयार हुआ तो पद्मपादाचार्यने उसे मार डाला। उस समय भी शंकराचार्यकी साधनाका अपूर्व प्रभाव देखा गया। कापालिककी तलवारकी धारके नीचे भी वे समाधिस्थ और शान्त बैठे रहे। वहाँसे चलकर दक्षिणमें तुंगभद्राके तटपर उन्होंने एक मन्दिर बनवाकर उसमें शारदादेवीकी स्थापना की, यहाँ जो मठ स्थापित हुआ उसे शृंगेरीमठ कहते हैं। सुरेश्वराचार्य इसी मठमें आचार्यपदपर नियुक्त हुए। इन्हीं दिनों शंकराचार्य अपनी वृद्धा माताकी मृत्यु समीप जानकर घर वापस आये और माताकी अन्त्येष्टिक्रिया की। कहते हैं माताकी इच्छाके अनुसार इन्होंने प्रार्थना करके उन्हें विष्णुलोकमें भिजवाया। वहाँसे ये शृंगेरीमठ आये और वहाँसे पुरी आकर इन्होंने गोवर्धनमठकी स्थापना की और पद्मपादाचार्यको उसका अधिपति नियुक्त किया। इन्होंने चोल और पाण्ड्य देशके राजाओंकी सहायतासे दक्षिणके शाक्त, गाणपत्य और कापालिक-सम्प्रदायके अनाचारको दूर किया। इस प्रकार दक्षिणमें सर्वत्र धर्मकी पताका फहराकर और वेदान्तकी महिमा घोषित कर ये पुनः उत्तर भारतकी ओर मुड़े। रास्तेमें कुछ दिन बरारमें ठहरकर ये उज्जैन आये और वहाँ इन्होंने भैरवोंकी भीषण साधनाको बंद किया। वहाँसे ये गुजरात आये और द्वारकामें एक मठ स्थापितकर अपने शिष्य हस्तामलकाचार्यको आचार्य पदपर नियुक्त किया। फिर गांगेय प्रदेशके पण्डितोंको पराजित करते हुए कश्मीरके शारदाक्षेत्र पहुँचे तथा वहाँके पण्डितोंको परास्तकर अपना मत प्रतिष्ठित किया। फिर यहाँसे आचार्य आसामके कामरूप आये और वहाँके शैवोंसे शास्त्रार्थ किया। यहाँसे फिर बदरिकाश्रम

Loading...

Page Navigation
1 ... 149 150 151 152 153